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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 16 in Hindi जैव-विविधता एवं संरक्षण
पाठ्यपुस्तक प्रश्न
1. जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्त्वपूर्ण है-
(क) जन्तु
(ख) पौधे
(ग) पौधे और प्राणी
(घ) सभी जीवधारी
उत्तर:
(घ) सभी जीवधारी
2. निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौनसी हैं –
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(ख) बाघ व शेर
(ग) जिनकी संख्या अत्यधिक हो
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर:
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
3. नेशनल पार्क (National Park) और पशुविहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गये हैं—
(क) मनोरंजन
(ख) पालतू जीवों के लिए
(ग) शिकार के लिए
(घ) संरक्षण के लिए
उत्तर:
(घ) संरक्षण के लिए
4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र है-
(क) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र
(ख) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर:
(क) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
5. निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) हुआ था–
(क) यू.के. (U.K.)
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) चीन
उत्तर:
(ख) ब्राजील
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
जैव-विविधता क्या है?
उत्तर:
किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं। इसका सम्बन्ध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं व इनकी आनुवंशिकी तथा उनके द्वारा निर्मित पारितंत्र से है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवधारियों की परिवर्तनशीलता, एक ही प्रजाति तथा विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तनशीलता तथा विभिन्न पारितंत्रों में विविधता से सम्बन्धित है।
प्रश्न 2.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता के निम्नलिखित तीन स्तर हैं-
- आनुवंशिक जैव-विविधता
- प्रजातीय जैव-विविधता
- पारितंत्रीय जैव-विविधता।
प्रश्न 3.
हॉट-स्पॉट (Hot spots) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट-स्पॉट क्षेत्र के रूप में निर्धारित किए हैं। हॉट स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर निर्धारित किये गये हैं।
प्रश्न 4.
मानव जाति के लिए जन्तुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर:
मानव जाति के लिए जन्तुओं का महत्त्व बहुत अधिक है। मानव के अधिकांश कार्यों में जन्तु एक सहयोगी की भूमिका अदा करते हैं तथा पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखते हैं। जंतुओं की विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।
प्रश्न 5.
विदेशज प्रजातियों (Exotic species)से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वे प्रजातियाँ जो कि स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं लेकिन उस तंत्र में स्थापित हो जाती हैं वे विदेशज प्रजाति कहलाती हैं। इन प्रजातियों के आगमन से पारितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान पहुँचता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाये रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
जैव-विविधता की भूमिका :
प्रकृति में अनेक पारितंत्र मिलते हैं। पारितंत्र में निवास करने वाली विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात् प्रत्येक जीव अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल व पोषक तत्वों के चक्र को बनाये रखने में सहायक होती हैं। इसके अलावा प्रजातियाँ वायुमण्डलीय गैस को स्थिर करती हैं और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। ये पारितंत्रीय क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं।
पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों की प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी । प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाती है। अधिक आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्र में पर्यावरण के परिवर्तनों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होता है। अतः स्पष्ट है कि जैव-विविधता प्रकृति को बनाये रखने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा करती है।
प्रश्न 2.
जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर:
जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक : जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
(1) जनसंख्या वृद्धि :
विगत कुछ दशकों से जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपभोग किया गया है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तीव्र गति से कमी आई है। विश्व के कुल क्षेत्र के एक-चौथाई भाग उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में विश्व की तीन-चौथाई जनसंख्या रहती है।
(2) वनोन्मूलन :
विश्व में निवास करने वाली विशाल जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संसाधनों का दोहन तथा वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा प्राकृतिक आवासों का विनाश सम्पूर्ण जैवमण्डल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।
(3) प्राकृतिक आपदाएँ :
प्राकृतिक आपदाएँ, यथा- भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्राणिजात और वनस्पतिजात को क्षति पहुँचाते हैं। इसके फलस्वरूप सम्बन्धित प्रभावित प्रदेशों की जैव-विविधता में परिवर्तन आ जाता है!
(4) कीटनाशक एवं प्रदूषक :
कीटनाशक और अन्य प्रदूषक, यथा हाइड्रोकार्बन और विषैली भारी धातु, संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।
(5) विदेशज प्रजातियाँ :
वे प्रजातियाँ, जो कि स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं उनको विदेशज प्रजातियाँ कहा जाता है। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ है।
(6) वन्य प्राणियों का शिकार :
विगत कुछ दशकों के दौरान कुछ वन्य प्राणियों, यथा बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक, पक्षियों का उनके सींग, सूँड तथा खालों की प्राप्ति के लिए निर्दयतापूर्वक शिकार किया गया है जिसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।
जैव-विविधता के ह्रास को रोकने के उपाय : जैव-विविधता के ह्रास को रोकने के प्रमुख उपाय निम्नलिखितं हैं।
- संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
- प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएँ व प्रबंधन अपेक्षित हैं।
- खाद्यान्नों की किस्में, चारे सम्बन्धी पौधों की किस्में, इमारती लकड़ी के पेड़, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
- प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को चिह्नित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
- प्रजातियों व पलने बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित होने चाहिए।
- वन्य जीवों व पौधों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप होना चाहिए।
- मानव को पर्यावरण मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाये तथा विकास की ऐसी व्यावहारिक गतिविधियाँ अपनाई जाएं, जो दूसरे जीवों के साथ समन्वित व सतत पोषणीय हों।