In this post, we have given Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary – Surdas Ki Jhopdi Summary. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
सूरदास की झोंपड़ी Summary – Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Summary
प्रश्न :
प्रेमचंद की साहित्यिक तथा भाषागत विशेषताओं का परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-प्रेमचंद का जन्म वाराणसी ज़िले के लमही ग्राम में सन् 1880 में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई। मैट्रिक के बाद वे अध्यापन करने लगे। स्वाध्याय के रूप में ही उन्होंने बी॰ए० तक शिक्षा ग्रहण की। असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन-कार्य के प्रति समर्पित हो गए। उनका देहावसान सन् 1936 में हुआ।
रचनाएँ – उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-मानसरोवर (आठ भाग), गुप्तधन (दो भाग) (कहानी-संग्रह), निर्मला, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान (उपन्यास), कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी (नाटक), विविध प्रसंग (तीन खंडों में, साहित्यिक और राजनीतिक निबंधों का संग्रह), कुछ विचार (साहित्यिक निबंध)। उन्होंने माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
साहित्यिक परिचय – प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत पहले उर्दू में नवाबराय के नाम से की, बाद में हिंदी में लिखने लगे। उन्होंने अपने साहित्य में किसानों, दलितों, नारियों की वेदना और वर्ण-व्यवस्था की कुरीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। वे साहित्य को ‘स्वांतः सुखाय’ न मानकर सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम मानते थे। वे एक ऐसे साहित्यकार थे, जो समाज की वास्तविक स्थिति को पैनी दृष्टि से देखने की शक्ति रखते थे। उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत अनेक उपन्यासों एवं कहानियों की रचना की।
कथा-संगठन, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन आदि की दृष्टि से उनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं। उनकी भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के अत्यंत निकट है। हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनका विशेष योगदान है। संस्कृत के प्रचलित शब्दों के साथ-साथ उर्दू की रवानी उनकी विशेषता है, जिसने हिंदी कथा को नया आयाम दिया।
पाठ का सार :
‘सूरदास की झोपड़ी’ प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का एक अंश है। एक अंधा व्यक्ति जितना बेबस और लाचार जीवन जीने को अभिशप्त होता है, उतना ही सूरदास का चरित्र इसके ठीक विपरीत है। सूरदास अपनी परिस्थितियों से दुखी व आहत तो होता है. कितु अपने दुख को मन में दबाकर विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला दृढ़ निश्चय और अत्यंत उत्साह से करता है। रात के दो बजे होंगे कि अचानक सूरदास की झोपड़ी धू – धू कर जलने लगी।
अपने – अपने दरवाजों पर सोए लोग जग गए और जलती झोपड़ी के आसपास एकत्र होने लगे। आसमान की ओर उठती भयंकर आग की लपटें ऐसे लग रही थीं जैसे किसी मंदिर का स्वर्णकलश हो। लोग अपने – अपने तरीके से आग बुझाने का प्रयास कर रहे थे, परंतु जैसे ईष्या की आग नहीं बुझती है, उसी प्रकार सूरदास की झोपड़ी की आग भी नहीं बुझ रही थी।
सहसा सूरदास जलती झोंपड़ी के पास आकर खड़ा हो गया। वह झोपड़ी में जाना चाहता था, पर वहाँ उपस्थित लोगों ने भयंकर आग की लपटों का हवाला देकर उसे जाने से मनाकर दिया। वह असहाय हो खड़ा रह गया। आग बुझ जाने पर सब अपने – अपने घर चले गए, पर दुखी सूरदास वहीं बैठा रहा। इस समय केवल एक ही अच्छी बात हुई थी कि आग से सूरदास की झोंपड़ी के अलावा अन्य झोंपड़ियाँ बच गई थीं। सूरदास के दुखी होने का कारण झोंपड़ी और उसमें रखे बरतन आदि न था।
वह तो उस पोटली के जलकर नष्ट हो जाने से दुखी था, जो उसने घोर परिश्रम से एकत्र किया था। उसके जीवन की बहुत – सी आशाएँ उसी पर टिकी थीं। वह सोचने लगा कि पोटली के साथ – साथ रुपये थोड़े ही जल गए होंगे? अगर वे पिघल भी गए होंगे तो चाँदी कहाँ जाएगी? वह पछताने लगा कि आखिर इस झोंपड़ी को छोड़कर वह अन्यत्र सोने ही क्यों गया? अब पितरों का श्राद्ध कैसे होगा? उसने समय के साथ – साथ काम न करके बड़ी भूल की।
अब तक राख ठंडी हो चुकी थी। अब सूरदास ने राख एकत्र कर उसे टटोलना शुरू किया। वह थैली को खोज रहा था, जिसमें उसने पाँच सौ से ज़्यादा रुपये एकत्र किए थे। उसने सारी राख मुट्ठी में लेकर छान डाली, परंतु वह पोटली न मिलनी थी और न मिली। अब तक भोर हो चुकी थी। सूरदास के पास जगधर आया और झोपड़ी में आग न लगाने के बारे में सफाई देने लगा। अब जगधर भैरों के पास गया और उससे यह जानने में सफल हो गया कि यह आग उसी ने लगाई है। जगधर ने कहा कि यह तो तूने अच्छा नहीं किया। तब भैरों ने कहा कि मेरे दिल की आग ठंडी हो गई है।
यह कहकर उसने सूरदास की झोंपड़ी से चुराई रुपयों की थैली भी उसे दिखा दी। बिना मेहनत के भैरों के पास इतने रुपये आ जाएँ, यह जगधर के लिए ईर्ष्या का कारण बन गया। पहले तो वह प्रयास करता रहा कि भैरों आधे रुपये उसे दे दे, पर भैरों न माना। जगधर ने उसे पुलिस की धमकी दी पर भैरों ने कहा, सूरदास रो – धोकर शांत हो जाएगा। वह पुलिस में नही जाएगा। भैरों से ईष्य्या भाव रखे हुए जगधर ने सूरदास से यह बता दिया कि भैरों ने ही उसकी झोंपड़ी में आग लगाई है और यह भी बता दिया कि रुपयों की पोटली भी उसी के पास है।
पोटली की बात सुनकर सूरदास अपने हृदय की पीड़ा को चेहरे पर नहीं आने देता है और तटस्थ भाव से बात टालने की कोशिश करता है कि उसके पास जो पोटली है वह मेरी (सूरदास) नहीं है। वह अपना क्रोध बाहर नहीं आने देता है। सूरदास की झोंपड़ी को भैरों ने ही आग लगाई थी, क्योंकि भैरों जब अपनी पत्नी सुभागी को मारना – पीटना चाहता था तो वह भागकर सूरदास की झोपड़ी में शरण ले लेती थी। सूरदास उसे पिटने से बचा लेता था। इससे पूरे मुहल्ले में सूरदास की बदनामी होती थी। जगधर और भैरों के अलावा गाँव के अन्य लोग भी उसके चरित्र पर प्रश्न उठाते थे।
भैरों को उकसाने और भड़काने में जगधर आगे रहता था। सूरदास अपनी कमाई में चैन से खाता और रहता था। वह निराशा का भाव कभी प्रकट भी नहीं होने देता था, यही जगधर की भी ईष्य्या का कारण था। वह भैरों की पत्नी सुभागी पर नज़र रखता था, परंतु सुभागी उसे नहीं चाहती थी। इधर सूरदास और भैरों की पत्नी के संबंध भी गाँव में चर्चा का विषय बन गया था, इसी अपमान का बदला लेने के लिए उसने सूरदास की कमाई चुराकर झोंपड़ी को आग के हवाले कर दिया था। ऐसा करके वह अपने मन की आग को ठंडी करना चाहता था और सूरदास को रूलाना और तड़पाना भी चाहता था।
जगधर जब सूरदास को यह बता रहा था कि उसने रुपयों की पोटली भैरों के पास देखी है तभी उसे कुछ दूरी पर आती सुभागी दिख गई। उसने सुभागी को बुलाकर भैरों की करतूत उसे बताई। सुभागी को यह पता था कि आग तो भैरों ने ही लगाई है, परंतु रुपये चुराने की बात उसे अब पता चली। उसने भैरों से अलग होने का निर्णय ले लिया। उसने सूरदास से रुपयों की थैली के बारे में पूछा तो सूरदास ने अपने पास इतने रूपये होने से साफ मना कर दिया, परंतु उसके चेहरे पर आए भावों से सुभागी समझ गई कि भैरों ने सूरदास के रुपये चुरा लिए हैं।
उसने भैरों से रुपये की थैली किसी भी तरह वापस लेकर सूरदास को देने का निश्चय कर लिया, क्योंकि उसी के कारण सूरदास को यह असह्य दुख झेलना पड़ रहा है। सूरदास को अपनी झोंपड़ी जलने, ज़िदगी भर की कमाई के चोरी होने, समय – असमय लोगों की कटूक्तियों से मन में दुखजनक विचार उमड़ आए। वह मर्माहत हो रोने लगा। तभी उसे अचानक सुनाई दिया – तुम खेल में रोते हो! यह सुनते ही उसे लगा कि किसी ने उसे खड़ा कर दिया है।
वह निश्चय कर लेता है कि जीवन का खेल हँसने के लिए है, रोने के लिए नहीं। यह विचार उसे शक्ति प्रदान कर गया। उसे लगा कि उसकी जीत हो गई। अपनी रुपयों की पोटली खोजते – खोजते उसने राख को एकत्र कर जो ढेर बनाया था, उसे दोनों हाथों से उड़ाने लगा। उसके इस खेल में मिठुआ, घीसू और बीसों बच्चे शामिल हो गए। देखते – ही – देखते राख का सारा ढेर गायब हो गया। अब वहाँ काला निशान शेष रह गया था। मिठुआ ने बालसुलभ जिज्ञासावश पूछा, “दादा, अब हम रहेंगे कहाँ?” सूरदास ने निराशा को त्यागकर जवाब दिया, “दूसरा घर बनाएँगे।” मिठुआ ने पुनः पूछा, “अगर उन्होंने पुनः आग लगा दी तो?” सूरदास ने जवाब दिया, “हम फिर बनाएँगे।” बच्चे के पुनः वही प्रश्न पूछने पर सूरदास ने दृढ़ निश्चय हो उत्तर दिया – “हम भी सौ लाख बार बनाएँगे।”
शब्दार्थ और टिप्पणी :
- उपचेतना – नींद में जागते रहने का अहसास (id, semi consciousness)।
- दम – के – दम में – थोड़ी ही देर में (after some time)।
- कंपित – कापना (trembling)।
- नैराश्यपूर्ण – निराश होकर (hopelessly)।
- अग्निदाह – आग की लपटें (flame of fire)।
- चितागिन – चिता की जलती आग (burning of funeral pyre)।
- चूल्हा ठंडा करना – चूल्हे की आग बुझाना (to stop cooking food)।
- नाहक – बेकार में (in a useless manner)।
- सुभा – संदेह (doubt)।
- स्वाहा होना – सब कुछ जल जाना (to burn to ashes)।
- खुटाई – खोट (a defect)।
- यातना – कष्ट (pain)।
- निष्कर्ष – सारांश (summary)।
- बटोरना – एकत्र करना (to collect)।
- तस्कीन – तसल्ली, दिलासा (consolation)।
- गला छूटना – मुक्ति पाना (to get rid of)।
- जुग – युग (age)।
- अटकल से – अंदाज़ा लगाकर (to guess)।
- भूबल – राख में नीचे आग (fire under ashes)।
- अधीरता – उतावली (impatience)।
- अभिलाषाओं – इच्छाओं (desires)।
- बेबसी – विवशता (sujugation)।
- तड़का – भोर, सवेरा (dawn)।
- दीर्घजीवी – लंबे समय तक ज़िदा रहने वाली (long living)।
- अदावत – दुश्मनी (enimity)।
- चिता दिया – याद दिला दिया (to remember)।
- जरीबाना – जुर्माना (fine)।
- जतन – यत्नपूर्वक, उपाय करके (effort)।
- धरन – छप्पर के बीचोंबीच रखी जाने वाली मोटी लकड़ी (a long strong wood kept to support a hut)।
- रुपयों की गरमी – धन का घमंड (proud of money)।
- बल्लमटेर – लुटेरे, गुंडा – बदमाश (looters)।
- बिकरी – बिक्री (selling)।
- मसक्कत – मेहनत (hardwork)।
- हजम – पचना (to be digested)।
- नेकनीयती – अच्छी नीयत से (of good intention)।
- हसद – ईष्प्या, डाह (jealousy)।
- डोरे डालना – बहलाना, फुसलाना (to recreate)।
- आबरू – इज्ज़त (respectability)।
- खोंचा – बेचने की छोटी – मोटी चीजों का बक्सा (a small box to keep articles)।
- छाती पर साँप लोटना – ईर्ष्या करना (to be jealous)।
- टेनी मारना – कम तौलना (weight improperly)।
- बाट खोटे रखना – वजन से कम के उपकरण रखना (to have improper weighting tools)।
- ईमान गँवाना – बेईमानी करना (to be dishonest)।
- बेलज्जत – बिना किसी लाभ का (without any profit)।
- सुफल – सफल (successful)।
- बेसी – फालतू, अधिक (extra)।
- झिझकी – संकोच किया (hesitated)।
- धेला – आधा पैसा (half paisa)।
- खसम – पति (husband)।
- करतूत – हरकतें (activities)।
- झाँसा देना – भ्रमित करना (to deceive)।
- पेट की थाह लेना – मन की बात जानना (try to know about a secret)।
- जतन – उपाय (effort)।
- मार लाना – चुरा लेना (to steal away)।
- चैन की बंशी बजाना – मजे में रहना (to enjoy)।
- हाथ पसारना – माँगना (to ask for)।
- इस घड़ी – इस समय (this time)।
- अन्वेषण – खोज, ढूँढ़ना (to search)।
- विपत – मुसीबत (caiamity)।
- आबरू – इज्ज़त (dignity)।
- मर्माहत – हृदय पर पहुँची चोट (stunned)।
- क्षोभ – दुख (grief)।
- गोते खाना – डुबना (to dive)।
- मालिन्य – मलिनता (nastiness)।
- उद्दिष्ट – निश्चित, निर्धारित (certain)।
- भस्म – स्तूप – राख का ढेर (heap of ashes)।
- बालोचित – बच्चों जैसी (same as children)।