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गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3

March 31, 2021 by Prasanna

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 3 गोदोहनम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 3 गोदोहनम् Summary Notes

गोदोहनम् Summary

यह नाटयांश कृष्णचंद्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से सम्पादित करके लिया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा है जो धनी और सुखी होने की इच्छा से प्रेरित होकर एक महीने के लिए गाय का दूध निकालना बंद कर देता है ताकि गाय के शरीर में इकट्ठा पर्याप्त दूध एक ही बार में बेचकर सम्पत्ति कमाने में समर्थ हो सके।

परन्तु मास के अन्त में जब वह दूध दुहने का प्रयत्न करता है तब वह दूध की बूंद भी प्राप्त नहीं कर पाता है। दूध प्राप्त करने के स्थान पर वह गाय के प्रहारों द्वारा खून से लथपथ हो जाता है और जान जाता है कि प्रतिदिन का कार्य यदि मास भर के लिए इकट्ठा किया जाता है तब लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।

गोदोहनम् Word Meanings Translation in Hindi

1. (प्रथमम् दृश्यम्)

(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)

चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः ( विलोक्य ) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्।
(मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम् ) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः
अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।

शब्दार्था:-
मोदकानि – लड्डुओं को
रचयन्ती – बनाती हुई
मन्दस्वरेण – धीमी आवाज़ से
मोदकगन्धम् – लड्डुओं की सुगन्ध को
प्रसन्नमना – प्रसन्न मन वाला
रच्यन्ते – बनाए जा रहे हैं
आस्वादयामि – स्वाद लेता हूँ
तावत् – तो/ तब तक
गृहीतुम् – लेने के लिए
सक्रोधम् – क्रोध के साथ
स्पृश – छुओ
हस्तनिर्मितानि – हाथों से बने हुए नियन्त्रयितुम् काबू करने में
अक्षमः – असमर्थ हूँ
पूजानिमित्तानि – पूजा के लिए
सम्पादय – करो।

(पहला दृश्य)

अर्थ –
(मल्लिका लड्डुओं को बनाती हुई धीमी आवाज़ में शिव की स्तुति करती है।)
(उसके बाद लड्डुओं की सुगन्ध को अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन प्रवेश करता है।)

चन्दन – वाह! सुगन्ध तो मनोहारी है (देखकर) अरे लड्डू बनाए जा रहे हैं? (प्रसन्न होकर) तो स्वाद लेता हूँ। (लड्डू को लेना चाहता है)
मल्लिका – (क्रोध के साथ) रुको। रुको। मत छुओ! इन लड्डुओं को।
चन्दन – क्यों गुस्सा करती हो! तुम्हारे हाथों से बने लड्डुओं को देखकर मैं जीभ की लालच पर काबू रखने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती हो?
मल्लिका – अच्छी तरह से जानती हूँ स्वामी। परन्तु ये लड्डू पूजा के लिए हैं।
चन्दन – तो जल्दी ही पूजा करो और प्रसाद को दो।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिविच्छेदः
सुगन्धस्तु – सुगन्धः + तु
सम्यग् जानामि – सम्यक् + जानामि

प्रकृति प्रत्ययोः विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.1

पदानां वाक्यप्रयोगः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.2

पद परिचयः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.3

2. मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्थाः-
पूजनम् – पूजा को
स्वसखिभिः सह – अपनी सखियों के साथ
विषादम् – दु:ख को
नाटयति – अभिनय करता है
आगमनस्य – आने का
औचित्यम् – उचित कारण
प्रत्यागमिष्यामः – वापस आ जाएँगी
तावत् – तब तक
परिपालय – संभालो
दुग्धदोहनव्यवस्थाम् – दूध को दुहने की व्यवस्था को।

अर्थ
मल्लिका – अरे! यहाँ पूजा नहीं होगी। मैं अपनी सखियों के साथ कल सुबह काशीविश्वनाथ मंदिर की ओर जाऊँगी, वहाँ हम गंगा स्नान और धार्मिक यात्रा करेंगी।
चन्दन – सखियों के साथ! मेरे साथ नहीं! (दु:ख का अभिनय करता है)
मल्लिका – हाँ। चंपा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सब जाती हैं। अतः मेरे साथ तुम्हारे आने का कोई औचित्य (उचित रूप) नहीं है। हम सप्ताह के अन्त में (तक) वापस आ जाएँगी। तब तक घर की व्यवस्था और गाय के दूध को दुहने की व्यवस्था को चलाना।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदःवा
धर्मयात्राञ्च – धर्मयात्राम् + च विषादं
नाटयति – विषादम् + नाटयति
कपिलाद्याः – कपिल + आद्याः
तवागमनस्य – तव + आगमनस्य
नास्ति – न + अस्ति
सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
प्रत्यागमिष्यामः – प्रति + आगमिष्यामः
दुग्धदोहन व्यवस्थाञ्च – दुग्धदोहन व्यवस्थाम् + च

उपसर्ग विभाजनम्

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.4

कारकाः उपपदविभक्तयश्च
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.5

पदपरिचयः
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.6

3. (द्वितीयम् दृश्यम्)
चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानी तु गङ्गास्नानार्थं काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटक्रमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्था: –
अस्तु – ठीक है
धर्मयात्रया – धर्म की यात्रा से
परिपालयिष्यामि – संभाल लूँगा
शिवा: – कल्याणकारी
पन्थान: – मार्ग (रास्ते)
स्वप्रातराशस्य – अपने नाश्ते का
दुग्धपात्रहस्तः – हाथ में दूध के पात्र वाला
मातुलानि! – मामी!
गता – गई हुई
मासानन्तरम् – महीने बाद
अस्मत् – हमारे
अपेक्षते – चाहिए
भवद्भिः – आपके द्वारा
सेटक – लीटर (सेर)
वक्तव्यम् – कहना
यामि – जाती हूँ
निर्गता – निकल गई।

अर्थ – (दूसरा दृश्य)

चन्दन – ठीक है। जाओ। और सखियों के साथ धर्मयात्रा से आनन्दित होओ। मैं सभी को पाल लूँगा। तुम्हारे रास्ते शुभ हों।
चन्दन – मल्लिका तो धर्मयात्रा हेतु गई। ठीक है। गाय का दूध दुहकर उससे अपने नाश्ते (जलपान) का प्रबन्ध करूँगा। (स्त्री का वेश धारण करके, दूध के हाथ में लिए नन्दिनी गाय के पास जाता है)
उमा – मामी! मामी!
चन्दन – हे उमा! मैं तो मामा हूँ। तुम्हारी मामी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई है। कहो! क्या तुम्हारा भला करूँ?
उमा – मामा! दादाजी कहते हैं, महीने भर बाद हमारे घर में उत्सव होगा। तब तीन सौ लीटर तक दूध चाहिए। यह व्यवस्था आपको ही करनी है।
चन्दन – (प्रसन्न मन से) तीस लीटर मात्रा (माप) में दूध! सुन्दर। दूध की व्यवस्था हो जाएगी ही ऐसा दादा जी को तुम कह दो।
उमा – धन्यवाद मामा! अब जाती हूँ। (वह चली गई) सन्धिः विच्छेदः वा

सन्धिःविच्छेदःवा –
शिवास्ते – शिवाः + ते
गङ्गा – गम् + गा
स्नानार्थम् – स्नान + अर्थम्
मासानन्तरम् – मास + अनन्तरम्
महोत्सवः – महा + उत्सवः
याम्यधुना – यामि + अधुना

प्रकृति – प्रत्यय-विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.7
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.8

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणानि – विशेष्याः
शिवाः – पन्थानः
दुग्धपात्रहस्तः – चन्दनः
त्रिशत-सेटकमितम् – दुग्धम्
एषा – व्यवस्था

उपपदविभक्तयः कारकाश्च –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.9

4. (तृतीयं दृश्यम्)

चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयांसि! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये।
(नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति)
चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं
सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्।
(चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम् ) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्?

शब्दार्था: –
अगुलिषु – अंगुलियों पर
गणयन् – गिनते हुए
लप्स्ये – प्राप्त करूँगा
दोहनम् – दुहना (दूध दुहने का काम)
तिष्ठति – रहता है
सम्पूर्णतया – पूरी तरह से
क्रमश: – क्रमानुसार (एक के बाद एक)
प्रत्यागच्छति – वापस आती है
प्रत्यगता – वापस आ गई
आस्वादय – स्वाद (आनंद) लो
प्रियतरम् – अधिक प्यारी।

अर्थ – (तृतीय दृश्य)

चन्दन – (प्रसन्न होकर, अंगुलियों पर गिनता हुआ) अरे! तीन सौ लीटर दूध। इससे तो बहुत धन प्राप्त करूँगा (पाऊँगा)।
(नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनी हो जाऊँगा। (प्रसन्न होकर वह गाय की बहुत सेवा करता है)
चन्दन – (सोचता है) मास (महीने) के अन्त में ही दूध की जरूरत है। यदि हर रोज़ दुहने का काम करता हूँ
तो दूध सुरक्षित नहीं रहता है। अब क्या करूँ? ठीक है, महीने के अन्त में ही पूरी तरह से दूध को दुहने का काम करता हूँ (करूँगा)।
(इस प्रकार क्रमानुसार सात दिन बीत गए। सप्ताह के अन्त में मल्लिका वापस आती है)
मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं वापस आ गई। प्रसाद को खाओ।
(चन्दन लड्डुओं को खाता है और बोलता है।)
चन्दन – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो ठीक प्रकार से सफल हो गई? काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय निवेदन करता हूँ।
मल्लिका – (आश्चर्य के साथ) ऐसा है! धर्मयात्रा के अतिरिक्त अधिक प्रिय क्या है?

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
प्रसन्नोभूत्वा  – प्रसन्नः + भूत्वा
मासान्ते – मास + अन्ते
सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
प्रत्यागच्छति – प्रति + आगच्छति
प्रत्यागता – प्रति + आगता
साश्चर्यम् – स + आश्चर्यम्
धर्मयात्रातिरिक्तम् – धर्मयात्रा + अतिरिक्तम्

प्रकृति – प्रत्ययोः – विभाजनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.10

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.11

उपसर्ग – पदानाञ्च विभाजनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.12

5. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति ।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मानं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव
दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः। (द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)
चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकार प्रति चलावः।
दुग्धार्थं पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (द्वावेव निर्गतौ)

अर्थ
चन्दन – गाँव के प्रधान के घर में महीने के अन्त में महोत्सव होगा। वहाँ तीन सौ लीटर दूध हमें देना है।
मल्लिका – किन्तु इतनी मात्रा में दूध हमें कहाँ से मिलेगा?
चन्दन – सोचो मल्लिका! हर रोज दुह करके हम दूध को रखते हैं यदि वह सुरक्षित न रहे तो। इसलिए गाय का दोहन कार्य नहीं किया जा रहा है। उत्सव के दिन ही सारा दूध दुह लेंगे।
मल्लिका – हे स्वामी! तुम तो बहुत चतुर हो। बहुत सुन्दर विचार है। अब दूध दुहना छोड़कर केवल नन्दिनी की
सेवा ही करेंगे। इससे अधिक से अधिक दूध को महीने के अन्त में प्राप्त करेंगे। (दोनों ही गाय की सेवा में लगे होते हैं। इसी तरह वे घास व गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सीगों पर
तेल लगाते हैं, तिलक लगाते हैं, रात में जल आदि से भी सन्तुष्ट करते हैं।)
चन्दन – मल्लिका! आओ। कुंभार के घर की ओर चलते हैं। दूध के लिए बर्तन का प्रबन्ध भी करना है। (दोनों ही निकलते हैं) सन्धिः विच्छेदः वा

सन्धिः विच्छेदः वा –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.13

प्रकृति – प्रत्ययोः – विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.14

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.15

उपपदविभक्तीनां प्रयोगः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.16

पद परिचयः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.17

6. (चतुर्थं दृश्यम्)

कुम्भकारः – (घटरचनायां लीनः गायति)

ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम्।
जीवनं भङ्गरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः॥

शब्दार्थाः-
ज्ञात्वा – जानकर
जीविकाहेतोः – जीवन का कारण
मृत्तिकाघट: – मिट्टी का घड़ा
घटान् – घड़ों को
जीवनम् – जीवन
एषः – यह।

अर्थ – (चौथा दृश्य)

कुंभार – (घड़े बनाने में व्यस्त है और गाता है)
मैं जानकर भी जीविका (जीवन के लिए साधन) के कारण ही इन घड़ों को बनाता हूँ। सारा जीवन टूटकर नष्ट होने योग्य हैं जैसे यह मिट्टी का घड़ा टूटकर समाप्त होने योग्य है।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
ज्ञात्वाऽपि – ज्ञात्वा + अपि
घटानहम् – घटान् + अहम्
भगुरम् – भम् + गुरम्
यथैष – यथा + एष

विशेषण – विशेष्य – चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सर्वम्, भगुरम् – जीवनम्
एष – मृत्तिकाघटः

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.18

7. चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।
चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

शब्दार्था:-
पञ्चदश – पन्द्रह
दास्यसि – दोगे
विक्रयणाय – बेचने के लिए
विक्रीय – बेचकर, दातुम्
शक्यते – दिया जा सकता है
क्षम्यताम् – क्षमा करें
स्वाभूषणम् – अपने ज़ेवर को
अधुनैव – इसी समय ही
गृहाण – ले लो
पुत्रिके – बेटी,
आभूषणविहीनाम् – जेवरों से रहित
नयतु – ले जाओ
यथाभिलाषात् – इच्छानुसार
विक्रीय – बेचकर।

अर्थ
चन्दन – हे तात! नमस्कार करता हूँ। पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे? ।
देवेश – क्यों नहीं? बेचने के लिए ही हैं ये। घड़ों को ले लो। और पाँच सौ रुपये दे दो।
चन्दन – ठीक है। परन्तु मूल्य (दाम) तो दूध को बेचकर ही दिया जा सकता है।
देवेश – हे पुत्र क्षमा करो! बिना मूल्य (दान) के एक भी घड़ा नहीं दूंगा।
मल्लिका – (अपने आभूषणों को देना चाहती है) हे तात! यदि अभी कीमत देना आवश्यक (ज़रूरी) है तो, यह जेवर ले लो।
देवेश – बेटी! मैं पाप का काम नहीं करता हूँ। तुम्हें आभूषण विहीन कभी भी नहीं करना चाहता हूँ। इच्छानुसार
घड़ों को ले जाओ। दूध को बेचकर ही घड़ों की कीमत दे देना।
दोनों – तात! आप धन्य हो! धन्य हो।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
नमस्करोमि – नमः + करोमि
पञ्चशतोत्तर – पञ्चशत + उत्तर
मूल्यं विना – मूल्यम् + विना
स्वाभूषणम् – स्व + आभूषणम्
अधुनैव – अधुना + एव
नाहम् – न + अहम्
नेच्छामि – न + इच्छामि
यथाभिलषितान् – यथा + अभिलषितान्
धन्योऽसि – धन्यो + असि / धन्यः + असि उपसर्गचयनम्

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.19

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
विशेषणानि – विशेष्याः
पञ्चदश – घटान्
पञ्चशतोत्तर – रूप्यकाणि
एकम् – घटम्
आवश्यकम् – मूल्यम्
एतत् – आभूषणम्
आभूषणविहीनाम् – त्वाम्
यथाभिलषितान् – घटान्

8. (पञ्चमं दृश्यम्)
(मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)

चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण
चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)

शब्दार्थाः
मासान्तरम् – महीने भर बाद
रिक्ताः – खाली
एकत्र – इकट्ठा
दुग्धक्रेतारः – दूध खरीदने वाले
अपरत्र – दूसरी ओर
आसीनाः – खड़े हैं
विधाय – करके
आह्वयति – बुलाता है
सत्वरम् – शीघ्र/जल्दी
दोहनम् – दुहने के काम को
आरभस्व – शुरू करो
दोग्धुम् – दुहना
पृष्ठपादेन – पीछे के पैर से
प्रहरति – मारती है
ते – तुम्हें
जातम् – हो गया है
पादप्रहारेण – पैर की चोट से
रक्तरञ्जितम् – लहुलुहान
ततोऽस्मि – मारा गया हूँ
चीत्कारम् – चीख,
अन्योन्यम्-एक-दूसरे को।
(पाँचवाँ दृश्य)

अर्थ-
(महीने भर बाद का सायंकाल। इकट्ठे ही खाली नये घड़े हैं। दूध खरीदने वाले और दूसरे गाँववासी दूसरी ओर खड़े हैं।)

चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण (पूजा) करके, मल्लिका को बुलाता है) हे मल्लिका! जल्दी आओ।
मल्लिका – आती हूँ स्वामी! तब तक दुहना शुरू करो।
चन्दन: (जब गाय के पास जाकर दुहना चाहता है, तब गाय पिछले पैर से मारती है और चन्दन बर्तन के साथ गिरता है) हे नन्दिनी! दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? फिर से कोशिश करता है) (और नन्दिनी बार-बार पैर की चोट से मारकर चन्दन को लहुलुहान कर देती है) हाय! मैं मार दिया गया। (चीखते हुए गिरता है) (सभी आश्चर्य से चन्दन और एक-दूसरे को देखते हैं)

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिः विच्छेदः
मासानन्तरम् – मास + अनन्तरम्
मङ्गलाचरणम् – मङ्गल + आचरणम्
चन्दनश्च – चन्दनः + च
हतोऽस्मि – हतो + अस्मि/हतः + अस्मि

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.20
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.21

9. मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम्? कथं त्वं रक्तरञ्जितः?
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्। (मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।) मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडाम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दनः – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम्। सत्यमेव उक्तम्
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्॥
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव। मयापि पठितं यत्
सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाटिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः॥
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।
सर्वे, – दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।

शब्दार्थाः –
चीत्कारम् – चीख को
झटिति – शीघ्र (जल्दी)
जातम् – हुआ
आरभमाणम् – शुरू करने वाले को
स्नेहेन – प्रेम से
वात्सल्येन – पुचकार से
आकार्य – बुलाकर
दुग्धहीना – दूध से रहित
अवगच्छति – समझती है
मासपर्यन्तम् – महीने भर तक
दोहनम् – दुहना
ज्ञातम् – जान लिया
पूर्णमासपर्यन्तम् – पूरे महीने तक
शुष्कम् – सूखा (सूखता)
यत् – जो
अद्यतनीयं – आज का
तत् – उसे
अद्यैव – आज ही
विधीयताम् – करना चाहिए
विपरीते – उल्टा/उल्टी/ विरुद्ध
लभते – पता है
ध्रुवम् निश्चय से, भर्तः!-हे स्वामी
सुविचार्य – अच्छी तरह
सोच – विचार करके
विद्यातव्यम् – करना चाहिए
कल्याणकाक्षिणा – कल्याण चाहने वाले के द्वारा
अविचार्य – बिना विचार करके
विषीदति – दु:खी होता है
मानव – मनुष्य
प्रत्यक्षतया – प्रत्यक्ष रूप से
कर्तव्यम् – करना चाहिए, ध्रुवम् निश्चय से

अर्थ
मल्लिका – (चीख को सुनकर, जल्दी प्रवेश करके) स्वामी! क्या हुआ? कैसे तुम लहुलुहान हो गए?
चन्दन – गाय दूध दुहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दुहने का काम शुरू करते ही मुझे मारती है।
(मल्लिका गाय को प्यार और पुचकार से बुलाकर दुहने की कोशिश करती है किन्तु गाय तो दुधविहीन है यह समझ जाती है।)
मल्लिका – (चन्दन की ओर) हे स्वामी! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया कि महीने भर तक गाय का दोहन नहीं
किया। वह पीड़ा (दर्द) को अनुभव कर रही है। इसलिए मारती है।
चन्दन – हे देवी! मुझे भी लगा कि हमने पूरी तरह से अमुचित ही किया कि पूरे महीने तक दोहन नहीं किया। इसीलिए दूध सूख गया। सत्य ही कहा गया है-आज का जो काम है, उसे आज ही करना चाहिए। जिसकी गति (काम करने का तरीका) उल्टी होती है, वह निश्चय ही कष्ट पाता है।
मल्लिका – हाँ स्वामी! सच ही। मैंने भी पढ़ा है यत्-कल्याण चाहने वाले मनुष्य के द्वारा अच्छी तरह से सोच-विचार कर काम को करना चाहिए। जो व्यक्ति बिना विचार किए काम करता है, वह दुखी होता है। किन्तु प्रत्यक्ष रूप से आज ही यह अनुभव किया। दिन का काम उसी दिन ही करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित कष्ट को अनुभव करता है।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः/सन्धिः
किं जातम् – किम् + जातम्
अत्यनुचितम् – अति + अनुचितम्
मयापि – मया + अपि
तदचैव – तत् + अद्य + एव
गतिर्यस्य – गतिः + यस्य
स कष्टम् – स: + कष्टम्
कष्टं लभते – कष्टम् + लभते
अद्य + एव – अद्यैव
तस्मिन्नेव – तस्मिन् + एव
कल्याणकाक्षिणा – कल्याणकाम् + क्षिणा
करोत्यविचार्यैतत् – करोति + अविचार्य + एतत्
विधातव्यं कार्यम् – विधातव्यम् + कार्यम्

विशेषण – विशेष्य – चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
रक्तरञ्जितः – त्वम्
आरभमाणम् – माम्
अद्यतनीयम् – कार्यम्
ध्रुवम् – कष्टम्
दुग्धहीना – धेनुः
पूर्णमासपर्यन्तम् – दोहनम्
शुष्कम् – दुग्धम्

प्रकृति-प्रत्ययो:-विभाजनम् पदानि
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.22
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.23

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.24

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.25

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.26

10. (जवनिका पतनम्)
(सर्वे मिलित्वा गायन्ति)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्॥

शब्दार्थाः-
जवनिका – परदा
पतनम् – गिरता है
आदानस्य – लेने के
प्रदानस्य – देने के
कर्तव्यस्य – करने योग्य
कर्मणः – कर्म के
क्षिप्रम् – शीघ्र
अक्रियामाणस्य – न करने वाले के
काल: – समय
पिबति – पी जाता है
तत् – उसके
रसम् – रस/आनन्द को।।

अर्थ —
(परदा गिरता है।
(सभी मिलकर गाते हैं)
लेने के, देने के और कहने योग्य (अन्य) कर्म के शीघ्र न किए जाने पर समय उसका रस (आनन्द) पी जाता

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.27

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