Students prefer Malhar Class 8 Hindi Book Solutions Chapter 10 तरुण के स्वप्न के प्रश्न उत्तर Question Answer that are written in simple and clear language.
NCERT Class 8th Hindi Chapter 10 तरुण के स्वप्न Question Answer
तरुण के स्वप्न Class 8 Question Answer
कक्षा 8 हिंदी पाठ 10 प्रश्न उत्तर – Class 8 Hindi तरुण के स्वप्न Question Answer
पाठ से प्रश्न – अभ्यास
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
प्रश्न 1.
“उनके स्वप्न के उत्तराधिकारी आज हम हैं ।” इस कथन में रेखांकित शब्द ‘हम’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
- सुभाषचंद्र बोस के लिए
- देश के तरुण वर्ग के लिए
- चित्तरंजन दास के लिए
- भारतवासियों के लिए
उत्तर:
- भारतवासियों के लिए

प्रश्न 2.
स्वाधीन राष्ट्र का स्वप्न साकार होगा ?
- आर्थिक असमानता से
- स्त्री – पुरुष के भिन्न अधिकारों से
- श्रम और कर्म की मर्यादा से
- जातिभेद से
उत्तर:
- श्रम और कर्म की मर्यादा से
प्रश्न 3.
“उनके स्वप्न के उत्तराधिकारी आज हम हैं ।” ‘उत्तराधिकारी’ होने से क्या अभिप्राय है?
- हमें उनके स्वप्नों को संजोकर रखना है
- हमें भी उनकी तरह स्वप्न देखने का अधिकार है
- उनके स्वप्नों को पूरा करने के लिए हमें ही कर्म करना है
- उनके स्वप्नों पर चर्चा करने का दायित्व हमारा ही है
उत्तर:
- उनके स्वप्नों को पूरा करने के लिए हमें ही कर्म करना है
प्रश्न 4.
जब प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और उन्नति का समान अवसर प्राप्त होगा तब-
- राष्ट्र की श्रम शक्ति बढ़ेगी
- तरुणों का साहस बढ़ेगा
- राष्ट्र स्वाधीन बनेगा
- राष्ट्र स्वप्नदर्शी होगा
उत्तर:
- राष्ट्र स्वप्नदर्शी होगा
![]()
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर:
- यह सबसे व्यापक और सही उत्तर हैं, क्योंकि देशबंधु चित्तरंजन दास जी के स्वप्न को साकार करने की ज़िम्मेदारी या कर्तव्य समस्त भारतीयों का है।
- पाठ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्वाधीन राष्ट्र श्रम और कर्म की मर्यादा से ही संभव है। अन्य विकल्प (आर्थिक असमानता, स्त्री- – पुरुष के भिन्न अधिकार और जाति भेद) पाठ में वर्णित – विषय वस्तु के अनुसार बुराइयाँ हैं, जिनसे राष्ट्र को मुक्त होना चाहिए ताकि स्वाधीन राष्ट्र का सपना साकार हो सके।
- पाठ में कहा गया है ” हमारे नेता स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास ने भी एक स्वप्न देखा था वही स्वप्न उनकी शक्ति और आनंद का स्रोत बना। उनके स्वप्न के उत्तराधिकारी आज हम हैं। इसलिए हमारा भी एक सपना है जिससे संचालित होकर हम सारा काम करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उत्तराधिकारी होने का अर्थ केवल सपना देखना या संजोना नहीं है बल्कि उन्हें साकार करने के लिए सक्रिय रूप से कर्म करना है।
- जब सभी को शिक्षा और उन्नति के समान अवसर प्राप्त होंगे तो वे अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर पाएँगे, जिससे राष्ट्र की समग्र श्रम – शक्ति (मानव संसाधन और उत्पादकता) में वृद्धि होगी। यह राष्ट्र को मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देगा। (विद्यार्थी अपने मित्रों के साथ चर्चा करके बताएँगे कि उनके द्वारा विकल्प चुनने के क्या कारण हैं।)
मिलकर करें मिलान
• नीचे स्तंभ 1 में पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं और स्तंभ 2 में उन पंक्तियों से संबंधित भाव – विचार दिए गए हैं। स्तंभ 1 में दी गई पंक्तियों का स्तंभ 2 में दिए गए भाव-विचार से सही मिलान कीजिए-

उत्तर:
1. – 2
2. – 3
3. – 1
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपनी कक्षा में साझा कीजिए-
(क) “उस समाज में अर्थ की विषमता न हो ।”
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहाँ धन और संसाधनों का असमान वितरण न हो। इसका अर्थ है कि किसी के पास बहुत अधिक धन और किसी के पास बिलकुल न हो, ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए। बल्कि, समाज में सभी को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त अवसर और संसाधन उपलब्ध होने चाहिए। यह एक ऐसे आर्थिक समानता वाले समाज की ओर इशारा करता है जहाँ गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बहुत कम हो या न हो।
(ख) “वही स्वप्न उनकी शक्ति का उत्स बना और उनके आनंद का निर्झर रहा ।”
उत्तर:
यह पंक्ति सुभाषचंद्र बोस के उस आदर्श समाज के प्रति उनके गहरे समर्पण और उत्साह को दर्शाती है जिसका उन्होंने स्वप्न देखा था। उनके लिए, एक स्वतंत्र, सर्वगुण संपन्न और समतावादी समाज का निर्माण ही उनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत था। इसी स्वप्न ने उन्हें शक्ति दी और उनके जीवन में आनंद भरा। यह दर्शाता है कि एक महान उद्देश्य के लिए काम करना व्यक्ति को असीम ऊर्जा और खुशी प्रदान कर सकता है। यह उनका ‘स्वर्ग समान’ स्वप्न था जिसे वे जीवन में सार्थक मानते थे।
(ग) “उस समय में व्यक्ति सब दृष्टियों से मुक्त हो ।”
उत्तर:
इस पंक्ति का अर्थ है कि सुभाषचंद्र बोस एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहाँ व्यक्ति किसी भी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या मानसिक बंधनों से मुक्त हो। ‘सब दृष्टियों से मुक्त’ होने का तात्पर्य है कि व्यक्ति पर जाति, धर्म, लिंग, वर्ग या किसी अन्य बाहरी दबाव का कोई प्रभाव न हो। उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार सोचने, व्यक्त करने और कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता हो। इसमें जातिभेद से मुक्ति, लिंग समानता और समाज के दबाव से मुक्ति शामिल है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता का एहसास कर सके और सम्मानपूर्वक जी सके।
सोच-विचार के लिए
अब आप इस पाठ को पुनः पढ़िए और निम्नलिखित के विषय में पता लगाकर लिखिए-
(क) नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने किस प्रकार के राष्ट्र निर्माण का स्वप्न देखा था?
उत्तर:
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने एक ऐसे राष्ट्र निर्माण का स्वप्न देखा था जो ‘एक नया, सर्वांगीण स्वाधीन, संपन्न समाज’ हो । यह ऐसा समाज होगा जिसमें व्यक्ति ‘सब दृष्टियों से मुक्त ‘ हो और समाज के दबाव से परे हो। इस समाज में जातिभेद का कोई स्थान नहीं होगा और नारी मुक्त होकर समाज एवं राष्ट्र के पुरुषों की तरह समान अधिकारों का उपभोग करेंगी तथा समाज व राष्ट्र की सेवा में समान रूप से हिस्सा लेंगी।
इसमें अर्थ की विषमता नहीं होगी, प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और उन्नति के समान अवसर मिलेंगे और श्रम तथा कर्म की पूरी मर्यादा होगी। यह राष्ट्र किसी भी विजातीय प्रभाव से मुक्त रहेगा, स्वदेशी समाज के तंत्र के रूप में काम करेगा और बालक विश्व – मानव के आदर्श समाज या आदर्श-राष्ट्र के रूप में गण्य होगा।
![]()
(ख) नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने किस लक्ष्य की प्राप्तिको अपने जीवन की सार्थकता के रूप में देखा ?
उत्तर:
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने एक ‘नया सर्वांगीण स्वाधीन संपन्न समाज और उस पर एक स्वाधीन राष्ट्र’ के निर्माण के स्वप्न को अपने जीवन की सार्थकता के रूप में देखा। उन्होंने इस स्वप्न को” वह मरण है स्वर्ग समान” कहा और इसे अपने जीवन को सार्थक बनाने वाला बताया। यह स्वप्न ही उनकी शक्ति का उत्स और उनके आनंद का निर्झर था ।
(ग) “आलसी तथा अकर्मण्य के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा ” सुभाषचंद्र बोस ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि वे एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे जो उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर हो । उनके आदर्श समाज में ‘ श्रम और कर्म की पूरी मर्यादा’ होगी। वे मानते थे कि राष्ट्र के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक का सक्रिय योगदान आवश्यक है। आलस्य और अकर्मण्यता समाज और राष्ट्र के विकास में बाधा बनती है, इसलिए उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ सभी कर्मठ और सक्रिय हों और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। यह एक अनुशासित और उत्पादक समाज की नींव रखता है।
(घ) नेताजी सुभाषचंद्र बोस के लक्ष्यों या ध्येय को पूरा करने के लिए आज की युवा पीढ़ी क्या – क्या कर सकती है?
उत्तर:
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के लक्ष्यों और ध्येय को पूरा करने के लिए आज की युवा पीढ़ी कई महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है-
- शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करना: अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपने ज्ञान और कौशल का विकास करना, ताकि वे राष्ट्र निर्माण में रचनात्मक योगदान दे सकें।
- सामाजिक समानता को बढ़ावा देना: जाति, धर्म, लिंग या वर्ग के आधार पर किसी भी भेदभाव का विरोध करना और एक समतावादी समाज के निर्माण के लिए कार्य करना।
- कर्मठता और ज़िम्मेदारी: आलस्य को त्याग कर अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाना, चाहे वह पढ़ाई हो, काम हो या सामाजिक कार्य ।
- नारी सशक्तीकरणः महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर दिलाने के लिए समर्थन करना, ताकि वे समाज और राष्ट्र की सेवा में समान रूप से भाग ले सकें।
- पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवाः अपने समाज और पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना और सक्रिय रूप से सामाजिक कार्यों में भाग लेना ।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता : भारत की विविधता में एकता को बनाए रखने के लिए प्रयास करना और किसी भी विभाजनकारी शक्ति का विरोध करना।
- आत्मनिर्भरता और नवाचारः नए विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देना, ताकि भारत आर्थिक रूप से और तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
ये कदम नेताजी के सपनों के भारत को साकार करने में मदद करेंगे।
अनुमान और कल्पना से
(क) “उस समाज में व्यक्ति सब दृष्टियों से मुक्त हो”, सुभाषचंद्र बोस ने किन-किन दृष्टियों से मुक्ति की बात की होगी ?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस ने उस समाज में व्यक्ति को निम्नलिखित दृष्टियों से मुक्त होने की बात की होगी-
- समाज के दबाव से मुक्तिः व्यक्ति समाज के अनुचित दबावों से मुक्त हो ।
- जातिभेद से मुक्तिः समाज में जातिभेद का कोई स्थान न हो।
- लैंगिक असमानता से मुक्तिः पुरुष और महिलाओं के बीच कोई असमानता न हो, महिलाएँ पुरुषों की तरह समान अधिकार का उपभोग करें।
- अल्पसंख्यक समुदायः उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म की रक्षा के लिए विशेष अधिकार और भेदभाव से सुरक्षा मिले।
- आदिवासी और जनजातीय समुदायः उनकी भूमि, संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली की सुरक्षा के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के बेहतर अवसर मिले।
- एकल माता-पिता या विधवाएँ: उन्हें वित्तीय सहायता, बच्चों की परवरिश में सहयोग और सामाजिक सुरक्षा दी जाएँ।
- कुपोषित बच्चे और गर्भवती महिलाएँ: बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जाए ।
(घ) सुभाषचंद्र बोस देश के समस्त युवा वर्ग को संबोधित करते हुए कहते हैं- “हे मेरे तरुण भाइयो!” उनका संबोधन केवल ‘भाइयो’ शब्द तक ही क्यों सीमित रहा होगा ?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस का संबोधन “हे मेरे तरुण भाइयो! ” केवल ‘भाइयों’ शब्द तक सीमित इसलिए रहा होगा क्योंकि उस समय (और काफी हद तक आज भी) सार्वजनिक भाषणों में पुरुष संबोधन का अधिक चलन था। यह उस समय के सामाजिक मानदंडों को दर्शाता है जहाँ पुरुषों को अकसर ही सार्वजनिक जीवन में अधिक प्रमुख माना जाता था।
हालाँकि, उनके सपनों के समाज में नारी को पुरुषों के समान अधिकार दिए जाने की बात से यह स्पष्ट होता है कि वे नारी को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानते थे। यह केवल संबोधन की एक शैली हो सकती है जो तत्कालीन भाषायी और सामाजिक परंपराओं के कारण उपयोग की गई होगी, कि महिलाओं को अनदेखा करने का इरादा। उनके विचारों में निश्चित रूप से ‘तरुण बहनों’ का भी समावेश ।
(ङ) “यह स्वप्न मैं तुम्हें उपहारस्वरूप देता हूँ- स्वीकार करो !” सुभाषचंद्र बोस के इस आह्वान पर श्रोताओं (युवा वर्ग) की क्या प्रतिक्रिया रही होगी?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस के इस आह्वान पर श्रोताओं (विशेष रूप से युवा वर्ग) की प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहपूर्ण और प्रेरित करने वाली रही होगी। वे निम्नलिखित तरीकों से प्रतिक्रिया कर सकते थे:
- जोश और जुनून: युवाओं में देश के लिए कुछ करने का जोश और जुनून बढ़ा होगा। उन्हें लगा होगा कि उन्हें एक स्पष्ट लक्ष्य और दिशा मिल गई है।
- प्रेरणा और संकल्पः बोस के शब्दों ने उन्हें अपने देश के लिए व्यक्तिगत त्याग करने और एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित किया होगा ।
- आशा और विश्वासः एक ऐसे नए, स्वाधीन और समतावादी समाज की कल्पना ने उन्हें भविष्य के लिए आशा और विश्वास दिलाया होगा ।
- समर्थन और भागीदारी: कई युवा उनके विचारों का सक्रिय रूप से समर्थन करने और उनके आंदोलन में शामिल होने के लिए आगे आए होंगे।
- सवाल और चिंतन: कुछ युवा इस सपने को साकार करने की चुनौतियों के बारे में चिंतन भी कर सकते थे, लेकिन कुल मिलाकर, यह एक सकारात्मक और शक्तिशाली प्रभाव डालता।
यह आह्वान युवाओं को एक महान उद्देश्य से जुड़ने और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए एक प्रेरणादायक संदेश था।
शीर्षक
(क) आपने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के भाषण का एक अंश पढ़ा है, इसे ‘तरुण के स्वप्न’ शीर्षक दिया गया है। अपने समूह में चर्चा करके लिखिए कि यह शीर्षक क्यों दिया गया होगा ?
उत्तर:
‘तरुण के स्वप्न’ शीर्षक दिए जाने के निम्न कारण होंगे-
- युवा वर्ग पर केंद्रितः सुभाषचंद्र बोस ने अपने भाषण में विशेष रूप से ‘तरुण भाइयो!’ कहकर युवा वर्ग को संबोधित किया है। वे युवाओं को अपने विचारों और सपनों का उत्तराधिकारी मानते हैं।
- भविष्य की कल्पना: भाषण में एक नए, स्वाधीन, संपन्न और समतावादी समाज तथा राष्ट्र की विस्तृत कल्पना की गई है। यह कल्पना एक ऐसे आदर्श भविष्य की है जिसे युवा ही साकार कर सकते हैं।
- स्वप्न का महत्व: सुभाषचंद्र बोस ने अपने और चित्तरंजन दास के स्वप्नों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कैसे इन सपनों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना है। यह ‘स्वप्न’ केवलं एक कल्पना नहीं, बल्कि एक लक्ष्य और आदर्श है जिसे प्राप्त करना है।
- युवाओं की भूमिकाः वे इस स्वप्न को युवाओं को ‘उपहारस्वरूप’ देते हैं, जिसका अर्थ है कि वे युवाओं को इस स्वप्न को साकार करने की ज़िम्मेदारी सौंप रहे हैं।
- आदर्श समाज का निर्माणः भाषण में जिस समाज की बात की गई है, वह जातिभेद, लैंगिक असमानता, आर्थिक विषमता और आलस्य से मुक्त होगा । ऐसे आदर्श, समाज का निर्माण युवा शक्ति के द्वारा ही संभव है।
संक्षेप में, यह शीर्षक सुभाषचंद्र बोस के उस आदर्श राष्ट्र की‘कल्पना को दर्शाता है, जिसे वे युवाओं के माध्यम से साकार करना चाहते थे और युवाओं को इस महान लक्ष्य के लिए प्रेरित करना उनका मुख्य उद्देश्य था ।
(ख) यदि आपको भाषण के इस अंश को कोई अन्य नाम देना हो तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? यह भी लिखिए।
उत्तर:
यदि मुझे इस भाषण के अंश को कोई अन्य नाम देना हो तो मैं इसे “राष्ट्र का नव-निर्माण एक आदर्श समाज की परिकल्पना” नाम दूँगा।
मैंने यह नाम इसलिए सोचा क्योंकि :
- राष्ट्र का नव-निर्माणः भाषण का मुख्य ज़ोर एक नए, स्वतंत्र और पूर्ण राष्ट्र के निर्माण पर है, जो अतीत की बुराइयों से मुक्त हो ।
- एक आदर्श समाज की परिकल्पनाः भाषण में सुभाषचंद्र बोस ने जातिविहीन, लैंगिक समानता वाला, आर्थिक विषमता से मुक्त और सभी के लिए समान अवसर वाला एक आदर्श समाज बनाने की विस्तृत कल्पना की है। यह केवल स्वतंत्रता की बात नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के बाद के समाज की संरचना कैसी होगी, इस पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
- व्यापकताः यह शीर्षक ‘तरुण के स्वप्न’ से अधिक व्यापक है, क्योंकि यह केवल युवाओं पर नहीं, उस समग्र लक्ष्य पर केंद्रित है जिसे वे प्राप्त करना चाहते थे, जिसमें युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह भाषण के मूल संदेश को अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
(ग) सुभाषचंद्र बोस ने अपने समय की स्थितियों या समस्याओं को अपने संबोधन में स्थान दिया है। यदि आपको अपनी कक्षा को संबोधित करने का अवसर मिले तो आप किन-किन विषयों को अपने उद्बोधन में सम्मिलित करेंगे और उसका क्या शीर्षक रखेंगे।
उत्तर:
यदि मुझे अपनी कक्षा को संबोधित करने का अवसर मिले, तो मैं अपने समय की कुछ महत्वपूर्ण स्थितियों और समस्याओं को अपने उद्बोधन में सम्मिलित करूँगा।
उद्बोधन का शीर्षक: ” भविष्य के निर्माता हमारे समाज की चुनौतियाँ और हमारे कर्तव्य”
विषय जिन्हें मैं सम्मिलित करूंगा:
- डिजिटल नागरिकता और ऑनलाइन सुरक्षाः
- समस्याः सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग, फेक न्यूज़, साइबरबुलिंग, ऑनलाइन धोखाधड़ी और निजता का उल्लंघन।
- बातः ज़िम्मेदार डिजिटल व्यवहार, सूचना की सत्यता की जाँच, ऑनलाइन सुरक्षा प्रोटोकॉल और साइबरबुलिंग के खिलाफ़ जागरूकता ।
- मानसिक स्वास्थ्य और तनाव:
- समस्याः अकादमिक दबाव, साथियों का दबाव, भविष्य की चिंताएँ, और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी।
- बातः मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना, तनाव प्रबंधन तकनीकें, सहायता माँगने का महत्व, और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति ।
- कौशल विकास और भविष्य के रोज़गार :
- समस्याः तेज़ी से बदलते रोज़गार परिदृश्य और पारंपरिक शिक्षा के बाद भी कौशल की कमी।
- बात: निरंतर सीखने का महत्व, नई तकनीकियों को अपनाना, सॉफ्ट स्किल्स (जैसे संचार, टीम वर्क, समस्या-समाधान) का विकास और उद्यमिता के अवसर।
क्यों ये विषय चुनाः
ये विषय आज के युवाओं के जीवन और भविष्य को सीधे प्रभावित करते हैं। इन समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाकर और समाधानों पर चर्चा करके, हम उन्हें भविष्य के लिए अधिक ज़िम्मेदार, जागरूक और सशक्त नागरिक बनने में मदद कर सकते हैं। जिससे वे केवल ज्ञान प्राप्त करने वाले नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने वाले ‘भविष्य के निर्माता’ बन सकें।
![]()
भाषा की बात
(क) सुभाषचंद्र बोस ने अपने भाषण में संख्या, संगठन या भाव आदि का बोध कराने वाले शब्दों के साथ उनकी विशेषता अथवा गुण बताने वाले शब्दों का प्रयोग किया है। उनके भाषण से विशेषता अथवा गुण बताने वाले शब्द ढूँढ़कर दिए गए शब्द समूह को पूरा कीजिए ।

उत्तर:

(ख) सुभाषचंद्र बोस ने तो उपर्युक्त विशेषताओं के साथ इन शब्दों को रखा है। आप किन विशेषताओं के साथ इन उपर्युक्त शब्दों को रखना चाहेंगे और क्यों? लिखिए। उत्तर:
यदि मुझे इन शब्दों के लिए विशेषण चुनने हों, तो मैं समकालीन संदर्भ का ध्यान में रखते हुए, फिर भी मूल मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास करूँगा। मेरे चुनाव और उनके पीछे के कारण इस प्रकार हैं-
- सत्यः मैं इस दृढ़ता के साथ जोड़ना चाहूँगा कि आज के समय में जहाँ गलत सूचना और स्वार्थपरक आख्यान आम हैं, सत्य का पालन करने के लिए दृढ़ता और अटूट प्रतिबद्ता की आवश्यकता है। केवल सत्य जानना पर्याप्त नहीं है; व्यक्ति को उस पर दृढ़ता से खड़ा रहना चाहिए ।
- जीवन: मैं इसे ‘सार्थकता’ के साथ जोड़ना चाहूँगा । जबकि ‘शुद्ध’ जीवन वांछनीय है, ‘सार्थक’ जीवन केवल अस्तित्व से परे उद्देश्य, योगदान और पूर्णता पर जोर देता है। तेज़ी से बदलती दुनिया में, किसी के कार्यों और योगदानों में अर्थ खोजना कल्याण और सामाजिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।
- समाजः मैं इसे ‘समतावादी’ के साथ जोड़ना चाहूँगा । जबकि ‘स्वदेशी’ सांस्कृतिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण है, एक समतावादी समाज अपने सभी सदस्यों के लिए, पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, निष्पक्षता, समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करता है। यह समावेशिता और सद्भाव को बढ़ावा देता है ।
- शक्तिः मैं इसे ‘ज़िम्मेदारी’ के साथ जोड़ना चाहूँगा ।
जबकि ‘असीम’ शक्ति आकर्षक लग सकती है, अनियंत्रित शक्ति दुरुपयोग और उत्पीड़न का कारण बन सकती है। ज़िम्मेदार शक्ति, चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, बड़े अच्छे के लिए इसके नैतिक और रचनात्मक अनुप्रयोग का तात्पर्य है । - राष्ट्रः मैं इसे ‘प्रगतिशीलता’ के साथ जोड़ना चाहूँगा । जबकि ‘स्वाधीन’ मौलिक है, एक प्रगतिशील राष्ट्र लगातार सभी पहलुओं- सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी और पर्यावरणीय- में सुधार के लिए प्रयासरत रहता है, चुनौतियों के अनूकुल और अपने नागरिकों के लिए सकारात्मक बदलाव को अपनाता है।
- आनंद : मैं इसे ‘सामूहिकता’ के साथ जोड़ना चाहूँगा । जबकि ‘अपार’ आनंद एक व्यक्तिगत आकांक्षा है, सामूहिक आनंद समुदाय, सहयोग और आपसी समर्थन से प्राप्त साझा कल्याण और खुशी को दर्शाता है। तेज़ी से जुड़ी हुई दुनिया में, वास्तविक और स्थायी आनंद अकसर साझा अनुभवों और सामूहिक समृद्धि से आता है। मेरे चुनाव उन मूल्यों को दर्शाने का प्रयास करते हैं जो 21वीं सदी में विशेष रूप से प्रासंगिक हैं: चुनौतियों का सामना करने में लचीलापन, उद्देश्य – संचालित जीवन, सामाजिक न्याय, शक्ति का नैतिक उपयोग, निरंतर विकास और समुदाय का महत्व |
विपरीतार्थक शब्द और उनके प्रयोग
(क) “ और उस पर एक स्वाधीन राष्ट्र ” इस वाक्यांश में रेखांकित शब्द ‘स्वाधीन’ का विपरीत अर्थ देने वाला शब्द है ‘पराधीन’। इसी प्रकार के कुछ विपरीतार्थक शब्द आगे दिए गए हैं, लेकिन वे आमने-सामने नहीं हैं। रेखाएँ खींचकर विपरीतार्थक शब्दों के सही जोड़े बनाइए-


उत्तर:

(ख) अब स्तंभ 1 और स्तंभ 2 के सभी शब्दों से दिए गए उदाहरण के अनुसार वाक्य बनाकर लिखिए, “ समाज की उन्नति अकर्मण्य नहीं अपितु कर्मण्य व्यक्तियों पर निर्भर है।”
उत्तर:
- नागरिकों की कुछ माँगों को सरकार ने स्वीकार किया और कुछ को अस्वीकार कर दिया ।
- सार्थक बातों पर ही ध्यान दें निरर्थक बातों पर नहीं ।
- समानता और विषमता दोनों ही समाज की विविधता को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- क्षुद्र मनुष्य ही अपने विचारों से विशाल परिवर्तन कर सकता है।
- संपन्न लोगों को विपन्न लोगों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।
- अकर्मण्य व्यक्ति अवसर खो देता है जबकि कर्मण्य व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है।
- जीवन और मरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
पाठ से आगे
आपकी बात
(क) आपने सुभाषचंद्र बोस के स्वप्न के बारे में जाना। आप अपने विद्यालय, राज्य और देश के बारे में कैसे स्वप्न देखते हैं? लिखिए।
उत्तर:
मैं अपने विद्यालय, राज्य और देश के बारे में निम्नलिखित स्वप्न देखता हूँ–
मेरे विद्यालय के बारे में स्वप्न-
- मैं चाहता हूँ कि मेरा विद्यालय एक ऐसा संस्थान बने जहाँ हर बच्चा खुशी-खुशी सीखने आए।
- शिक्षण विधियाँ रचनात्मक और व्यावहारिक हों, ताकि बच्चे रटने के बजाय समझ सकें और अपने ज्ञान का प्रयोग कर सकें।
- विद्यालय में अत्याधुनिक सुविधाएँ हों, जैसे अच्छी लाइब्रेरी, विज्ञान प्रयोगशालाएँ और खेल के मैदान ।
- शिक्षक और छात्र एक-दूसरे का सम्मान करें और एक सहयोगी वातावरण में काम करें।
मेरे राज्य के बारे में स्वप्न-
- मेरा राज्य एक ऐसा मॉडल राज्य बने जहाँ सभी नागरिक शांति और सद्भाव से रहें; जाति, धर्म या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
- सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हो, चाहे वे किसी भी आर्थिक पृष्ठभूमि से हों ।
- रोज़गार के पर्याप्त अवसर हों ताकि कोई युवा बेरोज़गार न रहे।
मेरे देश के बारे में स्वप्न-
- मैं एक ऐसे भारत का स्वप्न देखता हूँ जो आर्थिक रूप से शक्तिशाली हो, लेकिन साथ ही मानवीय मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों को भी बनाए रखे ।
- हमारा देश गरीबी और निरक्षरता से पूरी तरह मुक्त हो ।
- महिलाएँ और पुरुष हर क्षेत्र में समान रूप से आगे बढ़े और उन्हें पूर्ण सम्मान मिले।
![]()
(ख) हमें बड़े संघर्षों के बाद स्वतंत्रता मिली है। अपनी इस स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हम अपने स्तर पर क्या – क्या कर सकते हैं? लिखिए ।

उत्तर:
हमें जो स्वतंत्रता मिली है, वह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के अथक संघर्षों और बलिदानों का परिणाम है। इस बहुमूल्य स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हम अपने स्तर पर बहुत कुछ कर सकते हैं-
- संविधान का सम्मान करें और नियमों का पालन करें: हमारा संविधान हमारे देश की रीढ़ है। हमें इसके मूल्यों, सिद्धांतों और कानूनों का सम्मान करना चाहिए और एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में उनका पालन करना चाहिए।
- शिक्षित बनें और दूसरों को भी प्रेरित करें : शिक्षा हमें सही और गलत का अंतर समझने में मदद करती है। हमें खुद भी शिक्षित होना चाहिए और दूसरों को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि एक शिक्षित समाज ही जागरूक समाज होता है।
- सामाजिक न्याय और समानता का समर्थन करें: हमें जाति, धर्म, लिंग या किसी भी आधार पर होने वाले भेदभाव का विरोध करना चाहिए। सभी नागरिकों को समान अवसर मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए।
- पर्यावरण का ध्यान रखें: एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण हमारे भविष्य के लिए आवश्यक है। हमें प्रदूषण कम करने, पेड़ लगाने और प्राकृतिक संसाधनों का समझारी से उपयोग करने में योगदान देना चाहिए ।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें: सड़कें, पुल, पार्क, अस्पताल आदि हमारी सार्वजनिक संपत्ति हैं। हमें इनकी सुरक्षा और रख-रखाव में सहयोग करना चाहिए।
- अपने कर्तव्यों का पालन करें: अधिकारों के साथ-साथ हमारे कुछ कर्तव्य भी होते हैं। हमें अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए, चाहे वह अपने घर में हो, विद्यालय में हो या समाज में।
इन छोटे-छोटे प्रयासों से हम सभी अपनी स्वतंत्रता को मज़बूत और चिरस्थायी बना सकते हैं।
मिलान कीजिए
(क) नीचे स्तंभ 1 में स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित कुछ तथ्य दिए गए हैं और स्तंभ 2 में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम दिए गए हैं। तथ्यों को स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से रेखा खींचकर सही मिलान कीजिए। इसके लिए आप अपने शिक्षकों, अभिभावकों और पुस्तकालय तथा इंटरनेट की सहायता ले सकते हैं।

उत्तर:
1. – 6
2. – 4
3. – 5
4. – 2
5. – 1
6. – 3
(ख) इनमें से एक स्वतंत्रता सेनानी का नाम ‘तरुण से स्वप्न’ पाठ में भी आया है। उसे पहचान कर लिखिए ।
उत्तर:
देशबंधु चित्तरंजन दास
सर्वांगीण स्वाधीन संपन्न समाज के लिए प्रयास
• नेताजी सुभाषचंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वाधीन संपन्न समाज की स्थापना के लिए अपने समय में अनेक प्रयास किए। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इस दिशा में क्या- क्या उल्लेखनीय प्रयत्न किए गए ‘हैं? अपनी सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक, अपने अनुभवों एवं पुस्तकालय की सहायता से लिखिए।
उत्तर:
नेताजी सुभाषचंद्र बोस और हमारे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने ऐसे भारत का स्वप्न देखा था जहाँ समाज के सभी वर्ग समान हों, शिक्षित हों और आर्थिक रूप से संपन्न हों। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, इस स्वप्न को साकार करने के लिए भारत सरकार और समाज द्वारा अनेक महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं-
- संविधान का निर्माण: भारत ने एक ऐसा विस्तृत संविधान अपनाया जो सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करता है। इसमें मौलिक अधिकार और निर्देशक सिद्धांत शामिल हैं जो सामाजिक-आर्थिक न्याय की नींव रखते हैं।
- पंचवर्षीय योजनाएँ: देश के सर्वागीण विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ शुरू की गईं, जिनका उद्देश्य कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे को मज़बूत
करना था। - शिक्षा का विस्तार : शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रम चलाए गए। शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया ताकि हर बच्चे को शिक्षा मिल सके।
- स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली मज़बूत किया गया, टीकाकरण कार्यक्रम चलाए गए और विभिन्न स्वास्थ्य योजनाएँ शुरू की गईं ताकि सभी तक चिकित्सा सुविधाएँ पहुँच सकें।
- आर्थिक समानता के प्रयासः भूमि सुधार, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (जैसे मनरेगा), जन धन योजना और विभिन्न कौशल विकास योजनाएँ लागू की गईं ताकि आर्थिक विषमता कम हो सके और रोज़गार के अवसर बढ़ें।
- सामाजिक सुधारः अस्पृश्यता उन्मूलन, महिला सशक्तीकरण (आरक्षण, समान वेतन) और कमज़ोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों के माध्यम से एक समतावादी समाज बनाने का प्रयास किया गया है।
- औद्योगिक और कृषि विकासः हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाया, जबकि विभिन्न उद्योगों की स्थापना से देश आत्मनिर्भर बना।
इन सभी प्रयासों का लक्ष्य एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ हर व्यक्ति गरिमापूर्ण जीवन जी सके और देश के विकास में अपना योगदान दे सके।
स्त्री सशक्तीकरण
(क) सुभाषचंद्र बोस ने स्त्रियों के लिए समान अधिकार की बात की है। अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि उन्हें कौन-कौन से विशेषाधिकार राज्य की ओर से दिए गए हैं?
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का समर्थन किया। आज भारतीय राज्य ने स्त्रियों को सशक्त करने के लिए कई विशेषाधिकार दिए हैं। शिक्षा में उन्हें आरक्षण और छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाती हैं। सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं के लिए आरक्षण होता है, जिससे उनकी भागीदारी बढ़े। संपत्ति में उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिले हैं।
घरेलू हिंसा से सुरक्षा और कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से बचाव के लिए कानून बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए विशेष स्वास्थ्य सुविधाएँ और मातृत्व लाभ दिए जाते हैं। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है। ये सभी कदम स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में उनकी स्थिति को मज़बूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
![]()
(ख) सुभाषचंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ का नेतृत्व किया था। उसमें एक टुकड़ी स्त्रियों की भी थी। उस टुकड़ी का नाम पता लगाकर लिखिए। उस टुकड़ी की भूमिका ‘क्या थी? यह भी बताइए |
उत्तर:
सुभाषचंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ का नेतृत्व किया था, जिसमें स्त्रियों की भी एक महत्वपूर्ण टुकड़ी थी। इस टुकड़ी का नाम ‘रानी झाँसी रेजिमेंट’ था। इस रेजिमेंट की भूमिका केवल प्रतीकात्मक नहीं थी, बल्कि वे सशस्त्र संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित की जाती थीं। यद्यपि उन्हें सीधे युद्ध के मैदान में अग्रिम पंक्ति में लड़ने का अवसर कम मिला, उनकी मुख्य भूमिका चिकित्सा सहायता प्रदान करना, आपूर्ति का प्रबंधन करना और मोर्चे के पीछे के अभियानों में सहायता करना था।
उन्होंने अपने साहस और समर्पण से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया, यह दर्शाते हुए कि महिलाएँ भी देश की आज़ादी के लिए पुरुषों के समान बलिदान देने को तैयार थीं। यह रेजिमेंट महिलाओं की क्षमता और देशभक्ति का प्रतीक बनी।
आपके प्रिय स्वतंत्रता सेनानी
• आप किस स्वतंत्रता सेनानी के कार्यों व विचारों से प्रभावित हैं? कारण सहित लिखिए और अभिनय (रोल प्ले) करते हुए उनके विचारों को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
मैं महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों से प्रभावित हूँ। इसके कई कारण हैं:
- अहिंसक आंदोलन (सत्याग्रह): गांधीजी का सबसे बड़ा योगदान उनका अहिंसक प्रतिरोध का सिद्धांत था, जिसे ‘सत्याग्रह’ कहा जाता है। उन्होंने बिना हथियार उठाए, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। यह एक क्रांतिकारी विचार था जिसने न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया।
- जनभागीदारी: उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन आंदोलन में बदल दिया। उन्होंने आम लोगों, किसानों, मज़दूरों और महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा, जिससे यह केवल कुछ नेताओं का आंदोलन न रहकर पूरे देश का आंदोलन बन गया।
- सामाजिक सुधार : गांधीजी केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए ही नहीं लड़े, बल्कि उन्होंने छुआछूत, सांप्रदायिक भेदभाव और गरीबी जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए भी काम किया। उन्होंने स्वच्छता, ग्राम स्वराज और स्वदेशी को बढ़ावा दिया, जो एक आत्मनिर्भर और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण थे।
- नैतिक नेतृत्वः उनका जीवन ही उनका संदेश है। उन्होंने सादगी, ईमानदारी और नैतिक मूल्यों पर ज़ोर दिया। उनका व्यक्तिगत आचरण उनके सिद्धांतों के अनुरूप था, जिसने उन्हें एक शक्तिशाली और विश्वसनीय नेता बनाया।
गांधीजी के ये कार्य और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और दुनिया भर में शांति, न्याय और सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।”
• नीचे स्तंभ 1 में कुछ नारे दिए गए हैं। नारों के सामने लिखिए कि यह किसके द्वारा दिया गया ? आप पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।

उत्तर:
| नारा | स्वतंत्रता सेनानी |
| स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक |
| करो या मरो | महात्मा गांधी |
| मैं आज़ाद ही मरूँगा | चंद्रशेखर आज़ाद |
| इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद | भगत सिंह |
| पूर्ण स्वराज | महात्मा गांधी |
![]()
परियोजना कार्य
• आप सभी राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में पढ़कर उनमें से 10 महिला एवं 10 पुरुष स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र का संग्रह करके एक संग्रहिका तैयार कीजिए | चित्रों के नीचे उनके विशेष योगदान के बारे में एक-दो वाक्य भी लिखिए। अपनी संग्रहिका तैयार करते समय ध्यान रखिए कि आप किसी भी राज्य से एक से अधिक व्यक्ति न चुने ।
उत्तर:
विद्याथी स्वयं संग्रहिका तैयार करें।
झरोखे से
आपने जो पाठ पढ़ा है उसमें सुभाषचंद्र बोस तरुणों से अपने सपनों की बात करते हैं। अब आप नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा लिखित पत्र पढ़िए जिसमें उन्होंने गृह एवं कुटीर उद्योग पर अपने विचार व्यक्त किए हैं—
गृहउद्योग के विषय में नेताजी का एक पत्र
मुझे जहाँ तक याद है (मैं मात्र एक बार ‘पॉलिटेकनीक’ में गया था), पॉलिटेकनीक के सभी कामों में एकमात्र बेंत का काम अथवा मिट्टी के खिलौने बनाने का काम हमें गृह उद्योग के रूप में चलाना होगा। अब यदि अंत में मिट्टी के खिलौने बनाने का काम चलाने का प्रस्ताव हो तो कोई भी कुछ दिनों में ही यह काम सीख सकता है। खर्च कुछ भी नहीं लगेगा और हम जब गृह उद्योग प्रारंभ करेंगे तब मात्र रंगों के लिए कुछ नकद रुपये खर्च होंगे। इसके अलावा बहुत कम खर्च होगा।
एक बात मेरे मन में बार-बार उठती रहती है— पहले भी शायद इस विषय में मैंने लिखा है— सीप के बटन तैयार करना। बंगाल के बहुत-से गाँवों में यह काम घर-घर में हो रहा है। गरीब गृहस्थों के घरों में स्त्री-पुरुष अपनी फुरसत के समय में यह काम करते रहते हैं। किसी एक कार्यकर्ता को बहुत कम समय में यह काम सिखाया जा सकता है। अथवा यह काम जानने और सिखाने वाले एक नए कार्यकर्ता को आप लोग नियुक्त कर सकते हैं। मुझे लगता है कि पत्थरों के ऊपर घिसकर बटन बनाया जा सकता है— हम चाहें तो बना सकते हैं। सिर्फ पतला कोई यंत्र हो जिससे छेद किया जा सके।
इसके अलावा गोल काटने के लिए एक धारदार यंत्र की आवश्यकता पड़ सकती है। समिति की ओर से कुछ यंत्र और एक बोरा सीप मँगाकर ही यह काम प्रारंभ किया जा सकता है। काम सहायता-प्रार्थियों में आबद्ध रहेगा, किंतु एक बार कारगर होने पर आप देखेंगे कि गरीब परिवार अपनी आय बढ़ाने के लिए यह काम स्वयं आरंभ कर देगा। समिति सिर्फ सस्ते दामों में रॉ मैटीरियल आदि जुटा देगी और तैयार वस्तुओं को अधिक दामों में बेचने की व्यवस्था करेगी। यह काम आरंभ करना पड़ा तो पहले-पहल इसके लिए बहुत अधिक समय देना होगा।
बंगाल में बटन-निर्माण गृह उद्योग के रूप में ही चल रहा है। बहुतों का खयाल है कि बंगाल के बटन फैक्टरी में बनते हैं किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। गाँव-देहात के घर-घर में, फुरसत के समय, यहाँ तक कि रसोई के समय में से बचे खाली समय में भी, स्त्रियाँ यह काम करती रहती हैं इसीलिए इतने सस्ते में यह बटन मिलते हैं।
– दक्षिण कलकत्ता सेवक-समिति के उप-मंत्री, श्री अनिलचंद्र विश्वास को मांडले जेल से लिखे गए सुभाषचंद्र बोस के पत्र से।
• (इससे संबंधित अंश पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या – 149 पर देखें।)
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
साझी समझ
उपर्युक्त पत्र में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने गृह एवं कुटीर उद्योग की बात की है। यह पत्र देश की स्वतंत्रता से पहले लिखा गया था। अपने आस-पास के गृह एवं कुटीर उद्योगों के विषय में अपने साथियों के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने साथियों के साथ दिए गए विषय पर चर्चा करें।
खोजबीन के लिए
नीचे दी गई इंटरनेट कड़ी का प्रयोग करके आप सुभाषचंद्र बोस पर आधारित फिल्म देख सकते हैं।
- आजाद हिंद फौज’ के विषय में और अधिक जानकारी जुटाइए और अपनी कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
- (पृष्ठ संख्या – 150 पर दिए गए लिंक पर क्लिक करके विद्यार्थी सुभाषचंद्र बोस पर आधारित फ़िल्म देख सकते हैं ।)