Understanding the question and answering patterns through NCERT Solutions Class 12 Geography in Hindi Chapter 6 जल-संसाधन will prepare you exam-ready.
NCERT Class 12 Geography Chapter 6 Solutions in Hindi जल-संसाधन
पृष्ठ 63
प्रश्न 1. ‘
गंगा और इसकी सहायक नदियों पर बसे हुए मुख्य शहर/नगरों और उनके मुख्य उद्योगों को बताइए।
उत्तर:
गंगा उत्तरी भारत की प्रमुख नदी है। इसके अपवाह क्षेत्र में देश के सबसे घने बसे और उपजाऊ राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल हैं। गंगा कई सहायक नदियों से मिलकर बनी है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ, जो इसमें उत्तर की ओर से आकर मिलती हैं-यमुना, रामगंगा, करनाली, घाघरा, राप्ती, गंडक, कोसी, काली आदि हैं जबकि दक्षिण के पठार की ओर से मिलने वाली नदियों में चम्बल, सिन्ध, बेतवा, केन, दक्षिणी टोंस, सोन आदि हैं। गंगा और उसकी सहायक नदियों पर स्थित प्रमुख नगर निम्न प्रकार से हैं- गंगा नदी पर उत्तर प्रदेश राज्य के फतेहगढ़ कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वाराणसी और गाजीपुर शहर, बिहार के बक्सर, बलिया, पटना, बेगुसराय और भागलपुर
शहर तथा पश्चिम बंगाल के फरका, टीटागढ़, बहरामपुर, हावड़ा, कोलकाता आदि शहर स्थित हैं। इसी प्रकार गंगा की सहायक यमुना नदी पर देश की राजधानी दिल्ली व आगरा शहर, सरयू नदी पर प्राचीन कालीन ऐतिहासिक नगर अयोध्या, गोमती नदी पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, सुल्तानपुर और जौनपुर शहर तथा राप्ती नदी पर उत्तर प्रदेश का गोरखपुर शहर स्थित है। गंगा पर स्थित उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर भारत का सबसे प्राचीनतम शहर होने के साथ-साथ एक धार्मिक और शैक्षिक शहर भी है।
गंगा और इसकी सहायक नदियों पर बसे प्रमुख नगर तथा उनके प्रमुख उद्योग निम्न प्रकार से हैं –
मुख्य नगर | कार्यरत प्रमुख उद्योग |
कानपुर | सूती वस्त्र उद्योग, शक्कर उद्योग, चमड़ा उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग एवं उर्वरक उद्योग। |
वाराणसी | सूती वस्त्र उद्योग, रेशमी वस्त्र उद्योग। |
गोरखपुर | शक्कर उद्योग, उत्तर-पूर्वी रेलवे जोन, फर्टीलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया स्थित आदि। |
भागलपुर शहर (बिहार) | चीनी मिट्टी उद्योग, अभ्रक उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग। |
दिल्ली | वस्त्र, इलैक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग व रसायन उद्योग। |
मथुरा | तेल शोधन संयन्त्र। |
आगरा | चमड़ा, सूती वस्त्र उद्योग। |
हावड़ा | जूट, सूती वस्त्र, चीनी मिल। |
कोलकाता | ऐलुमिनियम, कांच, रासायनिक उद्योग (गंधक का तेजाब बनाना), कागज, पेट्रो-रसायन आदि। |
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?
(क) अजैव संसाधन
(ख) अनवीकरणीय संसाधन
(ग) जैव संसाधन
(घ) चक्रीय संसाधन।
उत्तर:
(घ) चक्रीय संसाधन।
(ii) निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौमजल उपयोग ( $\%$ में) इसके कुल भौमजल सम्भाव्य से ज्यादा है?
(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) आन्ध्र प्रदेश
(घ) केरल।
उत्तर:
(क) तमिलनाडु
(iii) देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?
(क) सिंचाई
(ख) उद्योग
(ग) घरेलू उपयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) सिंचाई
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें-
प्रश्न (i) यह कहा जाता है कि भारत में जल संसाधनों में तेजी से कमी आ रही है। जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
देश में जल संसाधनों में तेजी से आ रही कमी के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-
(1) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
(2) बढ़ता घरेलू उपयोग
(3) औद्योगिक क्षेत्रों में जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
(4) सिंचाई में आवश्यकता
(5) जल प्रदूषण।
प्रश्न (ii) पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम- जल निकास के लिए कौनसे कारक उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा तथा तमिलनाडु राज्यों के निविल सिंचित क्षेत्र का क्रमशः 76.1%, 51.3 % तथा 54.7 % कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचित है। इन राज्यों में मुख्यतः गेहूँ और चावल की कृषि की जाती है, जिसके लिए सिंचाई आवश्यक है। अतः इन क्षेत्रों में सिंचाई भौमजल के सर्वाधिक निकास के लिए उत्तरदायी कारक है।
प्रश्न (iii) देश में कुल उपयोग किये गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की सम्भावना क्यों है?
उत्तर:
वर्तमान में देश में कुल जल उपयोग में कृषि सेक्टर का भाग दूसरे सेक्टरों की तुलना में अधिक है। परन्तु भविष्य में देश में हो रहे विकास के कारण उद्योगों में एवं बढ़ती जनसंख्या के कारण घरेलू सेक्टरों में जल उपयोग बढ़ने की सम्भावना है, जिस कारण कुल जल उपयोग में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की भी सम्भावना है।
प्रश्न (iv) लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपभोग के क्या सम्भव प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर:
लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपभोग के अनेक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। ऐसे जल के उपभोग से कई प्रकार के महामारी रोग, जैसे-आन्त्रशोथ, पीलिया, हैजा, टाइफायड आदि उत्पन्न हो सकते हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें-
प्रश्न (i) देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता-भारत में विश्व के कुल जल संसाधनों का 4 प्रतिशत पाया जाता है तथा देश को एक वर्ष में वर्षण से लगभग 4,000 घन किलोमीटर जल प्राप्त होता है। देश में सभी नदी बेसिनों में अनुमानतः 1,869 घन किलोमीटर औसत वार्षिक प्रवाह है; परन्तु स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य कारकों के कारण प्राप्त कुल धरातलीय जल का मात्र 32 प्रतिशत (लगभग 690 घन किलोमीटर जल) जल का ही उपयोग किया जा सकता है। देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौमजल संसाधन लगभग 432 घन कि.मी. है। देश में धरातलीय जल और पुन: पूर्तियोग भौमजल से 1869 घन किलोमीटर जल उपलब्ध है, जिसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का ही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। अतः देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1,122 घन किलोमीटर है।
स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी कारक-जल संसाधन के वितरण को कई कारक प्रभावित करते हैं; जैसे –
(1) वर्षा-नदी में जल प्रवाह नदी बेसिन और इस बेसिन अर्थात् जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है। इसके साथ-साथ वर्षा उस क्षेत्र में धरातलीय जल तथा भौम जल की मात्रा को भी प्रमुख रूप से प्रभावित करती है। भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा अनियमित और अनिश्चित मानसून पर निर्भर होती है। अतः वर्षा की क्षेत्रीय भिन्नता जलीय संसाधनों के स्थानिक वितरण को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है।
(2) धरातल का स्वरूप-किसी भी भू-भाग का धरातलीय स्वरूप भी जलीय संसाधनों के उपभोग को प्रभावित करता है। असमतल पठारी व पर्वतीय भागों में जलीय संसाधनों के उपभोग के सीमित अवसर ही प्राप्त हो पाते हैं जबकि समतल मैदानी भागों में जलीय संसाधनों का उपभोग उचित प्रकार से किया जा सकता है।
(3) आर्थिक विकास का स्तर-किसी भी क्षेत्र या देश के आर्थिक विकास का स्तर प्रत्यक्ष रूप में धरातलीय जल संसाधनों तथा भौमजल संसाधनों के उपभोग के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः आर्थिक विकास के स्तरों की भिन्नता जलीय संसाधनों के स्थानिक वितरण को भी प्रभावित करती है।
प्रश्न (ii) जल संसाधनों का ह्रास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
जल एक प्राकृतिक और नवीकरण संसाधन होने के साथ-साथ किसी भी क्षेत्र के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी है। जल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण दिन-प्रतिदिन इनमें कमी आती जा रही है। वहीं दूसरी ओर उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि तथा घरेलू निस्सरणों के मिलने से प्रदूषित होते जा रहे हैं। वे सभी राज्य या देश, जिनसे होकर नदी बहती हैं, नदी जल के भागीदार होते हैं। जल संसाधनों का इस तरह सतत् रूप से ह्रास होने के कारण इनकी उपलब्धता सीमिंत होती जा रही है। परिणामतः इनके आवण्टन व नियन्त्रण को लेकर कई प्रकार के द्वन्द्व तथा विवाद उत्पन्न हो गये हैं, जिस कारण वृहत् स्तर पर जल के उपयोग में समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
वर्तमान में अन्तर्राज्यीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल-संसाधनों को लेकर तनाव व विवाद की स्थिति पैदा हो गई है; जैसे –
(1) भारत और बांग्लादेश के मध्य गंगा जल विवाद।
(2) कर्नाटक और तमिलनाडु के मध्य कावेरी नदी जल-विवाद।
(3) महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के मध्य नर्मदा नदी जल विवाद।
(4) पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के मध्य सतलज-यमुना लिंक नहर को लेकर विवाद।
(5) भारत और पाकिस्तान के मध्य सिन्धु नदी जल विवाद।
प्रश्न (iii) जल-संभर प्रबन्धन क्या है? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत् पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?
उत्तर:
जल संभर प्रबन्धन-साधारणतः धरातलीय और भौम जल संसाधनों का उचित प्रबन्धन ही जल संभर प्रबन्धन कहलाता है। इसके अन्तर्गत बहते जल को रोककर विभिन्न विधियों, जैसे-अन्तःस्रवण तालाब, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल है। अतः जल संभर प्रबन्धन का मुख्य उद्देश्य सभी प्राकृतिक संसाधनों और समाज के मध्य सन्तुलन स्थापित करना है, जिसकी पूर्ति मुख्यतः समुदाय के सहयोग पर ही निर्भर करती है।
सतत् पोषणीय विकास में जल-संभर प्रबंधन की भूमिका-सतत् पोषणीय विकास से तात्पर्य “एक ऐसे विकास से है, जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित करे बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।” चूँकि जल संभर प्रबन्धन जल का उचित प्रबन्धन है, जिसमें अनावश्यक रूप से बहते जल को विभिन्न विधियों द्वारा संचयित किया जाता है। अतः सतत् पोषणीय विकास के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दर, इनके नवीनीकरण की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि जल संभर प्रबंधन का प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा समाज के मध्य संतुलन स्थापित करना है।
अतः जल संभर प्रबन्धन सतत् पोषणीय विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। इस हेतु केन्द्रीय और राज्य सरकारों ने देश में बहुत से जल संभर प्रबन्धन के विकास के कार्यक्रम चलाए हैं, जैसे –
(1) हरियाली परियोजना-यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल संभर विकास परियोजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्य-पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के लिए योग्य बनाना है। यह परियोजना लोगों के सहयोग से निष्पादित की जा रही है।
(2) नीरू-मीरू ( जल और आप) कार्यक्रम आन्ध्रप्रदेश में।
(3) अरवारी पानी संसद कार्यक्रम अलवर (राजस्थान) में।
इनके अन्तर्गत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ, जैसे-अंतःस्रवण तालाब, जोहड़ की खुदाई कर रोक बाँध बनाये गये हैं। इसी प्रकार तमिलनाडु राज्य में प्रत्येक घर व इमारत में जल संग्रहण संरचना बनाना अनिवार्य कर दिया है। इस प्रकार देश में लोगों के बीच जल संभर विकास और प्रबन्धन के लाभों को बताकर जागरूकता उत्पन्न करके इस एकीकृत जल संसाधन प्रबन्धन के माध्यम से जल उपलब्धता सतत पोषणीय आधार पर निश्चित रूप से की जा सकती है।