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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 9 लाख का घर
Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 9
पाठाधारित प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दुर्योधन की ईर्ष्या क्यों बढ़ती जा रही थी?
उत्तर:
भीम की शारीरिक शक्ति और अर्जुन की युद्धकला को देखकर दुर्योधन की ईर्ष्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
प्रश्न 2.
दुर्योधन को कुमंत्रणा कौन-कौन दे रहे थे?
उत्तर:
पांडवों का विनाश करने के लिए मामा शकुनि तथा कर्ण दुर्योधन को कुमंत्रणा दे रहे थे।
प्रश्न 3.
धृतराष्ट्र का स्वभाव कैसा था?
उत्तर:
यद्यपि धृतराष्ट्र बुद्धिमान थे पर वे दृढ़ निश्चयी नहीं थे।
प्रश्न 4.
दुर्योधन किस बात के लिए चिंतित था?
उत्तर:
दुर्योधन की चिंता यह थी कि बचपन से अंधे होने के कारण उसके पिता को राज्य से वंचित होना पड़ा और उसके छोटे भाई के हाथ में राजसत्ता चली गई। उसके बाद उनके बेटे युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया, तो फिर पीढ़ियों तक हम राज्य की आशा नहीं कर सकते।
प्रश्न 5.
धृतराष्ट्र दुर्योधन का साथ क्यों देते थे?
उत्तर:
धृतराष्ट्र को पुत्र मोह बहुत अधिक था। अपनी इसी कमज़ोरी के कारण दुर्योधन के गलत एवं सही सभी कामों में धृतराष्ट्र दुर्योधन का साथ देता था।
प्रश्न 6.
पुरवासियों के क्या विचार थे?
उत्तर:
पुरवासी प्रजा की राय थी कि गददी के उत्तराधिकारी तो युधिष्ठिर ही होना चाहिए। धृतराष्ट्र तो पांडु के आभाव में राजा बने थे। अब पितामह भीष्म का कर्तव्य है कि राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला दें। युधिष्ठिर से समस्त प्रजा को न्याय की उम्मीद थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पुरवासियों की धारणा को जानकर दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से क्या कहा?
उत्तर:
पुरवासियों की धारणा थी कि राज्य गद्दी के उत्तराधिकारी युधिष्ठिर ही हैं। उनकी यह धारणा जानकर दुर्योधन ने अपने पिता से कहा कि- पिता जी पुरवासी तरह-तरह की बातें करते हैं। चौराहे और सभाओं में सभी यही बातें करते हैं कि राजगद्दी पर बैठने योज्य तो युधिष्ठिर ही है। वे कहते हैं कि धृतराष्ट्र तो जन्म से अंधे थे, इस कारण उनके छोटे भाई को राजा बनाया गया था। उसकी अकाल मृत्यु हो जाने के कारण कुछ समय के लिए धृतराष्ट्र ने राजकाज सँभाला था। अब युधिष्ठिर बड़े हो गए हैं। अतः उन्हें राजा बना देना चाहिए। अब यदि युधिष्ठिर राजा बन गए तो हमारी पीढ़ियाँ इस अधिकार को सदा के लिए खो देंगी।
प्रश्न 2.
कर्णिक नाम के ब्राह्मण ने धृतराष्ट्र को क्या सलाह दी?
उत्तर:
कर्णिक नाम के ब्राह्मण ने धृतराष्ट्र को सलाह दी कि हे राजन! जो ऐश्वर्यवान है, वह संसार में श्रेष्ठ माना जाता है। यह सही है कि पांडव आपके भतीजे हैं, लेकिन वे बड़े शक्तिशाली भी हैं। अतः सावधान हो जाइए और पांडवों से अपनी रक्षा कर लीजिए वरना पीछे पछताना पड़ेगा और यदि युधिष्ठिर राजा बन गए तो आपकी पीढ़ियाँ इस अधिकार से वंचित रह जाएँगी।
प्रश्न 3.
वारणावत का महल किन-किन चीज़ों से तैयार किया गया?
उत्तर:
वारणावत में महल पांडवों को रहने के लिए तैयार किया गया था। वह सन, घी, मोम, तेल, लाख तथा चरबी एवं मिट्टी तेल आदि चीजों से मिलाकर तैयार किया गया था। इस षड्यंत्र था कि इस भवन में पांडवों को ठहराया जाएगा और किसी एक दिन रात में आग लगा दी जाएगी जिसमें पांडव समेत सभी लोग जलकर स्वाहा हो जाएंगे और दुर्योधन आसानी से राजगद्दी पर बैठ सकेगा।
Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 9
भीम का शरीरिक बल और अर्जुन की युद्ध कुशलता को देखकर दुर्योधन की ईर्ष्या दिन ब दिन बढ़ती गई। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए दुर्योधन तरह-तरह का उपाय सोचने लगा। इस षड्यंत्र में उसका मामा शकुनि और कर्ण भी शामिल थे। धृतराष्ट्र को पुत्र मोह बहुत अधिक था। दृढ़ निश्चयी वे नहीं थे। उनमें अंकुश रखने की शक्ति नहीं थी। वे जानते थे कि दुर्योधन गलत रास्ते पर चल रहा है, फिर भी उन्होंने अपने पुत्र का साथ दिया।
राज्य की प्रजा राज्य का उत्तराधिकारी युधिष्ठिर को मानती थी। वे चाहते थे कि पितामह भीष्म को धृतराष्ट्र से राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला देना चाहिए। प्रजा को विश्वास था कि युधिष्ठिर ही सारी प्रजा के साथ न्याय कर सकते हैं। इन सब बातों से दुर्योधन में और ईर्ष्या और जलन की भावना का विकास हुआ।
एक दिन धृतराष्ट को अकेले में पाकर दुर्योधन बोला- पिता जी जन्म से अँधे होने के कारण आप राज्य से वंचित रह गए। आपके छोटे भाई के हाथ साम्राज्य चला गया। अब यदि युधिष्ठिर को राजा बनाया गया तो कई पीढ़ियों तक राज्य की आशा नहीं कर सकेंगे, यह अपमान हमसे सहा नहीं जाएगा। बाद में हमें पछताना पड़ेगा।
कर्णिक की बातों पर धृतराष्ट्र विचार कर ही रहे थे कि इतने में दुर्योधन ने आकर कहा-“पिता जी, आप अगर किसी तरह पांडवों को समझाकर वारणावत भेज दें तो नगर-राज्य का हमारा शासन पक्का हो जाएगा। फिर पांडव वहाँ से खुशी से लौट सकते हैं और उनसे कोई खतरा नहीं रहेगा।
दुर्योधन के आदमियों ने पांडवों को वारणावत की सुंदरता और खूबियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया। धृतराष्ट्र पहले से ही कमज़ोर पड़ गए थे। स्वयं युधिष्ठिर ने वारणावत जाने की अनुमति माँगी। धृतराष्ट्र की अनुमति लेकर कुंती व पाँचों भाई वारणावत के लिए चल दिए। धृतराष्ट्र की अनुमति पाकर पांडव माता कुंती के साथ वारणावत चले गए। पांडवों के चले जाने पर दुर्योधन तथा उसके मित्रों ने पांडवों तथा कुंती को मारने की योजना बनाने लगे। दुर्योधन ने अपने मंत्री पुरोचन को बुलाकर गुप्त रूप से सलाह दी और एक योजना बनाई। उस योजना के अनुसार, रथ पर बैठकर पुरोचन बहुत पहले शीघ्र ही वारणावत जा पहुँचा। वही जाकर पांडवों को ठहरने के लिए सन, घी, तेल, मोम, लाख, चर्बी आदि चीजों को मिट्टी में मिलाकर सुंदर भवन बनवाया।
दुर्योधन की योजना थी कि कुछ दिनों तक पांडवों के लाख के भवन में रहने के बाद किसी एक रात में उस भवन में आग लगा दी जाएगी जिससे पांडव जलकर राख हो जाएंगे और कौरवों पर कोई आरोप नहीं लगेगा।
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-19
कुमंत्रणा – षड्यंत्र, पूरी योजना बनाना, कुराह – गलत रास्तों से चलना, अकाल – असमय, वंचितरहित, स्नेह – प्यार, प्रेम।
पृष्ठ संख्या-20
दलीलों – तर्कों, चौकन्ने – होशियार, पृष्ठ पोषक – पक्षधर, काम तमाम करना – मारना, निश्शंक – शंका रहित, सलाह – राय।