Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 13 सुमिरिनी के मनके to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 13 सुमिरिनी के मनके
Class 12 Hindi Chapter 13 Question Answer Antra सुमिरिनी के मनके
(क) बालक बच गया –
प्रश्न 1.
बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए?
उत्तर :
बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के निम्नलिखित प्रश्न पूछे गए –
- धर्म के दस लक्षण कौन-कौन से हैं?
- नौ रसों के उदाहरण पूछे गए।
- पानी के चार डिग्री के नीचे शीतता में फैल जाने के कारण उससे मछलियों की प्राणरक्षा कैसे होती है?
- चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान समझाने को कहा गया।
- अभाव को पदार्थ मानने न मानने के शास्त्रार्थ के बारे में पूछा गया।
- इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम तथा पेशवाओं का कुर्सीनामा पूछा गया।
- वह बड़ा होकर जीवन में क्या करना चाहता है? पूछा गया।
प्रश्न 2.
बालक ने क्यों कहा कि मैं यावग्जन्म लोकसेवा करूँगा?
उत्तर :
बालक से जब यह पूछा गया कि वह बड़ा होकर क्या करेगा ? उसने उत्तर दिया कि वह सारी उम्र लोकसेवा करेगा। यह उत्तर :
स्वाभाविक नहीं था। उसने रटा-रटाया उत्तर दिया। उसे यही सिखाया गया था।
प्रश्न 3.
बालक द्वारा इनाम में ‘लड्डू ‘माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी?
उत्तर :
बालक ने पूछे गए प्रश्नों के रटे-रटाए जवाब दिए। जब उससे इनाम माँगने को कहा गया तो लेखक परेशान हो गया कि यह पढ़ाकू बालक शायद कोई पुस्तक माँगेगा। उसे लगा कि रटंत शिक्षा-प्रणाली बच्चे के स्वाभाविक विकास को कुचल देगी, लेकिन जब बच्चे ने इनाम में ‘लड्डू’ माँगा तो लेखक ने सुख की साँस ली, क्योंकि बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ अभी ज़िंदा थीं, क्योंकि इस बारे में उसने कोई रटा जवाब नहीं दिया था।
प्रश्न 4.
बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटना अनुचित है, पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोटा जाता है?
उत्तर :
बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का गला घोंटा गया है, ऐसा आभास अनेक स्थलों पर होता है। बालक को मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दर्शाना, आठ वर्षीय बालक के शारीरिक विकास का दुष्प्रभावित होना, शारीरिक और मानसिक आयु से ऊपर के सवाल पूछे गए, जिनका बालक द्वारा रटा-रटाया जवाब दिया जाना, पूछे गए प्रश्नों का जीवन से असंबंधित होना तथा ईनाम माँगने पर ‘लड्डू’ की बात सुनकर स्पष्ट हो जाता है कि ‘ईनाम’ के जवाब के अलावा अन्य स्थानों पर उसका गला घोंटा गया था।
प्रश्न 5.
‘बालक बच गया। उसके बचने की आशा है, क्योंकि वह ‘ लड्डू’ की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की अलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट नहीं”-कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘बालक बच गया ……..खड़खड़ाहट नहीं के आधार पर बालक की निम्नलिखित, स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ उभर कर सामने आती हैं –
- प्रश्नों का उत्तर देने वाला वह बालक अपरिपक्व और सरल हृदय था।
- बालक में निडरता थी, क्योंकि उसने अपने पिता और प्रधानाध्यापक के सम्मुख ही अपनी बाल सुलभ इच्छा (लड्डू) को प्रकट कर दिया।
- बालक में एक भोलापन था जो रटे-रटाए जवाब की जगह वास्तविकता के दर्शन करा गया।
(ख) घड़ी के पुर्जो –
प्रश्न 1.
लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए ‘घड़ी के पुर्जों का दृष्टांत क्यों दिया है?
उत्तर :
जिस प्रकार घड़ी के पुर्जों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए आम आदमी घड़ी से समय देखने के साथ-साथ उसके पुर्ज़ों को खोलकर देख सकता है, उसी प्रकार आम आदमी को भी धर्म के बारे में जानने-समझने का उतना ही अधिकार है, जितना धर्माचार्यों को है। इस कारण से लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए ‘घड़ी के पुर्ज़े ‘का दृष्टांत दिया है।
प्रश्न 2.
‘धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है।’ आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
हम इस कथन से बिलकुल सहमत नहीं हैं कि धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्र धर्माचार्यों का काम है। धर्म एक पद्धति है, जिसके द्वारा जीवन को चलाया जाता है। यह किसी एक व्यक्ति की बपौती नहीं है। हर व्यक्ति इसे जानने का अधिकार रखता है तथा हरेक में इसे समझने की क्षमता है। एक वर्ग विशेष को धर्म की व्याख्या का अधिकार देने, उसके रहस्य जानने तथा धर्म का तथाकथित ठेकेदार बनाने से वह समाज में अन्याय फैलाता है।
प्रश्न 3.
घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते?
उत्तर :
घड़ी समय का ज्ञान कराती है। वह लोगों को दिन-रात के बारे में बताती है। इसी तरह धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध कराते हैं। जिस युग में जो आवश्यक होता है, उसी के अनुरूप नियम बनाए जाते हैं। उन्हें धार्मिक रूप दिया जाता है ताकि समाज उसे आसानी से स्वीकार कर सके, परंतु युग बदल जाने पर पुराने नियम अप्रासंगिक हो जाते हैं। उन्हें बदलते रहना उचित है।
प्रश्न 4.
घड़ीसाज़ी का इम्तहान पास करने से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
‘घड़ीसाज़ी’ का इम्तहान पास करने से लेखक का तात्पर्य है-घड़ी के पुर्जो के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना, उन्हें खोलकर अलगकर पुनः व्यवस्थित करना आदि। लेखक ने प्रतीकात्मक रूप से बताया है कि जो व्यक्ति धर्म के बारे में जानते हैं, विद्वान हैं, उन्हें धर्म के रहस्य जानने का अधिकार है।
प्रश्न 5.
धर्म अगर कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में है तो आम आदमी और समाज का उससे क्या संबंध होगा? अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
धर्म अगर कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्रज, धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में है तो आम आदमी की पहुँच से दूर हो गया है। यह वर्ग आम व्यक्ति का शोषण करता है। उन्हें पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, इहलोक-परलोक आदि का भय दिखाकर गलत कार्य करवाता है। इससे लोग धर्मभीरु बन जाते हैं। समाज में वर्ग-भेद बढ़ता है, जिससे ऊँच-नीच, छुआछूत आदि कुरोतियाँ पनपती और फैलती हैं, जो स्वस्थ समाज के लिए शुभ नहीं हैं। लोगों का मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
प्रश्न 6.
‘जहाँ धर्म पर कुछ मुद्ठीभर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का द्योतक है।’ तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
धर्म पर कुछ लोगों के एकाधिकार से उनका स्वरूप संकुचित हो जाएगा। धर्म सभी के द्वारा जाना जाने योग्य है तथा यह हर व्यक्ति से संबंधित है। हर व्यक्ति को धर्म की गहराइयों को समझना चाहिए। जो धर्म हर व्यक्ति की पहुँच में होगा, जिसका द्वार हर वर्ग के लिए खुला होगा, उसका विस्तार होगा। बौद्ध धर्म के विस्तार का यही कारण था।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘वेदशास्त्र धर्माचायों का ही काम है कि घड़ी के पुर्ज़ जाने, तुम्हें इससे क्या?’
(ख) ‘अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाज़ी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो ।’
(ग) ‘हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज़े सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।’
उत्तर :
(क) लेखक व्यंग्य करता है कि हिंदू धर्म में वेदों को जानने वाले जो आचार्य हैं, वे समाज में यह धरणा फैलाते हैं कि धर्म के रहस्य जानने का अधिकार केवल धर्माचायों को है। आम व्यक्ति का उनसे कोई मतलब नहीं है। धर्म की नीति बनाने तथा नियम विधि बनाने का काम सिर्फ धर्माचायों का है।
(ख) लेखक कहता है कि जिन लोगों को धर्म का ज्ञान नहीं है, उन्हें धर्म के ज्ञान से दूर रखो, परंतु जिन्हें धर्म का ज्ञान है, उन्हें धर्म के रहस्य जानने का अधिकार है। अनाड़ी व्यक्ति घड़ी खराब कर देता है, परंतु जानकार को घड़ी देखने तथा ठीक करने का हक है।
(ग) लेखक धर्म के विषय में घड़ी का उदाहरण देते हुए कहता है कि यह तो वही होगा कि परदादा की घड़ी हमारी जेब में है और वह बंद हो गई है। हमें उसमें न चाबी देना आता है और न ही उसे ठीक करना। इसके बावजूद हम किसी दूसरे को उसे ठीक भी नहीं करने देते। दूसरे शब्दों में, धर्म को वर्ग विशेष के हाथ में सीमित कर देने से वे उसे समयानुसार परिवर्तित नहीं कर सकते। उनकी मान्यताएँ समय के साथ अप्रासंगिक हो जाती हैं। उनमें समयानुकूल परिवर्तन होते रहना आवश्यक है ताकि धर्म अपने मूल उद्देश्य मानव-कल्याण को पूरा कर सके।
(ग) ठेले चुन लो –
प्रश्न 1.
वैदिककाल में हिंदुओं में कैसी लाटरी चलती थी, जिसका ज्ञिक्र लेखक ने किया है?
उत्तर :
वैदिककाल में हिंदुओं में विवाह के लिए लाटरी जैसी प्रथा प्रचलित थी। इसमें स्नातक विद्या पढ़कर, नहा-धोकर, माला पहनकर, सेज पर जोग होकर किसी बेटी के बाप के यहाँ पहुँच जाता। वहाँ उसे वह ‘गौ’ भेंट करते। वह कन्या के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रखता था। कन्या को उसमें से एक ढेला उठाना होता था। यह चुनाव ही विवाह की सफलता-असफलता का मापदंड हुआ करता था।
कन्या द्वारा उठाए गए ढेलों के प्रति यह मान्यता भी कि ‘वेदि’ की मिट्टी के ढेले से ‘पंडित संतान ‘, ‘गोबर’ की मिट्टी के ढेले से ‘पशुओं का धनी’, खेत की मिट्टी के ढेले से ‘जमींदार संतान’ तथा मसान की मिट्टी के ढेले से अशुभ विवाह की मान्यता थी।
प्रश्न 2.
‘दुर्लभ बंधु’ की पेटियों की कथा लिखिए।
उत्तर :
हरिश्चंद्र के ‘दुर्लभ बंधु’ में पुरश्री के सामने तीन पेटियाँ हैं-एक सोने की, दूसरी चाँदी की तथा तीसरी लोहे की। तीनों में से एक में उसकी प्रतिमूर्ति है। स्वयंवर के लिए जो व्यक्ति आता है, उसे इनमें से एक चुनने के लिए कहा जाता है। अकड़बाज सोने को चुनता है। उसे कुछ नहीं मिलता। जो लोभी होता है, उसे चाँदी की पिटारी अँगूठा दिखाती है। सच्चा प्रेमी लोहे को छूता है तथा घुड़दौड़ का पहला इनाम पाता है।
प्रश्न 3.
‘जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं?
उत्तर :
‘जीवन साथी’ का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के निम्नलिखित फल मिलते हैं :
(क) यदि वेदि का ढेला उठाया गया तो संतान ‘वैदिक पंडित’ होगा।
(ख) यदि गोबर का ढेला चुना तो पुत्र ‘पशुओं का धनी’ होगा।
(ग) यदि खेत का ढेला चुना तो संतान ‘जमींदार’ होगी।
(घ) यदि मसान की मिट्टी चुनी तो अशुभ होगा।
प्रश्न 4.
मिद्टी के छेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए –
पत्थर पूजे हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार।
उत्तर :
कबीरदास ने इस साखी में आडंबरों तथा अंधविश्वासों पर कड़ा प्रहार किया है। वे कहते हैं कि पत्थर पूजने से भगवान मिलते हैं तो वह पहाड़ की पूजा करेंगे। इन पत्थरों से तो चक्की अच्छी है, जिससे आटा पिसता है और संसार का पेट भरता है। यही स्थिति मिट्टी के ढेलों की है। यह जीवन साथी चुनने की अंधविश्वासी परंपरा है। यह किसी व्यक्ति के भविष्य को बरबाद कर देने जैसा है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखोंकरोड़ो कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्यित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।’
(ख) ‘आज का कबूतर अच्छा हैं कल के मोर से, आज का पैसा अच्चा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।’
उत्तर :
(क) लेखक व्यंग्य करता है कि मिट्टी के ढेलों के अनुसार जीवन-साथी का चुनाव करना बुरा नहीं है। इसी तरह लाखोंकरोड़ों किलोमीटर दूर बैठे मिट्टी और आग के बड़े-बड़े ढेलों-मंगल, शनि, बृहस्पति आदि की काल्पनिक चाल के काल्पनिक हिसाब से शादी-ब्याह करना अधिक अच्छा भी नहीं है। ये सभी काल्पनिक हैं। इनका जीवन से कोई संबंध नहीं है। ये मनुष्य को धोखे में रखते हैं।
(ख) लेखक ज्योतिष – ज्ञान पर विश्वास नहीं करता। वह कहता है कि जो कल मोर दिखाई देगा, उससे अधिक अच्छा तो आज का कबूतर है। कहने का अभिप्राय है कि कल की कल्पना से आज का यथार्थ अच्छा है, चाहे वह कम ही हो। कल सोने के सिक्के मिलेंगे, इस आशा की बजाय आज का पैसा अच्छा है। इसी तरह विवाह के लिए मिट्टी के ढेले चुनना अधिक अच्छा है, बजाए लाखों कोस के तेज पिंड की गति का अनुमान लगाकर विवाह करना। लेखक यथार्थवादी है। वह आडंबरों व् कल्पना में विश्वास नहीं रखता।
योग्यता-विस्तार –
(क) बालक बच गया
प्रश्न 1.
बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के विकास में ‘रटना’ बाधक है-कक्षा में संवाद कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
ज्ञान के क्षेत्र में ‘रटने ‘ का निषेध है, किंतु क्या आप रटने में विश्वास करते हैं। अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
मैं रटने और रट्टू ज्ञान में विश्वास नहीं करता हूँ। बिना गहन चिंतन और मनन के किसी कथ्य को बार-बार दोहराने का नाम ही रटना है। रटने से हम किसी कथ्य को कुछ समय के लिए याद तो कर सकते हैं, पर यह अत्यंत आसानी से भूल जाता है और इसका फल दीर्घकालिक नहीं होता है। रटने से बच्चे की बुद्धि का स्वाभाविक विकास नहीं होता है। उसकी सृजनात्मकता तथा मौलिकता में ह्वास आता है। गहन अध्ययन, चिंतन-मनन, प्रयोग और ‘करके सीखने’ से मिलने वाला ज्ञान स्थायी होता है।
(ख) घड़ी के पुर्ज्जे –
प्रश्न 1.
कक्षा में धर्म-संसद का आयोजन कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
धर्म संबंधी अपनी मान्यता पर लेख/निबंध लिखिए।
उत्तर :
संस्कृत में कहा गया है कि ‘धारयति इति धर्म:’ अर्थात् जिसे धारण किया जाए, वही धर्म है। अब प्रश्न उठता है कि क्या धारण किया जाए। यहाँ उन सद्गुणों को धारण करने की बात कही गई है, जिनसे व्यक्ति में मानवोचित गुणों का विकास होता है। धर्म की सहायता से ही व्यक्ति सभ्य और सुसंस्कारिक बनता है। व्यक्ति में मनुष्य को मनुष्य समझने, सबको समान दृष्टि से देखने, सभी का कल्याण चाहने की प्रवृत्ति, समाज में फैली कुरीतियों, रूढढ़ियों और गलत परंपराओं का विरोध करने की शक्ति धर्म से आती है।
धर्म का एक प्रमुख गुण है-जोड़ना अर्थात् मनुष्य को मनुष्य के निकट ले जाना तथा उनमें मानवता का भाव पैदा करना। ऊँच-नीच, छुआछूत, साप्रदायिकता, कट्टरता, रूढ़िवादिता फैलाने वाले तत्व को धर्म की संज्ञा से अभिहित नहीं किया जा सकता है। धर्म का आचरण करने वाले व्यक्ति उसके प्रदर्शन के लिए किसी वाह्य चिह्न जनेऊ, तावीज़, दाढ़ी बढ़ाना, गेरुआ वस्त्र धारण करना, योग, प्राणायाम या अन्य धार्मिक प्रतीकों या आडंबरों का सहारा नहीं लेते हैं। वास्तव में धर्म तो व्यक्ति के अंतस्तल में छिपा रहता है। धर्म सूक्ष्म किंतु विशाल उद्देश्यों को समाहित किए वह विचारधारा है जो प्रत्येक मनुष्य के कल्याण की कामना करती है।
प्रश्न 3.
‘धर्म का रहस्य जानना सिर्फ़ धर्माचार्यों का काम नहीं, कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है, अपनी राय दे सकता है’-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
यह निर्विवाद सत्य है कि धर्म का रहस्य जानना सिर्फ धर्माचार्यों का काम नहीं है। इसे जानने और समझने की क्षमता और ज्ञान जिस किसी व्यक्ति में हो, उसे समझने एवं जानने का अवसर दिया जाना चाहिए, भले ही वह व्यक्ति समाज के किसी वर्ग से हो। धर्म किसी वर्ग या जाति विशेष की पुश्तैनी संपत्ति नहीं है, जिसका वह अघोषित उत्तराधिकारी बन बैठा है। इस वर्ग के मुट्ठी भर लोग इसका दुरुपयोग कर इसे दूसरों के शोषण का माध्यम बनाते हैं। वास्तव में कोई भी सक्षम व्यक्ति अपने स्तर पर इस रहस्य को जान सके, इसकी छूट होनी चाहिए। समाज के प्रत्येक वर्ग के छोटे-बड़े हर व्यक्ति को इसे जानने की छूट होनी चहिए ताकि कुछ विशेष वर्ग के द्वारा इसका दुरुपयोग न किया जा सके।
(ग) ढेले चुन लो –
प्रश्न 1.
समाज में धर्म संबंधी अंधविश्वास पूरी तरह व्याप्त है। वैज्ञानिक प्रगति के संदर्भ में धर्म, विश्वास और आस्था पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य उन्नति करते-करते भले ही आज इस वैज्ञानिक युग में चाँद पर पहुँच गया है, परंतु आज भी समाज में धर्म-संबंधी अंधविश्वास पूरी तरह फैला हुआ है। ऐसा लगता है कि यह अंधविश्वास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को उत्तराधिकार में मिलता है और अगली पीढ़ी को हस्तांतरित हो जाता है। अंधविश्वास के करण ही धर्म ने अपना वास्तविक स्वरूप और लक्ष्य खो दिया है।
धर्म के तथाकथित ठेकेदारों ने अपनी रोटी-रोजी और स्वार्थ-सिद्धि का साधन मानकर इसमें विकृति भर दी है। आज समाज में धर्म के प्रति आस्था-विश्वास भले ही कम हो, पर अंधविश्वासों के प्रति समाज की आस्था एवं विश्वास देखते ही बनता है। आज भी समाज के कुछ लोग मनोकामना पूर्ति के लिए तांत्रिकों की शरण में जाकर नरबलि, पशुबलि देते हैं। यह अंधविश्वास ही तो है। पत्थर की मूर्ति का दूध पीना, मूर्ति की औँखों से निकलते आँसू देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ना अंधविश्वास नहीं तो और क्या है।
प्रश्न 2.
अपने घर में या आस-पास दिखाई देने वाले किसी रिवाज़ या अंधविश्वास पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 13 सुमिरिनी के मनके
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
(क) बालक बच गया
प्रश्न 1.
‘बालक बच गया’ कहानी में वर्णित बालक के व्यक्तित्व के विषय में बताइए।
उत्तर :
‘बालक बच गया’ कहानी का बालक प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र था। उसकी आयु आठ वर्ष थी। उसे बड़े लाड़प्यार से नुमाइश में दिखाया गया। उसका चेहरा पीला था तथा आँखें सफ़ेद थीं। उसकी दृष्टि भूमि से नहीं उठती थी। बालक से उसकी शारीरिक और मानसिक आयु से ऊपर के प्रश्न पूछे जा रहे थे, जिनका जवाब बालक दिए जा रहा था।
प्रश्न 2.
सभा में लोग वाह-वाह क्यों कर रहे थे?
उत्तर :
भरी सभा में आठवर्षीय बालक से अत्यंत उच्चस्तरीय प्रश्न पूछे जा रहे थे, जिनका उत्तर देना उससे अधिक उम्र के बालकों के लिए भी संभव न था, पर बालक उनका सटीक जवाब अत्यंत कुशलता से दिए जा रहा था। इसी क्रम में जब उससे पूछा गया कि वह क्या करेगा तो उसने उत्तर दिया कि वह सारी उम्र लोकसेवा करेगा। उसके इस उत्तर तथा बुद्धिमानी-प्रदर्शन पर सभा ‘ वाह-वाह’ कर रही थी।
प्रश्न 3.
जब बच्चे को पुरस्कार माँगने को कहा गया तो बच्चे के भावों में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
जब बच्चे को कहा कि वह अपनी इच्छा से कुछ भी माँग ले। इस पर बालक सोचने लगा। पिता और अध्यापकों की सोच थी कि वह पुस्तक माँगेगा। बच्चे के मुख पर रंग बदल रहे थे। उसके हृदय में कृत्रिम तथा स्वाभाविक भावों में लड़ाई हो रही थी जो आँखों में स्पष्ट झलक रही थी, अंत में उसने लड्डू माँगा। यहाँ बालक के स्वाभविक भावों ने कृत्रिम भावों पर विजय प्राप्त कर ली और कृत्रिम भाव दबकर रह गए।
(ख) घड़ी के पुर्ज़े –
प्रश्न 1.
‘घड़ी के पुर्ज्जें में लेखक धर्म के संबंध में क्या कहना चाहता है? इससे आप कितना सहमत हैं?
उत्तर :
इसमें लेखक कहना चाहता है कि व्यक्ति को धर्म का केवल पालन नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे उन मान्यताओं तथा सिद्धांतों को आज के जीवन के संदर्भ में देखना चाहिए। धर्म की व्याख्या करना किसी एक समूह या व्यक्ति का अधिकार नहीं है। लेखक के इस विचार से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। धर्म पर एकाधिकार होने से एक व्यक्ति या वर्ग उसका दुरुपयोग करने लगता है, जिससे एक बड़ा वर्ग प्रभावित होता है।
प्रश्न 2.
आज के समय घड़ी के दृष्टांत से क्या बताया गया है?
उत्तर :
लेखक बताता है कि लोग घड़ी से समय जान सकते हैं। चाहें तो वे खुद समय देख लें। उससे भी आगे बढ़कर वे घड़ी को खोलकर उसके पुर्जें व्यवस्थित कर सकते हैं। उसी प्रकार आज लोग धर्म के बारे में किसी से पूछ सकते हैं। वे खुुद भी उसके बारे में जान सकते हैं। वे गलत सिद्धांतों को बदल भी सकते हैं तथा नए बना भी सकते हैं।
(ग) ढेले चुन लो –
प्रश्न 1.
‘दुर्लभ बंधु’ में कौन व्यक्ति जीतता है?
उत्तर :
‘दुर्लभ बंधु’ कृति में जो व्यक्ति लोहे की पेटी को छूता है, वही घुड़दौड़ का पहला इनाम पाता है।
प्रश्न 2.
वैदिक काल में स्नातक अपने जीवन-साथी का चुनाव कैसे किया करता था?
उत्तर :
वैदिक काल में स्नातक नहा-धोकर, माला पहनकर, सेज पर जोग होकर किसी कन्या के पिता के यहाँ पहुँच जाता था। वह उसे गौ भेंट करता था। फिर वह कन्या के सामने मिट्टी के कुछ ढेले रख देता तथा उनमें से एक उठाने को कहता। वह जिस मिट्टी के ढेले को उठाती, उसी के आधार पर वह कन्या विवाह के बाद शुभ होगी या अशुभ और उससे पैदा होने वाली संतान का भविष्य तय होता था।
प्रश्न 3.
मसान की मिट्टी के ढेलों की धूल के बारे में क्या धारणा है?
उत्तर :
वैदिक काल में युवा जब अपना जीवन-साथी चुनने कन्या के पिता के घर जाता था तो वह अपने साथ अन्य वस्तुओं के साथ विभिन्न स्थानों की मिट्टी के ढेले भी ले जाता था, जिनमें से एक कन्या को उठाना होता था। इनमें से मसान की मिट्टी के ढेले को हाथ लगाना अशुभ माना जाता है। यदि उसके ढेले उठाने वाली कन्या से शादी हो जाए तो घर भी मसान जैसा हो जाएगा। वह जन्म भर जलाती रहेगी।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
(क) बालक बच गया
‘बालक बच गया’ पाठ का उद्देश्य बताइए।
उत्तर :
‘बालक बच गया ‘ निबंध का मूल प्रतिपाद्य है-शिक्षा-ग्रहण की सही उम्र। लेखक मानता है कि हमें व्यक्ति के मानस के विकास के लिए शिक्षा को प्रस्तुत करना चाहिए, शिक्षा के लिए मनुष्य को नहीं। हमारा लक्ष्य है मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखना। मनुष्य बचा रहेगा तो वह समय आने पर शिक्षित किया जा सकेगा। लेखक ने अपने समय की शिक्षा-प्रणाली और शिक्षकों की मानसिकता को प्रकट करने के लिए अपने जीवन के अनुभव को हमारे सामने अत्यंत व्यावहारिक रूप में रखा है। लेखक ने इस उदाहरण से यह बताने की कोशिश की है कि शिक्षा हमें बच्चे पर लादनी नहीं चाहिए, बल्कि उसके मानस में शिक्षा की रुचि पैदा करने वाले बीज डाले जाएँ, ‘सहज पके सो मीठा होए’।
(ख) घड़ी के पुर्ज़े
‘समय पूछ लो और काम चला लो’ में निहित संदेश को आप समाज के लिए कितना उपयोगी मानते हैं?
उत्तर :
‘समय पूछ लो और काम चला लो’ के माध्यम से धर्माचायों ने समाज में यह धारणा फैला रखी है कि आम आदमी को धर्म के रहस्य जानने का अधिकार नहीं है। वे बनाए गए नियमों तथा विश्वासों का आँख मूँदकर पालन करें। यह धारणा समाज के लिए ज़रा भी उपयोगी नहीं है। ऐसा कहकर वे धर्म का तथाकथित ठेकेदार बने रहना चाहते हैं। वे अपनी रोज़ी-रोटी चलाने और दूसरों को मूर्ख बनाए रखने के लिए ऐसा करना चाहते हैं।
(ग) ढेले चुन लो
प्रश्न 1.
‘ढेले चुन लो’ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर :
‘ढेले चुन लो’ में लोक विश्वासों में निहित अंधविश्वासी मान्यताओं पर चोट की गई है। लेखक ने जीवन में बड़े फैसले अंधविश्वासों के वशीभूत होकर न लेने के लिए कहा है। अंधविश्वास के वशीभूत होकर लिए गए फैसले हितकारी ही होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। फिर ऐसा करके अँधेरे में तीर क्यों चलाया जाए। मनुष्य को यथार्थ स्वीकार करते हुए यथार्थवादी होकर अपने फैसले लेने चाहिए।
प्रश्न 2.
धर्माचार्य का धर्म के संबंध में आम लोगों के प्रति जो रुख रहा है, उसे स्पष्ट करते हुए बताइए कि आपकी दृष्टि में यह कितना उचित है।
उत्तर :
धर्माचार्य चाहते थे कि आम मनुष्य धर्म के बारे में उतना और वही जाने जितना वे सही या गलत अपनी सुविधानुसार बताना चाहते हैं। वे नहीं चाहते थे कि धर्म के बारे में कोई और गहराई से जाने-समझे, इसे वे अपनी तथाकथित प्रभुसत्ता के लिए खतरा मानते थे। वे वेद-शास्त्रों को अपने तक ही सीमित रखाना चाहते थे। उनके अनुसार आम आदमी को यह सब जानने का कोई हक़ नहीं है। उनके इस दृष्टिकोण को मैं पूर्णतया अनुचित मानता हूँ, क्योंकि वेद-शास्त्र तथा धार्मिक ग्रथथ किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं लिखे गए हैं।