Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 8 बारहमासा to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 8 बारहमासा
Class 12 Hindi Chapter 8 Question Answer Antra बारहमासा
प्रश्न 1.
अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
अगहन मास में दिन छोटे हो गए तथा रात का समय बढ़ गया। इस समय सर्दी पड़ती है। नागमती को दिन भी रात के समान लगने लगे अर्थात् पतिविहीन नायिका नागमती को सर्दी की लंबी रातें और दिन अकेले बिताना कठिन हो गया है। विरह उसे इतना सता रहा है कि सर्दी के कपड़े उसकी शीत हरने में असफल हो गए हैं। वह कोई बनाव-श्रृंगार नहीं करना चाहती है, क्योंकि उसका रंग-रूप उसके पति के साथ चला गया। वह दीये की बाती के समान जल रही है। उसका हुदय ठंड से काँपता रहता है जो प्रियतम के आने से ही दुर हो सकता है। विरह की अग्न ने उसे जलाया है। वह भँरे और काग को संबोधित करती है कि वे उसके प्रियतम को कहे कि उसकी पत्नी विरह की आग में सुलग-सुलगकर मर गई । उसके कारण जो धुआँ हमें लग गया, उससे हम काले हो गए।
प्रश्न 2.
‘जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में नायिका को जाड़े में विरह बाज के समान लगता है। बाज जीवित शिकार को खा जाता है। विरह रूपी बाज नागमती को जीवित खा रहा है। यह बाज मरने के बाद भी उसे नहीं छोड़ेगा। नायिका का रक्त आँसू और पसीना बनकर ढल गया है। उसका मांस गल गया तथा सारी हड्डियाँ शंख-सी हो गई। वह सारसी (मादा सारस) होकर प्रियतम का नाम रट-रटकर मर-सी गई है। वह प्रिय को कहती है कि वे आकर उसके पंखों को तो समेट लें।
प्रश्न 3.
माघ महीने में विरहिणी नागमती को क्या अनुभूति होती है?
उत्तर :
माघ महीने में विरहिणी नागमती के लिए जाड़े की ऋतु काल के समान हो गई है। सर्दी के मारे कँपकँपा रही है। उसके प्रिय रत्नसेन रूपी सूर्य के ताप बिना उसके शरीर का जाड़ा नहीं समाप्त होगा। इस महीने में रस का मूल उत्पन्न होता है, जिससे वसंत ऋतु में लता-वनस्पतियों पर पुष्प आते हैं। विरहाग्नि में जलती नागमती के यौवन-पुष्प का रसपान करने के लिए रत्नसेन रूपी भ्रमर उसके पास नहीं है। इस महीने में बूँदें पाला या ओला जैसी ठंडी होती हैं। इनमें भीगे वस्त्र नागमती को शूल जैसा चुभता है। विरह रूपी पवन ठंड को और बढ़ा देता है। प्रिय के बिना शृंगार निरर्थक जान पड़ता है। उसका शरीर तिनके के समान कमजोर होकर डोल रहा है। उसे ऐसा लगता है जैसे विरह रूपी पवन उड़ा ले जाएगा।
प्रश्न 4.
वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
उत्तर :
वृक्षों से पत्तियाँ और वनों से ढाँखें फागुन माह में गिरते हैं। इस ऋतु में कुछ वनस्पतियों में नई-नई कोमल कोंपलें फूट पड़ती हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि वे प्रसन्न हो रही हैं। पवन का झोंका बह रहा है। लोग फाग खेल रहे हैं, परंतु नायिका विरह से पीड़ित है। उसका शरीर पीले पत्ते जैसा हो गया है। होली में आग लगने पर उसे लगता है कि उसके शरीर में भी विरह ने होली जला दी हो। अब वह कामना करती है कि मेरा शरीर जल जाए और पवन उसकी राख को उन रास्तों पर डाल दे, जहाँ उसका प्रिय पैर रखता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए :
(क) पिय सौं कहेहु संदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग।
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुआँ हम लाग॥
(ख) रकत ढरा माँसू गरा हाड़ भए सब संख।
धनि सारस होइ ररि मुई आइ समेटहु पंख।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराई कै चहै उड़ावा झोल।।
(घ) यह तन जारौं छार कै कहौं कि पवन उड़ाउ।
मकु तेहि मारग होइ परौं कंत धरं जहँं पाउ ॥
उत्तर
(क) इस दोहे के माध्यम से नागमती अपनी विरह व्यथा का संदेश रत्नसेन तक पहुँचाने के लिए कहती है कि हे भैरि! हे काग! मेरे प्रिय को यह संदेश कहना कि वह स्त्री विरह की आग में सुलग-सुलगकर जल मरी, उसी का धुआँ हमें लग गया, जिससे हम काले हो गए।
(ख) विरहिणी नागमती अपनी दयनीय दशा व्यक्त करते हुए कहती है कि विरह की पीड़ा सहते-सहते रक्त आँसू बनकर और कभी पसीना बनकर भी ढलक गया, मांस गल गया और सब हड्डियाँ शंख-सी हो गईं। हे प्रिय ! और कुछ न सही तो अब उसके पंख ही समेट लो।
(ग) विरह व्यथित नागमती इस व्यथा को सहते-सहते अत्यंत कमज्रोर हो चुकी है। वह रत्नसेन को संबोधित कर कहती है कि तुम्हारे बिना मेरा हृदय काँपता है और शरीर तिनके के समान डोल रहा है। इस पर विरह भी जलाकर राख बनाकर उड़ा देना चाहता है।
(घ) इस दोहे में नागमती रत्नसेन के प्रति त्याग और समर्पण करती हुई आत्मबलिदान देने की भावना प्रकट करती हुई कहती है कि अब तो बस यही कामना है कि अपना यह शरीर जलाऊँ और इसे राख करके कहूँ -हे पवन ! इसे उड़ा ले जा, संभव है कदाचित् यह राख उड़कर उस मार्ग पर गिर पड़े, जहाँ मेरा कंत पैर रखे अर्थात् वह राख बनकर रत्नसेन के चरणों का स्पर्श करना चाहती है।
प्रश्न 6.
प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पपी कीजिए।
उत्तर :
पहले दो छंदों में उपमा, रूपक, उत्र्रेक्षा, पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। कवि ने शब्दालंकार तथा अर्थालंकार -दोनों का प्रयोग किया है। इनके प्रयोग से एक तरफ भाषा के सौंदर्य में वृद्धि हुई है, दूसरी तरफ भाव-सौंदर्य को भी चरम सीमा पर पहुँचा दिया गया है। अलंकारों के प्रयोग से नाद-सॉदद्य बढ़ा है, जिसके कारण संगीत की सृष्टि होती है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
पाठ में आए तत्सम और तद्भव शब्दों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
तत्सम – निशा, दीपक, चीर, तन, कोकिला, सखी, पंख, काल, अंग, जल, फूल।
तद्भव – हिया, सीऊ, देवस, सुरुज, रकत, पँखी।
प्रश्न 2.
किसी अन्य कवि द्वारा रचित विरह वर्णन की दो कविताएँ चुनकर लिखिए और अपने अध्यापक को दिखाइए।
उत्तर :
घनानंद का निम्न पद पढ़ें –
बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति ही दै दै सनमान को॥
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है कै,
अब ना घिरत घन आनँद निदान को।
अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये सँदेसो लै सुजान को॥
-घनानंद
कवि सूरदास की विरहिणी की वेदना पढ़िए-
कोउ, माई ! बरजै री या चंदहि।
करत है कोप बहुत हम्ह ऊपर कुमुदिनि करत अनंदहि ॥
कहाँ कुहू कहाँ रवि अरु तमचुर कहाँ बलाहक कारे।
चलत न चलप, रहत रथ थकि करि, विरहिन के तन जारे॥
निंति सैल, उदधि पन्नग को, सापति कमठ कठोरहि।
देति असीस जरा देवी को, राहु केतु किन जोरहि ?
ज्यों जलहीन मीन तन तलफ्त त्योंहि तलफ्त ब्रजबालहिं।
सूरदास प्रभु बेगि मिलाबहु मोहन मदन-गोपालहिं।
– सूरदास
प्रश्न 3.
‘नागमती वियोग खंड’ पूरा पढ़िए और जायसी के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 8 बारहमासा
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
होलिका दहन का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
नायिका विरह से पीड़ित है। होलिका दहन देखकर उसे लगता है कि किसी ने उसके शरीर में आग लगा दी है। ऐसे में यदि उसका प्रिय साथ हो तो उसे कोई दुख नहीं होता। वह प्रिय के संग स्वयं को नष्ट करने में नहीं हिचकती।
प्रश्न 2.
नायिका क्या-क्या कामनाएँ करती है?
उत्तर :
नायिका निम्नलिखित कामनाएँ करती है-
1. भौरि और कौवे अपने काले रंग का कारण नायिका के शरीर से उठे धुएँ को बताएँ।
2. वह चाहती है कि रत्नसेन रूपी सूर्य उसके शरीर को ताप पहुँचाए ताकि विरह रूपी शीत की ठिठुरन कम हो सके।
3. वह चाहती है कि उसके पंखों को प्रियतम समेटे।
4. वह अपने शरीर की राख को उस मार्ग पर बिछाना चाहती है, जहाँ पर प्रियतम पैर रखते हैं।
प्रश्न 3.
पूस माह में मौसम कैसा होता है? नागमती किस पक्षी के समान हो गई है?
उत्तर :
पूस माह में भयंकर सर्दी पड़ती है। सूर्य दक्षिण दिशा की तरफ बढ़ता है। शरीर हर समय काँपता रहता है। नायिका की स्थिति कोकिला जैसी हो गई है। जिस प्रकार कोकिला दिन-रात विरह से पीड़ित रहती है, उसी प्रकार नायिका भी विरह से पीड़ित रहती है, क्योंकि उसके प्रियतम बाहर चले गए हैं। वह रात में अकेली है। उसे हर समय डर लगा रहता है। पूस माह की शीत भरी रातें बिताना उसके लिए कठिन हो गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘बारहमासा’ पाठ का कथ्य बताइए।
उत्तर :
जायसी की प्रसिद्ध रचना ‘पद्मावत’ के ‘बारहमासा’ के इस अंश में कवि ने नायिका नागमती के विरह का वर्णन किया है। कवि ने शीत के अगहन, पूस, माघ और फाल्गुन महीनों में नायिका की विरह-दशा का चित्रण किया है। पहले पद में प्रेमी के वियोग में नायिका विरह की अग्नि में जल रही है और भँवरे तथा काग के समक्ष अपनी स्थितियों का वर्णन करते हुए नायक को संदेश भेज रही है। दूसरे पद में विरहिणी नायिका के वर्णन के साथ-साथ शीत से उसका शरीर काँपने तथा वियोग से हृदय काँपने का सुंदर चित्रण है।
चकई और कोकिला से नायिका के विरह की तुलना की गई है। नायिका विरह में शंख के समान हो गई है। तीसरे पद में माघ महीने में जाड़े से काँपती हुई नागमती की विरह-दशा का वर्णन है। वर्षा का होना तथा पवन का बहना भी विरह-ताप को बढ़ा रहा है। अंतिम पद में फागुन मास में चलने वाले पवन झकोरे शीत को चौगुना बढ़ा रहे हैं। सभी फाग खेल रहे हैं, परंतु नायिका विरह-ताप में और अधिक संतप्त होती जाती है।
प्रश्न 2.
अंतिम पद में, कवि ने किस लोक-त्योहार का वर्णन किया है? नागमती को यह त्योहार रुचिकर क्यों नहीं लग रहा है?
उत्तर :
अंतिम पद में, कवि ने होली के त्योहार का वर्णन किया है। यह फाल्गुन माह में आता है। इस समय प्रकृति यौवन पर होती है। लोग फाग खेलते हैं। होलिका दहन किया जाता है। लोग एक-दूसरे को रंग में भिगोकर उल्लसित होते हैं। नागमती पति वियोग से अत्यंत दुखी है। उससे फागुन की सर्दी सही नहीं जा रही है। उसे यह त्योहार रुचिकर नहीं लगता है, क्योंकि विरह ने उसके शरीर में भी होली जला रखी है। वह किसके साथ चाँचरि खेले, यह सोचकर और भी दुखी होती है।