Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers CBSE Class 12 Hindi Elective रचना पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया to develop Hindi language and skills among the students.
CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
इस पाठ में हम पढ़ेंगे और जानेंगे –
- पत्रकारीय लेखन क्या है?
- समाचार कैसे लिखा जाता है?
- समाचार लेखन और छह ककार
- फ़ीचर क्या है?
- फ़ीचर कैसे लिखें?
- रिपोर्ट
- विशेष रिपोर्ट कैसे लिखें?
- विचारपरक लेखन-लेख, टिप्पणियाँ और संपादकीय
- आलेख
- संपादकीय लेखन
- स्तंभ लेखन
- संपादक के नाम पत्र
- लेख
- लेखसाक्षात्कार अथवा इंटरव्यू
अखबार और पत्रिकाओं में समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट, लेख और टिप्पणियाँ प्रकाशित होती हैं। इनके लिखने की पद्धति अलग-अलग होती है। एक अच्छे पत्रकार और लेखक को इनका ज्ञान होना चाहिए। समाचार लेखन में छह ककारों का ध्यान रखते हुए, पिरामिड शैली का प्रयोग किया जाता है, जबकि फ़ीचर लेखन की शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है। विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज और विश्लेषण पर जोर दिया जाता है। इसके अलावा विचारपरक लेखन के अंतर्गत लेख, टिप्पणियों और संपादकीय लेखन में भी विचारों तथा विश्लेषण पर ज़ोर होता है। अच्छे लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें
- छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल वाक्य-संरचना को वरीयता दें।
- आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का प्रयोग करें। गैर-ज़रूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग करें।
- अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत ज़रूरी है। जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़ें।
- लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग भरने की कोशिश करें।
- अपने लिखे को दुबारा ज़रूर पढ़ें और अशुद्धियों के साथ-साथ गैर-ज़रूरी चीज़ों को हटाने में संकोच न करें। लेखन में कसावट बहुत ज़रूरी है।
- लिखते हुए यह ध्यान रखें कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है न कि दूसरे को प्रभावित करना।
- एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि वे अपने लेखन के लिए उससे विचारबिंदु निकाल सकें।
- एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।
पत्रकारीय लेखन क्या है?
अखबार पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक और शिक्षित बनाने तथा उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं। लोकतांत्रिक समाजों में वे एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत-निर्माता के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अपने पाठकों के लिए वे बाहरी दुनिया में खुलने वाली ऐसी खिड़की हैं, जिनके जरीय असंख्य पाठक हर रोज़ सुबह देश-दुनिया और अपने पास-पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से अवगत होते हैं।
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
पत्रकार तीन तरह के होते हैं –
पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्री-लांसर यानी स्वतंत्र।
- पूर्णाकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है।
- अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार होता है।
- फ्री-लांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता, बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।
पत्रकारीय और साहित्यिक लेखन में अंतर
1. पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि-से इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से है, न कि कल्पना से।
2. पत्रकारीय लेखन साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रूचियों तथा ज़रूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है। जबकि साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।
पत्रकारीय लेखन की भाषा-शैली
अखबार और पत्रिका के पाठकों में एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन-शैली, भाषा और गूढ़-से-गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए। पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली की बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।
पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है। शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए। वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए। समाचार कैसे लिखा जाता है?
पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार-लेखन है। सामान्यतया अखबारों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।
अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में, उससे कम महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को उसके बाद के पैराग्राफ़ में दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता। इसे समाचार-लेखन की उलटा पिरामिड-शैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) के नाम से जाना जाता है।
यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे उलटा पिरामिड इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना ‘यानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती, बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।
उल्टा पिरामिड-शैली के प्रयोग की शुरुआत-इस शैली का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था, पर इसका विकास अमेरिका में गृह-युद्ध के समय हुआ, जब संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ़ के माध्यम से भेजनी पड़ती थीं। ये सेवाएँ दुर्लभ, महँगी और अनियमित थी, जो ठप भी हो जाती थीं। संवाददाताओं दूवारा खबरों को संक्षेप में देने के कारण इस शैली का विकास हुआ जो लेखन और संपादन की सुविधा के कारण मानक-शैली बन गई।
समाचार-लेखन और छह ककार
किसी भी समाचार के लेखन में छह सवालों (ककारों) का जवाब देने की कोशिश की जाती है। ये ककार हैं –
क्या हुआ?
किसके साथ हुआ?
कहाँ हुआ?
कब हुआ?
कैसे हुआ?
क्यों हुआ?
इंट्रो से संबंधित ककार
इंट्रो से संबंधित 4 ककार हैं। ये ककार हैं-क्या, कौन, कहाँ और कब? ये चारों ककार सूचनात्मक पहलुओं एवं तथ्यों पर आधारित होते हैं। किसी भी समाचार का इंट्रो इन्हीं चार ककारों को आधार बनाकर दो-तीन पंक्तियों में लिखा जाता है।
बॉडी से संबंधित ककार
समाचार की बॉडी से संबंधित ककार में कैसे और क्यों का ज़वाब दिया जाता है। इनके ज़वाब में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर ज़ोर दिया जाता है।
उदाहरण के लिए ‘हिंदुस्तान’ में 8 सितंबर, 2014 को प्रकाशित एक समाचार को ध्यान से देखिए :
दिए गए समाचार में चारों ककारों की जानकारी इंट्रो में दी गई है, जबकि दूसरे पैराग्राफ में अन्य दो ककारों कैसे और क्यों की जानकारी दी गई है। प्रायः अधिकांश समाचार इसी शैली में लिखे जाते हैं। समाचार में सूचना के स्रोत की जानकारी अवश्य देनी चाहिए। उपर्युक्त समाचार में प्रत्यक्षदर्शियों और एस०एच०ओ० सेक्टर 31 को उद्धृत किया गया है।
फ़ीचर क्या है?
अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन छपते हैं। इनमें फ़ीचर प्रमुख है। समाचार और फ़ीचर के बीच स्पष्ट अंतर होता है। फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है। फ़ीचर समाचार की तरह पाठकों को तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत नहीं कराता।
फ़ीचर की भाषा-शैली संबंधी विशेषताएँ
फ़ीचर-लेखन की शैली भी समाचार-लेखन की शैली से अलग होती है। समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर ज़ोर दिया जाता है अर्थात समाचार लिखते हुए रिपोर्टर उसमें अपने विचार नहीं डाल सकता, जबकि फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ ज़ाहिर करने का अवसर होता है।
फ़ीचर लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग नहीं होता यानी फ़ीचर लेखन का कोई एक निश्चित ढाँचा या फॉर्मूला नहीं होता। फ़ीचर लेखन की शैली काफ़ी हद तक कथात्मक शैली की तरह है।
फ़ीचर लेखन की भाषा समाचारों के विपरीत सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूने वाली होती है। फ़ीचर की भाषा में समाचारों की सपाटबयानी नहीं चलती। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि फ़ीचर की भाषा और शैली को अलंकारिक और दुरूह बना दिया जाए।
फ़ीचर में समाचारों की तरह शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती। फ़ीचर आमतौर पर समाचार, रिपोर्ट, से बड़े होते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फ़ीचर छपते हैं।
एक अच्छे फ़ीचर के गुण
1. एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ फ़ोटो, रेखांकन, ग्राफ़िक्स आदि का होना ज़रूरी है।
2. फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है। हल्के-फुल्के विषयों से लेकर गंभीर विषयों और मुद्दों पर भी फ़ीचर लिखा जा सकता है।
3. फ़ीचर एक तरह का ट्रीटमेंट है, जो आमतौर पर विषय और मुद्दे की ज़रूरत के मुताबिक उसे प्रस्तुत करते हुए दिया जाता है। यही कारण है कि समाचार और फ़ीचर अलग होने के बावजूद कुछ समाचारों को फ़ीचर शैली में भी लिखा जाता है।
फ़ीचर कैसे लिखें?
फ़ीचर लिखते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। पहली बात यह है कि फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों यानी पात्रों की मौज़दगी ज़रूरी है। दूसरे, कहानी को उनके ज़रिये कहने की कोशिश करते हुए पात्रों के माध्यम से उस विषय के विभिन्न पहलुओं को सामने लाना चाहिए। तीसरे, कहानी को बताने का अंदाज़ ऐसा हो कि पाठक यह महसूस करें कि वे खुद देख और सुन रहे हैं। चौथे, फ़ीचर को मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनात्मक होना चाहिए।
फ़ीचर को किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए। साथ ही, फ़ीचर कोई नीरस शोध रिपोर्ट भी नहीं है। वह बड़ी घटनाओं, कार्यक्रमों और आयोजनों की सूखी और बेजान रिपोर्ट भी नहीं है। फ़ीचर आमतौर पर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है। फ़ीचर की कोई-न-कोई थीम होनी चाहिए। उस थीम के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे होने चाहिए।
फ़ीचर के प्रकार
फ़ीचर कई प्रकार के होते हैं –
- समाचार बैकग्राउंडर
- खोजपरक फ़ीचर
- साक्षात्कार फ़ीचर
- जीवन-शैली फ़ीचर
- रूपात्मक फ़ीचर
- व्यक्तिगत फ़ीचर
- यात्रा फ़ीचर
- विशेष रुचि के फ़ीचर
फ़ीचर-लेखन का कोई निश्चित फ़ॉर्मूला नहीं होता। इसका लेखन कहीं से भी शुरू किया जा सकता है। हर फ़ीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। इसका प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। प्रारंभ आकर्षक और रोचक होने पर पूरा फ़ीचर पठनीय और रोचक बन जाता है। इसका प्रारंभ मध्य से और मध्य अंत के साथ सहज और स्वाभाविक तरीके से जुड़ा होना चाहिए। हर पैराग्राफ का अपने से पिछले पैराग्राफ से जुड़ाव होना चाहिए। पैराग्राफ छोटे रखने चाहिए और एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।
फ़ीचर-लेखन के उदाहरण
1. ‘आदत बदलिए’ विषय पर लगभग 150 शब्दों में फ़ीचर।
आदत, जो छूटती नहीं ……..
बार-बार एक ही शब्द दोहराने की आदत आपको मुश्किल में भी डाल सकती है। खुद पर विश्वास और दृढ़ निश्चय हो तो आप इससे छुटकारा पाने में सफल हो सकते हैं।
तकिया कलाम यानी सखुन तकिया। सोते समय सिर को आराम देने के लिए जैसे तकिया का सहारा लिया जाता है, उसी प्रकार शब्द-विशेष का सहारा लिया जाता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तकिया कलाम हकलाने या तुतलाने जैसा ही एक रोग है। कुछ लोग निश्चित अवस्था तक सुधर जाते हैं और जो नहीं सुधरते वे उसके रोगी हो जाते हैं। लंदन के मनोवैज्ञानिक डॉं० बुच मानते हैं कि तकिया कलाम एक प्रकार का इ०सी०ए० है, यानी एक्स्ट्रा केरिक्यूलर एक्शन है। इस आदत से जुबान की कसरत होती है और वाक्पटुता बढ़ती है।
तकिया कलाम का बेतरतीब प्रयोग समय की बर्बादी व बोरियत पैदा करना भी है। वृढ़ निश्चय से निजात इस आदत को खुद से दूर करने के लिए आप में दुढ़ निश्चय का भाव होना बेहद ज़ूरी है। सबसे पहले अपने संवाद को तौलें कि आप कब-कब और किन परिस्थितियों में तकिया कलाम का प्रयोग करते हैं। स्थितियाँ चिह्नित कर लेने के बाद आपको तकिया कलाम से बचना है। साथ ही ‘कम बोलो-सार्थक बोलो’ के नियम का अनुसरण भी करना होगा।
धीरे-धीरे जब आम बोलचाल में आप तकिया कलाम के इस्तेमाल में कोताही बरतेंगे, तो खुद-ब-खुद आपकी आदत बदल जाएगी। लेकिन सकारात्मक परिणामों के लिए आपका दृढ़-निश्चयी होना बेहद जरूरी है। कोशिश करें, यह इतना मुश्किल भी नहीं, जितना आप समझ रहे हैं। तकिया कलाम के इस्तेमाल से आपको कई बार विपरीत और हास्यास्पद परिस्थितियों से भी सामना करना पड़ सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि दूसरों के टोकने या खुद मज़ाक बनने से पहले आप खुद अपने स्वभाव को बदल लें।
2. ‘सर्दी में पानी की ज़रूरत’ विषय पर फ़ीचर।
बिना प्यास के भी पिएँ पानी
सदीं के मौसम में वैसे तो सब कुछ हज़्रम हो जाता है, इसलिए जो मर्जी खाएँ। इसके अलावा सरी के मौसम में पानी पीना शरीर के लिए बहुत जजरूरी होता है। गर्मी के दिनों में तो बार-बार प्यास लगने पर व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेता है, लेकिन सर्दी के मौसम में वह इस चीज़ को नज़रअंदाज़ कर देता है। ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि मौसम चाहे सर्दी का हो या फिर गर्मी का, शरीर को पानी की ज़रूरत होती है। जब तक शरीर को पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा, तब तक शरीर का विकास भी सही नहीं हो पाएगा। माना कि सर्दी में प्यास नहीं लगती, लेकिन हमें बिना प्यास के भी पानी पीना चाहिए। पानी पीने से एक तो शरीर की अंदर से सफ़ाई होती रहती है। इसके अलावा पथरी की शिकायत भी अधिक पानी पीने से दूर हो जाती है।
पानी पीने से शरीर की पाचन-शक्ति भी सही बनी रहती है तथा पाचन-रसों का स्राव भी ज़रूरत के अनुसार होता रहता है। बिना पानी के शरीर अंदर से सूखा हो जाता है, जिससे शारीरिक क्रियाओं में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। विज्ञान में पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का मिश्रण माना गया है और ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए सबसे ज़रूरी गैस है। इसी वजह से पानी को भी शरीर के लिए ज़रूरी माना गया है, चाहे सर्दी हो या फिर गर्मी।
3. ‘बच्चों को प्रोत्साहन’ विषय पर फ़ीचर।
अच्छे काम पर बच्चों को करें एप्रिशिएट
हर कोई गलतियों से सबक लेता है, जब गलती ही अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती है तो बच्चों को भी गलती करने पर दुबारा अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। अच्छा काम करने पर बच्चों को एप्रिशिए करना जरूरी है, जब हम बच्चों को प्रोत्साहित करेंगे तो वे आगे भी बेहतर करने को उत्सुक होंगे। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ० तनुज के मुताबिक आम तौर पर दो वर्ष के बच्चे का 90 प्रतिशत दिमाग सीखने-समझने के लिए तैयार हो जाता है और पाँच वर्ष तक वह पूर्ण रूप से सीखने, बोलने लायक हो जाता है। यही वह उम्र होती है, जब बच्चा तेज़ी से सीखता है।
ऐसे में माहौल भी इस तरह का हो कि बच्चा अच्छा सीखे। गलती करने पर यदि प्यार से समझाया जाए तो वह उसे समझेगा। उसे गलत करने पर टोकना ज़रूरी हो जाता है। वरना वह गलती को दोहराता रहेगा। बच्चों को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। डॉ० तनुज कहते हैं कि बच्चों को यह नहीं पता होता कि वे जो कर रहे हैं, वह सही है या गलत। उसे बताया जाए कि जो उसने किया है, वह गलत है, क्योंकि जब तक बच्चों को बताया नहीं जाएगा, उन्हें गलती के बारे में पता नहीं चलेगा। यदि एक बार उसकी गलती के विषय में उसे बताते हैं तो वह दुबारा गलती नहीं करेगा। बच्चों के साथ हमारा व्यवहार वैसा ही हो, जैसा हम खुद के लिए अपेक्षा करते हैं। बच्चों को प्यार-दुलार की ज़्यादा ज़रूरत होती है।
4. ‘बच्चों में आत्मविश्वास कैसे पैदा करें?’ विषय पर फ़ीचर।
बच्चों में आत्मविश्वास
सफलता के लिए आत्मविश्वास बहुत ज़रूरी है। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चे किसी भी मुश्किल का सामना बड़ी आसानी से कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चों में आत्मविश्वास़ की कमी होती है। ऐसे बच्चे अपने कामों के लिए अपने मम्मी-पापा पर ही निर्भर रहते हैं। हर कदम बढ़ाने के लिए उन्हें मम्मी-पापा के सहारे की ज़रूरत होती है। बड़े होने पर ऐसे बच्चों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर शुरुआत से ही ध्यान दिया जाए तो बच्चों को आत्मविश्वासी बनाया जा सकता है।
छोटे-छोटे फैसले खुद करने दें
आत्मविश्वास कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जिसे किसी परीक्षा में पास करके हासिल कर लिया जाए। आत्मविश्वास खुद फैसले लेने से आता है। आगर हम बच्चों को खुद कोई फैसला लेने ही नहीं देंगे तो उनमें आत्मविश्वास कभी नहीं आ पाएगा। हमें चाहिए कि बच्चों को छोटे-छोटे फैसले खुद लेने दें, लेकिन साथ ही उन पर नज़र भी रखें। जहाँ उनसे गलती हो, वहाँ उन्हें सही मार्ग दिखाएँ। ऐसा करने से बच्चों में अपने फैसले खुद लेने की क्षमता तो आएगी ही, साथ ही उनमें आत्मविश्वास भी पैद्या होगा।
विकसित करें आत्मविश्वास की भावना
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। अगर शुरूआत से ही उनमें आत्मविश्वास की भावना विकसित की जाए तो वे हर काम को बड़ी आसानी से कर सकते हैं। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास भी अच्छा होता है। दें खुलकर जीने की आज्ञादी बच्चों को खुलकर जीने दें। जब कोई पूरी स्वतंत्रता और अपनी मर्जी से जीता है और हालातों का सामना करता है, तो उसमें आत्मविश्वास खुद-ब-खुद आ जाता है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि बच्चों को मनमुताबिक कुछ भी करने दें। उनकी हरकतों पर पूरी नज़र रखें और गलती करने पर उन्हें गलती का अहसास भी कराएँ।
5. ‘बस्ते का बढ़ता बोझ’ विषय पर फ़ीचर।
बस्ते का बढ़ता बोझ
आज जिस भी गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए, हर जगह छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। कुछ बच्चों से बड़ा उनका बस्ता होता है। यह दृश्य देखकर आज की शिक्षा-व्यवस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्न-चिह्न लग जाता है। क्या शिक्षा-नीति के सूत्रधार बच्चों को किताबों के बोझ से लाद देना चाहते हैं। वस्तुत: इस मामले पर खोजबीन की जाए तो इसके लिए समाज अधिक जिम्मेदार है। सरकारी स्कूलों में छोटी कक्षाओं में बहुत कम पुस्तकें होती हैं, परंतु निजी स्कूलों में बच्चों के सर्वांगीण विकास के नाम पर बच्चों व उनके माता-पिता का शोषण किया जाता है।
स्कूल गैर-ज़रूरी विषयों की पुस्तकें भी लगा देते हैं, ताकि वे अभिभावकों को यह बता सके कि वे बच्चे को हर विषय में पारंगत कर रहे हैं, जिससे भविष्य में वह हर क्षेत्र में कमाल दिखाने में समर्थ होगा। अभिभावक भी सुपरिणाम की चाह में यह बोझ झेल लेते हैं, परंतु इसके कारण बच्चे का बचपन समाप्त हो जाता है। वह हर समय पुस्तकों के ढेर में दबा रहता है। खेलने का समय उसे नहीं दिया जाता। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है। छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट करते हैं। इस अनचाहे बोझ का वजन विद्यार्थियों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
6. ‘महानगर की ओर पलायन की समस्या’ विषय पर फ़ीचर।
महानगर की ओर पलायन की समस्या
महानगर सपनों की तरह है। मनुष्य को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग वहीं है। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खिचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारतें, मनोरंजन आदि सब कुछ पा लेने की चाह में गाँव का सुदामा भी लालायित होकर चल पड़ता है, महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ बढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप यह देख सकते हैं। गाँव, यहाँ तक कि कस्बे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता को समाप्त करने के ख्वाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोज़गार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है।
इस भाग-दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा-सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली-पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षण महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं, जिससे महानगरों की व्यवस्था चरमराने लगी है। यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है, तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह कस्बों व गाँवों के विकास पर भी ध्यान दे। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, रोज़गार आदि की सुविधा होने पर महानगरों की ओर पलायन रुक सकता है।
7. ‘फुटपाथ पर सोते लोग’ विषय पर फ़ीचर।
फुटपाथ पर सोते लोग
महानगरों में सुबह सैर पर निकलिए, एक तरफ आप स्वास्थ्य लाभ करेंगे तो दूसरी तरफ आपको फुटपाथ पर सोते हुए लोग नज़र आएँगे। महानगर, जिसे विकास का आधार-स्तंभ माना जाता है, वहीं पर मानव-मानब के बीच इतना अंतर है। यहाँ पर दो तरह के लोग हैं-एक उच्च वर्ग जिसके पास उद्योग, सत्ता, धन है, जिससे वह हर सुख भोगता है, इसके पास बड़े-बड़े भवन हैं और यह वर्ग महानगर के जीवन-चक्र पर प्रभावी है। दूसरा वर्ग वह है जो अमीर बनने की चाह में गाँव छोड़कर आता है तथा यहाँ आकर फुटपाथ पर सोने के लिए मज़बूर हो जाता है।
इसका कारण उसकी सीमित आर्थिक क्षमता है। महँगाई, गरीबी आदि के कारण इन लोगों को भोजन भी मुश्किल से नसीब होता है। घर इनके लिए एक सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के चक्कर में अकसर छला जाता है, यह वर्ग। सरकारी नीतियाँ भी इस विषमता के लिए दोषी हैं। सरकार की तमाम योजनाएँ भ्रष्टाचार के मुँह में चली जाती हैं और गरीब सुविधाओं की बाट जोहता रहता है। वह गरीबी में पैदा होता है, गरीबी में पलता-बढ़ता है और गरीबी में मर जाता है। वह जीते-जी रूखी-सूखी खाकर पेट की आग जैसे-तैसे बुझा लेता है और फटे-पुराने कपड़ों से तन ठँक लेता है पर उसके सिर पर छत नसीब नहीं हो पाती और वह फुटपाथ, पार्क या अन्य खुली जगहों पर सोने को विवश रहता है।
8. ‘आतंकवाद की समस्या या आतंकवाद का घिनौना चेहरा’ विषय पर फ़ीचर।
आतंकवाद की समस्या या आतंकवाद का घिनौना चेहरा
सुबह अखबार खोलिए-कश्मीर में चार मरे, मुंबई में बम फटा-दो मरे, ट्रेन में विस्फोट। इन खबरों से भारत का आदमी सुबह-सुबह साक्षात्कार करता है। उसे लगता है कि देश में कहीं शांति नहीं है। न चाहते हुए भी वह आतंक के फ़ोबिया से ग्रस्त हो जाता है। आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या बन गया है। यह क्रूरतापूर्ण नरसंहार का एक रूप है। आतंकवाद मुख्यत: 20 वीं सदी की देन है तथा इसके उदय के अनेक कारण हैं। कहीं यह एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण का परिणाम है तो कहीं यह विदेशी राष्ट्रों की करतूत है। कुछ विकसित देश धर्म के नाम पर अविकसित देशों में लड़ाई करवाते हैं।
आतंकवाद की जड़ में अशिक्षा, बेरोज़गारी, पिछड़ापन है। सरकार का ध्यान ऐसे क्षेत्रों की तरफ तभी जाता है, जब वहाँ हिंसक घटनाएँ शुरू हो जाती हैं। देश के कुछ राजनीतिक दल भी अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए आतंक के नाम पर दंगे करवाते रहते हैं। इस समस्या को सामूहिक प्रयासों से ही समाप्त किया जा सकता है। आतंकवादी भय का माहौल पैदा करके अपने उद्देश्यों में सफल होते हैं। जनता को चाहिए कि वह ऐसे तत्त्वों का डटकर मुकाबला करे। आतंक से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ़ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को भी आतंक-प्रभावित क्षेत्रों में विकास-योजनाएँ शुरू करनी चाहिए ताकि इन क्षेत्रों के युवक गरीबी के कारण गलत हाथों का खिलौना न बनें।
9. ‘चुनावी वायदे’ विषय पर फ़ीचर।
चुनावी वायदे
“अगर हम जीते तो बेरोज़गारी भत्ता दो हज्ञार रुपये होगा।”
“किसानों को बिजली मुफ्त, पानी मुफ्त।”
“बूढ़ों की पेंशन डबल।”
जब भी चुनाव आते हैं तो ऐसे नारों से दीवारें रंग दी जाती हैं। अखबार हो, टी॰वी० हो, रेडियो हो या अन्य कोई साधन, हर जगह मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए चुनावी वायदे किए जाते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ हर पाँच वर्ष बाद चुनाव होते हैं तथा सरकार चुनने का कार्य संपन्न किया जाता है। चुनावी बिगुल बजते ही हर राजनीतिक दल अपनी नीतियों की घोषणा करता है। वह जनता को अनेक लोकलुभावने नारे देता है। जगह-जगह रैलियाँ की जाती हैं। भाड़े की भीड़ से जनता को दिखाया जाता है कि उनके साथ जनसमर्थन बहुत ज्यादा है। उन्हें अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं का पता होता है। चुनाव-प्रचार के दौरान वे इन्हीं समस्याओं को मुद्दा बनाते हैं तथा सत्ता में आने के बाद इन्हें सुलझाने का वायदा करते हैं। चुनाव होने के बाद नेताओं को न जनता की याद आती है और न ही अपने वायदे की। फिर वे अपने कल्याण में जुट जाते हैं। वस्तुतः चुनावी वायदे कागज के फूलों के समान हैं जो कभी खुशब नहीं देते। ये केवल चुनाव जीतने के लिए किए जाते हैं। इनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता। अतः जनता को नेताओं के वायदों पर यकीन नहीं करना चाहिए और विवेक तथा देशहित के मद्देनज़र अपने मत का प्रयोग करना चाहिए।
10. ‘वेलेंटाइन डे : शहरी युवाओं का त्योहार’ विषय पर फ़ीचर।
वेलेंटाइन डे : शहरी युवाओं का त्योहार
फरवरी माह की शुरुआत में ही मीडिया एक नए त्योहार को मनाने की तैयारी शुरू कर देता है। कंपनियाँ अपने उत्पादों में इस त्योहार के नाम पर छूट देनी शुरू कर देती हैं। यह सब प्रेम के नाम पर होता है। जी हाँ, यह त्योहार है-वेलेंटाइन डे। यह 14 फरवरी को मनाया जाता है। वैसे तो भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं; जैसे-होली, दीवाली, दशहरा, वैशाखी आदि। इन सबके पीछे पौराणिक, धारिंक व आर्थिक आधार होते हैं, परंतु वेलेंटाइन डे पूर्णत: विदेशी है। इसका भारतीय मिट्टी से कोई लेना-देना नहीं है।
मीडिया के प्रचार-प्रसार से यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि यह भारत के गाँव-गाँव में मनाया जाने वाला त्योहार है। वस्तुतः यह शहरी त्योहार है। यहाँ के युवा इस दिन अपने प्यार का इजहार करते हैं। इस दिन युवा लड़के-लड़कियाँ अपने दोस्तों तथा प्रेमियों को कुछ-न-कुछ उपहार देकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं। इस दिन के लिए बाज़ारों में तरह-तरह के उपहार व ग्रीटिंग कार्ड्स की भरमार देखी जा सकती है। कुछ लोग इसे ‘फ्रेंडशिप डे’ भी कहते हैं। इस दिन युवा अपने मन की इच्छाएँ व्यक्त करने के लिए आतुर होता है। वैसे इस दिन अनेक आपराधिक घटनाएँ भी घटती हैं। अपने प्रेमी से उचित ज़वाब न मिलने पर तेज्ञाब डालने या आत्महत्या करने जैसी खबरें अकसर सुनाई देती हैं। वैसे समाज में उन्हीं त्योहारों को मनाना चाहिए जो देश की मिट्टी तथा संस्कृति से जुड़े हों।
11. जनप्रतिनिधियों द्वारा संसदीय प्रक्रिया में व्यवधान पर फ़ीचर।
जनप्रतिनिधियों द्वारा संसदीय प्रक्रिया में व्यवधान
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ के लोगों की लोकतंत्र में गहरी आस्था है। उसी आस्था का परिणाम है-राजतंत्र पर लोकतंत्र की विजय। हमारे देश में जनता द्वारा अपनी सरकार चुनी जाती है। लोग मनचाही सरकार बनवाने के लिए अपने-अपने क्षेत्र से जनप्रतिनिधयों को चुनकर संसद में भेजते हैं, ताकि लोगों की समस्याओं के अलावा आशा और आकांक्षा से जुड़े विचार संसद में रख सके, ताकि उनके निवारण हेतु सरकार कदम उठा सके। विगत कुछ वर्षों में राजनेताओं द्वारा घटिया राजनीति की जा रही है।
वे येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना चाहते हैं और चुनाव जीतते ही जनता का हित भूलकर अपना हित साधने लगते हैं। इसी क्रम में वे अपनी मर्यादा भूल बैठते हैं और संसदीय प्रक्रिया में निरतर बाधा डालते हैं। अपनी बात न बनती देख वे नारेबाजी, शोर-शराबा, धक्का-मुक्की से भी दो कदम आगे बढ़कर कपड़े फाड़ने, कुर्सियाँ तोड़ने, लोकसभा अध्यक्ष को घेरने, धमकी देने तथा अन्य उपकरण तोड़ने जैसा कुकृत्य करते हैं। दूरदर्शन पर उनका ऐसा व्यवहार देखकर, उन्हें चुनने पर पछतावा होता है। उनके इस शर्मनाक व्यवहार से जनता के पैसों का घोर अपव्यय होता है। जन-प्रतिनिधियों को अपने व्यवहार में सुधार लाना वांछनीय हो गया है।
12. किसी भी पर्यटन स्थल की प्राकृतिक सुषमा पर फ़ीचर।
कटरा की प्राकृतिक सुषमा
हमारे देश का प्राकृतिक सौंदर्य अनूठा है। इसका अनुमान पर्यटन स्थलों का भ्रमण करके ही लगाया जा सकता है। ऐसा ही प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल है-जम्मू-कश्मीर स्थित कटरा और उसके आस-पास के पहाड़ी स्थल। यहाँ पहुँचने का साधन अब तक सड़क यातायात ही था, परंतु अब रेल परिवहन के कारण यात्रा सुगम बन गई है। इस पर्यटन स्थल तक जम्मू से यदि बस या छोटी गाड़ियों द्वारा जाया जाय, तो यात्रा का आनंद कई गुना बढ़ जाता है। जम्मू से निकलते ही तवी नदी पारकर आगे बढ़ते ही ऊँचे-नीचे घुमावदार रास्ते शुरू हो जाते हैं। इनके दोनों ओर खड़े पेड़ और झाड़ियों की हरियाली और उनमें उछलते-कूदते बंदर मन को आकर्षित कर लेते हैं।
कई जगह तो तवी नदी हमारे साथ चलती-सी प्रतीत होती है। कटरा पहुँचते ही हमें दूर पहाड़ियों पर स्थित छोटे-बड़े मंदिर नज़र आने लगते हैं। उनकी घंटियों की आवाज़ सैलानियों को अपनी ओर खींचती हैं। यहाँ संकरी गलियों में सजी रंग-बिरंगी दुकानें हैं, जहाँ सामान खरीदे बिना लोग रह नहीं पाते हैं। यहाँ से वैष्यो देवी, पहलगाम जैसे स्थलों पर जाया जा सकता है। पहाड़ों की गोद में बसा कटरा एक छोटा-सा शहर है, जहाँ शाम का सौंदर्य अनूठा होता है। इसकी अनुभूति हमें तब होती है, जब कटरा से भी कुछ ऊपर जाकर एक ओर नदी को देखें, दूसरी ओर कटरा और उसके आस-पास के पर्वतीय सौंदर्य को। यहाँ की प्राकृतिक सुषमा सैलानियों को बार-बार आने के लिए विवश कर देती है।
13. ‘सूचना का अधिकार’ कानून के लाभ, उसकी सीमाएँ तथा उसके दुरुपयोग पर फ़ीचर।
‘सूचना का अधिकार’ कानून के लाभ, उसकी सीमाएँ और उसका दुरुपयोग
सुचना का अधिकार कानून अर्थात् आर॰टी०आई० (राइट टू इंफर्मेशन) 2005 के लागू होने से आम लोगों में मजबूती और जागरूकता आई है। इससे लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग हुए हैं। इस कानून को जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के अन्य भागों में लागू किया गया। इसकी मदद से आम आदमियों की सामान्य समस्याओं, जैसे-समय पर राशन न मिलना, कम मिलना, गरीबी रेखा से नीचे आने पर भी बी॰पी॰एल० काड़ से नाम क्यों हटा दिया जाना, गैस सिलिंडर की समय पर डिलीवरी न मिलना, सरकारी दफ्तरों में काम रुका होना, थाने में शिकायत न दर्ज होना, बिजली-पानी की उपलब्धता में कमी, सफाई की अव्यवस्था जैसी समस्याओं का जवाब नियत समय में मिलने लगा है। इस कानून के लागू होने से किसी भी विभाग से सूचनाएँ माँगी जा सकती हैं. जिनका जवाब शिकायतकर्ता के घर भेजा जाने लगा है।
सवाल पूछने, सूचना माँगने का अधिकार प्रदान करता है-‘सूचना का अधिकार’ कानून। इसके माध्यम से सरकारी विभागों की जहाँ जवाबदेही तय हुई है, वहीं पारदर्शिता लाते हुए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने में भी सफलता मिली है। इसका लाभ हर भारतीय (जम्मू-कश्मीर वासी को छोड़कर) उठा सकता है। इस प्रकार की सूचनाएँ रिकॉर्ड रखने की समयावधि के आधार पर सीडी, टेप, वीडियो या इलेक्ट्रॉंनिक माध्यमों से भी माँगी जा सकती है। इस कानून के अंतर्गत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, प्रधानमंत्री कायालय, संसद, चुनाव आयोग, अदालतें, सरकारी कार्यालय, सरकारी बैंक, सरकारी अस्पताल, पुलिस विभाग, सरकारी बीमा कंपनियाँ, एन॰जी॰ओ० आदि आते हैं।
इस कानून की अपनी कुछ सीमाएँ भी हैं, जैसे-देश की सुरक्षा एवं अखंडता को नुकसान पहुँचाने वाली सूचनाएँ, अन्य देशो के साथ भारत के जुड़े मामले तथा निजी संस्थानों की जानकारी देना इसकी परिधि में शामिल नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन सूचनाओं के सार्वजानिक होने तथा दुरुपयोग करने से देश की एकता और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
14. शिक्षा का अधिकार कानून का विद्यालयों में अनुपालन और सीमाएँ विषय पर फ़ीचर।
शिक्षा का अधिकार कानून का विद्यालयों में अनुपालन और सीमाएँ
देश के सभी बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने के लिए 01 अप्रैल, 2010 में सरकार द्वारा एक अधिनियम प्रभाव में लाया गया। इसका नाम था-नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम। इसके माध्यम से शिक्षा का संवैधानिक अधिकार अब मौलिक अधिकार में बदल गया, ताकि हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिल सके, लेकिन राज्य सरकारों की दुढ़ इच्छा और संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा की स्थिति अब भी कमोवेश वैसी ही बनी हुई, जैसी यह अधिनियम लागू होने से पहले थी। देश की शिक्षा में एकरूपता लाने और हर बच्चे को शिक्षा देने के लिए यह अधिनियम लाया गया, परंतु इसके क्रियान्वयन में कमी रही।
इससे गरीब और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को इस अधिनियम का उचित लाभ नहीं मिल रहा है। दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र में कुछ प्राथमिक पाठशालाओं को देखने के बाद इस अधिनियम के अनुपालन की हकीकत सामने आई। इन विद्यालयों के प्रत्येक वर्ग (सेक्शन) में बच्चों की अस्सी-नब्बे की संख्या, टूटी-फूटी बेंचे, ऊबड़-खाबड़ श्यामपट्ट, पीने के पानी का घोर अभाव, गंदे पड़े शौचालय तथा पाँचवीं के छात्रों को आठ तक पहाड़े भी न आना देखकर शिक्षा का अधिकार कानून की विफलता का साक्षात् नमूना नज़र आया। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह थी कि कुछ विद्यालयों में एक ही शिक्षक दो-दो कक्षाएँ सँभालने को विवश थे।
कुछ विद्यालयों के जर्जर भवन, प्लास्टररहित दीवारें, पेड़ों के नीचे पढ़ने के लिए बैठे बच्चों को देखकर लगा कि इस अधिनियम के अनुपालन के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। विद्यालयों की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर इस अधिनियम की सफलता संदिग्ध लगती है। इसके अनुपालन के लिए सरकार को पहले विद्यालयों की दशा सुधारनी होगी, संसाधन से परिपूर्ण करना होगा और शिक्षकों की संख्या बढ़ानी होगी, ताकि अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा हर बच्चे को मिल सके।
रिपोर्ट
रिपोर्ट-लेखन समाचार-पत्र, रेडियो और दूरदर्शन की एक विशिष्ट बिद्या है, जिसमें किसी देखी गई घटना या समारोह में संपन्न हुए कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जाता है। दूरदर्शन के लिए रिपोर्ट करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सुनकर ऐसा लगे कि रिपोर्ट का लेखक घटनास्थल पर उपस्थित था। रेडियो के लिए रिपोर्ट लेखन केवल सुनने के योग्य तैयार कर लिया जाता है।
एक अच्छी रिपोर्ट में निम्नलिखित गुण होने चाहिए :
1. संक्षिप्तता-एक अच्छी रिपोर्ट की पहली विशेषता उसकी संक्षेप्तता है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि संक्षिप्त करने के चक्कर में आवश्यक बातें न छुट जाएँ। हाँ, ज्यादा बड़ी रिपोर्ट प्राय: आधी-अधूरी ही पढ़ी जाती है।
2. सत्यता-रिपोर्ट का मुख्य गुण है, उसकी सत्यता। जिस रिपोर्ट में सत्यता नहीं होती, उसका विश्वास करना कठिन हो जाता है।
3. निष्पक्षता-रिपोर्ट लेखक को तटस्थ भाव से रिपोर्ट-लेखन करते हुए रिपोर्ट को निष्पक्ष बनाने का प्रयास करना चाहिए। निष्पक्षता के बिना रिपोर्ट के उपेक्षित होने की संभावना बढ़ जाती है।
4. पूर्णता-रिपोर्ट भले ही एक निश्चित शब्द-सीमा में बँधी हो, पर यह अपने में पूर्ण होनी चाहिए। आधी-अधूरी रिपोर्ट प्रभावहीन मानी जाती है।
5. संतुलित-रिपोर्ट-लेखन में दो पक्षों की गतिविधियों का उल्लेख किया जाना है तो दोनों पक्षों को समान महत्व देकर लेखन करना चाहिए। इससे रिपोर्ट संतुलित बनी रहती है।
रिपोर्ट लेखन के उदाहरण
1. विद्या कन्याधन योजना के लिए चेक वितरण पर रिपोर्ट।
विद्या कन्याधन योजना के अंतर्गत चेक वितरण
कल दिनांक को ग्रेटर नोएडा स्थित एक्सपो मॉल सेंटर में विद्या कन्याधन योजना की लाभार्थी उन छत्राओं को 20 हज़ार रुपये के चेक वितरित किए गए, जिन्होंने इसी वर्ष जून में बारहवी की परीक्षा उत्तीर्ण की है। इसका लाभ हजारों लाभार्थियों ने उठाया। यहाँ प्रात: 8 बजे से ही भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई। क्षेत्रीय विधायक ने नौ बजे पहला चेक अपने हाथों से प्रदान करके इसका उद्घाटन किया। यह कार्यक्रम सायं चार बजे तक चला। इस अवसर पर अनेक शिक्षाधिकारी भी उपस्थित थे।
2. रक्तदान शिविर के आयोजन की रिपोर्ट।
रक्तदान शिविर का आयोजन
आज दिनांक ………. को सदर लायंस क्लब-पंजाबी बाग क्लब की ओर से ईस्ट पंजाबी बाग में एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। इसके आयोजन एवं पंजीकरण की सूचना स्थानीय लोगों को एक सप्ताह पहले से ही दी जा रही थी। डॉक्टर एवं नसों की टीम आवश्यक तैयारी के साथ आठ बजे ही आ गई थी। मुख्य पार्क में आयोजित शिविर में रक्तदाताओं की लंबी कतार लगी थी। कुछ नए पंजीयन भी करा रहे थे। इस अवसर पर युवाओं का जोश देखते ही बनता था। स्थानीय युवा विधायक ने स्वयं रक्तदान करके इसका श्रीगणेश किया। रक्तदान का यह स्वेच्छिक कार्यक्रम अपराह्न तीन बजे तक चलता रहा।
3. सीलमपुर में सांप्रदायिक तनाव पर रिपोर्ट।
सीलमपुर में सांप्रदायिक तनाव
कल दिनांक ……….. को भारत-पाकिस्तान के बीच एक-दिवसीय क्रिकेट मैच खेला गया। इस रोमांचक मैच में पाकिस्तान को पराजय का मुँह देखना पड़ा। मैच से उत्साहित एक समुदाय-विशेष के लोगों ने आतिशबाज़ियाँ और पटाखे जलाकर खुशी मनानी शुरु कर दी। तभी दूसरे समुदाय के लोगों ने उनसे कहा-सुनी शुरू कर दी। इससे स्थिति बिगड़ गई। खुशी के पल गम में बदलते जा रहे थे। लोगों ने एक-दूसरे गुट पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। दोनों समुदायों के समझदार बुजुर्गों ने बीच-बचाव करके माहौल को शांतिपूर्ण बनाने का प्रयास किया। दोनों समुदायों के बीच यह तनाव एक घंटे ही रहा। बाद में स्थिति सामान्य हो गई। अच्छी बात यह रही कि इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ।
4. नए विद्यालय के उद्घाटन समारोह पर रिपोर्ट।
विद्यालय का उद्याटन समारोह
आज दिनांक ……… को जहाँगीरपुरी के ए ब्लॉक में नवनिर्मित विद्यालय का उद्घाटन माननीया मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कर-कमलों से संपन्न हुआ। इस अवसर पर महिला समाज कल्याण मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार के अनेक स्थानीय विधायक एवं अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे। इस विद्यालय को लड़कियों की शिक्षा सुधारने की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम बताते हुए बेहतर शिक्षा प्रदान करने का वायदा किया गया। मुख्यमंत्री जी ने स्त्री शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसे समाज के लिए बहुत आवश्यक बताया।
5. मुंबई हमले के संबंध में सरकारी लापरवाही पर रिपोर्ट।
मुंबई पर आतंकी हमले का खुलासा-कमज़ोर थे हम
मुंबई आतंकी हमले की जाँच करने वाली प्रधान समिति ने मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हसन गफूर की गंभीर चूक पाई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गफूर आतंकी हमले के दौरान शहर में फैली युद्ध जैसी स्थिति से निपटने में
नाकाम रहे। रिपोर्ट में राज्य व शहर के आला अधिकारियों पर हमले के दौरान सामान्य कार्य-प्रणाली (एसओपी) का पालन न करने का आरोप लगाया गया है। इसमें पुलिस फोर्स के तत्काल उन्नयन व लगातार समीक्षा के सुझाव भी दिए गए हैं। छह माह पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चक्हाण को सौपी जा चुकी इस रिपोर्ट का मराठी अनुवाद गृहमंत्री आर०आर० पाटिल ने सोमवार को विधानसभा पटल पर रखा। इस रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों की जानकारी स्वयं पाटिल ने सदन को दी। इस रिपोर्ट को पूर्व गवर्नर आर०डी० प्रधान की अध्यक्षता में गठित दो-सदस्यीय समिति ने तैयार किया था। पाटिल ने सदन को बताया कि मुख्यमंत्री को मिलाकर गठित 16 – सदस्यीय दल इस रिपोर्ट के सभी पहलुओं का अध्ययन करेगा। साथ ही मीडिया में इसके लीक होने की भी जाँच की जाएगी। उन्होंने स्वीकार किया कि महाराष्ट्र सरकार को दी गई रिपार्ट और लीक हुई रिपोर्ट एक जैसी थी। विधानसभा में विपक्ष के नेता एकाथ खडसे ने रिपोर्ट के मीडिया में लीक होने की सीबीआई जाँच की माँग की। उन्होंने इस मामले में सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया। मुद्दे पर विपक्ष ने सदन से वाकआउट किया। खडसे ने कहा है कि इस रिपोर्ट की जानकारी सिर्फ मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, मुख्य सचिव व अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को ही थी। उन्होंने कहा कि सरकार को डर है कि जाँच हुई तो उसमें इन्हीं में से कोई दोषी निकलेगा।
6. रोहतक क्षेत्र में बढ़ते अपराधों पर रिपोर्ट।
रोहतक रेंज अपराध में नंबर वन
राजेंद्र राज
चंडीगढ़।
राज्य में अपराधों का आँकड़ा पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है। बीते साल के मुकाबले इस साल सितंबर तक हत्या, डकैती, लूट, बलात्कार, अपहरण जैसे संगीन अपराधों में वृद्धि दर्ज़ की गई है। रोहतक रेंज में सबसे ज्यादा अपराधों में बढ़ोतरी सामने आई है। विभाग की क्राइम रिपोर्ट के अनुसार रोहतक रेंज में बीते साल के मुकाबले इस साल कुल 61,236 मुकदमे दर्ज़ किए गए, जबकि बीते साल ये कुल 57,921 थे। इस साल बीते साल के मुकाबले 3315 मामले सितंबर तक ज्यादा दर्ज़ हो चुकँ हैं। राज्य पुलिस की क्राइम रिपोर्ट में दर्ज़ विवरण के अनुसार रोहतक रेंज में अन्य क्षेत्रों की बजाय सबसे ज्यादा 2,739 मामले बीते साल के मुकाबले अधिक दर्ज किए गए हैं। पुलिस विभाग द्वारा जारी वार्षिक क्रम रिपोर्ट सितंबर 2009 तक के अनुसार रोहतक रेंज के तहत आने वाले जिला सोनीपत, करनाल, झज्जर और मुख्यमंत्री के गृह जिले रोहतक में बीते साल सितंबर 2008 तक हत्या के 215 मामले दर्ज़ किए गए थे, इस साल ये बढ़कर 227 हो गए हैं। अपहरण की घटनाओं का ग्राफ बीते साल 133 के मुकाबले 177 तक जा पहुँचा है। डकेती की घटनाएँ रोहतक रेंज में जहॉँ बीते वर्ष 21 हुई थीं, इस साल सितंबर तक ये 34 तक पहुँच चुकी हैं। लूट के मामले 157 हुए हैं, जबकि ये बीते साल 106 थे। सेंधमारी के मामलों का ग्राफ सबसे ज्यादा सामने आया है। बीते साल सेंधमारी के कुल 761 केस हुए थे।
7. नेपाल में बढ़ते तपेदिक-रोगियों पर रिपोर्ट।
नेपाल के 45 प्रतिशत लोग तपेदिक से संक्रमित
काठमांडू (एजेंसी) : एक अनुमान के अनुसार नेपाल की करीब 45 प्रतिशत आबादी तपेदिक से संक्रमित है। इनमें से 60 प्रतिशत संख्या उत्पादक आयु-समूह की है। नेपाल के स्वास्थ्य और जनसंख्या विभाग ने शनिवार को 56 वें राष्ट्रीय तपेदिक दिवस पर जारी एक रिपोर्ट में कहा कि तपेदिक से हर वर्ष करीब 5,000 से 7,000 लोगों की मौत होती है।
स्थानीय अखबार हिमालयन टाइम्स के अनुसार नेपाल के तपेदिक विरोधी एसोसिएशन के अध्यक्ष देवेंद बहादुर प्रधान ने कहा कि सरकार को तपेदिक के प्रति अधिक चिंतित होना चाहिए और इसकी रोकथाम के लिए प्रभावी कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। राष्ट्रीय तपेंदिक कार्यक्रम की निदेशक पुष्पामाला ने कहा कि तपेदिक के इलाज के लिए ‘डायरेक्टली ऑब्ज़र्ड ट्रीटमेंट’ (डॉट) की रणनीति अपनाई गई है। उन्होंने कहा कि डॉट कार्यक्रम को तपेदिक के इलाज और रोकथाम में काफी प्रभावी पाया गया है। नेपाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से वर्ष 1996 में डॉट कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
विशेष रिपोर्ट कैसे लिखें?
अखबारों और पत्रिकाओं में समाचार तो होते हैं, पर इनके अलावा गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर विशेष रिपोर्ट भी प्रकाशित होती है। इन्हें तैयार करने के लिए किसी समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है। उससे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्र किया जाता है, जिनके विश्लेषण के आधार पर उनके कारण और प्रभाव के साथ-साथ परिणाम को भी स्पष्ट किया जाता है।
विशेष रिपोर्ट के प्रकार
विशेष रिपोर्ट निम्नलिखित प्रकार की होती हैं :
1. खोजी रिपोर्ट (इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट) – इस प्रकार की रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के माध्यम से ऐसी सूचनाएँ और तथ्य सामने लाता है जो पहले से उपलब्य नहीं थे। ऐसी रिपोर्ट का इस्तेमाल प्राय: भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को लोगों के संज्ञान में लाने के लिए किया जाता है।
2. इन-डेप्थ रिपोर्ट – इस प्रकार की रिपोर्ट में उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और उसके आधार पर घटना, समस्या या मुद्ये से जुड़े विभिन्न पक्षों को सामने लाया जाता है।
3. विश्लेषणात्मक रिपोर्ट – इस प्रकार की रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से जुड़े तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या पर बल दिया जाता है।
4. विवरणात्मक रिपोर्ट – इस प्रकार की रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत किया जाता है।
विशेष रिपोरोंों को उलटा पिरामिड शैली में लिखा जाता है। लेकिन कई बार इन्हें फ़ीचर शैली में भी लिखा जाता है। ऐसी रिपोर्ट सामान्य रिपोर्ट से बड़ी और विस्तृत होती है, इसलिए इन्हें रुचिकर बनाए रखने के लिए दोनों ही शैलियों में लिखा जाता है। बड़ी रिपोर्टों को किस्तों में भी छापा जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल वाली होनी चाहिए।
विशेष रिपोर्ट का उदाहरण
….. तो चीन के साथ चले जाएँगे अपने
पता नहीं आपमें से कितने लोगों ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी इस खबर को पढ़ा, जिसके मुताबिक चीन की सीमा से लगी पिन घाटी के लोगों ने चेतावनी दी है कि अगर हिमाचल प्रदेश की सरकार उनकी समस्याएँ नहीं सुनती तो वे चीन से मदद माँगेंगे।
ऐसा देश, जहाँ एक चीनी मकखी के भी बॉर्डर पार कर लेने पर खूब हो-हल्ला मच जाता है, वहाँ इस घटना को लेकर ठंडी प्रतिक्रिया से मुझे हैरत हुई। ध्यान से देखें तो घाटी के लोगों की इस धमकी की वजह हमारी इस प्रतिक्रिया में दिख जाती है। चाहे सत्ता में जो भी हो, हम हमेशा अपने लोगों को हल्के में लेते हैं। अगर वे नज़र से दूर हैं तो हमारी सोच से भी गायब हो जाते हैं। देश के दूरदराज इलाकों में बसे ये लोग ऐसे ही हैं। ये तो इतना बड़ा वोट-बैंक भी नहीं है कि हमारे नेता उनके बारे में सोचें।
चीन की सीमा के करीब बसे देश के उत्तर और पूर्वोत्तर के मित्रों के साथ की गई बातचीत से तो मुझे यही समझ में आता है कि यह कोई अकेली और पहली घटना नहीं होगी। इसकी वजह हमारे देश की सरकारों (केंद्र और राज्य दोनों) का सीमा पर बसे लोगों से किया जाने वाला शांकिंग व्यवहार है। बात चाहे लोगों की तरक्की की हो या बुनियादी ढाँचे के विकास की कनेक्टिविटी या फिर कुछ और, देश में जो थोड़ा-बहुत तथाकथित डेवलपमेंट हुआ है, वह भी इन इलाकों से पूरी तरह गायब है।
इसके उलट चीन के पास अच्छी सड़कें हैं, एयर व ट्रेन कनेक्टिविटी है। इसमें एक ऐसी ट्रेन भी शामिल है जो तिब्बत के पठार को चीन की मुख्य भूमि से जोड़ती है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास बहुत तेज़ी से फैल भी रहा है। करीब एक दशक पहले जब मै ल्हासा से मानसरोवर जा रहा था तो मैंने इस इंक्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने की तैयारी देखी थी। ल्होसा और ल्हात्से शहर आधुनिकता के मामले में खासकर सड़क, ग्लास और स्टील में, भारत में मॉडर्न कहलाने वाली चीज़ों से कहीं आगे थे। और हम क्या कर रहे हैं? आज़ादी के साठ साल बाद भी जम्मू और श्रीनगर के बीच वही एक रास्ता है।
ईमानदारी से कहें तो आज़ादी के बाद से हमने बस एक बड़ी नई रेल लाइन कोंकण रेलवे बनाई है। इसके अलावा सिर्फ ट्रैक्स की चौड़ाई बढ़ाने का काम हुआ और वहाँ भी क्वालिटी में कोई इज़ाफ़ा नहीं ही हुआ है। दरअसल, शिमला, दार्जिलिग. ऊटी जैसे सबसे जटिल पहाड़ी मार्ग अंग्रेज़ों के ही बनाए हुए हैं और इसके लिए हमें उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। फिर से पिन घाटी के लोगों की समस्याओं पर लौटते हैं।
यह इलाका भारत के सबसे अद्भुत हिस्सों में से एक है। आप इसे कठोर पहाड़ियों या घनी हरियाली, चाहे जिस नज़रिए से देखें, यह अद्भुत ही दिखता है। ऐसी जगहों पर एक टूरिस्ट या ट्रेकर की तरह जाना, जैसा कि अकसर मैं जाता हूँ और यहाँ रहना, दोनों में ही काफी अंतर है। यहाँ की ज़िदगी की कठिनाइयाँ आसानी से देखी जा सकती हैं।
हो सकता है कि आपको आश्चर्य हो कि लोग यहाँ कैसे रहते हैं। लेकिन यहाँ के लोग इसे करके दिखाते हैं। यहाँ के लोग सामान्यतया शिकायत करने वाली प्रवृत्ति के होते हैं क्योंकि अधिकतर सिपल लोग हैं। ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी शिकायत कोई सुनने वाला भी नहीं है। लेकिन अब समय बदल रहा है। अब यहाँ के लोग उस पैसे को लेकर जागरूक हुए हैं, जो क्षेत्र के विकास के नाम पर सरकार खर्च कर रही है। पैसा खर्च करने के बावजूद जीरो रिजल्ट से भी यहाँ के लोग वाकिफ़ हैं। साथ ही उन्हें सीमा पार के बदल रहे हालातों की भी अच्छी समझ है।
आप इसे सूचनाओं के प्रवाह में उन्नति के तौर पर भी समझ सकते हैं। इन सबका एक मतलब यह भी है कि यहाँ के नेताओं और अफ़सरों में बदलाव की ज़रूरत है। इनके लिए अब यह जानना बिलकुल ज्ञरूरी हो गया है कि इस क्षेत्र की समस्याओं में क्या काम करेगा और क्या नहीं। यहाँ का सत्य हमारे प्रशासन और नेतृत्व को जितनी जल्दी समझ में आए उतना ही अच्छा, क्योंकि हमारा पड़ोसी चीन यहाँ हमें परेशान करने वाले किसी भी मौके को चूकना नहीं चाहता।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसमें ज़रा भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यहाँ के परेशान लोग अपनी जीवन-दशा को सुधारने के लिए चीन के साथ जाने की वकालत करें। हमारे देश के इस इलाके के लोगों के साथ जिस तरह का बर्ताव होता है, यहाँ विकास के नाम पर आने वाली छोटी-सी भी राशि का भ्रष्ट नेताओं और अफ़सरों के बीच बंदरबाट होता है, ऐसे में इस तरह का कोई कदम चकित नहीं करेगा।
हमारे पड़ोसी राष्ट्र चीन के लिए यहाँ का जियो-पॉलिटिकल गेम काफी महत्वपूर्ण है। यह बात यहाँ पैसे बनाने में जुटे नेता और अफ़सर कभी नहीं समझ पाएँगे। पिन घाटी जैसी घटनाओं में और इज़ाफ़ा हो, उससे पहले हमें यहाँ सुधार के लिए जितनी जल्दी हो सके कदम उठा लेने चाहिए।
(नबभारत टाइम्स से साभार)
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अच्छे संपादक के गुण और कार्य
- संपादक को निष्पक्ष भाव बनाते हुए काम करना चाहिए।
- समाचार-पत्रों में खबरों में छपने के लिए संपादक ही उत्तरदायी होता है।
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- वह प्रथम पृष्ठ पर छपी खबरों और चित्रों का निर्णय स्वयं करता है।
- निश्चित समय पर और निश्चित मात्रा में समाचार छपवाना संपादक की जिम्मेदारी बनती है।
संपादकीय के उदाहरण
1. डूबा हुआ स्वर्ग
जम्मू-कश्मीर में आई भयानक बाढ़ ने देश को चिता में डाल दिया है। बीते 60 वर्षों की इस सबसे जबर्दस्त बाढ़ ने वहाँ के जनजीवन को तबाह कर दिया है। 150 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। करीब 400 गाँव पानी में डूब चुके हैं, जिनमें से 50 बुरी तरह प्रभावित हैं। असल में वहाँ पिछले कुछ समय से हुई असाधारण बारिश से झेलम और चिनाब जैसी नदियों में उफान आ गया। इस बारिश और बाढ़ का प्रकोप पाकिस्तान में भी देखने को मिला है। वहाँ भी कई इलाके भूस्खलन और जलभराव के शिकार हुए हैं।
भारत और पाकिस्तान के ऊँचे इलाकों में बार-बार घटित हो रही असाधारण प्राकृतिक घटनाओं ने मौसम विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों को हैरत में डाल रखा है। इस क्षेत्र में इतनी वर्षा पहले नहीं देखी जाती थी। वर्ष 2010 में जब लेह और लद्दाख और पाकिस्तान स्थित कराकोरम पर्वत-भृंखला में बारिश से भयानक तबाही हुई, तब मौसम विज्ञानियों के कान खड़े हुए थे। इसका अगला कदम पिछले साल उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी में आए जलप्रलय के रूप में दिखाई पड़ा, और अब नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ मौजूद जम्मू-कश्मीर के इलाकों में वैसे ही दूश्य दोहराए जा रहे हैं।
इन घटनाओं से इस प्रस्थापना को लेकर लगभग सहमति बनती जा रही है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मॉनसून का पैटर्न पूरी तरह बदल गया है। बर्फबारी के लिए मशहूर इलाकों में मूसलाधार बारिश हो रही है। धान की खेती का गढ़ समझे जाने वाले इलाके सूखे रह जा रहे हैं और राजस्थान तथा सिंध के असिचित रेगिस्तानी इलाकों में महीनों पानी भरा रह रहा है। इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के हिमालयी राज्यों में बादल फटने और बहुत ज्यादा बारिश की वजह से अचानक आने वाली बाढ़ के मामले बढ़े हैं। इससे कुछ नदियाँ असमय लबालब हो जाती हैं और उनका रास्ता बदल जाता है।
भूगर्भीय आँकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि कुछ नदियों ने अपना रास्ता 300 मीटर दूर तक बदला है तो कहीं-कहीं वे $1.8$ किलोमीटर दूर जा चुकी हैं। इस कारण सड़कें, इमारतें और खेत बह रहे हैं। जलवायु में हो रहे इस भारी परिवर्तन के अनुरूप हमारी तैयारी नहीं है। कई राज्य मानकर चल रहे होते हैं कि उनके यहाँ बाढ़ आने का सवाल ही नहीं है। पर जिस तरह से मौसम का मिज़ाज़ बदल रहा है, उसे देखते हुए आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
सम्यन वन क्षेत्र बढ़ाकर, बारिश के पानी को स्थानीय स्तर पर रोककर, नदियों को उथला होने से बचाकर, बड़े बाँधों पर पाबंदी लगाकर इस संकट को कम किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए हमें दूर तक सोचने का आदी होना पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर के संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने राज्य को एक हज़ार करोड़ रुपये की सहायता देने की घोपणा की है। एक-एक पैसे का सही उपयोग होना चाहिए और पीड़ितों तक मदद पहुँचनी चाहिए। इस काम में सभी राज्यों को और आम लोगों को भी मदद् के लिए आगे आना चाहिए। हमें जम्मू-कश्मीर के लोगों को अहसास कराना होगा कि इस संकट में पूरा देश उनके साथ है।
– संपादकीय : नवभारत टाइम्स
2. राहत और सरहद
प्रकृति के लिए इंसान की बनाई हुए सरहदें कोई मायने नहीं रखती। जब भी कोई प्राकृतिक घटना घटती है या आपदा आती है, तो वह याद दिलाती है कि भारतीय उपमहाद्वीप एक भौगोलिक इकाई है। जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ ने भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य और पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर, दोनों को एक साथ प्रभावित किया है, बल्कि भारी बारिश और कश्मीर से निकलने वाली नदियों में पानी बढ़ जाने से पाकिस्तान के पंजाब सूबे में भी भारी बाढ़ आई है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर की बाढ़ को राप्ट्रीय स्तर की आपदा घोषित कर दिया है और सेना को राहत-कार्यों में लगा दिया है।
कश्मीर में श्रीनगर शहर के कई इलाकों में इतना पानी घुस गया है कि डल झील और शहर में फ़र्क करना मुश्किल हो गया है। पहाड़ी इलाकों में राहत-कार्य करना यों भी मुश्किल होता है, भू-स्खलन की वजह से सड़क संपर्क टूट जाता है और पहाड़ों पर पानी के तेज़ बहाव की वजह से जान-माल की हानि को रोकना बहुत मुश्किल और जोखिम-भरा हो जाता है। जम्मू-कश्मीर में लगभग 200 लोगों के मरने की आशंका है और पाक-अधिकृत कश्मीर से जो खबरें मिल रही हैं, उनके मुताबिक वहाँ भी काफी लोग मारे गए हैं।
इस प्राकृतिक आपदा ने भारत और पाकिस्तान के बीच टूटे हुए संवाद के सूत्र को फिर से जोड़ने का काम किया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को चिट्ठी लिखकर उन्हें अपनी ओर से हर संभव सहायता का प्रस्ताव किया है। ज़वाब में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने भारतीय प्रधानमंत्री से अपनी ओर से जम्मू-कश्मीर में सहायता का प्रस्ताव भेजा है। जाहिर है, ये दोनों ही प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए जाएँगे। पाकिस्तान में कितनी ही बड़ी आपदा आ जाए, वहाँ की सरकार भारत सरकार की सहायता नहीं स्वीकार करेगी, क्योंकि उससे उसके अलोकप्रिय होने का खतरा होगा।
जब कुछ साल पहले पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में जबर्दस्त भूकंप की वजह से बड़े पैमाने पर तबाही मची थी, तब भी पाकिस्तान सरकार ने भारत सरकार का सहायता का प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया था। पाकिस्तान सरकार भूकंप-प्रभावित लोगों को मदद देने में नाकाम रही थी, और जो कुछ सहायता लोगों को मिल रही थी, वह कुछ कट्टखवादी आतंकवादी गुटों से जुड़े स्वयंसेवी संगठनों से आ रही थी। पाकिस्तान को यह भी डर होता है कि अगर भारतीय राहत सामग्री और कार्यकर्ता पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में पहुँच गए, ता वे काफी ऐसी जानकारी पा जाएँगे, जो पाकिस्तान नहीं चाहता कि भारत के पास पहुँच जाए।
अगर दोनों देशों के संबंधों के पेच छोड़ भी दिए जाएँ, तो पाकिस्तान के मुकाबले भारत बहुत बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से कई गुना बड़ी है। भारत के पास इतने संसाधन हैं कि वह पाकिस्तान की मदद कर सके, जबकि पाकिस्तान के पास संसाधनों का अभाव है। लेकिन राजनीति मदद स्वीकारने नहीं देती। अगर दोनों देश मिल-जुलकर राहत का काम करें, तो वह काफी आसान हो जाएगा और जनता को मदद भी ज़्यादा व जल्दी मिलेगी। भारत के प्रशासनिक तंत्र में काफी कमियाँ हैं, किंतु यहाँ व्यवस्था काम करती है। पाकिस्तान का प्रशासनिक तंत्र लगभग ध्वस्त स्थिति में है, ऐसी परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर की ओर से पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर तक राहत पहुँचाना ज्यादा व्यावहारिक और फायदेमंद होगा। प्रकृति तो राजनीति की फ़िक्र नहीं करती, लेकिन राहत के रास्ते में तो राजनीति का आना तय है, खासकर अगर भारत-पाकिस्तान का सवाल हो। -संपादकीय : हिंदुस्तान
आलेख
किसी एक विषय पर विचार-प्रधान एवं गद्य-प्रधान अभिव्यक्ति को ‘आलेख’ कहा जाता है। आलेख वस्तुतः एक प्रकार के लेख होते हैं, जो अधिकतर संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं। इनका संपादकीय से कोई संबंध नहीं होंता। ये लेख किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं; जैसे-खेल, समाज, राजनीति, अर्थ, फ़िल्म आदि। इनमें सूचनाओं का होना अनिवार्य है।
आलेख के मुख्य अंग
आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्ची व निष्कर्ष।
सर्वप्रथम, शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी चाहिए। विषय के प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, आकार, रूप व क्षेत्र आते हैं। इसमें विषय का क्रमिक विकास किया जाता है। विषय में तारतम्यता व क्रमबद्धता अवश्य होनी चाहिए। तुलनात्मक चर्चा में विषय-वस्तु का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है और अंत में, विषय का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।
आलेख-रचना के संबंध में प्रमुख बातें
- आलेख लिखने से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषय-वस्तु का विश्लेषण करना चाहिए।
- विषय-वस्तु से संबंधित आँकड़ों व उदाहरणों का उपयुक्त संग्रह करना चाहिए।
- आलेख में शृंखलाबद्धता होना ज़रूरी है।
- लेख की भाषा सरल, बोधगम्य व रोचक होनी चाहिए। वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए। एक परिच्छेद में एक ही भाव व्यक्त करना चाहिए।
- लेख की प्रस्तावना व समापन में रोचकता होनी ज़रूरी है।
- विरोधाभास, दोहरापन, असंतुलन, तथ्यों की असंदिग्धता आदि से बचना चाहिए।
आलेख के उदाहरण
1. एक अच्छा स्कूल
स्कूल ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ सीखने के लिए उचित माहौल बन सके। स्कूल के बुनियादी ढाँचे के अलावा इसके वैल्यू सिस्टम समेत हमें इसके वातावरण पर फिर से गौर करना होगा। हमें बच्चों को दखलंदाजी से मुक्त और रोचक माहौल देने की आवश्यकता है। हमें ऐसे तत्वों को पहचानकर दूर करना होगा, जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में बाधक हैं। अनुशासन के लिहाज से यही बेहतर है कि ऐसे नियम-कायदों को, जिन्हें बच्चे सज़ा की तरह समझें, जबरन लादने की बजाय नियमों को तय करने में उनकी भागीदारी भी हो। हमें उन्हें सशक्त बनाना होगा और स्कूली प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
क्लास रूम में लोकतांत्रिक व्यवस्था नज़र आए, जहाँ बच्चों के साथ इंटरएक्शन संवादात्मक हो, शिक्षात्मक नहीं। जहाँ सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार किया जाए। आपसी संपर्क, संवाद और अनुभव पर आधारित शिक्षा-संबंधी प्रविधियाँ अधिक प्रभावशाली होंगी। अवधारणाओं को सिखाने पर ध्यान देना चाहिए।
मेरे विचार से यह बेहद जरूरी है कि हम शिक्षा को व्यापक सामाजिक संदर्भों के हिसाब से देखें। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिससे बच्चे अपने ज्ञान को बाहरी दुनिया के साथ जोड़ सकें। ज्ञान वास्तविक अनुभवों से आता है और यदि क्लास रूम के क्रियाकलापों को वास्तविकता से नहीं जोड़ा जाता तो शिक्षा हमारे बच्चों के लिए महज शब्दों और पाठों का खेल ही बनी रहेगी। आज हम एक समाज के तौर पर बेहतर स्थिति में हैं और बदलाव के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं। देश में कई स्कूल और संस्थान यह दर्शा रहे हैं कि वस्तुतः हम पुराने तौर-तरीकों से निजात पाकर बेहतर शिक्षा के लिए प्रयास कर सकते हैं। जयपुर का दिगंतर द्वारा संचालित बंध्याली स्कूल, बेंगलूर का सेंटर फ़ॉर लनिंग या बर्दवान में विक्रमशिला का विद्या स्कूल जैसे कुछ शिक्षालय ऐसी शिक्षा के लिए जाने जाते हैं, जैसी हम चाहते हैं। एकलव्य, दिरंगर और विद्या भवन जैसे सामाजिक संस्थान और आई डिस्कवरी तथा ईजेड विद्या जैसे कुछ सामाजिक उपक्रम पूरे देश में चलाए जा रहे इस सतत आंदोलन का एक हिस्सा हैं। इन सबके प्रभाव मुख्य धारा की स्कूलिंग पर नज़र आने लगे हैं।
2. भारतीय कृषि की चुनौती
ऐसे समय में जब खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं और दुनिया में भुखमरी अपने पैर पसार रही है, जलवायु-परिवर्तन से संबंधित विशेषज् आगाह कर रहे हैं कि आने वाले वक्त में हमें और भी भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा। दिनों-दिन बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से भारत की कृषि-क्षमता में लगातार गिरावट आती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक इस क्षमता में 40 फ़ीसदी तक की कमी हो सकती है। (ग्लोबल वार्मिग एंड एग्रीकल्चर, विलियम क्लाइन)। कृषि के लिए पानी और ऊर्जा या बिजली दोनों ही बहुत अहं तत्व हैं, लेकिन बढ़ते तापमान की वजह से दोनों की उपलब्यता मुश्किल होती जा रही है। तापमान बढ़ने के साथ ही देश के एक बड़े हिस्से में सूखे और जल संकट की समस्या भी बद से बदतर होती जा रही है। एक तरफ वैश्विक तापमान से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर ब्रेक लगाने की ज़रूरत महसूस की जा रही है। वहीं दूसरी ओर कृषि-कार्य के लिए पानी की आपूर्ति के वास्ते बिजली की आवश्यकता भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
खाद्य सुरक्षा, पानी और बिजली के बीच यह संबंध जलवायु-परिवर्तन की वजह से कहीं ज्यादा उभरकर सामने आया है। एक अनुमान के मुताबिक अगले दशक में भारतीय कृषि की बिजली की ज़रूरत बढ़कर दुगुनी हो जाने की संभावना है। यदि निकट भविष्य में भारत को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के समझौते को स्वीकारने के लिए बाध्य होना पड़ता है तो सबसे बड़ा सवाल यही उठेगा कि फिर आखिर भारतीय कृषि की यह माँग कैसे पूरी की जा सकेगी?
3. मनोरंजन का नया बॉस
रियलिटी शो किस चिड़िया का नाम है, इस दशक से पहले हिंदुस्तान में शायद ही कोई इस बात से वाकिफ़ था। लेकिन इस पूरे दशक में छोटे पर्दें और रियालिटी शो का मानो चोली-दामन का साथ हो गया। इन रियलिटी शो के ज़रिये आम लोगों की प्रतिभा सामने आई और हिंदुस्तानी दर्शकों को अहसास हुआ कि छोटा पर्दा बड़े सितारे तैयार कर सकता है और कुछ लोगों की किस्मत भी बदल सकता है।
छोटे पर्दे को रियलिटी शो ने इस दशक में वह ताकत दी कि यह बड़े पर्दे के सितारों को अपने फलक तक खींच लाया। बॉलीवुड के इतिहास के सबसे बड़े सितारे अमिताभ बच्चन हों या शाहरुख खान, सलमान खान, गोर्बिंदा, अक्षय कुमार. माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेद्टी और अरशद वारसी, एक के बाद एक सितारों को यहाँ पनाह मिली। गेम शो हो या डांस शो, गीत हों या एक घर में रहकर एक-दूसरे की टाँग खींचने वाले शो या फिर एमटीवी रोडीज जैसे बिगड़ैल युवाओं के शो, दर्शकों ने हरेक को पूरी तवज्जो दी।
4. हस्ती मिटती नहीं हमारी…
अथवा
भारत का बदलता चेहरा
वर्ष 2000 के बाद का दशक समाप्त हो चुका है। अगला दशक प्रारंभ हो चुका है। सन् 2001 में जॉर्ज डब्ल्यू० बुश के दुनियों के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सामरिक ताकत की कमान सँभालने के बाद से बराक ओबामा के द्वितीय कार्यकाल तक बहुत कुछ बदल चुका है। बुश के पर्दें पर उभरने के समय जहाँ अमेरिका ही दुनिया के रंगमंच पर प्रमुख भूमिका में था, वहाँ अब ओबामा के दौर में चीन और भारत भी बेहद अह भूमिका में नज़र आने लगे हैं। शीत युद्ध के बाद बनी एकध्रुवीय दुनिया ने भला ऐसी अँगड़ाई क्यों ली? इस सवाल के ज़वाब में कुछ लोग बुश की नीतियों को दोषी उहराते हैं तो कुछ लोग चीन और भारत की नीतियों और प्रतिभाओं को इस चमत्कार का श्रेय देते हैं।
छाछ भी फूँक-फूँककर पीने की तर्ज़ पर खुद ओबामा दोनों ही कारणों का अपने भाषणों और नीतियों में उल्लेख करते नज़र आ रहे हैं। मगर एक बात पर तो शायद सभी एक मत हैं कि दुनिया की इस बदलती तस्वीर के पीछे का असल कलाकार तो आर्थिक मंदी ही है। बीते दशक की शुरुआत में जहाँ सब कुछ हरा-हरा नज़र आ रहा था, वहीं दबे पाँव आई मंदी ने मानो सब कुछ उलट-पुलट कर दिया। जाहिर है, ऐसे खतरनाक भूचाल के बाद अगर अमेरिका और यूरोप जैसे महारथी औंधे मुँह गिर पड़े हों और भारत फिर भी मतवाली चाल से चलता चला जा रहा हो तो फिर क्यों न दुनिया इस चमत्कार को नमस्कार करें।
5. कॉमनवेल्थ गेम्स
कॉमनवेल्थ गेम्स का सबसे पहला प्रस्ताव दिया था, वर्ष 1891 में ब्रिटिश नागरिक एस्ले कूपर ने। उन्होंने ही एक स्थानीय समाचार-पत्र में इस खेल प्रतियोगिता का प्रारंभिक प्रारूप पेश किया था। इसके अनुसार, यदि कॉमनवेल्थ के सदस्य देश प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर इस तरह की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करें, तो यह उनकी गुडविल तो बढ़ाएगा ही, आपसी एकजुटता में भी खूब इजाफ़ा होगा। फिर क्या था, ब्रिटिश साम्राज्य को कूपर का यह प्रस्ताव बेहद पसंद आया और उसके साथ ही शुरु हो गया खेलों का यह महोत्सव। पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित करने की कोशिश हुई वर्ष 1911 में।
यह अवसर था किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक का। यह एक बड़ा उत्सव था, जिसमें अन्य सास्कृतिक आयोजनों के अलावा, इंटर एंपायर चैपियनशिप भी संपन्न हुई। इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, साउथ अफ्रीका और यूके की टीमें शामिल हुई थीं। इसमें विजेता टीम थी-कनाडा, जिसे दो फीट और छह इंच की सिल्वर ट्रॉफ़ी से नवाजा गया था। काफी समय तक कोंमनवेल्थ गेम्स के शुरुआती प्रारूप में कोई बदलाव नहीं हुआ। वर्ष 1928 में जब एम्टर्डम ओलंपिक आयोजन हुआ, तो फिर ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे शुरू करने का निर्णय लिया और हैमिल्टन, ओटेरिया कनाडा में शुरू हुए पहले कॉमनवेल्थ गेम्स।
हालाँकि इसका नाम उस समय था-ब्रिटिश एंपायर गेम्स। इसमें ग्यारह देशों ने हिस्सा लिया था। ब्रिटिश एंपायर गेम्स की सफलता कॉमनवेल्थ गेम्स को नियमित बनाने के लिहाज से एक बड़ी प्रेरणा थी। वर्ष 1930 से ही यह प्रत्येक चार वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने लगा। वर्ष 1930-1950 तक यह त्रिटिश एंपायर गेम्स के नाम से ही जाना जाता था। फिर वर्ष 1966 से 1974 तक इसे ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स के रूप में जाना जाने लगा। इसके चार वर्ष बाद यानी वर्ष 1978 से यह कॉमनवेल्थ गेम्स बन गया।
6. बढ़ती आबादी-देश की बरबादी
आधुनिक भारत में जनसंख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। देश के विभाजन के समय यहाँ लगभग 42 करोड़ आबादी थी, परंतु आज यह एक अरब से अधिक है। हर वर्ष यहाँ एक आस्ट्रेलिया जुड़ रहा है। भारत के मामले में यह स्थिति अधिक भयावह है। यहाँ साधन सीमित हैं। जनसंख्या के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। देश में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। हर वर्ष लाखों पढ़े-लिखे लोग रोज़गार की लाइन में बढ़ रहे हैं। खाद्य के मामले में उत्पादन बढ़ने के बावजूद देश का एक बड़ा हिस्सा भूखा सोता है। स्वास्थ्य सेवाएँ बुरी तरह चरमरा गई हैं। यातायात के साधन भी बोझ ढो रहे हैं।
कितनी ही ट्रेनें चलाई जाएँ या बसों की संख्या बढ़ाई जाए, हर जगह भीड़-ही-भीड़ दिखाई देती है। आवास की कमी हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने फुटपाथों व खाली जगहों पर कब्जे कर लिए। आने वाले समय में यह स्थिति और बिगड़ेगी। जनसंख्या बढ़ने से देश में अपराध भी बढ़ रहे हैं क्योंक जीवन-निर्वाह में सफल न होने पर युवा अपराधियों के हाथों का खिलौना बन रहे हैं। देश के विकास के कितने ही दावे किए जाएँ, सच्चाई यह है कि आम लोगों का जीवन-स्तर बेहद गिरा हुआ है। आबादी को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार को भी सख्त कानून बनाने होंगे तथा आम व्यक्ति को भी इस दिशा में स्वयं पहल करनी होगी। यदि जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो हम कभी भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं खड़े हो पाएँगे।
स्तंभ लेखन
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का ही एक रूप है। कुछ महत्वपूर्ण लेखक अपने वैचारिक रूझान के कारण प्रसिद्धि पा जाते हैं। उनकी अपनी-अपनी लेखन-शैली विकसित हो जाती है, जिसके कारण वे किसी समाचार-पत्र में नियमित रूप से स्तंभ लिखने लगते हैं। स्तंभ का विषय-चयन तथा विचार-अभिव्यक्ति की लेखक को छूट होती है। इसी कारण कुछ स्तंभ अपने लेखकों के नाम से पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ अपनी लोकप्रियता के कारण अखबार की पहचान बन जाते हैं।
स्तंभ-लेखन का उदाहरण
किसे सुध है बस्ते के बढ़ते बोझ की
किताबें शिक्षा में सहायक की भूमिका में नहीं हैं, रटकर याद कराने का जरूूरी साधन बन गई हैं।
पंकज चतुर्वदी (वरिष्ठ पत्रकार)
उम्र साढ़े आठ साल, कक्षा तीन में पढ़ती है। चूँकि स्कूल सुबह पौने आठ से है, सो साढ़े छह बजे सोकर उठती है। स्कूल से घर आने में दो बज जाता है। फिर वह खाना खाती है और कुछ देर आराम करती है। पाँच बजते-बजते किताबों, कॉपियों और होमवर्क से जूझने लगती है। यह काम कम-से-कम तीन घंटे का होता है। उसके बाद अँधेरा हो जाता है। यह अँधेरा बचपन की मधुर यादें कहे जाने वाले खेल, शरारतें, उधम, सब पर छा जाता है। अब वह कुछ देर टीवी देखेगी और सो जाएगी।
लेकिन उससे बड़ी नींद उस शिक्षा-व्यवस्था की है, जिसे याद भी नहीं कि दस साल पहले प्रफफेसर यशपाल की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने बस्ते का बोझ कम करने की सिफ़ारिश की थी, समिति की इस रिपोर्ट की काफी तारीफ़ भी हुई थी। छोटी कक्षाओं में सीखने की प्रक्रिया के लगातार नीरस होते जाने और बच्चों पर पढ़ाई के बढ़ते बोझ को कम करने के इरादे से मार्च 1992 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के आठ शिक्षाविदों की एक समिति बनाई थी, जिसकी अगुआई प्रोफेसर यशपाल कर रहे थे।
इसकी रिपोर्ट में साफ़ लिखा गया था कि बच्चों के लिए स्कूली बस्ते के बोझ से अधिक बुरा है, न समझ पाने का बोझ। सरकार ने सिफ़ारिशों को स्वीकार भी कर लिया और फिर कुछ नहीं हुआ। जमीनी हकीकत जानने के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में चिनहट के पास गणेशपुर गाँव के बच्चों का उदाहरण काफी है। कक्षा पाँच की विज्ञान की किताब के पहले पाठ के दूसरे पेज पर दर्ज था कि पेड़ कैसे श्वसन-क्रिया करते हैं। बच्चों से पूछा गया कि आप में से कौन-कौन श्वसन-क्रिया करता है?
सभी बच्चों ने मना कर दिया कि वे ऐसी कोई हरकत करते भी हैं। हाँ, जब उनसे साँस लेने के बारे में पूछा गया, तो वे उसका मतलब जानते थे। आँगनबाड़ी केंद्र में चार्ट के सामने ककहरा रट रहे बच्चों ने न कभी अनार देखा था और न ही उन्हें ईख, ऐनक, एड़ी के मतलब मालूम थे। आज छोटे-छोटे बच्चे होमवर्क के आतंक तले दबे पड़े हैं, जबकि यशपाल सामिति की सलाह थी कि प्राइमरी क्लास में बच्चों को गृहकार्य सिर्फ़ इतना दिया जाना चाहिए कि वे अपने घर के माहौल में नई बात खोजें और उन्हें समझें।
मिडिल व उससे ऊपर की कक्षाओं में होमवर्क जहाँ जरूरी हो, वहाँ भी पाठ्य-पुस्तक से न हो। पर आज होमवर्क का मतलब ही पाट्य-पुस्तक के सवाल-ज़वाबों को कॉपी पर उतारना या उसे रटना है। उम्मीद यही की जाती है कि बच्चे अपने माहौल और अपने अध्यापकों से सीखेंगे, और किताबें इस काम में उनकी सहायक होंगी। लेकिन पूरी शिक्षा-व्यवस्था ही ऐसी बना दी गई है कि बच्चे किताबों से रटकर सीख सकते हैं तो सीखें, अध्यापक सिर्फ़ इसी काम में छात्रों की मदद करते हैं और अकसर इस पढ़ाई का आस-पास के माहौल से कोई लेना-देना नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
संपादक के नाम पत्र
प्रायः सभी अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर दाहिने किनारे ‘नवभारत टाइम्स में’ या उसी पृष्ठ पर सबसे नीचे (‘हिंदुस्तान’ और ‘दैनिक जागरण’ में) संपादक के नाम पाठकों के पत्र प्रकाशित होते हैं। पत्रिकाओं में यह पृष्ठ मुख्य कवर के बाद होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है, जिसके जरीये पाठक विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं और जन-समस्याओं को उठाते हैं। यह आवश्यक नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हों। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने का अच्छा अवसर देता है।
संपादक के नाम पत्रों के उदाहरण
1. ग्लैमर और पैसा
6 सितंबर का संपादकीय ‘ग्लैमर की चौंध और अँधेरा’ पढ़ा। हमारे देश में टी॰वी० और सिनेमा के बाल कलाकारों की दुर्दशा पर अकसर बातें होती हैं, लेकिन कुछ समय के शोर-शराबे के बाद सब पहले जैसा ही हो जाता है। अकसर टी०वी० के रियलिटी शोज़ में निर्गायक मंडल में बैठे एक्सपर्ट ये कहते सुने जाते हैं कि बच्चों को ग्लैमर की दुनिया में लाने का दबाव उनके माता-पिता की ओर से ही रहता है। ग्लैमर और पैसा दरअसल बच्चों से ज्यादा उनके पैरंट्स चाहते हैं। एक बार जब उन्हें पैसे मिलने लगते हैं, तब वे बच्चे के कैरियर के आगे उनकी पढ़ाई को भी दरकिनार करने से नहीं चूकते। वरना हर रोज़ के टी॰वी॰ शोज़ के लिए कोई भी बच्चा समय कैसे निकाल सकता है?
– मधुरिमा जोशी, साकेत
2. तबाही के बाद
संपादकीय ‘डूबा हुआ स्वर्ग’ (9 सितंबर) पढ़ा। सरहद के उस पार भी बर्बादी के भीषण दृश्य हैं। इस बाढ़ ने गाँवों, फसलों और शहरी आबादी को जिस तरह अपनी चपेट में लिया है, आर्धिक गतिबिधियों को जैसा नुकसान पहुँचा है, वह अपने-आप में हैरान करने वाला है। हालाँकि जिस संख्या में सड़क और पुल बह गए हैं, तमाम संसाधनों को जिस तरह नुकसान पहुँचा है, उसे देखते हुए जम्मू-कश्मीर को दुबारा अपने पैर पर खड़े होने में समय लगेगा। -अनिरुद्ध पांडे, देहरादून
3. एजेंडे में झारखंड
चुनाव आयोग द्वारा झारखंड विधानसभा के चुनाव की घोषणा के पहले ही जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दो हफ्ते बाद बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने राँची आकर अगली बार राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की जनता से अपील की, उससे यह महसूस हुआ कि बीजेपी के एजेंडे में झारखंड भी है। अब तक यही माना जाता रहा था कि बीजेपी और कांग्रेस के एजेंडे में झारखंड रहता ही नहीं है।
-रामविश्वास माथुर, ई-मेल से
4. नया ठिकाना
5 सितंबर का संपादकीय ‘अल कायदा की आहट’ पढ़ा। फिलहाल इस अंदेशे को खारिज़ नहीं किया जा सकता कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी बताकर अल कायदा जैसा चरमराता आतंकी संगठन खुद को मजबूती से खड़ा करने के पैंतरे कस रहा हो। यह हमारे लिए चिता की बात इसलिए भी है, क्योंकि कुछ समय पहले कई भारतीय युवाओं के आईएस में शामिल होने की बात सामने आई थी। संभव है कि भारत को नया ठिकाना बनाने का इरादा रखते हुए अल कायदा के दिमाग में यह बात हो। -रितुराज, सरस्वती विहार
5. अंतिम पत्र
विसर्जन के दौरान डॉलबी साउंड की तेज़ आवाज़ की वजह से दीवार ढही, 3 की मौत, एक घायल। क्या इसके बाद भी उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले त्योहारों में विसर्जन शांतिपूर्वक होगा।
6. प्रधानमंत्री ने जो कहा
नेंद्र मोदी ने छात्रों से कहा कि देश में अच्छे शिक्षक नहीं हैं। यानी देश का प्रधानमंत्री स्वयं अपने देश की शिक्षा और शैक्षिक गुणवत्ता, दोनों से खिन्न है। साफ़ है, उनके इस कथन से शिक्षकों की छवि बिगड़ी है और ऐसे में स्वाभाविक ही छात्रों का विश्वास अपने शिक्षक से उठ जाएगा। मोदी जी ने कहा कि हर डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस को सप्ताह में एक दिन अपने नज़दीकी स्कूल में जाकर पढ़ाना चाहिए। पिछले वर्षों में कई जगहों पर हज़ारों उम्मीदवारों ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अपने आवेदन दिए, लेकिन या तो उनका चयन नहीं हुआ या पूरी नियुक्ति-प्रक्रिया अधर में लटका दी गई। अब जो पूरे सप्ताह पढ़ाना चाहते हैं, उनको तो रोज़गार नहीं मिला। लेकिन सप्ताह में एक दिन पढ़ाने की बात ज़रूर हो रही है। क्या तार्किक सुझाव है! -रचना रस्तोगी, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
7. वन-डे में धोनी
क्रिकेट के बड़े-से-बड़े दिग्गज यह मानकर चल रहे हैं कि महेंद्र सिह धोनी वन-डे के सफलतम कप्तानों में एक हैं। यहाँ तक कि वे वन-डे के सफलतम खिलाड़ियों में भी धोनी की गिनती करते हैं। लेकिन जब बात टेस्ट क्रिकेट में उनकी कप्तानी को लेकर होती है, तो ये दिग्गज अगल-बगल झाँकने लगते हैं। ऐसे में उन्हें टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी से बोई़ मुक्त क्यों नहीं करता? इसका बड़ा असर यह होगा कि महेंद्र सिह धोनी वन-हे में टीम इंडिया को लगातार जीत दिलाते रहेंगे और टेस्ट में वह दबाव मुक्त होकर खेलेंगे।
-सुबोध नारायण पटपड़गंज, दिल्ली
लेख
सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से इस मामले में अलग है कि उसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है। लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण और अपने तकों के ज़रिये अपनी राय प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी ज़रूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभूमि सामग्री भी जुटानी पंड़ती है। लेख की कोई एक निश्चित लेखन-शैली नहीं होती, बल्कि हर लेखक की अपनी शौली होती है। लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख की शुरुआत में अगर उस विषय के सबसे ताज़ा प्रसंग या घटनाक्रम का विवरण दिया जाए और फिर उससे जुड़े अन्य पहलुओं को सामने लाया जाए, तो लेख का प्रारभ आकर्षक बन सकता है।
लेख-लेखन का उदाहरण
धरती का स्वर्ग कहलाने वाली कश्मीर घाटी इस समय बाढ़ की आपदा से जूझ रही है। कश्मीर ही नहीं, उत्तर भारत, नेषाल और पाकिस्तान के कई हिस्सों में नदियों का जो रौद्र रूप इन दिनों दिख रहा है, उनमें से ज्यादातर हिमालय पर्वत की श्रेणियों से ही निकलती हैं। यही वह पृष्ठभूमि है, जिसमें हम इस साल का हिमालय दिवस मना रहे हैं। यह पृष्ठभूमि बहुत कुछ कहती है। हिमालय पर्वत के हमारे लिए सदियों से बहुत-से अर्थ रहे हैं, लेकिन पिछ्ले कुछ समय से हिमालय को न जाने क्यों आपदा से जोड़कर देखा जाने लगा है। केदारनाथ की त्रासदी को तो शायद लोग दशकों तक नहीं भूल पाएँगे। केदारनाथ ही नही, पिछले कुछ बरसों में बिगड़ते पर्यावरण की लगातार जो खबरें आई है, हिमालय उनके केंद्र में है।
यह सब उस समय हो रहा है, जब देश की सबसे बड़ी चिता आधिक विकास की है, बेरोज़ारों की लंबी फौज़ के लिए रोज्ञगार के अवसर पैदा करने की है। इस प्रक्रिया में पर्यावरण की परेशानियों को भुला दिया गया है। आर्थिक विकास के आसमान छूने की कोशिश में लगे नीति-नियामकों को फिलहाल पैरों तले सिकुड़ती-खिसकती जमीन दिखाई नहीं दे रही। ऐसा पूरे देश में ही हो रहा है, यह जरूर है कि हिमालय में इसे साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। हिमालय से दूर महाराष्ट्र के मालीन गाँव को ही लीजिए, जहॉं कुछ ही सप्ताह पहले वन विहीन पहाड़ का मलबा पूरे गाँव को लील गया था। और हुआ वही, जो केदारनाथ त्रासदी के समय हुआ था। हम अकसर तत्काल लाभ की चींजों के पीछे लगे रहते हैं, तात्कालिक हानि की आशंकाओं को नज़रअंदाज्र कर दिया जाता है।
देश की पारिस्थितिकी का केंद्र हिमालय लगातार इस अनदेखी का शिकार रहा है। स्थानीय राजनीति और केंद्र सरकार की समझ ने हिमलाय की सारी समस्याओं का इसाज यही माना है कि इसके विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग राज्यों का दर्जा दे दिया जाए। इससे एक फ़र्क यह पड़ा कि हिमालय के दर्द केंद्र सरकार के न होकर राज्यों के हो गए। दूसरी तरक, जो लोग राज्य की माँग कर रहे थे, उनके लिए उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ ज्यादा महत्वपूर्ण थीं, उसके पीछे हिमालय के संरक्षण की सोच कही नहीं थी। हिमालय में पुराने राज्यों को अगर जरा देर के लिए भूल भी जाएँ, तो नवोदित राज्य उत्तराखंड के हालात ही जान लें। इस राज्य के बनने से लेकर अब तक की सबसे बड़ी घटनाओं की अगर हम सूची बनाएँ, तो उसमें लगातार हुई त्रासदियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।
हिमालय का पर्यावरण इतना कमज़र पड़ चुका है कि अब यहाँ मानसून का स्वागत नहीं होता। विकास के नाम पर अंधाधुंध सड़कों ने गाँवों को जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम किया है। लोग सड़क से डरने भी लग गए हैं, क्योंकि यहाँ सड़क-निर्माण का मतलब अब अकसर मुसीबतों को दावत देना है। हालाँकि सड़क से ज्यादा बड़ी दिक्कतें यहाँ लगने वाली विभिन्न जल-विद्युत परियोजनाएँ पैदा करती हैं। हिमालय से निकलने वाली हर जलधारा को विद्युत ऊर्जा का स्रोत मानने की प्रवृत्ति ने इस महान पर्वत को स्वर्ग से नरक बना दिया है।
ताबड़तोड़ बन रही ये परियोजनाएँ ऊर्जा की आपूर्ति के नाम पर हिमालय को छिन्न-भिन्न कर रही हैं। उत्तराखंड को राज्य का दर्जा मिलने के बाद् यह काम ज्यादा तेजी से हुआ है। वैसे, यही हिमाचल के अलग राज्य बनने के बाद भी हुआ था। हिमालय के सभी राज्य, चाहे वे उत्तर-पूर्वी हों या पश्चिमी, किसी ने भी अपने पर्यावरण को सुरक्षित और बेहतर रखने की चिता नहीं की। सभी राज्यों की एकमात्र चिता यही थी कि किस तरह राज्य की जीडीपी बढ़ाई जाए और रोज़गार के साधन व अवसर बढ़ें।
केदारनाथ की त्रासदी के बाद राज्य सरकार कुछ समय के लिए गंभीर दिखाई दी और उसने राज्य का पर्यावरणीय ब्योरा तैयार करने में काफी तत्परता दिखाई। सरकार ने स्वीकार किया कि राज्य की आर्थिक प्रगति के साथ ही पारिस्थितिक लेखा-जोखा भी तैयार किया जाएगा। पारिस्थितिक विकास में सरकार ने क्या प्रगति की, उसका हिसाब-किताब सकल पर्यावरणीय उत्पाद के रूप में देगी। ऐसे वायदे अकसर भुला दिए जाते हैं, सो इस बार भी यही हुआ। एक मुख्यमंत्री ने वायदा नहीं निभाया, तो दूसरे ने उसे ज्यादा तवज्जो ही नहीं दी।
सच तो यह है कि सरकारें विकास के बड़े दबावों में पर्यावरण संरक्षण से कतराती हैं, क्योंकि उनके लिए तो विकास का सबसे बड़ा विरोधी पर्यावरण ही है। एक तरफ सरकार के ये हाल हैं, तो दूसरी तरफ पर्यावरण के पक्षधर हैं, जो विकास के हर कदम का विरोध करते हैं। दोनों को जोड़ने वाला कोई पुल नहीं है। इसी की वजह से पिछले दो दशकों से किसी भी हिमालयी राज्य में पारिस्थितिकी संबंधी संतुलन को बनाए रखने के लिए कोई रोडमैप तैयार नहीं हुआ। कोई नहीं जानता कि हालात किधर जा रहे हैं, उन्हें कहाँ रोकना है, कहाँ मोड़ना है और कहाँ ले जाना है।
हमें यह ध्यान रखना होगा कि हिमालय की यह अनदेखी आखिर में सबके लिए परेशानी का सबब बनने वाली है। जब भी हिमालय में कोई आपदा आएगी, उसका असर न सिर्फ़ पूरे देश पर, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा, क्योंकि मैदानी इलाकों में बहने वाली तमाम नदियाँ यहीं से अपनी यात्रा शुरू करती हैं। नदियों द्वारा लाई गई हिमालय की मिंट्टी मैदानी इलाकों में हरियाली लाती है। वनों के सारे सरोकार हिमालय से ही हैं। मिट्टी, हवा जैसे जीवन के सारे आधार हिमालय की ही देन हैं।
वन से आच्छादित हिमालय ही देश की प्राण-वायु व पानी का सबसे बड़ा कारक है। देश की 65 प्रतिशत जनता इसी के प्रताप से फलती-फूलती है। ऐसे में, हिमालय की पारिस्थितिकी बिगड़ती है, तो इसका असर देश के जन-जीवन पर पड़ेगा हिमालय को बचाना इसीलिए ज़रूरी है। हिमालय देश का मुकुट ही नहीं, प्राण भी है। हिमालय ने अपनी समस्याओं और आने वाले संकटों के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। अगर आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग दुनिया का सच बनती है, तो इससे हमारी रक्षा हिमालय ही कर सकता है। यह हमारा अन्नदाता ही नहीं, हमारा सुरक्षा कवच भी हो सकता है। हिमालय को बचाने का मतलब है सीधे-सीधे देश की रक्षा करना। इसे मुकुट की संज्ञा तो हमने अक्सर दी है, पर अब इस ताज की सुरक्षा के संकल्प का समय आ गया है। (हिंदुस्तान से साभार)
साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के ज़िये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है।
साक्षात्कार को सफल बनाने हेतु आवश्यक योग्यताएँ
किसी साक्षात्कार को सफल बनाने के लिए साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति में –
- ज्ञान होना चाहिए।
- संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण होने चाहिए।
- संबंधित विषय और जिस व्यक्ति का साक्षात्कार लेने जा रहे हैं, उसके बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।
- साक्षात्कार के माध्यम से क्या निकालना चाहते हैं, इस बारे में स्पष्ट रहना आवश्यक है।
- सवाल ऐसे होने चाहिए जो अखबार के पाठकों के मन में हों।
- साक्षात्कार रिकॉर्ड करने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा साक्षात्कार के बीच-बीच नोट्स लेते रहना चाहिए।
- अखबार में साक्षात्कार सवाल-ज़वाब के रूप में या एक आलेख की तरह लिखना चाहिए।
साक्षात्कार का उदाहरण
टीम ने चुकाई धोनी की गलतियों की कीमत
पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप बेंगसरकर ने इंग्लैंड के हाथों टीम इंडिया को मिली शर्मनाक हार के बाद कोच डंकन प्रेचर सहित पूरे कोचिग स्टाफ़ को तुरंत बख्खास्त करने की माँग की है। साथ ही उन्होंने कहा कि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की बड़ी गलतियों की कीमत भारत को हारकर चुकानी पड़ी। अपने कैरियर में 116 टेस्ट मैच खेलने वाले बेंगसरकर ने संदीप पाटिल की अगुआई वाली चयन समिति के बारे में कहा कि वह दूरद्रष्टा नहीं है। लॉड्स में लगातार तीन टेस्ट शतक लगाने वाले बेंगसरकर से विशेष साक्षात्कार के अंश :
पाँच टेस्ट मैचों की सीरीज में इस शर्मनाक हार का आपकी नज्जर में क्या कारण है?
– पहला और सबसे अह कारण बीसीसीआई टेस्ट क्रिकेट को बहुत अधिक महत्व नहीं दे रहा है और इसका सुबूत यह है कि पाँच टेस्ट मैचों के लिए कोई खास तैयारी नहीं की गई। इसके अलावा कार्यक्रम भी गलत तैयार किया गया। टेस्ट मैचों के बीच में कोई अभ्यास मैच नहीं रखा गया, जिससे कि खराब फ़ॉर्म में चल रहे खिलाड़ी फ़ॉर्म में
लौट सकें और बाहर बैठे सात रिज़र्व खिलाड़ियों को मैच अभ्यास का मौका मिले। हम 18 खिलाड़ियों को लेकर गए और लगभग इतने ही तथाकथित सहयोगी स्टाफ़ के कर्मचारी थे। गेंदबाजी 20 विकेट लेने में सक्षम नहीं दिख रही थी और बल्लेबाज फ़ॉर्म में नहीं थे। उनके पास मूव करती गेंद को खेलने की तकनीक ही नहीं प्रतिबद्धता और जुझारूपन की कमी भी थी। वे बलि के बकरे की तरह दिख रहे थे और उन्होंने लगातार एक जैसी गलतियाँ कीं। मुझे हैरानी है कि बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण कोच क्या कर रहे थे?
क्या पहले यहाँ और बाद में इंग्लैंड में टीम का चयन गलत किया गया?
– चयनकर्ताओं का काम आसान था, क्योंकि उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संभावित 18 खिलाड़ियों की टीम का चयन कर दिया। उन्होंने विकल्प तैयार करने के बारे में नहीं सोचा। उनमें विज़न की कमी और कड़े फैसले करने का साहस नहीं था। उन्होंने सबसे सरल रास्ता चुना।
क्या आपको लगता है कि जडेजा और एंडरसन के बीच झगडे और भारत का एंडरसन को प्रतिबंधित करने पर जोर देने से टीम का ध्यान भंग हुआ?
मैं ऐसा नहीं मानता। ऐसी घटनाएँ टेस्ट क्रिकेट का हिस्सा हैं। यदि आपको ऐसी चीज़ें प्रभावित करती हैं तो फिर टेस्ट क्रिकेट आपके लिए सही जगह नहीं है। ऐसे में आप टेस्ट क्रिकेट नहीं, हल्के-फुल्के खेल का चुनाब कर सकंते हैं।
इस हार के लिए आप धोनी की कप्तानी और प्रेचर की कोहिंग को कितना ज्ञिम्मेदार मानते हैं? क्या इन दोनों को हटा देना चाहिए?
धोनी ने टीम की अगुआई अच्छी तरह से नहीं की। उसकी चयन नीति, रणनीति, क्षेत्ररक्षण की सजावट और गेंदबाजी में बदलाव में व्यावहारिक समझ की कमी दिखी। उसने मैच-दर-मैच कुछ बड़ी गलतियाँ कीं, जिसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा। यह उसका और भारत का दुभाग्य है कि उसके पास डंकन फ्लेचर जैसा कोच है, जिसके पास कोई आइडिया नहीं है और वह नहीं जानता कि चीज़ों को कैसे बदलना है। लगता है कि वह युवा टीम को प्रेरित नहीं कर पा रहा है। सच्चाई यह है कि सहयोगी स्टाफ़ और थिक टैंक ने टीम को बुरी तरह से नीचा दिखाया।
पाठयुसक से हल ज्रश्न –
प्रश्न 1.
किसे क्या कहते हैं –
(क) सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्त्रक्रम में सूचनाएँ देना’….
(ख) समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्वपूर्ण पहलू
(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आदि देना
(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन, जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ
(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण
(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र की अपनी राय प्रकट होती है
उत्तर :
(क) उलटा पिरामिड शैली कहलाता है।
(ख) सबसे पहला पैराग्राफ कहलाता है।
(ग) विशेष रिपोर्ट कहलाता है।
(घ) फ़ीचर कहलाता है।
(ङ) रिपोर्ट कहलाता है।
(च) संपादकीय कहलाता है।
प्रश्न 2.
नीचे दिए गए समाच्चार के अंश को ध्यानपूर्वक पढ़िए :
शांति का संदेश लेकर आए फ़जलुर्ईहमान
पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़जलुरहमान ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि वह शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए हैं। यहाँ दारूलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबधधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों क संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नही है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत मज़बत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली है, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरंभ हुआ है। (हिंदुस्तान से साभार)
(क) दिए गए समाचार में से ककार ढृँढ़कर लिखिए, जो ककार नहीं हैं, उन्हें बताइए।
उत्तर :
क्या – शांति एवं भाईचारे का संदेश।
कौन – फ़जुलुरहमान, पाकिस्तान में विपक्ष के नेता।
कहाँ – भारत यात्रा पर भारत आए।
कब – भारत यात्रा के दौरान।
कैसे – वार्तालाप के माध्यम एवं दिए गए प्रश्नों के ज़वाब के माध्यम से।
क्यों – कश्मीर समस्या के समाधान का प्रस्ताव देने।
(कश्मीर समस्या के संदर्भ में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा कि पचास वर्षों की इतनी बड़ी समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है, लेकिन समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा।)
(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए :
इंट्रो, बॉडी, समापन
उत्तर :
इंट्रो – पाकिस्तान के विपक्ष के नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि वे शांति एवं भाईचारे का संदेश लेकर भारत आए हैं।
बॉडी – प्रधानमंत्री मनमोहन सिह से गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रबैया अपनाते हुए कहा कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है, लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा।
समापन – उन्होंने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है और बसों का आवागमन आरंभ हुआ है।
(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शैली में है, और क्यों? उत्तर इस उदाहरण का गौर से अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि यह समाचार उलटा पिरामिड शैली में है, क्योंकि महत्वपूर्ण समाचार पाकिस्तान के विपक्षी नेता की भारत यात्रा है, जो इंट्रो में है। दोनों पक्ष के मध्य हुई बातचीत का वर्णन बॉडी में है। इसके समापन में समस्या के समाधान के प्रति आशावादी भाव है।
प्रश्न 3.
एक दिन के किन्हीं तीन समाचार-पत्रों को पढ़िए और दिए गए बिंदुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए :
(क) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान
(ग) समाचार की प्रस्तुति
(घ) समाचार की भाषा-शैली
उत्तर :
किसी दिन किन्हीं तीन समाचार-पत्रों को पढ़ा गया। उनका तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित है :
प्रश्न 4.
अपने विद्यालय और मुहल्ले के आस-पास की समस्याओं पर नज़र डालें। जैसे-पानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफ़ाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों पर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अखबार में भेजें।
उत्तर :
पानी की कमी-एक ओर भीषण गर्मी की मार और दूसरी ओर पानी की घोर कमी। इस दोतरफ़ा मार से लोगों का जीना दूभर हो गया है। सर्दियों में पानी सुबह-शाम आ जाया करता था, पर गर्मी की शुरुआत होते ही नलों का सूख जाना आम होता जा रहा है। सप्ताह में एक-दो बार दिल्ली जल-बोर्ड के टैंकर द्वारा पानी की आपूर्ति की जाती है, वह अपर्याप्त सिद्ध हो रही है। टैंकर आते ही लोग बाल्टी, कैन लेकर दौड़ पड़ते हैं। कुछ बाहुबलियों द्वारा इन टैंकरों पर कब्ज़ा कर लेने से जन-साधारण को निराशा ही हाथ लगती है। घर-घर पानी पहुँचाने का सरकारी वायदा खोखला सिद्ध हो रहा है। आखिर ऐसी स्थिति कब तक रहेगी!
बिजली कटौती-गर्मी आई नहीं कि बिजली की अघोषित कटौती शुरू हो गई। बिजली की ऐसी आवाजाही देखकर लगता है कि वह आँख-मिचौली खेल रही है। ऐसे में लोगों का जीना दुभर हो गया है। बिजली कंपनियों ने दो-तीन बार मनमर्जी से दो-दो घंटे के लिए बिजली काटने का नियम बना लिया है। बिजली कटने का समय निश्चित न होने से लोगों की परेशानी दुनी हो जाती है। चुनाव के दिनों में लंबी-चौड़ी बातें करने वाली सरकार भी इस मुद्दे पर पल्ला झाड़कर पूरी जिम्मेदारी बिजली वितरण कंपनियों पर डाल देती है। इन कंपनियों को अपना घाटा रोने के सिवाय कोई काम नहीं बचा है। ऐसे में आम नागरिक क्या करे, अपनी फरियाद किससे करे। भगवान ही जाने कैसे कटेंगे ये गर्मी के दिन!
प्रश्न 5.
किसी क्षेत्र-विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे –
संगीत / नृत्य, चित्रकला, शिक्षा, अभिनय, साहित्य
उत्तर :
संगीत के क्षेत्र से जज़े व्यक्ति से किए जाने वाले प्रश्नों की सूची :
- आज आप संगीत की दुनिया में जाना-पहचाना मुकाम बना चुके हैं। आपने इस क्षेत्र में कब कदम रखा?
- संगीत की दुनिया में आने की प्रेरणा आपको किससे मिली?
- इसे बढ़ावा देने में आपके अध्यापकों का कितना योगदान रहा?
- वर्तमान में माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। आपका निर्णय सुन आपके माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया रही?
- आपने अपनी इस कला का प्रदर्शन पहली बार कब और कहाँ किया?
- आपने इसका प्रशिक्षण कहाँ से लिया?
- क्या आप फ़िल्म जगत् में भी कदम रखना चाहेंगे?
- आपने अपने संगीत का जलवा स्टेज के माध्यम से कहाँ-कहाँ बिखेरा है?
- संगीत के क्षेत्र में कदम रखकर आप कितनी संतुष्टि महसूस करते हैं?
- युवा पीढ़ी को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
प्रश्न 6.
आप अखबार के मुखपृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक/सुर्खियाँ (हेडलाइन ) देखना चाहेंगे? उन्हें लिखिए।
उत्तर :
मैं अखखार के मुखपृष्ठ पर निम्नलिखित छह समाचार शीर्षक/सुखियाँ देखना चाहूँगा :
- देश की सर्वप्रमुख खबर का शीर्षक।
- विश्व-स्तरीय अंति महत्वपूर्ण खबर का शीर्षक।
- प्रदेश-स्तर की प्रमुख खबर का शीर्षक।
- मुखपृष्ठ के किसी किनारे पर संबंधित खबरें और उनका पृष्ठांकन।
- मानवता के कल्याण के लिए उठाए गए कदम संबंधी खबर का शीर्षक।
- खेल समाचार तथा मौसम के पूर्वानुमान संबंधी खबर।
अन्य हल प्रश्न –
बहुविकल्पीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है –
(i) फ्री-लांसर पत्रकार
(ii) अंशकालिक पत्रकार
(iii) पूर्णकालिक पत्रकार
(iv) स्वतंत्र पत्रकार
उत्तर :
(iii) पूर्णकालिक पत्रकार
प्रश्न 2.
उल्टा पिरामिड-शैली का विकास कब हुआ?
(i) 19 वीं सदी के मध्य में
(ii) अठारहवीं सदी में
(iii) अमेरिकी गृहयुद्ध के समय
(iv) 1 वीं सदी में
उत्तर :
(iii) अमेरिकी गृहयुद्ध के समय
प्रश्न 3.
समाचार-लेखन के इंट्रो से संबंधित कितने ककार होते हैं?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) छह
उत्तर :
(iii) चार
प्रश्न 4.
समाचार की बॉडी से संबंधित ककार हैं –
(i) क्या और किसके
(ii) कहाँ और क्यों
(iii) कब और कैसे
(iv) कैसे और क्यों
उत्तर :
(iv) कैसे और क्यों
प्रश्न 5.
इनमें से कौन फ़ीचर का प्रकार नहीं हैं –
(i) खोजपरक फीचर
(ii) यात्रा फ़ीचर
(iii) रूपांत्मक फ़ीचर
(iv) आकर्षक फ़ीचर
उत्तर :
(iv) आकर्षक फ़ीचर
प्रश्न 6.
इनमें से कौन रिपोर्ट-लेखन की विशेषता नहीं है?
(i) निष्पक्षता
(ii) संक्षिप्तता
(iii) अपूर्णता
(iv) सत्यता
उत्तर :
(iii) अपूर्णता
प्रश्न 7.
किसे किसी अखबार की आवाज़ माना जाता है?
(i) रिपोर्ट को
(ii) समाचार को
(iii) संपादकीय को
(iv) फीचर को
उत्तर :
(iii) संपादकीय को
प्रश्न 8.
कौन-सा स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने के लिए अच्चा अवसर देता है?
(i) फीचर
(ii) संपादक के नाम पत्र
(iii) लेख
(iv) रिपोर्ट
उत्तर :
(ii) संपादक के नाम पत्र
प्रश्न 9.
पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल किसके माध्यम से एकत्रित किया जाता है?
(i) साक्षात्कार के माध्यम से
(ii) रिपोर्ट के माध्यम से
(iii) श्रमण के माध्यम से
(iv) उपर्युक्त सभी गलत हैं?
उत्तर :
(ii) रिपोर्ट के माध्यम से
प्रश्न 10.
स्टिग ऑपरेशन किसका नया रूप है?
(i) पूर्णकालिक पत्रकारिता का
(ii) खोजी पत्रकारिता का
(iii) अंशकालिक पत्रकारिता का
(iv) फ्री-लांसर पत्रकारिता का
उत्तर :
(ii) खोजी पत्रकारिता का
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
पत्रकार कितनी तरह के होते हैं?
उत्तर :
पत्रकार तीन तरह के होते हैं-
1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक तथा
3. फ्री-लांसर।
प्रश्न 2.
फ्री-लांसर पत्रकार किन्हें कहते हैं?
उत्तर :
वे पत्रकार, जिनका संबंध किसी अखबार से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखते हैं, फ्री-लांसर पत्रकार कहलाते हैं।
प्रश्न 3.
पूर्णकालिक पत्रकार किन्हें कहते हैं?
उत्तर :
पूर्णकालिक पत्रकार वे पत्रकार होते हैं, जो किसी समाचार संगठन में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में काम करते हैं।
प्रश्न 4.
समाचार किसे कहा जाता है?
उत्तर :
किसी घटना या समस्या की रिपोर्ट, जिससे अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिससे अधिकाधिक लोग प्रभावित होते हों, उसे समाचार कहते हैं।
प्रश्न 5.
समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय शैली कौन-सी है?
उत्तर :
समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड शैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) है।
प्रश्न 6.
समाचार लेखन शैली को उल्टा पिरामिड शैली क्यों कहा जाता है?
अथवा
समाचार प्रस्तुति की प्रमुख शैली को पिरामिड शैली क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
समाचार लेखन शैली को उल्टा पिरामिड शैली इसलिए कहा जाता है, क्योंक इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना या क्लाइमेक्स सबसे निचले भाग में न होकर सबसे ऊपर होती है। अर्थात् पिरामिड को उलट दिया जाता है।
प्रश्न 7.
समाचार-लेखन के छह ककार कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
समाचार लेखन के छह ककार हैं-क्या, किसके (कौन), कहाँ, कब, कैसे और क्यों?
प्रश्न 8.
इंट्रो किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार के मुखड़े अर्थात् पहले पैराग्राफ या शुरुआत की दो-तीन पंक्तियों को इंट्रो कहते हैं।
प्रश्न 9.
इंट्रो में किन ककारों को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है?
उत्तर :
इंट्रो में क्या, कौन, कहाँ और कब ककारों को आधार बनाकर समाचार लिखा जाता है।
प्रश्न 10.
फ़ीचर किसे कहते हैं?
उत्तर :
फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।
प्रश्न 11.
विशेष रिपोर्ट कितनी तरह की होती है?
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट चार तरह की होती है-
- खोजी रिपोर्ट (इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट),
- इन-डेप्थ रिपोर्ट
- विश्लेषणात्मक रिपोर्ट,
- विवरणात्मक रिपोर्ट।
प्रश्न 12.
विशेष रिपोर्ट किस शैली में लिखी जाती है?
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट उलटा पिरामिड शैली में लिखी जाती है।
प्रश्न 13.
अखबार की आवाज़ किसे कहा जाता है?
उत्तर :
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की आवाज़ कहा जाता है।
प्रश्न 14.
लोग संपादक के नाम पत्र क्यों लिखते हैं?
उत्तर :
लोग संपादक के नाम पत्र इसलिए लिखते हैं, ताकि विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हुए जन-समस्याओं को उठा सकें।
प्रश्न 15.
पत्रकार किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का साक्षात्कार क्यों लेते हैं?
अथवा
समाचार-लेखन में साक्षात्कार की क्या भूमिका होती है?
उत्तर :
पत्रकार किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का साक्षात्कार इसलिए लेते हैं, ताकि बे समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल जुटा सकें।
प्रश्न 16.
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति में क्या-क्या योग्यताएँ होनी चाहिए?
उत्तर :
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति में अच्छा ज्ञान होना चाहिए तथा संवेदनशीलता. कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
प्रश्न 17.
स्टिंग ऑपरेशन की क्या उपयोगिता है ?
उत्तर :
इसका प्रयोग सार्वजानिक महत्व के मामलों में भ्रष्टाचार, आनियमितता और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 18.
संपादकीय किसे कहते हैं?
उत्तर :
सपादकीय पृष्ठ पर संपादक और उसके सहयोंगियों द्वारा विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय प्रकट की जाती है। इसे ही संपादकीय कहते हैं। यह एक लंख के रूप में होता है!
प्रश्न 19.
स्तंभ-लेखन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का एक अंग है। इसके अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण लेखक अपने विचार लिखते है, जो अपने विशेष वैचारिक लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं तथा जिनकी अपनी शैली विकसित हो गई है।
प्रश्न 20.
समाचार-माध्यमों में साक्षात्कार का क्या महत्व है?
उत्तर :
समाचार-पत्रों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। पत्रकार साक्षात्कार के माध्यम से ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल एकत्र करते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
एक अच्छा पत्रकारीय लेखन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
एक अच्छा पत्रकारीय लेखन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल वाक्य-संरचना को वरीयता दें।
- आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करें। गैर-ज़रूरी शब्दों के इस्तमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग करें।
- अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत ज़रूरी है। जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़ें।
- लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकांक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग भरने की कोशिश करें।
- अपने लिखे को दुबारा ज़रूर पढ़े और अशुद्धियों के साथ-साथ गैर-ज़रूरी चीज़ों को हटाने में संकोच न करें। लेखन में कसावट बहुत ज़रूरी है।
- लिखते हुए यह ध्यान रखें कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है, न कि दूसरे को प्रभावित करना।
- एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि वे अपने लेखन के लिए उससे विचारबिंदु निकाल सकें।
- एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।
प्रश्न 2.
समाचार-लेखन में प्रयुक्त छह ककार कौन-कौन-से हैं? इनका वर्गीकरण इंट्रो और बॉडी के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
समाचार – लेखन और छह ककार-किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का ज़वाब देने की कोशिश की जाती है-क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, कैसे और क्यों को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
वर्गीकरण :
1. समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआत की दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कहाँ और कब?
2. समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-का ज्ववाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कहाँ और कब-सूचनात्मक होते हैं और तथ्यों पर आधारित होते हैं, जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर ज़ोर दिया जाता है।
प्रश्न 3.
विशेष रिपोर्ट कैसे लिखी जाती है? विशेष रिपोर्ट के प्रकारों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अखबारों और पत्रिकाओं में सामान्य समाचारों के अलावा गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर विशेष रिपोर्टं भी प्रकाशित होती हैं। ऐसी रिपोरों को तैयार करने के लिए किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है। उससे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है। तथ्यों के विश्लेषण के ज़ारिये उसके नतीजे, प्रभाव और कारणों को स्पष्ट किया जाता है।
विशेष रिपोर्ट के प्रकार : विशेष रिपोर्ट चार प्रकार के होते है-खोजी रिपोर्ट (इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट), इन-डेपथ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट और विवरणात्मक रिपोर्ट।
खोजी रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के जरिये ऐसी सूचनाएँ या तथ्यों को सामने लाता है जो सार्वजनिक तौर पर पहले से उपलब्ध नहीं थीं। खोजी रिपोर्ट का इस्तेमाल आमतौर पर श्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
इन-डेप्थ रिपोर्ट में सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और उसके आधार पर किसी घटना, समस्या या मुद्दे से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाया जाता है। इसी तरह विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में जोर किसी घटना या समस्या से जुड़े तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या पर होता है जबकि विवरणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।
प्रश्न 4.
अखबारों में लिखे लेख का महत्व बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि अच्छे लेख कैसे लिखे जा सकते हैं?
उत्तर :
सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से इस मामले में अलग है कि उसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है। लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण तथा अपने तर्कों के ज़िये अपनी राय प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी ज़रूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभुमि सामग्री भी जुटानी पड़ती है। लेख की कोई एक निशिचत लेखन-शैली नहीं होती, बल्कि हर लेखक की अपनी शैली होती है। लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख की शुरुआत में अगर उस विषय के सबसे ताज़ा प्रसंग या घटनाक्रम का विवरण दिया जाए और फिर उससे जुड़े अन्य पहलुओं को सामने लाया जाए, तो लेख का प्रारंभ आकर्षक बन सकता है।
प्रश्न 5.
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का क्या महत्व है? साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति में क्या-क्या गुण होने चाहिए तथा उसे किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ़ ज्ञान ही होना चाहिए, बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो। दूसरे, आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है। आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं। साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के समय नोट्स लेकर उसे समाचार-पत्र में प्रश्नोत्तर शैली या आलेख रूप में लिखना चाहिए।
प्रश्न 6.
टिप्पणी लिखिए :
(क) संपादकीय लेखन
(ख) संपादक के नाम पत्र
(ग) स्तंभ-लेखन
उत्तर :
(क) संपादकीय लेखन-संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की अपनी अवाज़ माना जाता है। संपादकीय के ज़रिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति-विशेष का विचार नहीं होता, इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता।
(ख) संपादक के नाम पत्र-अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के ज़रिये अखबार के पाठक न सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं, बल्कि जनसमस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। ज़रूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और अपने हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।
(ग) स्तंभ-लेखन-स्तंभ-लेखन भी विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्वपूर्ण लेखक अपने खास वैज्ञानिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे रहे हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ-लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं। लेकिन नए लेखकों को स्तंभ-लेखन का मौका नहीं मिलता।
प्रश्न 7.
फ़ीचर और समाचार के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए फ़ीचर की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन छपते हैं। इनमें फ़ीचर प्रमुख है। समाचार और फ़ीचर के बीच स्पष्ट अंतर होता है। फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है। फ़ीचर समाचार की तरह पाठको को तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत नहीं कराता।
फ़ीचर-लेखन की शैली भी समाचार-लेखन की शैली से अलग होती है। समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर ज़ोर दिया जाता है अर्थात् समाचार लिखते हुए रिपोर्टर उसमें अपने विचार नहीं डाल सकता, जबकि फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ ज़ाहिर करने का अवसर होता है। फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग नहीं होता यानी फ़ीचर-लेखन का कोई एक तय ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता। फ़ीचर-लेखन की शैली काफ़ी हद तक कथात्मक शैली की तरह है।
फ़ीचर-लेखन की भाषा समाचारों के विपरीत सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूने वाली होती है। फ़ीचर की भाषा में समाचारों की सपाटबयानी नहीं चलती। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि फ़ीचर की भाषा और शैली को अलंकारिक तथा दुरूह बना दिया जाए। फ़ीचर में समाचारों की तरह शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती। फ़ीचर आमतौर पर समाचार, रिपोर्ट से बड़े होते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2,000 शब्दों तक के फ़ीचर छपते हैं।
प्रश्न 8.
फ़ीचर लेखन के ढाँचे का उल्लेख कीजिए। आप किसी जाने-माने व्यक्ति पर व्यक्ति-चित्र फ़ीचर कैसे तैयार करेंगे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फ़ीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता। इसलिए हम फ़ीचर कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। हर फ़ीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। हालाँक प्रारंभ, मध्य और अंत को अलग-अलग देखने की बजाय पूरे फ़ीचर को समग्रता में देखना चाहिए, लेकिन अगर फ़ीचर का प्रारंभ आकर्षक, रोचक और प्रभावी हो तो बाकी पूरा फ़ीचर भी पठनीय और रोचक बन सकता है। जैसे अगर हम किसी जाने-माने व्यक्ति पर एक व्यक्ति-चित्र फ़ीचर तैयार कर रहे हैं तो उसकी शुरुआत किसी ऐसी घटना के उल्लेख से कर सकते हैं, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी या उसकी शुरुआत उनकी किसी ताज़ा उपलब्धि के ब्योरे से हो सकती है और फिर फ़ीचर को उनके पिछले जीवन के संघर्षों की ओर मोड़ा जा सकता है।
इसके बाद फ़ीचर में उनके और उनके कुछ करीबी लोगों और उनकी उपलब्धियों से वाकिफ़ विशेषज्ञों के दिलचस्प, आकर्षक और खास वक्तव्यों को उद्धृत करते हुए उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया जा सकता है। फ़ीचर में एक या दो ऐसी घटनाओं को खुद उनकी ज़बान में पेश किया जा सकता है, जो न सिर्फ़ दिलचस्प और अनूठी हों, बल्कि उनसे उनके जीवन में अहं क्षणों पर रोशनी पड़ती हो। फ़ीचर के आखिरी हिस्से को उनके भविष्य की योजनाओं पर फ़ोकस करना चाहिए। वे अपने सामने क्या चुनौतियाँ देखते हैं और उनसे निपटने के लिए उनकी क्या तैयारी है।
प्रश्न 9.
अखबार के प्रकाशन में संपादक का क्या योगदान होता है? एक अच्छे संपादकीय की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उत्तर :
किसी भी अखबार के प्रकाशन में संपादक का योगदान सर्वाधिक होता है। एक तरह से वह प्रकाशन में शामिल कर्मचारियों में सबसे अधिक जिम्मेदार और खबरों को छापने के लिए उत्तरदायी होता है। विभिन्न डेस्कों द्वारा जो समाचार चुने जाते हैं, वही उनके लिए जिम्मेदार होता है। वह स्वयं अखबार के लिए संपादकीय और फ़ीचर लिखता है। वह प्रत्येक पृष्ठ की सामग्री का समन्वय करते हुए संभावित खबरों पर नज़र रखता है। अखबार के मुखपपष्ठ पर छापी जाने वाली खबरें और चित्रों का चयन वही करता है। इस पृष्ठ की समाचार सुर्खियों पर वह निगाह रखता है। इसके अलावा वह प्रशासनिक उत्तरदायित्वों का भी पालन करता है। समय पर समाचार छपने की जिम्मेदारी संपादक की होती है।
एक अच्छे संपादकीय की विशेषताएँ –
- संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है, इसलिए इसे त्रुटिहीन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
- इसमें संपादक की टिप्पणी के अलावा आलोचनात्मक लेख और पाठकों की प्रतिक्रियाएँ भी शामिल रहती हैं।
- संपादकीय ज्ञानवर्धक लेख होता है, जिसमें समाचारों से हटकर नवीन जानकारी भी मिल जाती है।
- इसमें शामिल लेखों, टिप्पणियों से संपादक की विचारधारा का पता लग जाता है।
- कुछ अखबार अपने अच्छे संपादकीय के लिए ही जाने-पहचाने जाते हैं।
प्रश्न 10.
फ़ीचर के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
फ़ीचर कई प्रकार के होते हैं। उनके नाम हैं :
- समाचार बैकग्राउंडर फ़ीचर
- खोजपरक फ़ीचर
- व्यक्तिगत फ़ीचर
- जीवन-शैली फ़ीचर
- साक्षात्कार फ़ीचर
- यात्रा फ़ीचर
- रूपात्मक फ़ीचर
- विशेष कार्य फ़ीचर
प्रश्न 11.
समाचार कैसे लिखे जाते हैं? इसके लेखन की सबसे लोकप्रिय शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समाचार-लेखन पत्रकारीय लेखन का सर्वाधिक जाना-पहचाना रूप है। समाचार-पत्रों में यह पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकारों द्वारा लिखा जाता है। इन समाचारों के लेखकों को संवाददाता या रिपोर्टर भी कहा जाता है।
अखबारों में समाचार-लेखन की एक विशेष विधि है। इसके अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण समाचार, घटना, समस्या आदि को सबसे पहले पैरग्राफ में लिखा जाता है। इसके बाद उससे कम महत्वपूर्ण कथ्य या समाचारों को लिखते हुए समाचार खत्म होने तक ऐसा करते हैं।
समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय शैली-समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड के नाम से जानी जाती है। यह लेखन की सबसे उपयोगी और बुनियादी शैली है। इसे उलटा पिरामिड शैली भी कहा जाता है, क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण सूचना या क्लाइमेक्स सबसे पहले या ऊपर ही मिल जाता है। वर्तमान में यह शैली लेखन और संपादन की सुविधा के कारण समाचार-लेखन की भानक शैली बन गई है।
प्रश्न 12.
समाचार-लेखन के छह ककारों को सोदाहरण समझाइए।
उत्तर :
समाचार-लेखन के छह ककार-समाचार-लेखन करते समय जिन छह ककारों (सवालों) का जवाब देने की कोशिश की जाती है, वे हैं –
(i) क्या हुआ?
(ii) किसके साथ हुआ? (कौन)
(iii) कहाँ हुआ?
(iv) कब हुआ?
(v) कैसे हुआ?
(vi) क्यों हुआ?
क्या – 4 मरे, छह घायल
कौन – सामान्य यात्री
कहाँ – बाहरी दिल्ली के अलीपुर बस स्टेंड पर।
कब – कल सोमवार को।
कैसे – अनियंत्रित गति वाली बस से कुचलकर
क्यों – ओवरटेक करने के कारण
समाचार के आरभ की दो-तीन पक्तियों में अर्थात् पहले पैराग्राफ में खबर लिखकर चार ककारों क्या, कौन, कहाँ, कब प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं। समाचार की बॉडी में समापन से पहले दोनों बचे ककारों कैसे और क्यों का जवाब दिया जाता है। इस प्रकार समाचार तैयार किया जाता है। इस अंश में विवरणात्मक व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पक्ष पर बल दिया जाता है।
उदाहरण – समाचार का इंट्रो-नई दिल्ली, 14 अप्रैल (पी०टी०आई०) बाहरी दिल्ली के अलीपुर इलाके के मुख्य बस स्टैंड पर प्राइवेट बस से कुचल जाने के कारण कल सोमवार को 4 लोग मारे गए तथा छह लोग घायल हो गए। घायलों को रोहिणी स्थित अस्पताल में भरती करा दिया गया।
समाचार की बॉडी – प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि सवारियाँ बिठाने के चक्कर में दो प्राइवेट बस में ओवरटेक करने की होड़ में यह हादसा हुआ। सवारियों के चक्कर में यह बस स्टैंड पर बायीं ओर से ओवरटेक कर रही थी। बस की गति निर्धारित सीमा से अधिक थी।
पुलिस ने बताया कि घायलों की स्थिति स्थिर बनी हुई है। डॉक्टर उन पर निगाह बनाए हुए हैं।
उद्धरण/स्रोत – प्रत्यक्षदर्शी एवं पुलिस।