Reading Class 7 Hindi Notes Malhar Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार Summary in Hindi Explanation helps students understand the main plot quickly.
बिरजू महाराज से साक्षात्कार Class 7 Summary in Hindi
बिरजू महाराज से साक्षात्कार Class 7 Hindi Summary
बिरजू महाराज से साक्षात्कार का सारांश – बिरजू महाराज से साक्षात्कार Class 7 Summary in Hindi
कथक के महान सम्राट ‘पंडित बिरजू महाराज’ को आज कौन नहीं जानता । पद्मविभूषण पाने वाले इस महान कलाकार को देश-विदेश में ख्याति प्राप्त है। अपने निरंतर प्रयास, लगन और कठिन साधना से इन्होंने मानो कथक को युगों-युगों तक के लिए जीवित कर दिया। प्रस्तुत पाठ में इनके जीवन का परिचय देते हुए बताया गया है कि शास्त्रीय संगीत के स्वरों के उतार-चढ़ाव की तरह ही इनका जीवन भी सुख-दुख की दहलीज पर गतिशील रहा।
एक जमाना था जब बिरजू महाराज धन-धान्य से पूर्णत: सम्पन्न थे। अपने क्षेत्र के वे छोटे नवाब कहलाते थे और उनकी हवेली पर आठ-आठ सिपाहियों का सदैव पहरा रहता था । परंतु समय के घूमते पहिए ने इनका जीवन पलट कर रख दिया और इनके पिता के देहांत के बाद हालात इतने खराब होते चले गए कि जहाँ एक तरफ ये नृत्य के कार्यक्रमों से थोड़ा बहुत धन कमाते तो वहीं दूसरी तरफ इनकी माता ने अपनी ज़री की साड़ियाँ जलाकर उसमें से सोने-चाँदी के तार निकालकर बेचे और गुजारा किया; तब ‘ भी कभी – कभी इन्हें बिना खाए ही सोना पड़ा। इस पर भी माँ ने सदैव कथक अभ्यास पर जोर दिया।
बिरजू महाराज के गुरु उनके स्वयं के पिता थे। दक्षिणा स्वरूप भेंट लेने के बाद उनके हाथ में ताबीज़ बाँधकर उन्हें अपना शिष्य बनाया। इन्होंने अपने दोनों चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज से भी प्रशिक्षण लिया। जब इन्होंने नृत्य के साथ-साथ गाना-बजाना भी सीखा तो नौकरी की शुरुआत की, परंतु इनके चाचा ने नौकरी ना करने की सलाह देते हुए पूरा ध्यान कथक पर केन्द्रित करने के लिए कहा। इनके लिए इनके पिता और दोनों चाचा- ब्रह्मा, विष्णु और महेश थे।
बिरजू महाराज ने बताया कि कथक की परंपरा बहुत पुरानी है। महाभारत और रामायण में भी इसका उल्लेख है। ‘कथक’ भावपूर्ण ढंग से कथा कहने का एक रोचक माध्यम है। इसके मूलत: चिह्न लखनऊ, बनारस और इलाहाबाद में दिखते हैं। बनारस और इलाहाबाद के बीच हरिया गाँव में 989 कथिक परिवारों का निवास था। इस कला में ऐसा जादू था कि एक बार डाकू भी अपना होश खोकर इसमें मग्न हो गए थे।
संगीत में – गायन, नृत्य और वाद्ययंत्रों का उपयोग सभी सम्मिलित हैं। नृत्य एक तपस्या और कठोर साधना है जिसमें साधक पूर्ण समर्पण से अदृश्य शक्ति को आमंत्रित करता है। भगवान कृष्ण को भी नृत्य से अनेक भक्तों ने आकर्षित किया था। नृत्य करते समय तल्लीनता अनिवार्य है, क्योंकि जरा-सी भी हलचल हुई तो नृत्य बिखर जाएगा और फिर हमारे शरीर के अंगों में भी प्रवेश नहीं कर पाएगा। तब देखने वाले को भी प्रभावित ना कर सकेगा।
बिरजू महाराज ने छोटेपन में ही तबला बजाना सीख लिया था। पाँच साल के होते-होते ‘हारमोनियम’ भी बजाना सीख लिया था। आरंभिक दयनीय स्थिति के पश्चात् इनके जीवन में धीरे-धीरे सुधार हुआ और कथक की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी। कथक, भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कथकली, मोहिनीअट्टम, ओडिसी – शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख शैलियाँ हैं।
मेरी अभिव्यक्ति
बिरजू महाराज बताते हैं कि इनका मशीनी कार्यों में भी बहुत मन लगता था। वे बताते हैं कि यदि वे नर्तक न होते तो शायद इंजीनियर बन जाते। मशीन या यंत्र खोलकर देखने की उनकी जिज्ञासा इतनी अधिक थी कि वे अपने ब्रीफकेस में हरदम पेचकस और छोटे-मोटे औजार रखते थे । घर का पंखा – फ्रिज तो वे स्वयं ही ठीक कर लिया करते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें चित्रकला का भी शौक था। वे प्राय: रात के 12 बजे के बाद चित्र बनाने बैठते और जब | तक नींद से आँखें बोझल ना होती तब तक बनाते। उन्होंने दो वर्षों में लगभग 70 चित्र बनाए थे।
बिरजू महाराज ने बच्चों की रुचि और गुणों को विकसित करने के लिए सदैव प्रेरणा दी है। वे समय का महत्त्व, जीवन में संतुलन और कार्यों के सदुपयोग पर बल देते हुए | बच्चों के बौद्धिक विकास की बात करते थे। लड़कियों को तो आगे बढ़ने हेतु उन्होंने विशेष जोर दिया। इनकी बहनों ने तो कथक नहीं सीखा, परंतु इन्होंने अपनी बेटियों को खूब कथक सिखाया। इनका कहना था कि लड़कियों को आत्मनिर्भर होना जरूरी है। इनसे हमें जीवन में अनुशासन, संतुलन, मेहनत और लगन के साथ लक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
बिरजू महाराज से साक्षात्कार शब्दार्थ और टिप्पणी
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देहांत – मृत्यु |
आर्थिक परेशानी-धन की कमी होना ।
उतार-चढ़ाव – एक जैसी स्थिति न होना।
मस्तिष्क – दिमाग ।
विरासत – अपने पूर्वजों से मिली हुई।
स्मरण – याद ।
मनमोहक – मन को मोहने वाला ।
प्रस्तुत करना – दिखाना ।
पद्मविभूषण – असाधारण और विशिष्ट सेवा (यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। इसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है। इसकी शुरुआत 2 जनवरी 1954 में हुई थी।)
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समयचक्र – बीतते समय के साथ।
संघर्ष – कुछ पाने का कठिन प्रयास |
गुजारा करना – अभाव में दिन बिताना ।
माहौल – वातावरण ।
औपचारिक – उचित रूप से।
प्रशिक्षण- व्यावहारिक शिक्षा (ट्रेनिंग)।
गंडा (ताबीज़) – एक प्रकार का रक्षा सूत्र ।
भेंट – उपहार ।
रस्म-रिवाज ।
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सामर्थ्य – योग्यता ।
नृत्य नाटिकाएँ- किसी कथा को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करना ।
दृढ़ निश्चय पक्का निर्णय |
परंपरा – पुराने समय से चली आ रही रीति/ प्रथा ।
आदिपर्व – जिसमें महाभारत के प्रारंभ की कथा है और जिसमें कौरवों और पांडवों के पूर्व की कथा बताई गई थी ।
अनौपचारिक – साधारण व सहज ढंग से। शैली- किसी विशेष तरह का ढंग अथवा रूप।
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तपस्या – किसी को पाने के लिए विशेष प्रयास ।
अदृश्य शक्ति – जो ऊर्जा दिखाई ना दे अर्थात् ‘ईश्वर’ ।
निमंत्रण देना – बुलाना ।
गतिविधि – क्रियाकलाप ।
संतुलन – समान स्थिति।
माध्यम – जरिया / बीच का ।
प्रवेश – किसी जगह अथवा विशेष स्थिति में जाना ।
प्रस्तुतीकरण – किसी कला को प्रस्तुत करना ।
कायम रखना – जिंदा रखना ।
निराला – विशेष |
भाव-भंगिमा – नृत्य व कला में अपने चेहरे, आँखें और हाथों द्वारा विभिन्न मुद्राओं से बात कहना ।
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आधुनिक – वर्तमान समय की, नवीन ।
तौर-तरीके – काम करने का ढंग ।
आश्रय – शरण ।
निर्भर – आश्रित अथवा किसी दूसरे के सहारे ।
श्रृंगार-रूप – रंग सजाना ।
विस्तृत – विस्तार ।
कल्पना – अपने मन और विचार से किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को सोचना ।
फरमाइश – इच्छा।
सुरैया – फिल्मी जगत की एक प्रसिद्ध नायिका ।
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सामूहिक – जिस कार्य को अनेक लोग मिलंकर करते हैं।
मनबहलाव – मन को अच्छा लगने वाला कार्य।
संतुष्टि – तृप्ती (जिससे मन को आनंद मिले) ।
अनुभव करना – महसूस करना ।
कथावाचक – कथा सुनाने वाला ।
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इंजीनियर – इंजन, मशीन बनाने वाला यंत्र विशेषज्ञ ।
यंत्र – मशीन ।
कल-पुर्जे – ‘कल’ अर्थात् मशीन / पुर्जा अर्थात् हिस्सा ।
ब्रीफकेस – अटैची / सामान रखने का बक्सा ।
विनती – प्रार्थना ।
सदुपयोग – उचित उपयोग ।
बौद्धिक विकास – बुद्धि का विकास।
अंदाजा – अनुमान।
महत्वपूर्ण- उपयोगी ।
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हुनर – गुण, योग्यता, कला-कौशल।
आत्मनिर्भर – स्वयं पर निर्भर होना ।
ताल-मेल – एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को समझना ।
सहयोगी – सहायता करने वाला ।
लक्ष्य – उद्देश्य ।
प्रेरणा- ऐसी शक्ति जो कुछ भी पाने के लिए उत्साहित करें।