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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 13 जरासंध
Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 13
पाठाधारित प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जरासंध कौन था?
उत्तर:
जरासंध मगध देश का राजा था, और कंस उसका दामाद था।
प्रश्न 2.
नियम के अनुसार, राजसूय यज्ञ कौन करने का अधिकारी होता था?
उत्तर:
जो संपूर्ण संसार में राजाओं में पूज्य हो, वह राजा ही राजसूय यज्ञ कर सकता था।
प्रश्न 3.
राजसूय यज्ञ करने की इच्छा से युधिष्ठिर ने किससे सलाह ली।
उत्तर:
राजसूय करने की इच्छा से युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से सलाह ली।
प्रश्न 4.
युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का इरादा क्यों छोड़ा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने सम्राट का विचार छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझा, क्योंकि उन्हें भीम व अर्जुन की बातों से यह संदेक होने लगा कि राजसूय यज्ञ करने के लिए कई लोगों के प्राणों की बलि चढ़ जाएगी। अतः उन्होंने इस इरादे को बदल देना ही श्रेष्यकर समझा।
प्रश्न 5.
युधिष्ठिर की अनिच्छा को देखते हुए अर्जुन ने क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ का विचार छोड़ देने की बात कही, तब अर्जुन ने कहा- “यदि हम यशस्वी भरतवंश की संतान होकर भी कोई साहस का काम न करें, तो धिक्कार है हमें और हमारे जीवन को। जिस काम को करने की शक्ति है, भाई युधिष्ठिर क्यों ऐसा समझते हैं कि हम नहीं कर पाएंगे।
प्रश्न 6.
अर्जुन के उद्गार सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने क्या कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण अर्जुन की इन बातों को सुनकर मंत्र-मुग्ध हो गए। बोले-“धन्य हो अर्जुन! कुंती के लाल, अर्जुन से मुझे यही आशा थी।”
प्रश्न 7.
जरासंध का वध किसने किया?
उत्तर:
जरासंध का वध भीम ने किया।
प्रश्न 8.
राजसूय यज्ञ में किसकी अग्रपूजा की गई?
उत्तर:
राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण की अग्रपूजा की गई।
प्रश्न 9.
श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम किस रूप में जरासंध के पास पहुँचे?
उत्तर:
वे ब्राह्मण के व्रती लोगों का वेश बनाकर जरासंध के पास पहुंचे।
प्रश्न 10.
श्रीकृष्ण की अग्रपूजा का विरोध किसने किया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की अग्रपूजा का विरोध शिशुपाल ने किया।
प्रश्न 11.
राजसूय संपन्न होने के बाद किसे राजाधिराज की पदवी मिली।
उत्तर:
राजसूय यज्ञ समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर को राजाधिराज की पदवी प्राप्त हुई।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ में क्या बाधा बताई ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ में जरासंध की बाधा बताई। उसके जीवित रहते इस प्रकार का यज्ञ करना संभव नहीं था। सभी राजा उसका लोहा मानते थे। उसके नाम से सभी डरते थे। श्रीकृष्ण भी उससे तीन वर्ष तक लड़ते रहे, पर उसे जीत नहीं पाए। उसने अनेक राजाओं को बंदीगृह में डाल रखा था। उनको छुड़ाना होगा। जरासंध के वध के बाद ही राजसूय यज्ञ हो पाएगा।
प्रश्न 2.
जरासंध किस प्रकार मारा गया?
उत्तर:
जरासंध अतिथियों का परिचय जानकर उनसे दवंदव युदध करने लगा। वे तेरह दिन तक यदध करते रहे। चौदहवें दिन जरासंध थका और थोड़ी देर के लिए रुका। श्रीकृष्ण ने इशारों में भीम को कुछ समझाया। भीम उसे उठाकर चारों तरफ़ घुमाया और जोर से ज़मीन पर पटक दिया। पटकने के बाद ज़मीन पर गिरने के बाद उसकी मौत हो गई। इस प्रकार जरासंध का अंत हो गया।
प्रश्न 3.
शिशुपाल का वध किसने? और क्यों किया?
उत्तर:
शिशुपाल का वध श्रीकृष्ण ने किया। वह राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण की अग्रपूजा का विरोध कर रहा था। अतः उसके जिदद और अहंकार को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ युद्ध किया। इसमें शिशुपाल मारा गया।
Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 13
इंद्रप्रस्थ में पांडव न्यायपूर्वक राज कर रहे थे। पांडवों और युधिष्ठिर की इच्छा हुई की राजसूय यज्ञ किया किया जाए। इसके लिए उन्होंने श्रीकृष्ण को संदेश भेजा और श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ आ गए। युधिष्ठिर ने अपना प्रस्ताव श्रीकृष्ण के सामने रखा। श्रीकृष्ण ने बताया कि राजसूय यज्ञ वही कर सकता है जो सारे संसार के राजाओं का पूज्य हो तथा उनके द्वारा सम्मानित हो, मगध के राजा जरासंध ने देश के सभी राजाओं को अपने अधीन कर रखा है। यहाँ तक की शिशुपाल जैसे राजा भी जरासंध की अधीनता स्वीकार कर चुके हैं। अतः जरासंध के जीवित रहते हुए कौन सम्राट का पद हासिल कर सकता है। मैंने उसके साथ तीन वर्ष युद्ध किया अंत में हार गया। मुझे मथुरा छोड़ द्वारिका में रहना पड़ा। जब कंस जरासंध की बेटी से ब्याह कर उसका साथी बन गया था तब मैंने उसके साथ युद्ध किया था। उधर जरासंध की कारागार में अनेक राजे-महाराजे कैद हैं। अतः पहले जरासंध को मारकर बंदी राजाओं को छुड़ाना होगा। जब तक जरासंध जीवित है तब तक आप राजसूय यज्ञ नहीं कर पाएँगे।
श्रीकृष्ण के विचार सुनकर युधिष्ठिर सम्राट बनने का विचार छोड़ने की बात करने लगे। भीम ने युधिष्ठिर से कहा- श्रीकृष्ण की नीति-कुशलता, मेरा शारीरिक बल और अर्जुन का शौर्य एक साथ मिल जाने पर कौन-सा ऐसा काम है, जो हम नहीं कर सकते? यदि तीनों एक साथ चलें तो जरासंध की शक्ति को समाप्त कर देंगे। आप इस बात की शंका न करें।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा- “यदि भीम और अर्जुन तैयार हों, तो हम तीनों मिलकर एक साथ जाकर उस अन्यायी की जेल में पड़े हुए निर्दोष राजाओं को छुड़ा सकेंगे।” लेकिन युधिष्ठिर इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा- मैं तो कहूँगा कि जिस कार्य में प्राणों पर बन जाए उस विचार को छोड़ देना चाहिए।
अर्जुन इस बात को सुनकर बोले- यदि हम यशस्वी भरत वंश की संतान होकर भी कोई भी साहस का काम न करें तो धिक्कार है अपने जीवन पर। जिस काम को करने की हममें सामर्थ्य है, भाई युधिष्ठिर ऐसा क्यों सोचते हैं कि हम नहीं कर सकेंगे।”
जरासंध से युद्ध का निर्णय होने पर श्रीकृष्ण, भीम तथा अर्जुन ब्राह्मण का वेश धारण कर तत्काल वस्त्र पहनकर कुशा हाथ में लेकर जरासंध की राजधानी पहुंच गए।
जरासंध ने ब्राह्मण समझकर उनका आदर सम्मान दिया। श्रीकृष्ण ने जरासंध से कहा- मेरे दोनों साथियों ने मौनव्रत लिया हुआ है। इस कारण ये अभी नहीं बोलेंगे। आधी रात के बाद व्रत खुलने पर बात चीत करेंगे। जरासंध ने इस बात पर विश्वास कर लिया और तीनों मेहमानों को यज्ञशाला में ठहराकर महल में चला गया। अगर कोई ब्राह्मण जरासंध के पास आता था तो उनकी इच्छा तथा सुविधा के अनुसार बातें करना व उनका सत्कार करना जरासंध का व्यवहार था। इसके अनुसार आधी रात के बाद जरासंध अतिथियों से मिलने गया, परंतु अतिथियों के रंग-ढंग देखकर मगध नरेश के मन में कुछ शंका हुई।
राजा जरासंध ने कड़ककर पूछा- “सच बताओ, तुम लोग कौन हो? ब्राह्मण नहीं लगते हो। इस पर तीनों ने सही बात बता दिया और कहा- “हम तुम्हारे शत्रु हैं। अभी वंद्व युद्ध करना चाहते हैं। हम तीनों में से किसी एक से, जिससे तुम्हारी इच्छा हो, लड़ सकते हो। हम सभी इसके लिए तैयार हैं।
भीम और जरासंध में युद्ध होने लगा। तेरह दिन लगातार लड़ने के बाद जरासंध थोड़ी देर के लिए युद्ध में रुक गया। श्रीकृष्ण ने भीम को इशारा किया और भीम ने जरासंध के दो टुकड़े कर दिए। इस प्रकार अजेय जरासंध का अंत हो गया।
श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा भीम ने बंदी राजाओं को छुड़ाया तथा जरासंध के पुत्र सहदेव को मगध की गद्दी पर बैठाकर इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद राजसूय यज्ञ हुआ। आए हुए राजाओं में सबसे पहले किस नरेश की पूजा हो, भीष्म ने श्रीकृष्ण का नाम सुझाया। युधिष्ठिर के निर्देश पर सहदेव ने श्रीकृष्ण की पूजा की। यह देखकर चेदि का राजा शिशुपाल गुस्से से लाल हो गया और बोला- यह अन्याय है। एक साधारण व्यक्ति की इस प्रकार पूजा की जाती है। उसने भरी सभा में कहा कि- जिस दुरात्मा ने कुचक्र रचकर वीर जरासंध को मरवा डाला, उसी की पूजा युधिष्ठिर ने की है। इस प्रकार शब्द वाणों की बौछार करते हुए शिशुपाल सभा से निकल गया। अंत में शिशुपाल मारा गया और श्रीकृष्ण की जीत हुई। इसके बाद राजसूय यज्ञ संपन्न हुआ और युधिष्ठिर को राजाधिराज की पदवी मिल गई।
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-32
राजसूय यज्ञ – राजाओं के राजा यानी चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए किया गया यज्ञ, संदेश – सूचना, तत्काल – तुरंत, पूज्य – सम्मानित।
पृष्ठ संख्या-33
दुर्ग – किला, बगैर – बिना, अजेय – जिसे कोई न जीत सके, आकांक्षा – इच्छा, अतिथि – मेहमान, कुलीन – अच्छे कुल में जन्मा हुआ।
पष्ठ संख्या-34
दवंदव यदध – दो व्यक्तियों में होने वाला संघर्ष, अभ्यागत – मेहमान, निमंत्रण पाकर आया व्यक्ति, अग्र पूज्य – सर्वप्रथम सम्मानित होने वाला, गौरवान्वित – गौरव से युक्त, दुरात्मा – दुष्ट, कुचक्र – षड्यंत्र, शब्दबाण – कटुक्ति, कठोर वचन।
पृष्ठ संख्या-35
अनुनय विनय – विनम्र प्रार्थना, राजाधिराज – राजाओं का राजा।