वृक्षाः Class 6 Summary Notes
वृक्षाः पाठ का परिचय
पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson) इस पाठ में अकारान्त शब्द के प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के रूप का प्रयोग आया है। प्रथमा विभक्ति का शब्द रूप कर्तापद के लिए और द्वितीया विभक्ति का रूप कर्मपद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यथा
वृक्षाः Summary
इस पाठ में कवि ने वृक्षों के महत्त्व का चित्रण किया है। वृक्ष मनुष्य के मित्र हैं। वृक्ष मनुष्य के लिए सर्वथा उपयोगी एवं कल्याणकारी हैं। वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हुए पक्षी कलरव करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो वृक्ष मानव के मनोरंजन के लिए मधुर गीत गा रहे हैं। वृक्ष केवल वायु का भक्षण करते हैं और जल पीते हैं, परंतु वे मनुष्यों को फल, छाया आदि प्रदान करते हैं। वस्तुतः वृक्ष मनुष्य के लिए हितकारी हैं।
वृक्षाः Word Meanings Translation in Hindi
(क) ‘बालकाः खेलन्ति’ वाक्य में ‘बालकाः’ कर्तापद (Subject) होने के कारण प्रथम विभक्ति में है।
(ख) ‘बालकाः पादकंदुकखेलम्-खेल खेलन्ति’ वाक्य में ‘पादकंदुकखेलम्’ कर्मपद (object) होने के कारण द्वितीया विभक्ति में है। हम सीख चुके हैं अकारान्त शब्द दो प्रकार के होते हैं।
(i) पुल्लिंग तथा
(ii) नपुंसकलिंग। दोनों के रूप नीचे दिए गए हैं।
ध्यातव्यम्-नपुंसकलिंग शब्दों के रूप प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति में एक समान होते हैं।
पाठ – शब्दार्थ एवं सरलार्थ ।
(क) वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः।।।
शाखादोलासीना विहगाः।
तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः।2।
शब्दार्थाः (Word Meanings) : वने वने-प्रत्येक जंगल में (in each forest), निवसन्तः (निवसन्तो)-निवास करते रहते हैं (keep living), वनम्-जंगल (forest), रचयन्ति-रचना करते हैं (create), शखादोलासीनाः (शाखादोला + आसीनाः)-शाखा रूपी झूले पर बैठे हुए (sitting on the swing of branches), विहगाः-पक्षी (birds), तैः-उनके द्वारा अर्थात् पक्षियों द्वारा (through them by the birds), किमपि (किम् + अपि)-कुछ-कुछ (some), कूजन्ति-कूकते/कूकती हैं (chirping), वृक्षाः-पेड़ (trees)।
अन्वय : (Prose-order)
1. वृक्षाः वने वने निवसन्तोः, वृक्षाः वनम् वनम् रचयन्ति।
2. विहगाः शाखादोलासीन (सन्ति), वृक्षाः तैः किम् अपि कूजन्ति।
सरलार्थ :
1. वृक्ष प्रत्येक वन में निवास करते/रहते हैं, इस प्रकार वृक्ष कई जंगल बनाते रहते हैं।
2. पक्षी शाखा रूपी झूले पर बैठे हैं मानों वृक्ष उनके माध्यम से कुछ-कुछ कूक रहे हैं अर्थात् कह रहे हैं।
English Translation:
1. Trees dwell in every jungle, thus they form (make) many jungles.
2. The birds are sitting on the branches of trees and chirping.
It seems that trees are saying something through them (birds).
(ख) पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्। साधुजना इव सर्वे वृक्षाः।।
स्पृशन्ति पादैः पातालं च। .
नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षाः ।।
शब्दार्थाः (Word Meanings) : पिबन्ति-पीते/पीती हैं (drink), पवनं-वायु (air), सन्ततम्-लगातार (continually), साधुजनाः इव-सज्जनों की भाँति (like good noble people), सर्वे-सब (all), स्पृशन्ति-स्पर्श करते हैं (touch), पादैः-पैरों से (with foot), पातालं-जमीन के नीचे भाग (underground), नभः-आकाश को (the sky), शिरस्सु-सिरों पर (on their head), वहन्ति-ढोते (carry)।
अन्वय : (Prose-order)
3. वृक्षाः सन्ततम् पवनं जलम् च पिबन्ति। सर्वे वृक्षाः साधुजनाः इव (सन्ति)।
4. वृक्षाः पादैः पातालम् स्पृशन्ति शिरस्तु च नभः वहन्ति।
सरलार्थ :
3. वृक्ष हमेशा वायु और जल पीते हैं। सभी वृक्ष सज्जनों की भाँति होते हैं। अर्थात् वे सज्जनों के समान हमारा उपकार करते हैं।
4. वृक्ष पैरों से (जड़ों से) पाताल को छूते हैं और सिरों पर आकाश को ढोते हैं। अर्थात् वे महान हैं और अत्यधिक कार्यभार संभालते हैं।
English Translation:
3. Trees continually take water and air only. All trees are like noble persons. i.e., trees show kindness in many ways like noble persons.
4. Trees touch the underground with their feet in their roots. They carry the sky on their heads.
पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम्।
कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः।5।
प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम्।
कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः।6।
शब्दार्थाः (Word Meanings) : पयोदर्पणे-जलरूपी दर्पण/शीशे में (in the mirror-like water), स्वप्रतिबिंबम्-अपनी परछाई को (own reflection), कौतुकेन-आश्चर्य से (with surprise/ wonder), पश्यन्ति-देखते हैं (see), प्रसार्य-फैलाकर (having spread), स्वच्छायासंस्तरण म्-(स्व+छाया+संस्तरणम्) अपने छाया रूपी बिस्तर को (their own shadow which is like a bed), कुर्वन्ति-करते/करती हैं (do), सत्कारम्-आदर-सत्कार (regards)।
अन्वय : (Prose-order)
5. वृक्षाः पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम् कौतुकेन पश्यन्ति।
6. वृक्षाः स्वच्छायासंस्तरणम् प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति।
सरलार्थ :
5. वृक्ष जलरूपी आईने में अपना प्रतिबिम्ब आश्चर्य/कौतूहल से देखते हैं।
6. वृक्ष छाया रूपी अपन बिछौने को फैलाकर अर्थात् बिछाकर (सबका) आदर-सत्कार करते हैं।
English Translation:
5. Trees look at their own reflection in mirror like water.
6. Trees spread out their shadow like a bed and pay respect.
(give regards to those who come there.)
हमने सीखा
संस्कृत में संज्ञा शब्दों के लिंग पूर्व निर्धारित होते हैं। अकारान्त शब्दों में कुछ पुल्लिग और कुछ नपुंसकलिंग शब्द हैं। दोनों के शब्द रूप भिन्न होते हैं। यथा
केवल द्वितीया एकवचन में दोनों का रूप समान हैं, यथा- ‘पल्लवम्’ तथा ‘पर्णम्’। अतः शेष ‘रूपों से ही लिंग की पहचान संभव है। यथा ‘पल्लवाः’ पुल्लिग पद है और ‘पर्णानि’ नपुंसकलिंग।
ध्यातव्यम्-शेष विभक्तियों में अकारान्त पुल्लिग तथा नपुंसकलिंग के रूप एक समान होते हैं।
पर्ण