Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 3 बिस्कोहर की माटी to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 3 बिस्कोहर की माटी
Class 12 Hindi Chapter 3 Question Answer Antral बिस्कोहर की माटी
प्रश्न 1.
कोइयाँ किसे कहते हैं? उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
कोइयाँ पानी में खिलने वाला जलपुष्प है। इसे कोला-बेली भी कहते हैं। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- यह शरद ऋतु में खिलता है।
- इसके लिए गड्ढे और पानी की ज़रूरत होती है।
- यह उत्तर भारत में सर्वत्र पाया जाता है।
- चाँदनी रात में चाँदनी तथा इसकी पत्तियाँ एक रंग की हो जाती हैं।
- इसकी गंध अलग किस्म की होती है।
प्रश्न 2.
‘बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है’-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
लेखक बच्चे के दूध पीने के विषय में बताता है। माँ आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है। बच्चा सबुकता है, रोता है, माँ को मारता है, माँ भी कभी-कभी मारती है, बच्चा चिपटा रहता है, माँ चिपटाए रहती है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श व गंध भोगता है। वह पेट में अपनी जगह-सी ढूँढ़ता रहता है। चाँदनी रात में बच्चा दूध ही नहीं, चाँदनी भी पी रहा है। माँ के अंक से लिपटकर बच्चे द्वारा माँ का दूध पीना जड़ के चेतन होने यानी मानव-जन्म लेने की सार्थकता है। माँ से चिपटकर बच्चा आत्मीय संबंध महसूस करता है। इसलिए लेखक कहता है कि बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ़ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है।
प्रश्न 3.
बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया?
उत्तर :
बिसनाथ की आयु छोटी थी तभी उसके छोटे भाई का जन्म हो गया। उस समय बिसनाथ की उमर दूध पीने की थी, परंतु भाई के आ जाने से वह दूध कटहा हो गया, क्योंकि अब उसे माँ का दूध नहीं मिल पाता था। उसका दूध कम हो गया। माँ के दूध पर उसके छोटे भाई का कब्जा हो गया। बिसनाथ ने गाय का बेस्वाद दूध पीने से मनाकर दिया। माँ का दूध छूटने पर अब उसे गाय का दूध पीने को मिलता था। इस प्रकार उस पर माँ के दूध का कब्ञा छोड़ने का अत्याचार हुआ।
प्रश्न 4.
गरमी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी उन उपायों से परिचित हैं?
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर ‘गरमी और लू से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-
- धोती या कमीज़ से गाँठ लगाकर प्याज बाँधना।
- कच्चे आम का पना भूनकर गुड़ या चीनी में उसका शरबत पीना, देह में लेपना या नहाना।
- कच्चे आम को भुनना या उबले आम के लेप से सिर धोना।
हाँ, हम भी इन उपायों से परिचित हैं। यह बात मुझे मेरी दादी ने बता रखी है कि लू बच्चों के लिए बहुत नुकसानदायक होती है। इससे बचने के उपाय ज़रूर अपनाने चाहिए।
प्रश्न 5.
लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बतख से की है
उत्तर :
लेखक बिसनाथ बताता है कि बतख अंडों को अपने पंख फुलाकर छिपाती है तथा उन्हें सेती है। उसकी चोंच सख्ज होती है और अंडों की खोल नाजुक, फिर वह अंडों को बेहद सतर्कता, कोमलता से डैनों के अंदर छुपा लेती है। कभी-कभी वह अंडों को सतर्कता से उलटती-पलटती है। वह कौआ, बाज़ जैसे शिकारी पक्षियों की घात से इन अंडों की रक्षा करती है। बतख की तरह माँ भी बच्चे को अपने शरीर से चिपटाए रखती है। वह बच्चों को संसार के कष्टों से दूर रखने का प्रयास करती है, इसलिए लेखक ने माँ की तुलना बतख से की है।
प्रश्न 6.
बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाथ ने किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर गाँव की बरसात में वहाँ के लोगों के जीवन की कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बिस्कोहर में वर्षा एकदम नहीं आती थी। पहले बादल घिरते, फिर गड़गड़ाहट होती थी। पूरा आकाश बादलों से घिर जाता। ऐसा लगता था कि दिन में रात हो जाती थी। इस ऋतु में तबला, मृदंग और सितार का संगीत सबसे ज्यादा होता है। जोश ने लिखा है-‘बजा रहा है सितार पानी।’ वर्षा घर की छत से ऐसी आती जैसे घोड़ों की कतार दूर से दौड़ी चली आ रही है। वह बादल नदी, डेगहर, बड़की बगिया और पड़ोस के घर में बरसा। आँधी चलती तो छप्पर उड़ जाते थे। कई दिन लगातार बरसता तो दीवार गिर जाती और घर धँस जाते थे। भीषण गरमी से राहत मिलने पर प्रसन्नचित्त कुत्ते, बकरी, मुर्गी-मुर्गं भी बेमतलब इधर-उधर भागते और थिरकते। इस पहली वर्षा में नहाने से फोड़े-फुँसी ठीक हो जाते थे। वनस्पतियाँ नया जीवन पाती थीं। जोंक, केंचुआ, जुगनू, बोका, मच्छर आदि की संख्या बहुत बढ़ जाती थी।
प्रश्न 7.
‘फूल केवल गंध ही नहीं देते दवा भी करते हैं’, कैसे?
उत्तर :
बिसनाथ ने अपने गाँव के अनेक फूलों का वर्णन किया है। इन फूलों में बैंगन, कदंब, अमरूद, इमली, भिडी, तोरी. लौकी, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मटर आदि के फूल भी शामिल हैं। सरसों के फूलों का सागर लहराता है। सत्यानाशी का फूल पीली तितली जैसा है। उसकी आँखें आने पर उसके दूध को आँखों में लगाया जाता था। गुड़हल का फूल देवी का फूल था। नीम के फूल और पत्ते चेचक में रोगी के पास रख दिए जाते। फूल बेर के भी होते हैं और उनकी गंध वन्य, मादक होती है। इनके फूलों को सूँघकर बर्र-ततैया का डंक झड़ जाता है। इस प्रकार ये फूल मनुष्य को सुगंध नहीं देते बल्कि औषधियाँ भी उपलब्ध कराते हैं जो उन्हीं में छिपी हैं।
प्रश्न 8.
‘प्रकृति सजीव नारी बन गई’-इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौंदर्य संबंधी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक बिस्कोहर की औरत के विषय में बताता है। बिसनाथ की उम्र उस समय दस वर्ष की थी। उसने उसे देखा तो उसे लगा जैसे बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। चाँदनी में सफेद फूल ऐसे लगते हैं मानो लताओं, पेड़ों पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही है। चाँदनी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खुशबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई, चाँदनी के रूप में लगी, जिससे फूलों की खुशबू आ रही थी। बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी और सुर्गंधि सब देख रहे थे। उन्हें उस समय सौंदर्य, प्रेम, जीवन की सार्थकता आदि का पता नहीं था। वे उसके दीवाने हो गए थे।
प्रश्न 9.
ऐसी कौन-सी स्मृति है, जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है?
उत्तर :
लेखक ने दस वर्ष की आयु में अपने से करीब दस वर्ष बड़ी औरत को देखा, जिस पर वह आसक्त हो उठा। दस वर्ष के करीब आयु अंतराल होने के कारण लेखक अपनी भावनाएँ उसके समक्ष अभिव्यक्त न कर पाया। वह औरत उसकी यादों में सदा बसी रहती थी जो उन्हें व्याकुल किए रहती थी। वे उसे पाकर भी प्राप्त नहीं कर सकते थे। इसके अलावा लेखक के मन में गाँव की औरत की करुण कथा जुड़ी हुई है। वह उस औरत की कथा नहीं भूल पाता, जिसके काले घने केश हैं। वह हमेशा सफेद साड़ी पहने रहती है। उसका जीवन अप्राप्ति की कथा है। लेखक को मृत्युबोध भी इस कथा से होता है, क्योंकि मृत्यु के बाद मनुष्य को कुछ नहीं मिलता।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
पाठ में आए फूलों के नाम, साँपों के नाम छाँटिए और उनके रूप, रंग, विशेषताओं के बारे में लिखिए।
फूल का नाम | रंग | विशेषताएँ |
कोइयाँ | सफेद | खुशबूदार, मनोहारी |
सरसों | पीला | तेल की गंध |
सत्यानाशी | पीली तितली जैसी | आँख में लगाने, फैशान करने |
गुड़हल | लाल | पूजा |
नीम के फूल | सफेद | चेचक रोग, माद्क |
बेर | सफेद् | बर्र-ततैया का डंक झाड़ने में |
अन्य फूल हैं – तोरी, लौकी, भिडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा (काशीफल), शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर, सेमल आदि।
साँप – साँप मेड़ों, मैदानों तथा तालाब की भीटों पर मिलते हैं। इनकी कई प्रजातियाँ होती हैं। होंड़हा, मजगिदवा और धामिन विषहीन होते हैं। गोंहुअन सबसे खतरनाक है। घोर कड़ाइच भी खतरनाक है।
प्रश्न 2.
इस पाठ से गाँव के बारे में आपको क्या-क्या जानकारियाँ मिलीं? लिखिए।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक पाठ से हमें गाँव संबंधी अनेक जानकारियाँ मिलती हैं। इसमें एक ओर हमें जहाँ ग्रामीण अंचल में उगले वाले पेड़-पौधों, लता-वनस्पतियों के विषय में जानकारी मिलती है, वहीं हमें नाना प्रकार के फूलों की जानकारियाँ मिलती हैं। उनके खिलने का मौसम, रंग-गंध के अलावा उनके औषधीय गुणों की जानकारी भी मिलती है। हमें बतख नामक साधारण से पक्षी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में माँ का बच्चे के प्रति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार, दूध पिलाने की प्रवृत्ति तथा ममत्व के अनुपम संबंधों का ज्ञान होता है। वहाँ ग्रीष्म में चलने वाली लू, दादी-नानी के घरेलू नुस्खों. पहली वर्षा, वर्षा ऋतु में वर्षा का तबाही लाना, साँपों की किस्में, विषैले और विषहीन साँपों का उल्लेख, प्राकृतिक सौदर्य का वर्णन आदि के बारे में यह पाठ हमें विस्तारपूर्वक जानकारी देता है।
प्रश्न 3.
वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। आपके विचार से माँ और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर :
आधुनिकता के दौर में वर्तमान काल में माताएँ नवजात शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। वे सोचती हैं कि बच्चे को दूध पिलाने से उनकी शारीरिक सुडौलता खराब हो जाएगी। ऐसा करके वे अपने व बच्चे के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। इस प्रवृत्ति का माँ व बच्चे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकते हैं –
- माँ-बच्चे का भावनात्मक लगाव समाप्त हो जाता है।
- बच्चे को पौष्टिक आहार नहीं मिलता। इस कारण उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है।
- बच्चा कुपोषण का शिकार हो अनेक बीमारियों से पीड़ित हो सकता है।
- माँ को स्तन कैंसर जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
- इस प्रवृत्ति से सामाजिक बिखराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भेजना इसका जीता-जागता प्रमाण है।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 3 बिस्कोहर की माटी
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
ग्रामीण क्षेत्रों में कमल-ककड़ी की क्या उपयोगिता है? ‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
बिस्कोहर के ग्रामीण क्षेत्र में पूरब टोले के पोखर में कमल फूलते हैं। भोज में हिंदुओं के यहाँ भोजन कमल-पत्र पर परोसा जाता है। कमल-पत्र को पुरइन कहते हैं। कमल के नाल को भसीण कहते हैं। आस-पास कोई बड़ा कमल-तालाब है-लेंवड़ी का ताल, अकाल पड़ने पर लोग उसमें से ‘भसीण’ (कमल-ककड़ी) खोदकर बड़े-बड़े खाँचों में सिर पर लाद कर खाने के लिए ले जाते हैं। कमल-ककड़ी को सामान्यतः अभी भी गाँव में नहीं खाया जाता है। कमल का बीज कमल गट्टा ज़रूर खाया जाता है।
प्रश्न 2.
बिस्कोहर गाँव में साँपों की प्रजातियाँ कौन-कौन-सी थीं? साँप देखकर लेखक को कैसा लगता था?
उत्तर :
बिस्कोहर गाँव में घास-पात से भरे मेंड़ों पर, मैदानों में, तालाब के भीटों पर नाना प्रकार के साँप मिलते थे। साँप से डर तो लगता था, लेकिन वे प्रायः मिलते-दिखते थे। डोंड़हा और मजगिदवा विषहीन थे। होंड़हा को मारा नहीं जाता। उसे साँपों में वामन जाति का मानते थे। धामिन भी विषहीन है, लेकिन वह लंबी होती है, मुँह से कुश पकड़कर पूँछ से मार दे तो अंग सड़ जाता है।
सबसे खतरनाक गोंहुअन, जिसे गाँव में ‘फेंटारा’ कहते थे और उतना ही खतरनाक ‘घोर कड़ाइच’, जिसके काट लेने पर आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाकर मरे, फिर भटिहा, जिसके दो मुँह होते हैं। इसके अलावा आम, पीपल, केवड़े की झाड़ी में रहने वाले साँप बहुत खतरनाक होते हैं। अजीब बात है कि साँपों से भय भी लगता था और हर जगह अवचेतन में डर से ही सही उनकी प्रतीक्षा भी करते थे। छोटे-छोटे पौधों के बीच में सरसराते हुए साँप को देखना भी भयानक रस की अनुभूति हो सकती है।
प्रश्न 3.
कसेरिन दाई कौन थीं? उनके साथ छत पर लेटकर तीन वर्ष के बिसनाथ को कैसा लगता था?
उत्तर :
कसेरिन बिसनाथ के पड़ोस में रहती थी। वह दाई का काम करती थी। उसने ही बिसनाथ को पाला-पोसा। उसने ही बिसनाथ की माँ को दूध छुड़ाने की तरकीब बताई। उसने बताया कि वह अपने स्तनों पर ‘बुकवा’ (साबुन) का लेप करके बिसनाथ को दूध पिलाए। उबटन का स्वाद कसैला था। अतः बिसनाथ ने दूध पीना छोड़ दिया। बिसनाथ सुजनी (चीथड़े जोड़कर बनाया गया बिछौना) पर कसेरिन दाई के साथ छत पर लेटकर चाँद को देखता रहता था। उसे लगता था कि वह चाँद को छू रहा है, उसे खा रहा है और उससे बातें कर रहा है। वह छुक-छुक करके चलता रहता। चाँद बादल में छिपता और फिर निकल जाता।
प्रश्न 4.
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ का उद्देश्य है-ग्रामीण परिदृश्य से परिचय कराते हुए वहाँ की वनस्पतियों, फल-फूलों की विविधता का ज्ञान कराना। वहाँ सौंदर्य के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाएँ भी ग्रामीण जीवन का अंग बन गई हैं। गरमी, वर्षा और शरद ऋतु जहाँ खुशहाली लाती है, वहीं अपने साथ कुछ परेशानियाँ भी लाती हैं, जिनका उल्लेख लेखक द्वारा किया गया है। एक स्त्री को देख बालक मन में उठने-बसने वाले भावों-संवेगों की हृदयस्पर्शी प्रस्तुति, संवादों की यथावत् आंचलित प्रस्तुति, अनुभव की सत्यता और नैसर्गिकता ग्रामीण जीवन शैली, लोक कथाओं और लोकमान्यताओं से परिचय कराना इस पाठ का उद्देश्य है।
प्रश्न 5.
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ का मूल कथ्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ का मूलकथ्य ग्रामीण जीवन, उसके आसपास के प्राकृतिक परिवेश और वहाँ की मान्यताओं का रोचक वर्णन है। गाँव, जहाँ शहर जैसी सुविधाएँ नहीं हैं। वे आज भी प्रकृति पर अधिक निर्भर हैं। वहाँ के कच्चे घर हरे-भरे खेत, उनके आस-पास पाई जाने वाली वनस्पतियाँ, वहाँ के वन्यजीव और लोक मान्यताएँ एवं परंपराएँ उन्हें शहरों से पृथक करते हैं। वहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम एवं सुखद होता है। एक ओर सौंदर्य दूसरी ओर प्राकृतिक आपदा और अकाल जब लोगों को कमल गट्टे खाकर दिन बिताना पड़ता है। वहाँ कमल, कोइयाँ, हरसिंगार के फूलों की महक और उनके औषधीय गुणों का वर्णन है तो उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले विविध प्रजाति के सर्पो का वर्णन हैं। इस पाठ में गरमी की लू से बचने के घरेलू उपायों के साथ-साथ चाँदनी, फूल और खुशबू के रूप में प्रकृति का रेखांकन किया गया है। सारांश में ग्रामीण संदर्य की अनूठी और नई प्रस्तुति ही इस पाठ का कथ्य है।
प्रश्न 6.
‘बिस्कोहर की माटी’ लेखक के मन में क्यों बस गई है? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ लेखक के मन में इसलिए समा गई, क्योंकि-
- बिस्कोहर के हरे-भरे खेत, वहाँ पाई जाने वाली वनस्पतियाँ, वन्यजीव, लोकपरंपराएँ उसके मन को आकर्षित करती है।
- बिस्कोहर का प्रकृतिक सौंदर्य अनूठा है, जहाँ विविध गुणों एवं खुशबू वाले फूल पाए जाते हैं, जो औषधीय महत्व रखते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘फूल जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करते हैं, वहीं वे औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं।’ ‘बिस्कोहर की माटी ‘ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक बताता है कि कमल, कोइयाँ और हरसिंगार के अलावा ऐसे कितने फूल थे, जिनकी चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती और वे असली फूल हैं-तोरी, लौकी, भिडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूल, कदम (कदंब) के फूलों से पेड़ लदबदा जाता। मुझे तो लगता है कदंब का दुनिया भर में एक ही पेड़ है-बिस्कोहर के पच्छूँ टोला में ताल के पास।
सरसों के फूल का पीला सागर लहराता हुआ। खेतों में तेल-तेल की गंध, जैसे हवा उसमें अनेक रूपों में तैर रही हो। सरसों के अनवरत फूल-खेत सौंदर्य को कितना पावन बना देते हैं। बिसनाथ के गाँव में एक फल और बहुत इफ़ात होता था-उसे भरभंडा कहते थे, उसे ही शायद सत्यानाशी कहते हैं। नाम चाहे जैसा हो सुंदरता में उसका कोई जवाब नहीं। फूल गोभी तितली जैसा, आँखें आने पर माँ उसका दूध आँख में लगाती और दूबों के अनेक वर्णी छोटे-छोटे फूल-बचपन में इन सबको चखा है, सूँघा है, कानों में खोसा है।
प्रश्न 2.
चैत की चाँदनी में लेखक को लगा कि प्रकृति सजीव नारी बन गई है, कैसे?
उत्तर :
जाड़े की धूप और चैत की चाँदनी में ज्यादा फ़र्क नहीं होता। बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं, लेकिन मधुर और शोभा के भार से दबी ज़्यादा होती है। वैसे ही बिस्कोहर की वह औरत। पहली बार उसे बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा। बिसनाथ की उमर उससे काफी कम है-ताज्जुब नहीं दस बरस कम हो। बिसनाथ दस से ज्यादा के नहीं थे। देखा तो लगा चाँद्नी रात में, बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशाबू आ रही है।
बिस्कोहर में उन दिनों बिसनाथ संतोषी भइया के घर बहुत जाते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी खुशब प्राणों में बसी रहती थी। यों भी चाँदनी में सफेद् फूल ऐसे लगते है मानों पेड़ों, लताओं पर चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। चाँद्नी भी प्रकृति, फूल भी प्रकृति और खणबू भी प्रकृति। वह औरत बिसनाथ को औरत के रूप में नहीं, जूही की लता बन गई चाँदनी के रूप में लगी, जिसके फूलों की खुशबू आ रही थी। प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी, सुर्गांध सब देख रहे थे।
प्रश्न 3.
लेखक की कौन-सी स्मृतियाँ आज तक ताजा हैं?
उत्तर :
बिसनाथ को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी का संग लगता-गंध दूध की। पिता के कुते को ज़रूर सूँघते उसमें पसीने की बू बहुत अच्छी लगती। नारी शरीर से उनहें बिस्कोहर की ही फसलों, वनस्पतियों की उत्कट गंध आती है। तालाब की चिकनी मिट्टी की गंध। गेहूँ, भुट्टे, खीरे की गंध या पुआल की गंध होती है। आम के बाग में आम्रमंजरी, बौर की लपट मारती हुई गंध तो साक्षात् रति गंध होती है। फूले हुए नीम की गंध को नारी-शरीर या शृगार से कभी नहीं जोड़ सकते।
वह गंध मादक, गंभीर और असीमित की और ले जाने वाली होती है। संगीत, गंध बच्चे बिसनाथ के लिए सबसे बड़े सेतु हैं काल, इतिहास को पार करने के। बड़े गुलाम अली खाँ साहब ने एक पहाड़ी ठुमरी गाई है-अब तो आओ साजन-सुनें अकेले में या याद करें इस ठुमरी को तो रुलाई आती है और वही औरत इसमें व्याकुल नजर आती है। अप्राप्ति की कितनी और कैसी प्राप्तियाँ होती हैं! वह सफेद रंग की साड़ी पहने रहती है। घने काले केश सँवारे हुए हैं। आँखों में पता नहीं कैसी आर्द्र व्यथा है। वह सिर्फ इंतज़ार करती है। ये स्मृतियाँ लेखक के मन में अब भी तरोताजा हैं।
प्रश्न 4.
बच्यों के लिए माता-पिता अनेक कष्ट सहकर उन्हें पालते-पोसते हैं और उनका ध्यान रखते हैं, पर वृद्धावस्था में उन्हें उपेक्षित होना पड़ता है। समाज के इस चरित्र को आप कितना उचित मानते हैं? युवावर्ग को इनकी मदद के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर :
माता-पिता अपने बच्चों के लिए अनेक कष्ट सहकर भी खुशी-खुशी उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करते हैं और उनका ध्यान रखते हैं। दुराग्य से वृद्धावस्था में माता-पिता के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जाता है और कई बार उन्हें वृद्धाश्रम में जीवन बिताना पड़ता है। समाज का यह चरित्र बिल्कुल भी उचित नहीं है, क्योंकि इससे सामाजिक ढाँचा चरमरा जाता है और विघटन की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा पारिवारिक संबंधों में अपनत्व और प्रेम की जगह समाप्त होती जाती है। इसका नुकसान यह है कि छोटे बच्चे बुजुर्गों के स्नेह से वंचित रह जाएँगे और उनमें एकाकीपन एवं आत्मकेंद्रितता की भावना का उदय होगा।
वृद्धजन भी हमारे समाज के अंग हैं। उन्होंने परिवार और समाज को बहुत कुछ दिया है। ऐसे में उनका ध्यान रखना युवावर्ग का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। इसके लिए उन्हें उनके कार्यों में यथासंभव मद्द करना चाहिए तथा अपना खाली समय उनके साथ बिताकर उन्हें ख्रुश रखने का प्रयास करना चाहिए। वे समाज के अंग है और समाज को आज भी उनकी आवश्यकता है, इस बात का एहसास दिलाते रहना चाहिए। इसके अलावा वे एकाकीपन न महसूस करें, अतः उनके खाली समय को कुछ समाजोपयोगी कार्यों में लगाने तथा उन्हें साथ लेकर काम करने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए।
प्रश्न 5.
बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है, परंतु आज की माताएं नवजात शिशुओं को अपना दूध नहीं पिलाना चाहती हैं। इसके क्या कारण हो सकते हैं? ऐसी माताओं को जागरुक करने के लिए क्या-क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? पाठ के आलोक में लिखिए।
उत्तर :
लेखक ने लिखा है कि जब वह माँ का दूध पीने लायक था, तभी उसके छोटे भाई के आ जाने से माँ ने उसे (लेखक को) दूध पिलाना बंद कर दिया। अब लेखक को गाय का बेस्वाद दूध पीना पड़ता था। बाद में उसे महसूस हुआ कि बच्चे को माँ का दूध पीना सिर्फ़ दूध पीना ही नहीं माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है। वर्तमान समय में कुछ माताएँ अपने नवजात शिशुओं को अपना दूध नहीं पिलाना चाहती है।
इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे- आज की कुछ माताएँ अपने शारीरिक सौंदर्य के प्रति अधिक सजग हैं। वे बच्चे से ज्यादा अपने शरीर की चिता करती हैं। प्रायः ऐसी माताओं का मानना है कि बच्चों को स्तनपान् कराने से उनकी शारीरिक सुंदरता एवं सौष्ठव घट जाएगा। नौकरी पेशा माताओं के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है। वे गाय या भैंस का दूध पिलाने की आदत डालने के लिए अपना दूध नहीं पिलाती हैं। ऐसी माताओं को जागरूक बनाने के लिए कई उपाय अपनाए जा सकते है, जैसे –
इस भ्रांति को दूर करना चाहिए कि माताओं द्वारा अपने बच्चों को स्तनपान कराने से उनका शारीरिक सौष्ठव कम होगा। समाज में यह जागरूकता फैलाना चाहिए कि बच्चे को माँ का दूध न पिलाने से उसकी रोगप्रतिरोधी क्षमता घट जाती है। महिलाओं को इस तथ्य की जानकारी दी जानी चाहिए कि नवजात शिशुओं को माँ का दूध न मिलने से उनका शारीरिक विकास कम होता है तथा बाद में अनेक रोगों का शिकार बन जाते हैं।
प्रश्न 6.
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक पाठ एक ओर ग्राम्य जीवन से हमारा परिचय कराता है, तो दूसरी ओर प्रकृति के साथ हमारी निकटता भी बढ़ाता है। इससे आप कितना सहमत हैं?
अथवा
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक पाठ हमें प्रकृति की ओर लौटने का संदेश देता है। इससे आप कितना सहमत हैं? पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक पाठ में ग्रामीण जीवन और वहाँ के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन अत्यंत रोचक शैली में किया गया है। यह पाठ हमें ग्रामीण जीवन-शैली, लोक-कथाओं, लोक-परंपराओं, लोक-मान्यताओं से परिचित कराता है। साथ ही वहाँ पाई जाने वाली वनस्पतियों, पेड़-पौधों, वन्य जीवों तथा फूलों की नाना प्रकार की किस्मों से परिचित कराता है। ग्रामीणों का जीवन पूरी तरह से प्रकृति पर आश्रित होता है।
प्रकृति के साथ उनका घनिष्ठ संबंध होता है, क्योंकि एक ओर प्रकृति उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, तो दूसरी ओर वह अपने मनोरम सौंदर्य से उनका चित्त आकर्षित करती रहती है। यहाँ अकाल के समय खाई जाने वाली कमल-ककड़ी है, तो कमल, कोइयाँ ( कुँई), हरसिंगार के फूलों के साथ-साथ आम, अमरूद, बेर, धान, गेहूँ, लौकी, भिडी, भटकटैया, कदंब, इमली, नीम, जामुन, महुआ के फूल भी हैं, जो प्राकृतिक सौदर्य को बढ़ाते हैं। ये फूल सुगंध के अलावा अपने औषधीय गुणों के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
यहाँ धामिन, घोर, कड़ाइच, फेटार जैसे अनेक साँप, बिच्छू मन में भय पैदा करते हैं, तो गर्मी, वर्षा, सरी भी कई परेशानियाँ और उनके हल लेकर आती हैं। वर्षा ऋतु की तकलीफ़ का इस पाठ में वर्णन है, तो फोड़े-फुंसियाँ ठीक होने के लाभप्रद पक्ष की ओर ध्यानाकर्षिक किया गया है। पाठ में इस सौंदर्य को इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि मन पर इसकी अमिट छाप अंकित हो जाती है। इस प्रकार यह पाठ प्रकृति के निकट ले जाने में पूरी तरह सफल है, जो प्रकृति की ओर लौटने का संदेश समेटे हुए है।
प्रश्न 7.
‘बिस्कोहर की माटी’ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यह पाठ ग्रामीण जीवन के रूप-रस-गंध को उकेरने वाला मार्मिक लेख है।
उत्तर :
‘बिस्कोहर की माटी’ नामक पाठ डॉ० विश्वनाथ त्रिपाठी की आत्मकथा का अंश है, जिसमें उन्होंने बताया है कि वर्षा ऋतु में पूरब टोले के तालाब के अलावा जगह-जगह कमल खिल उठते थे। सिघाड़े के उजले-उजले फूल की सुगंध ली जा सकती थी। शरद ऋतु में हरसिंगार फूल उठाता था। इसके अलावा ऋतुओं के अनुसार भिडी, लौकी, तोरई, इमली, कदंब, भटकटैया, अमरूद, बैगन, आम, शरीफा, काशीफल, कटहल, चना, मटर, उड़द, अरहर, मसूर, सेमल आदि फूल खिलकर वातावरण की सुंदरता बढ़ाते हैं, जिससे धरती का रूप निखर जाता था।
खेतों में खड़ी सरसों के पीलें फूलों से वातावरण में तैलीय गंध छा जाती थी। सत्यानाशी, धान, गेहूँ, जौ तथा भुट्टे के फूल भी खिलते थे। इनकी महक के अलावा तालाब की चिकनी मिट्टी की गंध, गेहूँ, भुट्टा, खीरा की गंध, आम के बगीचे में आम्रमंजरी की गंध, फूली नीम की गंध मादक और गंभीर होती थी। उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि ‘बिस्कोहर की माटी’ नामक यह पाठ ग्रामीण जीवन के रूप-रस-गंध को उकेरने वाला मार्मिक लेख है।