In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 4 Summary – Banaras, Disha Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
बनारस Summary – दिशा Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 4 Summary
बनारस, दिशा – केदारनाथ सिंह – कवि परिचय
प्रश्न : केदारनाथ सिंह का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : जीवन परिचय-केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 ई० को बलिया ज़िले के चकिया गाँव में हुआ। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एम०ए० की तथा वहीं से ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब-विधान’ विषय पर पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय गोरखपुर में हिंदी के प्राध्यापक रहे, फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर के पद पर रहते हुए अवकाश प्राप्त किया।’ अकाल में सारस’ कविता-संग्रह पर उनको 1989 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से और 1994 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा संचालित मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान तथा कुमारन आशान, व्यास सम्मान, दयावती मोदी पुरस्कार आदि अन्य कई सम्मानों से भी सम्मानित किया गया है। आजकल वे दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
रचनाएँ – कवि केदारनाथ सिंह की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
काव्य-संग्रह – अभी बिलकुल अभी, अकाल में सारस, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएँ और बाघ।
निबंध-संग्रह – मेरे समय के शब्द, कब्रिस्तान में पंचायत।
आलोचना – कल्पना और छायावाद।
काव्यगत विशेषताएँ – केदारनाथ सिंह मूलत: मानवीय संवेदनाओं के कवि हैं। अपनी कविताओं में उन्होंने बिंब-विधान पर अधिक बल दिया है, केदारनाथ सिंह की कविताओं में शोर-शराबा न होकर, विद्रोह का शांत और संयत स्वर सशक्त रूप में उभरता है। ज़मीन पक रही है, संकलन में ज़मीन, रोटी, बैल आदि उनकी इसी प्रकार की कविताएँ हैं। संवेदना और विचारबोध उनकी कविताओं में साथ-साथ चलते हैं।
जीवन के बिना प्रकृति और वस्तुएँ कुछ भी नहीं हैं-यह अहसास उन्हें अपनी कविताओं में आदमी के और समीप ले आया है। इस प्रक्रिया में केदारनाथ सिंह की भाषा और भी नम्य और पारदर्शक हुई है और उनमें एक नई ऋज़ता और बेलौसपन आया है। उनकी कविताओं में रोज़्रमर्रा के जीवन के अनुभव परिचित बिंबों में बदलते दिखाई देते हैं। शिल्प में बातचीत की सहजता और अपनापन अनायास ही दृष्टिगोचर होता है।
Banaras Class 12 Hindi Summary
इस कविता में प्राचीनतम शहर बनारस के सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है। बनारस शिव की नगरी और गंगा के साथ विशिष्ट आस्था का केंद्र है। बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे, जिनमें वसंत उतरता है। इस शहर के साथ मिथकीय आस्था-काशी और गंगा के सान्निध्य से मोक्ष की अवधारणा जुड़ी है। गंगा में बँधी नाव, एक ओर मंदिरों-घाटों पर जलने वाले दीप तो दूसरी तरफ कभी न बुझने वाली चिताग्नि, उनसे तथा हवन इत्यादि से उठने वाला धुआँ – यही तो है बनारस।
यहाँ हर कार्य अपनी ‘रौ’ में होता है। यह बनारस का चरित्र है। आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास-आश्चर्य और भक्ति का मिला-जुला रूप बनारस है। काशी की अति प्राचीनता, आध्यात्मिकता एवं भव्यता के साथ आधुनिकता का समाहार ‘बनारस’ कविता में मौजूद है। यह एक पुरातन शहर के रहस्यों को खोलती है, बनारस एक मिथक बन चुका शहर है, इस शहर की दार्शनिक व्याख्या यह कविता करती है। कविता भाषा संरचना के स्तर पर सरल है और अर्थ के स्तर पर गहरी। कविता का शिल्प विवरणात्मक होने के साथ ही कवि की सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है।
Disha Class 12 Hindi Summary
यह कविता बाल मनोविज्ञान से संबंधित है, जिसमें पतंग उड़ाते बच्चे से कवि पूछता है कि हिमालय किधर है। बालक का उत्तर बाल सुलभ है कि हिमालय उधर है जिधर उसकी पतंग भागी जा रही है। हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है – बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं। कवि को यह बाल सुलभ संज्ञान मोह लेता है। कविता लघु आकार की है और यह कहती है कि हम बच्चों से कुछ-न-कुछ सीख सकते हैं। कविता की भाषा सहज और सीधी है।
बनारस सप्रसंग व्याख्या
1. इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब-सी नमी है
और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन
शब्दार्थ :
- लहरतारा या मडुवाडीह – बनारस के मोहल्लों के नाम (locality)।
- बवंडर – अंधड़, आँधी (a violent storm)।
- सुगबुगाना – जागरण, जागने की क्रिया (act of wakefulness)।
- पचखियाँ – अंकुरण (to germinate)।
- निचाट – बिलकुल, एकदम (completely)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘बनारस’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता प्रयोगवादी कवि केदारनाथ सिंह हैं। इस कविता में बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के साथ वहाँ के बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला है। यह शहर आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास तथा भक्ति का मिश्रण है।
व्याख्या – कवि प्राचीन नगर बनारस के वैभव एवं सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि इस शहर में वसंत का आगमन अचानक होता है अर्थात् बनारस अत्यंत वैभवशाली नगर है। यहाँ हर समय श्रद्धालु एवं पर्यटक इसका सौंदर्य एवं सांस्कृतिक वैभव देखने आते रहते हैं। जब श्रद्धालुओं की भीड़ के रूप में वसंत आता है तो लहरतारा या मडुवाडीह मोहल्ले में धूल का बवंडर-सा उठता है। इस मौसम में इस प्राचीनतम शहर की जीभ किरकिराने लगती है। वसंत आने पर हरेक के मन में सुगबुगाहट होती है। जो नहीं है, वह अंकुरित होने लगता है।
भाव यह है कि जिन पर्यटकों के मन में श्रद्धा-भाव नहीं था, यहाँ का वैभव एवं सौंदर्य देख उनके मन में भी श्रद्धा का अंकुरण होने लगता है। दशाश्वमेध घाट पर जाने पर आदमी को लगता है कि घाट का आखिरी पत्थर भी मुलायम हो गया है अर्थात् श्रद्धालु आस्था, धर्म और भक्ति में डूबकर अपनी जड़ता खो देते हैं। घाट की सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में एक अजीब-सी नमी है। वहाँ भिखारियों के कटोरे एकदम खाली हैं और वसंत आने पर उनमें चमक-सी आ जाती है।
विशेष :
- बनारस शहर में श्रद्धालुओं की अचानक उमड़ पड़ने वाली भीड़ का सुंदर वर्णन है।
- मुहावरों का सटीक प्रयोग है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
बनारस को पहले शिव नगरी काशी नाम से जाना जाता था। ‘यहाँ मरने पर स्वर्ग मिलता है’, ऐसी मान्यता के कारण यहाँ श्रद्धालुओं की आती-जाती भीड़ का कलात्मक वर्णन है।
बनारस के सांस्कृतिक सौंदर्य, धर्म, आस्था भक्ति-भाव पर्यटकों के मन को गहराई तक प्रभावित करते हैं और वे इनमें खोकर अपनी जड़ता गँवा देते हैं। यह भाव प्रकट हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- अत्यंत सरल, सहज, बोधगम्य भाषा में भावों की अभिव्यक्ति हुई है।
- भाषा में तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग है।
- विवरणात्मक शैली में लिखी कविता अतुकांत एवं छंदमुक्त रचना है।
- भाषा में प्रतीकात्मकता एवं चित्रमयता हैं।
- ‘अचानक आता’, ‘भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन’ में अनुप्रास ‘पत्थर कुछ और मुलायम हो गया है’ में विरोधाभास अलंकार है।
- मुहावरों के सटीक प्रयोग से भाषिक-सौंदर्य बढ़ गया है।
- दृश्य बिंब उपस्थित है।
2. तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज़-रोज़ एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ
इस शहर में धूल
धीरे- धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीरे होती है
शब्दार्थ :
- अनंत – अंतहीन (endless)।
- शव – लाश (a dead body)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘बनारस’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इस कविता के रचयिता प्रयोगवादी कवि केदारनाथ सिंह हैं। इस कविता में बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के साथ वहाँ के बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है। इस शहर में आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास तथा भक्ति का संगम है।
व्याख्या – श्रद्धालुओं के बनारस आने पर चारों ओर खुशी छा जाती है। ऐसे मनोरम वातावरण का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि जिस प्रकार वसंत आने से चारों और खुशियाँ फैल जाती हैं, वैसी ही खुंयाँ आपने कहीं देखी हैं? बनारस के घाटों पर बैठे भिखारियों के कटोरों में भक्तों एवं पर्यटकों द्वारा डाली गई भीख से उनके चेहरों पर वैसी ही खुशी देखी जा सकती है। जिस तरह हजारों लोगों के जाने से यह शहर खाली होता है, उसी तरह आने से भर भी जाता है। इसी प्रकार लोग प्रतिदिन शवों को कंधे पर लादे हुए अँधेरी गलियों से चमकती, मोक्षदायिनी गंगा की गोद में विसतित करने के लिए ले जाते हैं अर्थात् लोग सांसारिकता त्यागकर मोक्ष प्राप्ति के लिए यहाँ आते हैं।
कवि बनारस की विशेषता बताता है। वह कहता है कि यहाँ लोग धीरे-धीरे धूल उड़ाते गंगा की ओर जाते रहते हैं। रास्ते के दोनों ओर बने मंदिरों से घंटे और घड़ियाल की आवाज़ें सुनाई देती हैं। सायंकाल में यही भीड़ आरती के लिए मंदिरों में धीरे-धीरे एकत्र होने लगती है।
विशेष :
- कवि ने बनारस की ज़िंदगी का रोचक वर्णन किया है।
- भाषा चित्रात्मक है।
- ‘रोज़-रोज़’, ‘धीरे-धीर’ ‘में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- मुक्तछंद होते हुए भी कविता में गेयता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- बनारस को पहले शिव नगरी काशी नाम से जाना जाता था। ‘यहाँ मरने पर स्वर्ग मिलता है’, ऐसी मान्यता के कारण यहाँ श्रद्धालुओं की आती-जाती भीड़ का कलात्मक वर्णन है।
- बनारस के सांस्कृतिक सौंदर्य, धर्म, आस्था भक्ति-भाव पर्यंटकों के मन को गहराई तक प्रभावित करते हैं और वे इनमें खोकर अपनी जड़ता गँवा देते हैं। यह भाव प्रकट हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- सहज, सरल भाषा में भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है।
- भाषा में चित्रात्मकता के साथ-साथ दृश्य एवं श्रव्य बिंब उपस्थित हैं।
- ‘पुनरुव्ति प्रकाश अलंकार’ की छटा दर्शनीय है।
- भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है।
- काव्यांश विवरणात्मक शैली में रचित है।
- अतुकांत शैली में सुंदर छंदमुक्त रचना है।
3. यह धीरे-धीरे होना
धीरे – धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज़ जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बँधी है नाव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
शब्दार्थ :
- सामूहिक – समूह, झुंड में (collective)।
- समूचा – सारा (whole)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘ अंतरा भाग 2 ‘ में संकलित ‘बनारस ‘ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता प्रयोगवादी कवि केदारनाथ सिंह हैं । इस कविता में बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के साथ वहाँ के बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला है। इस शहर में आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास तथा भक्ति का संगम है। यहाँ गंगा की अटलता और मानवता के भी दर्शन होते हैं। व्याख्या-कवि बनारस की धीमी ज़िंद्री के बारे में बताता है। यहाँ हर कार्य में धीमापन है। यह धीमापन एक लय बन गया है; जीवन-शैली बन गई है जो सारे शहर को मजबूती से बाँधे हुए है। यहाँ का जीवन ऐसा हो गया है कि यहाँ कुछ बदलता नहीं है। यहाँ कुछ गिरता नहीं है तथा कुछ हिलता भी नहीं है। यहाँ जो चीज़ जहाँ रखी थी, वहीं पर है अर्थात् यहाँ की संस्कृति आज भी पुरानी है। उसमें बदलाव नहीं आया है। यहाँ की गंगा पुरातन है। वहाँ बँधी नावें भी पुरानी हैं। तुलसीदास की खड़ाऊँ सैकड़ों सालों से वहीं पर रखी है जहाँ उन्हें पाया गया था।
विशेष :
- बनारस की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को बताया गया है।
- ‘धीरे-धीरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य –
- बनारस की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का वर्णन है।
- बनारस के धीमी गति से चलने वाले जीवन को बनारस की विशेषता और उसका बनारसीपन कहा गया है।
शिल्प-सौंदर्य –
- सहज, सरल और भावपूर्ण भाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
- ‘समूचे शहर’ में अनुप्रास तथा ‘धीरे-धीरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- भाषा में प्रतीकात्मकता तथा विवरणात्मक शैली है।
- दृश्य बिंब उपस्थित है।
- अतुकांत शैली में छंदमुक्त रचना है।
- कवि की सूक्ष्मदृष्टि और संवेदनशीलता का परिचय मिल रहा है।
4. कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक टेखो
अद्भुत हैं इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं है
शब्दार्थ :
- सई-साँझ – शाम की शुरुआत (evenfall)।
- आलोक – प्रकाश (brightness)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘बनारस’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता प्रयोगवादी कवि केदारनाश्र सिंह हैं। इस कविता में बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के साथ वहाँ के बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला है। इस शहर में आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास तथा भक्ति का संगम है। इस अंश में बनारस स्थित गंगा नदी के घाटों पर सायंकालीन आरती और उसके सौंदर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या – कवि बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के बारे में बताता है। यहाँ जब शाम शुरू होती है तो बिना किसी सूचना के शहर में घुस जाओ। इसे कभी आरती के आलोक में अचानक देखो। इस शहर की बनावट अद्भुत है। सायंकालीन आरती और दीपमालाओं के प्रकाश को गंगा-धारा में देख ऐसा लगता है, जैसे आधा बनारस जल में उतर आया है। मंत्रोच्चार की ध्वनियों में आधा बनारस उतर आया लगता है। दीपमालाओं के मध्य लगता है जैसे आधा बनारस फूलों से सज उठा है तो घाट पर जलती चिताएँ देख लगता है कि आधा बनारस वहीं उत्तर आया है। आधा बनारस नींद में सोया लगता है तो आधा शंख की पावन ध्वनि में खोया लगता है। ध्यान से देखने पर यह शहर सुंदर स्वप्न जैसा लगता है जो कभी ‘होने’ और कभी ‘न होने’ का आभास कराता है।
विशेष :
- बनारस शहर की विशेषता बताई गई है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- खड़ी बोली है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न – उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- बनारस के सायंकालीन आरती के समय के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन है।
- यहाँ परंपरा और आधुनिकता के समन्वय एवं आध्यात्मिकता की झलक मिलती है।
शिल्प-सौंदर्य :
- भाषा में मिश्रित शब्दावली है, जिसमें सहज भावाभिव्यक्ति है।
- सायंकालीन आरती के वर्णन में चित्रात्मकता है।
- ‘सई-साँझ’ में अनुप्रास अलंकार है।
- काव्यांश विवरणात्मक एवं अतुकांत शैली में छंदमुक्त रचना है।
- कवि की सूक्ष्म दृष्टि एवं संवेदनशीलता की झलक मिलती है।
5. जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्तंभ के
जो नहीं है उसे थामे है
राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ आग के स्तंभ
और पानी के स्तंभ
धुएँ के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्ध्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!
शब्दार्थ :
- स्तंभ – खंभा (pillar)।
- थामे – पकड़े हुए (holding)।
- अलक्षित – अज्ञात, न दिखनेवाला (invisible)।
- अर्घ्य – जल अर्पित करना (libation in honour of a deity)।
- शताब्दी – एक सौ साल का समय (centenary)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘बनारस’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता प्रयोगवादी कवि केदारनाथ सिंह हैं। इस कविता में बनारस शहर के सांस्कृतिक वैभव के साथ वहाँ के बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला है। इस शहर में आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास तथा भक्ति का संगम है।
व्याख्या – कवि बनारस शहर के मिथकीय स्वरूप को बताता है कि यह शहर बिना किसी स्तंभ के खड़ा है। वह विरासत को थामे हुए है। बनारस आने वाले व्यक्ति को उसकी आस्था ने बाँध रखा है। यहाँ आरती के समय पात्र से उठने वाली ज्योति की लौ तथा धुएँ गंगा के पावन जल में स्तंभ बन जाते हैं। चारों ओर फैली आरती की सुगंध स्तंभ बन जाती है। भक्तों एवं श्रद्धालुओं के उठे हाथ जो अदृश्य सूर्य को अर्घ्य दे रहे होते हैं; स्तंभ से प्रतीत होते हैं।
इस शहर और गंगा घाट पर आस्था और भक्ति का यह संगम सदियों से होता आया है। यह हज़ारों वर्षों से गंगा के जल में एक टाँग पर खड़ा होकर कार्य कर रहा है। उसे दूसरी टाँग की कोई खबर नहीं है अर्थात् यहाँ शहर में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो परंपरा का निर्वाह कर रहा है तथा दूसरा वर्ग आधुनिकता में डूबा हुआ है।
विशेष :
- बनारस शहर की दार्शनिक व्याख्या की गई है।
- ‘ऊँचे-ऊँचे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- साहित्यिक खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
बनारस के घाट पर उमड़ी भीड़ तथा श्रद्धालुओं द्वारा दिए जा रहे अर्घ्य का शब्द-चित्र प्रस्तुत है।
बनारस में श्रद्धा, विश्वास, आस्था और भक्ति का संगम है। यह भाव प्रकट हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा सरल, सहज, प्रवाहमयी है।
- दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
- विवरणात्मक शैली है।
- अतुकांत, छंदमुक्त रचना है।
- मानवीकरण के साथ-साथ अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- स्तंभ की व्याख्या में लाक्षणिकता है।
दिशा सप्रसंग व्याख्या
हिमालय किधर है?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर-उसने कहा
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है!
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में ‘दिशा’ शीर्षक से संकलित है। इसके रचयिता प्रयोगवादी विचारधारा के कवि केदारनाथ सिंह हैं। उन्होंने इस कविता में बताया है कि हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है।
व्याख्या – कवि स्कूल के एक बच्चे से प्रश्न करता है कि हिमालय किस तरफ स्थित है? वह बच्चा स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था। बच्चे ने बताया कि हिमालय उधर है, जिधर उसकी पतंग भागी जा रही है। यह जवाब सुनकर लेखक सोचने पर मजबूर हुआ। उसने सोचा कि अब उसे यह मान लेना चाहिए कि उसे पहली बार यह पता चला है कि हिमालय किधर है। कवि यह बताना चाहता है कि बच्चे के लिए सबसे महत्वपूर्ण उसकी उड़ती पतंग थी। उसे हिमालय की दिशा महत्वहीन लग रही थी। बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं।
विशेष :
- कवि ने बाल-मनोविज्ञान का सुंदर वर्णन किया है।
- यह वैचारिक कविता है।
- ‘उधर-उधर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- कविता गद्य का-सा आभास देती है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न – दिए गए काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- कवि ने बाल-मनोविज्ञान का सुंदर वर्णन किया है।
- बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं। यह भाव प्रकट हुआ है।
काव्य-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा सरल, सहज गद्य जैसी है।
- प्रथम एवं अंतिम पंक्ति में प्रश्न अलंकार, ‘उधर-उसने’ में अनुप्रास तथा ‘उधर-उधर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- काव्यांश अतुकांत छंदमुक्त रचना है।
- दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
- प्रश्नोत्तर शैली विचारोत्तेजक है।
- दृष्टांत एवं अन्योक्ति अलंकार हैं।