Understanding the question and answering patterns through Geography Practical Book Class 12 Solutions in Hindi Chapter 1 आंकड़े-स्रोत और संकलन will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Practical Chapter 1 Question Answer in Hindi आंकड़े-स्रोत और संकलन
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए-
(i) एक संख्या अथवा लक्षण को जो मापन को प्रदर्शित करता है, कहते हैं-
(क) अंक
(ख) आँकड़े
(ग) संख्या
(घ) लक्षण
उत्तर:
(ख) आँकड़े
(ii) एकल आधार सामग्री एकमात्र माप है-
(क) तालिका
(ख) आवृत्ति
(ग) वास्तविक संसार
(घ) सूचना
उत्तर:
(ग) वास्तविक संसार
(iii) एक मिलान चिह्न में, फोर एंड क्रासिंग फिफ्थ द्वारा समूहीकरण को कहते हैं-
(क) फोर एंड क्रास विधि
(ख) मिलान चिक्त विधि
(ग) आवृत्ति अंकित विधि
(घ) समावेश विधि
उत्तर:
(क) फोर एंड क्रास विधि
(iv) ओजाइव एक विधि है जिसमें-
(क) साधारण आवृत्ति नापी जाती है।
(ख) संचयी आवृत्ति नापी जाती है।
(ग) साधारण आवृत्ति अंकित की जाती है।
(घ) संचयी आवृत्ति अंकित की जाती है।
उत्तर:
(ख) संचयी आवृत्ति नापी जाती है।
(v) यदि वर्ग के दोनों अंत आवृत्ति समूह में लिए गए हों, इसे कहते हैं-
(क) बहिष्कार विधि
(ख) समावेश विधि
(ग) चिह्ध विधि
(घ) सांख्यिकीय विधि
उत्तर:
(ख) समावेश विधि
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न (i) आंकड़ा और सूचना के बीच अंतर।
उत्तर:
आँकड़ा और सूचना में अन्तर निम्न प्रकार से है –
आँकड़ा | सूचना |
इनको संख्याओं में लिखा जाता है। | इनको संख्याओं में लिखना आवश्यक नहीं है। |
इनको मापन में प्रदर्शित किया जाता है। | यह किसी प्रश्न के अर्थपूर्ण उत्तर अथवा अर्थपूर्ण उद्दीपक का एक रूप है। |
संख्यात्मक सूचना आँकड़ा कहलाता है। | नवीनतम जानकारी सूचना कहलाती है। |
प्रश्न (ii) आँकड़ों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आँकड़े (Data)-आँकड़े सामान्यत: ऐसी संख्या होती हैं, जो यथार्थ विश्व के मापन को प्रदर्शित करती हैं। अन्य शब्दों में, संख्यात्मक सूचना आँकड़ा कहलाती है।
प्रश्न (iii) एक तालिका में पाद् टिप्पणी से क्या लाभ है?
उत्तर:
एक तालिका में दी गई पाद टिप्पणी (Foot Note) का सबसे प्रमुख लाभ यह होता है कि इससे हमें व्यक्ति स्रोतों से एकत्रित आँकड़ों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न (iv) आंकड़ों के प्राथमिक स्रोतों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब आंकड़े प्रथम बार व्यक्तिगत रूप से अथवा व्यक्तियों के समूह, संस्था अथवा संगठन द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, तब वह आंकड़ों के प्राथमिक स्रोत कहलाते हैं। अतः प्राथमिक आंकड़े अध्ययनकर्ता द्वारा प्रारम्भ से अन्त तक नए सिरे से एकत्रित किए जाते हैं।
प्रश्न (v) द्वितीयक आंकड़ों के पांच स्रोत बताइए।
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़ों के स्रोत-इनके निम्नलिखित स्रोत हैं –
(1) सरकारी प्रकाशन
(2) अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन
(3) अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन
(4) निजी प्रकाशन
(5) समाचार पत्र और पत्रिकाएँ।
प्रश्न (vi) आवृत्ति वर्गीकरण की अपवर्ती विधि क्या है?
उत्तर:
अपवर्ती विधि में एक वर्ग की उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा होती है। उदाहरणस्वरूप-एक वर्ग $(10-20)$ की उच्च सीमा 20 है, जो कि अगले वर्ग (20-30) की. निम्न सीमा है। इस प्रकार 20 दोनों वर्गों में प्रदर्शित है, परन्तु कोई भी अवलोकन जिसका मूल्य 20 है, वह उच्च सीमा (10-20) वाले वर्ग के स्थान पर निम्न सीमा (20-30) वाले वर्ग में ही रखा जाएगा। अतः वर्ग में इस प्रकार मदों की संख्याओं अर्थात् आवृत्ति को रखने की विधि अपवर्ती विधि कहलाती है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न (i) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों की चर्चा कीजिए जहाँ से द्वितीयक आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं।
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़ों के प्राप्ति स्रोत-जब आंकड़ों को, किसी प्रकाशित और अप्रकाशित साधनों के माध्यम से एकत्र किया जाता है, तब वह आंकड़े द्वितीयक आंकड़े कहलाते हैं।
(1) राष्ट्रीय अभिकरणों के अन्तर्गत सरकारी प्रकाशन और सरकारी प्रलेख से प्राप्त द्वितीयक आँकड़े शामिल किए जाते हैं।
(i) सरकारी प्रकाशन-इसके अन्दर वे सब प्रकाशन शामिल हैं, जिन्हें किसी देश की केन्द्रीय या राज्य सरकार के विभिन्न विभाग या मंत्रालय प्रकाशित करते हैं। भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा प्रकाशित भारत की जनगणना, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण की रिपोर्ट, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मौसम रिपोर्ट, राज्य सरकारों द्वारा प्रकाशित सांख्यिकीय सारांश और विभिन्न आयोगों द्वारा प्रकाशित आवधिक रिपोर्ट सरकारी प्रकाशन के उदाहरण हैं।
(ii) सरकारी प्रलेख-ये प्रलेख सरकार के विभिन्न स्तरों पर अप्रकाशित रिकॉर्ड के रूप में तैयार किए और अनुरक्षित रखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, गाँव के स्तर पर, राजस्व अभिलेख गाँव के पटवारियों के द्वारा बनाए जाते हैं, जो एक गाँव स्तर की सूचना का महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन द्वारा द्वितीयक आँकड़े प्राप्त किए जाते हैं। इसके अन्तर्गत वार्षिकी, संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अभिकरणों जैसे-संयुक्त राष्ट्र अभिकरण, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच.ओ.), खाद्य व कृषि परिषद् (एफ.ए.ओ.) आदि द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट और मोनोग्राफ सम्मिलित किए जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन जो आवधिक छपते हैं, वे हैं-डैमोग्राफिक इयर बुक, स्टेटिस्टीकल इयर बुक और मानव विकास रिपोर्ट।
प्रश्न (ii) सूचकांक का क्या महत्व है? सूचकांक की परिकलन की प्रक्रिया को बताने के लिए एक उदाहरण लीजिए और परिवर्तनों को दिखाइए।
उत्तर:
सूचकांक का महत्व-सूचकांक एक सांख्किय माप होता है। चर अथवा समय, भौगोलिक स्थिति या दूसरी विशेषताओं के संदर्भ में संशोधित चरों के सम्बन्धित समूह में परिवर्तन दर्शाने के लिए सूचकांक की कल्पना की जाती है। सूचकांक समय के साथ हुए परिवर्तनों की माप बताने के साथ-साथ विभिन्न स्थानों, उद्योगों, नगरों अथवा देशों की आर्थिक दशाओं की तुलना भी करता है। इसका उपयोग अर्थशास्त्र और व्यवसाय में लागत और मात्रा में आए परिवर्तन को देखने के लिए भी किया जाता है।
सूचकांक का परिकलन-सूचकांक के परिकलन के लिए ‘साधारण समुच्चय विधि’ सर्वाधिक उपयोगी होती है। इस विधि में निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है –
\(\frac{\Sigma q_1}{\Sigma q_0} \times 100\)
यहाँ ∑q1 = वर्तमान वर्ष के उत्पादन का योग
∑q 0= आधार वर्ष के उत्पादन का योग।
इस विधि में साधारणतया आधार वर्ष का मूल्य 100 लिया जाता है और उसके आधार पर ही सूचकांक की गणना की जाती है।
उदाहरण-निम्नलिखित तालिका भारत में लौहअयस्क के उत्पादन को दर्शाती हैं। इसमें 1970-71 को आधार वर्ष मानते हुए 1970-71 से 2000-01 तक के सूचकांकों में परिवर्तन को दर्शाया गया है।
क्रियाकलाप
प्रश्न 1.
भूगोल की 35 विद्यार्थियों की कक्षा में निम्नलिखित अंक, 10 अंक के यूनिट टेस्ट में प्राप्त किए गए हैं-
1,0,2,3,4,5,6,7,2,3,4,0,2,5,8,4,5,3,6,3,2,7,6,5,4,3,7,8,9,7,9,4,5,4,3
आंकड़ों को संचयी आवृत्ति वितरण के रूप में प्रस्तुत करिए।
उत्तर:
उपर्युक्त दिए गए अंकों के आधार पर वर्गअन्तराल 2 मानने पर प्रत्येक वर्ग में आने वाले अंकों की संख्या निम्न प्रकार से होगी –
इस आधार पर संचयी आवृत्ति होगी –
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
1. सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से सम्बन्धित अनुसंधान कार्यों में सर्वाधिक उपयोगी विधि – निम्नलिखित में से कौनसी है?
(क) व्यक्तिगत प्रेक्षण
(ख) साक्षात्कार
(ग) प्रश्नावली
(घ) अनुसूची
उत्तर:
(ख) साक्षात्कार
2. सूचकांक ज्ञात करने की सर्वप्रमुख विधि कौनसी है?
(क) साधारण समुच्चय विधि
(ख) फोर एंड क्रास विधि
(ग) अपवर्ती विधि
(घ) समावेशी विधि
उत्तर:
(क) साधारण समुच्चय विधि
3. फोर एंड क्रास विधि (मिलान चिह्न विधि) का
सर्वप्रमुख उपयोग क्या है?
(क) आंकड़ों के संग्रह में
(ख) आंकड़ों को वर्गीकृत करने में
(ग) सूचकांक ज्ञात करने में
(घ) ओजाइव वक्र बनाने में
उत्तर:
(ख) आंकड़ों को वर्गीकृत करने में
4. श्रृंखला – श्रेणी में मदों अथवा व्यक्तियों की संख्या कहलाती है –
(क) आंकड़े
(ख) आवृत्ति
(ग) संचयी आवृत्ति
(घ) वर्ग अन्तराल
उत्तर:
(ख) आवृत्ति
5. समूह अथवा वर्ग बनाने के लिए सामान्यतः किस विधि का प्रयोग किया जाता है-
(क) मिलान चिह्न विधि
(ख) अपवर्ती विधि
(ग) समावेशी विधि
(घ) ख एवं ग दोनों
उत्तर:
(घ) ख एवं ग दोनों
6. आवृत्तियों के वितरण को दर्शाने वाला ग्राफ क्या कहलाता है?
(क) आवृत्ति बहुभुज
(ख) हीदरग्राफ
(ग) क्लाइमोग्राफ
(घ) बहुरेखीय ग्राफ
उत्तर:
(क) आवृत्ति बहुभुज
7. संचयी आवृत्ति द्वारा प्राप्त किये जाने वाले वक्र को क्या कहते हैं?
(क) लॉरेंज वक्र
(ख) डेमोग्राफिक वक्र
(ग) ओजाइव वक्र
(घ) हिप्सोमैट्रिक वक्र
उत्तर:
(ग) ओजाइव वक्र
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
आंकड़ों को किन-किन इकाइयों के आधार पर एकत्र किया जाता है?
उत्तर:
आंकड़े प्राय: प्रशासनिक इकाइयों, जैसे-गाँव, ब्लॉक, जिला, नगर, राज्य आदि के आधार पर एकत्र किए जाते हैं।
प्रश्न 2.
‘आंकड़ों का विश्लेषण’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आंकड़ों की गणना करना, इनको सारणीबद्ध करना और फिर संख्यात्मक रूप देना ही आंकड़ों का विश्लेषण कहलाता है।
प्रश्न 3.
आंकड़ों के संक्षिप्तीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आंकड़ों को आरेख, ग्राफ तथा मानचित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करना ही आंकड़ों का संक्षिप्तीकरण कहलाता है।
प्रश्न 4.
भौगोलिक आंकड़ों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भौगोलिक आंकड़े संख्याओं तथा सूचना के समूह का विवरण होते हैं। यह विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे- उच्चावच, चट्टानें, जलवायु, वनस्पति आदि ।
प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित किन्हीं तीन महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स के नाम बताइए ।
उत्तर:
डेमोग्राफिक इयर बुक (जनसांख्यिकीय वार्षिक पत्रिका), स्टेटिस्टीकल इयर बुक (सांख्यिकीय वार्षिक पत्रिका) और मानव विकास रिपोर्ट।
प्रश्न 6.
निरपेक्ष आंकड़ों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर;
जब आंकड़ों को अपने मूल रूप में पूर्णांक की तरह प्रस्तुत किया जाता है, तब वह निरपेक्ष अथवा कच्चे आंकड़े कहलाते हैं।
प्रश्न 7.
साधारण आवृत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
निरपेक्ष आंकड़ों को वर्गीकृत करते समय प्रत्येक वर्ग में प्रदर्शित की जाने वाली व्यक्तियों अथवा मदों की संख्या साधारण आवृत्ति कहलाती है।
प्रश्न 8.
Ef’ के द्वारा किसे प्रदर्शित किया जाता है? उत्तर- 21 दी गई श्रेणी में व्यक्तिगत अवलोकनों के कुल योग को दर्शाता है। यह N के बराबर होता है।
प्रश्न 9.
आवृत्ति बहुभुज का क्या उपयोग है?
उत्तर:
आवृत्तियों के वितरण को दर्शाने वाला ग्राफ आवृत्ति बहुभुज कहलाता है। यह दो या दो से अधिक आवृत्ति वितरण की तुलना में सहायक होता है।
प्रश्न 10.
ओजाइव क्या है?
उत्तर:
संचयी आवृत्ति द्वारा प्राप्त किए गए वक्र को ओजाइव कहते हैं।
प्रश्न 11. मिलान या टैली चिह्न किसे कहते हैं?
उत्तर:
आवृत्ति वितरण में चर मूल्यों की संख्या (आवृत्ति) की गणना में खड़ी व तिरछी रेखाओं को मिलान या टैली चिह्न कहते हैं।
प्रश्न 12.
साक्षरता दर ज्ञात करने का सूत्र बताइये ।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
आंकड़े भौगोलिक विश्लेषण में किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
अथवा
आंकड़ों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आंकड़ों की आवश्यकता – आंकड़े विशेषतः यथार्थ विश्व के मापन को प्रदर्शित करने वाली संख्याएं होती हैं। आंकड़े साधारणतः प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं, जो किसी भी क्षेत्र के भौगोलिक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
इस प्रकार किसी क्षेत्र के शस्य (फसल) प्रारूप के –
अध्ययन के लिए, फसल के अंतर्गत क्षेत्र, फसल की उत्पादकता और उत्पादन, सिंचित क्षेत्र, वर्षा की मात्रा और उर्वरक, कीटनाशक और पीड़कनाशी के प्रयोग से संबंधित आंकड़ों तथा किसी क्षेत्र में एक नगर के विकास के अध्ययन के लिए कुल जनसंख्या घनत्व, प्रवासियों की संख्या, लोगों के व्यवसाय, उनके वेतन, उद्योग, यातायात और संचार से संबंधित आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त परिघटनाओं के वितरण और वृद्धि को सारणीबद्ध रूप में आंकड़ों के द्वारा ही स्पष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आंकड़े भौगोलिक विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2.
आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण को समझाइए
उत्तर:
आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण – आंकड़ों का एकत्रीकरण किसी भी क्षेत्र के आकार और उससे सम्बन्धित तथ्यों को जानने के लिए आवश्यक होता है। चूंकि भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में परिघटनाओं के सांद्रण में भिन्नता पाई जाती है। अतः किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या, वन, यातायात व संचार नेटवर्क आदि को स्थान और समय की अपेक्षा आंकड़ों के उपयोग से आसानी से समझाया जा सकता है। अतः विभिन्न चरों के बीच संबंधों की व्याख्या करने में गुणात्मक विश्लेषण की तुलना में मात्रात्मक विश्लेषण अधिक उपयोगी हैं।
आंकड़ों के एकत्रण और संकलन के आरंभ से उनके सारणीयन, संगठन, क्रमबद्धता और विश्लेषण तक परिशुद्ध सांख्यिकीय तकनीकों का ही प्रयोग किया जाता है क्योंकि विश्लेषणात्मक साधन और तकनीकें विषय को और अधिक तार्किक बनाने और परिशुद्ध निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं।
प्रश्न 3.
साक्षात्कार विधि में अपनाई जाने वाली सावधानियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि में अपनाई जाने वाली सावधानियाँ – प्राथमिक आंकड़ों को प्राप्त करने की इस विधि में शोधकर्ता उत्तर देने वाले व्यक्ति से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करके परस्पर वार्तालाप के द्वारा आंकड़े या सूचना एकत्रित करता है। साधारणतः साक्षात्कारकर्ता को क्षेत्र . के लोगों से साक्षात्कार करते समय निम्नलिखित सावधानियों को अपनाना चाहिए-
- लोगों से साक्षात्कार द्वारा जिन सूचनाओं को प्राप्त करना है, उनकी पहले ही परिशुद्ध सूची तैयार कर लेनी चाहिए।
- साक्षात्कारकर्ताओं को सर्वेक्षण के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।
- प्रश्नों की भाषा साधारण और शिष्ट होनी चाहिए, जिससे उत्तर देने वाला आसानी से प्रश्नों से संबंधित सूचना दे सके।
- आत्मसम्मान और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले प्रश्न नहीं पूछने चाहिए।
- साक्षात्कारकर्त्ता द्वारा उत्तर देने वाले को अपना बहुमूल्य समय प्रदान करने के लिए धन्यवाद और कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए।
प्रश्न 4.
प्रश्नावली और अनुसूची में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नावली और अनुसूची में अन्तर –
प्रश्नावली | अनुसूची |
प्रश्नावली में उत्तर स्वयं सूचनादाता के द्वारा भरे जाते हैं। | अनुसूची में लिखे प्रश्नों के उत्तर किसी परिगणक ( enumerator) के द्वारा सूचना देने वाले सूचनादाता से पूछकर भरे जाते हैं। |
प्रश्नावली द्वारा सूचना केवल शिक्षित सूचनादाताओं से ही प्राप्त की जा सकती है। | अनुसूची के द्वारा शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्रकार के सूचनादाताओं से सूचना या आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। |
प्रश्नों के माध्यम से लोगों के विचार को एकत्र करना प्रश्नावली कहलाता है। | जाँच-पड़ताल से जुड़े प्रश्न अनुसूची कहलाते हैं। |
प्रश्न 5.
द्वितीयक आंकड़ों से सम्बन्धित अप्रकाशित साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़ों के अप्रकाशित साधन- वह आंकड़े, जिन्हें किसी अनुसंधानकर्ता या प्रयोगकर्ता द्वारा स्वयं एकत्रित न करके किसी प्रकाशित अथवा अप्रकाशित स्त्रोत से प्राप्त किया जाता है, द्वितीयक आंकड़े कहलाते हैं।
द्वितीयक आंकड़ों को प्राप्त करने के अप्रकाशित साधन निम्न प्रकार से हैं –
(1) सरकारी प्रलेख यह प्रलेख सरकार के विभिन्न स्तरों पर अप्रकाशित रिकॉर्ड के रूप में तैयार किए और अनुरक्षित रखे जाते हैं। जैसे- ग्रामीण स्तर पर राजस्व अभिलेख गांव के पटवारियों के द्वारा बनाए जाते हैं, जो कि एक ग्रामीण स्तर की सूचना का एक महत्वपूर्ण साधन है।
(2) अर्द्ध-सरकारी प्रलेख – इन प्रलेखों में, विभिन्न नगर निगमों, जिला परिषदों और लोक सेवा विभागों द्वारा तैयार और अनुरक्षित की गई आवधिक रिपोर्ट और विकास योजनाएं सम्मिलित की जाती हैं।
(3) निजी प्रलेख – इसके अंतर्गत विभिन्न कंपनियों, व्यापार संघों, विभिन्न राजनैतिक और अराजनैतिक संगठनों और निवासीय कल्याण संघों के अप्रकाशित रिपोर्ट और रिकॉर्ड को सम्मिलित करते हैं।
प्रश्न 6.
आंकड़ों के सारणीयन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आंकड़ों का सारणीयन-आंकड़े प्राथमिक और द्वितीयक साधनों के माध्यम से एकत्र किए जाते हैं। इस प्रकार एकत्र किए गए आंकड़े प्रारम्भ में बहुत कम समझ में आने वाली सूचनाओं के एक उलझे समूह के रूप में होते हैं। आंकड़ों का यह स्वरूप कच्चा आंकड़ा या निरपेक्ष आंकड़ा कहलाता है। अतः अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालने और उपयोग में लाने के लिए इन अपरिष्कृत कच्चे आंकड़ों को सारणीबद्ध करने की आवश्यकता होती है।
अतः आंकड़ों को सरल रूप में समझने तथा उपयुक्त निष्कर्ष निकालने हेतु सारणीबद्ध किया जाता है। इस प्रकार सारणी आंकड़ों को संक्षिप्त करने और सरल रूप में प्रस्तुत करने की एक विधि है। इसमें आंकड़ों को कॉलम और पंक्तियों में सुव्यवस्थित किया जाता है, जिससे पाठकों को वांछित सूचना शीघ्र मिल जाती है। इस प्रकार सारणी आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण को आसान और सरल बनाती है तथा विश्लेषक के लिए कम स्थान में आंकड़ों के विशाल समूह के प्रस्तुतीकरण को संभव बनाती है।
प्रश्न 7.
आवृत्ति वर्गीकरण की समावेशी विधि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समावेशी विधि- आवृत्ति को वर्गीकृत करते समय समूह या वर्गों को बनाने के लिए समावेशी विधि प्रयोग में लाई जाती है। इस विधि में एक मूल्य जो वर्ग की उच्च सीमा के मूल्य के समान होता है, उसे उसी वर्ग में रखा जाता है। इसी कारण इस विधि को समावेशी विधि कहा जाता है। इस विधि में वर्गों को अलग प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है। इस विधि में वर्ग की उच्च सीमा में अगले वर्ग की निम्न सीमा से प्रायः 1 का अंतर होता है, जैसे- 09, 10-19 आदि। इस प्रकार इस विधि में भी वर्ग का विस्तार 10 इकाइयों तक होता है। इस विधि में उच्च और निम्न दोनों सीमाएं आवृत्ति वितरण को प्राप्त करने के लिए समाविष्ट की जाती हैं।
प्रश्न 8.
आंकड़ों का संग्रह और प्रस्तुतीकरण को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
आंकड़ों का संग्रह और प्रस्तुतीकरण- आंकड़ों का संग्रह, सारणीयन और सारणी रूप में प्रस्तुतीकरण सामान्यतः निरपेक्ष रूप से प्रतिशत में अथवा संकेत सूची के रूप में होता है।
(1) निरपेक्ष आंकड़ों के रूप में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोत से प्राप्त आंकड़ों को जब अपने मूल रूप में पूर्णांक की तरह प्रस्तुत किया जाता है, तब वह निरपेक्ष आंकड़े या कच्चे आंकड़े या अपरिष्कृत आंकड़े कहलाते हैं। जैसे – एक देश अथवा राज्य की कुल जनसंख्या, एक फसल अथवा एक विनिर्माण उद्योग का कुल उत्पादन आदि ।
(2) प्रतिशत या अनुपात कई बार आंकड़ों को अनुपात अथवा प्रतिशत रूप में सारणीबद्ध किया जाता है, जो कि एक सामान्य प्राचल से परिकलित होते हैं, जैसे- साक्षरता दर अथवा जनसंख्या की वृद्धि दर कृषि उत्पादों अथवा औद्योगिक उत्पादों का प्रतिशत आदि ।
प्रश्न 9.
आंकड़ों के वर्गीकरण के प्रमुख चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
आंकड़ों के वर्गीकरण के चरण- सामान्यतया वर्गीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आंकड़ों को 1. उनके एक जैसे गुण के आधार पर समान वर्गों में या अलग गुणों के आधार पर अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है। इससे आंकड़ों को सरल रूप में समझने में मदद मिलती है।
साधारणतया आंकड़ों के वर्गीकरण के अग्रलिखित मुख्य चरण होते हैं –
- समय प्रदेश, गुण, मात्रा आदि के आधार पर सर्वप्रथम आंकड़ों के वर्ग बनाना।
- वर्ग बनाने के उपरान्त आंकड़ों का शुद्ध रूप में सारणीबद्ध करना।
- सारणीकरण के बाद उपयुक्त सांख्यिकीय तकनीकों का प्रयोग करते हुए आंकड़ों को संसाधित करना ।
प्रश्न 10.
आंकड़ों के प्रक्रमण से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आंकड़ों के प्रक्रमण से आशय आंकड़े मुख्यतः प्राथमिक और द्वितीयक साधनों से प्राप्त किए जाते हैं। यह आंकड़े प्रारंभ में बहुत कम समझ में आने वाली सूचनाओं के एक उलझे समूह के रूप में होते हैं। इस कारण आंकड़ों का यह मूल स्वरूप कच्चा आंकड़ा या निरपेक्ष आंकड़ा कहलाता है। इस प्रकार प्राप्त कच्चे आंकड़ों का प्रक्रमण करने के लिए चयनित वर्गों में उनके सारणीयन और वर्गीकरण की आवश्यकता होती है। चूंकि प्रारंभ में प्राप्त आंकड़े अवर्गीकृत होते हैं, अतः सबसे पहले इन अपरिष्कृत आंकड़ों को वर्गीकृत किया जाता है। वर्गीकृत करने के पश्चात् इन आंकड़ों को उपयुक्त सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग करके सारणीबद्ध करते हैं। इसके कारण आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण आसान और तुलना सरल हो जाती है।
निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
आंकड़ों के वर्गीकरण से क्या अभिप्राय है? आंकड़ों को वर्गीकृत करने की फोर एंड क्रास विधि मिलान चिह्न को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर:
आंकड़ों का वर्गीकरण प्राथमिक अथवा द्वितीयक साधनों से प्राप्त हुए आंकड़े अपने प्रारम्भिक रूप में बहुत कम समझ में आने वाली सूचनाओं के एक उलझे समूह के रूप में होते हैं। इन आंकड़ों को सरल रूप में समझने के लिए विभिन्न वर्गों में रखा जाता है। सामान्यतः वर्गीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आंकड़ों को उनके एक जैसे गुण के आधार पर समान वर्गों में तथा अलग गुणों के आधार पर अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है।
अतः निरपेक्ष या कच्चे आंकड़ों के वर्गीकरण के लिए श्रेणियों की संख्याओं को निर्धारित करना होता है। इन श्रेणियों में अपरिष्कृत आंकड़े अपने अंतराल के साथ वर्गीकृत किए जाते हैं। सामान्यतः वर्ग अंतराल का चुनाव और वर्गों की संख्या, अपरिष्कृत आंकड़ों के परिसर और वर्गीकरण के उद्देश्यों पर निर्भर करते हैं। आंकड़ों को इन वर्गों में आरोही क्रम (बढ़ते रूप में) या अवरोही क्रम (घटते क्रम में) में लिखा जाता है।
फोर एंड क्रास विधि- इसे मिलान चिह्न विधि या बारंबारता बंटन विधि भी कहा जाता है। इस विधि में सर्वप्रथम दिए गए आंकड़ों के आधार पर वर्गों की संख्या और प्रत्येक वर्ग का वर्ग अंतराल निश्चित करने के बाद निरपेक्ष / कच्चे आंकड़ों को वर्गों में बांटा जाता है। सबसे पहले वर्ग की प्रत्येक इकाई के लिए, जिसके अन्तर्गत वह आता है, एक मिलान चिह्न निर्धारित करते हैं। यदि किसी वर्ग में चर मूल्यों की आवृत्तियों की संख्या 5 है तो उस वर्ग के सामने चार खड़ी रेखाएं खींचकर एक रेखा उनको काटती हुई (II) बनाते हैं।
उदाहरण – नीचे विज्ञान विषय के 36 विद्यार्थियों के प्राप्तांक दिए गए हैं-
62, 34, 36, 47, 49, 47, 47, 56, 28, 45, 38, 28, 61, 29, 48, 36, 50, 31, 61, 46, 32, 40, 43, 49, 48, 41, 53, 36, 37, 46, 30, 34, 43, 50, 60, 39
इस आधार पर मिलान चिह्न अग्र प्रकार से होंगे-
प्रश्न 2.
आवृत्ति वितरण से आप समझते हैं? आवृत्तियों के प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
आवृत्ति वितरण से आशय किसी समग्र में प्रदर्शित विभिन्न चर मूल्यों के समक्ष आवृत्तियों का क्रम- विन्यास आवृत्ति वितरण कहलाता है, अर्थात् चर मूल्यों के अनुसार आवृत्तियों के विन्यास को आवृत्ति वितरण कहते हैं। इससे एक चर के विभिन्न मदों के वितरण का पता चलता है।
आवृत्ति के प्रकार – आवृत्तियों को सामान्यतः साधारण और संचयी आवृत्तियों में वर्गीकृत किया जाता है –
(1) साधारण आवृत्ति इसे “f” द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह प्रत्येक वर्ग के चरों / व्यक्तियों / मदों की संख्या को प्रदर्शित करती है। सभी वर्गों के लिए दी गई आवृत्तियों का योग, दी गई श्रेणी में व्यक्तिगत अवलोकनों या पदों के कुल योग के बराबर होता है। इसे ∑f = N की तरह व्यक्त करते हैं।
(2) संचयी आवृत्ति – इस आवृत्ति को Cf के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसे प्रत्येक वर्ग में दी गई क्रमिक सामान्य आवृत्ति को पहले वाले योग के साथ जोड़कर प्राप्त किया जाता है। संचयी आवृत्ति N अथवा EF के बराबर होती है।
उदाहरण – निम्नलिखित तालिका एक टैस्ट में 40. विद्यार्थियों के प्राप्तांक दर्शाती है –
45, 40, 31, 57, 32, 29, 54, 28, 37, 49, 39, 36, 35, 55, 66, 28, 68, 28, 56, 69, 59, 52, 61, 47, 64, 42, 49, 57, 26, 36, 38, 69, 45, 37, 47, 44, 52, 41, 48, 49
उपर्युक्त तालिका के आधार पर साधारण आवृत्ति या बारम्बारता तथा संचयी आवृत्ति निम्न प्रकार से होगी –
प्रश्न 3.
नीचे दी गई सारणी के आधार पर आवृत्ति वर्गीकरण की विधियों को समझाइए।
सारणी : भूगोल विषय में 60 विद्यार्थियों के प्राप्तांक
उत्तर:
आवृत्ति वर्गीकरण की विधियाँ- सामान्यतः
वर्ग अन्तराल के आधार पर आवृत्तियों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है –
(1) अपवर्ती विधि – इस विधि में एक वर्ग की ऊपरी सीमा, दूसरे वर्ग की निचली सीमा होती है जैसे-एक वर्ग (20-30) की उच्च सीमा 30 है, जो कि अगले वर्ग (30-40) की निम्न सीमा है। अतः 30 दोनों वर्गों में प्रदर्शित है, परन्तु कोई भी अवलोकन या पद जिसका मूल्य 30 है, को उच्च सीमा वाले वर्ग के स्थान पर निम्न सीमा वाले वर्ग में ही रखा जायेगा अर्थात् किसी भी वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर मूल्य की इकाई उसी वर्ग में सम्मिलित नहीं की जाती बल्कि उसे अगले वर्ग में सम्मिलित करते हैं। इसी कारण इस विधि को अपवर्ती विधि कहा जाता है।
अतः उपर्युक्त सारणी के आधार पर अपवर्ती विधि से आवृत्तियों का वितरण निम्न प्रकार से होगा –
इस प्रकार स्पष्ट है कि अपवर्ती विधि में वर्गों की निम्नलिखित प्रकार से व्याख्या की गई है-
प्रथम वर्ग में 0 और 10 से नीचे की आवृत्ति अर्थात् मदों की संख्याएं द्वितीय वर्ग में 10 और 20 से नीचे की आवृत्ति तृतीय वर्ग में 20 और 30 से नीचे की आवृत्ति प्रदर्शित की गई है।
(2) समावेशी विधि – इस विधि के अन्तर्गत एक वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर मूल्य की इकाई को उसी वर्ग में सम्मिलित किया जाता है, इसलिए इसे समावेशी विधि कहते हैं। इस विधि में साधारणतया एक वर्ग की उच्च सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निम्न सीमा में 1 का अंतर होता है। इस विधि में भी वर्ग का विस्तार सामान्यतः 10 इकाइयों तक होता है। उदाहरण के लिए 40-49 वर्ग में 40, 41, 42, 43, 44, 45, 46, 47, 48 और 49 के मानों को सम्मिलित किया जाता है, जो कुल मिलाकर 10 ही हैं। अतः इस विधि में उच्च और निम्न दोनों सीमाएं आवृत्ति वितरण को प्राप्त करने के लिए समाविष्ट की जाती हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त दी गई सारणी के आधार पर समावेशी विधि से आवृत्तियों का वितरण निम्न प्रकार से होगा –
प्रश्न 4.
आवृत्ति बहुभुज से आप क्या समझते हैं? नीचे दी गई सारणी के आधार पर आवृत्ति बहुभुज की रचना कीजिए।
उत्तर:
आवृत्ति बहुभुज से आशय वर्गीकरण की अपवर्ती विधि एवं समावेशी विधि से ज्ञात किए गए आवृत्ति / बारंबारता के आंकड़ों को मूल रूप में अथवा प्रतिशत में बदल कर आलेख (ग्राफ) के द्वारा निरूपित किया जा सकता है। इसमें सर्वप्रथम ग्राफ पेपर में क्षैतिज अक्ष पर वर्गान्तराल तथा ऊर्ध्वाधर अक्ष पर आवृत्ति (विद्यार्थियों की संख्या) को दिखाकर दण्ड आरेख बनाया जाता है।
इसके पश्चात् आरेख में निर्मित दण्डों की ऊपरी भुजा के मध्य बिन्दुओं को सीधी रेखाओं के द्वारा मिला दिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त आरेख आवृत्ति बहुभुज कहलाता है। इसे बारम्बारता बहुभुज भी कहा जाता है। अतः आवृत्तियों के वितरण को प्रदर्शित करने वाला ग्राफ आवृत्ति बहुभुज कहलाता है।
यह ग्राफ दो या दो से अधिक आवृत्ति वितरण की तुलना में सहायक होता है। आवृत्ति बहुभुज के निर्माण के लिए अर्थात् आवृत्ति बहुभुज के आलेखी निरूपण में विशेषतः साधारण आवृत्ति का उपयोग किया जाता है। आवृत्ति बहुभुज का आरेखी निरूपण- प्रश्नानुसार सारणी में दिए गए वर्ग अन्तराल विद्यार्थियों के प्राप्तांक को तथा आवृत्ति विद्यार्थियों की संख्या को प्रदर्शित करती है।
अतः उपर्युक्त विवरण के आधार पर आवृत्ति बहुभुज निम्न प्रकार का होगा –
प्रश्न 5.
‘ओजाइव’ किसे कहते हैं? निम्नलिखित तालिका के आधार पर ओजाइव निर्माण की कमतर विधि और अधिकतर विधि की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
ओजाइव से आशय आवृत्ति वर्गीकरण की अपवर्ती विधि तथा समावेशी विधि से प्राप्त संचयी आवृत्ति के आंकड़ों को मूल रूप में अथवा प्रतिशत में बदलकर आलेख के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। जब ग्राफ पेपर में क्षैतिज अक्ष पर वर्गान्तर तथा ऊर्ध्वाधर अक्ष पर संचयी आवृत्ति के मूल्य लिखकर कोई आलेख खींचा जाता है, तब वह आलेख ओज़ाइव कहलाता है। चूंकि यह वक्र संचयी आवृत्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है, इस कारण इसे ‘संचयी आवृत्ति वक्र’ भी कहते हैं। ओजाइव का निर्माण साधारणतया कमतर विधि या अधिकतर विधि के द्वारा किया जाता है।
ओजाइव निर्माण की विधियाँ निम्न प्रकार से हैं –
(i) कमतर विधि इस विधि में वर्गों की उच्च सीमा से आलेख निर्माण शुरू करते हैं। इसमें पिछली आवृत्ति को अगले वर्ग की आवृत्ति से जोड़ते जाते हैं। जब इन आवृत्तियों को ग्राफ में अंकित किया जाता है, तो एक उभरता हुआ वक्र प्राप्त होता है। प्रश्नानुसार दर्शाये गये गणित विषय के 60 विद्यार्थियों के प्राप्तांक के आधार पर कमतर विधि ( less than method) से निर्मित सारणी निम्न प्रकार से होगी –
कमतर विधि से प्राप्त संचयी आवृत्ति के आधार पर ओजाइव वक्र निम्न प्रकार का होगा –
(ii) अधिकतर विधि – इस विधि में आलेख निर्माण वर्ग की निम्न सीमा से शुरू करते हैं। इसमें संचयी आवृत्ति से प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति को घटा देते हैं। जब इन आवृत्तियों को ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाता है तब एक गिरता हुआ वक्र प्राप्त होता है। तालिका में दिए गए गणित विषय के 60 विद्यार्थियों के प्राप्तांक के आधार पर अधिकतर विधि से निर्मित सारणी निम्न प्रकार से होगी –
इस प्रकार प्राप्त संचयी आवृत्ति के आधार पर ओजाइव वक्र निम्न प्रकार से बनेगा-
इस प्रकार प्राप्त कमतर ओजाइव वक्र और अधिकतर ओजाइव वक्र को तुलनात्मक रूप में सम्मिलित रूप से निम्न प्रकार भी प्रदर्शित किया जा सकता है –
प्रश्न 6.
आंकड़ों के प्राथमिक स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आंकड़ों के स्रोत आंकड़े विभिन्न तथ्यों के उन समूहों को कहते हैं, जो अंकों में प्रकट किये जाते हैं, जिन्हें किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य से सुव्यवस्थित विधि द्वारा एकत्रित किया जाता है तथा जिनका सारणीयन एवं वर्गीकरण किया जा सकता हो। अतः सांख्यिकी में उपयोग की जाने वाली संख्याएं ही आंकड़ा कहलाती हैं, जो यथार्थ विश्व के मापन को प्रदर्शित करती हैं। साधारणतः आंकड़े प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से एकत्रित किए जाते हैं। प्राथमिक आंकड़े जो आंकड़े किसी अनुसंधानकर्ता या संस्था / संगठन के द्वारा पहली बार व्यक्तिगत रूप से एकत्रित किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आंकड़े कहते हैं।
इस कारण इन आंकड़ों को मौलिक आंकड़े भी कहा जाता है। प्राथमिक आंकड़ों को साधारणतया प्राथमिक विधियों से प्राप्त किया जाता है, जो अग्र प्रकार से हैं –
(1) व्यक्तिगत प्रेक्षण व्यक्तिगत प्रेक्षण से तात्पर्य अनुसंधानकर्ता के द्वारा स्वयं क्षेत्र में भ्रमण करके अनुसंधान विषय से सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना है। भौगोलिक अनुसंधान कार्यों के लिए यह विधि बहुत उपयोगी है। क्षेत्र भ्रमण के द्वारा भूगोलवेत्ता क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण, जैसे- धरातल की बनावट, मिट्टियों के प्रकार, प्राकृतिक वनस्पति तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रारूपों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में सीधा ज्ञान प्राप्त करके क्षेत्रों की पारस्परिक भिन्नता एवं उनके सम्बन्धों का विश्लेषण करता है ।
(2) साक्षात्कार – इस विधि के अन्तर्गत सूचनादाता से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करके परस्पर वार्तालाप के द्वारा आंकड़े या सूचना एकत्रित करते हैं। साक्षात्कार विधि सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से सम्बन्धित अनुसंधान कार्यों में विशेष उपयोगी होती है।
(3) प्रश्नावली – इस विधि में अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान विषय से सम्बन्धित समस्त प्रश्नों की एक प्रश्नावली तैयार करता है। इसमें प्रत्येक प्रश्न के सामने उसके समस्त सम्भावित उत्तर लिख दिए जाते हैं प्रश्नावली को दूरवर्ती क्षेत्रों में भी भेजा जा सकता है। इसके लिए प्रश्नावली की प्रकाशित प्रतियां डाक द्वारा सूचनादाताओं के पास भेज दी जाती हैं और सूचनादाता उन्हें भरकर अनुसंधानकर्ता को वापिस डाक द्वारा लौटा देते हैं। यह विधि सामान्यतया बड़े । क्षेत्र के सर्वेक्षण के लिए उपयोगी होती है। इस विधि की सीमा या मुख्य दोष यह है कि इस विधि से केवल शिक्षित सूचनादाताओं से ही सूचना प्राप्त की जा सकती है।
(4) अनुसूची- इसमें भी जाँच-पड़ताल से जुड़े प्रश्न दिए होते हैं, परन्तु इसमें लिखे गये प्रश्नों का उत्तर किसी प्रगणक के द्वारा सूचनादाता से पूछकर लिखे जाते हैं। इस प्रकार अनुसूची विधि का मुख्य लाभ यह है कि इसके द्वारा शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्रकार के सूचनादाताओं से सूचना या आंकड़े प्राप्त किये जा सकते हैं।
प्रश्न 7.
आँकड़ों के द्वितीयक स्रोतों के विषय में लिखिए।
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़े वे आंकड़े, जिन्हें कोई अनुसंधानकर्ता स्वयं एकत्रित न करके किसी प्रकाशित अथवा अप्रकाशित स्रोत से प्राप्त करता है, द्वितीयक आंकड़े कहलाते हैं। इस प्रकार द्वितीयक आंकड़ों के अंतर्गत आंकड़ों के प्रकाशित और अप्रकाशित स्रोत आते हैं, जो अग्र प्रकार से हैं –
(1) प्रकाशित साधन- इसके अंतर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है
(i) सरकारी प्रकाशन – विभिन्न मंत्रालयों और भारत सरकार के विभागों, राज्य सरकारों के प्रकाशन और जिलों के बुलेटिन द्वितीयक आंकड़ों / सूचनाओं के महत्वपूर्ण साधन होते हैं। इनके अंतर्गत भारत सरकार के सभी विभाग, जैसे- जनगणना, सर्वेक्षण रिपोर्ट, भारतीय मौसम विज्ञान आदि के आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं।
(ii) अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन इस श्रेणी के अन्तर्गत नगर विकास प्राधिकरण, विभिन्न नगरों और शहरों के जिला परिषदों के प्रकाशन और रिपोर्ट आते हैं।
(iii) अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन- इसके साधनों में संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न शाखाओं, जैसे-संयुक्त राष्ट्र अभिकरण, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट और मोनोग्राफ सम्मिलित किए जाते हैं।
(iv) निजी प्रकाशन-इस श्रेणी के अंतर्गत समाचार पत्र और निजी संस्थाओं द्वारा प्रकाशित वार्षिकी, सर्वेक्षण रिपोर्ट और प्रबंध आते हैं।
(v) समाचार पत्र और पत्रिकाएं- दैनिक समाचार पत्र और साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिकाएं, द्वितीयक आंकड़ों के आसानी से प्राप्य स्रोत हैं।
(vi) इलेक्ट्रॉनिक – यह स्रोत वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम विशेषकर इंटरनेट, द्वितीयक आंकड़ों का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनकर उभरा है।
(2) अप्रकाशित साधन- इसके अंतर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है –
(i) सरकारी प्रलेख – यह प्रलेख सरकार के विभिन्न स्तरों पर अप्रकाशित रिकॉर्ड के रूप में तैयार किए और अनुरक्षित रखे जाते हैं, जैसे—गांव के स्तर पर राजस्व अभिलेख गांव के पटवारियों के द्वारा बनाए जाते हैं, जो एक गांव स्तर की सूचना के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।
(ii) अर्द्ध-सरकारी प्रलेख इस प्रकार के प्रलेखों में, विभिन्न नगर निगम, जिला परिषदों और लोक सेवा विभागों द्वारा तैयार और अनुरक्षित की गई आवधिक रिपोर्ट और विकास योजनाएं सम्मिलित की जाती हैं।
(iii) निजी प्रलेख – इसके अंतर्गत कंपनियों, व्यापार संघों, विभिन्न राजनैतिक और अराजनैतिक संगठनों और निवासीय कल्याण संघों के अप्रकाशित रिपोर्ट और रिकॉर्ड सम्मिलित किए जाते हैं।