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CBSE Class 11 Hindi Elective अपठित बोध अपठित गद्यांश
अपठित क्या है?
‘अपठित’ शब्द ‘पठित’ में ‘अ’ उपसर्ग लगाने से बना है, जिसका अर्थ होता है- जिसे पहले न पढ़ा गया हो। अपठित गद्य अथवा पद्य (काव्य) दोनों ही रूपों में हो सकता है। इन्हीं गद्यांशों या काव्यांशों पर प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनसे विद्यार्थियों की अर्थग्रहण-क्षमता का आकलन किया जा सके।
अपठित अंश हल करते समय आने वाली कठिनाइयाँ
ऐसे अंश पहले से न पढ़े होने के कारण इसे हल करने में विद्यार्थी परेशानी महसूस करते हैं। कुछ विद्यार्थी अपठित अंश का भाव या अर्थग्रहण किए बिना अनुमान के आधार पर उत्तर लिखना शुरू कर देते हैं। इस प्रवृत्ति से बचना चाहिए। कुछ विद्ययार्थी प्रश्नों के उत्तर के रूप में गद्यांश या काव्यांश की कुछ पंक्तियाँ उतार देते हैं। चूंकि वे अपठित अंश का अर्थ समझे बिना ऐसा करते हैं, इसलिए यह न तो उत्तर देने की सही विधि है और न उत्तर सही होने की गारंटी। ऐसे में अपठित अंश/अंशों को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। अपठित का कोई अंश, वाक्य या शब्द-विशेष समझ में न आए, तो भी घबराना या परेशान नहीं होना चाहिए। अपठित अंश के भाव और प्रमुख विचारों को समझ लेने से भी प्रश्नों का उत्तर सरलता से दिया जा सकता है।
अपठित अंश की आवश्यकता क्यों?
अपठित अंश को पढ़ने, समझने और हल करने से अर्थग्रहण की शक्ति का विकास होता है। इससे किसी गद्यांश या कव्यांश के विचारों और भावों को अपने शब्दों में बाँधने की दक्षता बढ़ती है। इसके अलावा भाषा पर अच्छी पकड़ बनती है।
अपठित अंश पर पूछे जाने वाले प्रश्न
अपठित अंश से संबंधित विविध प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनके उत्तर विद्यार्थियों को देने होते हैं। इसमें अर्थग्रहण तथा कथ्य से संबंधित प्रश्नों के उत्तर के अलावा अनुच्छेद में आए कुछ कठिन शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों आदि का अर्थ पूछा जाता है। इसके अंतर्गत वाक्य-रचनांतरण, शीर्षक संबंधी प्रश्नों के अलावा किसी वाक्य या वाक्यांश का आशय स्पष्ट करने के लिए भी कहा जा सकता है।
अपठित अंश को कैसे हल करें?
अपठित अंश के अंतर्गत पूछे जाने वाले प्रश्न दिए गए अंशों पर आधारित होते हैं, अतः इनके उत्तर भी हमें गद्यांश या काव्यांश के आधार पर देने चाहिए, अपने व्यक्तिगत सोच-विचार के आधार पर नहीं। इसके अलावा इन प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए :
- दिए गए गद्यांश या काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए।
- उस समय जिन प्रश्नों के उत्तर मिलते जाएँ, उन्हें रेखांकित कर लेना चाहिए।
- अब बचे हुए एक-एक प्रश्न का उत्तर सावधानीपूर्वक खोजना चाहिए।
- प्रश्नों के उत्तर सदैव अपनी ही भाषा में लिखने चाहिए।
- भाषा सरल, सुबोध, बोधगम्य तथा व्याकरण-सम्मत होनी चाहिए।
- प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में ही देने चाहिए।
- प्रश्न जिस काल या प्रारूप में दिया हो, उत्तर भी उसी के अनुरूप देना चाहिए। दिए गए गद्यांश या काव्यांश का यथावत अंश तो बिलकुल नहीं उतारना चाहिए।
- कुछ शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं। ऐसे में व्याकरणिक प्रश्नों के उत्तर देते समय अवतरण में वर्णित प्रसंग को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।
- पर्यायवाची, विलोम तथा अर्थ संबंधित उत्तर सावधानी से देने चाहिए।
- प्रश्नों के उत्तर का अनावश्यक विस्तार करने से बचना चाहिए, फिर भी एक अंक और दो अंक के प्रश्नों के उत्तर में शब्द-सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
शीर्षक-संबंधी प्रश्न का उत्तर कैसे दें?
शीर्षक-संबंधी प्रश्न का उत्तर देते समय गद्यांश या काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए तथा उसके मूल भाव या कथ्य को समझने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा निम्नलिखित बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :
- शीर्षक कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए।
- शीर्षक का चुनाव गद्यांश या काव्यांश से ही संबंधित होना चाहिए।
- शीर्षक पढ़कर ही गद्यांश या काव्यांश के मूल भाव का अनुमान लग जाना चाहिए।
अपठित गद्यांश के कुछ उदाहरण (हल सहित)
निम्नलिखित गद्यांशों तथा उन पर आधारित प्रश्न-उत्तर को ध्यानपूर्वक पढ़िए :
1. हँसी भीतरी आनंद का बाहरी चिह्न है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम-से-उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर को अच्छा रखने की अच्छी-से-अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुलाओ। हँसी न जाने कितने ही कला-कौशलों से भली है। जितना ही अधिक आनंद से हँसोगे, उतनी ही आयु बढ़ेगी। एक यूनानी विद्वान कहता है कि सदा अपने कर्मों को झीखने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया, पर प्रसन्न-मन डेमोक्रीट्स 109 वर्ष तक जिया। हँसी-खुशी का नाम जीवन है। जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। कवि कहता है-‘ज़िदगी ज़िदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं।’
मनुष्य के शरीर के वर्णन पर एक विलायती विद्वान ने एक पुस्तक लिखी है। उसमें वह कहता है कि उत्तम सुअवसर की हँसी उदास-से-उदास मनुष्य के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है। आनंद एक ऐसा प्रबल इंजन है कि उससे शोक और दुख की दीवारों को ढा सकते हैं। प्राण-रक्षा के लिए सदा सब देशों में उत्तम-से-उत्तम उपाय मनुष्य के चित्त को प्रसन्न रखना है। सुयोग्य वैद्य अपने रोगी के कानों में आनंदरूपी मंत्र सुनाता है।
एक अंग्रेज़ डॉक्टर कहता है कि किसी नगर में दवाई लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है। डॉक्टर हस्फलेंड ने एक पुस्तक में आयु बढ़ाने का उपाय लिखा है। वह लिखता है कि हँसी पाचन के लिए बहुत उत्तम चीज़ है. इससे अच्छी औरधधि और कोई नहीं है। एक रोगी ही नहीं, सबके लिए हँसी बहुत काम की वस्तु है।
हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद देने वाली है। वह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसन्न करती है। पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त को चलाती है और अधिक पसीना लाती है। हैसी एक शक्तिशाली दवा है। एक डॉक्टर कहता है कि वह जीवन की मीठी मदिरा है। डॉ० ह्यूंड कहता है कि आनंद से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास और कोई नहीं है। कारलाइल एक राजकुमार था। संसार-त्यागी हो गया था। वह कहता है कि जो जी से हँसता है, वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसो, तुम्हें अच्छा लंगेगा। अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुमसे कम घुणा करेगा। एक अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा।
उदास को हँसाओ, उसका दुख घटेगा। निराश को हँसाओ, उसकी आशा बढ़ेगी। एक बूढ़े को हँसाओ, वह अपने को जवान समझने लगेगा। एक बालक को हँसाओ, उसके स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। वह प्रसन्न और प्यारा बालक बनेगा, पर हमारे जीवन का उद्देश्य केवल हँसी ही नहीं है, हमको बहुत काम करने हैं। तथापि उन कामों में, कष्टों में और चिताओं में एक सुंदर आंतरिक हँसी के रूप में बड़ी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है।
हँसी सबको भली लगती है। मित्र-मंडली में हँसी विशेषकर प्रिय लगती है। जो मनुष्य हँसते नहीं, उनसे ईश्वर बचाए। जहाँ तक बने हँसी से आनंद प्राप्त करो। प्रसन्न लोग कोई बुरी बात नहीं करते। हँसी बैर और बदनामी की शत्रु है और भलाई की सखी है। हँसी स्वभाव को अच्छा करती है, जी बहलाती है और बुद्धि को निर्मल करती है।
प्रश्न :
(क) हँसी भीतरी आनंद को किन रूपों में प्रकट करती है?
(ख) हँसी को दवा क्यों कहा गया है?
(ग) हेरीक्लेस और डेमोक्रीट्स का उदाहरण देकर लेखक क्या कहना चाहता है?
(घ) आनंद को प्रबल इंजन क्यों कहा गया है ?
(ङ) एक रोगी के लिए हँसी का क्या महत्व है?
(च) हँसी के संबध में कारलाइल का क्या कहना था?
(छ) बालक के लिए हँसी की ज़रूरत क्यों है?
(ज) विलोम शब्द लिखिए – निर्मल, आनंद
(झ) मिश्रवाक्य में बदलिए- सुयोग्य बैद्य अपने रोगी के कान में आनंदरूपी मंत्र सुनाता है।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) हैसी भीतरी आनंद को उमंग, उल्लास, सफलता मिलने पर न समाने वाला खुशी आदि रूपों में प्रकट करती है।
(ख) हँसी को दवा इसलिए कहा गया है क्योंकि यह रोगी के शरीर को नीरोग करके अच्छा बना देती है।
(ग) हेरीक्लेस और डेमोक्रीट्स का उदाहरण देकर लेखक यह कहना चाहता है कि ग्रसन्नता और हँसी सुखमय और स्वस्थ जीवन के आधार हैं।
(घ) आनंद को प्रबल इंजन इसलिए कहा गया क्योंकि इससे शोक और दुख की दीवारें ढहाई जा सकती हैं।
(ङ) हँसी पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त-संचार को तेज़ करती है, शरीर और मन को प्रसन्न करती है, अतः रोगी के लिए हँसी बहुत ही महत्वपूर्ण है।
(च) हँसी के संबंध मे कारलाइल का कहना था कि जो खुले मन से हैंसता है; वह कभी बुरा नहीं होता। हँसी हँसाने वाले तथा सामने वाले दोनों को अच्छी लगती है।
(छ) बालक के लिए हँसी की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि हँसने से बालक के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। इससे बालक हँसमुख और प्यारा बालक बनता है।
(ज) शब्द विलोम
निर्मल × मलिन
आनंद × शोक
(झ) मिश्र वाक्य- वह सुयोग्य वैद्य होता है जो अपने रोगी के कान में आनंद रूपी मंत्र सुनाता है।
(अ) शीर्षक-‘हँसी का महत्व’ अथवा ‘अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य-हँसी’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
हँसी को भीतरी आनंद का …………… चिह्न कहा जाता है।
(क) आंतरिक
(ख) बनावटी
(ग) बाह्य
(घ) स्वाभाविक
उत्तर :
(ग) बाह्य
प्रश्न 2.
हैसी बहुत से ……………………. अच्छी है।
(क) दवाइयों से
(ख) कला-कौशलों से
(ग) योग-व्यायाम से
(घ) खेल-कूद से
उत्तर :
(ख) कला-कौशलों से
प्रश्न 3.
इनमें अपने कर्मों से कौन खीझता रहा?
(क) यूनानी विद्वान
(ख) डेमोक्रीट्स
(ग) अंग्रेज़ डॉक्टर
(घ) हेरीक्लेस
उत्तर :
(घ) हेरीक्लेस
प्रश्न 4.
हँसी किस खुशी को प्रकट करती है?
(क) भीतरी आनंद को
(ख) उमंग एवं उल्लास को
(ग) सफलता मिलने पर न समाने वाली खुशी को
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 5.
पुराने लोग जानते थे कि ……………………
(क) हँसना स्वास्थ्य की अच्छी दवा है।
(ख) हँसी अनेक कौशलों से बढ़कर है
(ग) अधिक हँसने से आयु बढ़ती है।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 6.
हेरीक्लेस और डेमोक्रीट्स के उदाहरण द्वारा लेखक बताना चाहता है कि …….
(क) अपने कर्मों पर नहीं खीझना चाहिए
(ख) दीर्घायु बनने का प्रयास करना चाहिए
(ग) हँसी स्वस्थ एवं सुखमय जीवन का आधार है
(घ) विदेशियों की तरह अच्छा जीवन जीना चाहिए।
उत्तर :
(ग) हँसी स्वस्थ एवं सुखमय जीवन का आधार है
प्रश्न 7.
आनंद को किसकी संज्ञा दी गई है?
(क) शक्तिशाली मशीन की
(ख) विशेष कला-कौशलों की
(ग) प्रबल इंजन की
(घ) लाभकारी डॉक्टर की
उत्तर :
(ग) प्रबल इंजन की
प्रश्न 8.
कारलाइल का कहना था कि शत्रु को हँसाओ तो वह
(क) तुमसे अधिक प्रसन्न होगा
(ख) तुमसे कम घृणा करेगा
(ग) तुम पर भरोसा करेगा
(घ) उसकी आशा बढ़ जाएगी
उत्तर :
(ख) तुमसे कम घृणा करेगा
प्रश्न 9.
‘जो मनुष्य हैसते नहीं, उनसे ईश्वर बचाए’। रेखांकित आश्रित उपवाक्य का भेद है
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(क) संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक हो सकता है –
(क) हैसी-अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य
(ख) हँसी और रोगी व्यक्ति
(ग) हैसी रोगी के लिए दवा
(घ) हँसी और हमारी सोच
उत्तर :
(क) हैसी-अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य
2. सरदार सुजान सिंह ने देवगढ़ में आने वाले इन महानुभावों के आदर-सत्कार का अच्छा प्रबंध कर दिया था। लोग अपने-अपने कमरों में बैठे हुए रोज़ेदार मुसलमानों की तरह महीने के दिन गिना करते थे। हर एक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर ‘अ’ नौ बजे दिन तक सोया करते थे, आजकल वे बगीचे में टहलते हुए उषा के दर्शन करते थे। मिस्टर ‘ब’ को हुक्का पीने की लत थी, मगर आजकल बहुत रात गए किवाड़ बंद करके अँधेरे में सिगार पीते थे। मिस्टर ‘द’, ‘स’ और ‘ज’ से उनके घरों पर नौकरों की नाक में दम था, लेकिन ये सज्जन आजकल ‘आप’ और ‘जज्ञाब’ के बग़ैर नौकरों से बातचीत नहीं करते थे।
महाशय ‘क’ नास्तिक थे, हक्सले के उपासक, मगर आजकल उनकी धर्मनिष्ठा देखकर मंदिर के पुजारी को पदच्युत हो जाने की शंका लगी रहती थी। मिस्टर ‘ल’ को किताबों से घृणा थी, परंतु आजकल वे बड़े-बड़े ग्रंथ खोले पढ़ने में डूबे रहते थे। जिससे बातें कीजिए, वह नम्रता और सदाचार का देवता बन जाता था। शर्मा जी घड़ी रात ही से वेद-मंत्र पढ़ने लगते थे और मौलवी साहेब को तो नमाज़ और तलावत के सिवा और कोई काम न था।
लोग समझते थे कि एक महीने की झंझट है, किसी तरह काट लें, कहीं कार्य सिद्ध हो गया, तो कौन पूछता है। लेकिन मनुष्यों का वह बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा हुआ है? एक दिन नए फ़ैशन वालों को सूझी कि आपस में ‘हॉकी’ का खेल हो जाए। यह प्रस्ताव हॉकी के मँजे हुए खिलाड़ियों ने पेश किया। यह भी तो आखिर एक विद्या है। इसे क्यों छिपा रखें। संभव है, कुछ हाथों की सफ़ाई ही काम कर जाए। चलिए, तय हो गया, कोर्ट बन गए, खेल शुरू हो गया और गेंद किसी दफ्त्तर के अप्रेंटिस की तरह ठोकरें खाने लगी। रियासत देवगढ़ में यह खेल बिलकुल निराली बात थी।
पढ़े-लिखे भले मानस लोग शतरंज और ताश जैसे गभीर खेल खेलते थे। दौड़-कूद के खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे। खेल बड़े उत्साह से जारी था। धावे के लोग जब गेंद को लेकर तेज़ी से बढ़ते, तो ऐसा जान पड़ता था कि कोई लहर बढ़ती चली आती है। लेकिन दूसरी ओर के खिलाड़ी इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोक लेते थे, मानो लोहे की दीवार हैं।
प्रश्न :
(क) तरह-तरह के लोग सुजानगढ़ क्यों आए थे?
(ख) हर व्यक्ति के बदले आचरण का क्या कारण था?
(ग) आजकल ‘अ’ का व्यवहार किस तरह बदला हुआ था?
(घ) हक्सले का उपासक होने का क्या अर्थ है?
(ङ) ‘एक महीने की झँझट है’ ऐसा कहकर किस ओर संकेत किया गया है?
(च) ‘बूढ़ा जौहरी किसे कहा गया है? वह क्या ढूँढ़ रहा था?
(छ) देवगढ़ में ‘हॉकी’ निराली बात क्यों थी?
(ज) आगंतुकों के व्यवहार से सबसे ज्यादा चिंतित और शंकित कौन रहने लगा?
(झ) मूलशब्द और प्रत्यय अलग-अलग करके लिखिए-सफ़ाई, जौहरी
(ञ) ‘लोग समझते थे कि एक महीने की झंझट है।’ वाक्य में उपवाक्य और उसके भेद का नाम लिखिए।
उत्तर :
(क) देवगढ़ में नए दीवान का चयन होना था। वहाँ की दीवानी पाने के लिए तरह-तरह के लोग प्रयास कर रहे थे, इसलिए वे देवगढ़ आए थे।
(ख) हर व्यक्ति के बदले व्यवहार का कारण था- सुजान सिंह की दृष्टि में अपने आचार-विचार और व्यवहार में स्वयं को सबसे अच्छा सिद्ध करना।
(ग) आजकल मिस्टर ‘अ’ बगीचे में टहलते हुए उषा के दर्शन कर रहे थे, जबकि वे खूब देर तक सोया करते थे। इस तरह उनका व्यवहार बदला हुआ था।
(घ) हक्सले का उपासक होने का अर्थ है-पूरी तरह से नास्तिक होना और ईश्वर के प्रति लगाव-जुड़ाव न रखना।
(ङ) ‘एक महीने की झंझट है’-ऐसा कहकर लोगों के व्यवहार कुशल बनने, मृदुभाषी तथा उदार बनने के चक्कर में अपना वास्तविक व्यवहार एवं असली आदत छोड़ने की ओर संकेत किया गया है।
(च) बूढ़ा जौहरी सुजान सिंह को कहा गया है। वे आए हुए उम्मीदवार रूपी बगुलों में हंस रूपी सर्वाधिक योग्य व्यक्ति ढूँढ़ रहे थे, जो देवगढ़ का दीवान बन सके।
(छ) देवगढ़ में हॉकी जैसे भाग-दौड़ वाले खेल खेलना बच्चों और युवाओं के खेल समझे जाते थे, इसलिए अधिक उम्र के लोगों द्वारा हॉकी खेलना निराली बात थी।
(ज) आगंतुकों के व्यवहार से सबसे ज्यादा चिंतित और शंकित मंदिर का पुजारी रहने लगा था क्योंकि कुछ लोगों की धर्मनिष्ठा से उसे अपना पद छिनने का डर लगने लगा था।
(झ) शब्द – मूल शब्द्द – प्रत्यय
सफ़ाई – साफ़ – आई
जौहरी – जौहर – ई
(ञ) उपवाक्य – एक महीने की झंझट है।
भेद – संज्ञा उपवाक्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
सरदार सुजान सिंह इनमें से कहाँ के दीवान थे?
(क) राजगढ़
(ख) देवगढ़
(ग) रायगढ़
(घ) रामगढ़
उत्तर :
(ख) देवगढ़
प्रश्न 2.
तरह-तरह के लोग वहाँ क्यों आए थे?
(क) दीवान बनने के लिए
(ख) सेना में भर्ती होने के लिए
(ग) अपना-अपना कौशल दिखाने के लिए
(घ) सुजान सिंह से पुरस्कार पाने के लिए
उत्तर :
(क) दीवान बनने के लिए
प्रश्न 3.
मिस्टर ‘अ’ अब कब तक उठ जाया करते थे?
(क) नौ बजे दिन तक
(ख) मुर्ग द्वारा बाग देने से पहले
(ग) सूर्योदय होने से पहले
(घ) सुजान सिंह के जगने से पहले
उत्तर :
(ग) सूर्योदय होने से पहले
प्रश्न 4.
‘द’, ‘स’ और ‘ज’ अपने-अपने व्यवहार से क्या सिद्ध करना चाहते हैं?
(क) वे सबको एकसमान समझते हैं
(ख) वे देर तक नहीं सोते हैं
(ग) उनका व्यवहार सबसे अलग है
(घ) वे अत्यंत व्यवहार कुशल हैं।
उत्तर :
(घ) वे अत्यंत व्यवहार कुशल हैं।
प्रश्न 5.
महाशय ‘क’ का व्यवहार देखकर इनमें से कौन श्रंकित रहने लगा था?
(क) मौलवी साहब
(ख) मंदिर का पुजारी
(ग) सरदार सुजान सिंह
(घ) हक्सले के उपासक
उत्तर :
(ख) मंदिर का पुजारी
प्रश्न 6.
बगुलों में हंस की खोज कौन कर रहा था?
(क) देवगढ़ के लोग
(ख) देवगढ़ में नए आए तरह-तरह के लोग
(ग) देवगढ़ के सरदार सुजान सिंह
(घ) देवगढ़ आया हुआ पक्षियों का शिकारी
उत्तर :
(ग) देवगढ़ के सरदार सुजान सिंह
प्रश्न 7.
देवगढ़ में यह खेल बिलकुल निराली बात क्यों थी?
(क) वहाँ यह खेल कभी नहीं खेला गया था।
(ख) यह खेल तो पढ़े-लिखे खेलते हैं।
(ग) पढ़े-लिखे लोग खेल नहीं खेलते हैं।
(घ) ऐसा खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे।
उत्तर :
(घ) ऐसा खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे।
प्रश्न 8.
ऐसा जान पड़ता था कि कोई लहर बढ़ती आ रही है-रेखांकित उपवाक्य का भेद है-
(क) विशेषण उपवाक्य
(ख) संज्ञा उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ख) संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘वेद-मंत्र’ का विग्रह और समास का नाम है ………………..।
(क) वेद जैसा मंत्र – कर्मधारय समास
(ख) वेद के लिए मंत्र – तत्पुरुष समास
(ग) वेद और मंत्र – द्वद्वंव समास
(घ) वेद रूपी मंत्र – कर्मधारय समास
उत्तर :
(ग) वेद और मंत्र – द्वद्वंव समास
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है –
(क) बदला हुआ व्यवहार
(ख) परीक्षा
(ग) अनोखा खेल
(घ) बगुलों में छिपा हंस
उत्तर :
(ख) परीक्षा
3. जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक द्वारा समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता उस सीमा तक विकसित करे, जिससे वह अपने पेशे या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दुषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना, दूसरे ही दृष्टिकोण; जैसे-माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व-निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवनभर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्राय: आती है, क्योंकि उद्योग-धंधे की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो उसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत है। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
प्रश्न :
(क) जाति-प्रथा को स्वाभाविक श्रम-विभाजन क्यों नहीं कहा जा सकता?
(ख) स्वाभाविक श्रम-विभाजन से आप क्या समझते हैं?
(ग) जाति-प्रथा से पेशे का दोषपूर्ण निर्धारण किस तरह हो जाता है?
(घ) हमारे देश में जाति-प्रथा ने बेरोजगारी को किस तरह बढ़ावा दिया है?
(ङ) मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ जाती है?
(च) पेशा बदलने की स्वतंत्रता से मनुष्य को क्या लाभ हो सकता है?
(छ) हिंदू धर्म, जाति-प्रथा पेशे के प्रति किस तरह रूढ़ है?
(ज) पेशे का चयन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
(झ) उपसर्ग और मूल शब्द अलग करके लिखिएअनुपयुक्त, प्रतिकूल।
(ञ) इस गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) जाति-प्रथा को स्वाभाविक श्रम-विभाजन इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसका चयन मनुष्य अपनी रुचि एवं इच्छा से नहीं कर पाता है।
(ख) स्वाभाविक श्रम-विभाजन का अर्थ है- हर व्यक्ति अपनी क्षमता का विकास करे और अपने पेशे का चुनाव अपनी योग्यता, रुचि तथा क्षमता के आधार पर कर सके।
(ग) जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति के पेशे का निर्धारण उसके जन्म से पूर्व अर्थात गर्भाधान के समय से ही हो जाता है और उसे इसी आधार पर कार्य करना पड़ता है।
(घ) हमारे देश में जाति-प्रथा पूर्व निर्धारित होती है जिससे मनुष्य जीवन भर के लिए एक ही पेशे में बँध जाता है और वह चाहकर भी दूसरा व्यवसाय नहीं अपना पाता है. जिससे बेरोज़गारी बढ़ती है।
(ङ) बदलते समय की दृष्टि से उद्योग-धंधों की प्रक्रिया एवं तकनीक में निरंतर विकास एवं अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, उससे व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की ज़रूरत पड़ जाती है।
(च) पेशा बदलने की स्वतंत्रता से मनुष्य दूसरे कार्य करने के लिए स्वंतत्र हो जाता है, और वह नया कार्य करके भूखों मरने से बच जाता है।
(छ) हिंदू-धर्म व्यक्ति को अपना पेशा चुनने का अवसर नहीं देता भले ही व्यक्ति अपने पैतृक पेशे में पारंगत न होकर अन्य पेशे में पारंगत हो। उस तरह हिंदू धर्म जाति-प्रथा पेशे के प्रति रूढ़ है।
(ज) पेशे का चयन करते समय व्यक्ति को निजी क्षमता, रुचि, प्रशिक्षण आदि का ध्यान रखना चाहिए।
(झ)
(ञ) ‘जाति-प्रथा से बढ़ती बेरोज़गारी’ या ‘जाति-प्रथा और पेशा-चयन की समस्या’ अथवा ‘जाति-प्रथा पर आधारित श्रम विभाजन’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
जाति-प्रथा को स्वाभाविक श्रम विभाजन नहीं कहा जा सकता है क्योंकि
(क) इसे मनुष्य अपनी रुचि से नहीं चुनता है
(ख) इसे जातीय आधार पर अपनाना पड़ता है
(ग) यह जन्म से ही निर्धारित हो जाती है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
मनुष्य की क्षमता और प्रशिक्षण को अनदेखा कर देना जाति-प्रथा का कैसा सिद्धांत है?
(क) उत्तम
(ख) निर्मल
(ग) दूषित
(घ) सरल
उत्तर :
(ग) दूषित
प्रश्न 3.
जाति-प्रथा मनुष्य के पेशे का कैसे पूर्व निर्धारण कर देती है?
(क) दोषपूर्ण
(ख) दोषरहित
(ग) अकस्मात
(घ) क्षमता के अनुरूप
उत्तर :
(क) दोषपूर्ण
प्रश्न 4.
उद्योग-धंधे की प्रक्रिया और तकनीक में विकास के कारण मनुष्य को किसकी आवश्यकता पड़ जाती है?
(क) धन कमाने की
(ख) अधिक श्रम करने की
(ग) रोज़गार से जुड़े रहने की
(घ) अपना पुराना पेशा बदलने की
उत्तर :
(घ) अपना पुराना पेशा बदलने की
प्रश्न 5.
प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्य को पेशा बदलने की छूट होनी चाहिए अन्यथा
(क) पेशे में एकाधिकार बढ़ जाता है
(ख) मनुष्य कार्यकुशल हो जाता है
(ग) मनुष्य भूखा मर सकता है
(घ) मनुष्य पेशे पर अपना कब्जा कर सकता है
उत्तर :
(ग) मनुष्य भूखा मर सकता है
प्रश्न 6.
जाति-प्रथा के कारण मनुष्य को अपना …………………… पेशा चुनना पड़ता है।
(क) मनपसंद
(ख) रुचिकर
(ग) लाभप्रद
(घ) पैतृक
उत्तर :
(घ) पैतृक
प्रश्न 7.
पेशा बदलने की अनुमति न होने के कारण जाति-प्रथा किसका कारण बन गई है?
(क) रोज़गार वृद्धि का
(ख) बेरोजगारी का
(ग) उत्पादन में वृद्धि का
(घ) उत्पादन में गुणवत्ता की कमी का
उत्तर :
(ख) बेरोजगारी का
प्रश्न 8.
अनुपयुक्त पेशा होने से वह भूखों मर गया। वाक्य का मिश्र वाक्य में रूपांतरण है-
(क) चूँक पेशा अनुपयुक्त था इसलिए वह भूखों मर गया।
(ख) पेशा अनुपयुक्त था अतः वह भूखों मर गया।
(ग) पेशा अनुपयुक्त होना उसकी मौत का कारण बना।
(घ) कोई भूखों न मरे इसलिए उपयुक्त पेशा ही चुनना चाहिए।
उत्तर :
(क) चूँक पेशा अनुपयुक्त था इसलिए वह भूखों मर गया।
प्रश्न 9.
‘पैतृक’ में मूल शब्द एवं प्रत्यय है-
(क) पैतृ, अक
(ख) पैतृ + क
(ग) पिता + इक
(घ) पित्र + इक
उत्तर :
(घ) पित्र + इक
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) जाति-प्रथा के लाभ
(ख) जाति-प्रथा का बंधन
(ग) जाति-प्रथा – स्वाभाविक विभाजन
(घ) जाति-प्रथा – कुशलता का आधार
उत्तर :
(ख) जाति-प्रथा का बंधन
4. मनुष्य अपने भविष्य के बारे में चितित है। सभ्यता की अग्रगति के साथ ही चिंताजनक अवस्था उत्पन्न होती जा रही है। देश व्यावसायिक युग में उत्पादन की होड़ लगी हुई है। कुछ देश विकसित कहे जाते हैं तो कुछ विकासोन्मुख। विकसित वे हैं, जहाँ आधुनिक तकनीक का पूर्ण उपयोग हो रहा है। ऐसे देश नाना प्रकार की सामग्री का उत्पादन करते हैं और सामग्री की खपत के लिए बाज़ार दूँढ़ते रहते हैं। अत्यधिक उत्पादन-क्षमता के कारण ही ये देश विकसित और अमीर विकासोन्मुख या गरीब देश उनके समान ही उत्पादन करने की आकांक्षा रखते हैं और इसलिए उन सभी आधुनिक की जानकारी प्राप्त करते हैं तथा उत्पादन-क्षमता बढ़ाने का स्वप्न देखते हैं।
इसका परिणाम यह हुआ है कि सारे में उन वायुमंडल-प्रदूषक यंत्रों की भीड़ बढ़ने लगी है, जो विकास के लिए परम आवश्यक माने जाते हैं। इन उस उपकरणों ने अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। वायुमंडल विषाक्त गैसों से ऐसा भरता जा रहा कि संसार का सारा पर्यावरण दूषित हो उठा है, जिससे वनस्पतियों तक के अस्तित्व संकटापन्न हो गए हैं। अपने बढ़ते को खाने के लिए हर शक्तिशाली देश अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा रहा है और आपसी प्रतिद्वंद्विता इतनी बढ़ गई है कि सभी ने मारणास्त्रों का विशाल भंडार बना रखा है।
विज्ञान और तकनीक के विकास से अणु बमों की अनेक संहारकारी किस्में ईजाद हुई हैं। ये यदि किसी सिरफिरे राष्ट्रनायक की झक के कारण सचमुच युद्ध-क्षेत्र में प्रयुक्त होने लर्गी, तो पृथ्वी जीव-शून्य हो जाएगी। कहीं भी थोड़ा-सा प्रमाद हुआ, तो मनुष्य का नामलेवा कोई नहीं रह जाएगा। एक ओर जहाँ मनुष्य की बुद्धि ने धरती को मानव-शून्य बनाने के भयंकर मारणास्त्र तैयार कर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर मनुष्य ही इस भावी मानव-विनाश की आशंका से सिहर भी उठा है। उसका एक समझदार समुदाय इस प्रकार की कल्पना-मात्र से आर्तकित हो गया है कि न जाने किस दिन संसार इस विनाश-लीला का शिकार हो जाए।
इतिहास साक्षी है कि बहुत-सी जीव-प्रजातियाँ विभिन्न कारणों से हमेशा-हमेशा के लिए विलुप्तं हो गई, बहुत-सी आज भी क्रमशः विलुप्त होने की स्थिति में हैं, पर उनके मन में कभी अपनी प्रगति के नष्ट हो जाने की आशंका हुई थी या नहीं. हमें नहीं मालूम। शायद मनुष्य पहला प्राणी है. जिसमें थोड़ा-बहुत भविष्य देखने की शक्ति है। अन्य जीवों में यह शक्ति थी ही नहीं। यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है कि सिर्फ मनुष्य ही है, जो अपने भविष्य के बारे में चिंतित है। यह सभी जानते हैं कि आधुनिक विज्ञान और तकनीक ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है। उसी की कृपा से संसार के मनुष्य एक-दूसरे के निकट आए हैं, अनेक पुराने संस्कार जो गलतफ़हमी पैदा करते थे, झड़ते जा रहे हैं।
मनुष्य को नीरोग, दीर्घजीवी और सुसंस्कृत बनाने के अनगिनत साधन बढ़े हैं, फिर भी मनुष्य चितित है। जो प्रकृति के मूल्यवान भंडारों की अंधाधुंध लूट मचाकर आराम और संपन्नता प्राप्त कर रहे हैं, वे बहुत परेशान नहीं हैं। वे यथास्थिति भी बनाए रखना चाहते हैं और यदि संभव हो, तो अपनी व्यक्तिगत, परिवारगत और जातिगत संपन्नता अधिक-से-अधिक बढ़ा लेने के लिए परिश्रम भी कर रहे हैं। ऐसे सुखी लोग ‘मनुष्य का भविष्य’ जैसी बातों के कारण परेशान नहीं हैं। पर जो लोग अधिक संवेदनशील हैं और मनुष्य जाति को महानाश की ओर बढ़ते देखकर विचलित हो उठते हैं, वे ही परेशान हैं।
प्रश्न :
(क) कुछ देश किस तरह विकसित और अमीर हो गए हैं?
(ख) गरीब देश किस बात का स्वप्न देखते हैं?
(ग) विकास वाहक यंत्र किस तरह नुकसानदायी हो रहे हैं?
(घ) विज्ञान और मारणास्त्रों का क्या संबंध है?
(ङ) इतिहास किस बात का गवाह रहा है?
(च) विज्ञान और तकनीक से मनुष्य को क्या लाभ हुआ है?
(छ) किस तरह के लोग समाज में बदलाव नहीं लाना चाहते हैं?
(ज) आज अधिक संवेदनशील लोग ज्यादा परेशान क्यों हैं?
(झ) विकासोन्मुख, मारणास्त्र का संधि-विच्छेद कीजिए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) कुछ देशों ने विज्ञान की आधुनिक तकनीक का उपयोग उत्पादन बढ़ाने में किया है। इससे इन देशों की उत्पादन क्षमता बढ़ी है। उस कारण ये देश विकसित और अमीर हो गए है।
(ख) गरीब देश, अमीर देशों की तरह ही उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं। वे आधुनिक तरीकों की जानकारी प्राप्त करके अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का स्वप्न देखते हैं।
(ग) विकास वाहक यंत्रों से अनेक जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे वायुमंडल दूषित होता जा रहा है। इससे प्राणियों और वनस्पतियों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
(घ) विज्ञान और मारणास्त्रों का संबंध यह है कि जैसे-जैसे विज्ञान और तकनीक का आविष्कार हुआ है, वैसे-वैसे मारणास्त्रों की नई-नई किस्मों की खोज होती गई।
(ङ) इतिहास उस बात का गवाह है कि अनेक जीव-प्रजातियाँ नष्ट हो गई और अनेकानेक नष्ट होने की कगार पर हैं।
(च) विज्ञान और तकनीक के कारण मनुष्य एक-दूसरे के निकट आया है तथा पुराने रूढ़िवादी संस्कार धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।
(छ) समाज के कुछ लोग जो प्रकृति के संसाधनों का उपयोग अपने आराम और संपन्नता के लिए कर रहे हैं, वे समाज में बदलाव नहीं लाना चाहते हैं।
(ज) अधिक संवेदनशील लोगों की परेशानी का कारण यह है कि वे मानवजाति को विनाश की ओर जाते हुए नहीं देख पा रहे हैं।
(झ) विकासोन्मुख – विकास + उन्मुख
मारणास्त्र – मारण + अस्त्र
(ज) शीर्षक – ‘मनुष्य का भविष्य’ या ‘विज्ञान न बन जाए विनाश का कारण’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
गद्यांश में वर्तमान युग को कैसा बताया गया है?
(क) वैज्ञानिक
(ख) तकनीकी
(ग) व्यावसायिक
(घ) आधुनिक
उत्तर :
(ग) व्यावसायिक
प्रश्न 2.
जिन देशों में आधुनिक तकनीक का पूरा उपयोग हो रहा है उन्हें …………………… देश कहते हैं।
(क) विकसित
(ख) विकासोन्मुख
(ग) व्यावसायिक
(घ) पिछड़े
उत्तर :
(क) विकसित
प्रश्न 3.
कुछ देशों के अमीर होने का कारण है ………….
(क) जनसंख्या अधिक होना
(ख) वहाँ की जलवायु अच्छी होना
(ग) उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होना
(घ) उत्पादन का खूब प्रयोग करना
उत्तर :
(ग) उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होना
प्रश्न 4.
अनेक देशों द्वारा उत्पादन बढ़ाने का स्वप्न देखने का परिणाम क्या हुआ?
(क) उत्पादन बढ़ गया
(ख) जनसंख्या बढ़ गई
(ग) ये देश धनी हो गए
(घ) वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले यंत्र बढ़ गए
उत्तर :
(घ) वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले यंत्र बढ़ गए
प्रश्न 5.
संसार के पर्यावरण का प्रदूषित होने का कारण क्या है?
(क) देशों का धनी हो जाना
(ख) जहरीली गैसों का बढ़ते जाना
(ग) उत्पादन में कमी हो जाना
(घ) वायुमंडल का ताप बढ़ जाना
उत्तर :
(ख) जहरीली गैसों का बढ़ते जाना
प्रश्न 6.
आपसी प्रतिद्वंद्विता के कारण सभी ने ……………. बना रखा है
(क) अन्न का विशाल भंडार
(ख) उत्पादन का विशाल भंडार
(ग) विनाशकारी हथियारों का विशाल भंडार
(घ) उत्पादन बढ़ाने वाले यंत्रों का विशाल भंडार
उत्तर :
(ग) विनाशकारी हथियारों का विशाल भंडार
प्रश्न 7.
मनुष्य के भविष्य के बारे में सोचकर कैसे लोग चिंतित है?
(क) समझदार लोग
(ख) संवेदनहीन लोग
(ग) परिश्रमी लोग
(घ) संवेदनशील लोग
उत्तर :
(घ) संवेदनशील लोग
प्रश्न 8.
सिर्फ़ मनुष्य है जो अपने भविष्य के बारे में चिंतित है। वाक्य के रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(घ) प्रधान उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘ईज़ाद’ शब्द का अर्थ है
(क) ईश्वर
(ख) खोज
(ग) इच्छा
(घ) उत्पन्न
उत्तर :
(ख) खोज
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) मनुष्य का भविष्य
(ख) संवेदनशील लोग
(ग) उत्पादन में वृद्धि
(घ) बढ़ता प्रदूषण
उत्तर :
(क) मनुष्य का भविष्य
5. विद्वानों का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्म-संस्कार के लिए थोड़ी-बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है-चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता से ही उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्म-निर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे, ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं।
यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है-हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा, हमारे बहुत-से अवगुण और थोड़े गुण-सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए। नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है. जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है, जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है; जिसके कारण आगे बढ़ने के समय भी वह पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर चट-पट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।
प्रश्न :
(क) स्वतंत्रता का महत्व कब कम हो जाता है?
(ख) स्वतंत्रता के साथ विनम्रता का मेल क्यों आवश्यक हो जाता है?
(ग) मर्यादापूर्वक जीवन जीने के लिए आत्मनिर्भरता क्यों आवश्यक है?
(घ) गद्यांश में युवाओं को किस वास्तविकता से परिचित कराया गया है?
(ङ) आत्म-मर्यादा के लिए कौन-कौन सी बातें आवश्यक हैं?
(च) दब्दूपन से व्यक्तित्व किस तरह प्रभावित होता है?
(छ) आत्मा को नम्र बनाकर रखना चाहिए, ऐसा कौन-कौन आवश्यक मानते हैं?
(ज) विलोम लिखिए – अनिवार्य, नम्रता
(झ) सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह निकालती है। उपवाक्य और भेद बताइए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) स्वतंत्रता के साथ विनम्रता नहीं रहती है, तब उसका महत्व कम हो जाता है।
(ख) स्वतंत्रता के साथ विनम्रता का मेल इसलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि विनम्रता के अभाव में व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है तथा वह उदंडता करने लगता है।
(ग) मर्यादापूर्वक जीवन जीने के लिए आत्मनिर्भरता इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसके बिना व्यक्ति में स्वतंत्र निर्णय लेने तथा अपने पैरों पर खड़े होने का गुण नहीं आ सकता है।
(घ) गद्यांश में युवाओं को इस वास्तविकता से परिचित कराया गया है कि वह बहुत कम बातें जानता है। वह अपने आदर्शों से नीचे रहकर अपनी आकांक्षाएँ और योग्यताएँ बढ़ा चुका है।
(ङ) आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक है कि लोग अपने से बड़ों का सम्मान करें तथा छोटों एवं बराबर वालों से आत्मीयतापूर्वक व्यवहार करें।
(च) दब्बूपन के कारण व्यक्ति कोई निर्णय नहीं ले पाता है। वह दूसरों से पीछे रह जाता है तथा छोटी-छोटी बातों के लिए दूसरों का मुँह ताकता है। इस तरह व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावित होता है।
(छ) आत्मा को नम्र बनाए रखना चाहिए, ऐसा यह संसार, हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हमारे भोग, हमारे घर-बाहर की दशा आदि आवश्यक मानते हैं।
(ज) अनिवार्य + ऐच्छिक
नम्रता + उग्रता
(झ) उपवाक्य – जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह निकालती है।
भेद – विशेषण उपवाक्य
(ज) शीर्षक – ‘विनम्रता का महत्व’ या ‘नम्रता और दब्बूपन’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
विनम्रता के अभाव में स्वतंत्रता का महत्व
(क) बढ़ जाता है
(ख) घट जाता है
(ग) लोकप्रिय हो जाता है
(घ) उद्देश्यपूर्ण हो जाता है
उत्तर :
(ख) घट जाता है
प्रश्न 2.
गलत कथन चुनिए- ‘व्यक्ति में विनम्रता न होने पर
(क) वह अपनी स्वतंत्रता का सदुपयोग करता है
(ख) वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है
(ग) वह स्वयं को ऊँचा समझने लगता है
(घ) वह दूसरों की स्वतंत्रता का हनन करने लगता है
उत्तर :
(क) वह अपनी स्वतंत्रता का सदुपयोग करता है
प्रश्न 3.
मर्यादापूर्वक जीवन जीने के लिए व्यक्ति में ………………….. स्वतंत्रता और नम्रता आवश्यक है।
(क) शारीरिक
(ख) मानसिक
(ग) भौतिक
(घ) आध्यात्मिक
उत्तर :
(ख) मानसिक
प्रश्न 4.
युवा को याद रखना चाहिए कि उसकी …………… उसकी योग्यताओं से बड़ी हैं।
(क) इच्छाएँ
(ख) आदतें
(ग) रुचियाँ
(घ) क्रियाएँ
उत्तर :
(क) इच्छाएँ
प्रश्न 5.
आत्ममर्यादा के लिए किसका सम्मान करना आवश्यक है?
(क) छोटों का
(ख) बड़ों का
(ग) बराबर वालों का
(घ) पूर्वजों का
उत्तर :
(ख) बड़ों का
प्रश्न 6.
हमें अपनी आत्मा को
(क) उग्र
(ख) अंशात
(ग) नम्र
(घ) शांतिप्रिय
उत्तर :
(ग) नम्र
प्रश्न 7.
जो दूसरों का मुँह ताकते हैं ………………….
(क) उनका संकल्प दृढ़ हो जाता है।
(ख) उनकी प्रज्ञा तीव्र हो जाती है।
(ग) उनका संकल्प कमजोर हो जाता है।
(घ) वे पीछे रह जाते हैं।
उत्तर :
(ग) उनका संकल्प कमजोर हो जाता है।
प्रश्न 8.
‘सच्ची आत्मा वही है जो प्रत्येक स्थिति में अपनी राह आप ही निकालती है।’ – इसका सरल वाक्य में रूपांतरण होगा-
(क) सच्ची आत्मा वही है जो हर स्थिति में राह निकाल ले।
(ख) आत्मा सच्ची है और अपनी राह निकाली लेती है।
(ग) यदि आत्मा सच्ची होती तो अपनी राह निकाल लेती।
(घ) सच्ची आत्मा प्रत्येक स्थिति में अपनी राह आप ही निकाल लेती है।
उत्तर :
(घ) सच्ची आत्मा प्रत्येक स्थिति में अपनी राह आप ही निकाल लेती है।
प्रश्न 9.
‘दब्बूपन’ शब्द है ……………………
(क) जातिवाचक संज्ञा
(ख) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(ग) भाववाचक संज्ञा
(घ) विशेषण
उत्तर :
(ग) भाववाचक संज्ञा
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है
(क) नम्रता और आत्मा
(ख) विनम्रता का महत्व
(ग) विनम्र व्यक्ति
(घ) सच्ची आत्मा
उत्तर :
(ख) विनम्रता का महत्व
6. पड़ोस सामाजिक जीवन के ताने-बाने का महत्वपूर्ण आधार है। दरअसल पड़ोस हमारी सामाजिक सुरक्षा के लिए जितना स्वाभाविक है उतना ही हमारे सामाजिक जीवन की समस्त आनंदपूर्ण गतिविधियों के लिए आवश्यक भी है। यह सच है कि पड़ोसी का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता, इसलिए पड़ोसी के साथ कुछ-न-कुछ सामंजस्य तो बिठाना ही पड़ता है। हमारा पड़ोसी अमीर हो या गरीब, उसके, साथ संबंध रखना सदैव हमारे हित में ही होता है। पड़ोसी से परहेज़ करना अथवा उससे कटे-कटे रहने में अपनी ही हानि है, क्योंकि किसी भी आकस्मिक आपदा अथवा आवश्यकता के समय अपने रिश्तेदारों अथवा परिवार वालों को बुलाने में समय लगता है। यदि टेलीफ़ोन की सुविधा भी है, तो भी कोई निश्चय नहीं कि उनसे समय पर सहायता मिल ही जाएगी।
ऐसे में पड़ोसी ही सबसे अधिक विश्वस्त सहायक हो सकता है। पड़ोसी चाहे कैसा भी हो, उससे अच्छे संबंध रखने ही चाहिए। जो अपने पड़ोसी से प्यार नहीं कर सकता, उससे सहानुभूति नहीं रख सकता, उसके साथ सुख-दुख का आदान-प्रदान नहीं कर सकता तथा उसके शोक और आनंद के क्षणों में शामिल नहीं हो सकता, वह भला अपने समाज अथवा देश के साथ क्या खाक भावनात्मक रूप में जुड़ेगा। विश्व-बंधुत्व की बात भी तभी मायने रखती है, जब हम अपने पड़ोसी से निभाना सीखें। प्राय: जब भी पड़ोसी से खटपट होती है, वो इसलिए कि हम पड़ोसी के व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक जीवन में आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप करने लगते हैं। हम भूल जाते हैं कि किसी को भी अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी की रोक-टोक और हस्तक्षेप अच्छा नहीं लगता। पड़ोसी के साथ कभी-कभी तब भी अवरोध पैदा हो जाता है, जब हम उससे आवश्यकता से अधिक अपेक्षा करने लगते हैं।
बात नमक-चीनी के लेने-देने से आरंभ होती है, तो स्कूटर और कार तक माँगने की गुस्ताखी हम कर बैठते हैं। ध्यान रखना चाहिए कि जब तक बहुत ज़रूरी न हो, पड़ोसी से कोई चीज़ माँगने की नौबत ही न आए। आपको परेशानी में पड़ा देख पड़ोसी खुद ही आगे आ जाएगा। पड़ोसियों से निबाह करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बच्चों को नियंत्रण में रखें। आमतौर से बच्चों में जाने-अनजाने छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हैं और बात बड़ों के बीच सिर-फुटौवल तक जा पहुँचाती है। इसलिए पड़ोसी के बगीचे से फल-फूल तोड़ने, उसके घर में ऊधम मचाने से बच्चों पर सख्ती से रोक लगाएँ। भूलकर भी पड़ोसी के बच्चे पर हाथ न उठाएँ, अन्यथा संबंधों में कड़वाहट आते देर न लगेगी।
प्रश्न :
(क) अच्छे पड़ोस का हमारे लिए क्या महत्व है?
(ख) पड़ोसी के साथ ताल-मेल क्यों बिठाना पड़ता है?
(ग) पड़ोसी हमारा सबसे विश्वस्त सहायक कैसे हो सकता है?
(घ) देश और समाज से भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए क्या आवश्यक है?
(ङ) पड़ोसी से खटपट होने का क्या कारण होता है?
(च) पड़ोसी से अधिक अपेक्षा रखने का क्या परिणाम होता है ?
(छ) अच्छे पड़ोसी की क्या पहचान होती है?
(ज) अच्छा पड़ोसी बनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
(झ) सरल वाक्य बनाइए- विश्वबंधुत्व की बात तभी मायने रखती है जब हम अपने पड़ोसी से अच्छी तरह निभाएँ।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) अच्छे पड़ोस से हमें सामाजिक सुरक्षा मिलती है तथा अच्छे पड़ोसी होने पर ही सामाजिक जीवन की गतिविधियाँ आनंदपूर्वक की जा सकती हैं।
(ख) पड़ोसी का चयन करना हमारे हाथ में नही होता है। उससे अच्छा व्यवहार करने के लिए कुछ-न-कुछ तालमेल बिठाना पड़ता है।
(ग) संकट के समय में हमारा पड़ोसी ही सबसे पहले हमारी मदद करता है जबकि अन्य लोग, मित्र या रिश्तेदार बाद में मदद करने के लिए पहुँच पाते हैं। इस तरह पड़ोसी ही हमारा सबसे विश्वस्त सहायक हो सकता है। में
(घ) देश और समाज से भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए आवश्यक है कि हम अपने पड़ोसी से प्यार करें, उससे सहानुभूति रखें, उसके साथ सुख-दुख का आदान-प्रदान करें।
(ङ) पड़ोसी से खटपट होने का कारण होता है- उसके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप करना।
(च) पड़ोसी से अधिक अपेक्षा रखने का परिणाम यह होता है कि उसके साथ संबंधों में उतनी सहजता, मधुरता और निकटता नहीं रह जाती है।
(छ) अच्छे पड़ोसी की पहचान यह होती है कि वह अपने पड़ोसी को संकट में फँसा देखकर उसकी मदद के लिए खुद ही आगे आ जाता है। वह मदद माँगने का इंतज्ञार नहीं करता है।
(ज) अच्छा पड़ोसी बनने के लिए हमें अपने बच्चों के गलत व्यवहार पर सख्त नियंत्रण रखना चाहिए तथा भूलकर भी पड़ोसी के बच्चे पर हाथ नहीं उठाना चाहिए।
(झ) सरल वाक्य- अपने पड़ोसी से अच्छी तरह निभाने पर ही विश्वबंधुत्व की बात मायने रखती है।
(अ) शीर्षक- ‘पड़ोसी का महत्व’ अथवा ‘पड़ोसी के प्रति हमारा व्यवहार।’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
पड़ोस हमारे ……….. जीवन की आनंद भरी गतिविधियों के लिए ज़रूरी है।
(क) राजनीतिक
(ख) आर्थिक
(ग) सामाजिक
(घ) धार्मिक
उत्तर :
(ग) सामाजिक
प्रश्न 2.
पड़ोसी के साथ थोड़ा बहुत तालमेल बिठाना पड़ता है क्योंकि
(क) पड़ोसी हमारे सबसे निकट होता है।
(ख) पड़ोसी हमारा हितैषी होता है।
(ग) पड़ोसी का चयन हम नहीं कर सकते हैं।
(घ) पड़ोसी ही हमारे काम आता है।
उत्तर :
(ग) पड़ोसी का चयन हम नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न 3.
पड़ोसी से कटे-कटे रहने में हमारी ……………।
(क) भलाई होती है।
(ख) हानि ही होती है।
(ग) शान घटती है।
(घ) प्रतिष्ठा बनी रहती है।
उत्तर :
(ख) हानि ही होती है।
प्रश्न 4.
विश्वबंधुत्व की बात कब सार्थक होती है?
(क) जब हम पड़ोसी का गुणगान करें।
(ख) जब हम पड़ोसी के काम आएँ।
(ग) जब हम पड़ोसी से अच्छा संबंध रखें।
(घ) जब पड़ोसी हमारे काम आए।
उत्तर :
(ग) जब हम पड़ोसी से अच्छा संबंध रखें।
प्रश्न 5.
पड़ोसी के व्यक्तिगत या पारिवारिक जीवन में ज्यादा हस्तक्षेप करने का क्या परिणाम होता है?
(क) हमारे संबंध अच्छे हो जाते हैं।
(ख) पड़ोसी से हमारे संबंध समाप्त हो जाते हैं।
(ग) पड़ोसी हमारी मदद के लिए तैयार हो जाता है।
(घ) पड़ोसी से झगड़ा होने की स्थिति आ जाती है।
उत्तर :
(घ) पड़ोसी से झगड़ा होने की स्थिति आ जाती है।
प्रश्न 6.
पड़ोसी के साथ हमारे संबंध अच्छे बने रहे, इसके लिए क्या करना चाहिए?
(क) अपने बच्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
(ख) हमारे बच्चे उनके घर शोर न मचाएँ।
(ग) हमारे बच्चे उनका कुछ नुकसान न करें।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 7.
हमें मुसीबत में पड़ा देखकर अच्छा पड़ोसी क्या करता है?
(क) खुश होता है।
(ख) दुखी होता है।
(ग) मदद के लिए खुद आगे आ जाता है।
(घ) माँगने पर मदद करता है।
उत्तर :
(ग) मदद के लिए खुद आगे आ जाता है।
प्रश्न 8.
‘जब तक बहुत ज़रूरी न हो तब तक पड़ोसी से कोई चीज़ नहीं माँगनी चाहिए।’ – का सरल वाक्य होगा-
(क) पड़ोसी से सामान नहीं माँगना चाहिए।
(ख) यदि ज़रूरी न हो तो कोई चीज़ न माँगे।
(ग) बहुत ज़रूरी है इसलिए पड़ोसी से सामान माँगा गया।
(घ) बहुत ज़रूरी न होने पर पड़ोसी से कोई चीज़ नहीं माँगनी चाहिए।
उत्तर :
(घ) बहुत ज़रूरी न होने पर पड़ोसी से कोई चीज़ नहीं माँगनी चाहिए।
प्रश्न 9.
द्वंद्व समास का उदाहरण किस विकल्प में है?
(क) आनंदपूर्ण
(ख) विश्वबंधुत्व
(ग) सिर-फुटौव्वल
(घ) नमक-चीनी
उत्तर :
(घ) नमक-चीनी
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है ……………………।
(क) सामाजिक ताना-बाना
(ख) अमीर या गरीब पड़ोसी
(ग) अच्छे पड़ोसी का चुनाव
(घ) अच्छे पड़ोसी का महत्व
उत्तर :
(घ) अच्छे पड़ोसी का महत्व
7. राष्ट्रीय भावना के अभ्युदय एवं विकास के लिए भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। मानव-समुदाय अपनी संवेदनाओं, भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति हेतु भाषा का साधन अपरिहार्यत: अपनाता है, इसके अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। दिव्य-ईश्वरीय आनंदानुभूति के संबंध में भले ही कबीर ने ‘गूँगे केरी शर्करा’ उक्ति का प्रयोग किया था, पर इससे उनका लक्ष्य शब्द-रूप भाषा के महत्व को नकारना नहीं था। प्रत्युत उन्होंने भाषा को ‘बहता नीर’ कहकर भाषा की गरिमा प्रतिपादित की थी।
विद्वानों की मान्यता है कि भाषा तत्व राष्ट्रहित के लिए अत्यावश्यक है। जिस प्रकार किसी एक राष्ट्र के भू-भाग की भौगोलिक विविधताएँ तथा उसके पर्वत, सागर, सरिताओं आदि की बाधाएँ उस राष्ट्र के निवासियों के परस्पर मिलने-जुलने में अवरोधक सिद्ध हो सकती हैं, उसी प्रकार भाषागत विभिन्नता से भी उनके पारस्परिक संबंधों में निर्बांधता नहीं रह पाती। आधुनिक विज्ञान युग में यातायात एवं संचार के साधनों की प्रगति से भौगोलिक बाधाएँ अब पहले की तरह बाधित नहीं करतीं। इसी प्रकार यदि राष्ट्र की एक संपर्क भाषा का विकास हो जाए, तो पारस्परिक संबंधों के गतिरोध बहुत सीमा तक समाप्त हो सकते हैं।
मानव-समुदाय को एक जीवित-जाग्रत एवं जीवंत शरीर की संज्ञा दी जा सकती है और उसका अपना एक निश्चित व्यक्तित्व होता है। भाषा अभिव्यक्ति के माध्यम से इस व्यक्तित्व को साकार करती है, उसके अमूर्त मानसिक, वैचारिक स्वरूप को मूर्त एवं बिंबात्मक रूप प्रदान करती है। मनुष्यों के विविध समुदाय हैं, उनकी विविध भावनाएँ हैं, विचारधाराएँ हैं, संकल्प एवं आदर्श हैं, उन्हें भाषा ही अभिव्यक्त करने में सक्षम होती है। साहित्य, शास्त्र, गीत-संगीत आदि में मानव-समुदाय अपने आदर्शों, संकल्पनाओं, अवधारणाओं एवं विशिष्टताओं को वाणी देता है, पर क्या भाषा के अभाव में काव्य, साहित्य, संगीत आदि का अस्तित्व संभव है?
वस्तुतः ज्ञानरांशि एवं भावराशि का अपार संचित कोश. जिसे साहित्य का अभिधान दिया जाता है, शब्द-रूप ही तो है। अत: इस संबंध में वैमत्य की किंचित गुंजाइश नहीं है कि भाषा ही एक ऐसा साधन है, जिससे मनुष्य एक-दूसरे के निकट आ सकते हैं, उनमें परस्पर घनिष्ठता स्थापित हो सकती है। यही कारण है कि एक भाषा बोलने एवं समझने वाले लोग परस्पर एकानुभूति रखते हैं, उनके विचारों में ऐक्य रहता है। अतः राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए भाषा तत्व परम आवश्यक है।
प्रश्न :
(क) मानव के लिए भाषा का महत्व स्पष्ट कीजिए।
(ख) राष्ट्रहित के लिए भाषा तत्व क्यों आवश्यक है?
(ग) भाषा की भिन्नता, एकता के लिए किस प्रकार बाधक होती है?
(घ) राष्ट्र की एक संपर्क भाषा होने से क्या लाभ हो सकता है?
(ङ) भाषा के बिना किनका अस्तित्व संभव नहीं है?
(च) भाषा परस्पर घनिष्ठता बढ़ाती है, कैसे?
(छ) भाषा राष्ट्रीय एकता बढ़ाने में किस तरह सहायक है?
(ज) ‘राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए भाषा परम आवश्यक तत्व है।’ मिश्रवाक्य में बदलिए।
(झ) उपसर्ग, प्रत्यय तथा मूल शब्द पृथक करके लिखिए- बैचारिक, संकल्पना
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) मानव अपने मन के भाव-विचार, संवेदनाएँ, भावनाएँ आदि व्यक्त करने के लिए भाषा का इस्तेमाल करता है। भाषा के बिना वह गूँगा हो जाएगा। इस तरह उसके लिए भाषा की विशेष महत्ता है।
(ख) राष्ट्रहित के लिए भाषा तत्व इसलिए आवश्यक है, क्योंकि भाषा के माध्यम से लोगों के बीच गतिरोध समाप्त हो जाता है।
(ग) भाषा की भिन्नता एकता के लिए उसी प्रकार बाधक सिद्ध होती है जिस प्रकार किसी देश की भौगोलिक विविधताएँ, जैसे उसके पर्वत, नदी, सागर, झीलें आदि लोगों के मिलन में बाधक बनते हैं।
(घ) राष्ट्र की एक संपर्क भाषा होने से यह लाभ हो सकता है कि मनुष्य के पारस्परिक संबंधों के मध्य जो अवरोध हैं, वे काफी सीमा तक समाप्त हो सकते हैं।
(ङ) भाषा के बिना साहित्य, शास्त्रगीत, संगीत आदि का अस्तित्व संभव नहीं है।
(च) भाषा एक ऐसा साधन है, जिससे मनुष्य एक-दूसरे के करीब आ जाता है और उनमें परस्पर घनिष्ठता बढ़ती है। इस प्रकार भाषा परस्पर घनिष्ठता बढ़ाती है।
(छ) एक तरह की भाषा बोलने वाले एवं उसे समझने वाले लोग आपस जैसी अनुभूति रखते हैं तथा उनके विचारों में समानता रहती है। इससे राष्ट्रीय एकता बढ़ती है।
(ज) मिश्र वाक्य-भाषा वह तत्व है जो राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए परम आवश्यक है।
(झ)
(ब) शीर्षक-‘राष्ट्रीयता के विकास में भाषा का योगदान’ अथवा ‘राष्ट्रीयता और भाषा’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
भाषा के सहारे मानव-समाज क्या अभिव्यक्त करता है ?
(क) भावनाएँ
(ख) विचार
(ग) संबेदनाएँ
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
भाषा को ‘बहता नीर’ कहकर किसने उसका गौरव बढ़ाया है?
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) कबीरदास
(घ) मलूकदास
उत्तर :
(ग) कबीरदास
प्रश्न 3.
भाषा तत्व किसके लिए बहुत ही ज़रूरी है?
(क) मानव हित
(ख) राष्ट्र हित
(ग) समाज हित
(घ) साहित्य हित
उत्तर :
(ख) राष्ट्र हित
प्रश्न 4.
किसी राष्ट्र के निवासियों के लिए भौगोलिक बाधाएँ मिलने-जुलने में
(क) सहायक सिद्ध होती हैं।
(ख) अपनापन भरती हैं।
(ग) प्राकृतिक तत्वों का महत्व बताती हैं।
(घ) बाधा उत्पन्न करती हैं।
उत्तर :
(घ) बाधा उत्पन्न करती हैं।
प्रश्न 5.
पारस्परिक संबंधों में गतिरोध कब समाप्त हो सकता है?
(क) यातायात के साधनों में प्रर्गति होने पर
(ख) संचार के साधनों में प्रगति हो जाने पर
(ग) राष्ट्र की एक संपर्क भाषा हो जाने पर
(घ) राष्ट्र से जाति-धर्म समाप्त हो जाने पर
उत्तर :
(ग) राष्ट्र की एक संपर्क भाषा हो जाने पर
प्रश्न 6.
भाषा के बिना किसका अस्तित्व संभव नहीं है?
(क) काव्य
(ख) संगीत
(ग) साहित्य
(घ) क, ख, ग, तीनों का
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों का
प्रश्न 7.
ज्ञान राशि एवं भाव राशि के संचित कोश को किस नाम से जाना जाता है?
(क) वेद-पुराण
(ख) साहित्य
(ग) धार्मिक ग्रंथ
(घ) कविता कोश
उत्तर :
(ख) साहित्य
प्रश्न 8.
‘भाषा के माध्यम से लोगों में घनिष्ठता स्थापित हो सकती है।’-का मिश्र वाक्य है-
(क) भाषा घनिष्ठता स्थापित करती है।
(ख) भाषा एक माध्यम है इसलिए घनिष्ठता स्थापित करती है।
(ग) भाषा का माध्यम घनिष्ठता स्थापित कर सकता है।
(घ) भाषा ही वह माध्यम है जो लोगों में घनिष्ठता स्थापित कर सकता है।
उत्तर :
(घ) भाषा ही वह माध्यम है जो लोगों में घनिष्ठता स्थापित कर सकता है।
प्रश्न 9.
‘अत्यावश्यक’ का संधि-विच्छेद है-
(क) अत्य + आवश्यक
(ख) अति + आवश्यक
(ग) अत्या + वश्यक
(घ) आति + अवश्यक
उत्तर :
(ख) अति + आवश्यक
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए-
(क) राष्ट्र की भाषा
(ग) राष्ट्र का विकास करती भाषा
(ख) एक राष्ट्र एक भाषा
(घ) राष्ट्रीयता और भाषा तत्व
उत्तर :
(घ) राष्ट्रीयता और भाषा तत्व
8. मानव-जीवन में आत्म-सम्मान का अत्यधिक महत्व है। आत्म-सम्मान में अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक सशक्त एवं प्रतिष्ठित बनाने की भावना निहित होती है। इससे शक्ति, साहस, उत्साह आदि गुणों का जन्म होता है, जो जीवन की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आत्म-सम्मान की भावना से पूर्ण व्यक्ति संघर्षों की परवाह नहीं करता और हर विषम परिस्थिति से टक्कर लेता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में पराजय का मुँह नहीं देखते तथा निरंतर यश की प्राप्ति करते हैं। आत्म-सम्मानी व्यक्ति धर्म, सत्य, न्याय और नीति के पथ का अनुगमन करता है। उसके जीवन में ही सच्चे सुख और शांति का निवास होता है।
परोपकार, जनसेवा जैसे कार्यों में उसकी रुचि होती है। लोकप्रियता और सामाजिक प्रतिष्ठा उसे सहज ही प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति में अपने राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा होती है तथा मातृभूमि की उन्नति के लिए वह अपने प्राणों को उत्सर्ग करने में भी सुख की अनुभूति करता है। चूँक आत्म-सम्मानी व्यक्ति अपनी अथवा दूसरों की आत्मा का हनन करना पसंद नहीं करता, इसलिए वह ईष्य्या-द्वेष जैसी भावनाओं से मुक्त होकर मानव-मात्र को अपने परिवार का अंग मानता है। उसके हृय में स्वार्थ, लोभ और अहंकार का भाव नहीं होता। निश्छल हृदय होने के कारण वह आसुरी प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त होता है। उसमें ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति एवं विश्वास होता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। जीवन को सरस और मधुर बनाने के लिए आत्म-सम्मान रसायन-तुल्य है।
आत्म-सम्मान प्रत्येक जाति तथा राष्ट्र की प्रेरणा का दैवी स्रोत है। मानव-मात्र के मौलिक गुणों की यह विभूति है। प्रत्येक व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य है कि आत्म-सम्मान की सुरक्षा के लिए सतत प्रस्तुत रहे। इसे खोकर हम सर्वस्व खो देंगे। हमारी संस्कृति, हमारा धर्म, यहाँ तक कि हमारा अस्तित्व ही इसके अभाव में लुप्त हो जाएगा। परतंत्रता के युग में हमारे सार्वजनिक जीवन में आत्म-सम्मान को निरतर ठेस लगती रही है। चूँक विदेशी प्रभुसत्ता ने उसका दमन करने में कोई कसर उठा नहीं रखी, इसलिए भारतीयों ने राष्ट्रपिता के नेतृत्व में आत्म-सम्मान की प्रतिष्ठा के लिए स्वतंत्रता का संग्राम किया तथा उसमें सफलता प्राप्त की। आज प्रत्येक भारतीय को उच्च नैतिक मूल्यों, राष्ट्रीय एकता तथा आत्म-सम्मान की रक्षा करनी है।
(क) आत्म-सम्मान से मानव जीवन में किन गुणों का उदय होता है?
(ख) मानव जीवन में आत्म-सम्मान क्यों आवश्यक है?
(ग) आत्म-सम्मान रखने वाले व्यक्ति की दो विशेषताएँ लिखिए।
(घ) हृदय निश्छल होने से व्यक्ति को क्या-क्या लाभ होते हैं?
(ङ) व्यक्ति को आत्म-सम्मान क्यों बचाए रखना चाहिए?
(च) व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य किसे बताया गया है और क्यों?
(छ) भारतीयों ने किसके नेतृत्व में किस उद्देश्य के लिए संग्राम किया?
(ज) मिश्रवाक्य में बदलिए – इसे खोकर हम सर्वस्व खो देंगे।
(झ) विलोम लिखिए – उन्नति, लुप्त
(अ) गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) आत्म-सम्मान से मानव जीवन में शक्ति, साहस, सच्चाई, उत्साह जैसे अनेक मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं।
(ख) मानव जीवन में आत्म-सम्मान इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे उत्पन्न मानवीय गुण मानव जीवन की उन्नति का मार्ग मजबूत करते हैं, जिससे व्यक्ति हर परिस्थिति को टक्कर देता है।
(ग) आत्मसम्मानी व्यक्ति के दो गुण हैं-
(i) वह सदैव धर्म, सत्य, न्याय एवं नीति के मार्ग पर चलता है।
(ii) ऐसा व्यक्ति जनसेवी, परोपकारी तथा शांतिप्रिय होता है।
(घ) जो व्यक्ति निश्छल होते हैं, उन्हें आसुरी प्रवृत्तियाँ छू नहीं पाती हैं तथा वे स्वार्थ लोभ, अहंकार जैसे बुरी भावनाओं से दूर रहते हैं।
(ङ) व्यक्ति को आत्म-सम्मान इसलिए बचाए रखना चाहिए क्योंकि जिस व्यक्ति का आत्म-सम्मान खो जाता है, वह अपने राष्ट्र एवं जाति के प्रति प्रेरणा का दैवीय स्रोत खो देता है।
(च) अपने आत्म-सम्मान की सुरक्षा के लिए सतत प्रस्तुत रहने को व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य बताया गया है क्योंकि आत्म-सम्मान खोने पर व्यक्ति का सर्वस्व खो जाता है।
(छ) भारतीयों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में अपने खोए आत्म-सम्मान को पाने के लिए स्वतंत्रता का संग्राम किया।
(ज) मिश्रवाक्य – यदि हम उसे खो देंगे तो सर्वस्व खो देंगे।
(झ) उन्नति – अवनति लुप्त – प्रकट
(अ) शीर्षक- ‘जीवन में आत्म-सम्मान का महत्व’ या ‘आत्म-सम्मान – एक उच्च मानवीय गुण’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
आत्मसम्मान से किस गुण का जन्म होता है?
(क) उत्साह
(ख) साहस
(ग) शक्ति
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 2.
जिन व्यक्तियों में आत्मसम्मान होता है, वह किसकी परवाह नहीं करते हैं?
(क) शत्रुओं की
(ख) बाधाओं की
(ग) संघर्षों की
(घ) उन्नति की
उत्तर :
(ग) संघर्षों की
प्रश्न 3.
जो व्यक्ति आत्मसम्मान की भावना से परिपूर्ण होते हैं वे …………..
(क) विषम परिस्थितियों से टक्कर लेते हैं।
(ख) निरंतर यश प्राप्त करते हैं।
(ग) हर जगह विजय प्राप्त करते हैं।
(घ) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
प्रश्न 4.
आत्मसम्मानी व्यक्ति किस पथ पर चलता है?
(क) नीति
(ख) न्याय और नीति
(ग) धर्म और सत्य
(घ) नीति, धर्म, सत्य और न्याय
उत्तर :
(घ) नीति, धर्म, सत्य और न्याय
प्रश्न 5.
जो व्यक्ति आत्मसम्मान रखते हैं, उन्हें क्या सहज प्राप्त हो जाता है?
(क) परोपकार और जनसेवा
(ख) सत्य और न्याय
(ग) लोकप्रियता और सामाजिक प्रतिष्ठा
(घ) धर्म और नीति
उत्तर :
(ग) लोकप्रियता और सामाजिक प्रतिष्ठा
प्रश्न 6.
जीवन को सरस और मधुर बनाने में आत्म-सम्मान किसके समान है?
(क) दवाइयों के समान
(ख) रसायन के समान
(ग) भक्ति एवं विश्वास के समान
(घ) निश्छल हृदय के समान
उत्तर :
(ख) रसायन के समान
प्रश्न 7.
आत्मसम्मान खो जाने पर क्या समाप्त हो जाएगा?
(क) हमारी संस्कृति
(ख) हमारा अस्तित्व
(ग) हमारा धर्म
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 8.
प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए सतत प्रस्तुत रहे। वाक्य के रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) सर्वनाम उपवाक्य
उत्तर :
(क) संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘राष्ट्रपिता’ का विग्रह और समास है ……………..
(क) राष्ट्र के समान पिता – कर्मधारय समास
(ख) राष्ट्र के लिए पिता – तत्पुरुष समास
(ग) राष्ट्र का पिता – तत्पुरुष समास
(घ) राष्ट्र और पिता – द्वंद्व समास
उत्तर :
(ग) राष्ट्र का पिता – तत्पुरुष समास
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है ………….
(क) सशक्त व्यक्तित्व
(ख) आत्मसम्मान का महत्व
(ग) आत्मसम्मान और मातृभूमि
(घ) आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा
उत्तर :
(ख) आत्मसम्मान का महत्व
9. आज हम इस असमंजस में पड़े हैं और यह निश्चय नहीं कर पाए हैं कि हम किस ओर चलेंगे और हमारा ध्येय क्या है? स्वभावत: ऐसी अवस्था में हमारे पैर लड़खड़ाते हैं। हमारे विचार में भारत के लिए और सारे संसार के लिए सुख और शांति का एक ही रास्ता है और वह है, अहिंसा और आत्मवाद का। अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके, पर उसके सिद्धांतों को तो हमें स्वीकार कर ही लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इंतज़ार करना चाहिए। यदि हम सिद्धांत ही न मानेंगे, तो उसके प्रवर्तन की आशा कैसे की जा सकती है। जहाँ तक मैंने महात्मा गांधी जी के सिद्धांत को समझा है, वह इसी आत्मवाद और अहिंसा के, जिसे वे सत्य भी कहा करते थे, मानने वाले और प्रवर्तक थे। उसे ही कुछ लोग आज गांधीवाद का नाम भी दे रहे हैं।
यद्यपि महात्मा गांधी ने बार-बार यह कहा था- वे किसी नए सिद्धांत या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं और उन्होंने अपने जीवन में प्राचीन सिद्धांतों को अमल कर दिखाने का यत्न किया।” विचार कर देखा जाए, तो जितने सिद्धांत अन्य देशों, अन्य-अन्य कालों और स्थितियों में भिन्न-भिन्न नामों और धर्मों से प्रचलित हुए हैं, सभी अंतिम और मार्मिक अन्वेषण के बाद इसी तत्व अथवा सिद्धांत में समाविष्ट पाए जाते हैं। केवल भौतिकवाद इनसे अलग है। हमें असमंजस की स्थिति से बाहर निकलकर निश्चय कर लेना है कि हम अहिंसावाद, आत्मवाद और गांधीवाद के अनुयायी और समर्थक हैं, न कि भौतिकवाद के। प्रेय और श्रेय में से हमें श्रेय को चुनना है। श्रेय ही हितकर है, भले ही वह कठिन और श्रमसाध्य हो। इसके विपरीत प्रेय आरंभ में भले ही आकर्षक दिखाई दे, उसका अंतिम परिणाम अहितकर होता है।
प्रश्न :
(क) दुविधाग्रस्त मनुष्य क्या निश्चित नहीं कर पाता है?
(ख) अहिंसा और आत्मवाद् के बारे में लेखक का क्या विचार है?
(ग) भौतिकवाद से क्या अभिप्राय है?
(घ) लेखक के विचार से भौतिकवाद हमारे लिए उचित क्यों नहीं है?
(ङ) गांधी जी अपनी किस विशेषता के लिए जाने जाते हैं?
(च) लेखक किस वाद का समर्थन करता है और क्यों?
(छ) प्रेय को समाज के लिए अच्छा क्यों नहीं कहा जा सकता है?
(ज) उपसर्ग, प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिएदुर्बलता, अहितकर
(झ) संयुक्त वाक्य का एक उदाहरण गद्यांश से लिखिए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) दुविधाग्रस्त मनुष्य यह निश्चित नहीं कर पाता है कि उसे किस ओर जाना है और उसका ध्येय क्या है। इससे वह कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाता है।
(ख) अहिंसा और आत्मवाद के बारे में लेखक का विचार यह है कि भारत और सारे संसार की सुख-शांति का एकमात्र रास्ता अहिंसा और आत्मवाद है, जिसके सिद्धांतों को हमें स्वीकार कर लेना चाहिए।
(ग) भौतिकवाद से अभिप्राय ऐसे सिद्धांत से है, जिससे मनुष्य अधिकाधिक सांसारिक सुख-साधन पा लेना चाहता है और इनका उपभोग करने के लिए निरतर प्रयासरत रहता है।
(घ) लेखक के विचार से भौतिकवाद हमारे लिए इसलिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि भौतिकवाद मनुष्य को असमंजस और दुविधा की स्थिति में डालता है जिससे मनुष्य गांधीवाद और भौतिकवाद, किसी एक को चुनने में स्वयं को असमर्थ पाता है।
(ङ) गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का जो मार्ग चुना, वह केवल सैद्धांतिक नहीं था, बल्कि वे इसे अपने व्यवहार में लाया करते थे।
(च) लेखक गांधीवाद का समर्थन करता है क्योंकि उसके मूल में सत्य, अहिंसा और आत्मवाद है, जिसका परिणाम हमेशा हितकारी होता है।
(छ) प्रेय को समाज के लिए अच्छा इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह शुरू में आकर्षणयुक्त लगता है, पर इसका अंतिम परिणाम अहितकारी होता है।
(ज)
(झ) संयुक्त वाक्य- हम किसी ओर चलेंगे और हमारा ध्येय क्या है?
(अ) शीर्षक- ‘गांधीवाद अथवा भौतिकवाद’, या ‘ श्रेय अथवा प्रेय’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
गद्यांश के अनुसार पैर लड़खड़ाने का कारण क्या है?
(क) असमंजस की स्थिति में होना
(ख) ध्येय अनिश्चित होना
(ग) पथ की अनिश्चितता
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 2.
हमारे द्वारा अहिंसा और आत्मवाद ग्रहण न कर पाने का कारण है
(क) हमारा पूर्वाग्रह
(ख) हमारा हठ
(ग) हमारी अपनी दुर्बलता
(घ) हमारी अनिश्चितता की स्थिति।
उत्तर :
(ग) हमारी अपनी दुर्बलता
प्रश्न 3.
अहिंसा और आत्मवाद के सिद्धांत को स्वीकार कर लेने के बाद क्या करना चाहिए?
(क) व्यवहार में लाना
(ख) दूसरों को बताना
(ग) परिवर्तन का इंतज़ार करना
(घ) प्रवर्तन का इंतज़ार करना
उत्तर :
(घ) प्रवर्तन का इंतज़ार करना
प्रश्न 4.
गांधीजी इस सिद्धांत को किस अन्य नाम से कहा करते थे?
(क) अहिंसा
(ख) आत्मवाद
(ग) सत्य
(घ) प्रवर्तन
उत्तर :
(ग) सत्य
प्रश्न 5.
सांसारिक सुख-साधनों को पाना और उनका प्रयोग करना क्या कहलाता है?
(क) अहिंसावाद
(ख) आत्मवाद्
(ग) उपभोक्तावाद
(घ) भौतिकवाद्
उत्तर :
(घ) भौतिकवाद्
प्रश्न 6.
हमें असमंजसता की स्थिति त्यागकर भी किसका अनुयायी और समर्थक नहीं बनना चाहिए?
(क) अहिंसावाद
(ख) भौतिकवाद
(ग) गांधीवाद
(घ) आत्मवाद
उत्तर :
(ख) भौतिकवाद
प्रश्न 7.
श्रेय की विशेषता है कि वह
(क) हितकर होता है
(ख) कठिन होता है
(ग) श्रमसाध्य होता है
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 8.
‘अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके।’ वाक्य का मिश्र वाक्य में रूपांतरण है-
(क) अपनी दुर्बलता थी और हम उसे ग्रहण न कर सके।
(ख) अपनी दुर्बलता थी इसलिए हम उसे ग्रहण न कर सके।
(ग) दुर्बल होने के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके।
(घ) यह अपनी दुर्बलता ही थी कि हम उसे ग्रहण न कर सके।
उत्तर :
(घ) यह अपनी दुर्बलता ही थी कि हम उसे ग्रहण न कर सके।
प्रश्न 9.
यद्यपि = ………. + …………..
(क) यद्य + आपि
(ख) यद्य + अपि
(ग) यदि + अपि
(घ) यद् + यपि
उत्तर :
(ग) यदि + अपि
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है
(क) हमारी असमंजसता
(ख) अहिंसा और आत्मवाद
(ग) गांधीवाद या भौतिकवाद
(घ) प्रेय ही श्रेष्ठ
उत्तर :
(ग) गांधीवाद या भौतिकवाद
10. संस्कृति ऐसी चीज़ नहीं, जिसकी रचना दस-बीस या पचास-सौ वर्षों में की जा सकती हो। हम जो कुछ भी करते हैं, उसमें हमारी संस्कृति की झलक होती है; यहाँ तक कि हमारे उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने और रोने-हँसने से भी हमारी संस्कृति की पहचान होती है, यद्यपि हमारा कोई भी एक काम हमारी संस्कृति का पर्याय नहीं बन सकता। असल में, संस्कृति जीने का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं। इसलिए, जिस समाज में हम पैदा हुए हैं अथवा जिस समाज से मिलकर हम जी रहे हैं, उसकी संस्कृति हमारी संस्कृति है; यद्यपि अपने जीवन में हम जो संस्कार जमा कर रहे हैं, वे भी हमारी संस्कृति के अंग बन जाते हैं और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी संतानों के लिए छोड़ जाते हैं।
इसलिए, संस्कृति वह चीज़ मानी जाती है, जो हमारे सारे जीवन को व्यापे हुए है तथा जिसकी रचना और विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है। यही नहीं, बल्कि संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। अपने यहाँ एक साधारण कहावत है कि जिसका जैसा संस्कार है, उसका वैसा ही पुनर्जन्म भी होता है। जब हम किसी बालक या बालिका को बहुत तेज़ पाते हैं, तब अचानक कह देते हैं कि वह पूर्वजन्म का संस्कार है। संस्कार या संस्कृति, असल में, शरीर का नहीं, आत्मा का गुण है और जबकि सभ्यता की सामग्रियों से हमारा संबंध शरीर के साथ ही छूट जाता है, तब भी हमारी संस्कृति का प्रभाव हमारी आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।
प्रश्न :
(क) किसी समाज की संस्कृति की झलक कहाँ देखी जा सकती है?
(ख) हमारा कोई एक काम संस्कृति का पर्याय क्यों नहीं बन सकता है?
(ग) किसी व्यक्ति का संबंध किस समाज से हो जाता है?
(घ) संस्कृति किसी व्यक्ति के सारे जीवन को व्यापे हुए है, कैसे?
(ङ) सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
(च) बालक के ‘पुनर्जन्म का संस्कार’ वाला उदाहरण किस संद्र्भ में दिया गया है?
(छ) संस्कृति को संस्कार किस तरह समृद्ध बनाते हैं?
(ज) उपसर्ग और प्रत्यय अलग कर मूल शब्द भी लिखिए –
संस्कार, सभ्यता
(ङ) संस्कारों से हमारी संस्कृति समृद्ध होती है।- मिश्र वाक्य में बदलिए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
उत्तर :
(क) किसी समाज के लोगों द्वारा जो काम किए जाते हैं, उनके आचार-विचार, रहन-सहन के तरीके, हँसने-रोने घूमने-फिरने आदि के ढंग में उस समाज की संस्कृति की झलक देखी जा सकती है।
(ख) हमारा कोई एक काम हमारी संस्कृति का पर्याय इसलिए नहीं बन सकता है क्योकि संस्कृति जीने का एक ढंग है, जो सद्यों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है।
(ग) किसी व्यक्ति का संबंध उस समाज से हो जाता है जिसमें वह जन्म लेता है या जिस समाज से मिलकर जीता है, उसी की संस्कृति उस व्यक्ति की अपनी संस्कृति बन जाती है।
(घ) किसी व्यक्ति के संस्कार उसकी संस्कृति के अंग बन जाते हैं और मृत्यु के उपरांत व्यक्ति इसी संस्कृति को विरासत के रूप में छोड़ जाता है। इस तरह संस्कृति किसी व्यक्ति के सारे जीवन को व्यापे हुए है।
(ङ) सभ्यता का संबंध मनुष्य से इसी जीवन तथा भौतिक जगत तक होता है जबकि संस्कृति का संबंध पारलौकिक होता है, जो जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।
(च) संस्कृति किसी व्यक्ति का पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। इससे हमारा संबंध इसी जन्म भर तक नहीं होता है। इसी संदर्भ में बालक के ‘पुनर्जन्म का संस्कार’ वाला उदाहरण दिया गया है।
(छ) कोई व्यक्ति जीवन भर जो संस्कार जमा करता है, वे उसकी संस्कृति के अंग बन जाते हैं। इस प्रकार संस्कार संस्कृति को समृद्ध करते हैं।
(ज)
(झ) मिश्र वाक्य- ये संस्कार ही हैं जो हमारी संस्कृति को समृद्ध करते हैं।
(ब) संस्कृति और सभ्यता।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
हम जो कुछ करते हैं उसमें हमें किसकी झलक मिल सकती है?
(क) सभ्यता की
(ख) संस्कृति की
(ग) सफलता की
(घ) सोच-विचार की
उत्तर :
(ख) संस्कृति की
प्रश्न 2.
अपनी संस्कृति की पहचान होती है
(क) हमारे उठने-बैठने के ढंग से
(ख) हमारी वेशभूषा से
(ग) हमारे आवागमन के ढंग से
(घ) क, ख, ग तीनों से
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों से
प्रश्न 3.
व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति अपने-आप क्यों अपना लेता है?
(क) वही संस्कृति उस पर थोपी जाती है।
(ख) वही संस्कृति उसे अच्छी लगती है।
(ग) संस्कृति रूपी जीने का तरीका समाज में सदियों से छाया रहता है।
(घ) अन्य संस्कृति अपनाने का विकल्प नहीं होता।
उत्तर :
(ग) संस्कृति रूपी जीने का तरीका समाज में सदियों से छाया रहता है।
प्रश्न 4.
मरने के बाद व्यक्ति अपनी संस्कृति को विरासत के रूप में किसके लिए छोड़ जाता है?
(क) समाज के लिए
(ख) पूर्वजों के लिए
(ग) बच्चों के लिए
(घ) बड़ों के लिए
उत्तर :
(ग) बच्चों के लिए
प्रश्न 5.
संस्कृति की रचना और विकास में अनेक …………… का योगदान होता है।
(क) महीनों
(ख) वर्षों
(ग) युगों
(घ) सदियों
उत्तर :
(घ) सदियों
प्रश्न 6.
कहा जाता है कि व्यक्ति का पुनर्जन्म उसके ………….. पर आधारित होता है।
(क) कर्म
(ख) धर्म
(ग) संस्कारों
(घ) उपकारों
उत्तर :
(ग) संस्कारों
प्रश्न 7.
संस्कृति शरीर का नहीं बल्कि हमारी ……………… का गुण है।
(क) सोच-विचार
(ख) कार्य-व्यवहार
(ग) आत्मा
(घ) मानसिकता
उत्तर :
(ग) आत्मा
प्रश्न 8.
संस्कृति वह चीज़ है जो हमारे जीवन में व्यापे हुए है। वाक्य के रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद बताइए।
(क) संंजा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ख) विशेषण उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘पुनर्जन्म’ में प्रयुक्त उपसर्ग है ………………
(क) पुन
(ख) पुन:
(ग) पुनर
(घ) पुनर्
उत्तर :
(घ) पुनर्
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपर्युक्त शीर्षक है-
(क) व्यक्ति की संस्कृति
(ख) संस्कृति का विकास
(ग) संस्कृति और सभ्यता
(घ) संस्कृति का ज्ञान
उत्तर :
(ग) संस्कृति और सभ्यता
11. विज्ञापन कला जिस तेज़ी से उन्नति कर रही है, उससे मुझे भविष्य के लिए और भी अंदेशा है। लगता है, ऐसा युग आने वाला है, जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य इनका केवल विज्ञापन कला के लिए ही उपयोग रह जाएगा। वैसे तो आज भी इस कला के लिए इनका खासा उपयोग होता है। बहुत-सी शिक्षण संस्थाएँ हैं, जो साप्रदायिक संस्थाओं का विज्ञापन-मात्र हैं। अपनी पीढ़ी के कई लेखकों की कृतियाँ लाला छगनलाल, मगनलाल या इस तरह के नाम के किसी और लाल की स्मारक-निधि से प्रकाशित होकर लाला जी की दिवंगत आत्मा के प्रति स्मारक होने का फ़र्ज अदा कर रही हैं।
मगर आने वाले युग में यह कला दो कदम आगे बढ़ जाएगी। विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय के दीक्षांत महोत्सव पर जो डिग्रियाँ दी जाएँगी, उनके निचले कोने में छपा रहेगा – ‘आपकी शिक्षा के उपयोग का एक ही मार्ग है, आज ही आयात-निर्यात का धंधा प्रारंभ कीजिए। मुफ्त सूचीपत्र के लिए लिखिए।’ हर नए आविष्कारक का मुसकराता हुआ चेहरा टेलीविज़न पर जाकर कुछ इस तरह निवेदन करेगा – “मुझे यह कहते हुए हार्दिक प्रसन्नता है कि मेरे प्रयत्न की सफलता का सारा श्रेय रबड़ के टायर बनाने वाली कंपनी को है, क्योंक उन्हीं के प्रोत्साहन और प्रेरणा से मैंने इस दिशा में कदम बढ़ाया था …..” विष्णु के मंदिर खड़े होंगे, जिनमें संगमरमर की सुंदर प्रतिमा के नीचे पट्टी लगी होगी- ‘याद रखिए, इस मूर्ति और इस भवन के निर्माण का श्रेय लाल हाथी के निशान वाले निर्माताओं को है।
वास्तुकला संबंधी अपनी सभी आवश्यकताओं के लिए लाल हाथी का निशान कभी मत भूलिए।’ और ऐसे-ऐसे उपन्यास हाथ में आया करेंगे, जिनकी सुंदर चमड़े की जिल्द पर एक ओर बारीक अक्षरों में लिखा होगा- ‘साहित्य में अभिरुचि रखने वालों को इक्का मार्का साबुन वालों की एक और तुच्छ भेंट” और बात बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक पहुँच जाएगी कि जब एक दूल्हा बड़े अरमान से दुल्हन ब्याहकर घर आएगा और घूँघट हटाकर उसके रूप की प्रसन्नता में पहला वाक्य कहेगा, तो दुल्हन मधुर भाव से आँख उठाकर हदय का सारा दुलार शब्दों में उड़ेलती हुई कहेगी – “रोज़ सुबह उठकर नौ सौ इक्यावन नंबर के साबुन से नहाती हूँ।”
(क) लेखक की चिंता का मुख्य कारण क्या है?
(ख) विज्ञापन के संबंध में लेखक आने वाले समय को अच्छा क्यों नही मानता है?
(ग) शिक्षण संस्थाएँ अपने उद्देश्य से किस तरह भटक गई हैं?
(घ) कुछ पुस्तकें किनकी स्मारक बनकर रह गई हैं?
(ङ) मंदिर की प्रतिमाएँ विज्ञापन का साधन बन गई हैं, कैसे?
(च) टेलीविज़न पर मुस्कराते हुए आविष्कार द्वारा किए जाने वाले निवेदन का क्या उद्देश्य होता है?
(छ) गद्यांश का मूलभाव एक-दो पंक्तियों में स्पष्ट कीजिए।
(ज) विलोम शब्द लिखिए- मधुर, उन्नति।
(झ) मिश्र वाक्य बनाइए- आनेवाले युग में यह दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) लेखक की चिंता का मुख्य कारण है – विज्ञापन कला का तेज़ी से विकास और विभिन्न जगहों पर बढ़ता विज्ञापन का प्रयोग।
(ख) विज्ञापन के संबंध में लेखक आने वाले समय को इसलिए अच्छा नहीं मानता है क्योंक तब शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, साहित्य आदि का उपयोग केवल विज्ञापन के लिए ही रह जाएगा।
(ग) आज अनेक शिक्षण संस्थाएँ सांप्रदायिक संस्थाओं का विज्ञापन करती नज़र आती हैं। इस तरह वे अपन मूल उद्देश्य से भटक गई हैं।
(घ) कुछ पुस्तकें उन लालाओं की दिवंगत आत्मा की स्मारक बनकर रह गई हैं, जिनकी स्मारक-निधि से उनका प्रकाशन किया गया है।
(ङ) मंदिर की प्रतिमाओं के नीचे सुंदर पट्टी लगी रहती है, जिनमें मूर्ति के निर्माण के लिए या मूर्ति खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराने वाले के नाम का उल्लेख होता है।
(च) टेलीविज़न पर आविष्कारक द्वारा मुस्कराते हुए निवेदन करने का प्रयोजन होता है- विज्ञापन जगत के उत्पादों का गुणगान करना।
(छ) गद्यांश का मूल भाव है कि मनुष्य के दैनिक जीवन में कदम-कदम पर विज्ञापन ने अपना प्रभाव बढ़ाया है। इससे मनुष्य का आचार-विचार एवं व्यवहार प्रभावित हो रहा है।
(ज) विलोम
मधुर × कहु
उन्नति × अवनति
(झ) मिश्र वाक्य – आनेवाला समय ऐसा होगा जब यह कला दो कद्म आगे बढ़ जाएगी।
(ञ) शीर्षक – ‘विज्ञापनों का बढ़ता प्रभाव’ अथवा ‘ विज्ञापन का युग’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
आने वाले समय में किसका उपयोग विज्ञापन के लिए ही रह जाएगा?
(क) साहित्य
(ख) शिक्षा
(ग) विज्ञान
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 2.
अनेक शिक्षण संस्थाएँ किसका विज्ञापन भर रह गई हैं?
(क) धार्मिक संस्थाएँ
(ख) आर्थिक संस्थाएँ
(ग) साप्रदायिक संस्थाएँ
(घ) साहित्यिक संस्थाएँ
उत्तर :
(ग) साप्रदायिक संस्थाएँ
प्रश्न 3.
अनेक संस्थाएँ उनका विज्ञापन कर रही हैं जिन
(क) ट्रस्टों से संचालित हो रही हैं।
(ख) ट्रस्टों के लिए वे कार्य कर रही हैं।
(ग) ट्रस्टों में उनकी आस्था है।
(घ) ट्रस्टों से उन्हें मदद मिलने वाली है।
उत्तर :
(क) ट्रस्टों से संचालित हो रही हैं।
प्रश्न 4.
मूर्ति के नीचे लिखे विज्ञापन का क्या उद्देश्य होता है ?
(क) मूर्ति के प्रति आस्था जगाना
(ख) मूर्ति की महत्ता बढ़ाना
(ग) दानदाता की वस्तुओं की बिक्री बढ़ाना
(घ) दानदाता की उदारता का गुणगान करना
उत्तर :
(ग) दानदाता की वस्तुओं की बिक्री बढ़ाना
प्रश्न 5.
विज्ञापन ने मनुष्य के ………… जी
(क) दैनिक
(ख) साप्ताहिक
(ग) पाक्षिक
(घ) मासिक
उत्तर :
(क) दैनिक
प्रश्न 6.
मनुष्य जो भी उत्पाद प्रयोग में लाता है उस पर किसका असर होता है?
(क) शिल्प कला
(ख) विज्ञापन कला
(ग) उपभोक्तावाद
(घ) क्रयशक्ति
उत्तर :
(ख) विज्ञापन कला
प्रश्न 7.
छात्रों को भविष्यभेदी जानेवाली भी विज्ञापन का साधन बनी नज़र आएँगी।
(क) पुस्तकें
(ख) अभ्यास पुस्तिकाएँ
(ग) छात्रवृत्तियाँ
(घ) डिग्रियाँ
उत्तर :
(घ) डिग्रियाँ
प्रश्न 8.
‘आने वाले युग में यह कला दो कदम आगे बढ़ जाएगी।’ का मिश्र वाक्य होगा-
(क) आने वाला युग आएगा और यह कला दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
(ख) युग आनेवाला है इसलिए यह कला दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
(ग) यही वह कला है जो आने वाले समय में दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
(घ) आगामी समय में यह कला दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
उत्तर :
(ग) यही वह कला है जो आने वाले समय में दो कदम आगे बढ़ जाएगी।
प्रश्न 9.
शिक्षण से बना विशेषण है
(क) शिक्षा
(ख) शिक्षक
(ग) शिक्षित
(घ) शैक्षणिक
उत्तर :
(घ) शैक्षणिक
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है –
(क) विज्ञापन-युग
(ख) विज्ञापन का महत्व
(ग) विज्ञापन- एक कला
(घ) विज्ञापन और महँगाई
उत्तर :
(क) विज्ञापन-युग
12. डॉ० ज्ञाकिर हुसैन भारतं के असली सपूत थे. इसका सबूत उन्होंने पदारूढ़ होने के एक दिन पहले तब दिया, जब वे दिल्ली में शृंगेरी के जगयुुरु शंकराचार्य से भेंट करने गए। जगदुरु के सामने पुष्प और फल रखते हुए उन्होंने कहा था, “आपका आशीवर्वाद चाहिए” और शंकराचार्य ने राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीव्वद दिया था। ऐसी ही एक और घटना याद आती है। उपराष्ट्रपति निवास के अहाते में एक दिन सवेरे घूम रहे थे, तो देखा कि माली के घर में कीर्तन हो रहा है। फिर क्या था, टहलते हुए उधर चले गए और सबके साथ एक कोने में दरी पर बैठ गए।
जब कुरसी लाने के लिए कहा गया, तो बोले, “भगवान के घर में सब बराबर होते हैं।” और दरी पर बैठे रहे। पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय में गुरु गोबिंद् सिंह संस्थान की नींव रखने को उनसे कहा गया तो बोले, “आपने मुझसे इस पवित्र संस्थान की नींव रखने को कहा है। इससे मुझे याद आता है कि अमृतसर में दरबार साहब की नींव डालने के लिए भी एक मुसलमान को ही बुलाया गया था।” और यह कहते-कहते उनका गला भर आया, आँखों से आँसू बहने लगे। बड़े-बड़े योद्धा, सिख सरदार, श्रोताओं की भी उस समय आँखें भर आई।
अपने साफ़-सुथरे सुरुचिपूर्ण खादी के कपड़ों और सुरुचि से सँवारी सफेद दाढ़ी के बीच चमकते हलके गुलाबी गौर वर्ण मुखमंडल से ज़ाकिर साहब प्रेम और आत्मीयता में गांधी जी के अंतिम उत्तराधिकारी नज़र आते थे। देश के आने वाले बच्चे बापू को भूल न जाएँ, इस संबंध में उन्होंने एक बार कहा था, “आप आज्ञा दें, तो इस अवसर से लाभ उठाकर गांधी जी के संबंध में आपसे कुछ कहूँ। उनको जानने और समझने से उनके काम को समझना और उसमें जी-जान से लगना ज़रा सरल हो सकता है।
यह इसलिए और भी करना चाहता हूँ कि अब दिन-पर-दिन उन लोगों की संख्या घट रही है, जिन्होंने गांधी जी को देखा था, उनके साथ काम किया था. उनके बताए हुए रास्ते पर चले थे। जब वे दुनिया से गए, तो ये लोग बच्चे थे। बहुत-से पैदा भी नहीं हुए थे। उनकी गिनती अब दिन-पर-दिन बढ़ती ही जाएगी। नया काल होगा, नए हाल होंगे, नए जंजाल होंगे, ऐसा न हो कि यह नई नस्ल गांधी जी और उनके कायों की तह में जो विचार थे, उनको भुला बैठे। ऐसा हुआ तो हमारी सबसे मूल्यवान पूँजी बरबाद हो जाएगी।”
प्रश्न :
(क) डॉ० ज़ाकिर हुसैन ने असली सपूत होने का परिचय कब दिया?
(ख) ज़ाकिर हुसैन ने किस प्रकार धार्मिक रूढ़ियों का खंडन किया?
(ग) उपराष्ट्रपति अपने माली के घर पर दरी पर क्यों बैठ गए?
(घ) गद्यांश में वर्णित उस घटना का उल्लेख कीजिए जिसकी आवश्यकता आज और भी बढ़ गई है।
(ङ) ज़ाकिर हुसैन गांधी जी के उत्तराधिकारी क्यों नज़र आते थे?
(च) जाकिर हुसैन लोगों से किसके बारे में बात करना चाहते थे और क्यों?
(छ) आज गांधी जी के विचारों को अपनाने और जीवंत रखने की आवश्यकता क्यों बढ़ गई है?
(ज) प्रत्यय और मूलशब्द पृथक करके लिखिए – आत्मीयता, अंतिम।
(झ) ‘शंकराचार्य ने राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।’ संयुक्त वाक्य में बदलिए।
(ञ) गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) डॉ० ज़ाकिर हुसैन ने असली सपूत होने का परिचय उस समय दिया जब वे पदारूढ़ होने से पहले दिल्ली में श्रृंगेरी के जगदुगुरु शंकराचार्य से भेंट करने गए।
(ख) ज़ाकिर हुसैन ने हिंदु धर्माचार्य और जगद्गुरु शंकराचार्य से आशीर्वाद लेने की अनूठी मिसाल प्रस्तुत की। इस तरह ज़ाकिर हुसैन ने धार्मिक रूढ़ियों का खंडन किया।
(ग) उपराष्ट्रपति अपने माली के घर दरी पर इसलिए बैठ गए क्योंकि उनका मानना था कि भगवान के घर में सब बराबर होते हैं।
(घ) पंजाबी विश्वविद्यालय में गुरुगोबिंद सिंह संस्थान की नींव और अमृतसर में दरबार साहब की नींव रखने का कार्य मुसलमानों द्वारा करवाया गया। दो संप्रदायों के बीच एकता बढ़ाने वाली घटनाओं की आवश्यकता और भी बढ़ गई है।
(ङ) ज़ाकिर हुसैन गांधी जी के उत्तराधिकारी इसलिए नजर आते थे क्योंक वे सबसे प्रेम और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करते थे तथा वे धार्मिक भेदभाव नहीं करते थे।
(च) डॉ० जाकिर हुसैन लोगों से गांधी जी के बारे में बातें करना चाहते थे ताकि लोग गांधी जी को, उनके काम को समझ सके और जी जान से काम में जुट सके।
(छ) आज गांधी जी के विचारों को अपनाने और जीवंत रखने की आवश्यकता इसलिए बढ़ गई है क्योंकि अब ऐसे लोग शायद ही बचे होंगे जिन्होंने गांधी जी के साथ काम किया हो या उन्हें देखा हो।
(ज)
(झ) संयुक्त वाक्य-शंकराचार्य ने राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया।
(ब) ‘भारत के सपूत-‘डॉ० ज़ाकिर हुसैन’ या ‘डॉ० ज़ाकिर हुसैन- एक आदर्श व्यक्ति’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
डॉ० ज़ाकिर हुसैन किस पद पर पदारूढ़ होने जा रहे थे?
(क) मुख्यमंत्री
(ख) प्रधानमंत्री
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) राष्ट्रपति
उत्तर :
(घ) राष्ट्रपति
प्रश्न 2.
श्रंगेरी के जगद्गुरु शंकराचार्य कां वह आश्रम कहाँ है जहाँ डॉ० ज्ञाकिर हुसैन आशीर्वाद लेने गए थे?
(क) श्रृंगेरी
(ख) अहमदाबाद
(ग) दिल्ली
(घ) वाराणसी
उत्तर :
(ग) दिल्ली
प्रश्न 3.
डॉ० ज़ाकिर हुसैन का दरी पर बैठना क्या प्रकट करता है?
(क) अन्य धर्मों के प्रति समान आस्था
(ख) माली की कमज़ोर आर्थिक स्थिति
(ग) राजनीतिक दूरदर्शिता
(घ) दरी को ऊँचे आसन जैसा समझना
उत्तर :
(क) अन्य धर्मों के प्रति समान आस्था
प्रश्न 4.
पंजाबी विश्वविद्यालय में गुरुगोबिंद सिंह संस्थान की नींव रखी गई। यह विश्वविद्यालय कहाँ है?
(क) अमृतसर
(ख) पटियाला
(ग) चंडीगढ़
(घ) लुधियाना
उत्तर :
(ख) पटियाला
प्रश्न 5.
अमृतसर में धार्मिक सद्भाव एवं सौहार्द्र का अनुकरणीय उदाहरण किस तरह प्रस्तुत किया गया?
(क) दरबार साहब में सिखों को एकत्र कर
(ख) दरबार साहब में गरीबों की मदद करके
(ग) दरबार साहब की नींव मुसलमान से रखवाकर
(घ) दरबार साहब में सभी धर्मों का सम्मेलन कराकर
उत्तर :
(ग) दरबार साहब की नींव मुसलमान से रखवाकर
प्रश्न 6.
डॉ० ज़ाकिर हुसैन किस कारण महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी लगते थे?
(क) खादी के कपड़ों के कारण
(ख) गुलाबी गौर वर्ण मुखमंडल के कारण
(ग) राजनीति की समझ के कारण
(घ) लोगों से प्रेम और आत्मीयता के कारण
उत्तर :
(घ) लोगों से प्रेम और आत्मीयता के कारण
प्रश्न 7.
अब दिन-प्रतिदिन किन लोगों की संख्या घट रही है?
(क) जिन्होंने गांधीजी को देखा था।
(ख) गांधी जी के साथ काम करने वालों की
(ग) उनके बताए हुए रास्ते पर चलने वालों की
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 8.
जब वे दुनिया से चले गए तो ये लोग बच्चे थे। रेखांकित उपवाक्य का नाम है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘सुरुचिपूर्ण’ में मूल शब्द है-
(क) सुरुचि
(ख) रुचिपूर्ण
(ग) रुचिर
(घ) रुचि
उत्तर :
(घ) रुचि
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) गांधी जी और हम
(ख) पंजाबी विश्वविद्यालय में डॉ० ज़ाकिर हुसैन
(ग) ज़ाकिर हुसैन और शंकराचार्य
(घ) डॉ० ज़ाकिर हुसैन एक महान व्यक्तित्व
उत्तर :
(घ) डॉ० ज़ाकिर हुसैन एक महान व्यक्तित्व
13. साहित्य की शाश्वतता का प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या साहित्य शाश्वत होता है? यदि हाँ, तो किस मायने में? क्या कोई साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्ष बीत जाने पर भी उतना ही प्रासंगिक रहता है, जितना वह अपने रचना काल में था? अपने समय या युग का निर्माता साहित्यकार क्या सौ वर्ष बाद की परिस्थितियों का भी युग-निर्माता हो सकता है, समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ और भावबोध बदलते हैं, साहित्य बदलता है और इसी के समानांतर पाठक की मानसिकता और अभिरुचि भी बदलती है। अतः कोई भी कविता अपने सामयिक परिवेश के बदल जाने पर ठीक वही उत्तेजना पैदा नहीं कर सकती, जो उसने अपने रचनाकाल के दौरान की होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक विशेष प्रकार के साहित्य के श्रेष्ठ अस्तित्व मात्र से वह साहित्य हर युग के लिए उतना ही विशेष आकर्षण रखे, यह आवश्यक नहीं है।
यही कारण है कि वर्तमान युग में इंगला-पिंगला, सुषुम्ना, अनहद, नाद आदि पारिभाषिक शब्दावली मन में विशेष भावोत्तेजन नहीं करती। साहित्य की श्रेष्ठता-मात्र ही उसके नित्य आकर्षण का आधार नहीं है। उसकी श्रेष्ठता का युगयुगीन आधार हैं, वे जीवन-मूल्य तथा उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उच्चतर मानव विकास के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। पुराने साहित्य का केवल वही श्री-सौंदर्य हमारे लिए ग्राह्य होगा, जो नवीन जीवन-मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे अथवा स्थिति-रक्षा में सहायक हो। कुछ लोग साहित्य की सामाजिक प्रतिबद्धता को अस्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है और उस पर कोई भी दबाव आरोपित नहीं होना चाहिए।
कितु वे भूल जाते हैं कि साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा मानव-जीवन में ही विद्यमान रहती है। जीवन के लिए ही उसकी सृष्टि होती है। तुलसीदास जब स्वांतः सुखाय काव्य-रचना करते हैं, तब अभिप्राय यह नहीं रहता कि मानव-समाज के लिए इस रचना का कोई उपयोग नहीं है, बल्कि उनके अंतःकरण में संपूर्ण संसार की सुख-भावना एवं हित-कामना सन्निहित रहती है। जो साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोक-जीवन में समाविष्ट कर देता है, उसी के हाथों स्थायी एवं प्रेरणाप्रद साहित्य का सृजन हो सकता है।
प्रश्न :
(क) साहित्य को शाश्वत क्यों नहीं कहा जा सकता है?
(ख) पुराने साहित्य के प्रति लोगों की रुचि क्यों बद्ल जाती है?
(ग) युग बदलने का साहित्य पर क्या असर होता है?
(घ) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार क्या हैं?
(ङ) पुराने साहित्य का कौनृ-सा श्री सौंदर्य ग्राह्य होता है?
(च) तुलसी की काव्य-रचना की विशेषता लिखिए।
(छ) प्रेरणादायक साहित्य का सृजन कब संभव है?
(ज) संधि-विच्छेद कीजिए- भावोत्तेजन, समानांतर।
(झ) वे मानते हैं कि साहित्यकार निरपेक्ष होता है। उपवाक्य और उसका भेद लिखिए।
(ञ) गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) साहित्य को इसलिए शाश्वत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि साहित्य अपने रचनाकाल के सौ वर्षों के बाद अपनी प्रासंगिकता खो बैठता है, जितना वह रचनाकाल में था।
(ख) पुराने साहित्य के प्रति लोगों की रूचि इसलिए बदल जाती है क्योंकि समय के अनुसार साहित्य के भावबोध बदल जाते हैं। इसके अलावा पाठकों की मानसिकता और अभिरुचि में बदलाव आ जाता है।
(ग) युग बदलने पर साहित्य अपने पाठकों पर वैसी उत्तेजना नहीं प्रकट कर पाता है जैसी वह रचना के समय में उत्तेजित किया करता था। इसके अलावा वह अपना आकर्षण खो बैठता है।
(घ) साहित्य की श्रेष्ठता के आधार उनमें निहित जीवन-मूल्य और उनकी अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हैं जो मनुष्य की स्वतंत्रता तथा मानव विकास के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करती हैं।
(ङ) पुराने साहित्य का वही श्री सौंदर्य ग्राह्य होता है जो नवीन जीवन मूल्यों के विकास में सक्रिय सहयोग दे या स्थिति की रक्षा करने में सहायक हो।
(च) तुलसीदास ‘स्वांत: सुखाय’ काव्य रचना करते थे परंतु इसके मूल में आत्मसुख न होकर संपूर्ण संसार के कल्याण की कामना समाहित होती थी।
(छ) प्रेरणादायक काव्य का संजन तब संभव है जब साहित्यकार अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को व्यापक लोकजीवन में समाविष्ट कर देता है और दूसरों की हितभावना का ध्यान बनाए रखता है।
(ज) भावोत्तेजन = भाव + उत्तेजन
समानांतर = समान + अंतर
(झ) उपवाक्य – साहित्यकार निरपेक्ष होता है।
भेद – संज्ञा उपवाक्य
(ञ) शीर्षक-‘साहित्य की प्रासंगिकता’ या ‘साहित्य और पाठक-बदलती रुचि।’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
कोई साहित्य रचना के सैकड़ों साल बाद
(क) अनुपयोगी हो जाता है
(ख) अधिक प्रासंगिक हो जाता है
(ग) कम प्रासंगिक हो जाता है
(घ) दुर्लभ ग्रंथ बन जाता है
उत्तर :
(ग) कम प्रासंगिक हो जाता है
प्रश्न 2.
पुराने साहित्य के प्रति लोगों में अरुचि हो जाने का क्या कारण है?
(क) समय बदल जाना
(ख) विश्राम की प्रर्गति बढ़ जाना
(ग) लोगों का रिश्षित हो जाना
(घ) नए साहित्यकार पैदा हो जाना
उत्तर :
(क) समय बदल जाना
प्रश्न 3.
कोई भी कविता सबसे ज्यादा उत्तेजना कब पैदा करती है?
(क) अपने रचनाकाल के समय
(ख) रचनाकाल के सैकड़ों वर्ष बाद
(ग) पाठकों की संख्या बढ़ जाने पर
(घ) शिक्षा का स्तर बढ़ जाने पर
उत्तर :
(क) अपने रचनाकाल के समय
प्रश्न 4.
किसी साहित्य की श्रेष्ठता का जनाधार क्या है?
(क) साहित्य के जीवन मूल्य
(ख) उसकी कलात्मक अभिव्यक्तियाँ
(ग) कवि की प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों।
उत्तर :
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों।
प्रश्न 5.
समाज पुराने साहित्य का वही सौंदर्य ग्रहण करता है जो
(क) उसका मनोरंजन करे
(ख) उसका ज्ञानवर्धन करे
(ग) नए जीवन-मूल्यों के विकास में योगदान दे
(घ) पुराने जीवन मूल्यों की रक्षा करे
उत्तर :
(ग) नए जीवन-मूल्यों के विकास में योगदान दे
प्रश्न 6.
साहित्य के निर्माण की मूल प्रेरणा कहाँ पाई जाती है?
(क) प्रकृति में
(ख) मानव जीवन में
(ग) मानव के आविष्कारों में
(घ) मानव की रुचियों में
उत्तर :
(ख) मानव जीवन में
प्रश्न 7.
तुलसीदास की काव्य रचना का क्या उद्देश्य था?
(क) स्वयं को सुखानुभूति कराना
(ख) आराध्य की महिमा का गुणगान करना
(ग) विश्व की सुख भावना एवं हितकामना
(घ) कालजयी रचना करके अमर हो जाना
उत्तर :
(ग) विश्व की सुख भावना एवं हितकामना
प्रश्न 8.
वे मानते हैं कि साहित्य निरपेक्ष होता है। रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद बताइए।
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) प्रधान उपवाक्य
(घ) क्रियाविशेषण उपवाक्य
उत्तर :
(क) संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘हितकामना’ का विग्रह और समास है-
(क) हित के लिए कामना- संप्रदान तत्पुरुष
(ख) हित की कामना – संबंध तत्पुरुष
(ग) हित से कामना – करण तत्पुरुष
(घ) कामना में हित – अधिकरण ततुरुष
उत्तर :
(ख) हित की कामना – संबंध तत्पुरुष
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) साहित्य और समाज
(ख) साहित्य और साहित्यकार
(ग) साहित्य का उद्देश्य
(घ) साहित्य की प्रासंगिकता
उत्तर :
(घ) साहित्य की प्रासंगिकता
14. भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु भिन्न कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चितन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की अलग-अलग सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देशेश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरंभ किया जाए, फलदायक नहीं होगा।
बहुत-सेलोग हिंदू-मुसलिम एकता को या हिंदू-संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुसलिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर ‘मनुष्यता’ के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुसलिम अगर मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़ें, तो उस हिंदू-मुसलिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुसलिम मिलन का उद्देश्य है, मनुष्य को दासता, जड़ता, मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना।
मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वात्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग आदि जातियों के सैकड़ों वर्षो के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने लंबे अरसे की ज़रूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास-निर्माता के इशारों को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।
प्रश्न :
(क) भारतीय मनीषा की किन विशेषताओं का गद्यांश में उल्लेख किया गया है?
(ख) जल्दी में फल पाने के लिए बनाए सिद्धांत का क्या परिणाम होगा और क्यों?
(ग) विभिन्न कार्यक्रमों को किस तरह फलदायक बनाया जा सकता है?
(घ) ‘हिंदू-मुसलिम एकता साधन है, साध्य नहीं’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
(ङ) हिंदू-मुसलिम मिलन का उद्देश्य क्या है?
(च) हम अपने विकास की योजनाएँ किस तरह बना सकते हैं?
(छ) अटकलपच्चू सिद्धांत का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘इतिहास निर्माता के इशारों को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ।’ संयुक्त वाक्य बनाइए।
(झ) संधि-विच्छेद कीजिएशुभेच्छा, सर्वोतम।
(ज) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) गद्यांश में उल्लेख है कि भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण फल प्राप्त किया है और भविष्य में महत्वपूर्ण फल पाने की उसमें योग्यता है।
(ख) जल्दी में फल पाने के लिए बनाए गए सिद्धांत की अभीष्ट की सिद्धि नहीं प्राप्त की जा सकती है क्योंकि सब लोगों की चिंतन-दृष्टि एक समान नहीं होती है।
(ग) विभिन्न कार्यक्रमों को फलदायक बनाने के लिए ज़रूरी है कि कार्यक्रम बनाने वालों के सामने लक्ष्य स्पष्ट हों।
(घ) इसके माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि हिंदू-मुसलमानों को एकजुट करना एक साधन मात्र है, जिसकी मदद से हम अपने अंतिम लक्ष्य ‘मानवता का कल्याण’ तथा ‘मनुष्य में मनुष्यता लाना’ को प्राप्त कर सकते हैं।
(ङ) हिंदू-मुसलिम मिलन का उद्देश्य है- मनुष्य को दासता, जड़ता, मोह तथा शोषण से बचाना।
(च) हम अपने इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझकर उसके अनुरूप अपने विकास की योजनाएँ बना सकते हैं।
(छ) अटकलपच्चू सिद्धांत का आशय है – सही ढंग से सोचे-समझे बिना मात्र अनुमान लगाकर जल्दी में कोई निर्णय करके उसे ही सही मान लेना।
(ज) संयुक्त वाक्य- हम इतिहास निर्माता के इशारों को समझें और अपनी योजना बनाएँ।
(झ) शुभेच्छा = शुभ + इच्छा सर्वोत्तम = सर्व + उत्तम
(ज) हिंदू – मुस्लिम एकता का उद्देश्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
देश की जनता के विकास के लिए बनाया गया एक ही कार्यक्रम सबके लिए कारगर क्यों नहीं है?
(क) जनता की आर्थिक स्थिति एक-सी न होने के कारण
(ख) जनता की सोच अलग-अलग होने से
(ग) सबकी सामाजिक स्थिति समान न होने से
(घ) क, ख. ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख. ग तीनों
प्रश्न 2.
अनुमान के आधार पर जल्दबाजी में बनाए गए कार्यक्रम का क्या परिणाम होगा?
(क) जनता को जल्दी लाभ मिलेगा
(ख) हमारा लक्ष्य शीघ्र पूरा होगा
(ग) अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होने में संदेह होगा
(घ) अभीष्ट सिद्धि जल्द ही हाथ लग जाएगी
उत्तर :
(ग) अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होने में संदेह होगा
प्रश्न 3.
कार्यक्रम फलदायक सिद्ध हो, इसके लिए आवश्यक है कि
(क) कार्यक्रम शुभेच्छा से बनाए जाएँ
(ख) कार्यक्रम में सभी का ध्यान रखा जाए
(ग) कार्यक्रम में जनता की भागीदारी की जाए
(घ) कार्यक्रम का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए
उत्तर :
(घ) कार्यक्रम का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए
प्रश्न 4.
हिंदू-मुस्लिम एकता किसी बड़े लक्ष्य को पाने का एक मात्र है।
(क) साध्य
(ख) साधन
(ग) उपकरण
(घ) कार्यक्रम
उत्तर :
(ख) साधन
प्रश्न 5.
हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य क्या है?
(क) मनुष्य को कुसंस्कार से बचाना
(ख) मनुष्य को शुद्र स्वार्थ से ऊपर उठाना
(ग) मनुष्य को दासता एवं जड़ता से बचाना
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 6.
मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य क्या है?
(क) अधिकाधिक धन कमाना
(ख) मनुष्य को एक करना
(ग) मनुष्य का सामूहिक कल्याण
(घ) मनुष्य का व्यक्तिगत कल्याण
उत्तर :
(ग) मनुष्य का सामूहिक कल्याण
प्रश्न 7.
हिंदू दृष्टिकोण किन से सैकड़ों वर्षों के बाद बना है?
(क) द्रविड़
(ख) आर्य
(ग) शक और नाग
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 8.
आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं- वाक्य का भेद रचना के आधार पर बताइए।
(क) सरल वाक्य
(ख) संयुक्त वाक्य
(ग) मिश्र वाक्य
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(ख) संयुक्त वाक्य
प्रश्न 9.
‘अटकलपच्चु सिद्धांत कायम कर लेना।’ में रेखांकित अंश है-
(क) संज्ञा
(ख) सर्वनाम
(ग) विशेषण
(घ) क्रियाविशेषण
उत्तर :
(ग) विशेषण
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा-
(क) भारतीय मनीषा की योग्यता
(ख) भारतीयों की चिंतन दृष्टि
(ग) हिंदू-मुस्लिम एकता का लक्ष्य
(घ) हिंदू दृष्टिकोण का विकास
उत्तर :
(ग) हिंदू-मुस्लिम एकता का लक्ष्य
15. हम अपने कार्यों को देश के अनुकूल होने की कसौटी पर कसकर चलने की आदत डालें, यह बहुत उचित है, बहुत सुंदर है, पर हम इसमें तब तक सफल नहीं हो सकते, जब तक कि हम अपने देश की भीतरी दशा को ठीक-ठाक न समझ लें और उसे हमेशा अपने सामने न रखें। हमारे देश को दो बातों की सबसे पहले और सबसे ज्यादा ज़रूरत है। एक शक्ति-बोध और दूसरा सौंदर्य-बोध। बस, हम यह समझ लें कि हमारा कोई भी काम ऐसा न हो, जो देश में कमज़ोरी की भावना को बल दे या कुरुचि की भावना को।
“ज़रा अपनी बात को और स्पष्ट कर दीजिए।” यह आपकी राय है और मैं इससे बहुत ही खुश हूँ कि आप मुझसे यह स्पष्टता माँग रहे हैं। क्या आप चलती रेलों में, मुसाफ़िरखानों में, क्लबों में, चौपालों पर और मोटर-बसों में कभी ऐसी चर्चा करते हैं कि हमारे देश में यह नहीं हो रहा है, वह नहीं हो रहा है और यह गड़बड़ है, वह परेशानी है? साथ ही क्या इन स्थानों में या इसी तरह के दूसरे स्थानों में आप कभी अपने देश के साथ दूसरे देशों की तुलना करते हैं और इस तुलना में अपने देश को हीन और दूसरे देशों को श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं?
यदि इन प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ हैं, तो आप देश के शक्ति-बोध को भयककर चोट पहुँचा रहे हैं और आपके हाथों देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास हो रहा है। सुनी है आपने, शल्य की बात! वह महाबली कर्ण का सारथी था। जब भी कर्ण अपने पक्ष की विजय की घोषणा करता, हुंकार भरता, वह अर्जुन की अजेयता का एक हल्का-सा उल्लेख कर देता। बार-बार इस उल्लेख ने कर्ण के सघन आत्म-विश्वास में संदेह की तरेड़ डाल दी, जो उसकी भाबी पराजय की नींव रखने में सफल हो गई।
अच्छा, आप इस तरह की चर्चा कभी नहीं करते, तो मैं आपसे दूसरा प्रश्न पूछता हूँ। क्या आप कभी केला खाकर छिलका रास्ते में फेंकते हैं? अपने घर का कूड़ा बाहर फेंकते हैं? मुँह से गंदे शब्दों में गंदे भाव प्रकट करते हैं? इधर-की-उधर, उधर-की-इधर लगाते हैं? अपना घर, दफ़्तर, गली गंदी रखते हैं? होटलों, धर्मशालाओं में या दूसरे ऐसे ही स्थानों में, ज़ीनों में, कोनों में पीक थूकते हैं? उत्सवों, मेलों, रेलों और खेलों में ठेलमठेल करते हैं? निमंत्रित होने पर समय से लेट पहुँचते हैं या वचन देकर भी घर आने वालों को समय पर नहीं मिलते और इसी तरह किसी भी रूप में क्या सुरुचि और सौंदर्य को आपके किसी काम से ठेस लगती है? यदि आपका उत्तर ‘ हाँ’ है, तो आपके द्वारा देश के सौंदर्य-बोध को भयंकर आघात लग रहा है और आपके द्वारा देश की संस्कृति को गहरी चोट पहुँच रही है।
प्रश्न :
(क) देश के हित में कार्य करने के लिए क्या आवश्यक है?
(ख) देश के शक्ति-बोध को किस तरह क्षति पहुँचती है?
(ग) शल्य का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है?
(घ) ऐसे दो कार्यों का उल्लेख कीजिए जिससे देश का सौंदर्य-बोध प्रभावित होता हो।
(ङ) कर्ण के भावी पराजय की नींव किस तरह पड़ी?
(च) लोग अनजाने में देश की संस्कृति को किस तरह चोट पहुँचाते हैं?
(छ) गद्यांश में देशवासियों को क्या सीख दी गई है?
(ज) मिश्र वाक्य बनाइए- आप केला खाकर छिलका रास्ते में फेंकते हैं।
(झ) प्रत्यय और मूलशब्द अलग करके लिखिए- सामूहिक, कमजोरी।
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) देश के हित में कार्य करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने देश की भीतरी दशा को ठीक ढंग से समझ लें तथा देश के बारे में सदैव सोचें, तब कार्य करें।
(ख) सार्वजनिक-स्थलों पर, यात्रा करते समय, क्लब, चौपाल आदि स्थानों पर दूसरे देश से अपने देश की तुलना करने और अपने देश को कमतर बताने से देश की शक्ति को चोट पहुँचती है।
(ग) शल्य का उल्लेख अर्जुन की अजेयता का उल्लेख कर कर्ण के शक्तिबोध को कमज़ोर बनाने के संदर्भ में किया गया है।
(घ) देश के सौंदर्य-बोध को प्रभावित करने वाले दो कार्य हैं-
(i) अपने घर का कूड़ा-करकट इधर-उधर फेंकना।
(ii) मुँह से गंदे शब्दों में गंदे भाव प्रकट करना।
(ङ) कर्ण जब भी अपने पक्ष की विजय की घोषणा करता, तभी शल्य अर्जुन के साहस और अपराजेय होने की बात कह देता जिससे कर्ण का आत्मविश्वास संदेहग्रस्त हो जाता था, जिससे उसके पराजय की नींव पड़ी।
(च) लोग अनजाने में देश के शक्तिबोध और सौंदर्य-बोध को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसा करके वे देश की संस्कृति को चोट पहुँचाते हैं।
(छ) गद्यांश में देशवासियों को यह सीख दी गई है कि वे कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे देश की संस्कृति और उसकी गरिमा पर आँच आए।
(ज) मिश्र वाक्य-जब आप केला खाते हैं तब छिलका रास्ते में फेंकते हैं।
(झ)
(ञ) शीर्षक-‘देश के प्रति हमारा कर्तव्य’ अथवा ‘हम और हमारा देश’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
देश के अनुकूल होने की कसौटी पर कसने का तात्पर्य है
(क) देश के कार्य में जुट जाना
(ख) देश के लिए कार्य करें या अपने लिए यह सोचना
(ग) देश और अपने हित वाले काम करना
(घ) ऐसा कार्य करना जिससे देश का अहित न हो
उत्तर :
(घ) ऐसा कार्य करना जिससे देश का अहित न हो
प्रश्न 2.
इनमें से किस कार्य से देश के शक्तिबोध को चोट पहुँचती है?
(क) सार्वजनिक स्थानों पर देश का गुणगान करना
(ख) लोगों के बीच देश को श्रेष्ठ बुलाना
(ग) अपने देश को हीन और दूसरे देश को श्रेष्ठ बताना
(घ) मोटर बसों में देश की परेशानियाँ बताना
उत्तर :
(ग) अपने देश को हीन और दूसरे देश को श्रेष्ठ बताना
प्रश्न 3.
शल्य द्वारा अर्जुन की अजेयता का उल्लेख करने का परिणाम क्या रहा ?
(क) अर्जुन की विजय
(ख) कर्ण के आत्मविश्वास में संदेह जन्म लेना
(ग) अर्जुन का प्रिय बन जाना
(घ) कर्ण की दृष्टि में गिर जाना
उत्तर :
(ख) कर्ण के आत्मविश्वास में संदेह जन्म लेना
प्रश्न 4.
किस कार्य से देश के सौंदर्यबोध को क्षति नहीं पहुँचती है?
(क) केला खाकर रास्ते में फेंकना
(ख) अपना घर-दफ्त्तर साफ़ न रखना
(ग) निमंत्रित किए जाने पर समय से पहुँचना
(घ) घर जाने वालों से समय पर न मिलना
उत्तर :
(ग) निमंत्रित किए जाने पर समय से पहुँचना
प्रश्न 5.
देश के सौंदर्य बोध का जुड़ाव इनमें से किसके साथ है?
(क) देश का शक्तिबोध
(ख) देश की आर्थिक स्थिति
(ग) देश की संस्कृति
(घ) देशवासियों की शिक्षा एवं आचरण
उत्तर :
(ग) देश की संस्कृति
प्रश्न 6.
कर्ण की हुंकार और अपने पथ की विजय घोषणा में उसका …………….. झलकता था।
(क) बल
(ख) आत्मविश्वास
(ग) कल्पना
(घ) युद्ध कौशल
उत्तर :
(ख) आत्मविश्वास
प्रश्न 7.
देश के हित में काम करने के लिए ज़रूरी है कि हम ………………।
(क) देश का भ्रमण करें
(ख) देश की भीतरी दशा को सही ढंग से समझ लें
(घ) हम बहुत ज्ञानवान हों
(ग) देश में लोकप्रिय हों
उत्तर :
(ख) देश की भीतरी दशा को सही ढंग से समझ लें
प्रश्न 8.
‘मैं इससे बहुत खुश हूँ कि आप मुझसे स्पष्टता माँग रहे हैं।’-का संयुक्त वाक्य होगा।
(क) आपसे स्पष्टता माँगने से मैं खुश हूँ।
(ख) आपके स्पष्टता माँगने में मुझे खुशी है।
(ग) आप मुझसे स्पष्टता माँग रहे हैं इसलिए मैं खुश है।
(घ) मेरी खुशी का कारण है आपके द्वारा स्पष्टता माँगा जाना।
उत्तर :
(ग) आप मुझसे स्पष्टता माँग रहे हैं इसलिए मैं खुश है।
प्रश्न 9.
‘कमज़ोरी’ शब्द में किसका प्रयोग है?
(क) ‘कम’ उपसर्ग का
(ख) ‘ईं’ प्रत्यय का
(ग) ‘कम’ उपसर्ग और ‘ई’ प्रत्यय
(घ) ज़ोरी प्रत्यय का
उत्तर :
(ग) ‘कम’ उपसर्ग और ‘ई’ प्रत्यय
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) देश की जरूरत-शक्तिबोध
(ख) देश और सौंदर्यबोध
(ग) हम और हमारा देश
(घ) कर्ण का आत्मविश्वास
उत्तर :
(ग) हम और हमारा देश
16. स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छूट दे रखी है, जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है, जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्य्या जैसे मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भौड़ी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया और सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन-मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नई पीढ़ी, जो स्वयं में रचनात्मक गुणों का विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने
बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है। जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा, तो समाज शव बनेगा ही। आज यह मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है-बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट संबंधियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमककर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाए और सुनाए जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर लचकाने लगे हैं। ऐसे कार्यक्रम न शिव हैं, न समाज को शिव बनाने की इनमें शक्ति है। फिर जो शिव नहीं, वह सुंदर कैसे हो सकता है।
प्रश्न :
(क) दूरदर्शन पर विज्ञापन बढ़ने का क्या कारण है?
(ख) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन समाज के लिए उपयुक्त क्यों नहीं हैं?
(ग) राष्ट्रीय दूरदर्शन इन कार्यक्रमों से किस तरह प्रभावित हुआ है?
(घ) युवा पीढ़ी अपना लक्ष्य भूल गई है, कैसे?
(ङ) समाज कब शव बन सकता है?
(च) दूरदर्शन अपने आदर्श को भूल कर क्या कर रहा है?
(छ) ‘अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(ज) उपसर्ग या प्रत्यय अलग कर मूल शब्द लिखिए –
वैश्विक, विज्ञापन
(झ) ‘राष्ट्रीय दूरदर्शन ने उनकी भौड़ी नकल की है।’ मिश्र वाक्य बनाइए।
(अ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) नई आर्थिक व्यवस्था के वैश्विक वातावरण के कारण विदेशी पूँजी निवेश को पर्याप्त छूट दी गई है। इस कारण दूरदर्शन पर विज्ञापन बढ़ गए हैं।
(ख) दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों में हिंसा, मार-काट, उन्मुक्त वासना, अपराध, लालच, ईष्ष्या जैसी मनुष्य की हीनतम प्रवृत्तियाँ दिखाई जा रही हैं, जो समाज के लिए ठीक नहीं हैं।
(ग) राष्ट्रीय दूरदर्शन ने इन कार्यक्रमों की नकल की है, जिससे आधुनिकता के नाम पर ऐसे कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं जिनका भारतीय जीवन-मूल्यों और सत्यता से कोई संबंध नहीं है।
(घ) युवा पीढ़ी को इस उम्र में अपने अंदर रचनात्मक गुणों का विकास करना चाहिए, परंतु वह दूरदर्शन के सामने बैठकर उस पर प्रसारित कार्यक्रमों से मनोरंजन कर रही है। इस तरह वह अपना लक्ष्य भूल गई है।
(ङ) समाज उस समय शव बन जाएगा, जब उसे शिव अर्थात सुंदर बनाने का प्रयास नहीं किया जाएगा।
(च) दूरदर्शन अपने ‘सत्यं शिवम सुंदरम’ का आदर्श भूल कर ऐसे वासनायुक्त अश्लील दृश्य वाले कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहा हैं, जिन्हें पूरे परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता है।
(छ) इसका अर्थ है- आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण करना, जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो।
(ज)
(झ) मिश्रवाक्य-यह राष्ट्रीय दूरदर्शन ही है, जिसने उनकी भौड़ी नकल की है।
(ञ) शीर्षक-‘राष्ट्रीय दूरदर्शन के कार्यक्रम’ अथवा ‘भारतीय दूरदर्शन का युवा पीढ़ी पर प्रभाव।’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
दूरदर्शन पर कुछ विशेष विज्ञापन बढ़ जाने का क्या कारण है?
(क) दर्शकों की माँग के कारण
(ख) सरकार द्वारा अधिक धन दिए जाने से
(ग) विदेशी पूँजी का निवेश हो जाने के कारण
(घ) दूरदर्शन की नई नीति के कारण
उत्तर :
(ग) विदेशी पूँजी का निवेश हो जाने के कारण
प्रश्न 2.
ऐसे विशेष विज्ञापनों का आधार होता है-
(क) मनुष्य की धार्मिक प्रवृत्तियाँ
(ख) मनुष्य की सबसे हीन प्रवृत्तियाँ
(ग) मनुष्य की सच्चाई एवं ईमानदारी
(घ) मनुष्य की दया एवं त्यागमयी प्रवृत्तियाँ
उत्तर :
(ख) मनुष्य की सबसे हीन प्रवृत्तियाँ
प्रश्न 3.
आजकल राष्ट्रीय दूरदर्शन पर कैसे कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं?
(क) जो बहुत उपयोगी हैं।
(ख) जो देश-प्रेम और देशभक्ति को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ग) जो भारतीय संस्कृति से जुड़े हैं।
(घ) जो भारतीय जीवन-मूल्यों से बहुत दूर हैं।
उत्तर :
(घ) जो भारतीय जीवन-मूल्यों से बहुत दूर हैं।
प्रश्न 4.
नई पीढ़ी का मालिक भगवान क्यों है?
(क) रचनात्मक गुणों का विकास न होने के कारण
(ख) आधुनिक बनने के कारण
(ग) मनोरंजन भरपूर कार्यक्रम देखने के कारण
(घ) दूरदर्शन से कुछ सीखने की लालसा के कारण
उत्तर :
(क) रचनात्मक गुणों का विकास न होने के कारण
प्रश्न 5.
समाज को शिव बनाने का प्रयास न होने पर समाज
(ख) सुंदर
(क) सत्य
(घ) शव
(ग) शिवम्
उत्तर :
(घ) शव
प्रश्न 6.
दूरदर्शन अपना आदर्श भूलकर कैसे कार्यक्रम प्रसारित कर रहा है?
(क) जीवन-मूल्यों से भरपूर
(ख) रचनात्मक
(ग) भारतीयता को बढ़ावा देने वाले
(घ) वासनायुक्त अश्लील दृश्य वाले
उत्तर :
(घ) वासनायुक्त अश्लील दृश्य वाले
प्रश्न 7.
अर्थनीति के नए वैश्विक वातावरण का अर्थ है
(क) देश के उद्योगपतियों को दूसरे देश में पूँजी लगाने की छूट देना।
(ख) अपने देश के उद्योगपतियों से अपने देश में पूँजी लगाने की शर्त लगाना।
(ग) उद्योगों को छूट देकर वैश्विक मार से बचाना।
(घ) अर्थनीति को उदार बनाना तथा किसी देश को अन्य देश में पूँजी लगाने की स्वतंत्रता देना।
उत्तर :
(क) देश के उद्योगपतियों को दूसरे देश में पूँजी लगाने की छूट देना।
प्रश्न 8.
‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम सत्य से कोसों दूर हैं।’ का मिश्र वाक्य होगा-
(क) दूरदर्शन कार्यक्रम दिखाता है पर वे सत्य से बहुत दूर है।
(ख) दूरदर्शन सत्य से परे कार्यक्रम दिखाता है।
(ग) दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते हैं जो सत्य से कोसों दूर हैं।
(घ) दूरदर्शन सत्य पर आधारित कार्यक्रम दिखाए।
उत्तर :
(ग) दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम दिखाए जाते हैं जो सत्य से कोसों दूर हैं।
प्रश्न 9.
उन्मुक्त का संधि-विच्छेद है-
(क) उन + मुक्त
(ख) उन् + मुक्त
(ग) उत + मुक्त
(घ) उत् + मुक्त
उत्तर :
(घ) उत् + मुक्त
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) दूरदर्शन के विज्ञापन
(ख) दूरदर्शन के कार्यक्रम
(ग) दूरदर्शन की कार्यकारी भूमिका
(घ) दूरदर्शन- एक वरदान
उत्तर :
(ग) दूरदर्शन की कार्यकारी भूमिका
17. संस्कृति और सभ्यता-ये दो शब्द हैं और उनके अर्थ भी अलग-अलग हैं। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है, जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है, जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी-चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, ये सभ्यता की पहचान हैं और जिस देश में इनकी जितनी ही अधिकता है, उस देश को हम उतना ही सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति इस सबसे कहीं बारीक चीज़ है। वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है, मकान नहीं, मकान बनाने की रुचि है। संस्कृति धन नहीं. गुण है।
संस्कृति ठाठ-बाट नहीं, विनय और विनम्रता है। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज़ है, जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है, जो हममें छिपा हुआ है। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर ये सारी चीज़ें हमारी सभ्यता के सबूत हैं, जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती, वह बहुत ही सूक्ष्म और महीन चीज़ है और वह हमारी हर पसंद, हर आदत में छिपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है, लेकिन हम मकान का कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं-यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर-ये छह विकार प्रकृति के दिए हुए हैं।
अगर ये विकार बेरोक छोड़ दिए जाएँ, तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए। इसलिए आदमी इन विचारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है. उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं, तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इसलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है, जिसने ज़्यादा-से-ज़्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।
प्रश्न :
(क) किसी देश की संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?
(ख) सभ्यता की पहचान किस प्रकार की जा सकती है?
(ग) संस्कृति सूक्ष्म चीज़ है, कैसे?
(घ) मनुष्य में प्रकृति प्रदत्त विकार कौन-कौन से हैं? इन पर नियंत्रण क्यों ज़रूरी है?
(ङ) प्रकृति प्रदत्त विकार और संस्कृति में क्या संबंध है?
(च) सांस्कृतिक दृष्टि से कौन से देश धनी माने जाते हैं?
(छ) मनुष्य और पशु में कब अंतर नहीं रह जाएगा?
(ज) विलोम लिखिए- विनम्मता, दुर्गुण।
(झ) संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। सरल वाक्य बनाइए।
(अ) गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) संस्कृति मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है, जबकि सभ्यता मनुष्य का ऐसा गुण है, जिससे वह बाहरी उन्नति करता है।
(ख) किसी देश की सभ्यता की पहचान वहाँ की रेलगाड़ियाँ, मोटर-गाड़ियाँ, हवाई-जहाज़, लंबी-चौड़ी सड़कें, इमारतें, रहन-सहन, पोशाक देखकर की जा सकती है।
(ग) संस्कृति, मोटर नहीं अपितु मोटर बनाने की कला, यह मकान नहीं मकान बनाने की रुचि है। यह धन नहीं, गुण है, यह विनय नहीं विनम्रता है जो हममें छिपा है। इस तरह संस्कृति सूक्ष्म चीज़ है।
(घ) मनुष्य में प्रकृति द्वारा प्रदत्त छह विकार हैं- काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर। इन पर नियंत्रण इसलिए आवश्यक है क्योंकि इन पर नियंत्रण के अभाव में मनुष्य अपनी मनुष्यता खो देता है।
(ङ) प्रकृति प्रदत्त विकारों पर नियंत्रण से ही मनुष्य में मनुष्यता आती है। जो लोग इन पर अधिकाधिक नियंत्रण रखते हैं, उनकी संस्कृति उच्चकोटि की मानी जाती है।
(च) सांस्कृतिक दृष्टि से वे देश धनी माने जाते हैं जिन्होंने ज्यादा-से-ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाया है।
(छ) जब मनुष्य के विकार इतने अनियंत्रित हो जाएँगे कि वह अपने कर्मों से नीचे गिर जाएगा, तब उसमें और पशु में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
(ज) विनम्रता × उग्रता
दुर्गुण × सद्युण
(झ) सरल वाक्य- आदान-प्रदान से बढ़ना संस्कृति का स्वभाव है।
(अ) संस्कृति और सभ्यता।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
सभ्यता की पहचान किससे होती है?
(क) मोटर और हवाई जहाज़
(ख) लंबी-लंबी सड़कें
(ग) अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
संस्कृति, व्यक्ति का वह गुण है जिनसे वह
(क) धन कमाता है
(ख) ज्ञानी बनता है
(ग) सच्चा मनुष्य बनता है
(घ) नई-नई सफलताएँ हासिल करता है
उत्तर :
(ग) सच्चा मनुष्य बनता है
प्रश्न 3.
संस्कृति ठाठ-बाट नहीं बल्कि है।
(क) धन
(ख) विनय और विनम्रता
(ग) मोटर गाड़ियाँ
(घ) ऊँचे-ऊँचे मकान
उत्तर :
(ख) विनय और विनम्रता
प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सा प्रकृति प्रदत्त विकार की श्रेणी में नहीं आता है?
(क) क्रोध
(ख) त्याग
(ग) मोह
(घ) लोभ
उत्तर :
(ख) त्याग
प्रश्न 5.
मनुष्य यदि अपने विकारों पर नियंत्रण न लगाए तो वह
(क) बहुत उन्नति कर लेगा
(ख) लोगों में खूब लोकप्रिय हो जाएगा
(ग) संत महात्माओं जैसा हो जाएगा
(घ) बहुत नीचे गिर जाएगा
उत्तर :
(घ) बहुत नीचे गिर जाएगा
प्रश्न 6.
संस्कृति का स्वभाव क्या है?
(क) यह भौतिक वस्तुओं की कोटि में आती है।
(ख) यह आदान-प्रदान से नष्ट होती है।
(ग) यह आदान-प्रदान से बढ़ती है।
(घ) यह आदान-प्रदान की वस्तु नहीं है।
उत्तर :
(ग) यह आदान-प्रदान से बढ़ती है।
प्रश्न 7.
जो देश कई जातियों और संस्कृतियों से लाभान्वित होकर अपनी संस्कृति विकसित करते हैं वे
(क) पिछड़े होते हैं
(ख) अपनी संस्कृति की उपेक्षा करते हैं
(ग) सांस्कृतिक दृष्टि से गरीब होते हैं
(घ) सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत धनी होते हैं
उत्तर :
(घ) सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत धनी होते हैं
प्रश्न 8.
सभ्यता वह चीज़ है जो हमारे पास है। रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) विशेषण उपवाक्य
(ख) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(ग) संज्ञा उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(क) विशेषण उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘संस्कृति’ में प्रयुक्त उपसर्ग है-
(क) संस्
(ख) संस
(ग) सन्
(घ) सम्
उत्तर :
(घ) सम्
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) सभ्यता- एक गुण
(ख) सभ्यता का महत्व
(ग) संस्कृति और सभ्यता
(घ) संस्कृति की पहचान
उत्तर :
(ग) संस्कृति और सभ्यता
18. विधाता-रचित इस सृष्टि का सिरमौर है-मनुष्य, उसकी कारीगरी का सर्वोत्तम नमूना। इस मानव को ब्रहमांड का लघु रूप मानकर भारतीय दार्शनिकों ने ‘यत् पिण्डे तत् ब्रहमांडे’ की कल्पना की थी। उनकी यह कल्पना मात्र कल्पना नहीं थी, प्रत्युत यथार्थ भी थी, क्योंकि मानव-मन में जो विचारना के रूप में घटित होता है, उसी का कृति रूप ही तो सृष्टि है। मन तो मन, मानव का शरीर भी अप्रतिम है। देखने में इससे भव्य, आकर्षक एवं लावण्यमय रूप सृष्टि में अन्यत्र कहाँ है? अद्भुत एवं अद्वितीय है-मानव-सौंदर्य।
साहित्यकारों ने इसके रूप-सौंदर्य के वर्णन के लिए कितने ही अप्रस्त्तुतों का विधान किया है और इस सौंदर्य-राशि से सभी को आप्यायित करने के लिए अनेक काव्य-सृष्टियाँ रच डाली हैं। साहित्यशास्त्रियों ने भी इसी मानव की भावनाओं का विवेचन करते हुए अनेक रसों का निरूपण किया है, परंतु वैज्ञानिक दृष्टि से विचार किया जाए, तो मानव-शरीर को एक जटिल यंत्र से उपमित किया जा सकता है। जिस प्रकार यंत्र के एक पुर्जे में दोष आ जाने पर सारा यंत्र गड़बड़ा जाता है. बेकार हो जाता है, उसी प्रकार मानव-शरीर के विभिन्न अवयवों में से यदि कोई एक भी अवयव बिगड़ जाता है, तो उसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है।
इतना ही नहीं, गुर्दे जैसे कोमल एवं नाजुक हिस्से के खराब हो जाने से यह गतिशील वपुयंत्र एकाएक अवरुद्ध हो सकता है, व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। एक अंग के विकृत होने पर सारा शरीर दंडित हो, वह कालकवलित हो जाए, यह विचारणीय है। यदि किसी यंत्र के पुर्जे को बदलकर उसके स्थान पर नया पुर्जा लगाकर यंत्र को पूर्ववत सुचारू एवं
व्यवस्थित रूप से क्रियाशील बनाया जा सकता है, तो शरीर के विकृत अंग के स्थान पर नव्य निरामय अंग लगाकर शरीर को स्वस्थ एवं सामान्य क्यों नहीं बनाया जा सकता? शस्य-चिकित्सकों ने इस दायित्वपूर्ण चुनौती को स्वीकार किया तथा निरंतर अध्यवसायपूर्ण साधना के अनंतर अंग-प्रत्यारोपण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। अंग-प्रत्यारोपण का उद्देश्य है कि मनुष्य दीर्घायु प्राप्त कर सके। यहाँ यह ध्यातव्य है कि मानव-शरीर हर किसी के अंग को उसी प्रकार स्वीकार नहीं करता, जिस प्रकार हर किसी का रक्त उसे स्वीकार्य नहीं होता। रोगी को रक्त देने से पूर्व रक्त-वर्ग का परीक्षण अत्यावश्यक है, तो अंग-प्रत्यारोपण से पूर्व ऊतक-परीक्षण अनिवार्य है। आज का शल्य-चिकित्सक गुर्दे, यकृत, आँत, फेफड़े और हृदय का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक कर रहा है। साधन-संपन्न चिकित्सालयों में मस्तिष्क के अंतिरिक्त शरीर के प्रायः सभी अंगों का प्रत्यारोपण संभव हो गया है।
प्रश्न :
(क) मनुष्य को किस संज्ञा से विभूषित किया गया है और क्यों?
(ख) ‘यत् पिण्डे तत् ब्रहमांडे’ की कल्पना किस तरह यथार्थ थी?
(ग) साहित्यकार मानव के शरीर से किस तरह प्रभावित हुए?
(घ) वैज्ञानिक मानव शारीर को जटिल यंत्र क्यों मानते हैं?
(ङ) शल्य-चिकित्सकों ने किस चुनौती को स्वीकारा है?
(च) अंग-प्रत्यारोपण क्या है? इसमें क्या सावधानी रखी जाती है?
(छ) अंग-प्रत्यारोपण का उद्देश्य क्या है? अभी किस अंग का प्रत्यारोपण संभव नहीं हुआ है?
(ज) विलोम लिखिए – अनिवार्य, दोष।
(झ) एक अंग के विकृत होने पर सारा शरीर दंडित होता है। मिश्र वाक्य में बदलिए।
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) मनुष्य को ‘सृष्टि का सिरमौर’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है क्योंकि वह विधाता की कारीगरी का सबसे सुंदर नमूना है।
(ख) मानव मन में सोच-विचार के रूप में जो कुछ घटित होता है, उसी का कृति रूप ही तो सृष्टि है। इस तरह ‘यत् पिण्डे तत् ब्रहमांडे’ की कल्पना यथार्थ थी।
(ग) साहित्यकार मानव के शरीर से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इसके रूप-सौंदर्य के लिए अनेक अप्रस्तुत का विधान किया है तथा काव्य सृष्टियाँ और रसों का निरूपण किया है।
(घ) वैज्ञानिक मानव शरीर को जटिल यंत्र इसलिए मानते हैं क्योंकि जिस तरह यंत्र का एक पुर्जा खराब होने पर सारा यंत्र खराब हो जाता है, उसी प्रकार शरीर के किसी एक अंग के खराब होने का असर पूरे शरीर पर पड़ता है।
(ङ) शरीर के किसी विकृत अंग के स्थान पर नया अंग लगाना अंग-प्रत्यारोपण कहलाता है। उसमें उसी अंग को शरीर में रोपित किया जाता है, जिसे शरीर स्वीकार कर ले।
(च) अंग प्रत्यारोपण का उद्देश्य है- मानव को दीर्घायु बनाना। अभी तक मानव मस्तिष्क का प्रत्यारोपण संभव नहीं हो सका है।
(छ) अनिवार्य × ऐच्छिक
दोष × गुण
(झ) मिश्र वाक्य- जब एक अंग विकृत होता है तब सारा शरीर दंडित होता है।
(ञ) ‘मानव शरीर- एक जटिल मशीन’ अथवा ‘अंग-प्रत्यारोपण- दीर्घायु बनाने का साधन’।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
मनुष्य को विधाता रचित सृष्टि का सिरमौर कहा जाता है क्योंकि-
(क) ब्रह्मांड का लघु रूप मानकर उसकी रचना की गई।
(ख) उसका तन-मन अद्वितीय है।
(ग) वह सबसे भव्य और आकर्षक है।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
मनुष्य के रूप सौंदर्य का वर्णन किसने किया है?
(क) नाटककारों ने
(ख) साहित्यकारों ने
(ग) गीतकारों ने
(घ) ब्रह्मा जी ने
उत्तर :
(ख) साहित्यकारों ने
प्रश्न 3.
मानव की भावनाएँ व्यक्त करने के लिए किसका निरूपण किया गया?
(क) अलंकार
(ख) रस
(ग) छंद्
(घ) कविताएँ
उत्तर :
(ख) रस
प्रश्न 4.
वैज्ञानिक मानव शरीर की तुलना किससे करते हैं?
(क) अद्भुत खोज से
(ख) अद्भुत चमत्कार से
(ग) अत्यंत सुंदर वस्तु से
(घ) अत्यंत जटिल यंत्र से
उत्तर :
(घ) अत्यंत जटिल यंत्र से
प्रश्न 5.
शरीर के किसी नाजुक हिस्से के खराब होने से क्या होता है?
(क) सारा शरीर प्रभावित होता है
(ख) चलता-फिरता शरीर रुक जाता है
(ग) मृत्यु तक हो जाती है।
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 6.
शरीर में नया अंग लगाने की चुनौती को किसने स्वीकारा?
(क) वैज्ञानिकों ने
(ख) बुद्धिजीवियों ने
(ग) शल्य चिकित्सकों ने
(घ) इतिहासकारों ने
उत्तर :
(ग) शल्य चिकित्सकों ने
प्रश्न 7.
अंग प्रत्यारोपण से पहले क्या किया जाता है?
(क) रक्त परीक्षण
(ख) ऊतक परीक्षण
(ग) अंग परीक्षण
(घ) शरीर का परिक्षण
उत्तर :
(ख) ऊतक परीक्षण
प्रश्न 8.
‘रोगी को रक्त देने से पहले रक्त परीक्षण किया जाता है।’- का मिश्र वाक्य है-
(क) रोगी को रक्त देकर रक्त परीक्षण करते हैं।
(ख) जब रोगी को रक्त देना होता है तब पहले रक्त परीक्षण किया जाता है।
(ग) रोगी को रक्त देने से पहले परीक्षण ज़रूरी है।
(घ) रोगी को रक्त दो और परीक्षण करो।
उत्तर :
(ख) जब रोगी को रक्त देना होता है तब पहले रक्त परीक्षण किया जाता है।
प्रश्न 9.
‘मानव शरीर’ का विग्रह और समास है-
(क) मानव का शरीर – तत्पुरुष समास
(ख) मानव और शरीर-द्वंद्व समास
(ग) मानव के जैसा शरीर – कर्मधारय समास
(घ) मानव का है जो शरीर विशेष – बहुत्रीहि समास
उत्तर :
(क) मानव का शरीर – तत्पुरुष समास
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है।
(क) सृष्टि का सिरमौर – मानव
(ख) मानव और बीमारियाँ
(ग) मानव अंग-प्रत्यारोपण
(घ) मानव-एक जटिल मशीन
उत्तर :
(ग) मानव अंग-प्रत्यारोपण
19. हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता जनसंख्या-वृद्धि रोकना है। इस क्षेत्र में हमारे सभी प्रयत्न निष्फल रहे हैं। ऐसा क्यों है? यह इसलिए भी हो सकता है कि समस्या को देखने का हर एक का एक अलग नज़रिया है। जनसंख्याशास्त्रियों के लिए यह आँकड़ों का अंबार है। अफ़सरशाही के लिए यह टार्गेट तय करने की कवायद है। राजनीतिज्ञ इसे वोट बैंक की दृष्टि से देखता है। ये सब अपने-अपने ढंग से समस्या को सुलझाने में लगे हैं। अतः अलग-अलग किसी के हाथ सफलता नहीं लगी, पर यह स्पष्ट है कि परिवार के आकार पर, आर्थिक विकास और शिक्षा पर बहुत प्रभाव पड़ता है। यहाँ आर्थिक विकास का मतलब पाश्चात्य मतानुसार भौतिकवाद नहीं, जहाँ बच्चों को बोझ माना जाता है। हमारे लिए तो यह सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से संबोंधित है।
यह मौजूदा संपत्ति के समतामूलक विवरण पर ही निर्भर नहीं है, वरन ऐसी शैली अपनाने से संबंधित है, जिसमें अस्सी करोड़ लोगों की ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल हो सके। इसी प्रकार स्त्री-शिक्षा भी है। यह समाज में एक नए प्रकार का चिंतन पैदा करेगी, जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नए आयाम खुलेंगे और साथ ही बच्चों के विकास का नया रास्ता भी खुलेगा। अत: जनसंख्या की समस्या सामाजिक है। यह अकेले सरकार नहीं सुलझा सकती। केंद्रीकरण से हटकर इसे ग्राम-ग्राम, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुँचाना होगा। जब तक यह जन-आंदोलन नहीं बन जाता, तब तक सफलता मिलना संद्गि है।
प्रश्न :
(क) जनसंख्या रोकने के उपाय क्यों निष्फल हो रहे हैं?
(ख) जनसंख्याशास्त्रियों और राजनीतिजों की दृष्टि से जनसंख्या क्या है?
(ग) पाश्चात्य दृष्टिकोण के अनुसार आर्थिक विकास का क्या अर्थ है?
(घ) भारतीय दृष्टिकोण में आर्थिक विकास क्या है?
(ङ) जनसंख्या की समस्या के संबंध में जनसाधारण का दृष्टिकोण क्या होता है?
(च) जनसंख्या की सामाजिक समस्या को हल करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
(छ) स्त्री शिक्षा बढ़ने से समाज किस तरह प्रभावित होगा?
(ज) संधि-विच्छेद कीजिए – निष्फल, सर्वोच्च।
(झ) ‘जनसंख्या वृद्धि की समस्या को अकेले सरकार नहीं सुलझा सकती है।’ मिश्र वाक्य में बदलिए।
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) जनसंख्या रोकने के उपाय निष्फल हो रहे हैं क्योंकि जनसंख्या के प्रति इसे रोकने वालों के दृष्टिकोण में पर्याप्त भिन्नता है।
(ख) जनसंख्याशास्त्रियों की दृष्टि में जनसंख्या-आँकड़ों का स्रोत है, जबकि राजनीतिजों की दृष्टि में जनसंख्या उनका वोट बैंक है।
(ग) पाश्चात्य दृष्टिकोण में आर्थिक विकास का अर्थ भौतिकवाद है, जहाँ बच्चों को बोझ माना जाता है।
(घ) भारतीय दृष्टिकोण से आर्थिक विकास का अर्थ सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से संबंधित है। यह ऐसी शैली से जुड़ा है, जिससे लोगों की ऊर्जा का बेहतर ढ़ंग से उपयोग किया जा सके।
(ङ) जनसंख्या की समस्या के संबंध में जनसाधारण का दृष्टिकोण यह होता है कि समस्या को हल करना सरकार का काम है। अब इस दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।
(च) जनसंख्या की सामाजिक समस्या हल करने के लिए शहरों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि शहरों से निकलकर गाँव-गाँव और जन-जन तक पहुँचना चाहिए।
(छ) स्त्री-शिक्षा बढ़ने से समाज में एक नया चिंतन पैदा होगा। इससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नए अवसर उत्पन्न होंगे। इस तरह समाज पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
(ज) निष्फल – नि: + फल
सवोंच्च – सर्व + उच्च
(झ) मिश्र वाक्य- जनसंख्या वृद्धि वह समस्या है जिसे सरकार अकेले नहीं सुलझा सकती है।
(ञ) शीर्षक- ‘जनसंख्या वृद्धि-एक समस्या’ अथवा ‘जनसंख्या की समस्या और दृष्टिकोण’।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
जनसंख्या वृद्धि रोकने के सारे प्रयत्ल निष्फल होने का कारण क्या है?
(क) इसे रोकने का प्रयास न करना
(ख) समस्या का कोई हल न होना
(ग) समस्या के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण होना
(घ) समस्या हल करने के लिए आधा-अधूरा प्रयास करना
उत्तर :
(ग) समस्या के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण होना
प्रश्न 2.
जनसंख्या को आँकड़ों के ढेर के रूप में कौन देखते हैं?
(क) अर्थशास्त्री
(ख) वित्त मंत्रालय के योजनाकार
(ग) जनसंख्या शास्त्री
(घ) समाजशास्त्री
उत्तर :
(ग) जनसंख्या शास्त्री
प्रश्न 3.
राजनीतिज्ञ जनसंख्या को किस रूप में देखते हैं?
(क) वोट का भंडार
(ख) लोगों का समूह
(ग) ऑकड़ों का ढेर
(घ) मानव पूँजी
उत्तर :
(क) वोट का भंडार
प्रश्न 4.
परिवार के आकार का प्रभाव किस पर पड़ता है?
(क) शिक्षा पर
(ख) आर्थिक विकास पर
(ग) धार्मिक सोच पर
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 5.
पश्चिमी दृष्टिकोण के अनुसार आर्थिक विकास का अर्थ है
(क) उपभोक्तावाद
(ख) अध्यात्मवाद
(ग) मानवतावाद
(घ) भौतिकवाद
उत्तर :
(घ) भौतिकवाद
प्रश्न 6.
आर्थिक विकास का अर्थ सम्मानपूर्वक जीना है। ऐसा किसके अनुसार है?
(क) भारतीय दृष्टिकोण
(ख) पश्चिमी दृष्टिकोण
(ग) प्राच्य दृष्टिकोण
(घ) सामाजिक दृष्टिकोण
उत्तर :
(क) भारतीय दृष्टिकोण
प्रश्न 7.
जनसंख्या के प्रति किस दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है?
(क) बच्चे परिवार पर बोझ नहीं है।
(ख) जनसंख्या की समस्या को आंदोलन के रूप में लेना।
(ग) जनसंख्या समस्या के हल के लिए सबका सहयोग जरूरी है।
(घ) जनसंख्या की समस्या को आंदोलन के रूप में लेना चाहिए।
उत्तर :
(ख) जनसंख्या की समस्या को आंदोलन के रूप में लेना।
प्रश्न 8.
‘स्त्री शिक्षा समाज में नए प्रकार का चिंतन पैदा करेगी।’-का मिश्र वाक्य होगा-
(क) स्त्री शिक्षा समाज में नया चिंतन लाएगी।
(ख) स्त्री शिक्षा आएगी और समाज में नया चिंतन लाएगी।
(ग) यह स्त्री शिक्षा ही है जो समाज में नए प्रकार का चिंतन पैदा करेगी।
(घ) स्त्री शिक्षा ज़रूरी है और यह समाज में नया चिंतन पैदा करेगी।
उत्तर :
(ग) यह स्त्री शिक्षा ही है जो समाज में नए प्रकार का चिंतन पैदा करेगी।
प्रश्न 9.
‘प्राथमिकता’ में मूल शब्द और प्रत्यय है-
(क) प्राथमिक, ता
(ख) प्राथम, इका, ता
(ग) प्रथम, इक, ता
(घ) प्रथम, ईक, ता
उत्तर :
(ग) प्रथम, इक, ता
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए-
(क) जनसंख्या वृद्धि
(ख) जनसंख्या ‘ की राष्ट्रीय पूँजी
(ग) जनसंख्या-एक आंदोलन
(घ) बढ़ती ज़नसंख्या पर नियंत्रण
उत्तर :
(घ) बढ़ती ज़नसंख्या पर नियंत्रण
20. विविध धर्म एक ही जगह पहुँचने वाले अलग-अलग रास्ते हैं। एक ही जगह पहुँचने के लिए हम अलग-अलग रास्तों से चलें, तो इसमें दुख का कोई कारण नहीं है। सच पूछो तो, जितने मनुष्य हैं, उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इससे अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो, ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है, उसकी अंधता मिटती है। इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज़्यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। मैं इस विश्वास से सहमत नहीं हूँ कि पृथ्वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए मैं विविध धर्मों में पाए जाने वाले तत्व खोजने की और इस बात को पैदा करने की कोशिश कर रहा हूँ कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता का भाव रखें।
मेरी सम्मति है कि संसार के धर्मग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्येक सभ्य पुरुष और स्त्री का कर्तव्य है। अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है, जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो जाता है। दूसरे धर्मों के आदरपूर्ण अध्ययन से हिंदू धर्मग्रंथों के प्रति मेरी श्रद्धा कम नहीं हुई। सच तो यह है कि हिंदू शास्त्रों की मेरी समझ पर उनकी गहरी छाप पड़ी है।
उन्होंने मेरी जीवन-दृष्टि को विशाल बनाया है। सत्य के अनेक रूप होते हैं, इस सिद्धांत को मैं बहुत पसंद करता हूँ। इसी सिद्धांत ने मुझे, एक मुसलमान को उसके अपने दृष्टिकोण से और एक ईसाई को उसके स्वयं के दृष्टिकोण से समझना सिखाया है। जिन अंधों ने हाथी का अलग-अलग तरह से वर्णन किया, वे सब अपनी दृष्टि से ठीक थे, मगर एक-दूसरे की दृष्टि से सब गलत थे और जो आदमी हाथी को जानता था, उसकी दृष्टि से सही भी थे और गलत भी।
जब तक अलग-अलग धर्म मौजूद हैं, तब तक प्रत्येक धर्म को किसी विशेष बाह्य-चिह्न की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन जब बाह्य-चिहन केवल आडंबर बन जाते हैं अथवा अपने धर्म को दूसरे धर्मों से अलग बताने के काम आते हैं, तब वे त्याज्य हो जाते हैं। धर्मों के भ्रातृ-मंडल का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह एक हिंदू को अधिक अच्छा हिंदू, एक मुसलमान को अधिक अच्छा मुसलमान और एक ईसाई को अधिक अच्छा ईसाई बनाने में मदद करे। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना यह नहीं होनी चाहिए-हे ईश्वर, तू उन्हें वही प्रकाश दे, जो तूने मुझे दिया है, बल्कि यह होनी चाहिए-तू उन्हें वह सारा प्रकाश दे, जिसकी उन्हें अपने सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यकता है।
प्रश्न :
(क) लेखक को किस बात में दुख का कोई कारण नज़र नहीं आता है?
(ख) धर्मों के प्रति समभाव रखने के क्या लाभ हैं?
(ग) संसार के अन्य धर्मो का अध्ययन क्यों करना चाहिए?
(घ) लेखक की जीवन-दृष्टि मे कब और क्या बदलाव आया?
(ङ) धर्म-चिह्न कब त्याज्य बन जाते हैं?
(च) धर्मों के भ्रातृमंडल का क्या उद्देश्य होना चाहिए?
(छ) लेखक द्वारा की गई प्रार्थना अन्य प्रार्थनाओं से किस तरह अलग होती है?
(ज) उस सिद्धांत को मैं बहुत पसंद करता हूँ। मिश्रवाक्य में बदलिए।
(झ) विलोम शब्द लिखिए – बाह्य, जीवन।
(ज) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) इस संसार में तरह-तरह के लोग हैं, जिनके अपने-अपने धर्म हैं। लोग एक ही स्थान पर जाने के लिए अलग-अलग धर्म का सहारा लेते हैं, तो इसमें लेखक को आपत्ति का कोई कारण नज़र नहीं आता है।
(ख) धर्मो के प्रति समभाव रखने का लाभ यह है कि इसमें हमारी धर्माधता मिटती है तथा धर्म के प्रति प्रेम ज्ञानमय और अधिक निर्मल तथा शुद्ध बनता है।
(ग) प्रत्येक धर्मावलंबी की इच्छा होती है कि अन्य लोग भी उसके धर्म का आदर करें। उसी तंरह हमे भी दूसरे धर्मों का आदर करने के लिए अन्य धर्मों का आदरपूर्वक अध्ययन करना चाहिए।
(घ) लेखक की जीवन-दृष्टि में उस समय बदलाव आया जब उसने अन्य धर्मों का आदरपूर्वक अध्ययन किया। उससे हिंदू शास्त्रों की उनकी समझ पर गहरी छाप पड़ी है तथा उसकी जीवन-दृष्टि विशाल हुई है।
(ङ) धर्म-चिह्न जब आडंबर बन जाते हैं तथा वे अपने धर्म को अन्य धर्मों से अलग बताने का साधन बन जाते हैं, तब वे त्याज्य बन जाते हैं।
(च) धर्मों के भ्रातृमंडल का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वे प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने-अपने धर्म के अनुसार अधिक अच्छा इनसान बनाने में मदद करें।
(छ) लेखक द्वारा की जाने वाली प्रार्थना में दूसरों के कल्याण की भावना ही निहित नहीं होती, बल्कि वह उनके सर्वोच्च विकास के लिए प्रकाश की कामना करता है। इस प्रकार यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना से अलग होती है।
(ज) मिश्र वाक्य-यही वह सिद्धांत है जिसे मैं बहुत पसंद करता हूँ।
(झ) बाह्य × आंतरिक
जीवन × मृत्यु
(ञ) ‘धर्म के प्रति दृष्टिकोण’ अथवा ‘सच्चाधर्म’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
धर्म का प्रयोग लोग अलग-अलग रास्तों के रूप में …………….. पहुँचने के लिए करते हैं।
(क) अनेक जगह
(ख) एक जगह
(ग) अपनी-अपनी मंजिल तक
(घ) जीवन लक्ष्य तक
उत्तर :
(ख) एक जगह
प्रश्न 2.
हम धर्मों के प्रति समभाव रखकर …………….. दुष्टिकोण अपना सकते हैं।
(क) धार्मिक
(ख) स्वच्छ
(ग) स्वस्थ
(घ) उदारवादी
उत्तर :
(ग) स्वस्थ
प्रश्न 3.
धार्मिक समभाव रखने के संबंध में कौन-सा कथन गलत है?
(क) अपने धर्म के प्रति धार्मिक उदासीनता बढ़ती है।
(ख) अपने धर्म के प्रति अंध-विश्वास खत्म होता है।
(ग) अपने धर्म की रूढ़ियाँ, कुरीतियाँ मिटती हैं।
(घ) हमारा धर्म अधिक सात्विक और निर्मल बन जाता है।
उत्तर :
(क) अपने धर्म के प्रति धार्मिक उदासीनता बढ़ती है।
प्रश्न 4.
दूसरे धमों का आदरपूर्वक अध्ययन करने का लेखक पर क्या असर पड़ा?
(क) हिंदु धर्म के प्रति श्रद्धा पहले-सी ही बनी रही।
(ख) उसकी जीवन दृष्टि उदार हो गई।
(ग) हिंदू शास्त्रों से उसकी जीवन दृष्टि में विशालता आ गई।
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 5.
हम अपने धर्म का आदर कराना चाहते हैं तो सभी धर्मों का आदर करना ………………।
(क) हमारी मजबूरी बन जाती है
(ख) एक धार्मिक कर्म बन जाता है
(ग) एक पवित्र कर्म बन जाता है
(घ) एक पवित्र धर्म बन जाता है
उत्तर :
(ग) एक पवित्र कर्म बन जाता है
प्रश्न 6.
धर्म के बाह्य चिह्न कब त्याज्य बन जाते हैं?
(क) जब वे दिखावा मात्र बन जाएँ।
(ख) जब वे अपने धर्म को अलग दर्शाने लगें
(ग) जब मनुष्य में एकता का प्रयास लगे।
(घ) ‘क’ ‘ख़’ दोनों
उत्तर :
(ख) जब वे अपने धर्म को अलग दर्शाने लगें
प्रश्न 7.
लेखक अपनी प्रार्थना में क्या कामना करता है?
(क) धार्मिक सद्भाव बढ़ जाने की
(ख) सब धमों का आदर करने की
(ग) दूसरों के सवोंच्च विकास के लिए प्रकाश की
(घ) अपने जैसा ही दूसरों को सुखी बनाने की
उत्तर :
(ग) दूसरों के सवोंच्च विकास के लिए प्रकाश की
प्रश्न 8.
जो आदमी हाथी को जानता था, उसकी दृष्टि में सही थे-रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) प्रधान उपवाक्य
(घ) क्रियाविशेषण उपवाक्य
उत्तर :
(क) संज्ञा उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘सहानुभूतिपूर्वक’ में उपसर्ग है-
(क) सहानु
(ख) सहा
(ग) सह
(घ) पूर्वक
उत्तर :
(ग) सह
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) धर्मों के प्रति समभाव
(ख) धर्म के अलग-अलग रास्ते
(ग) अपने धर्म के प्रति गहन आस्था
(घ) धर्म के बाह्य चिह्न कितने आवश्यक
उत्तर :
(क) धर्मों के प्रति समभाव
21. प्रकृति वैज्ञानिक और कवि दोनों की ही उपास्या है। दोनों ही उससे निकटतम संबंध स्थापित करने की चेष्टा करते हैं, किंतु दोनों के दृष्टिकोण में अंतर है। वैज्ञानिक प्रकृति के बाह्य रूप का अवलोकन करता है और सत्य की खोज करता है, परंतु कवि बाह्य रूप पर मुग्ध होकर भावों का तादात्म्य स्थापित करता है। वैज्ञानिक प्रकृति की जिस वस्तु का अवलोकन करता है, उसका सूक्ष्म निरीक्षण भी करता है। चंद्र को देखकर उसके मस्तिष्क में अनेक विचार उठते हैं-इसका तापक्रम क्या है? कितने वर्षों में यह पूर्णत: शीतल हो जाएगा? ज्वार-भाटे पर इसका क्या प्रभाव होता है? किस प्रकार और किस गति से यह सौरमंडल में परिक्रमा करता है और किन तत्वों से इसका निर्माण हुआ है? वह अपने सूक्ष्म निरीक्षण और अनवरत चितन से उसको एक लोक ठहराता है और उस लोक में स्थित ज्वालामुखी पर्वतों तथा जीवनधारियों की खोज करता है।
इसी प्रकार वह एक प्रफुल्लित पुष्प को देखकर उसके प्रत्येक अंग का विश्लेषण करने को तैयार हो जाता है। उसका प्रकृति-विषयक अध्ययन वस्तुगत होता है। उसकी दृष्टि में विश्लेषण और वर्ग-विभाजन की प्रधानता रहती है। वह सत्य और वास्तविकता का पुजारी होता है। कवि की कविता भी प्रत्यक्षावलोकन से प्रस्फुटित होती है। वह प्रकृति के साथ अपने भावों का संबंध स्थापित करता है। वह उसमें मानव-चेतना का अनुभव करके उसके साथ अपनी आंतरिक भावनाओं का समन्वय करता है। वह तथ्य और भावना के संबंध पर बल देता है। वह नग्न सत्य का उपासक नहीं होता। उसका वस्तु-वर्णन हृदय की प्रेरणा का परिणाम होता है, वैज्ञानिक की भाँति मस्तिष्क की यांत्रिक प्रक्रिया नहीं।
प्रश्न :
(क) प्रकृति के प्रति वैज्ञानिक का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
(ख) प्रकृति के प्रति कवि का दृष्टिकोण किस तरह भिन्न होता है?
(ग) वैज्ञानिक, चाँद के विषय में क्या-क्या जानना चाहता है?
(घ) कवि किसी वस्तु को किस दृष्टि से देखता है?
(ङ) ‘वैज्ञानिक सत्य और वास्तविकता का पुजारी होता है।’-पुष्प के उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
(च) प्रकृति-अवलोकन के संबंध में किसकी दृष्टि मस्तिष्क की यांत्रिक प्रक्रिया होती है, किसकी नहीं?
(छ) प्रकृति के तत्वों के प्रति आपको किसका दृष्टिकोण अच्छा लगा और क्यों?
(ज) उपसर्ग, प्रत्यय और मूल शब्द अलग कीजिए-
परिक्रमा, प्रफुल्लित
(इ) ‘वह प्रफुल्लित पुष्प देखकर उसका विश्लेषण करता है।’ संयुक्त वाक्य में बदलिए।
(अ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) वैज्ञानिक, प्रकृति के प्रति अपना विशेष दृष्टिकोण रखता है। वह प्रकृति से निकट संबंध स्थांपित करके उसका बाहरी अवलोकन करते हुए सूक्ष्म निरीक्षण करता है।
(ख) प्रकृति के प्रति कवि भी निकट संबंध स्थापित करता है और उसके बाह्य-रूप पर मुग्ध होकर भावों से तादात्मय बनाता है, जबकि वैज्ञानिक प्रकृति के बाह्य रूप का अवलोकन करता है।
(ग) वैज्ञानिक चाँद को जिज्ञासा भरी दृष्टि से देखता है। वह चाँद का तापमान, ज्वार-भाटे पर इसका प्रभाव, सौरमंडल में परिक्रमा करने की गति, उसका तरीका और उसके तत्वों के बारे में जानना चाहता है।
(घ) कवि किसी वस्तु को देखते हुए उसके साथ भावों का संबंध स्थापित करता है। वह वस्तु पर मानवीय क्रियाएँ आरोपित करता है और अपनी भावनाओं का संबंध स्थापित करता है। वह तथ्य और भावना के संबंध पर बल देता है।
(ङ) वैज्ञानिक एक खिले पुष्प को देखकर उसके प्रत्येक अंग का विश्लेषण करना चाहता है। वह प्रकृति-विषयक वस्तुगत अध्ययन करता है। उसकी दृष्टि में विश्लेषण और वर्ग-विभाजन की प्रधानता होती है। इस प्रकार वैज्ञानिक सत्य और वास्तविकता का पुजारी होता है।
(च) प्रकृति-अवलोकन के संबंध में एक वैज्ञानिक की दृष्टि मस्तिष्क की यांत्रिक प्रक्रिया होती है, जबकि कवि की नहीं।
(छ) प्रकृति के तत्वों के प्रति मुझे वैज्ञानिक का दृष्टिकोण अधिक अच्छा लगा क्योंकि उसकी दृष्टि में विश्लेषण और वर्ग-विभाजन की प्रधानता रहती है। वह सत्य और वास्तविक तथ्यों से संबंध बनाता है।
(ज)
(झ) वह प्रफुल्लित पुष्प देखता है और उसका अवलोकन करता है।
(ब) शीर्षक-‘प्रकृति के उपासक कवि और वैज्ञानिक’ अथवा ‘कवि और वैज्ञानिक की दृष्टि में प्रकृति’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
प्रकृति से अत्यंत नजदीकी संबंध स्थापित करने की चेष्टा कौन करते हैं?
(क) साहित्यकार
(ख) वैज्ञानिक
(ग) ‘क’, ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 2.
वैज्ञानिक जो वस्तु देखता है उसके प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है?
(क) सूक्ष्म निरीक्षण करता है
(ख) लगातार चिंतन करता है
(ग) उसे पूरा लोक सिद्ध करता है
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 3.
चंद्रमा के संबंध में वैज्ञानिक के मन में कौन-सा विचार नहीं उठता?
(क) इसका तापमान कितना होगा?
(ख) यह कितने वर्षों में ठंडा होगा?
(ग) समुद्र से इसका क्या संबंध है?
(घ) ज्वारभाटा इसे कितना प्रभावित करता है?
उत्तर :
(ग) समुद्र से इसका क्या संबंध है?
प्रश्न 4.
वैज्ञानिक किसके हर अंग का विश्लेषण करने को तैयार रहता है?
(क) ज्वालामुखी और पर्वतों के
(ख) पृथ्वी पर उपस्थित जीवधारियों के
(ग) खिले हुए फूल का
(घ) सौरमंडल का
उत्तर :
(ग) खिले हुए फूल का
प्रश्न 5.
वैज्ञानिक के विषय में असत्य कथन है-
(क) वह वर्ग विभाजन करता है।
(ख) वह विश्लेषण को महत्व नहीं देता।
(ग) वह असत्य का पुजारी नहीं होता है।
(घ) वह वास्तविकता को महत्व देता है।
उत्तर :
(ख) वह विश्लेषण को महत्व नहीं देता।
प्रश्न 6.
कवि की कविता तब फूटती है जब वह प्रकृति का …………. अवलोकन करता है।
(क) काल्पनिक
(ख) साक्षात्
(ग) अप्रत्यक्ष
(घ) ‘क’, ‘ग’ दोनों
उत्तर :
(ख) साक्षात्
प्रश्न 7.
कवि प्रकृति में …………………… का अनुभव करता है।
(क) मानव चेतना
(ख) ईश्वरीय चेतना
(ग) प्राकृतिक चेतना
(घ) जड़-पदाथॉं की अचेतना
उत्तर :
(क) मानव चेतना
प्रश्न 8.
‘प्रस्फुटित’ में प्रयुक्त उपसर्ग, मूल शब्द एवं प्रत्यय हैं-
(क) प्रस्फुटि + इत
(ख) प्रस् + फुटित
(ग) प्र + स्फुटि + त
(घ) प्र + स्फुटन + इत
उत्तर :
(घ) प्र + स्फुटन + इत
प्रश्न 9.
‘उसका वस्तु-वर्णन हृदय की प्रेरणा का परिणाम होता है।’ मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) उसका वस्तु-वर्णन ही हुदय की प्रेरणा होता है।
(ख) उसका जो वस्तु-वर्णन है वह हदय की प्रेरणा का परिणाम होता है।
(ग) हुदय की प्रेरणा के कारण उसका वस्तु-वर्णन निकलता है।
(घ) यदि हृदय न होता तो वस्तु-वर्णन न होता।
उत्तर :
(ख) उसका जो वस्तु-वर्णन है वह हदय की प्रेरणा का परिणाम होता है।
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा-
(क) प्रकृति कितनी विचित्र
(ख) प्रकृति और उपासक
(ग) प्रकृति के रहस्य
(घ) प्रकृति के उपासक – कवि और वैज्ञानिक
उत्तर :
(घ) प्रकृति के उपासक – कवि और वैज्ञानिक
22. यह हमारी एकता का ही प्रमाण है कि उत्तर या दक्षिण, चाहे जहाँ भी चले जाइए, आपको जगह-जगह एक ही संस्कृति के मंदिर दिखाई देंगे। एक ही तरह के आदमियों से मुलाकात होगी-जो चंदन लगाते हैं, स्नान-पूजा करते हैं, तीर्थ-प्रत में विश्वास करते हैं अथवा नई रोशनी को अपना लेने के कारण इन बातों को कुछ शंका की दृष्टि से देखते हैं। उत्तर भारत के लोगों का जो स्वभाव है, जीवन को देखने की उनकी जो दृष्टि है, वही स्वभाव और वही दृष्टि दक्षिण वालों की भी है। भाषा की दीवार के टूटते ही एक उत्तर भारतीय और एक दक्षिण भारतीय के बीच कोई भी भेद नहीं रह जाता और वे आपस में एक-दूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं। असल में भाषा की दीवार के आर-पार बैठे हुए भी वे एक ही है। वे एक ही धर्म के अनुयायी और एक ही संस्कृति की विरासत के भागीदार हैं। उन्होंने देश की आज़ादी के लिए एक होकर लड़ाई लड़ी और आज उनकी पार्लियामेंट और शासन-विधान भी एक है।
और जो बात हिंदुओं के बारे में कही जा रही है, बही बहुत दूर तक मुसलमानों के बारे में भी कही जा सकती है। देश के सभी कोनों में बसने वाले मुसलमानों के भीतर जहाँ धर्म को लेकर एक तरह की आपसी एकता है, वहाँ वे संस्कृति की दृष्टि से हिंदुओं के भी बहुत करीब हैं, क्योंक ज्यादा मुसलमान तो ऐसे ही हैं, जिनके पूर्वज हिंदू थे और जो इस्लाम धर्म में जाने के समय अपनी हिंदू-आदतें अपने साथ ले गए। इसके सिवाय अनेक सदियों तक हिंदू-मुसलमान साथ रहते आए हैं और इस लंबी संगति के फलस्वरूप उनके बीच संस्कृति और तहज़ीब की बहुत-सी समान बातें पैदा हो गई हैं, जो उन्हें दिनों-दिन आपस में नज़दीक लाती जा रही हैं।
धार्मिक विश्वास की एकता मनुष्यों की सांस्कृतिक एकता को ज़रूर पुष्ट करती है। इस दृष्टि से एक तरह की एकता तो वह है, जो हिंदू समाज में मिलेगी। लेकिन धर्म के केंद्र से बाहर जो संस्कृति की विशाल परिधि है, उसके भीतर बसने वाले सभी भारतीयों के बीच एक तरह की सांस्कृतिक एकता भी है, जो उन्हें दूसरे देशों के लोगों से अलग करती है। संसार के हर एक देश पर अगर हम अलग-अलग विचार करें, तो हमें पता चलेगा कि प्रत्येक देश की एक निजी सांस्कृतिक विशेषता होती है, जो उस देश के प्रत्येक निवासी की चाल-ढाल, बातचीत, रहन-सहन, खान-पान, तौर-तरीके और आदतों से टपकती रहती है। चीन से आने वाला आदमी विलायत से आने वालों के बीच नहीं छिप सकता और यद्यपि अफ्रीका के लोग भी काले ही होते हैं, मगर वे भारतवासियों के बीच नहीं खप सकते।
प्रश्न :
(क) उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों के बीच किस तरह एकता के दर्शन होते हैं?
(ख) उत्तर और दक्षिण भारतीयों में भेद करने वाला कौन सा तत्व है?
(ग) लेखक उत्तर और दक्षिण भारतीयों को किस आधार पर एक मानता है?
(घ) ऐसे दो तथ्यों का उल्लेख कीजिए जो हिंदुओं और मुसलमानों में निकटता बढ़ाते रहे हैं।
(ङ) हिंदू समाज में किस तरह की एकता मिलती है?
(च) किसी देश की सास्कृतिक एकता के दर्शन कहाँ-कहाँ होते हैं ?
(छ) कौन-सी सांस्कृतिक एकता भारतीयों को दूसरे देश के लोगों से अलग करती है?
(ज) यद्यपि अफ्रीका के लोग काले होते हैं मगर वे भारतवासियों में नहीं छिप सकते।’ सरल वाक्य बनाइए।
(झ) विशेषण बनाइए- प्रमाण, विलायत
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक एक ही संस्कृति के मंदिर मिलते हैं तथा ऐसे लोग मिलते हैं जो चंदन लगाने, पूजा-पाठ करने तथा तीर्थ-व्रत में विश्वास करते हैं। उनकी एक जैसी जीवनदृष्टि और स्वभाव में एकता के दर्शन होते हैं।
(ख) उत्तर और दक्षिण भारतीयों में भेद करने वाला प्रमुख तत्व है-भाषा। उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय की भाषा में पर्याप्त भिन्नता होती है।
(ग) लेखक का मानना है कि उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय एक ही धर्म और सांस्कृतिक विरासत के अनुयायी तथा भागीदार हैं। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया। अब उनकी संसद और शासन का तरीका एक है।
(घ) हिंदू और मुसलमान में निकटता बढ़ाने वाले दो तथ्य हैं-
(i) हिंदू-मुसलमान सैकड़ों सालों तक एक रहे हैं।
(ii) हिंदू-मुस्लिम संस्कृति में काफी निकटता है क्योंकि उनके पूर्वज एक थे।
(ङ) हिंदू समाज में धार्मिक विश्वास की एकता मिलती है, जिससे सांस्कृतिक एकता को मज़बूती मिलती है।
(च) किसी देश की सांस्कृतिक एकता के दर्शन वहाँ रहनेवालों के चाल-चलन, बातचीत करने के ढंग, रहन-सहन के ढंग, खान-पान के तरीके और आदतों में होते हैं।
(छ) धर्म के केंद्र से बाहर की संस्कृति की विशाल परिधि में बसने वाले भारतीयों में एक अलग तरह की सांस्कृतिक एकता है, वह उन्हें अन्य देश के लोगों से अलग करती है।
(ज) सरल वाक्य- अफ्रीका के काले लोग भारतवासियों में नहीं छिप सकते हैं।
(झ) शब्द – विशेषण
प्रमाण – प्रामाणिक
विलायत – विलायती
(ज) ‘विविधता में छिपी एकता’ या ‘हमारी विशेषता – विविधता में एकता।’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
उत्तर से दक्षिण तक जगह-जगह एक ही संस्कृति के मंदिर दिखाई देने से पता चलता है कि ……………।
(क) भारत में हज़ारों मंदिर हैं।
(ख) भारत के लोग धार्मिक हैं।
(ग) भारत में विविधता फैली है।
(घ) भारत की विविधता में एकता छिपी है।
उत्तर :
(घ) भारत की विविधता में एकता छिपी है।
प्रश्न 2.
उत्तर-दक्षिण भारतीयों के बीच आज भी कौन-सी दीवार दिखाई देती है?
(क) धर्म की
(ख) पहनावे की
(ग) भाषा की
(घ) शिक्षा की
उत्तर :
(ग) भाषा की
प्रश्न 3.
लेखक उत्तर और दक्षिण भारतीयों को किस आधार पर एक मानता है?
(क) एक ही धर्म-संस्कृति के अनुयायी होना
(ख) देश को आज़ादी दिलाने में सहभागिता
(ग) संसद और शासन विधान एक होना
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 4.
मुसलमान इनमें से किस दृष्टि से हिंदुओं के निकट हैं?
(क) धार्मिक
(ख) ऐतिहासिक
(ग) आर्थिक
(घ) सांस्कृतिक
उत्तर :
(घ) सांस्कृतिक
प्रश्न 5.
हिंदू-मुसलमानों में जो निकटता बढ़ी है उसका कारण है ……………….।
(क) दोनों के पूर्वजों का एक होना
(ख) इस्लाम धर्मानुयायी हिंदू आदतें साथ ले गए
(ग) वर्षों तक साथ-साथ रहना
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 6.
हर देश की अपनी निजी सांस्कृतिक विशेषता होती है, जिसके संबंध में गलत तथ्य है-
(क) संस्कृति देशवासियों की बातचीत में झलकती है।
(ख) यह खान-पान के तरीके में दिखती है।
(ग) यह उनकी आर्थिक स्थिति में झलकती है।
(घ) यह रहन-सहन में दिखाई देती है।
उत्तर :
(ग) यह उनकी आर्थिक स्थिति में झलकती है।
प्रश्न 7.
अफ्रीका के लोग भारतीयों के बीच किस विशेषता के कारण नहीं छिप पाते हैं?
(क) सांस्कृतिक विशेषता के कारण
(ख) आर्थिक विशेषता के कारण
(ग) कौशल के कारण
(घ) कपड़ों के कारण
उत्तर :
(क) सांस्कृतिक विशेषता के कारण
प्रश्न 8.
यद्यपि अफ्रीका के लोग भी काले होते हैं मगर वे भारतीयों के बीच नहीं छुप सकते हैं। वाक्य का भेद रचना के आधार पर है –
(क) सरल वाक्य
(ख) मिश्रवाक्य
(ग) संयुक्त वाक्य
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(ख) मिश्रवाक्य
प्रश्न 9.
‘स्नान-पूजा’ का विग्रह और समास का नाम है-
(क) स्नान के बाद पूजा-अव्ययीभाव समास
(ख) स्नान के लिए पूजा-तत्पुरुष समास
(ग) स्नान और पूजा-दूवंद्व समास
(घ) स्नान जैसी पूजा-कर्मधारय समास
उत्तर :
(क) स्नान के बाद पूजा-अव्ययीभाव समास
प्रश्न 10.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) एकता का प्रमाण
(ख) एकता और हम
(ग) विविधता में छिपी एकता
(घ) धर्म और विविध संस्कृति
उत्तर :
(ग) विविधता में छिपी एकता
23. जैसा जानकारों ने बताया, कभी वह पेड़ हरा था, उसकी जड़े धरती की नरम-नरम मिद्टी से दबी थीं और उसकी छतनार डालें आकाश में ऐसी फैली हुई थीं, जैसे विशाल पक्षी के डैने और उन डालियों के कोटरों में अनगिनत घोंसले थे। पनाह के नीड़, बसेरे। दूर बियाबाँ से लौटकर पक्षी उनमें बसेरा करते, रात की भीगी गहराई में खोकर सुबह दिशाओं की ओर उड़ जाते।
और मैं जो उस पेड़ के ठूँठपन पर कुछ दुखी हो चुप हो जाता, तो वह जानकार कहता, उसने वह कथा कितनी ही बार कही, आँखों-देखी बात है, इस पेड़ की सघन छाया में कितने बटोहियों ने गए प्राण पाए हैं, कितने ही सूखे प्राण हर हुए हैं। सुनो उसकी कथा, सारी बताता हूँ और उसने बताया दो जलती दोपहरी में मरीचिका की नाचती आग के बीच यह हर-भरा पेड़ झूमा, पत्तों के विस्तृत ताज को सिर पर उठाए। आँधी और तूफ़ान में उसकी डालें एक-दूसरे से टकरातीं, टहनियाँ एक-दूसरे में गुँथ जातीं और जब तपी धरती बादलों की झरती झीसी रोम-रोम से पीती और रोम-रोम सजीव कर उनमें से लता-प्रतानों के अंकुर फोड़ देती, तब पेड़ जैसे मुस्कराता और बढ़ती लताओं को डाली रूपी भुजाओं से जैसे उठाकर भेंट लेता।
उस विशाल तरु में तब बड़ा रस था। उसकी टहनी-टहनी, डाली-डाली, पोर-पोर में रस था, जिसे छलका-छलका वह लता-वल्लरियों को निहाल कर देता। अनंत लताएँ, अनंत वल्लरियाँ पावस में उसके अंग-अंग से, उसकी फूटती संधियों से लिपटी रहतीं और देखने वाले ‘बस उसके सुख को देखते रह जाते। और मेरा वह जानकार बुजुर्ग एक लंबी साँस लेकर थका-सा कह चलता कि तुम क्या जानो, जिसने केवल पावस और वसंत ही देखे हैं, निदाघ और पतझड़ न देख, केवल अंकुर और कोपलें ही फूटती देखी हैं, सूखती साँस न देखी, पीले झड़ते पत्ते न देखे? फिर एक दिन, एक साल कुछ ऐसा हुआ कि जैसे सब कुछ बदल गया।
जहाँ वसंत के आते ही पत्रों के-से कोमल पत्ते उस वृक्ष की टहनियों से हवा में डोलने लगते थे, वहाँ उस साल फिर वे पत्ते न डोले, वे टहनियाँ सूख चलीं। दूर दिशाओं से आकर उस पेड़ की नीड़ों में विश्राम करने वाले पक्षी उसकी छतनार डालों से उड़ गए। जहाँ अनंत-अनंत कोयलें कूका करती थीं। बौराई फुनगियों पर भौरों की काली पंक्तियाँ मँडराया करती थीं, सहसा उस पेड़ का रस सूख चला।
और जैसे ही उस पर बसेरा लेने वाले पक्षी उसे छोड़ चले, कूकती कोयलें, टेरते पपीहे, मैंडराते भौंरे उसके अनजाने हो गए, वैसे ही लता-वल्लरियाँ उसके स्कंध देश से, उसकी फैली मज्रबूत डालियों से, उसकी मद्माती झूमती टहनियों से धीरे-धीरे उतर गई. कुछ सूख गईं, कुछ मर गईं। उस लता-संपदा के बीच फिर भी एक मधुर पुष्पवती पराग-भरी वल्लरी उससे लिपटी रही और ऐसी कि लगता कि प्रकृति के परिवर्तन उस पर असर नहीं करते। वासंती जैसे सारी त्रुटियों में रसभरी वासंती बनी रहती। सहकार वृक्ष से लिपटी वल्लरियों की उपमा कवियों ने अनेकानेक दी हैं, पर वह तो साहित्य और कल्पना की बात थी, उसे कभी चेता न था, पर चेता मैंने उसे अब, जब उस एकांत वल्लरी को उस प्रकांड तरु से लिपटे पाया।
प्रश्न :
(क) पेड़ के बारे मे लेखक को क्या पता चला?
(ख) पेड़ किनका आश्रयदाता बना था और कैसे?
(ग) देखने वाले पेड़ के किस सुख को देखते रह जाते थे?
(घ) पेड़ का रस सूखने पर पेड़ का सब कुछ किस तरह बदल गया?
(ङ) प्रकृति के परिवर्तन से कौन अप्रभावित था और कैसे?
(च) ‘लता संपदा’ किन्हें कहा गया है?
(छ) वर्षा ऋतु का पेड़ पर क्या असर होता था?
(ज) उपवाक्य छाँटकर उसका भेद लिखिए-जानकारों ने बताया कभी वह पेड़ हरा था।
(झ) प्रत्यय और मूल शब्द अलग-अलग लिखिए-ठूँठपन, गहराई
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) पेड़ के बारे में लेखक को यह पता चला कि पेड़ हरा-भरा हुआ करता था। दूर-दूर तक फैली उसकी डालियाँ किसी विशाल पक्षी के खुले पंख जैसी दिखती थीं।
(ख) पेड़ दूर-दूर से उड़कर आने वाले पक्षियों का आश्रयदाता था। थके-माँदे पक्षी पेड़ पर रातभर आराम करते और सुबह अपनी यात्रा पर निकल जाते थे। इस तरह वह आश्रयदाता बन गया था।
(ग) पेड़ जब हरा-भरा और जवान था, तब उसकी डाल-डाल और पोर-पोर में रस था। तब अनेक लता वल्लरियाँ पावस ऋतु में उसके अंग-अंग से लिपटी रहती थी। पेड़ के इस सुख को देखने वाले देखते रह जाते थे।
(घ) पेड़ का रस सूखने पर उसके टहनियाँ सूख गई। पत्तों ने लहराना बंद कर दिया। पेड़ के घोंसलों में विश्राम करने वाले पक्षी उड़ गए। कोयल ने उस पर कूकना और भौरों ने मँडराना बंद कर दिया। इस तरह पेड़ का सब कुछ बदल गया।
(ङ) प्रकृति के परिवर्तन के कारण डालियाँ, पत्ते, पक्षी, भौरे, लता-वल्लरियाँ आदि सबने पेड़ से दूरी बना ली, पर एक वल्लरी, जो फूलों से लदी थी, वह अब भी पेड़ से लिपटी हुई थी।
(च) जब पेड़ हरा-भरा और जवान था तब अनगिनत लता और वल्लरियाँ पेड़ के शरीर और कंधे पर मदमाती झूमती रहती थीं और पेड़ की संपदा के रूप में उसकी सुंदरता बढ़ाती थीं। इन्हें ही लता संपदा कहा गया है।
(छ) वर्षा ऋतु में पेड़ की डालियाँ एक-दूसरे से टकराती और गुँथ जाती थीं। तब पेड़ धरती से अंकुरित होती और बढ़ती लताओं को अपनी डालियों के सहारे उठा लिया करता था और मुसकरा उठता था।
(ज) आश्रित उपवाक्य – कभी वह पेड़ हरा था।
भेद – संज्ञा उपवाक्य।
(झ) शब्द – प्रत्यय – मूल शब्द
ठूँठपन – पन – ठूँठ
गहराई – आई – गहरा
(ञ) शीर्षक-ढूँठा पेड़।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
किसी समय पेड़ की छतनार डालियाँ ऐसे दिखती थीं जैसे –
(क) विशाल छत जैसी
(ख) विशाल तंबू जैसी
(ग) विशाल पक्षी जैसी
(घ) विशाल पक्षी के खुले पंखों जैसी
उत्तर :
(घ) विशाल पक्षी के खुले पंखों जैसी
प्रश्न 2.
पेड़ के संबंध में असत्य कथन है-
(क) कभी उस पर बहुत से घोंसले थे।
(ख) यात्री उसकी छाया में विश्राम करते थे।
(ग) दूर-दूर से आए पक्षी उस पर दिन भर चहचहाया करते थे।
(घ) थके-हारे पक्षी उसकी शाखाओं पर रात भर आराम करते थे।
उत्तर :
(ग) दूर-दूर से आए पक्षी उस पर दिन भर चहचहाया करते थे।
प्रश्न 3.
मरीचिका की नाचती आग किसे कहा गया है?
(क) हरी-भरी धरती को
(ख) धरती पर लगी आग को
(ग) तेज़ धूप वाली दोपहरी में जलती धरती को
(घ) थके-हारे यात्रियों को
उत्तर :
(ग) तेज़ धूप वाली दोपहरी में जलती धरती को
प्रश्न 4.
आँधी तूफान में पेड़ की डालियाँ क्या करती थीं?
(क) आपस में टकराती थीं
(ख) परस्पर उलझ जाती थीं
(ग) अपने पत्ते-फल गिरा देती थीं
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 5.
लता-प्रतानों के अंकुर कौन फोड़ देती थी?
(क) धरती
(ख) बादल
(ग) वर्षा
(घ) पेड़ की डालियाँ
उत्तर :
(क) धरती
प्रश्न 6.
पेड़ का रस सूखने पर क्या नहीं हुआ?
(क) हरे-हरे पत्ते नहीं लहराए।
(ख) पक्षी उसकी डाले छोड़कर चले गए।
(ग) पेड़ की डालियाँ सूख गई।
(घ) अनंत-अनंत कोयलें कूकने लगीं।
उत्तर :
(घ) अनंत-अनंत कोयलें कूकने लगीं।
प्रश्न 7.
लेखक ने सचेत होने पर देखा कि
(क) पेंड़ पर अनेक वल्लरियाँ फैली हैं
(ख) पेड़ की डालियों से सारी लताएँ गायब हो गई हैं।
(ग) फूलों वाली एक लता अब भी पेड़ से लिपटी है।
(घ) बहुत सारी लताएँ हरी-भरी हैं।
उत्तर :
(ग) फूलों वाली एक लता अब भी पेड़ से लिपटी है।
प्रश्न 8.
‘लेखक उस पेड़ का ठूँठपन देख दुखी हो चुप हो जाता।’ का संयुक्त वाक्य होगा-
(क) लेखक से पेड़ का ठूँठपन नहीं देखा जाता था।
(ख) लेखक उस पेड़ का ठूँठपन देखता और दुखी हो चुप हो जाता।
(ग) जैसे ही लेखक ने पेड़ का ठूँठपन देखा वह दुखी हो चुप हो गया।
(घ) यद्यपि लेखक ने पेड़ का ठूँठपन देखा तथापि वह दुखी हो चुप हो गया।
उत्तर :
(ख) लेखक उस पेड़ का ठूँठपन देखता और दुखी हो चुप हो जाता।
प्रश्न 9.
‘अनंत-अनंत कोयलें’ में रेखांकित अंश का अर्थ है-
(क) आकाश में उड़ने वाली
(ख) दूर-दूर तक जाने वाली
(ग) अनगिनत, असंख्य
(घ) असीमित दूरी से आने वाली
उत्तर :
(ग) अनगिनत, असंख्य
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) ठूँठा आम
(ख) पेड़ और पक्षी
(ग) पक्षियों का सहारा आम
(घ) पेड़ और लता-वल्लरियाँ
उत्तर :
(क) ठूँठा आम
24. तत्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवनयापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह परावलंबी हो-माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता।
बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारू रूप से नहीं चल रहा, उसमें यदि वह जीवन-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्यपथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही उसके अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह भारवाही गर्द्भ बन जाता है या पूँह-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकोपार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति ‘कु’ से ‘सु’ बनता है; सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है।
वर्तमान शिक्षा के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए, जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिप्कृत एवं अलंकृत करती हो।
ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद् खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने ‘अन्न’ से ‘आनंद ‘ की ओर बढ़ने को ‘विद्या का सार’ कहा था, जो सर्वथा समीचीन ही था।
प्रश्न :
(क) मनुष्य के लिए पहले प्रकार की विद्या का क्या महत्व है?
(ख) विद्या हमें किस प्रकार जीना सिखाती है?
(ग) लेखक को हमारे देश की विद्या का रूप विकृत क्यों लगता है?
(घ) लेखक ने शिक्षा-प्रणाली की किन कमियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है?
(ङ) सर्वागीण विकास के लिए छात्र को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए?
(च) शिक्षा के क्रम में बदलाव करना किसके समान होगा?
(छ) लेखक को कौन-सी बात उचित लगती है?
(ज) ‘हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता है।’ सरल वाक्य मे बदलिए।
(झ) विग्रह कर समास का नाम लिखिए- सत्यपथ, पूँछ-सींग
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) पहले प्रकार की विद्या मनुष्य को जीवनयापन के लिए कमाना सिखाती है। इसके बिना जीवन का निर्वाह संभव नहीं है। इस तरह यह विद्या मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
(ख) मनुष्य कमाई करके भले ही धनार्जन कर ले पर विद्या ही मनुष्य को सुचारू रुप से जीने का ढंग प्रदान करती है। विद्या से ही हमें वह शक्ति मिलती है, जो हमें सत्यपथ की ओर ले जाती है।
(ग) लेखक को हमारे देश की विद्या का रूप इसलिए विकृत लगता है क्योंकि स्कूल-कॉलेज से निकला छात्र जीविका कमाने लायक नहीं बन पाता है न ही वह संस्कारवान हो पाता है।
(घ) हमारी शिक्षा-प्रणाली में कला, शिल्प, प्रैद्योगिकी आदि की शिक्षा की कमी होने से स्नातक लोग भी रोटी-रोजी कमाने लायक नहीं बन पाते हैं। इस कमी की ओर लेखक ने ध्यान आकर्षित किया है।
(ङ) छात्र के सर्वागीण विकास के लिए उसे जो शिक्षा दी जानी चाहिए, वह आवश्यक, उपयोगी और जीवन को परिष्कृत और अलंकृत करने वाली होनी चाहिए, जिससे वह समाज के लिए उपयोगी नागरिक बन सके।
(च) शिक्षा के क्रम में बदलाव करने से मानव जीवन सुंदर नहीं बन पाएगा। यह बदलाव उसी तरह होगा जैसे भवन की छत पहले बनाना फिर नौंव बनाने का प्रयास करना।
(छ) लेखक को प्राचीन भारतीय दार्शनिकों की वह बात अच्छी लगती है जिसमें उन्होंने अन्न से आनंद की ओर बढ़ने को ‘विद्या का सार’ कहा था, जो पूरी तरह ठीक थी।
(ज) प्राप्त की जा रही विद्या की विशेषताओं को हम सर्वथा नकार नहीं सकते हैं।
(झ) सत्यपथ सत्य का पथ संबंध तत्पुरुष समास
पूँछ-सींग पूँछ और सींग द्वंद्व समास
(ज) ‘जीवन में विद्या की महत्ता’ अथवा ‘शिक्षा के विभिन्न सोपान’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
व्यक्ति इनमें से किस पर आश्रित रहकर जीवन बिताना चाहता है?
(क) अपने माता-पिता पर
(ख) अपने परिवार के सदस्यों पर
(ग) अपनी जाति और समाज पर
(घ) इनमें से किसी पर भी नहीं
उत्तर :
(घ) इनमें से किसी पर भी नहीं
प्रश्न 2.
विद्या के बिना जीवन जीना हो जाता है।
(क) सार्थक
(ख) निरर्थक
(ग) चिंतामुक्त
(घ) पहाड़ जैसा
उत्तर :
(ख) निरर्थक
प्रश्न 3.
किसी व्यक्ति के जीवन को मानव जीवन कब कहा जा सकता है?
(क) जब जीवन को सत्पथ पर अग्रसर करने की जीवन शक्ति हो।
(ख) जब व्यक्ति देश, समाज एवं जाति के लिए कुछ कार्य करे।
(ग) जब व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए परिश्रम करे।
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों
प्रश्न 4.
दूसरी विद्या के विकृत होने का परिणाम है-
(क) छात्रों द्वारा शिक्षा में रुचि न लेना
(ख) छात्रों का भविष्य में जीविकोपार्जन न कर पाना
(ग) छात्रों का संस्कारवान होते जाना
(घ) छात्रों का सुसभ्य और सुसंस्कृत हो जाना
उत्तर :
(ख) छात्रों का भविष्य में जीविकोपार्जन न कर पाना
प्रश्न 5.
लेखक को उच्च शिक्षा में क्या कमी नज़र आती है?
(क) सुशिक्षित बनाने की कमी
(ख) दृष्टिकोण विकसित करने की कमी
(ग) कला, शिल्प की शिक्षा की कमी
(घ) बृहस्पति न बना पाने की कमी
उत्तर :
(ग) कला, शिल्प की शिक्षा की कमी
प्रश्न 6.
भारतीथ विद्यार्थियों को दी जाने वाली शिक्षा का कौन-सा क्रम उपयुक्त है?
(क) आवश्यक, उपयोगी, जीवन को परिष्कृत करने वाली
(ख) उपयोगी, आवश्यक, जीवन को परिष्कृत करने वाली
(ग) जीवन को परिष्कृत करने वाली, उपयोगी, आवश्यक
(घ) आवश्यक, जीवन को परिष्कृत करने वाली, उपयोगी
उत्तर :
(क) आवश्यक, उपयोगी, जीवन को परिष्कृत करने वाली
प्रश्न 7.
भारतीय दार्शनिकों के अनुसार ‘विद्या का सार’ क्या है?
(क) आनंद से अन्न की ओर
(ख) आनंद से मोक्ष की ओर बढ़ना
(ग) अन्न से आनंद् की ओर बढ़ना
(घ) अन्न और आनंद
उत्तर :
(ग) अन्न से आनंद् की ओर बढ़ना
प्रश्न 8.
‘चारु प्रासाद’ में चारु का अर्थ है-
(क) चार
(ख) विशाल
(ग) छोटा
(घ) सुंदर
उत्तर :
(घ) सुंदर
प्रश्न 9.
यदि इस क्रम में व्याघात आया तो मानव जीवन का चारु प्रसाद खड़ा करना कठिन हो जाएगा। – रचना के आधार पर वाक्य भेद हैं-
(क) सरल वाक्य
(ख) संयुक्त वाक्य
(ग) मिश्र वाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ग) मिश्र वाक्य
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) जीवन में विद्या का महत्व
(ख) जीवन और शिक्षा
(ग) भारतीय शिक्षाविद्
(घ) शिक्षा के प्रकार
उत्तर :
(क) जीवन में विद्या का महत्व
25. प्रजातंत्र के तीन मुख्य अंग हैं-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। प्रजातंत्र की सार्थकता एवं दृढ़ता को ध्यान में रखते हुए और जनता के प्रहरी होने की भूमिका को देखते हुए, मीडिया (दृश्य, श्रव्य और मुद्रित) को प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है। समाचार-माध्यम या मीडिया को पिछले वर्षों में पत्रकारों और समाचार-पत्रों ने एक विश्वसनीयता प्रदान की है और इसी कारण विश्व में मीडिया एक अलग शक्ति के रूप में उभरा है। कार्यपालिका और विधायिका की समस्याओं, कार्य-प्रणाली और विसंगतियों की प्राय: चर्चा होती रहती है और वे सर्व-साधारण में विशेष चर्चा में रहते ही हैं।
इसमें समाचार-पत्र, रेडियो और टी॰वी॰ समाचार अपनी टिप्पणी के कारण चर्चा को आगे बढ़ाने में योगदान करते हैं, पर न्यायपालिका के अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद उसके बारे में कम ही चर्चा होती है। ऐसा केवल अपने देश में ही नहीं, अन्य देशों में भी कमोबेश यही स्थिति है। स्वराज-प्राप्ति के बाद और एक लिखित संविधान के देश में लागू होने के उपरांत लोकतंत्र के तीनों अंगों के कर्तव्यों, अधिकारों और दायित्वों के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ी है। संविधान-निर्माताओं का उद्देश्य रहा है कि तीनों अंग परस्पर तालमेल से कार्य करेंगे। तीनों के पारस्परिक संबंध भी संविधान द्वारा निर्धारित है, फिर भी समय के साथ-साथ कुछ समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। आज लोकतंत्र यह महसूस करता है कि न्यायपालिका में भी और अधिक पारदर्शिता हो, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़े। ‘जिस देश में पंचों को परमेश्वर मानने की परंपरा हो, वहाँ न्यायमूर्तियों पर आक्षेप दुर्भाग्यपूर्ण है।’
प्रश्न :
(क) प्रजातंत्र का चौथा स्तभ किसे कहा जाता है? इसके अंतर्गत कौन-कौन से माध्यम आते हैं?
(ख) मीडिया एक अलग शक्ति के रूप में क्यों उभरा है?
(ग) सर्वसाधारण की चर्चा का विषय क्या-क्या होता है?
(घ) मीडिया में किसकी चर्चा कम होती है और क्यों?
(ङ) जनता की जागरूकता कब से, किनमें बढ़ी है?
(च) लोकतंत्र न्यायपालिका में पारदर्शिता क्यों लाना चाहता है?
(छ) हमारे देश में परमेश्वर किसे माना जाता है और क्यों?
(ज) उपसर्ग और प्रत्यय पृथक कर मूल शब्द लिखिए: दुर्भाग्यपूर्ण, पारस्परिक
(झ) ‘न्यायपालिका में अधिक पारदर्शिता हो, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़े।’ सरल वाक्य बनाइए।
(ज) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) प्रजातंत्र की सार्थकता एवं दृढ़ता को ध्यान में रखकर मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। इसके अंतर्गत श्रव्य, दृश्य और मुद्रित माध्यम आते हैं।
(ख) मीडिया को पिछले वर्षों में पत्रकारों और समाचार-पत्रों ने एक विश्वसनीयता प्रदान की है, इस कारण विश्व में मीडिया एक शक्ति के रूप में उभरा है।
(ग) सर्वसाधारण की चर्चा का विषय कार्यपालिका और विधायिका की समस्याएँ, इनकी कार्यप्रणाली और विसंगतियाँ होती हैं। समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न इस चर्चा में योगदान देते हैं।
(घ) मीडिया में न्यायपालिका की चर्चा कम होती है क्योंकि न्यायपालिका में पारदर्शिता अधिक होती है। इसके अलावा वह अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करके मीडिया को दबा देता है
(ङ) देश को आज़ादी मिलने के बाद जब देश में एक लिखित संविधान लागू हुआ तबसे लोकतंत्र के तीनों अंगों के कर्तव्य, अधिकार और दायित्वों के बारे में जनता की जागरूकता बढ़ी है।
(च) लोकतंत्र, न्यायपालिका में इसलिए पारदर्शिता लाना चाहता है क्योंकि न्यायपालिका ही लोकतंत्र की रक्षा करती है, परंतु अब तो न्यायधीशों पर आक्षेप लगना एक सामान्य-सी बात होती जा रही है।
(छ) हमारे देश में पंचों को परमेश्वर माना जाता है क्योंक ईश्वर के बराबर की कोटि में आने पर वे निष्पक्ष निर्णय देते हैं।
(ज)
(झ) न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ाने के लिए उसमें अधिक पारदर्शिता होनी चाहिए।
(ब) ‘प्रजातंत्र के मुख्य अंग’ अथवा ‘मीडिया और लोकतंत्र’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ किसे माना जाता है?
(क) कार्यपालिका
(ख) न्यायपालिका
(ग) मीडिया
(घ) विधायिका
उत्तर :
(ग) मीडिया
प्रश्न 2.
लोगों की विशेष चर्चा के केंद्र में कौन रहता है?
(क) कार्यपालिका की कार्यप्रणाली
(ख) कार्यपालिका की विसंगतियाँ
(ग) कार्यपालिका एवं विधायिका की विसंगतियाँ, समस्याएँ एवं कार्यप्रणाली
(घ) विधायिका की समस्याएँ एवं कार्यप्रणाली
उत्तर :
(घ) विधायिका की समस्याएँ एवं कार्यप्रणाली
प्रश्न 3.
जनसाधारण की चर्चा पर अपनी टिप्पणी कौन देता है?
(क) रेडियो
(ख) समाचार-पत्र
(क) टेलीविज़न के समाचार
(घ) क, ख. ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख. ग तीनों
प्रश्न 4.
कर्तव्य, अधिकार और दायित्व किसके अंग हैं?
(क) मीडिया
(ख) लोकतंत्र
(ग) न्यायपालिका
(घ) कार्यपालिका
उत्तर :
(ख) लोकतंत्
प्रश्न 5.
न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ाने के लिए क्या आवश्यक है?
(क) पारस्परिक संबंध
(ख) शक्ति संपन्नता
(ग) पारदर्शिता
(घ) कार्य-कुशलता
उत्तर :
(ग) पारदर्शिता
प्रश्न 6.
आज मीडिया किस रूप में हमारे सामने हैं?
(क) श्रव्य
(ख) दृश्य
(ग) प्रिंट
(घ) क, ख, ग, तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग, तीनों
प्रश्न 7.
इनमें से किस बात को दुर्भागयपूर्ण माना गया है ?
(क) तीनों अंगों में तालमेल न होना
(ख) न्यायाधीशों पर आरोप लगाना
(ग) पंच को परमेश्वर मानना
(घ) न्यायाधीशों का पंच न बन पाना
उत्तर :
(ख) न्यायाधीशों पर आरोप लगाना
प्रश्न 8.
भारत वह देश है जहाँ पंचों को परमेश्वर माना जाता था-वाक्य में रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘उद्देश्य’ में प्रयुक्त उपसर्ग है-
(क) उद्
(ख) उत्
(ग) उत
(घ) उद्द
उत्तर :
(ख) उत्
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) प्रजातंत्र और हम
(ख) मीडिया और लोकतंत्र
(ग) पंच-परमेश्वर
(घ) न्यायपालिका की प्रतिष्ठा
उत्तर :
(ख) मीडिया और लोकतंत्र
26. संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है। संस्कृति के मूल उपादान तो प्राय: सभी सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा तक समान रहते हैं, किंतु बाह्य उपदानों में अंतर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परपरा से संपृक्त बनाती है, अपनी रीति-नीति की संपदा से विच्छिन्न नहीं होने देती। आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर अति सुलभ हो गए हैं, संस्कृतियों का पारस्परिक संर्ष भी शुरू हो गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आतंक ने हमें स्वयं अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु बना दिया है।
हमारी आस्था डिगने लगी है। यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है। अपनी संस्कृति को छोड़, विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो ठेस पहुँच रही है, वह किसी राष्ट्रेपीमी, जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं है। भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अतः आज के वैज्ञानिक युग में हम किसी भी विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे, किंतु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा करके नहीं। यह परावलंबन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य की आलोकप्रदायिनी किरणों से पौधे को चाहे जितनी जीवन-शक्ति मिले, कितु अपनी ज़मीन और अपनी जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता। अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।
प्रश्न :
(क) किसी व्यक्ति के लिए राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का क्या महत्व है?
(ख) विभिन्न संस्कृतियों का संघर्ष शुरू होने का क्या कारण रहा है?
(ग) हमारी संस्कृति पर विदेशी प्रभाव पड़ने का क्या परिणाम हुआ?
(घ) हमारे राष्ट्रीय गौरव को कब क्षति पहुँचती है?
(ङ) विदेशी संस्कृति के तत्वों को अपनाते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
(च) सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा करने से हम किसके समान नष्ट हो जाएँगे?
(छ) संस्कृतियों के निर्माण में किनका योगदान होता है?
(ज) उपसर्ग, प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग करके लिखिए – विदेशी, अविवेकी।
(झ) मिश्र वाक्य में बदलिए – भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता है।
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) किसी व्यक्ति के लिए राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का महत्व यह है कि वह व्यक्ति को राष्ट्र की परंपरा से संपृक्त बनाती है तथा अपने रीति-रिवाजों से अलग नहीं होने देती।
(ख) वर्तमान युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर अत्यंत सुगम हो गए हैं, इसलिए उनमें पारस्परिक संघर्ष शुरू हो गया है।
(ग) हमारी संस्कृति पर विदेशी प्रभाव पड़ने का परिणाम यह हुआ कि हम अपनी ही संस्कृति के प्रति शंकालु हो गए और हमारी आस्था डिगने लगी है।
(घ) हमारे राष्ट्रीय गौरव को तब क्षति पहुँचती है जब हम अपनी संस्कृति को छोड़कर विदेशी संस्कृति का बिना सोचे-समझे अंधानुकरण करने लगते हैं।
(ङ) आज के वैज्ञानिक युग में किसी विदेशी संस्कृति के तत्वों को ग्रहण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जीवंत तत्वों को ग्रहण तो करें पर इससे अपनी सांस्कृतिक निंधि की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।
(च) सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा करने से हम ऐसे जड़-विहीन पौधे के समान हो जाएँगे जिसे सूर्य की किरणें भरपूर शक्ति देकर भी नहीं बचा पाती हैं और वह नष्ट हो जाता है।
(छ) संस्कृतियों के निर्माण में किसी सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है।
(ज)
(झ) मिश्र वाक्य-यही भारतीय संस्कृति है जिसमें त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता है।
(ब) शीर्षक-संस्कृति का संघर्ष अथवा भारतीय संस्कृति का वैचारिक संघर्ष।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
संस्कृति की रचना में इनमें से किसका हाथ होता है?
(क) देश का
(ख) जाति का
(ग) धर्म का
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 2.
रीति-नीति की संपदा से हमें कौन अलग नहीं होने देता?
(क) संस्कृति
(ख) सभ्यता
(ग) हमारे विचार
(घ) हमारे कर्तव्य
उत्तर :
(क) संस्कृति
प्रश्न 3.
वर्तमान समय में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के ………………… अवसर आसान हो जाते हैं।
(क) बातचीत के
(ख) आदान-प्रदान के
(ग) मेल-जोल के
(घ) आवागमन के
उत्तर :
(ग) मेल-जोल के
प्रश्न 4.
अपनी संस्कृति के प्रति हमारे शंकाग्रस्त होने का कारण क्या है।
(क) स्वदेशी प्रभाव
(ख) विदेशी प्रभाव
(ग) सभ्यता का प्रभाव
(घ) भौतिकवाद का प्रभाव
उत्तर :
(ख) विदेशी प्रभाव
प्रश्न 5.
आज समाज के कुछ लोगों द्वारा जो विदेशी संस्कृति का अनुकरण करते हैं। इससे ……………।
(क) राष्ट्रीय गौरव बढ़ जाता है
(ख) राष्ट्रीय गौरव को चोट पहुँचती है।
(ग) राष्ट्रीय गौरव अपने चरम पर पहुँच जाता है।
(घ) राष्ट्रीय गौरव विदेशों के गौरव के समान उन्नत हो जाता है।
उत्तर :
(ख) राष्ट्रीय गौरव को चोट पहुँचती है।
प्रश्न 6.
किसी विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण करते समय हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?
(क) अपनी संस्कृति को भूल जाना चाहिए।
(ख) अपनी सांस्कृतिक निधि का ध्यान बनाए रखना चाहिए।
(ग) अपनी संस्कृति का ही गुणगान करना चाहिए।
(घ) अपनी सांस्कृतिक निधि की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए।
उत्तर :
(ख) अपनी सांस्कृतिक निधि का ध्यान बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 7.
इनमें से वैचारिक दुर्बलता का फल कौन-सा है?
(क) अपनी संस्कृति के प्रति शंकित होना
(ख) संस्कृति के प्रति आस्था कमज़ोर होना
(ग) विदेशी संस्कृति से दूर ही रहना
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 8.
‘जड़-विहीन’ का विग्रह एवं समास का नाम है-
(क) जड़ से विहीन-तत्पुरुष समास
(ख) जड़ और विहीन-द्वंद्व समास
(ग) जड़ जैसा विहीन-कर्मधारय समास
(घ) जड़ है जो विहीन-बहुव्रीहि समास
उत्तर :
(क) जड़ से विहीन-तत्पुरुष समास
प्रश्न 9.
‘आलोक प्रदायिनी’ का अर्थ है-
(क) अन्य लोक तक जाने वाली
(ख) प्रकाश देने वाली
(ग) लोक तक दे देना
(घ) प्रकाश को लोक तक ले जाने वाली
उत्तर :
(ख) प्रकाश देने वाली
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-
(क) भारतीय संस्कृति का महत्व
(ख) भारतीय संस्कृति और हम
(ग) भारतीय संस्कृति का वैचारिक संघर्ष
(घ) भारतीय संस्कृति का महत्ता
उत्तर :
(ग) भारतीय संस्कृति का वैचारिक संघर्ष
27. विश्व के प्राय: सभी धर्मों में अहिंसा के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। भारत के सनातन हिंदू धर्म और जैन धर्म के सभी ग्रंथों में अहिंसा की विशेष प्रशंसा की गई है। ‘अष्टांग योग’ के प्रवर्तक पतंजलि ऋषि ने योग के आठों अंगों में प्रथम अंग ‘यम’ के अंतर्गत ‘अहिंसा’ को प्रथम स्थान दिया है। इसी प्रकार ‘गीता’ में भी अहिंसा के महत्व पर जगह-जगह प्रकाश डाला गया है। भगवान महावीर ने अपनी शिक्षाओं का मूलाधार अहिंसा को बताते हुए ‘जियो और जीने दो’ की बात कही है। अहिंसा मात्र हिंसा का अभाव ही नहीं, अपितु किसी भी जीव का संकल्पपूर्वक वध नहीं करना और किसी जीव या प्राणी को अकारण दुख नहीं पहुँचाना भी है।
ऐसी जीवन-शैली अपनाने का नाम ही ‘अहिंसात्मक जीवन-शैली’ है। अकारण या बात-बात में क्रोध आ जाना हिंसा की प्रवृत्ति का एक प्रार्भिक रूप है। क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है, वह उसकी बुद्धि का नाश करके उसे अनुचित कार्य करने को प्रेरित करता है, परिणामतः दूसरों को दुख और पीड़ा पहुँचाने का कारण बनता है। सभी प्राणी मेरे लिए मित्रवत हैं। मेरा किसी से बैर नहीं है, ऐसी भावना होने पर अहं जनित क्रोध समाप्त हो जाएगा और हमारे मन में क्षमा का भाव पैदा होगा।
क्षमा का यह उदात्त भाव हमें हमारे परिवार से सामंजस्य बनाने व पारस्परिक प्रेम को बढ़ावा देने में अहं भूमिका निभाता है। हमें ईर्प्या तथा द्वेष रहित होकर लोभवृत्ति का त्याग करते हुए संयमित खान-पान तथा व्यवहार एवं क्षमा की भावना को जीवन में उचित स्थान देते हुए, अहिंसा का एक ऐसा जीवन जीना है कि हमारी जीवन-शैली एक अनुकरणीय आदर्श बन जाए।
प्रश्न :
(क) विश्व के किन-किन ग्रंथों में अहिंसा को महत्व दिया गया है ?
(ख) अहिंसात्मक जीवन-शैली से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(ग) भगवान महावीर ने अहिंसा को बढ़ावा कैसे दिया है?
(घ) क्रोध किस तरह दूसरों को पीड़ा पहुँचाने का कारण बन जाता है?
(ङ) हमारे मन में क्षमा का भाव कब उत्पन्न हो सकता है ?
(च) मनुष्य अपनी जीवन-शैली को किस तरह अनुकरणीय बना सकता है?
(छ) हिंसा का प्रारंभिक रूप क्या है?
(ज) संधि-विच्छेद कीजिए- मूलाधार, अष्टांग।
(झ) उपवाक्य और उसका भेद लिखिए- ऐसा जीवन जीना है कि हमारी जीवन-शैली अनुकरणीय बन जाए।
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) विश्व के अनेक ग्रंथों, जैसे- हिंदू धर्म और जैन धर्म के सभी ग्रंथ, पतंजलि ऋषि के अष्टांग योग और गीता आदि में अहिंसा का महत्व बताया गया है।
(ख) किसी भी जीव का संकल्पपूर्वक वध न करना और किसी जीव या प्राणी को अकारण दुख न पहुँचाना भी अहिंसा है। ऐसी जीवन-शैली ही अहिंसात्मक जीवन-शैली है।
(ग) भगवान महावीर ने अपनी शिक्षाओं का मूल आधार अहिंसा बताया है। उन्होंने लोगों से ‘जियो और जीने दो’ की बात कहकर अहिंसा को महत्व दिया है।
(घ) क्रोध हिंसा की प्रवृत्ति का प्रारंभिक रूप है। यह मनुष्य को अंधा बनाकर उसकी बुद्धि का नाश करता है और अनुचित कार्य करने तथा दूसरों को पीड़ा पहुँचाने का कारण बन जाता है।
(ङ) हमारे मन में क्षमा का भाव तब उत्पन्न हो सकता है जब हमारे मन में सभी प्राणियों को मित्रवत मानने, किसी से बैर न होने जैसे भाव हों और अहंजनित क्रोध समाप्त हो जाए।
(च) मनुष्य क्षमाशील बनकर प्रेम को बढ़ावा दे, ईष्य्या, द्वेष तथा लोभ का त्याग कर अपने व्यवहार को संयमित करते हुए अहिंसा का पालन करे तो अपनी जीवन-शैली को अनुकरणीय बना सकता है।
(छ) बिना किसी कारण के बात-बात में क्रोध आ जाना हिंसा की प्रवृत्ति का प्रारंभिक रूप है।
(ज) मूलाधार – मूल + आधार
अष्टांग – अष्ट + अंग
(झ) उपवाक्य – हमारी जीवन-शैली अनुकरणीय बन जाए।
भेद – संज्ञा उपवाक्य
(ज) शीर्षक – अहिंसा का महत्व।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
‘यम’ के अंतर्गत अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है। यह अष्टांग का कौन-सा अंग है?
(क) पहला
(ख) तीसरा
(ग) पाँचवाँ
(घ) आठवाँ
उत्तर :
(क) पहला
प्रश्न 2.
अहिंसा की प्रशंसा इनमें से किस धर्म में की गई है?
(क) हिंदू धर्म
(ख) जैन धर्म
(ग) गीता
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 3.
‘जियो और जीने दो’ की बात इनमें से किसने कही है?
(क) भगवान महावीर
(ख) गौतम बुद्ध
(ग) वेद व्यास
(घ) पतंजलि
उत्तर :
(क) भगवान महावीर
प्रश्न 4.
अहिंसात्मक जीवन-शैली के अंतर्गत आने वाला तथ्य किस विकल्प में है?
(क) हिंसा का भाव अहिंसा है।
(ख) किसी जीव का संकल्पपूर्ण वध न करना
(ग) जीव या प्राणी को अकारण दुख नहीं पहुँचाना
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 5.
हिंसा की प्रवृत्ति का प्रारंभिक रूप क्या है ?
(क) किसी का दिल दुखाना
(ख) बात-बात पर क्रोध करना
(ग) किसी को कटु बातें कह देना
(घ) किसी प्राणी के प्राण ले लेना
उत्तर :
(ख) बात-बात पर क्रोध करना
प्रश्न 6.
क्रोध के संबंध में कौन-सी बात सत्य है?
(क) क्रोध में व्यक्ति अंधा हो जाता है।
(ख) यह दूसरों को दुख पहुँचाने का कारण है।
(ग) क्रोध अनुचित कार्य करने की प्रेरणा देता है।
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 7.
मनुष्य पारिवारिक सामंजस्य और पारस्परिक प्रेम को किस तरह बढ़ा सकता है?
(क) संतोषी प्रकृति धारण करके
(ख) जीवन में अहिंसा अपनाकर
(ग) जीवन में क्षमाशील बनकर
(घ) खान-पान संयमित कर
उत्तर :
(ग) जीवन में क्षमाशील बनकर
प्रश्न 8.
‘ऐसी जीवन-शैली अपनाने का नाम ही अहिंसात्मक जीवन-शैली है’-वाक्य का मिश्र वाक्य होगा-
(क) यही जीवन-शैली अहिंसात्मक जीवन-शैली कहलाती है।
(ख) यही जीवन-शैली है और उसे अहिंसात्मक जीवन-शैली कहते हैं।
(ग) यह वह जीवन-शैली है जिसे अहिंसात्मक जीवन-शैली कहते हैं।
(घ) यह अहिंसात्मक जीवन-शैली है।
उत्तर :
(ग) यह वह जीवन-शैली है जिसे अहिंसात्मक जीवन-शैली कहते हैं।
प्रश्न 9.
‘संयमित’ खानपान में रेखांकित अंश है-
(क) संज्ञा
(ख) विशेषण
(ग) सर्वनाम
(घ) क्रियाविशेषण
उत्तर :
(घ) क्रियाविशेषण
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) भारत के सनातन हिंदू धर्म
(ख) भगवान महावीर और अहिंसा
(ग) अनुकरणीय जीवन-शैली
(घ) अहिंसा का महत्व
उत्तर :
(घ) अहिंसा का महत्व
28. परियोजना शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसे तैयार करने में किसी खेल की तरह का ही आनंद मिलता है। इस तरह परियोजना तैयार करने का अर्थ है-खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाना। उदाहरण के लिए, दशहरे की परियोजना को ही लें। यदि आपको कहा जाए कि इस पर निबंध लिखिए, तो आपको शायद उतना आनंद् नहीं आएगा, लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि अखबारों में छपे अलग-अलग शहरों के दशहरे के चित्र काट कर अपनी कॉपी में चिपकाइए और लिखिए कि कौन-सा चित्र किस शहर के दशहरे का है, तो शायद आपको बहुत आनंद आएगा। तो इस तरह से चित्र इकट्ठे करके चिपकाना भी एक शैक्षिक परियोजना है।
यह एक प्रकार की फोटो-फीचर परियोजना कहलाएगी। इस तरह से न केवल आपने चित्र काटे और चिपकाए, बल्कि कई शहरों में मनाए जाने वाले दशहरे के तरीके को भी जाना। परियोजना पाठ्यपुस्तक से प्राप्त जानकारियों के अलावा भी आपको देश-दुनिया की बहुत सारी जानकारियाँ प्रदान करती है। यह आपको तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है। इससे आपमें नए-नए तथ्यों के कौशल का विकास होता है। इससे आपमें एकाग्रता का विकास होता है।
लेखन-संबंधी नई-नई शैलियों का विकास होता है। आप में चितन करने तथा किसी पूर्व घटना से वर्तमान घटना को जोड़कर देखने की शक्ति का विकास होता है। परियोजना कई प्रकार से तैयार की जा सकती है। हर व्यक्ति इसे अलग ढंग से, अपने तरीके से तैयार कर सकता है। ठीक उसी प्रकार जैसे हर व्यक्ति का बातचीत करने का, रहने का, खाने-पीने का अपना अलग तरीका होता है। ऐसा निबंध, कहानी, कविता लिखते या चित्र बनाते समय भी होता है। लेकिन ऊपर कही गई बातों के आधार पर यहाँ हम परियोजना को मोटे तौर पर दो भागों में बाँट सकते हैं-एक तो वे परियोजनाएँ, जो समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाती हैं और दूसरी वे, जो किसी विषय की समुचित जानकारी प्रदान करने के लिए तैयार की जाती हैं।
समस्याओं के निदान के लिए तैयार की जाने वाली परियोजनाओं में संबंधित समस्या से जुड़े सभी तथ्यों पर प्रकाश डाला जाता है और उस समस्या के समाधान के लिए सुझाव भी दिए जाते हैं। इस तरह की परियोजनाएँ प्रायः सरकार अथवा संगठनों द्वारा किसी समस्या पर कार्य-योजना तैयार करते समय बनाई जाती हैं। इससे उस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करने में आसानी हो जाती है। किंतु दूसरे प्रकार की परियोजना को आप आसानी से तैयार कर सकते हैं। इसे ‘शैक्षिक परियोजना’ भी कहा जाता है। इस तरह की परियोजनाएँ तैयार करते समय आप संबंधित विषय पर तथ्यों को जुटाते हुए बहुत सारी नई-नई बातों से अपने-आप परिचित भी होते हैं।
(क) शिक्षा में परियोजना का क्या महत्व है?
(ख) शैक्षिक परियोजना से आप क्या समझते हैं?
(ग) दशहरे पर बनाई गई परियोजना से क्या-क्या जानकारियाँ मिल सकती हैं?
(घ) परियोजना से नए तथ्यों के कौशल का विकास किस तरह होता है?
(ङ) समस्या के निदान के लिए बनाई गई परियोजनाएँ किस तरह लाभकारी होती हैं?
(च) परियोजना तैयार करने से होने वाले दो विशेष लाभ बताइए।
(छ) फोटो फीचर परियोजना क्या है?
(ज) दशहरे के चित्र काटकर कॉपी में चिपकाइए – संयुक्त वाक्य बनाइए।
(झ) विकास, परिचय-विशेषण बनाइए।
(अ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) परियोजना, शिक्षा को रुचिकर बनाकर शिक्षा की नीरसता समाप्त करती है। इसे तैयार करते समय छात्र खेल-खेल में काफ़ी कुछ सीख जाते हैं। इस तरह शिक्षा में परियोजना का विशेष महत्व है।
(ख) शिक्षा से जुड़े किसी विषय से संबंधित तथ्यों को जुटाना, चित्र, इकट्ठा करके चिपकाना तथा नई-नई जानकारियाँ प्राप्त करना ही शैक्षिक परियोजना है।
(ग) दशहरे पर बनाई गई परियोजना से हम कई जानकारियाँ पा सकते हैं; जैसे –
(i) यह त्योहार कैसे मनाया जाता है?
(ii) किन शहरों में दशहरा मनाया जाता है?
(घ) परियोजना से हमें तथ्यों को जुटाने तथा उन पर विचार करने का अवसर मिलता है। इससे नए तथ्यों के कौशल का विकास होता है।
(ङ) समस्या के निदान के लिए बनाई गई परियोजनाएँ सरकार अथवा किसी संगठन द्वारा किसी समस्या पर कार्य योजना तैयार करते हुए बनाई जाती है। इससे उस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करना सरल हो जाता है।
(च) परियोजना तैयार करने से –
(i) व्यक्ति में एकाग्रता का विकास होता है।
(ii) लेखन से जुड़ी नई-नई शैलियों का विकास होता है।
(छ) वह परियोजना, जिसमें किसी विषय से जुड़े तरह-तरह के चित्रों को काटकर चिपकाया जाता है तथा उससे जुड़ी जानकारियाँ एकत्र की जाती हैं, उसे फोटो फीचर परियोजना कहते हैं।
(ज) संयुक्त वाक्य- दशहरे का चित्र काटिए और कॉपी में चिपकाइए।
(झ) शब्द – विशेषण
विकास – विकसित
परिचय – परिचित
(ञ) ‘परियोजना का महत्व’ या ‘शिक्षा को रुचिकर बनाती परियोजना’।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
शिक्षा में परियोजना का अर्थ है-
(क) योजना के अनुसार शिक्षा देना
(ख) शिक्षा में योजना लागू करना
(ग) खेल-खेल में बहुत ज़्यादा सीख जाना
(घ) खेल-कूद के साथ शिक्षा देना
उत्तर :
(ग) खेल-खेल में बहुत ज़्यादा सीख जाना
प्रश्न 2.
परियोजना के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(क) इससे शिक्षा रुचिकर बनती है
(ख) यह शिक्षा को खर्चीला बनाती है
(ग) यह शिक्षा की नीरसता कम करती है
(घ) इसे बनाते समय हम खेल जैसा आनंद प्राप्त करते हैं।
उत्तर :
(ख) यह शिक्षा को खर्चीला बनाती है
प्रश्न 3.
फोटो फीचर परियोजना के अंतर्गत कौन-सा कार्य किया जाता है?
(क) लेख लिखकर एकत्र किया जाता है।
(ख) चित्र काटकर चिपकाए जाते हैं
(ग) कई फीचर एकत्र किए जाते हैं।
(घ) फीचर लिखकर फ़ोटो बनाए जाते हैं।
उत्तर :
(ख) चित्र काटकर चिपकाए जाते हैं
प्रश्न 4.
विद्यार्थियों के लिए परियोजना बनाना आवश्यक है क्योंकि-
(क) यह सीखने में मदद करती है
(ख) लेखन की नई शैलियों का विकास होता है
(ग) इससे कौशल एवं एकाग्रता का विकास होता है
(घ) क, ख, ग सभी
उत्तर :
(घ) क, ख, ग सभी
प्रश्न 5.
समस्या के लिए तैयार की गई परियोजनाओं की विशेषता है-
(क) यह समस्या उठाती है
(ख) इसमें समस्या से जुड़े तथ्यों को उभारा जाता है।
(ग) इसमें समाधान के लिए सुझाव दिया जाता है।
(घ) ‘ख’, ‘ग’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘ख’, ‘ग’ दोनों
प्रश्न 6.
दशहरे पर बनाई गई परियोजना से हमें क्या ज्ञात होता है?
(क) दशहरे से संबंधित चित्र कौन-सा है?
(ख) किस शहर में दशहरा कैसे मनाया जाता है?
(ग) दशहरा कहाँ धूमधाम से मनाया जाता है?
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 7.
परियोजना पाठ्यपुस्तक के अलावा ……………… की अनेक जानकारियाँ देती है।
(क) देश-दुनिया
(ख) घर-परिवार
(ग) जाति-धर्म
(घ) गाँव-समाज
उत्तर :
(क) देश-दुनिया
प्रश्न 8.
यही वह शैक्षिक परियोजना है जिसे आप आसानी से तैयार कर सकते हैं-रेखांकित अंश के उपवाक्य का भेद है-
(क) संज्ञा उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रियाविशंषण उपवाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ख) विशेषण उपवाक्य
प्रश्न 9.
‘विकास’ से बना विशेषण है-
(क) विकसित
(ख) विकासशील
(ग) विशेष
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’, ‘ख’ दोनों
प्रश्न 10.
गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक होगा-
(क) खेल-खेल में शिक्षा
(ख) शिक्षा में परियोजना का महत्व
(ग) परियोजना कैसे बनाएँ
(घ) दशहरे पर परियोजना
उत्तर :
(ख) शिक्षा में परियोजना का महत्व
29. सुचरित्र के दो सशक्त स्तंभ हैं-प्रथम सुसंस्कार और द्वितीय सत्संगति। सुसंस्कार भी पूर्व जीवन की सत्संगति व सत्कर्मों की अर्जित संपत्ति है और सत्संगति वर्तमान जीवन की दुर्लभ विभूति है। जिस प्रकार कुधातु की कठोरता और कालिख पारस के स्पर्श मात्र से कोमलता और कमनीयता में बदल जाती है, ठीक उसी प्रकार कुमार्गी का कालुष्य सत्संगति से स्वर्णिम आभा में परिवर्तित हो जाता है। सतत सत्संगति से विचारों को नई दिशा मिलती है और अच्छे विचार मनुष्य को अच्छे कायों में प्रेरित करते हैं। परिणामत: सुचरित्र का निर्माण होता है। आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि महाकवि टैगोर के पास बैठने मात्र से ऐसा प्रतीत होता था, मानो भीतर का देवता जाग गया हो। वस्तुत: चरित्र से ही जीवन की सार्थकता है। चरित्रवान व्यक्ति समाज की शोभा है, शक्ति है। सुचारित्र से व्यक्ति ही नहीं, समाज भी सुवासित होता है और इस सुवास से राष्ट्र यशस्वी बनता है। विदुर जी की उक्ति अक्षरशः सत्य है कि सुचरित्र के बीज हमें भले ही वंश-परंपरा से प्राप्त हो सकते हैं, पर चरित्र-निर्माण व्यक्ति के अपने बलबूते पर निर्भर है। आनुवंशिक परंपरा, परिवेश और परिस्थिति उसे केवल प्रेरणा दे सकते हैं, पर उसका अर्जन नहीं कर सकते; वह व्यक्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होता।
व्यक्ति-विशेष के शिथिल चरित्र होने से पूरे राष्ट्र पर चरित्र-संकट उपस्थित हो जाता है, क्योंकि व्यक्ति पूरे राष्ट्र का एक घटक है। अनेक व्यक्तियों से मिलकर एक परिवार, अनेक परिवारों से एक कुल, अनेक कुलों से एक जाति या समाज और अनेकानेक जातियों और समाज-समुदायों से मिलकर ही एक राष्ट्र बनता है। आज जब लोग राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण की बात करते हैं, तब वे स्वयं उस राष्ट्र के एक आचरक घटक हैं-इस बात को विस्मृत कर देते हैं।
प्रश्न :
(क) सुचरित्र के स्तंभ किन्हें कहा गया है? संक्षेप में बताइए।
(ख) सत्संगति की तुलना पारस से क्यों की गई है?
(ग) सुचरित्र का निर्माण कैसे होता है?
(घ) चरित्र का स्तंभ किन्हें कहा गया है? व्यक्ति के चरित्र-निर्माण में किस-किस का योगदान होता है?
(ङ) किसी व्यक्ति के चरित्र निर्माण में किन-किन तथ्यों का प्रभाव पड़ता है ?
(च) राष्ट्र के चरित्र के मूल में व्यक्ति का चरित्र होता है। स्पष्ट कीजिए।
(छ) व्यक्ति को चरित्र उत्तराधिकार में क्यों नहीं प्राप्त होता है?
(ज) समास विग्रह करके समास का नाम लिखिए- सत्संगति, वंश-परंपरा
(झ) ‘व्यक्ति के शिथिल चरित्र होने से राष्ट्र पर चरित्र संकट उत्पन्न हो जाता है।’ मिश्र वाक्य में बदलिए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) सुसंस्कार और सत्संगति को सुचरित्र का स्तंभ कहा गया है। इनमें सुसंस्कार पूर्व जन्म की सत्संगति और सत्कमों की अर्जित संपत्ति तथा सत्संगति वर्तमान जीवन की विभूति है।
(ख) सत्संगति की तुलना पारस से इसलिए की गई है क्योंकि सत्संगति, कुमार्गी की कलुषता को स्वर्णिम आभा में उसी तरह बदल देती है जैसे पारस किसी कुधातु को कोमल औस कमनीय बना देता है।
(ग) सत्संगति से अच्छे विचार पनपते हैं और अच्छे विचारों से मनुष्य को अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिलती है जिससे सुचरित्र का निर्माण व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है।
(घ) चरित्र के विषय में विदुर का विचार यह है कि वंश परंपरा से अच्छे चरित्र के बीज भले मिल जाएँ, पर चरित्र का निर्माण व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है।
(ङ) किसी व्यक्ति के चरित्र निर्माण में सुसंस्कार और सत्संगति का योगदान होता है। इसके अलावा व्यक्ति के परिवार, उसके कुल और जाति का भी प्रभाव पड़ता है।
(च) कोई भी व्यक्ति अपने राष्ट्र का घटक होता है। अनेक व्यक्ति मिलकर एक परिवार, कई परिवार मिलकर एक कुल, कई कुल जाति का और अनेक जाति समुदायों से मिलकर राष्ट्र बनता है। इस तरह राष्ट्र के चरित्र में व्यक्ति का चरित्र होता है।
(छ) व्यक्ति को चरित्र उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होता है, बल्कि इसका निर्माण उसको स्वयं करना होता है तथा यह आनुर्वशिक परपरा या परिवेश से नहीं मिलता है।
(ज)
(झ) मिश्र वाक्य- जब व्यक्ति का चरित्र शिथिल होता है तो राष्ट्र पर चरित्र संकट उत्पन्न हो जाता है।
(ज) ‘सुचरित्र की आवश्यकता’ अथवा ‘चरित्र निर्माण और सत्संगति।’
बहुविकल्पीय प्रश्न –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर दीजिए।
प्रश्न 1.
‘सुसंस्कार’ से जुड़ी बातें किस विकल्प में है?
(क) यह पूर्वजन्म की सत्संगति है
(ख) यह सत्कर्मों की अर्जित संपत्ति है।
(ग) यह मानव-जीवन से संबंधित नहीं है।
(घ) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
उत्तर :
(घ) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
प्रश्न 2.
सत्संगति की तुलना किससे की गई है?
(क) कोमलता से
(ख) पारस से
(ग) कमनीयता से
(घ) स्वर्णिम आभा से
उत्तर :
(ख) पारस से
प्रश्न 3.
सतत सत्संगति से विचारों को ………………. मिलती है।
(क) नई उन्नति
(ख) नई गरिमा
(ग) नई दिशा
(घ) नई उपलब्धियाँ
उत्तर :
(ग) नई दिशा
प्रश्न 4.
सुचारित्र से क्या-क्या लाभ हैं?
(क) समाज सुवासित होता है।
(ख) व्यक्ति सुवासित होता है।
(ग) राष्ट्र यशस्वी बनता है।
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 5.
चरित्र निर्माण को इनमें से कौन प्रेरित नहीं करता है?
(क) अनुवांशिक परंपरा
(ख) वंश-परंपरा
(ग) परिवेश
(घ) परिस्थिति
उत्तर :
(ख) वंश-परंपरा
प्रश्न 6.
कोई व्यक्ति इनमें से किसका एक घटक है?
(क) परिवार
(ख) गाँव एवं समाज
(ग) राष्ट्र
(घ) क, ख, ग तीनों
उत्तर :
(घ) क, ख, ग तीनों
प्रश्न 7.
राष्ट्र का निर्माण किससे होता है?
(क) अनेक समाज-समुदायों से
(ख) अनेक जातियों से
(ग) अनेक कुलों से
(घ) अनेक परिवारों से
उत्तर :
(क) अनेक समाज-समुदायों से
प्रश्न 8.
व्यक्ति को चरित्र-निर्माण खुद करना होता है। रेखांकित अंश का विग्रह और समास का नाम है-
(क) चरित्र से निर्माण-तत्पुरुष समास
(ख) चरित्र और निर्माण-द्वंद्व समास
(ग) चरित्र का निर्माण-तत्पुरुष समास
(घ) चरित्र जैसा निर्माण-कर्मधारय समास
उत्तर :
(ग) चरित्र का निर्माण-तत्पुरुष समास
प्रश्न 9.
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि उनके पास बैठने मात्र से भीतर का देवता जाग जाता था-रचना के आधार पर वाक्य का भेद बताइए।
(क) सरल वाक्य
(ख) मिश्र वाक्य
(ग) संयुक्त वाक्य
(घ) प्रधान उपवाक्य
उत्तर :
(ख) मिश्र वाक्य
प्रश्न 10.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक हो सकता है-
(क) दो सशक्त स्तंभ
(ख) सत्कर्म और चरित्र निर्माण
(ग) जीवन की दुर्लभ विभूति
(घ) चरित्र निर्माण और सत्संगति
उत्तर :
(घ) चरित्र निर्माण और सत्संगति