Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 20 दूसरा देवदास to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 20 दूसरा देवदास
Class 12 Hindi Chapter 20 Question Answer Antra दूसरा देवदास
प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का दूश्य अद्भुत होता है। आरती से पहले स्नान होता है। शाम को एकदम सहस्न दीप जल उठते हैं। पंडित जी हाथ में अंगोछा लपेटकर पंचम्मंज़ली नीलांजलि पकड़ते हैं और आरती शुरू हो जाती है। पहले पुजारियों के भर्राए गले से समवेत स्वर उठता है-जय गंगा माता “। घंटे-घड़ियाल बजते है। पुजारी नीलांजलि को गंगाजल के स्पर्श से हाथ में लिपटे अंगोछे को अद्भुत तरीके से गीला कर लेते हैं। पानी पर सहस्त बाती वाले दीपकों की प्रतिच्छवियाँ झिलमिला उठती हैं। पूरे वातावरण में अगरु-चंदन की खुशबू की महक फैल जाती है।
प्रश्न 2.
‘गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन हैं’-इस कथन के आधार पर गंगापुत्रों के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।
उत्तर :
लेखिका ने गंगापुत्र उन गोताखारों को कहा है, जो चढ़ावे में रखे पैसे को मुँह में दबा लेते हैं। ये दोने से पैसे उठाकर अपना गुज़ारा करते हैं। कभी-कभी उन्हें खतरे से खेलना पड़ता है। गंगा नदी में वह बीस चक्कर मुँह भर-भर रेज़गारी बटोरते हैं। उनकी बीबी तथा बहनें कुशाघाट पर रेजगारी बेचकर नोट कमाती हैं। वे एक रुपये के पचहत्तर पैसे देती हैं, कभी-कभी वे अस्सी पैसे भी दे देती हैं उनका जीवन-परिवेश गंगा के आसपास ही घूमता रहता है।
प्रश्न 3.
पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल-अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?
उत्तर :
पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल-अर्थ में लेकर आशीर्वाद दिया- “सुखी रहो, फुलोफलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।” पुजारी के इस आशीर्वाद से लड़के और लड़की दोनों अकबका गए. क्योंकि वे विवाहित नहीं थे। वे एक-दूसरे को जानते भी न थे। पुजारी ने उन्हें गलती से एक समझ लिया था। एक अपरिचित लड़के-लड़की को पुजारी द्वारा पति-पत्नी समझकर आशीर्वाद देने के कारण उनके व्यवहार में अटपटापन आया था।
प्रश्न 4.
उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।
उत्तर :
हर की पौड़ी पर लड़की के साथ छोटी-सी मुलाकात ने संभव को विचलित कर दिया। वह उससे प्रेम करने लगा। वह न ढंग से खाना खा रहा था, न सो पा रहा था। वह उससे मिलने के लिए बेचैन था। उसके मन में यह आशंका भी उठने लगी थी कि कहीं पुजारी के आशीर्वाद् के कारण वह कल न आए। वह हर समय उसके बारे में ही सोचता रहता था। अंत में उसने अगले दिन घाट पर जाकर उसे देखने का निर्णय किया।
प्रश्न 5.
मनसा देवी जाने के लिए केबिल कार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
संभव उस विशाल परिसर में पहुँच गया, जहाँ लाल, पीली, गुलाबी केबिल कारें, बारी-बारी से आकर रुकतीं, चार यात्री बैठातीं और रवाना हो जातीं। वह एक गुलाबी केबिल कार में बैठ गया। कल से उसे गुलाबी के सिवा और कोई रंग सुहा ही नहीं रहा था। उसके सामने की सीट पर एक नवविवाहित दंपती चढ़ावे की बड़ी थैली और एक वृद्ध चढ़ावे की छोटी थैली लिए बैठे थे।
रोपवे से जाते हुए उसे ऐसा लग रहा था मानो रंग-बिरंगी वादियों से कोई हिंडोला उड़ा जा रहा हो। एक बार चारों ओर के विहंगम दृश्य में उसका मन रम गया तो न मोटे-मोटे फ़ौलाद के खंभे नज़र आए और न भारी केबिल वाली रोपवे। पूरा हरिद्वार सामने खुला था। जगह-जगह मंदिरों के बुर्ज, गंगा मैया की धवल धार और सड़कों के खूबसूरत घुमाव। नीचे सड़क के रास्ते चढ़ते, हाँफते लोग। लिमका की दुकानें और नाम-अनाम पेड़। उसके मन में मनसादेवी पर लाल-पीले धागे की गाँठ बाँधकर मनोकामना पूर्ण होने की कल्पना भी रही होगी।
प्रश्न 6.
“पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है…उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।” कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
संभव की अपरिचित लड़की से मुलाकात और अचानक पुजारी द्वारा दोनों को युगल समझ आशीर्वचन कहना, लड़की का शर्माकर जल्दी से चले जाना आदि ने संभव के मन में प्रेमभाव जगा दिया। इस प्रेम-भाव ने उसका चैन एवं नींद छीन लिया था। मनसा देवी में मनोकामना-पूर्ति का धागा बाँधकर लौटते समय उसी लड़की से पुनः मुलाकात ने प्रथम मिलन की यादें ताज़ी कर दीं। मनोकामना पूर्ति के लिए बाँधे धागे से मनोकामना इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी, उसने सोचा भी न था। वह उन यादों में खो जाता है।
प्रश्न 7.
‘मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है।’ कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लड़की भी संभव से प्रेम करने लगी थी। वह भी संभव से मिलना चाहती थी। उसने भी कुछ ऐसी ही मनोकामना की पूर्ति के लिए धागा बाँधा था। उसे उम्मीद नहीं थी कि मनसा देवी में माँगी गई मुराद इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी। वह संभव से मिलने के बाद प्रसन्न थी। वह हैरान भी थी कि उसकी इच्छा इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।’
(ख) ‘उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है, उसके अंदर स्व से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।
(ग) ‘एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूपधारिणी मनसादेवी स्थापित थीं। व्यापार यहाँ भी था।’
उत्तर :
(क) इस कथन में नानी की चिता को बताया गया है। संभव हर की पौड़ी से देर से आया। नानी को यह चिता थी कि उसे तैरना भी नहीं आता। उसे यह डर हो गया था कि कहीं उसका पैर फिसल जाता और वह गंगा की प्रबल धारा में बह जाता तो वह उसकी माँ को कोई जवाब नहीं दे सकती थी।
(ख) संभव ने एक व्यक्ति को सूर्य-नमस्कार करते देखा। वह अत्यधिक विभोर तथा प्रसन्न था। ऐसा लगता था मानो उसने सारा अहंकार त्याग दिया है। उसके मन में कोई कुंठा बची नहीं है। वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप आत्माराम व निर्मलानंद है। वह सिर्फ ईश्वरीय भक्ति में डुबा हुआ है।
(ग) इस पंक्ति में संभव ने मनसा देवी मंदिर और उसके आसपास बिक रही वस्तुओं का वर्णन किया है। वह बताता है कि मंदिर के अंदर प्रांगण में चामुंडा के रूप में मनसा देवी स्थापित थीं। यहाँ केवल भक्ति नहीं होती थी। यहाँ भी पूजा की चीज़ें बिकती थी। उन्हें खरीदने-बेचने का व्यापार यहाँ भी जारी था।
प्रश्न 9.
‘दूसरा देवदास’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हर की पौड़ी पर पुजारी के पास संभव और एक बिलकुल ही अनजान युवती को युगल समझ पुजारी उन आशीर्वचनों को कह जाता है जो किसी नवविवाहित जोड़े को कहे जाते हैं। संभव इस लड़की से सचमुच प्रेम करने लगता है और अपना सुख-चैन खो बैठता है। वह उसे खोजने और मिलने के लिए अगले दिन भी घाट पर जाता है और खोजते हुए मनसा देवी पहुँच जाता है। वहाँ से लौटते हुए उसकी मुलाकात अचानक ही उसी लड़की पारो से हो जाती है। शरतचंद लिखित उपन्यास का नायक देवदास भी पारो के प्रेम में भटकता-फिरता है। अंत में परिचय के समय संभव भी अपने नाम के साथ देवदास जोड़ देता है। इस प्रकार यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।
प्रश्न 10.
‘हे ईश्वर! उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा।’
उत्तर :
संभव उस अपरिचित लड़की से मिलने के लिए पहले तो उसे खूब खोजा, पर वह न मिली। उससे मिलने की चाह लिए वह अगले दिन पुन: घाट पर गया और उस जगह बैठा, जहाँ उस पुजारी का देवालय दिख रहा था, जहाँ वे दोनों कल मिले थे। उसने मनसा देवी जाने का निर्णय किया और मनसा देवी में धागा बाँधकर लड़की से मिलने की मनोकामना माँगी। उसकी यह इच्छा तुरंत ही पूरी हो गई। वह इस बात पर बड़ा हैरान था कि मनसा देवी से वापस लौटते समय ही उसकी इच्छित लड़की उसे दिखाई दी।
भाषा-शिल्प –
प्रश्न 1.
इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर-लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है-पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
लेखिका ने घटनाओं का संयोजन और भावों का प्रस्तुतीकरण उचित ढंग से किया है, जैसा कि इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है-
- दीया-बाती का समय कह लो या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपये के बिक रहे थे, इस वक्त दो-दो के हो गए हैं।
- भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपये का मुँह थोड़े ही देखना है।
- आरती से पहले स्नान! हर-हर बहता गंगा जल, निर्मल, नीला, निष्पाप।
- पानी में सहस्न बाती वाले दीपकों की प्रतिच्छवियाँ झिलमिला रही हैं।
- नींद और स्वप्न के बीच संभव की आँखों में घाट की पूरी बात उतर आई।
- खर्च हुआ पर भक्तों के चेहरे पर कोई मलाल नहीं। कई खर्च सुखदायी होते हैं।
- आरती के दोने फिर एक रुपये में बिकने लगे हैं। गंगाजल आकाश के साथ रंग बदल रहा है।
- दीपकों के नीम उजाले में, आकाश और जल की साँवली संधि-बेला में, लड़की बेहद सौम्य, लगभग कांस्य-प्रतिमा लग रही है।
- गंगा को छूकर आती हवा से आँगन काफी शीतल था। ऊपर से नानी ने रोज की तरह शाम को चौक धो डाला था।
प्रश्न 2.
पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे संबंधित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
पाठ में आए पूजा-अर्चना के प्रमुख वाक्य निम्नलिखित हैं –
- दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला।
- पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं।
- पीतल की नीलांजलि में सहस्त बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।
- जो भी आपका आराध्य हो, चुन लो।
- आरती से पहले स्नान! हर-हर गंगा जल, निर्मल, नीला, निष्पाप।
- हर एक के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है।
- हाथ में अँगोछा लपेट के पंचर्मज़़िली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती।
- ‘ओम जय जगदीश हरे’ से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।
- पूरे वातावरण में अगरु-चंदन की दिव्य सुगंध है।
- आरती के बाद बारी है, संकल्प और मंत्रोच्चार की।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ कहानी पढ़िए और उस पर बनी फ़िल्म देखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
हरिद्वार और उसके आस-पास के स्थानों की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
हरिद्वार और उसके आस-पास के कुछ क्षेत्र हैं-शांतिकुंज आश्रम, मनसा देवी, चंडी देवी, कनखल (हरिद्वार), सहस्नधारा, लक्ष्मण झूला, नीलकंठ (ऋषिकेश), गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, देहरादून इत्यादि।
प्रश्न 3.
गंगा नदी पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर :
हिंदुओं में सर्वाधिक पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी का उद्गम स्थल हिमालय है। गंगा नदी पहाड़ों के गर्भ से उत्पन्न होकर विभिन्न टेढ़े-मेढ़े मार्गो से गुज़रती हुई, मार्ग की बाधाओं को पार कर, अपने गंतव्य समुद्र में जा मिलती है। गंगा नदी के विषय में एक मान्यता प्रचलित है कि वह भगवान शिव की जटाओं से निकली थी। गंगा नदी विभिन्न स्थानों; जैसे-हरिद्वार, कानपुर, बनारस आदि में प्रवाहित होती है। लोगों की इनके प्रति गहरी आस्था व श्रद्धा है, क्योंक वे इसे एक देवी की भाँति पूज्य व कल्याणकारी मानते हैं।
जन-कल्याण कार्यों में भी गंगा की भूमिका कम नहीं है। गंगा नदी पर बाँध बनाकर विद्युत-निर्माण किया जाता है। गंगा का जलमार्ग यातायात का काम करता है, किंतु आधुनिक युग में औद्योगीकरण की अंधी दौड़ में हम पवित्र, पावन गंगा को प्रदूषित करते जा रहे हैं। हमें गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं में सहयोग करना चाहिए, तभी हम प्राणदायिनी, सुखदायिनी और मोक्षदायिनी गंगा को उसके मूल रूप में अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकेंगे। यह हमारा परम दायित्व है।
प्रश्न 4.
आपके नगर/गाँव में नदी-तालाब-मंदिर के आसपास जो कर्मकांड होते हैं, उनका रेखाचित्र के रूप में लेखन कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 20 दूसरा देवदास
लघूत्तरात्मक प्रश्न – I
प्रश्न 1.
भक्तों को दोने के दुगने भाव पर मिलने की शिकायत क्यों नहीं थी?
उत्तर :
हर की पौड़ी पर शाम के समय फूलों के दोने एक-एक रुपये की बजाय दो-दो रुपये में मिल रहे थे, परंतु भक्त इससे नाराज़ नहीं थे। वे गंगा को पावन और मोक्षदायिनी मानते हुए उसके प्रति विशेष आस्था और लगाव रखते हैं। इसके अलावा वे गंगा जी से माँगने के लिए बड़ी-बड़ी मनोकामनाएँ लेकर आए थे। इस काम में उन्हें पैसों से विशेष मतलब नहीं था।
प्रश्न 2.
स्वयंसेवक क्या कार्य कर रहे थे?
उत्तर :
बैसाखी त्योहार की पूर्वसंध्या पर गंगातट पर जन सैलाब उमड़ आया था। आरती का समय निकट था। ऐसे में भक्तों का जोश एवं आस्था अपने चरम पर थी। इस समय गंगा सभा के स्वयंसेवक, जो खाकी वर्दी पहने हुए थे, सभी श्रद्धालुओं को सीढ़ियों पर बैठने के लिए प्रार्थना कर रहे थे। वे सभी को शांत होकर बैठने के लिए कह रहे थे, क्योंकि आरती शुरू होने वाली थी।
प्रश्न 3.
आरती के बाद के दृश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आरती के बाद बारी आती है, संकल्प और मंत्रोच्चार की। भक्त आरती लेते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं। स्पेशल भक्तों से पुजारी ब्राह्मण-भोज, दान, मिष्ठान की धनराशि कबुलवाते हैं। आरती के क्षण इतने भव्य और दिव्य रहे हैं कि भक्त हुज्ज़त नहीं करते। खुशी-खुशी दक्षिणा देते हैं। पंडित जी प्रसन्न होकर भगवान के गले से माला उतार-उतारकर यजमान के गले में डालते हैं, फिर जी खोलकर प्रसाद देते हैं, इतना कि अपना हिस्सा खाकर भी ढेर-सा बचा रहता है, बाँटने के लिए-मुरमरे, इलायचीदाना, केले और पुष्प होते हैं।
प्रश्न 4.
संभव हरिद्वार क्यों आया था?
उत्तर :
संभव शिक्षित नवयुवक था, जिसे घमूना-फिरना अच्छा लगता था। उसने एम०ए० किया था। वह सिविल सर्विसेज प्रतियोगताओं में बैठने वाला था। उसके माता-पिता की धारणा थी कि वह हरिद्वार जाकर गंगा जी के दर्शन कर ले तो बेखटके सिविल सेवा में चुन लिया जाएगा। संभव इन टोटकों को नहीं मानता था, परंतु घूमने व नानी से मिलने के लिए वह हरिद्ववार आ गया था।
प्रश्न 5.
बैशाखी वाले दिन संभव ने क्या निश्चय किया और क्यों?
उत्तर :
बैशाखी वाले दिन संभव ने उठते-उठते तय किया कि इस वक्त वह घाट तक चला तो जाएगा, पर नहाएगा नहीं। हाथ-मुँह धोकर प्रार्थना कर लेगा। कुछ देर पौड़ी पर बैठ गंगा की जलराशि निहारेगा। लौटते हुए मथुरा जी की प्राचीन दुकान से गरम जलेबी खरीदेगा और वापस आ जाएगा। संभव ऐसा गंगा के प्रति श्रद्धा एवं आस्था रखने के कारण नहीं कर रहा था। वह तो उस अपरिचिता को खोजने जा रहा था, जो पुजारी के पास नाटकीय तरीके से मिली थी और वह उससे प्रेम करने लगा था।
प्रश्न 6.
दिल्नी और हरिद्वार की भीड़ में क्या अंतर था?
उत्तर :
दिल्ली में भीड़ भागदौड़ की थी। वहाँ सबके उद्देश्य अलग-अलग थे। हरिद्वार की भीड़ में जाति व भाषा का महत्व नहीं था। सबका लक्ष्य एक ही था-जीवन के प्रति कल्याण की भावना। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी। इस भीड़ में गंगा मैया के प्रति समर्पण भाव और श्रद्धा थी। इस भीड़ में कोई उग्रता नहीं थी। इनमें एक-दूसरे से आगे निकलने अथवा धक्का देने की दुर्भावना न थी।
प्रश्न 7.
रोपवे से मनसा देवी जाने से नानी क्यों मना करती थी?
उत्तर :
मनसा देवी देखने की इच्छा संभव के मन में थी, वह मनसा देवी जाना चाहता था, परंतु नानी उसे झूलागाड़ी में बैठने से मना करती थीं। उन्हें डर था कि झूलागाड़ी रस्सी से चलती है, इसलिए वह कभी-भी टूट सकती है। एक बार यह रस्सी टूट गई थी, जिसके कारण कई लोग मरे थे। इस डर के कारण वे उसे रोपवे से जाने से मना करती थीं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘दूसरा देवदास’ कहानी का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर :
‘दूसरा देवदास’ कहानी हर की पौड़ी हरिद्वार के परिवेश को केंद्र में रखकर युवा-मन की संवेदना, भावना और विचार जगत् की उथल-पुथल को आकर्षक भाषा-शैली में प्रस्तुत करती है। यह कहानी युवा हृदय में पहली आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत का उदाहरण है। ‘दूसरा देवदास’ कहानी में लेखिका ने इस तरह घटनाओं का संयोजन किया है कि अनजाने में प्रेम का प्रथम अंकुरण संभव और पारो के हृदय में बड़ी अजीब परिस्थितियों में उत्पन्न होता है। यह प्रथम आकर्षण और परिस्थितियों का गुफन ही उनके प्रेम को आधार और मज़बूती प्रदान करता है।
इससे यह सिद्ध होता है कि प्रेम के लिए किसी निश्चित व्यक्ति, समय और स्थिति का होना आवश्यक नहीं है। वह कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय और स्थिति में उपज सकता है, हो सकता है। कहानी के माध्यम से लेखिका ने प्रेम को बंबइया फ़िल्मों की परिपाटी से अलग हटाकर उसे पवित्र और स्थायी स्वरूप प्रदान किया है।
प्रश्न 2.
पुजारी के आशीर्वाद के बाद लड़की व लड़के की मन:स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पुजारी ने संभव और उसके साथ खड़ी अपरिचिता को युगल समझकर आशीर्वाद दिया तो दोनों हैरान रह गए। लड़की तुरंत वहाँ से चल पड़ी। लड़की ने अपना होंठ दाँतों में दबाकर छोड़ दिया। उसे महसूस हुआ कि गलती तो उसी की थी; क्योंकि वही बाद में आई थी और कितने पास खड़ी हो रही है, इसका उसे तनिक भी ध्यान न रहा। अब पुजारी का आशीर्वचन सुनने के बाद दोनों आपस में बातचीत करने की मनःस्थिति में न थे। दोनों एक-दूसरे से सर्वथा अपरिचित थे। दोनों ने चप्पलें पहनीं पर लड़की घबराहट में चप्पल भी ठीक से न पहन पाई और जैसे-तैसे चप्पल अंगूठे से अटकाकर आगे बढ़ गई। संभव की मनोदशा इसके ठीक विपरीत थी। उसने देखना चाहा कि वह किधर गई? काफी खोजने और प्रयास करने के बाद वह खिन्न होकर चला गया।
प्रश्न 3.
गंगातट पर उपस्थित स्वयंसेवकों का कार्य-व्यवहार आज के युवाओं के लिए क्या संदेश छोड़ जाता है?
उत्तर :
गंगातट पर बैसाखी की पूर्वसंध्या पर खूब भीड़भाड़ है। गोधूलि बेला में होने वाली आरती में शामिल होने के लिए जन सैलाब उमड़ता चला आ रहा है। आरती का समय निकट आता जा रहा है। ऐसे में वहाँ उपस्थित स्वयंसेवक लोगों से सीढ़ियों पर बैठने की विनम्र प्रार्थना कर रहे हैं। उनके इस कार्य व्यवहार से आज के युवाओं को यह
संदेश मिलता है कि वे लोगों की भावनाओं की उपेक्षा न करें तथा भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर स्वयं संयमित रहकर शांति-व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करें तथा लोगों को कठिनाइयों से बचाकर यथासंभव मदद करें।
प्रश्न 4.
‘एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूपधारिणी मनसादेवी स्थापित थीं। व्यापार यहाँ भी था’ यहाँ ‘व्यापार’ से क्या आशय है? धार्मिक स्थानों में इस तरह के व्यवहार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
व्यापार यहाँ भी था। इस वाक्य के माध्यम से हरिद्वार स्थित मनसादेवी के मंदिर प्रांगण में विभिन्न वस्तुओं के क्रय-विक्रय से हो रहे व्यापार की ओर संकेत किया गया। वहाँ चुनरी और प्रसाद की थैलियाँ 5 रु०, 7 रु० या 11 रु० में बिक रही थीं। इसके बिंदी, पाउडर और उसके साँचे तीन-तीन रुपये में बिक रहे थे। धार्मिक स्थलों पर दुकानदार और सामान बेचने वाले लड़के लोगों की धार्मिक भावना का लाभ उठाकर उन्हें वस्तुएँ बेचकर मोटा मुनाफ़ा कमाते हैं। कुछ धार्मिक स्थलों पर भक्तों से उनका सामान रखवाने, चढ़ावे का सामान देने की आड़ में ठग लिया जाता है। भोले-भोले भक्त गण प्रायः इनके चक्कर में आ ही जाते हैं।