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NCERT Class 12 Geography Chapter 8 Solutions in Hindi निर्माण उद्योग
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. नीचे दिये गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) कौनसा औद्योगिक अवस्थापना का एक कारण नहीं है ?
(क) बाजार
(ख) पूँजी
(ग) जनसंख्या घनत्व
(घ) ऊर्जा।
उत्तर:
(ग) जनसंख्या घनत्व
(ii) भारत में सबसे पहले स्थापित की गई लौह-इस्पात कम्पनी निम्नलिखित में से कौनसी है?
(क) भारतीय लौह एवं इस्पात कम्पनी (आई.आई.एस.सी.ओ.)
(ख) टाटा लौह एवं इस्पात कम्पनी (टी.आई.एस.सी.ओ.)
(ग) विश्वेश्वरैया लौह तथा इस्पात कारखाना
(घ) मैसूर लोहा तथा इस्पात कारखाना।
उत्तर:
(ख) टाटा लौह एवं इस्पात कम्पनी (टी.आई.एस.सी.ओ.)
(iii) मुम्बई में सबसे पहला सूती वस्त्र कारखाना स्थापित किया गया, क्योंकि-
(क) मुम्बई एक पत्तन है।
(ख) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है।
(ग) मुम्बई एक वित्तीय केन्द्र था।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।
(iv) हुगली औद्योगिक प्रदेश का केन्द्र है-
(क) कोलकाता-हावड़ा
(ख) कोलकाता-रिशरा
(ग) कोलकाता-मेदनीपुर
(घ) कोलकाता-कोन नगर।
उत्तर:
(क) कोलकाता-हावड़ा
(v) निम्नलिखित में से कौनसा चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है?
(क) महाराष्ट्र
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) पंजाब
(घ) तमिलनाडु।
उत्तर:
(ख) उत्तर प्रदेश
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें-
प्रश्न (i) लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है, ऐसा क्यों?
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग कई अन्य उद्योगों को आधारभूत सामान उपलब्य कराता है। छोटी-बड़ी मशीनें, भवन, परिवहन के साधन, विभिन्न उपकरण आदि के निर्माण में लोहे की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस कारण यह किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार होता है।
प्रश्न (ii) सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइये। वे किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को मुख्यतः दो सेक्टरों में बाँटा गया है-
(1) संगठित सेक्टर और
(2) विकेन्द्रित सेक्टर।
संगठित सेक्टर के अन्तर्गत वृहद् स्तर पर सूती वस्त्र मिलों में सूती धागा व वस्त्रों का निर्माण आधुनिक मशीनों द्वारा किया जाता है, जबकि विकेन्द्रित या असंगठित सेक्टर में धागे व कपड़े का निर्माण हथकरघों और विद्युत करघों द्वारा किया जाता है।
प्रश्न (iii) चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है?
उत्तर:
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है, क्योंकि गन्ना, जो इस उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है, को खेत से काटने के 24 घण्टों के अन्दर ही पेरा जाए तो चीनी की अधिक मात्रा प्राप्त होती है। इसके अलावा शुष्क ऋतु में गन्ने को खेत में खड़ा नहीं रखा जा सकता, क्योंकि शुष्कता के कारण इसमें सुक्रोज की मात्रा कम होती जाती है। इसी कारण चीनी मिलें केवल उसी मौसम में ही कार्य करती हैं, जिसमें गन्ने की फसल काटी जाती है।
प्रश्न (iv) पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है? इस उद्योग के कुछ उत्पादों के नाम बताइये।
उत्तर:
पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए खनिज तेल अर्थात् पेट्रोलियम ही कच्या माल होता है। पॉलीमर, नाइलोन चिप्स, पुनः चक्रित प्लास्टिक, संश्लिष्ट तन्तु, नायलॉन धागा, पॉलिस्टर धागा आदि पेट्रो-रसायन उद्योग से प्राप्त उत्पाद हैं।
प्रश्न (v) भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?
उत्तर:
(1) इसने आर्थिक और सामाजिक रूपान्तरण के लिए अनेक सम्भावनाएँ उत्पन्न कर दी हैं।
(2) इसका प्रमुख प्रभाव रोजगार अवसर के सृजन पर पड़ा है, जो प्रतिवर्ष लगभग दुगुना हो रहा है।
(3) आईटी सॉफ्टवेयर और सेवा उद्योग का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2 प्रतिशत तक का योगदान है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें
प्रश्न (i) ‘स्वदेशी’ आन्दोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहन दिया?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का एक परम्परागत उद्योग है। प्राचीन और मध्य काल में, ये केवल एक कुटीर उद्योग् के रूप में थे। प्रारंभ में, अंग्रेजों ने स्वदेशी सूती वस्त्र उद्योग के विकास को प्रोत्साहित नहीं किया। वे कच्चे कपास को मानचेस्टर और लिवरपूल स्थित अपनी मिलों के लिए निर्यात कर देते थे और वहां तैयार माल को भारत में लाकर बेचते थे। भारत में 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुम्बई और अहमदाबाद में पहली मिल की स्थापना के पश्चात् सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ और आकस्मिक रूप से मिलों की संख्या बढ़ गई। स्वदेशी आन्दोलन ने इस उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया, क्योंकि इस आन्दोलन में ब्रिटेन के बने सामानों का बहिष्कार करके भारतीय सामानों को उपयोग में लाने का आह्बान किया गया था।
स्वदेशी आन्दोलन के फलस्वरूप देश में भारतीय वस्त्रों की मांग बढ़ी तथा सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ। 1921 के बाद रेल मार्गों के विकास के साथ ही दूसरे सूतो वस्त्र केन्द्रों का तेजी से विस्तार हुआ। दक्षिणी भारत में कोयम्बटूर, मदुरई और बंगलौर में मिलों की स्थापना की गई। भारत के मध्यवर्ती पश्चिमी भाग में कपास की स्थानीय रूप से उपलब्धता के कारण इंदौर, नागपुर, शोलापुर, बड़ोदरा में भी सूती मिलों की स्थापना की गई।
कोलकाता में बन्दरगाह की सुविधा, तमिलनाडु में जल-विद्युत शक्ति के विकास तथा कानपुर में स्थानिक निवेश के आधार पर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की गई। उज्जैन, भरूच, आगरा, हाथरस, कोयम्बटूर और तिरुनेलवेली आदि केन्द्रों में, कम श्रम लागत के कारण मिलों की स्थापना की गई। इस प्रकार, भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में जहाँ एक या एक से अधिक अनुकूल अवस्थितिक कारक विद्यमान थे, सूती वस्त्र उद्योग स्थापित किए गए। इस प्रकार ‘स्वदेशी’ आन्दोलन से सूती वस्त्र उद्योग को बहुत बल मिला।
प्रश्न (ii) आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वींकरण से क्या समझते हैं? इन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है?
उत्तर:
भारत में औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में की गई थी। इस नीति के तीन मुख्य लक्ष्य उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण थे –
(i) उदारीकरण-उदारीकरण से अभिप्राय है, उद्योगों पर लगे प्रतिबन्धों को हटाया जाना या कम किया जाना। इसके अन्तर्गत आर्थिक नियमों व कानूनों में लचीलापन, लाइसेंस प्रणाली को समाप्त करना, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना उद्योगों की स्थापना, वाणिज्य व व्यापार क्षेत्रों में छूट सग्बन्धी समस्त प्रयासों को शामिल किया गया है।
(ii) निजीकरण-निजीकरण से अभिप्राय है कि सरकार द्वारा लगाए गए उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाए। औद्योगिक नीति में निजीकरण, घरेलू और बहुराष्ट्रीय दोनों व्यक्तिगत पूँजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए किया गया था।
(iii) वैश्वीकरण-वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृतः अर्थात् समायोजित करना। वैश्वीकरण के माध्यम से सामान और पूँजी सहित सेवाएँ, श्रम और संसाधन एक देश से दूसरे देश में स्वतन्त्रतापूर्वक पहुँचाए जा सकते हैं। भारत के औद्योगिक विकास में सहयोग-उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप देश के ओद्योगिक विकास में पर्यास उन्नति हुई है।
इसमें इन्होंने निम्न प्रकार से सहयोग किया है-
- सुरक्षा, सामरिक एवं पर्यावरण से सम्बन्धित छः उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों के लिए औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
- वष 1956 से सार्वजनिक सेक्टर के लिए सुरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटकर 4 रह गई। परमाणु शक्ति तथा रेलवे से सम्बन्धित उद्योग को सार्वजनिक रखकर शेष उद्योगों के लिए निजी क्षेत्र के दरवाजे खोल दिए गए।
- सरकार ने सार्वजनिक उद्यमों के शेयरों में कुछ भाग वित्तीय संस्थाओं, सामान्य जनता और कामगारों को देने का निश्चय किया।
- किसी भी उद्योग में पूँजी निवेश की सीमा समास कर दी गई और लाइसेंस मुक्त सेक्टर में पूँजी लगाने के लिए किसी भी उद्योग को पूर्व सहमति लेने की आवश्यकता नहीं रह गई।
- उद्योगों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को घरेलू निवेश के रूप में मान्यता दी गई; इससे भारतीय उद्योगों में विदेशी निवेश के दरवाजे खुल गये।
- नए सेक्टर जैसे खनन, दूर संचार, राजमार्ग निर्माण और व्यवस्था को व्यक्तिगत कंपनियों के लिए पूरा खोल दिया गया। इस सबसे भारत के औद्योगिक विकास में बहुत सहायता मिली।