In this post, we have given Class 12 Hindi Antral Chapter 3 Summary – Biskohar Ki Mati Summary. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
बिस्कोहर की माटी Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 3 Summary
प्रश्न :
डॉ० विश्वनाथ त्रिपाठी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-विश्वनाथ त्रिपाठी का जन्म बिस्कोहर गाँव, जिला बस्ती (सिद्धार्थ नगर) उत्तर प्रदेश में सन् 1931 में हुआ। उनकी प्रार्भिक शिक्षा गाँव में हुई। तत्पश्चात् बलरामपुर कस्बे में आगे की शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे पहले कानपुर और बाद में वाराणसी गए। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पी-एच॰डी० की उपाधि प्राप्त की। शुरू में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में अध्यापन कार्य किया, फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। यहीं से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
रचनाएँ – उनकी रचनाओं में प्रारंभिक अवधी, हिंदी आलोचना, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, लोकवादी तुलसीदास, मीरा का काव्य, देश के इस दौर में, कुछ कहानियाँ : कुछ विचार, पेड़ का हाथ, जैसा कह सका (कविता-संग्रह) प्रमुख हैं। उन्होंने आरंभ में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) के अपभ्रंश काव्य ‘संदेश रासक’ का संपादन किया, कविताएँ 1963, कविताएँ 1964, कविताएँ 1965. अजित कुमार के साथ, ‘हिंदी के प्रहरी: रामविलास शर्मा’ अरुण प्रकाश के साथ संपादित की। साहित्यिक परिचय-विश्वनाथ त्रिपाठी की भाषा-शैली अत्यंत रोचक एवं सरस है। जगह-जगह आंचलिक शब्दों, सूक्तियों और ठेठ अवधी भाषा के शब्दों के प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है। ग्रामीण परिदृश्य का त्रिपाठी जी ने अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। लोक भाषा में मुहावरों का प्रयोग ग्रामीण क्रियाकलापों को साकार रूप में हमारे सामने प्रस्तुत कर देता है।
पाठ का सार :
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक यह पाठ विश्वनाथ त्रिपाठी की आत्मकथा ‘नंगातलाई का गाँव’ का एक अंश है। आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह पाठ अपनी अभिव्यंजना में अत्यंत रोचक और पठनीय है। लेखक ने उम्र के कई पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव और आसपास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन करते हुए ग्रामीण जीवन-शैली, लोक कथाओं, लोक मान्यताओं को पाठक तक पहुँचाने की कोशिश की है। गाँव, शहर की तरह सुविधायुक्त नहीं होते, बल्कि प्रकृति पर अधिक निर्भर रहते हैं। इस निर्भरता का दूसरा पक्ष प्राकृतिक सौंदर्य भी है, जिसे लेखक ने बड़े मनोयोग से जिया और प्रस्तुत किया है।
लेखक गाँव के प्राकृतिक परिंदृश्य के बारे में बताता है कि बिस्कोहर गाँव में कमल के फूल खिलते हैं। यहाँ कमल-ककड़ी को खाया नहीं जाता। कमल से अधिक बहार कोइयाँ की थी। इसे कुमुद भी कहते हैं। यह लगभग सारे उत्तर भारत में पाया जाता है। चाँदनी रात में इसकी पत्तियाँ एक रंग की हो जाती हैं। तालाबों में सिघाड़े होते हैं। सदी में हरसिगार खिलता है। गाँव में बच्चे प्रकृति के बेहद नजदीक होते हैं। माँ आँचल में छ्छिपाकर दूध पिलाती थी। यह क्रिया माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है। माँ के अंक से लिपटकर माँ का दूध पीना-जड़ के चेतन होने यानी मानव-जन्म लेने की सार्थकता है।
बिसनाथ ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में देखा कि बतखें अपने अंडों को डैनों में छिपाकर सेती हैं तथा दुनिया से बचाती हैं। बिसनाथ छोटा ही था कि उसका छोटा भाई आ गया। अब वह दूध कटहा हो गया। उसे गाय का दूध पिलाया जाने लगा। उसे कसेरिन दाई ने पाला-पोसा। वह उसके साथ छत पर लेटकर चाँद की गतिविधियों को देखता रहता। फूलों के बारे में लेखक बताता है कि फूलों के अलावा तोरी, लौकी, भिडी, इमली, अमरूद, बैंगन, शरीफ़ा, कटहल, बेल, मसूर, मटर, चना आदि के भी फूल हैं। सरसो के फूलों से तेल की गंध फैलती है। सत्यानाशी के फूल दवाई के रूप में काम आते हैं। गेहूँ, धान, जौ के भूल होते हैं।
लेखक बताता है कि घास-पात से भरी मेड़ों, मैदानों, तालाब के भीटों आदि पर अनेक प्रकार के साँप मिलते थे। इनमें होंड़हा, मजगिदवा, धामिन विषहीन थे। होंड़हा को वामन जाति का माना हाता था। गोंहुअन और घोर कड़ाइच सर्वाधिक खतरनाक थे। भटिहा के दो मुँह होते है। साँप व बिच्छू से डर लगता था। फूलों की गंध से साँप, महामारी, देवी, चुड़ल आदि का संबंध जोड़ा जाता था। गुड़हल देवी का फूल था। बेरी के फूल से बर्रेंतथा ततैया का डंक झड़ जाता है। गरमी में लू से बचने के लिए प्याज बाँधना, आम का पना देह में लेपना, नहाना आदि क्रियाएँ की जाती थी।
वर्षा ऋतु में पहले बादल घिरते, गड़गड़ाते, फिर वर्षा होती। इस ऋतु में तबला, मृदंग तथा सितार का संगीत होता है। बरसात से पुलकित कुत्ते, बकरी, मुर्गी-मुर्ग आदि बेमतलब इधर-उधर भागते हैं। पहली वर्षा से फोड़े-फुँसी ठीक हो जाते हैं। मच्छर, मकोड़े आदि भी अधिक होते है। बाढ़ आने से तकलीफ़ भी होती थी, परंतु कुदरत निखर उठती थी। खेतों में पानी देने के लिए छोटी-छोटी नालियाँ बनाई जातीं, उसे बरहा कहते थे।
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में अधिक फ़र्क नहीं होता। यहीं पर लेखक ने एक औरत को देखा। वह बिसनाथ से कम-से-कम दस वर्ष बड़ी होगी। चाँदनी रात में जूही की खुशलू आ रही थी। बिसनाथ के प्राणों में खुशबू बसती थी। ऐसे मौसम में वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं. जूही की लता के रूप में दिखाई दी। प्रकृति सजीव नारी बन गई। बाद में वह नारी मिली भी और बहुत हिम्मत करके उन्होंने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। वह आजीवन उससे शरमाते रहे।
बिसनाथ को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी का रंग लगता। उसे पिता के कुर्ते से पसीने की बू अच्छी लगती थी, नारी शरीर में उन्हें बिस्कोहर की फसलों, वनस्पतियों की उत्कट गंध आती थी। संगीत, गंध, बच्चे बिसनाथ के लिए सबसे बड़े सेतु हैं काल, इतिहास को पार करने के।
शब्दार्थ और टिप्पणी :
- पुरइन – कमल का पत्ता (a lotus leaf)।
- नाल – डंठल (hollow tubular stalk)।
- भसीण – कमल का तना (stalk of lotus )।
- खाँचा – बाँस की पतली टहनियों से बना छेदयुक्त बड़ा – सा बर्तन (a big hollow pot made of bamboo stick)।
- कोइयाँ – कुमुद, कुँई, जलपुष्प (water lily)।
- अनवरत – लगातार (continuously)।
- बतिया – अत्यंत छोटा फल, फल की प्रारंभिक अवस्था (a little fruit of pumkin)।
- कुरई जात रहीं – गिरा जाती थी (to be fallen down by someone)।
- बनायास – अपने – आप (all of a sudden)।
- बतियाते – बातचीत करते थे (talked)।
- सुबुकना – हिचक – हिचककर रोना (shobbing)।
- अंडज – पक्षी (bird)।
- ताक – अवसर की प्रतीक्षा, घात (wait for proper time)।
- खोल – कवच (cover)।
- नाजुक – कमज्जोर (tender)।
- सतर्कता – सावधानी से (carefully)।
- रूपांतरित – परिवर्तित (changed)।
- फतह करना – जीत लेना (to conquire)।
- साफ़ सफ्फाक – बिलकुल स्वच्छ (neat and clean)।
- छतनार – जिसकी शाखाएँ छत की तरह फैली हों, छायादार (sunless)।
- अंतराल – खाली स्थान (empty place)।
- फुनगी – पेड़ की चोटी (peak of a tree)।
- भटकटैया – काँटेदार रेंगकर फैलने वाला पौधा (a thorny creaper plant)।
- पच्छू – पश्चिमी (western)।
- पावन – पवित्र (holy)।
- इफ़रात – अत्यधिकता (excess)।
- अवचेतन – मस्तिष्क की वह दशा, जिसमें भाव सुप्त रहते हैं (subconscious)।
- मादक – हल्का – सा नशा करने वाली (intoxicating)।
- ततैया – डंक मारने वाला एक पीला या लाल रंग का कीड़ा (a yellow insect)।
- सोता पाकर – सोया हुआ देखकर (to see while sleeping)।
- जंगम – जो चल फिर सकते हैं, सजीव (movable)।
- विहंगम – दूर – दूर तक फैला हुआ (far and widely spread)।
- पुलकित – प्रसन्न (happy)।
- संकुल – बहुतायत (plenty of)।
- आभा – सुंदरता (beauty)।
- पातन – पत्ते (leaves)।
- विशा – मैदान – शौच क्रिया (cleanness)।
- जलावन – जलावनी लकड़ी, ईंधन (firewood)।
- चरी – ज्वार (a fodder crop)।
- कांकर – ककड़ी जो पकते ही फूट जाती है (a kind of large melon)।
- अगाध – बहुत गहरा (very deep)।
- बरहा – खेत में पानी देने के लिए बनाई गई छोटी नालियाँ (small drainage used for irrigation)।
- परिणति – समाप्ति, अंत (result)।
- सार्थकता – महत्ता (importance)।
- बौराना – पागल हो जाना (to be mad)।
- कब्बों – कभी भी (whenever)।
- भेंटौ – मुलाकात (to meet)।
- उत्कट – तीव्र, प्रबल (strong)।
- सेतु – पुल (a bridge)।