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CBSE Class 11 Hindi Elective Rachana जनसंचार माध्यम
संचार एक नज़र में…
मानव-सभ्यता के विकास में संचार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। इस तरह संचार एक प्रक्रिया है, जिसमें कई तत्व शामिल हैं।
जनसंचार कई मामलों में संचार के अन्य रूपों से अलग है। जनसंचार सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के अलावा एजेंडा तय करने का काम भी करता है। भारत में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। जनसंचार माध्यमों का लोगों पर सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इन नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों का सचेत होना बहुत ज़रूरी है। संचार क्या है?
‘संचार’ शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। टेलीफ़ोन के तार या बेतार के ज़रिये मौखिक या लिखित संदेश को एक जगह से दूसरी जगह भेजने को भी संचार ही कहा जाता है।
यहाँ जिस संचार की बात हम कर रहे हैं, उससे हमारा तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है।
मशहूर संचारशास्त्री विल्बर श्रैम के अनुसार-“संचार अनुभवों की साझेदारी है।”
एक-दूसरे से संचार करते हुए हम अपने अनुभवों को ही एक-दूसरे से बाँटते हैं। संचार सिर्फ दो व्यक्तियों तक सीमित परिघटना नहीं है। संचार के तहत सिर्फ़ दो या उससे अधिक व्यक्तियों में ही नहीं, हज़ारों-लाखों लोगों के बीच होने वाले जनसंचार तक को शामिल किया जाता है। इस प्रकार सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के ज़रिये सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है।
संचार की प्रक्रिया को पूरा करने में मदद करने वाले तरीके संचार माध्यम कहलाते हैं।
संचार का महत्व
हम-आप अधिकांश समय अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों को पूरा करने में या अपनी भावनाओं और विचारों को प्रकट करने के लिए एक-दूसरे से या समूह में बातचीत या संचार करने में लगा देते हैं। सच तो यह है कि हम बिना बात किए रह ही नहीं सकते। यदि समाज में रहना है और उसके विभिन्न क्रियाकलापों में हिस्सा लेना है, तो यह बिना बातचीत या बिना संचार के संभव नहीं है। संचार यानी संदेशों का आदान-प्रदान।
संचार-जीवन की निशानी
हम अपने दैनिक जीवन में संचार किए बिना नहीं रह सकते। वास्तव में संचार जीवन की निशानी है। मनुष्य जब तक जीवित रहता है, संचार करता रहता है। एक तरह से, संचार खत्म होने का अर्थ है-मृत्यु। मनुष्य की संचार करने की क्षमता और कौशल सबसे बेहतर है। अकसर यह कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित करने में उसकी संचार-क्षमता की सबसे बड़ी भूमिका रही है।
सभ्यता के विकास की कहानी संचार और उसके साधनों के विकास की कहानी है। मनुष्य ने चाहे भाषा का विकास किया हो या लिपि का या फिर छपाई का, इसके पीछे मूल इच्छा संदेशों के आदान-प्रदान की ही थी। वास्तव में, संदेशों के आदान-प्रदान में लगने वाले समय और दूरी को पाटने के लिए ही मनुष्य ने संचार के माध्यमों की खोज की। केंद्रीय कर्मचारियों को केंद्र सरकार द्वारा हर साल मिलने वाले प्रमोशन या डिमोशन की प्रक्रिया तय की गई-
गुड नहीं, अब वेरी गुड होगा बाबुओं के प्रमोशन का पैमाना हर विभाग में बनेगी स्क्रीनिंग कमिटी, तय करेगी किसे क्या मिलना है
नई दिल्ली: दो साल तक तमाम विकल्पों पर लंबे विचार-विमर्श के बाद केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों को हर साल मिलने वाले प्रमोशन या डिमोशन की प्रक्रिया तय कर दी है। इसके बारे में स्पष्टता नहीं रहने से कर्मचारियों ने कई बार असंतोष जताया था। मालूम हो कि सातवें वेतन आयोग के बाद् केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के लिए एसीपी (अश्योर्ड करियर प्रोगेशन) में बदलाव किया था। इसमें कहा गया था कि जिनका काम पैमानों पर खरा नहीं उतरेगा, उनका अप्रेजल या इंक्रिमेंट नहीं होगा। साथ ही नियमित प्रमोशन पर भी इसका असर पड़ेगा। पहले गुड रहने पर इंक्रमेंट और प्रमोशन मिलता था। अब इसके लिए पैमाने को वेरी गुड कर दिया गया है।
कोर्ट भी गए कर्मचारी
नोटिफिकेशन में हालाँकि यह भी स्पष्ट किया गया है कि पहले की तरह 10 साल, 20 और 30 साल सर्विस पूरा होने पर पहले से एमएसीपी के तहत प्रमोशन की नीति जारी रखी जाएगी या नहीं। सूत्रों के अनुसार, सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद कर्मचारियों के प्रमोशन के चार चक्र पूरे हो चुके हैं। इनमें सैकड़ों कर्मचारियों को गुड से ही संतोष करना पड़ा है। कुछ इस वजह से अदालत की शरण में भी जा चुके हैं।
ग्रेडिंग पर अडवाइज़री
सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद कर्मचारी ग्रेडिंग के नाम पर मामले को अदालत तक न ले जाएँ, सरकार ने इसके लिए उनके अप्रेजल सिस्टम को पूरी तरह पारदर्शी रखने की तैयारी की है। सरकार ने सभी विभागों और मंत्रालयों से कहा है कि कर्मचारियों के काम-काज पर आधारित गुप्त रिपोर्ट पूरी तरह तथ्यों और उनके प्रदर्शन के ईमानदार आकलन पर आधारित हो। इसके लिए डिपर्टमेंट ऑफ पर्सोनेल एंड ट्रेनिंग की और से सभी अधिकारियों को विस्तार से अडवाइज़री भेजी गई है।
नीति स्पष्ट करने की मांग थी
सरकार की इस प्रमोशन नीति का कर्मचारियों ने विरोध किया था और इस बारे में और स्पष्टता लाने की अपील की गई थी। सरकार ने भी माना था कि इसके लिए अलग से कोई सिस्टम नहीं बनाया गया था। बाद में सरकार ने एक कमिटी बनाकर उसे सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के आलोक में किस तरह लागू किया जाए, इसके लिए सुझाव देने को कहा था। उसी सुझाव के अनुरूप यह स्क्रीनिंग कमिटी बनाई गई है।
संचार क्रांंति
संचार और जनसंचार के विभिन्न माध्यमों-टेलीफ़ोन, इंटरनेट, फ़ैक्स, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न और सिनेमा आदि के ज़रिये मनुष्य संदेशों के आदान-प्रदान में एक-दूसरे के बीच की दूरी और समय को लगातार कम-से-कम करने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि आज संचार माध्यमों के विकास के साथ न सिर्फ भौगोलिक दूरियाँ कम हो रही हैं, बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक रूप से भी हम एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं।
जनसंचार माध्यमों का महत्त्व
दुनिया के किसी भी कोने में कोई घटना हो, जनसंचार माध्यमों के ज़रिये कुछ ही मिनटों में इसकी खबर हमें मिल जाती है। अगर वहाँ किसी टेलीविज़न समाचार चैनल का संवाददाता मौजूद हो, तो हमें वहाँ की तस्वीरें भी तुरंत देखने को मिल जाती हैं।
आज टेलीविज़न के परदे पर हम दुनियाभर के अलग-अलग क्षेत्रों में घट रही घटनाओं को सीधे प्रसारण के ज़रिये ठीक उसी समय देख सकते हैं। हम क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम भले न जाएँ, लेकिन घर बैठे उस मैच का सीधा प्रसारण (लाइव) देख सकते हैं। आज संचार और जनसंचार के माध्यम हमारी अनिवार्य आवश्यकता बन गए हैं। हमारे रोज़मर्रा के जीवन में उनकी बहुत अहम् भूमिका हो गई है। उनके बिना हम आज आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। वे हमारे लिए न सिर्फ़ सूचना के माध्यम हैं, बल्कि वे हमें जागरूक बनाने और हमारा मनोरंजन करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
अब हमने जान लिया है कि –
- संचार एक घटना के बजाय एक प्रक्रिया है।
- एक ऐसी जीवन-प्रक्रिया, जिसमें सूचना देने और पाने वाले की सक्रिय भागीदारी ज़रूरी है।
- अगर दोनों में से कोई संचार के लिए अनिच्छुक है, तो संचार-प्रक्रिया का आगे बढ़ना मुश्किल है।
- संचार अंतरक्रियात्मक (इंटरएक्टिव) प्रक्रिया है।
संचार के तत्व
संचार की प्रक्रिया के कुछ तत्व निम्नलिखित हैं –
1. स्रोत या संचारक – संचार-प्रक्रिया की शुरुआत ‘स्रोत’ या ‘संचारक’ से होती है। जब स्रोत या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुँचाना चाहता है, तो संचार-प्रक्रिया की शुरूआत होती है। जैसे आप स्वयं को स्रोत या संचारक मान लें। आपको यदि इतिहास की एक किताब चाहिए, तो किताब माँगने के लिए आप अपने मित्र से बातचीत करेंगे या उसे संदेश लिखकर भेजेंगे। बातचीत या संदेश भेजने के लिए हम भाषा का सहारा लेते हैं।
2. कूटीकृत या एनकोडिंग – भाषा असल में एक तरह का कूट चिह्न या कोड है। हम अपने संदेश को उस भाषा में ‘कूटीकृत’ या ‘एनकोडिंग’ करते हैं। यह संचार की प्रक्रिया का दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए यह ज़रूरी है कि आपका मित्र भी उस भाषा यानी कोड से परिचित हो, जिसमें आप अपना संदेश भेज रहे हैं। इसके साथ ही संचारक का एनकोडिंग की प्रक्रिया पर भी पूरा अधिकार होना चाहिए।
3. संदेश – इसके बाद संचार-प्रक्रिया में अगला चरण स्वयं ‘संदेश’ का आता है। संचार-प्रक्रिया में संदेश का बहुत अधिक महत्व है। किसी भी संचारक का सबसे प्रमुख उद्देश्य अपने संदेश को उसी अर्थ के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए सफल संचार के लिए ज़रूरी है कि संचारक अपने संदेश को लेकर खुद पूरी तरह से स्पष्ट हो।
4. माध्यम (चैनल) – संदेश को किसी माध्यम (चैनल) के ज़रिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना होता है। जैसे हमारे बोले हुए शब्द ध्वनि-तरंगों के ज़रिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचते हैं, जबकि दृश्य संदेश प्रकाश-तरंगों के ज़रिये। इसी तरह वायु-तरंगों के ज़रिये भी संदेश पहुँचते हैं। टेलीफ़ोन, समाचार-पत्रों. रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट और फ़िल्मों आदि विभिन्न माध्यमों से प्राप्तकर्ता तक संदेश पहुँचाया जाता है।
5. डिकोडिंग – ‘डिकोडिंग’ का अर्थ है-प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह एक तरह से एनकोडिंग की उलटी प्रक्रिया है। इसमें संदेश का प्राप्तकर्ता चिह्नों और संकेतों के अर्थ निकालता है। ज़ाहिर है कि संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों का उस कोड से परिचित होना ज़रूरी है।
6. फ़ीडबैक – प्राप्तकर्ता को जब संदेश मिलता है, तो वह उसके मुताबिक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। वह प्रतिक्रिया सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है। संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रतिक्रिया को ‘फ़ीडबैक’ कहते हैं। संचार-प्रक्रिया की सफलता में फ़ीडबैक की अहम् भूमिका होती है। फ़ीडबैक से ही पता चलता है कि संचार-प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आ रही है। इसके अतिरिक्त फ़ीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था, वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं?
7. शोर – संचार-प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को ‘शोर (नॉयज़)’ कहते हैं। संचार की प्रक्रिया को शोर से बाधा पहुँचती है। यह शोर किसी भी किस्म का हो सकता है। यह मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक शोर तक हो सकता है। शोर के कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता। फलतः संचार के लिए संचार-प्रक्रिया से शोर को हटाना या कम करना बहुत ज़रूरी है।
संचार के प्रकार
संचार एक जटिल प्रक्रिया है। उसके कई रूप या प्रकार हैं। संचार के विभिन्न रूप या प्रकार एक-दूसरे में भी काफ़ी घुले-मिले हैं। उन्हें अलग-अलग देखना काफ़ी मुश्किल है।
संचार के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं :
1. सांकेतिक संचार-हमारे द्वारा किया गया इशारा भी एक प्रकार का संचार है। इशारे या संकेत से किसी को बुलाना ‘सांकेतिक संचार’ कहलाता है।
2. मौखिक और अमौखिक संचार-अपने से बड़ों को प्रणाम करते समय हम हाथ जोड़ते हैं तथा ‘प्रणाम’ कहते हुए हाथों से संकेत भी करते हैं। आँख, चेहरे, हाथों की गति आदि अमौखिक संचार मौखिक संचार में मदद करते हैं। हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भावनाएँ-दुख, प्रेम, खुशी और डर आदि अमौखिक संचार के माध्यम से ही व्यक्त होती हैं।
3. अंतःवैयक्तिक संचार – कुछ चितन, मनन या अकेले में किसी को याद करना ‘अंतःवैयक्तिक संचार’ कहलाता है। इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। पूजा-अर्चना और प्रार्थना भी इसी संचार के बुनियादी रूप हैं।
4. अंतरवैयक्तिक संचार – जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं, तो इसे ‘अंतरवैयक्तिक संचार’ कहते हैं। इस संचार में फ़ीडबैक तत्काल प्राप्त होता है। इसकी मदद् से हम आपसी संबंध विकसित करते हैं। संचार का यह रूप पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है, जिसकी ज़रूरत हमें कदम-कदम पर पड़ती है। नौकरी और दाखिले के लिए होने वाले इंटरव्यू में इसी कौशल की परख होती है।
5. समूह संचार – जब एक समूह आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करता है, तब इसे ‘समूह संचार’ कहते हैं। हमारी कक्षा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। संसद, विधानसभा तथा गाँव की पंचायत के सदस्य आपसी चर्चा करके किसी निर्णय पर पहुँचते हैं।
6. जनसंचार – संचार का यह सबसे महत्वपूर्ण प्रकार है। जब प्रत्यक्ष रूप से संवाद न करके किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम से समाज के बड़े वर्ग से अपनी बात कहने की कोशिश की जाती है, तो इसे ‘जनसंचार’ कहते हैं। इसके लिए अखबार, रेडियो, टी०वी०, सिनेमा या इंटरनेट की मदद ली जाती है।
जनसंचार की विशेषताएँ
जनसंचार के श्रोताओं, पाठकों और दर्शकों का दायरा बहुत व्यापक होता है। इससे तुरंत फ़ीडबैक प्राप्त नहीं होता; जैसे-टेलीविज़न के दर्शकों में गरीब-अमीर, शहरी-ग्रामीण, पुरुष-महिला, युवा-वृद्ध सभी हो सकते हैं। इसके अलावा एक अंतर यह भी है कि इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच कोई संबंध नहीं होता।
जनसंचार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
1. जनसंचार माध्यमों के ज़रिये प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अंतरवैयक्तिक या समूह संचार की तुलना में जनसंचार के संदेश सबके लिए होते हैं।
2. संचार के अन्य रूपों की तुलना में जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की भी ज़रूरत पड़ती है। औपचारिक संगठन के बिना जनसंचार माध्यमों को चलाना मुश्किल है।
3. जनसंचार माध्यमों की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इनमें ढेर सारे द्वारपाल (गेटकीपर) काम करते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है, जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है। किसी जनसंचार माध्यम में काम करने वाले द्वारपाल ही तय करते हैं कि वहाँ किस तरह की सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाएगी।
संचार के कार्य
संचार विशेषजों के अनुसार संचार के कई कार्य हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
जनसंचार के कार्य –
जिस प्रकार संचार के कई कार्य हैं, उसी तरह जनसंचार माध्यमों के भी कई कार्य हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :
1. सूचना देना-जनसंचार माध्यमों का प्रमुख कार्य सूचना देना है। हमें उनके ज़िये ही दुनियाभर से सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। हमारी ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा जनसंचार माध्यमों के ज़रिये ही पूरा होता है।
2. शिक्षित करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं और विचारों के ज़रिये हमें जागरूक बनाते हैं। लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों की एक महत्वपूर्ण भूमिका जनता को शिक्षित करने की है। यहाँ शिक्षित करने से आशय है-उन्हें देश-दुनिया के हाल से परिचित कराना और उसके प्रति सजग बनाना।
3. मनोरंजन करना-जनसंचार माध्यम मनोरंजन के भी प्रमुख साधन हैं। सिनेमा, टी॰वी०, रेडियो, संगीत के टेप, वीडियो और किताबें आदि मनोरंजन के प्रमुख माध्यम हैं।
4. एजेंडा तय करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं और विचारों के ज़रिये किसी देश और समाज का एजेंडा भी तय करते हैं। जब समाचार-पत्र और समाचार चैनल किसी खास घटना या मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं या उसे व्यापक कवरेज देते हैं, तो वह घटना या मुद्दा आम लोगों में चर्चा का विषय बन जाता है। किसी घटना या मुद्दे को चर्चा का विषय बनाकर जनसंचार माध्यम सरकार और समाज को उस पर अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य कर देते हैं।
5. निगरानी करना-किसी लोकतांत्रिक समाज में जनसंचार माध्यमों का एक और प्रमुख कार्य सरकार और संस्थाओं के काम-काज पर निगरानी रखना भी है। अगर सरकार कोई गलत कदम उठाती है या किसी संगठन/संस्था में कोई अनियमितता बरती जा रही है, तो उसे लोगों के सामने लाने की ज़िम्मेदारी जनसंचार माध्यमों पर है।
6. विचार-विमर्श के मंच-जनसंचार माध्यमों का एक कार्य यह भी है कि वे लोकतंत्र में विभिन्न विचारों को अभिव्यक्ति का मंच उपलब्ध कराते हैं; जैसे किसी समाचार-पत्र के ‘संपादकीय’ पृष्ठ पर किसी घटना या मुद्दे पर विभिन्न विचार रखने वाले लेखक अपनी राय व्यक्त करते हैं। इसी तरह ‘संपादक के नाम चिट्ठी’ स्तंभ में आम लोगों को अपनी राय व्यक्त करने का मौका मिलता है।
भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास
भारत में देवर्ष नारद को पहला समाचार-वाचक माना जाता है, जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे। उन्हीं की तरह महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी को युद्ध की झलक दिखाने और उसका विवरण सुनाने के लिए संज्य की परिकल्पना की गई है।
चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक जैसे सम्राटों के शासन-काल में स्थायी महत्व के संदेशों के लिए शिलालेखों और सामयिक या तात्कालिक संदेशों के लिए कच्ची स्याही या रंगों से संदेश लिखकर प्रर्शित करने की व्यवस्था और मज़बूत हुई।
भारतीय संचार परंपरा की खासियत यह भी रही है कि राजदरबारों के समानांतर हमारे यहाँ लोक माध्यमों की भी सुलझी व्यवस्था मौजूद रही है। इसके संकेत प्रागैतिहासिक काल से ही मिलते हैं। भीमबेटका के गुफाचित्र इसके प्रमाण हैं। यह समानांतर व्यवस्था बाद में कठपुतली और लोकनाटकों की विविध शैलियों के रूप में दिखाई पड़ती है।
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के जो रूप आज हमारे यहाँ हैं, वे निश्चय ही हमें अंग्रेज़ों से मिले हैं। चाहे समाचार-पत्र हों या रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए हैं। जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं-समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के ज़रिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ
संवाददाता-समाचार-पत्र-पत्रिकाओं आदि के लिए खबरें लाने वाला व्यक्ति ‘संवाददाता’ कहलाता है। संपादक-संवाददाता द्वारा लाई खबरों, लेखों और फ़ीचरों को संपादित करने का काम करने वाले संपादकीय विभाग के कर्मचारियों को ‘संपादक’ कहते हैं।
भारत की पत्रकारिता का अस्तित्व
यद्यपि विश्व में पत्रकारिता का अस्तित्व 400 वर्ष पुराना है, पर भारत में इसकी शुरुआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गज़ट’ से हुई, जो कलकत्ता (कोलकाता) से निकला था, जबकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तंड’ भी कलकत्ता से ही सन् 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था। हिंदी भाषा के विकास में शुरुआती अखबारों और पत्रिकाओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लिहाज़ से भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा, जिन्होंने कई पत्रिकाएँ निकालीं।
आज़ादी से पहले के प्रमुख पत्रकार, अखबार एवं पत्रिकाएँ
आज़ादी से पहले के प्रमुख पत्रकारों में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबूराव विष्युराव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र. शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी और बालमुकुंद गुप्त हैं। उस समय के महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं में ‘केसरी’, ‘हिंदुस्तान’, ‘सरस्वती ‘, ‘हंस’, ‘कर्मवीर’, ‘आज’, ‘प्रताप’, ‘प्रदीप’ और ‘विशाल भारत’ आदि प्रमुख हैं। आज़ादी के बाद के प्रमुख पत्रकार, अखबार एवं पत्रिकाएँ
आज़ादी के बाद के हिंदी के प्रमुख पत्रकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अजेय’, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सुरेंद्र प्रताप सिंह के नाम प्रमुख हैं। आज़ादी के बाद के प्रमुख हिंदी अखबारों में ‘नवभारत टाइम्स’, ‘जनसत्ता ‘, ‘नई दुनिया’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘अमर उजाला’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘दैनिक जागरण’ और पत्रिकाओं में ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘दिनमान’, ‘रविवार’, ‘इंडिया टुड़े’ और ‘आउटलुक’ का नाम लिया जा सकता है। इनमें से कई पत्रिकाएँ बंद हो चुकी हैं।
रेडियो
पत्र-पत्रिकाओं के बाद जिस माध्यम ने दुनिया को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, वह रेडियो है। सन 1895 में जब इटली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जी० माकोनी ने वायरलेस के ज़रिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया। पहले विश्वयुद्ध तक यह सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण औज़ार बन चुका था। शुरुआती रेडियो स्टेशन 1892 में अमेरिकी शहर पिट्सबर्ग, न्यूयॉर्क और शिकागो में खुले। भारत में भी लगभग इसी समय रेडियो की शुरुआत हुई। 1921 में मुंबई में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने डाक-तार विभाग के सहयोग से संगीत कार्यक्रम प्रसारित किया। 1936 में विधिवत ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई।
रेंडियो एक ध्वनि माध्यम है। इसकी तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण गांधी जी ने रेडियो को एक अद्भुत शक्ति कहा था। ध्वनि-तरंगों के ज़रिये यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। दूर-दराज़ के गाँवों में, जहाँ संचार और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं होते, वहाँ रेडियो ही एकमात्र साधन है, बाहरी दुनिया से जुड़ने का। फिर अखबार और टेलीविज़न की तुलना में यह बहुत सस्ता भी है।
टेलीविज़न
आज टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है। प्रिंट मीडिया के शब्द और रेडियो की ध्वनियों के साथ जब टेलीविज़न के दृश्य मिल जाते हैं, तो सूचना की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में 1936 तक बी॰बी॰सी॰ ने भी अपनी टेलीविज़न सेवा शुरू कर दी थी।
भारत में टेलीविज़न की शुरुआत यूनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के अंतर्गत 15 सितंबर, 1959 को हुई थी। जिसका उद्द्शेश्य टेलीविज़न के माध्यम से शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था। इसके
लिए दिल्ली के आसपास के गाँवों में 2 टी॰वी० सेट लगाए गए, जिन्हें 200 लोगों ने देखा। सने 1965 में स्वतंत्रता दिवस से भारत में टी॰वी॰ सेवा का विधिवत आरंभ हुआ और कालांतर में इसके कार्यक्रम दिखाए जाने लगे।
दूरदर्शन कार्यक्रमों की गुणवत्ता के सुधार में प्रो॰ पी॰सी॰ जोशी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने अपनी रिपोर्ट में लिखा-‘हमारे जैसे समाज में जहाँ पुराने मूल्य दूट रहे हों और नए न बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन बड़ी भूमिका निभाते हुए जनतंत्र को मज़बूत बना सकता है।’
समिति द्वारा सुझाए गए दूरदर्शन के उद्देश्य
समिति के अनुसार दूरदर्शन के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए :
- सामाजिक परिवर्तन
- राष्ट्रीय एकता
- वैज्ञानिक चेतना का विकास
- परिवार-कल्याण को प्रोत्साहन
- कृषि-विकास
- पर्यावरण-संरक्षण
- सामाजिक विकास
- खेल-संस्कृति का विकास
- सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन
दूरदर्शन ने देश की सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में उल्लेखनीय सेवा की है, लेकिन लंबे समय तक सरकारी नियंत्रण में रहने के कारण इसमें ताज़गी का अभाव खटकने लगा और पत्रकारिता के निष्पक्ष माध्यम के तौर पर यह अपनी जगह नहीं बना पाया। अलबत्ता मनोरंजन के एक लोकप्रिय माध्यम के तौर पर इसने अपनी एक खास जगह बना ली है। आज पूरे भारत में 200 से अधिक चैनल प्रसारित हो रहे हैं और प्रतिदिन नए-नए चैनलों की बाढ़ आ रही है।
सिनेमा
सिनेमा जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली माध्यम है। हालाँकि यह जनसंचार के अन्य माध्यमों की तरह सीधे तौर पर सूचना देने का काम नहीं करता, लेकिन परोक्ष रूप में सूचना, ज्ञान और संदेश देने का काम करता है। सिनेमा को मनोरंजन के एक सशक्त माध्यम के तौर पर देखा जाता रहा है।
सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडिसन को जाता है और यह 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज के साथ जुड़ा हुआ है। 1894 में फ्रांस में पहली फ़िल्म बनी ‘द अराइवल ऑफ़ ट्रेन’।
भारत में पहली मूक फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फ़ाल्के को जाता है। 1913 में बनी यह फ़िल्म थी-‘राजा हरिश्चंद्र’। इसके बाद के दो दशकों में कई और मूक फ़िल्में बनीं। इसके कथानक धर्म, इतिहास और लोक-गाथाओं के इर्द-गिर्द बुने जाते रहे। 1931 में पहली बोलती फ़िल्म बनी-‘आलम आरा’। इसके बाद बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ। आज़ादी मिलने के बाद जहाँ एक तरफ़ भारतीय सिनेमा ने देश के सामाजिक यथार्थ को गहराई से पकड़कर आवाज़ देने की कोशिश की, वहीं लोकप्रिय सिनेमा ने व्यावसायिकता का रास्ता अपनाया। एक तरफ़ पृथ्वीराज कपूर, महबूब खान, सोहराब मोदी, गुरुदत्त जैसे फ़िल्मकार थे, तो दूसरी तरफ़ सत्यजित राय जैसे फ़िल्मकार।
बाज़ारवाद और व्यावसायिकता के दबाव में समानांतर या कला फ़िल्मों का दौर अस्सी के दशक में ही खत्म होने लगा। एक बार फिर लोकप्रिय मुंबइयाँ फ़िल्में छाने लगीं। दरअसल, हिंदी सिनेमा पर शुरू से ही पॉपुलर या लोकप्रिय फ़िल्मों का दबदबा रहा है। कला फ़िल्मों को समानांतर सिनेमा इसलिए भी कहा गया, क्योंकि वे अपनी अंतरवस्तु में लोकप्रिय फ़िल्मों के समानांतर चलती थीं। अस्सी और नब्बे के दशक में मुंबइया सिनेमा पर व्यावसायिकता का नशा इस कदर छाता गया कि फ़ॉर्मूला फ़िल्में फ़िल्मकारों के लिए मुनाफ़ा कमाने का सबसे बड़ा हथियार बन गईं। ऐसी फ़िल्मों के केंद्र में रोमांस, हिंसा, सेक्स और एक्शन को रखा जाता रहा है। कहने के लिए हर फ़िल्म में कोई-न-कोई सामाजिक संदेश देने की औपचारिकता निभाई जाती है, लेकिन इनका उद्देश्य केवल पैसा कमाना है। ऐसी फ़िल्मों ने खासकर युवाओं के मन में बहुत गलत प्रभाव छोड़ा है। मौज़दा समय में भारत हर साल लगभग 800 फ़िल्मों का निर्माण करता है और दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म-निर्माता देश बन गया है। यहाँ हिंदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में भी फ़िल्में बनती हैं और खूब चलती हैं।
सिनेमा के कुछ उदाहरण
अभी पार्टी के लिए समय नहीं है : सान्या
अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा लगातार दिलचस्प फिल्मों में काम कर रही हैं। साल 2016 में रिलीज़ फिल्म ‘दंगल’ हो, साल 2018 में रिलीज़ ‘बधाई हो’ और ‘पटाख्ता’ हो या अलहदा प्रेम कहानी ‘फ़ोटोग्राफ’- ये सभी फ़िल्में उनके सफर के बारे में बहुत कुछ कहती हैं। हालाँकि सान्या को आज भी ऐसा लगता है कि वह इस इंडस्ट्री में नई हैं। वे कहती हैं, ‘यहाँ सीखने को इतना कुछ है। आज भी मुझे कई बार अपनी काबिलियत पर शक-सा होता है।’ साल 2020 में उनकी तीन फ़िल्में रिलीज़ होनी हैं। साथ ही उनके पास कुछ और फ़िल्मों और वेब सीरीज़ के भी प्रस्ताव हैं।
इन सब बदलावों की वजह से सान्या का परिवार, उनके दोस्त बेहद उत्साहित हैं। वे कहती हैं, ‘मेरा परिवार मेरे काम को लेकर बहुत उत्साहित है। उनके लिए हर फ़िल्म जैसे मेरी पहली फ़िल्म है।’
वे लगातार फ़िल्मों की शूटिंग में व्यस्त हैं। क्या उन्हें फ़िल्मी पार्टियों में शिरकत न कर पाने का अफ़सोस होता है ? सुनिए सान्या की जुबानी, ‘दरअसल मैं सामाजिक रूप से बेहद कम घुलने-मिलने वाली लड़की हूँ। मैं सामाजिक रूप से बहुत क्यादा सक्रिय नहीं रह पाती। इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं है, बल्कि ऐसा करके मैं बहुत सुकून में रहती हूँ।
आगे वे कहती हैं, ‘हालाँक मुझे पार्टी करना भी बहुत पसंद है। फिलहाल अभी मेरे पास बहुत काम है। अभी मुझे बहुत अनुशासन वाली ज़िंदगी जीनी है। बीते कुछ माह मेरे लिए बहुत व्यस्त रहे और अगले कुछ माह भी इतने ही व्यस्त रहने वाले हैं। मेरे पास समय ही नहीं है। हालाँकि इसमें कोई शक नहीं है कि पार्टियों में मज़ा बहुत आता है।
खुश रहना है सबसे ज़रूरी: अनिल कपूर
बॉलीवुड के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक अनिल कपूर को उनके अभिनय के साथ उनकी फिटनेस के लिए भी जाना जाता है। अनिल 63 साल के हो चुके हैं, लेकिन उन्हें देखकर कोई भी उनकी उम्र का अंदाज़ा नहीं लगा सकता। आइए जानते हैं उनसे उनकी इस जवानी का राज़़-
बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता अनिल कपूर की फिटनेस के आगे इंडस्ट्री के बाकी स्टार्स भी फेल हैं। अनिल 63 वर्ष के हो गए हैं लेकिन उन्हें देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि उनकी उम्र इतनी होगी। ऐसे में हर कोई बस यही जानना चाहता है कि वो इस उम्र में भी इतने जवान कैसे दिखते हैं। अपनी फिटनेस से जुड़े कई राज़ साझा करते हुए अनिल कपूर कहते हैं कि वे अपने बेटे हर्षवर्धन कपूर के साथ व्यायाम करते हैं।
केवल वाइन और अनिल कपूर ही हैं, जो उम्र के साथ और बेहतर होते जा रहे हैं। इस बात से उनके प्रशंसक सहमत हैं और उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर इस बात का सबूत भी मिल सकता है। अभिनेता का मानना है कि उनके जवान दिखने का राज एक ‘स्वस्थ और खुश दिमाग’ है। उनका कहना है कि वे बेटे के साथ फिटनेस पर काम करते हैं और परिवार में उनके अलावा हर्षवर्धन भी फिटनेस को लेकर बेहद उत्साहित रहते हैं। बेटे के साथ मिलकर वे कुछ नए डाइट प्लान और वर्कआउट कर रहे हैं। पेश हैं उनसे बातचीत के कुछ अंश:
63 साल में भी इतने युवा और फिट दिखने का राज़ क्या है ?
बहुत सारी कड़ी मेहनत। मैं शॉर्ट कट लेने में विश्वास नहीं करता। मैं अपनी फिटनेस पर घंटों काम करता हूँ और जो कुछ भी खाता हूँ, उसे ध्यान में रखकर खाता हूँ। जितना संभव हो सके मैं अपने परिवार के साथ समय बिताता हूँ, ताकि मुझे मानसिक रूप से सुकून मिल सके। खुश रहना ही मेरे जवान दिखने का सबसे बड़ा राज़ है।
आप किस प्रकार की कसरत करते हैं?
मैं विभिन्न अभ्यासों के साथ हृदय और मांसपेशियों पर भी काम करता हूँ। मैं हमेशा एक ही तरह की कसरत नहीं करता, बल्कि इसे बदलता रहता हूँ, ताकि मेरा शरीर एक ही कसरत करने का आदी न हो जाए। मैं खाने में संतुलित आहार भी लेता हूँ।
तो आप इस बात से सहमत हैं कि सकारात्मकता और खुश रहना फिट रहने का सबसे बेहतर तरीका है? हाँ, एक स्वस्थ और खुश मन बेहतर सेहत के लिए महत्वपूर्ण है। मानसिक स्वास्थ्य शायद हमारे जीवन के उन पहलुओं में से एक है, जिसे हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं। जब आप अपने साथ और अपने आस-पास की दुनिया के साथ सुकून से रहते हैं, तो आप देख सकेंगे कि आपका शरीर कैसे उस सकारात्मक वातावरण में जवान और स्वस्थ दिखने लगता है।
आपका सबसे बेहतरीन वर्कआउट कौन-सा है?
दौड़ना एक ऐसी चीज़ है, जिसका मैं बहुत आनंद उठाता हूँ।
किस फ़िल्म के लिए आपको बहुत कठिन शारीरिक ट्रेनिंग से गुज़रना पड़ा?
फिल्म ‘मलंग’ में मेरी भूमिका कुछ ऐसी है, जिसे शारीरिक ट्रेनिंग की बहुत ज़रूरत थी, क्योंकि इसमें मेरा चरित्र एक पुलिसकर्मी का है।
क्या आप अपने बेटे हर्षवर्धन के साथ फिटनेस से जुड़ी चीज़ों पर बात करते हैं और क्या वे भी फिटनेस फ्रीक हैं?
हाँ, हर्ष मुझे नई डाइट या वर्कआउट के बारे में बताता रहता है और जो वर्कआउट मैं करता हूँ, उस पर भी नज़र रखता है। हम दोनों फिटनेस को लेकर एक-दूसरे से काफ़ी बातचीत करते हैं।
इंटरनेट
इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया, लेकिन तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। एक ऐसा माध्यम, जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। उसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है और उसकी रफ़्तार का कोई ज़वाब नहीं है। उसमें सारे माध्यमों का समागम है। इंटरनेट पर हम दुनिया के किसी भी कोने से छपने वाले अखबार या पत्रिका में छपी सामग्री पढ़ सकते हैं। रेंडियो सुन सकते हैं। सिनेमा देख सकते हैं। किताब पढ़ सकते हैं और विश्वव्यापी जाल के भीतर जमा करोड़ों पन्नों में से पलभर में अपने मतलब की सामग्री खोज सकते हैं।
इंटरनेट ने जहाँ पढ़ने-लिखने वालों के लिए, शोधकर्ताओं के लिए संभावनाओं के नए कपाट खोले हैं, हमें विश्वग्राम का सदस्य बना दिया है, वहीं इसमें कुछ खामियाँ भी हैं। पहली खामी तो यही है कि इसमें लाखों अश्लील पन्ने भर दिए गए हैं, जिसका बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ सकता है। दूसरी खामी यह है कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। हाल के वर्षों में इंटरनेट के दुरुपयोग की कई घटनाएँ सामने आई हैं।
जनसंचार माध्यमों का सकारात्मक प्रभाव
वर्तमान समाज संचार-प्रधान है। आज जनसंचार माध्यमों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारी जीवन-शैली पर भी इनका गहराई तक प्रभाव है। अब हम समाचार जानने के लिए टी॰वी० या रेडियो के अलावा इंटरनेट का भी सहारा लेने लगे हैं। महानगरों में युवाओं ने सूचना के आदान-प्रदान के लिए इसे मुख्य साधन के रूप में अपनाया है। अब इंटरनेट पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का प्रभाव हमारी खरीद-फ़रोख्त पर भी देखा जा सकता है। अब तो इंटरनेट का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों में भी किया जाने लगा है :
- शादी-ब्याह के लिए अखबार या इंटरनेट के मेट्रिमोनियल पर निर्भर रहने में।
- टिकटों की बुकिंग और टेलीफ़ोन का बिल जमा करने में।
- सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में।
- टेलीविज़न पर फ़िल्म और धारावाहिक देखकर मनोरंजन करने में।
जनसंचार माध्यम आज एक उत्पाद की तरह हमारे घरों में घुस आए हैं। वे हमारी जीवन-शैली को प्रभावित कर रहे हैं और हम उन्हें चाहते हुए भी रोक नहीं पा रहे हैं। जनसंचार माध्यमों ने हमारे जीवन को और ज्यादा सरल, हमारी क्षमताओं को और ज़्यादा समर्थ, हमारे सामाजिक जीवन को और अधिक सक्रिय बनाया है। साथ ही इन्होंने हमारे राष्ट्रीय जीवन को गतिशील और पारदर्शी बनाया है। इसके अलावा जनसंचार माध्यम लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी मज़बत बनाते हैं।
जनसंचार माध्यम देश की राजनीति और अर्थनीति को भी प्रभावित करते हैं। आपात्काल के बाद ये माध्यम अधिक शक्तिशाली हुए हैं और राष्ट्रीय जीवन में उनका हस्तक्षेप बढ़ा है; जैसे –
- जनसंचार माध्यम सरकार के कामकाज की निगरानी करते हैं।
- सरकार के गलत फैसलों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं।
- सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन जैसे मामले उठाते हैं।
- विभिन्न मुद्दों के प्रति लोगों को जागरूक बनाते हैं।
- स्टिग ऑपरेशनों के माध्यम से सामने आया ‘तहलका कांड’, ‘ऑपरेशन दुर्योधन’ या ‘चक्रव्यूह’ आदि ने यह सिद्ध किया है कि जनसंचार माध्यम चाहें, तो सरकार को भी हिलाने में सक्षम हैं।
जनसंचार माध्यमों के नकारात्मक प्रभाव
जनसंचार माध्यम लोगों के लिए बहुविध लाभदायी हैं, परंतु इनके नकारात्मक प्रभाव भी हैं। ये नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं :
1. सिनेमा और टी॰वी० जैसे जनसंचार माध्यम काल्पनिक और लुभावनी कथाओं के ज़रिये लोगों को एक नकली दुनिया में पहुँचा देते हैं, जिसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता। इस कारण लोग उसके ऐसे व्यसनी बन जाते हैं कि पलायनवादी प्रवृत्ति पैदा हो जाती है।
2. जनसंचार माध्यमों खासकर सिनेमा पर यह आरोप भी लगता रहा है कि इन्होंने समाज में हिंसा, अश्लीलता और असामाजिक व्यवहार को प्रोत्साहित करने में अगुआ की भूमिका निभाई है। जनसंचार माध्यमों के प्रभाव को लेकर कुछ धारणाएँ इस प्रकार हैं-जनसंचार माध्यम लोगों के गलत व्यवहार और आदतों में परिवर्तन करने के बजाय उनमें थोड़ा-बहुत फ़ेरबदल करके उन्हें और ज़्यादा मज़बूत करने का काम करते हैं।
3. जनसंचार माध्यमों का उन लोगों पर अधिक प्रभाव पड़ता है, जो किसी चीज़ के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं या अनिश्चय में हैं।
4. अखबारों और टेलीविजन चैनलों में किसी खास खबर या मुद्दे को ज़रूरत से ज्यादा उछाला जाता है। जबकि कुछ अन्य मुद्दों और खबरों को बिलकुल जगह नहीं मिलती। अकसर उन मुद्दों और सवालों को नज़रअंदाज़ किया जाता है. जिनका संबंध व्यापक जनसमुदाय खासकर समाज के कमज़ोर वर्गों से होता है।
5. अधिकांश जनसंचार माध्यमों पर कंपनियों या व्यक्तियों का स्वामित्व है। वे उन्हें सार्वजनिक हित से ज़्यादा अपने व्यावसायिक मुनाफ़े को ध्यान में रखकर संचालित करते हैं। कई मौकों पर विज्ञापनदाताओं के हितों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके लिए तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ और सच्चाई को छिपाने की कोशिश की जाती है।
6. उपभोक्तावाद के विकास और फैलाव में जनसंचार माध्यमों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। फैरन से लेकर खानपान तक में लोगों की रुचियों और आदतों को बदलने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका देखी जा सकती है। खासकर बच्चों और युवाओं पर जनसंचार माध्यमों के ज़रिये पेश की जा रही आधुनिक उपभोक्तावादी जीवनशैली का गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
संक्षेप में, जनसंचार माध्यमों के बिना आज सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे में हमें जनसंचार माध्यमों से प्रसारित और प्रकाशित सामग्री को सक्रिय तरीके से सोच-विचार करके ही ग्रहण करना चाहिए।
लिपि से मुद्रण तक का सफ़र
लिपि का आविष्कार संचार के क्षेत्र में दूसरी बड़ी क्रांति थी। धवनि पर अवलंबित लिपि के विकास के पूर्व मानव ने भाषा के अतिरिक्त अभिव्यक्ति के कई अन्य माध्यमों के प्रयोग किए थे। चित्रलिपि या पिक्टोग्राफ़ी इसी तरह का एक प्रयोग था। यह लेखन-विधि चित्रों की एक शृंखला द्वारा किसी घटना या स्थिति का स्वरूप प्रस्तुत करती थी। पिक्टोग्राफ़ी के कुछ रूपों ने विकसित होकर ऑडियोग्राफ़ी का रूप ले लिया। यह चित्रलिपि का संवर्धित रूप था।
चित्रििपि में छोटा-सा वृत्त सूर्य का प्रतिनिधित्व करता था। ऑडियोग्राफ़ी में, संदर्भ के अनुसार, उससे ताप, प्रकाश और दिन का बोध भी होने लगा। लिपियों के विकास के अगले चरण और भी महत्वपूर्ण थे। एक और ‘लोनोग्राफ़ी’ का विकास हुआ, जिसमें प्रत्येक शब्द के लिए एक स्वतंत्र चिह्न था। इस लिपि को ‘शब्द-लेखन’ भी कह सकते हैं। इन लिपियों ने लेखन के स्वतंत्र रूप का अंत करके उसे केवल भाषा की अभिव्यक्ति का एक माध्यम बना दिया।
लिपि के माध्यम से मनुष्य ने पत्तों, मिट्टी की पतली ईंटों, पत्थर, चमड़े, वस्त्र आदि पर लिखकर अपने संचित ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने का यत्न किया। लिपि एक रहस्यमय और चमत्कारी शक्ति थी. जिस पर अधिकार रखने वाले थोड़े-से लोगों को समाज में ऊँचा स्थान मिला। यह दूसरी बात है कि आगे चलकर इसी ज्ञान का व्यापक प्रसार हुआ। इस दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव कागज और छपाई के मेल से हुआ। चीन के साईं लुन ने कागज का आविष्कार किया, जिन्होंने इसवी सन 105 में वृक्षों की कूटी हुई छाल, सन, पुराने कपड़े और मछली पकड़ने के पुराने जालों के उपयोग से कागज़ बनाया। पाँच सौ वर्षों तक यह शिल्प चीन में ही रहा। सातवीं सदी के आरंभ में यह कला जापान पहुँची और बौद्ध भिक्षुओं ने मलबरी (शहतूत) वृक्ष की छाल से कागज बनाना आरंभ किया। इसी देश में सन 770 में साँचों से मुद्रण आरंभ हुआ।
चल-टाइप के आविष्कार ने मुद्रण को नया स्वरूप दिया। इसका श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को दिया जाता है, जिसने सन 1400 और 1468 के बीच चल-टाइप का आविष्कार किया। उसकी 428 पंक्तियों की बाइबिल-गुटेनबर्ग बाइबिल-को कई विद्वान दुनिया की पहली छपी हुई पुस्तक मानते हैं।
मुद्रण के आविष्कार से पुस्तकों और समाचार-पत्रों के प्रकाशन का रास्ता खुला। इस तरह ज्ञान के प्रसार और स्थायित्व की संभावनाएँ बढ़ीं। पुस्तकों और समाचार-पत्रों ने उसका दायरा बढ़ाया और वह क्रमशः सर्वसुलभ होने लगा।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न –
प्रश्न 1.
इस पाठ में विभिन्न लोक-माध्यमों की चर्चा हुई है। आप पता लगाइए कि वे कौन-कौन से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने क्षेत्र में प्रचलित किसी लोकनाद्य या लोकमाध्यम के किसी प्रसंग के बारे में जानकारी हासिल करके उसकी प्रस्तुति के खास अंदाज़ के बारे में भी लिखिए।
उत्तर :
इस पाठ में जिन लोकमाध्यमों की चर्चा हुई है, वे हैं-लोक-नृत्य, लोक-संगीत और लोक-नाट्य। ये देश के विभिन्न भागों में विविध नाट्य रूपों-कथावाचन, बाउल, सांग, रागिनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्ष-गान, आदि में प्रचलित हैं। इनमें सांग उत्तरी भारत, नौटंकी उत्तर प्रदेश, बिहार, रागिनी हरियाणा तथा यक्ष-ग़ान कर्नाटक क्षेत्रों से संबंधित हैं।
हमारे क्षेत्र में नौटंकी का प्रयोग खूब होता है। यह ग्रामीण नाट्य-शैली का एक रूप है। इसमें प्रायः रात्रि के समय मंच पर किसी लोक-कथा या कहानी को नाट्य-शैली में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें स्त्री-पात्रों की भूमिका भी प्राय: पुरुष-पात्र करते हैं। हारमोनियम, नगाड़ा, ढोलक आदि वाद्य-यंत्रों के साथ यह संगीतमय प्रस्तुति लोक-लुभावन होती है।
प्रश्न 2.
आज़ादी के बाद भी हमारे देश के सामने बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। आप समाचार-पत्रों को उनके प्रति किस हद तक संवेदनशील पाते हैं?
उत्तर :
आज़ादी के बाद भी हमारे देश में बहुत-सी चुनौतियाँ हैं। ये चुनौतियाँ हैं :
- निर्धनता से निपटने की चुनौती।
- बेरोज़गारी से निपटने की चुनौती।
- श्रप्टाचार की चुनौती।
- देश की एकता बनाए रखने की चुनौती।
- आतंकवाद का मुकाबला करने की चुनौती।
- सांप्रदायिकता से निपटने की चुनौती।
हम समाचार-पत्रों को इन चुनौतियों के प्रति काफी हद तक संवेदनशील पाते हैं। वे अपने दायित्व का निर्वहन, इनसे पीड़ित लोगों की आवाज़ सरकार तक पहुँचाकर कर रहे हैं, जिससे सरकार और अन्य स्वयंसेवी संस्थाएँ इनको हल करने के लिए आगे आती हैं। हाँ, छोटे समाचार-पत्र अपनी सीमा निश्चित होने के कारण कई बार दबाव में आकर उतने संवेदनशील नहीं हो पाते हैं।
प्रश्न 3.
टी॰वी० के निजी चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाते हैं? टी॰वी० के कार्यक्रमों से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर :
टी॰वी॰ के निजी चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले कार्यक्रम दिखाते हैं। लोग ऐसे कार्यक्रमों की ओर आकर्षित होते हैं। ये चैनल कई बार लोगों की आस्था को भी निशाना बनाने से नहीं चूकते। इन कार्यक्रमों को टुकड़ों में दिखाते हुए ऐसे मोड़ पर समाप्त करते हैं, जिससे लोगों की उत्सुकता अगले कार्यक्रम के लिए बनी रहे।
गत दिनों जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की खबरों तथा उनमें फैसे नागरिकों को बचाने संबंधी खबरों को कई दिनों तक टी॰वी॰ पर दिखाया जाता रहा। इसी प्रकार अमेठी (उत्तर प्रदेश) के भूपति भवन पर अधिकार को लेकर संजय सिंह (राज्य सभा सांसद) और उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह, पुत्र अनंत विक्रम सिंह के मध्य हुए झगड़े एवं विवाद को कई बार दिखाया गया।
प्रश्न 4.
इंटरनेट पत्रकारिता ने दुनिया को किस प्रकार समेट लिया है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता के कारण अब दूरियाँ सिमटकर रह गई हैं। इंटरनेट की पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक हो गई है। इसकी रफ़्तार बहुत तेज़ है। इसका असर पत्रकारिता पर भी हुआ है। इसकी मदद्य से स्टूडियो में बैठा संचालक किसी भी मुद्दे पर देश-विदेश में बैठे व्यक्ति से बातें कर लेता है और करा देता है। इसकी मदद से गोष्ठियाँ, वार्ताएँ आदि आयोजित की जाती हैं। इससे विश्व की किसी भी घटना की जानकारी अब आसान हो जाती है।
प्रश्न 5.
किन्हीं दो हिंदी पत्रिकाओं के समान अंकों को (समान अवधि के) पढ़िए और उनमें निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर तुलना कीजिए :
उत्तर :
हम ‘सरिता’ और ‘इंडिया टुडे’ पत्रिकाओं के समान अंकों को लेते हैं और तुलना करते हैं :
आवरण पृष्ठ-‘ सरिता’ पत्रिका का आवरण पृष्ठ अधिक रंग-बिरंगा, चित्रमय, आकर्षक और सुंदर है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ का आवरण पृष्ठ अच्छा है, पर उतना आकर्षक नहीं।
अंदर के पृष्ठों की साज-सग्जा-‘सरिता’ के पृष्ठों की साज-सज्जा पर अधिक ध्यान दिया गया है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम। ‘सरिता’ के पृष्ठों पर चित्र अधिक हैं, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम।
सूचनाओं का क्रम-‘सरिता’ में सूचनाएँ किसी क्षेत्र-विशेष से संबंधित न होकर विविध क्षेत्रों से संबंधित हैं, जबकि ‘इंडया टुडे’ में मुख्यत: राजनीतिक खबरें एवं सूचनाएँ हैं।
भाषा-शैली-‘सरिता’ की भाषा सरल तथा बोधगम्य है, जबकि ‘इंडिया टुड़’ की भाषा-शैली अधिक उच्च-स्तरीय है।
प्रश्न 6.
निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण होना चाहिए अथवा नहीं? पक्ष-विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण होने से उनका काम करने का दायरा एवं ढंग प्रभावित होगा। इससे उनकी निष्पक्षता पर भी असर पड़ेगा। उसे दबाव में काम करना होगा, अत: हमारे विचार में निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 7.
नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। उनके सामने [✓] या [✗] का निशान लगाते हुए उसकी पुष्टि के लिए उदाहरण भी दीजिए :
(क) संचार माध्यम केवल मनोरंजन के साधन हैं। [ ]
(ख) केवल तकनीकी विकास के कारण संचार संभव हुआ, इससे पहले संचार संभव नहीं था। [ ]
(ग) समाचारपत्र और पत्रिकाएँ इतने सशक्त संचार माध्यम हैं कि वे राष्ट्र का स्वरूप बदल सकते हैं। [ ]
(घ) टेलीविज़न सबसे प्रभावशाली एवं सशक्त संचार माध्यम है। [ ]
(ङ) इंटरनेट सभी संचार माध्यमों का मिला-जुला रूप या समागम है। [ ]
(च) कई बार संचार माध्यमों का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। [ ]
उत्तर :
(क) [✗] उदाहरण-संचार माध्यमों से हमें तरह-तरह का ज्ञान प्राप्त होता है. अतः ये केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं।
(ख) [✗] उदाहरण-संचार दो व्यक्तियों के बीच यहाँ तक अकेले भी होता है। इसके लिए तकनीकी विकास की आवश्यकता अनिवार्य नहीं थी। तकनीकी विकास बाद में सहायक बने हैं।
(ग) [✓] उदाहरण-समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ घोटाले, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, सांप्रदायिकता आदि के विरुद्ध आवाज़ उठाकर राष्ट्र का स्वरूप बदल सकते हैं।
(घ) [✓] उदाहरण-टेलीविज़न आवाज़ और चित्र का संगम होने के कारण अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, युवा-वृद्ध सभी की पसंद बन गया है।
(ङ) [✓] उदाहरण-इंटरनेट पर समाचार-प. ठन, गीत-संगीत, फ़िल्म, बैठक, गोष्ठी आदि देखा-सुना जा सकता है।
(च) [✓] उदाहरण-इंटरनेट और टेलीविज़न अपने कार्यक्रमों से समाज में अश्लीलता परोसने का काम कर रहे हैं।
अन्य हल प्रश्न –
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
संचार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
‘संचार’ का अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचना। अतः सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक अथवा दृश्य-श्रव्य माध्यमों के ज़रिये सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने को संचार कहते हैं। संचार के कई साधन होते हैं- टेलीफोन, इंटरनेट, फैक्स, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन, सिनेमा आदि। इनके माध्यम से संदेशों का आदान प्रदान किया जाता है। इन साधनों से समय की बचत और दूरियाँ सिमटकर छोटी हो गई हैं।
प्रश्न 2.
संचार माध्यमों की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संचार की प्रक्रिया को पूरा करने में सहायता करने वाले तरीकों को संचार माध्यम कहते हैं। संचार के कई साधन हैं; जैसे- टेलीफ़ोन, इंटरनेट, फैम्स, समाचार-पत्र/पत्रिकाएँ. टेलीविज़न, सिनेमा आदि। इनके माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है। इन साधनों से समय की बचत होती है और दूरियाँ सिमटकर छोटी हो गई हैं।
प्रश्न 3.
‘संचार जीवन की निशानी है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण वह संचार करता है। दैनिक जीवन में संचार के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। मुुष्य जब तक जीवित है, वह संचार करता रहता है। संचार खत्म होने का मतलब है-मृत्यु। संचार ही मनुष्य को एक-दूसरे से जोड़ता है। अतः कहा जा सकता है कि ‘संचार जीवन क निशानी है।’
प्रश्न 4.
संचार के साधनों के कारण भौतिक दूरियों पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर :
आज संचार के अनेक साधन विकसित हो गए हैं जिसके कारण भौतिक दूरियाँ कम हो रही हैं। इन साधनों के कारण मनुष्य सांस्कृतिंक ब मानसिक रूप से भी एक-दूसरे के करीब आ रहा है। जनसंचार के माध्यमों से कुछ ही क्षणों में दुनिया के हर कोने की खबर मिल जाती है। इसी कारण आज दुनिया एक गाँव जैसी लगने लगी है।
प्रश्न 5.
संचार की प्रक्रिया में शामिल तत्वों के नाम लिखिए। इनमें से किसी एक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
संचार की प्रक्रिया में निम्नलिखित छह तत्व शामिल होते हैं-
- स्रोत या संचारक
- कूटीकुत या एनकोडिंग
- संदेश
- माध्यम (चैनल)
- डीकोडिंग
- फ़ीडबैक
- शोर
संचार की प्रक्रिया का एक मुख्य तत्व है-संदेश। संचारक अपनी जिस बात को किसी और तक पहुँचाना चाहता है, उसे संदेश कहते हैं। संचारक द्वारा अपने संदेश में पूरी स्पष्टता बरतनी चाहिए।
प्रश्न 6.
संचार की प्रक्रिया में संचारक या स्रोत का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संचार की प्रक्रिया में स्रोत या संचारक का इतना अधिक महत्व है कि संचारक ही संचार प्रक्रिया को आरंभ करता है। संचारक किसी विशेष उद्द्रेश्य के साथ अपने विचार, संदेश या अपनी भावना किसी अन्य व्यक्ति तक पहुँचाना चाहता है, तभी संचार की प्रक्रिया आरंभ होती है। इससे संचारक का महत्व खुद ही समझा जा सकता है।
प्रश्न 7.
कूटीकृत या एनकोडिंग की संचार-प्रक्रिया में क्या भूमिका होती है?
उत्तर :
कूटीकृत या एनकोडिंग संचार-प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण चरण होता है। सफल संचार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि जिस व्यक्ति तक हम संदेश भेजना चाहते हैं वह भी उस भाषा या कोड से सुपरिचित हो जिसमें संदेश भेजा जा रहा है। ऐसा न होने पर संचार की प्रक्रिया का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
प्रश्न 8.
संचार की प्रक्रिया में माध्यम (चैनल) का क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संचारक द्वारा अपने संदेश को किसी-न-किसी माध्यम द्वारा प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है। यह माध्यम टेलीविज़न, रेडियो, इंटरनेट या फ़िल्म कोई भी हो सकता है। इन्हें साधन बनाकर संदेश पहुँचाया जाता है। हमारे संदेश ध्वनि तरंगों के माध्यम से उस समय प्राप्तकर्ता तक पहुँच जाते हैं, जब वह हमारे पास हो।
प्रश्न 9.
डीकोडिंग क्या है? समझाइए।
उत्तर :
जब संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँच जाता है तो प्राप्तकर्ता संदेश का कूटवाचन या डीकोडिंग करता है। अर्थात प्राप्तकर्ता उस संदेश को समझने का प्रयास करता है। यह एनकोडिंग की विपरीत प्रक्रिया है। उसके अंतर्गत संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों को कोड से परिचित होना चाहिए ताकि संचार प्रक्रिया में सुगमता हो।
प्रश्न 10.
संचार की प्रक्रिया में फ़ीडबैक का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संचार-प्रक्रिया में फ़ीडबैक का अपना विशेष महत्व होता है। प्राप्तकर्ता को जब कोई संदेश मिलता है तो संचारप्रक्रिया की गुणवत्ता के अनुसार वह अपना फ़ीडबैक या प्रतिक्रिया देता है। फ़ीडबैक से ही हम जान पाते हैं कि संचार-प्रक्रिया कितने अच्छे ढंग से पूरी हुई। उसमें कोई बाधा तो नहीं आई। इससे संचारक द्वारा भेजे गए संदेश को प्राप्तकर्ता ने प्राप्त किया या नहीं, इसका भी पता चलता है।
प्रश्न 11.
‘शोर’ से आप क्या समझते हैं? संचार की प्रक्रिया के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कभी-कभी संचार प्रक्रिया में कई बाधाएँ आती हैं. इन्हें ही ‘शोर’ कहा जाता है। इससे संचार की प्रक्रिया में बाधा पैदा होती है। यह शोर कभी-कभी भौतिक होता है तो कभी मशीनरी का या फिर मानसिक हो सकता है। इसके कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता है। अच्छे संचार में शोर का न होना या कम-से-कम होना ज़रूरी होता है।
प्रश्न 12.
मुख्य रूप से संचार कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखते हुए सांकेतिक संचार के महत्व के बारे में बताइए।
उत्तर :
संचार के मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार हैं-
- सांकेतिक संचार
- मौखिक संचार
- अंतःवैयक्तिक संचार
- अंतरवैयक्तिक संचार
- समूह संचार
- जनसंचार
जब हम अपने आस-पास या अपने से कुछ दूर खड़े व्यक्ति को संकेत या इशारे से बुलाते हैं, तो इसे सांकेतिक संचार कहते हैं।
प्रश्न 13.
मौखिक संचार से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
जब हम किसी से मिलकर कुछ बोलकर अपना संदेश उस तक पहुँचाते हैं तो यह मौखिक संचार कहलाता है। इसके अंतर्गत ही हाथ जोड़कर प्रणाम करना, हाथ, चेहरे, आँखों की गति आदि का सहारा लेते हुए कुछ कहने जैसे अमौखिक संचार भी आते हैं। खुशी, दुख, प्रेम, डर, शोक आदि भावनाएँ भी अमौखिक संचार के माध्यम से व्यक्त की जाती हैं।
प्रश्न 14.
अंतःवैयक्तिक संचार से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर :
‘अंत:’ का अर्थ है- अंदर या भीतरी। अर्थात अपने आप अकेले में मन-ही-मन किया जाने वाला संचार। कभी-कभी जब हम अकेले होते हैं, कुछ सोचते हैं या कोई योजना बनाते हैं, तब यह अंतःवैयक्तिक संचार कहलाता है। इस प्रक्रिया में संचारक और प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। यह संचार का आधारभूत रूप है। पूजा-अर्चना, प्रार्थना आदि इसी संचार के रूप हैं।
प्रश्न 15.
अंतर वैयक्तिक संचार की परिभाषा देते हुए इसे सोदाहरण समझाइए।
उत्तर :
जब दो व्यक्ति आपस में आमने-सामने संचार करते हैं, तब इसे अंतर वैयक्तिक संचार कहते हैं। संचार के इस रूप में त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में फ़डबैक तुरंत ही मिल जाता है। पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को बढ़ाने में इस कौशल की बहुत आवश्यकता होती है। साक्षात्कार में भी इस कौशल को परखकर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है।
प्रश्न 16.
समूह संचार से आप क्या समझते हैं? इसका प्रयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है?
उत्तर :
जब कुछ व्यक्ति या समूह के सदस्य आपस में विचार-विमर्श या चर्चा करते हैं तब इसे समूह संचार कहते हैं। वे इस संचार के माध्यम से समाज और देश की समस्याओं का हल खोजने के लिए बातचीत या बहस करते हुए किसी हल पर पहुँचने का प्रयास करते हैं। ग्राम पंचायत या समिति में उपस्थित सदस्यगण, लोकसभा, विधानसभा आदि में समूह संचार के माध्यम से योजनाएँ बनाते हैं।
प्रश्न 17.
‘जनसंचार’ किसे कहते हैं? इसके लिए किन उपकरणों की मदद ली जाती है?
उत्तर :
जब संचार किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के जरिए समाज के विशाल वर्ग से संबाद करने की कोशिश की जाती है तो उसे ‘जनसंचार’ कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिए बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। टेलीकॉन्क्रेंसिंग जनसंचार का ही एक रूप है। इस संचार के लिए रेडियो, अखबार, टेलीविज़न, इंटरनेट आदि उपकरणों की मदद ली जाती है।
प्रश्न 18.
जनसंचार की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
जनसंचार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- जनसंचार माध्यमों के जरिए प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
- इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता।
- इस माध्यम में अनेक द्वारपाल होते हैं जो इन माध्यमों से प्रकाशित/ग्रसारित होनेवाली सामग्री को नियंत्रित तथा निर्धारित करते हैं।
प्रश्न 19.
जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल किन्हें कहा जाता है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों में अनेक द्वारपाल होते हैं। ये द्वारपाल वे व्यक्ति होते हैं जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करते हैं। किसी समाचार-पत्र के संपादक, सहायक संपादक, उप-संपादक आदि को द्वारपालों की श्रेणी में रखा जाता है। समाचार-पत्र की भाँत ही टी॰वी॰ और रेडियो में भी द्वारपाल होते हैं।
प्रश्न 20.
जनसंचार माध्यमों में द्वारपालों की क्या भूमिका है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों में द्वारपालों की भूमिका महत्वपूर्ण है। किसी भी समाचार-पत्र में द्वारपाल ही यह तय करते हैं कि क्या छपेगा, कितना छपेगा और कैसे छपेगा। यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि सार्वजनिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार-संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित करें तथा उसके बाद् ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इज़ाजत दें।
प्रश्न 21.
संचार के मुख्य कार्य कौन-से हैं? लिखिए।
अथवा
मनुष्य के लिए संचार का क्या महत्व है?
उत्तर :
संचार के निम्नलिखित कार्य हैं-
- संचार से कुछ हासिल किया जाता है।
- यह किसी के व्यवहार को नियंत्रित करता है।
- यह सूचना देने या लेने का कार्य करता है।
- यह मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति एक खास तरह से प्रस्तुत करता है।
- यह प्रतिक्रिया को व्यक्त करता है।
प्रश्न 22.
भारत में समाचार-पत्र की शुरुआत कब हुई?
उत्तर :
अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए लगभग 400 साल हो गए हैं, लेकिन भारत में इसकी शुरुआत सन 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गज़ट’ से हुई। हालॉकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र उदंत मार्तंड कलकत्ता से ही सन 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था।
प्रश्न 23.
हमारे देश में जनसंचार के आधुनिक माध्यमों का विकास किस तरह हुआ? वर्तमान में इसके साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
हमारे देश में जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के रूप प्रचलित हैं, वे अंग्रेज़ों से मिले हैं। समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट आदि सब पश्चिम से ही प्राप्त हुए हैं। जनसंचार के आधुनिक साधनों में समाचार-पत्र/पत्रिकाएँ, सिनेमा, रेडियो, टेलीविज़न और इंटरनेट प्रमुख हैं जिनकी सहायता से सामग्री जनता तक पहुँच रही है।
प्रश्न 24.
समाचार-पत्र/पत्रिकाएँ जनसंचार का काम किस तरह करती हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्र/पत्रिकाएँ जनसंचार की सबसे मज़बूत कड़ियाँ हैं। इन्हें प्रिंट मीडिया भी कहा जाता है। यद्यापि हमारे बीच श्रव्य-दृश्य माध्यम भी मौजूद हैं, पर प्रिंट मीडिया का महत्व हमेशा बना रहेगा। शुरू-शुरू में केवल प्रिंट माध्यमों के ज़रिए खबरों के आदान-प्रदान को पत्रकारिता कहा जाता था।
प्रश्न 25.
जनमानस तक खबरें पहुँचाने में संवाददाता और संपादक का क्या योगदान है?
उत्तर :
विभिन्न समाचार-पत्र/पत्रिकाओं के लिए खबरें लाने वाला व्यक्ति संवाददाता कहलाता है। यह व्यक्ति घटनास्थल से खबरें एकत्रित करता है। संवाददाता जो खबरें एकत्र करके लाते हैं, उन्हें सीधे ही न तो प्रकाशित किया जाता है और न प्रसारित। इनको संपादित करने का काम करने वाले संपादकीय विभाग के कर्मचारियों को संपादक कहते हैं।
प्रश्न 26.
स्वतंत्रता के पहले के प्रमुख पत्रकारों के नाम तथा उस समय के समाच्च-पत्र और पत्रिकाओं के नाम बताइए।
उत्तर :
स्वतंत्रता के पहले के प्रमुख पत्रकारों में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुव्वेदी, महावीरप्रसाद द्विवेदी, बाबूराव विण्णुराव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बालमुकुंद गुप्त हैं। उस समय के प्रमुख समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में ‘केसरी’, ‘हिंदुस्तानी’, ‘सरस्वती’, ‘हंस’, ‘कर्मवीर’, ‘ आज’, ‘ प्रताप’, ‘ प्रदीप’ आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न 27.
स्वतंत्रता के बाद के प्रमुख पत्रकारों और समाचार-पत्र/पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
स्वतंत्रता के बाद के हिंदी के मुख्य पत्रकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अक्षेय’, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, राजेंद्र माथुर, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, सुरेंद्र प्रताप सिंह आदि प्रमुख हैं। इस समय के समाचार-पत्र में नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक भास्कर तथा पत्रिकाओं में धर्मयुग, दिनमान, रविवार, ‘इंडिया टुडे’ आउटलुक आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न 28.
जनसंचार के साधनों में रेडियो का प्रवेश किस तरह हुआ?
उत्तर :
पत्र-पत्रिकाओं के बाद संचार माध्यम के साधनों में रेडियो ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। इसका आविष्कार 1895 में इटली के इंजीनियर जी. मार्कोनी ने किया। उन्होंने वायरलेस के ज़रिए ध्वनि और संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में सफलता हासिल की। सन 1921 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक-तार विभाग के सहयोग से संगीत कार्यक्रम प्रसारित किया तथा 1936 में ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना के साथ ही यह प्रमुख साधन बन गया।
प्रश्न 29.
रेडियो की लोकप्रियता का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर :
रेडियो एक ध्वनि माध्यम है जो ध्वनि तरंगों के माध्यम से देश के कोने-कोने तक अपनी पहुँच बनाता है। सुदूर गाँवों में जहाँ मनोरंजन के साधन नहीं हैं, वहाँ रेडियो संचार और मनोरंजन का माध्यम तो है ही, यह लोगों को बाहरी दुनिया से भी जोड़ता है। इसके अलावा यह आसानी से लाया-ले जाने वाला सस्ता साधन है।
प्रश्न 30.
संचार के क्षेत्र में टेलीविज़न की विश्वसनीयता एवं लोकप्रियता किस प्रकार बढ़ती गई?
उत्तर :
प्रिंट मीडिया के शब्द और रेडियो की ध्वनियों के साथ जब टेलीविज़न के दृश्य मिल जाते हैं तो सूचना की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में 1936 में बी.बी.सी. ने भी अपनी टेलीविज़न की सेवा शुरू कर दी थी। सन 1965 में टी॰वी० सेवा का विधिवत् आरंभ हुआ और कालांतर में इसके कार्यक्रम दिखाए जाने लगे। आज टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है।
प्रश्न 31.
प्रो. पी.सी. जोशी समिति द्वारा सुझाए गए दूरदर्शन के उद्टेश्य क्या-क्या हैं?
उत्तर :
प्रो. पी.सी. जोशी समिति के अनुसार दूरदर्शन के निम्नलिखित उद्देश्य सुझाए गए हैं-
- सामाजिक परिवर्तन
- परिवार-कल्याण को
- वैज्ञानिक चेतना का विकास
- कीजिए-कल्याण को प्रोत्साहन
- कृषि विकास
- पर्यावरण संरक्षण
- सामाजिक विकास
- खेल संस्कृति का विकास
- सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन
प्रश्न 32.
सिनेमा जनसंचार के साधन के रूप में किस तरह उभरा?
उत्तर :
सिनेमा जनसंचार का सबसे लोकप्रिय एवं प्रभावशाली माध्यम है। यद्यपि सिनेमा सीधे तौर पर सूचना देने का काम नहीं करता लेकिन यह परोक्ष रूप में संदेश देने का काम करता है। आज यह मनोरंजन के एक सशक्त माध्यम के रूप में देखा जाता है। सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडीसन को दिया जाता है।
प्रश्न 33.
भारत में फ़िल्म बनाने की शुरुआत किस तरह हुई?
उत्तर :
भारत में फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फाल्के को दिया जाता है। उन्होंने पहली मूक फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र सन् 1913 में बनाई। इसके बाद के दो दशकों में कई मूक फ़िल्में धर्म, इतिहास और लोकगाथाओं पर आधारित कथानक पर बनाई गई। सन 1931 में पहली बोलती फ़िल्म ‘आलमआरा’ बनाई गई। इसके बाद बोलती फ़िल्मों का निर्माण शुरू हो गया।
प्रश्न 34.
अस्सी और नब्बे के दशकों में सिनेमा में किस तरह का बदलाव आया?
उत्तर :
अस्सी और नब्बे के दशकों में सिनेमा पर व्यावसायिकता का प्रभाव बढ़ता गया। इससे फॉर्मूला फ़िल्में फिल्मकारों के लिए मुनाफाखोरी का आधार बन गई। ऐसी फ़िल्मों में हिंसा, एक्शन आदि की प्रमुखता होती थी। यद्यपि इनके माध्यम से कोई-न-कोई संदेश देने का प्रयास किया जाता था पर अब इनका उद्देश्य केवल पैसा कमाना रह गया है, जिनका युवाओं के मन पर गलत असर हुआ है।
प्रश्न 35.
इंटरनेट की लोकप्रियता का क्या कारण है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा और पुस्तकालय के सारे गुण हैं। इसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है। इंटरनेट सारे माध्यमों का संगम है। इसकी सहायता से हम दुनिया के किसी भी कोने में छपने वाले समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ पढ़ सकते हैं।
प्रश्न 36.
इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट शिक्षित वर्ग के लिए अत्यंत लाभकारी है, परंतु इसमें अनेक कमियाँ भी हैं। इसमें लाखों अश्लील पन्ने भर दिए गए हैं, जिनका बुरा असर बच्चों के कोमल मन पर पड़ सकता है। इसके अलावा इंटरनेट का दुरुपयोग किया जा रहा है। आजकल इसके दुरुपयोग की खबरें अकसर आती रहती हैं।
प्रश्न 37.
जनसंचार के सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
हमारी जीवन-शैली पर जनसंचार माध्यमों का गहराई तक प्रभाव रहा है। हम समाचारों के लिए समाचार-पत्र, टी॰वी०, रेडियो और इंटरनेट का सहारा लेते हैं। आज शहरों में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट को मुख्य साधन के रूप में अपनाया जा रहा है। आज इंटरनेट पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन हमारी खरीद-फरोख़त को भी प्रभावित करने लगे हैं।
प्रश्न 38.
जनसंचार माध्यम देश की राजनीति और अर्थनीति में किस तरह हस्तक्षेप करते हैं?
उत्तर :
जनसंचार माध्यम निम्नलिखित रूपों में देश की राजनीति और अर्थनीति को प्रभावित करते हैं-
- सरकार के काम-काज की निगरानी करते हैं।
- सरकार के गलत फैसलों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं।
- सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन के मामले उठाते हैं।
- लोगों को मुद्दों के प्रति जागरूक बनाते हैं।
प्रश्न 39.
जनसंचार माध्यमों के नकारात्मक प्रभाव कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों के नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- जनसंचार माध्यम लोगों को कल्पना की दुनिया की ओर ले जाकर पलायनवादी बनाते हैं।
- जनसंचार माध्यम समाज में हिंसा, अश्लीलता और असामाजिक व्यवहार बढ़ाते हैं।
- इन माध्यमों में साधारण और गरीब लोगों से जुड़े मुद्दों की उपेक्षा की जाती है।
- इनमें मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति होने के कारण सच्चाई को छिपाने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न 40.
जनसंचार माध्यम द्वारा स्टिंग ऑपरेशन क्यों चलाए जाते हैं?
अथवा
कुछ स्टिंग ऑपरेशनों के नाम लिखते हुए उनके प्रभावों का उल्लेख भी कीजिए।
उत्तर :
जनसंचार माध्यम समय-समय पर स्टिंग ऑपरेशन चलाते हैं। इनमें तहलका ऑपरेशन दुर्योधन या चक्रव्यूह मुख्य है। ऐसे स्टिंग ऑपरेशनों के कारण कई सांसदों को अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। इनके माध्यम से तिहाड़ जेल और आयकर विभाग के भ्रष्टाचार को उजागर किया गया। इन ऑपरेशनों ने सरकार के खोखले दावों की पोल भी खोल कर रख दी है।
प्रश्न 41.
लिपि के आविष्कार के आलोक में बताइए कि ऑडियोग्राफी क्या है?
उत्तर :
लिपि का आविष्कार संचार के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति के समान था। लिपि के विकास से पूर्व मानव ने भाषा के अलावा अभिव्यक्ति के अन्य साधनों का प्रयोग किया। इन्हीं में एक प्रयोग था-चित्रलिपि या पिक्टोग्राफी। यह लेखन की एक विधा है, जो श्रृंखला के रूप में किसी श्रृंखला या घटना का स्वरूप प्रस्तुत करती है। पिक्टोग्राफी ने ही बाद में ऑडियोग्राफी का रूप ले लिया।
प्रश्न 42.
लोनोग्राफी क्या है? इसका विकास किस तरह हुआ?
उत्तर :
चित्रलिपि में बनाया गया छोटा-सा वृत्त सूर्य का प्रतिनिधित्व करता था। ऑडियोग्राफी में उससे ताप, प्रकाश और दिन का बोध भी होने लगा। इसी विकास के अगले क्रम में लोनोग्राफी का विकास हुआ जिसमें प्रत्येक शब्द के लिए एक स्वतंत्र चिह्न था। इस लिपि को शब्द-लेखन भी कहा जा सकता है।
प्रश्न 43.
लिपि का ज्ञान के प्रसार में क्या योगदान है?
उत्तर :
लिपि के माध्यम से मनुष्य ने पत्तों, मिट्टी की पतली ईंटों, पत्थर, चमड़े, वस्त्र आदि पर लिखकर अपने संचित ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने का यत्न किया। लिपि एक रहस्यमय और चमत्कारी शक्ति थी, जिस पर अधिकार रखने वाले थोड़े-से लोगों को समाज में ऊँचा स्थान मिला। आगे चलकर इसी ज्ञान का व्यापक प्रसार हुआ।
प्रश्न 44.
मुद्रण का आविष्कार किस तरह हुआ?
उत्तर :
ईस्वी सन 105 में चीन के साई लुन ने कागज़ का आविष्कार किया। उन्होंने वृक्षों की कुटी हुई छाल, सन, पुराने कपड़े और मछली पकड़ने के पुराने जालों का उपयोग करके कागज़ बनाया। जापान में यह कला सातवीं शताब्दी में पहुँची। वहाँ बौद्ध भिक्षुओं ने मलबरी (शहतूत) वृक्ष की छाल.से कागज़ बनाना शुरू किया। इसी देश में 770 ई. में साँचों से मुद्रण की शुरुआत हुई।
प्रश्न 45.
मुद्रण को नया स्वरूप कैसे मिला? इसके आविष्कारक कौन थे?
उत्तर :
मुद्रण को नया स्वरूप चल टाइप के आविष्कार से मिला। इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। उन्होंने सन 1400 से 1468 के बीच इसका आविष्कार किया। उनकी 428 पंक्तियों की बाइबिल ‘गुटेनबर्ग-बाइबिल’ को कई विद्वान दुनिया की छपी हुई पहली पुस्तक मानते हैं।
प्रश्न 46.
मुद्रण के आविष्कार से समाज को क्या लाभ हुआ?
उत्तर :
मुद्रण के आविष्कार से पुस्तकों और समाचार-पत्रों के प्रकाशन का रास्ता खुल गया। इससे छपाई की दुनिया में क्रांति आ गई। मुद्रण के कारण ज्ञान के प्रसार और स्थायित्व की संभावनाएँ बढ़ गई। पुस्तकों और समाचार-पत्रों के कारण उसकी परिधि बढ़ती गई और मुद्रित सामग्री की सर्वसुलभता भी बढ़ती गई।
प्रश्न 47.
जनसंचार माध्यमों का आम जीवन पर क्या प्रभाव है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों का आम जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव है। इनसे सेहत, अध्यात्म, दैनिक जीवन की ज़रूरतें आदि पूरी होने लगी हैं। ये हमारी जीवन-शैली को प्रभावित कर रहे हैं। जनसंचार माध्यमों ने जीवन को गतिशील व पारदर्शी बनाया है। इनके माध्यम से सूचनाओं व जानकारियों का आदान-प्रदान किया जाता है।
प्रश्न 48.
संचार क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘संचार’ शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है। ‘चर’ का अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। इसका तात्पर्य है-दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान करना। संचार-प्रक्रिया के तहत हम अपने अनुभवों को एक-दूसरे से साझा करते हैं। इस प्रक्रिया में सिर्फ़ दो या उससे अधिक व्यक्तियों ही नहीं, हज़ारो-लाखों लोगों का जन-समुदाय शामिल हो सकता है।
प्रश्न 49.
संचार माध्यम किसे कहा जाता है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर :
संचार की प्रक्रिया में एक से अधिक लोगों के साथ लाखों-हज़ारों लोग शामिल हो सकते हैं। इन लोगों तक सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के सहारे सफलतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना ही संचार कहलाता है। इस संचार को पूरा करने के लिए जिन साधनों का सहारा लिया जा सकता है, उन्हें संचार माध्यम कहते हैं।
प्रश्न 50.
जनसंचार माध्यमों, विशेषत: सिनेमा पर क्या आरोप लगाया जाता रहा है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों, विशेषत: सिनेमा पर समाज में हिंसा फैलाने, अश्लीलता और असामाजिक व्यवहार को प्रोत्पाहित करने का आरोप लगता रहा है। यह लोगों पर वैसा वास्तविक प्रभाव डालने में असफल रहा है, जैसा इसके बारे में सोचा जाता रहा है।
प्रश्न 51.
संचार प्रक्रिया को अंतरक्रियात्मक क्यों कहा जा सकता है?
उत्तर :
संचार एक घटना के बजाए प्रक्रिया है। एक ऐसी जीवंत प्रक्रिया, जिसमें सूचना देने और पाने वाले की सक्रिय भागीदारी जरूरी है। दोनों की भागीदारी से ही संचार-प्रक्रिया संपन्न होती है। अतः संचार को अंतरक्रियात्मक (इंटरएक्टिव) कहा जा सकता है।
प्रश्न 52.
स्वतंत्रता के समय रेडियो ने लोगों में एकता की भावना में किस तरह वृद्धि की?
उत्तर :
स्वतंत्रता के समय रेडियो ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकहितकारी राज्य बनाया। इसके अलावा संपूर्ण राष्ट्र के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल बनाने तथा उन्हें अनेकता के बावजूद एकता के सूत्र में पिरोने में भी रेडियो ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेडियो की तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण गांधी ने रेडियो को एक अद्भुत एवं अद्वितीय शक्ति कहा था।
प्रश्न 53.
जनसंचार माध्यम अपेक्षा से हटकर किस तरह कार्य करते हैं?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों से अपेक्षा की जाती है कि वे सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाएँ, परंतु वे सार्वजनिक हित से उनके हित में कार्य करने लगते हैं जिन व्यक्तियों या कंपनियों का उन पर स्वामित्व है। अकसर देखा जाता है कि जनसंचार माध्यम विज्ञापनदाताओं के हितों को प्राथमिकता देने लगते हैं।
प्रश्न 54.
जनसंचार माध्यमों के बारे में किस तरह की सावधानी रखने की आवश्यकता है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यमों के बिना आज सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि जनसंचार माध्यमों की सामग्री को निष्क्रिय ढंग से ग्रहण करने पर उस पर सोच-विचार करें, आलोचनात्मक विश्लेषण करें, इसके बाद ही स्वीकार करे। इस सामग्री को अपनाते समय अपनी आँखें, कान और दिमाग हमेशा खुले रखने चाहिए।
प्रश्न 55.
सत्तर और अस्सी के दशक के कुछ फ़िल्मकारों का दृष्टिकोण क्या था?
उत्तर :
सत्तर और अस्सी के दशक के कुछ फ़िल्मकारों का दृष्टिकोण यह था कि सिनेमा जैसे सशक्त संचार माध्यम का इस्तेमाल आम लोगों में चेतना फैलाने, उसे व्यावहारिक जीवन की समस्याओं से जोड़ने और अन्याय के खिलाफ एक कलात्मक अभिव्यक्ति के तौर पर किया जाए। इसी दौरान ‘अंकुर’, ‘निशांत’ और ‘अर्धसत्य’ जैसी फ़िल्में बनीं।
प्रश्न 56.
समानांतर सिनेमा का दौर खत्म होने पर हिंदी सिनेमा पर क्या असर हुआ?
उत्तर :
अस्सी के दशक में जब समानांतर सिनेमा का दौर समाप्त होने लगा तो एक बार फिर लोकप्रिय मुंबइया फ़िल्में बनने लगीं और पॉयुलर या लोकप्रिय सिनेमा हावी हो गया। इससे तकनीक, कथानक पर भारी पड़ने लगी।
प्रश्न 57.
भारतीय सिनेमा में पारिवारिक फ़िल्मों की क्या विशेषता थी?
उत्तर :
भारतीय सिनेमा में पारिवारिक फ़िल्मों का आधार आम आदमी के परिवार की खट्टी-मीठी कहानी हुआ करती है जिसे विशेष रूप से पसंद किया जाता है। इनकी पहुँच गाँवों और शहरों के दर्शकों तक रहती है। दिन-प्रतिदिन की समस्याएँ, मधुर संगीत, पारंपरिक नृत्य और संस्कृति के कई आयामों आदि का हाथ इन फ़िल्मों की लोकप्रियता बढ़ाने में था।
प्रश्न 58.
जनसंचार के साधनों में सिनेमा का महत्व बताइए।
उत्तर :
सिनेमा जनसंचार के माध्यमों में से एक बेहतरीन और ताकतवर माध्यम है। यह मनोरंजन के साथ-साथ समाज को बदलने का, लोगों में एक नई सोच विकसित करने का साधन है। इसके अलावा यह अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से लोगों से लोगों को सपनों की दुनिया में ले जाने का भी एक माध्यम है।