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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 14 in Hindi महासागरीय जल संचलन
पृष्ठ संख्या 128
प्रश्न 1.
प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में बहने वाली धाराओं की सूची बनाइए।
उत्तर:
प्रशांत महासागर की जलधाराएँ-
ठंडी जलधाराएँ | गर्म जलधाराएँ |
(i) कैलिफोर्निया धारा | (i) उत्तरी विषुवतरेखीय धारा |
(ii) आयोशिवो धारा | (ii) प्रति विषुवतरेखीय धारा |
(iii) अंटार्कटिका प्रवाह | (iii) क्यूरोशियो धारा |
(iv) पेरू या हम्बोल्ट धारा | (iv) उ. प्रशांत प्रवाह |
(v) द. विषुवतरेखीय धारा | |
(vi) पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा | |
(vii) अलास्का धारा |
अटलांटिक महासागर की जलधाराएँ-
ठंडी जलधाराएँ | गर्म जलधाराएँ |
(i) लैब्रोडोर धारा | (i) उत्तरी विषुवतरेखीय धारा |
(ii) कनारी धारा | (ii) प्रति विषुवतरेखीय धारा |
(iii) बैंगुला धारा | (iii) गल्फ स्ट्रीम धारा |
(iv) फॉकलैंड धारा | (iv) उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट |
(v) अण्टार्कटिक प्रवाह | (v) दक्षिणी विषुवतरेखीय धारा |
(vi) ब्राजील धारा |
हिन्द महासागर की जलधाराएँ-
ठंडी जलधाराएँ | गर्म जलधाराएँ |
(i) प. आस्ट्रेलिया धारा | (i) प्रति विषुवतरेखीय धारा |
(ii) शीतकालीन मानसून प्रवाह | (ii) दक्षिण विषुवतरेखीय धारा |
(iii) अगुलहास धारा | |
(iv) मोजाम्बिक धारा |
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
बहुवैकल्पिक प्रश्न-
1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे सम्बन्धित है?
(क) ज्वार
(ख) तरंग
(ग) धाराएँ
(घ) उक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) तरंग
2. वृहत् ज्वार आने का क्या कारण है?
(क) सूर्य और चन्द्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(ख) सूर्य और चन्द्रमा के द्वारा एक-दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर गुरुवाकर्षण
(ग) तट रेखा का दंतुरित होना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सूर्य और चन्द्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
3. पृथ्वी तथा चन्द्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
(क) अपसौर
(ख) उपसौर
(ग) उपभू
(घ) अपभू
उत्तर:
(ग) उपभू
4. पृथ्वी उपसौर की स्थिति कब होती है ?
(क) अक्टूबर
(ख) जुलाई
(ग) सितम्बर
(घ) जनवरी
उत्तर:
(घ) जनवरी
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
जल कणों के छोटे वृत्ताकार रूप में गति करने को तरंग कहते हैं। अतः वायु के सम्पर्क से महासागरीय जल की सतह पर गति होने तथा आगे-पीछे हटने की प्रक्रिया को तरंग कहते हैं।
प्रश्न 2.
महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर:
महासागरीय तरंगें ऊर्जा वायु से प्राप्त करती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं।
प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा क्या है?
उत्तर:
ज्वार-भाटा पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण क्रिया से उत्पन्न होते हैं। चन्द्रमा और सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक या दो बार समुद्रतल का नियतकालिक उठने या गिरने को ‘ज्वार-भाटा’ कहते हैं।
प्रश्न 4.
ज्वार भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
चन्द्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण एवं पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के कारण ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है।
प्रश्न 5.
ज्वार-भाटा नौ संचालन से कैसे सम्बन्धित है?
उत्तर:
ज्वार-भाटा नौ संचालन से सम्बन्धित है क्योंकि ज्वार के कारण जल स्तर उठ जाने से उथले सागर एवं नदियों के छिछले मुहाने भी नौकागम्य हो जाते हैं तथा ज्वारनद या उथले समुद्रों में जब दीर्घ ज्वार आता है तो जहाज बन्दरगाहों तक आ जाते हैं और भाटे के समय चले जाते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
जल धारायें तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
जलधाराओं का तापमान पर प्रभाव :
महासागरीय जलधारायें अपने गुणों के अनुसार तटवर्ती प्रदेशों के तापमान को प्रभावित करती हैं। धाराओं के तापमान पर सम और विषम दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। जिन प्रदेशों के निकट गर्म जलधारा प्रवाहित होती है वहाँ के तटीय क्षेत्रों का तापमान उच्च हो जाता है तथा जिन क्षेत्रों में ठण्डी धारा प्रवाहित होती है वहाँ के तापमान में गिरावट आ जाती है। सामान्यतया ठण्डे जल वाली महासागरीय धाराएँ ध्रुवों के पास वाले जल के नीचे बैठने से उत्पन्न होती हैं और धीरे-धीरे पवनों के साथ विषुवत् वृत्त की ओर गति करती हैं। गर्म जलधाराएँ विषुवत् वृत्त से सतह के साथ-साथ चलते हुए ध्रुवों की ओर जाती हैं और ठंडे जल का स्थान लेती हैं। महासागरीय जलधाराओं को तापमान के आधार पर निम्नांकित दो प्रकार की जलधाराओं में वर्गीकृत किया जाता है।
(i) ठण्डी जलधाराएँ :
ये जलधाराएँ ठंडा जल गर्म जलीय क्षेत्रों में लाती हैं। ये महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं और यह प्रक्रिया दोनों गोलाद्ध में निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होती है। दूसरी ओर उत्तरी गोलार्द्ध में ये जलधाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पूर्वी तट पर बहती हैं।
(ii) गर्म जलधाराएँ :
ये जलधाराएँ गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुँचाती हैं और प्रायः महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं (दोनों गोलाद्ध के निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में ) । उत्तरी गोलार्द्ध में, ये जलधाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं।
पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान पर सागरीय जलधाराओं का प्रभाव:
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप के तटीय क्षेत्रों में दक्षिण-पश्चिम से आने वाली उत्तरी अटलांटिक अपवाह एवं गल्फ स्ट्रीम गर्म जलधाराएँ बहती हैं जिनके कारण इस क्षेत्र के तटीय भागों में ग्रीष्मकाल अपेक्षाकृत कम गर्म और शीत ऋतु अपेक्षाकृत कम शीत होती है। इन जलधाराओं के कारण तटीय क्षेत्रों में वार्षिक तापान्तर भी कम मिलते हैं और उत्तर-पश्चिमी यूरोप के बंदरगाह वर्षभर आवागमन के लिए खुले रहते हैं।
प्रश्न 2.
जलधारायें कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
धाराएँ : महासागरीय धारायें महासागर में नदी प्रवाह के समान हैं। ये निश्चित मार्ग व दिशा में जल के नियमित प्रवाह को बताती हैं। महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति विभिन्न कारकों से होती है। इनमें पृथ्वी का घूर्णन, गुरुत्वाकर्षण बल, सागरीय जल का तापमान, लवणता, घनत्व आदि में भिन्नता, वायुदाब एवं चलित हवायें, वाष्पीकरण, वर्षा आदि कारकों के सम्मिलित प्रयासों के परिणामस्वरूप धाराओं की उत्पत्ति होती है। धाराओं के उत्पत्ति सम्बन्धी कारकों को अग्रलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
(1) पृथ्वी का घूर्णन एवं गुरुत्वाकर्षण बल :
गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का महत्त्वपूर्ण बल तथा नियंत्रक कारक है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से अभिकेन्द्र बल तथा घूर्णन के फलस्वरूप अपकेन्द्रीय बल की उत्पत्ति होती है। पृथ्वी की परिभ्रमण गति धाराओं की गति एवं दिशा को प्रभावित करती है। पृथ्वी की परिभ्रमण गति का महासागरीय जल साथ नहीं दे पाता है अतः जल स्थल से पीछे छूट जाता है जिसके फलस्वरूप महासागरीय जल में पूर्व से पश्चिम की तरफ गति उत्पन्न हो जाती है जोकि धारा का रूप ले लेती है।
(2) वायुदाब तथा पवनें :
वायुदाब सर्वत्र समान रूप में नहीं होता है। वायुदाब की भिन्नता से सागरीय जल ऊपर- नीचे होता है। कम वायुदाब के क्षेत्र में जल स्तर ऊँचा तथा जिन क्षेत्रों में वायुदाब अधिक होता है वहाँ आयतन की कमी के कारण जल स्तर नीचे हो जाता है जिसके कारण कम वायुदाब वाले क्षेत्रों से अधिक वायुदाब वाले क्षेत्रों की तरफ जल गतिशील हो जाता है। इसके फलस्वरूप धारा की उत्पत्ति हो जाती है। पवनें धाराओं की उत्पत्ति में योग ही नहीं देतीं अपितु उनकी दिशा एवं गति को बनाये रखने में भी अपनी भूमिका अदा करती हैं। जब पवन सागरीय सतह पर होकर चलती है तो घर्षण के द्वारा जल को अपने प्रवाह की दिशा में गतिशील बनाती है जिससे धाराओं की उत्पत्ति होती है।
(3) वाष्पीकरण तथा वर्षा :
वाष्पीकरण तथा वर्षा सागरीय जल की लवणता और घनत्व को प्रभावित करते हैं। निम्न अक्षांशों में वाष्पीकरण अधिक होने के कारण जल की लवणता और घनत्व में वृद्धि हो जाती है जिससे सागरीय जल की सतह नीची हो जाती है तथा जहाँ वाष्पीकरण की क्रिया कम तथा वर्षा अधिक होती है वहाँ अत्यधिक जलराशि के कारण जल की सतह ऊँची हो जाती है। इस प्रकार निम्न जल सतह वाले सागरों की तरफ धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं।
(4) घनत्व :
सागरों में सतह पर हल्का जल और गहराई में भारी जल मिलता है। घनत्व की इस भिन्नता के कारण सागरों में भार प्रवणता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे जल में लम्बवत् गति या धाराओं की उत्पत्ति होती है।
(5) तापमान :
महासागरों में जल का तापमान सभी स्थानों पर समान नहीं पाया जाता है। तापमान की इसी असमानता के कारण सागरीय धाराओं की उत्पत्ति होती है।
(6) लवणता :
अधिक लवणता वाले क्षेत्रों में जल का घनत्व बढ़ जाता है तथा न्यून लवणता वाले क्षेत्रों में जल का घनत्व कम पाया जाता है। अधिक लवणता वाले क्षेत्रों में जल का घनत्व अधिक होने के कारण नीचे तली में बैठता है। इस जगह की पूर्ति हेतु कम लवणता युक्त जल इस ओर प्रवाहित होता है। इससे धाराओं की उत्पत्ति होती है।