In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 11 Summary – Ghananand Ke Kavitt / Savaiya Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
घनानंद के कवित्त / सवैया Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 11 Summary
घनानंद के कवित्त / सवैया – घनानंद – कवि परिचय
प्रश्न :
कवि घनानंद का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए, उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-रीतिकाल के रीतिमुक्त या स्वच्छंद काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि घनानंद का जन्म 1673 ई० में बुलंदशहर के एक कायस्थ परिवार में हुआ। वे दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। कहते हैं कि सुजान नाम की एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था। उसी के प्रेम के कारण घनानंद बादशाह के दरबार में बेअदबी कर बैठे, जिससे नाराज़ होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निकाल दिया। साथ ही घनानंद को सुजान की बेवफाई ने भी निराश और दुखी किया। वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में जीवन-निर्वाह करने लगे, परंतु वे सुजान को भूल नहीं पाए और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य-रचना करते रहे। उनकी हत्या 1760 ई० में कर दी गई।
रचनाएँ – घनानंद की रचनाओं में सुजान सागर, विरह लीला, कृपाकंड निबंध, रसकेलि वल्ली आदि प्रमुख हैं।
काव्यगत विशेषताएँ – घनानंद मूलत: प्रेम की पीड़ा के कवि हैं। वियोग-वर्णन में उनका मन अधिक रमा है। उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को साक्षात् रसमूर्ति कहा गया है।
घनानंद के काव्य में भाव की जैसी गहराई है, वैसी ही कला की बारीकी भी । उनकी कविता में लाक्षणिकता, वक्रोक्ति, वाग्विद्याधता के साथ अलंकारों का कुशल प्रयोग भी मिलता है। उनकी काव्य-कला में सहजता के साथ वचन-वक्रता का अद्भुत मेल है।
घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रज भाषा है। उसमें कोमलता और मधुरता का चरम विकास दिखाई देता है। भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में वे अत्यंत कुशल थे। वस्तुत: वे ब्रजभाषा प्रवीण ही नहीं सर्जनात्मक काव्य-भाषा के प्रणेता भी थे।
Ghananand Ke Kavitt / Savaiya Class 12 Hindi Summary
कवित्त :
यहाँ कवि घनानंद के दो कवित्त तथा दो सवैये दिए जा रहे हैं। पहले कवित्त में कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान के दर्शन की अभिलाषा प्रकट करते हुए कहा है कि सुजान के दर्शन के लिए ही ये प्राण अब तक अटके हुए हैं। दूसरे कवित्त में कवि नायिका से कहता है कि तुम कब तक मिलने में आनाकानी करती रहोगी। मुझ में और तुम में एक प्रकार की होड़-सी चल रही है। तुम कब तक कानों में रुई डालकर बैठी रहोगी, कभी तो मेरी पुकार तुम्हारे कानों तक पहुँचेगी ही।
सवैया :
पहले सवैया में कवि ने विरह और मिलन की अवस्थाओं की तुलना की है। प्रेमी कहता है कि संयोग के समय में तो हम तुम्हें देखकर जीवित रहते थे, अब वियोग में अत्यंत व्याकुल रहते हैं। अंतिम सवैया में कवि कहता है कि मेरे प्रेमपत्र को प्रियतमा ने पढ़ा भी नहीं और फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
घनानंद के कवित्त सप्रसंग व्याख्या
कवित्त :
1. बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति ही दै दै सनमान को॥
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास हवै कै,
अब ना घिरत घन आनंद निदान को।
अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये सँदेसो लै सुजान को॥
शब्दार्थ :
- दिनान – दिनों की (days)।
- अवधि – समय सीमा (duration)।
- खरे – निश्चित ही (certainly)।
- अरबरनि – विचलित होकर (unmoving)।
- आवन – आने को (to come)।
- छबीले – सुंदर (beautiful)।
- गहि-गहि – ग्रहण करना, रख लेना (taking hold of)।
- सनमान – सम्मान, आदर (respect)।
- बतियानि – बातें (talks)।
- पत्यानि – विश्वास करके (to be inconfidence)।
- आनंद निदान को – दुख के निराकरण के लिए (for the abbrogation of suffering)।
- अधर लगे हैं – होठों तक आ गए हैं (about to come out from mouth)।
- पयान – प्रयाण, गमन (departure)।
- ये सँदेसो लै – यह संदेश लेकर (taking this message)।
- सुजान – कवि की प्रेयसी का नाम (name of Ghana Nand’s beloved)।
प्रसंग – प्रस्तुत कवित्त घनानंद की कृति ‘सुजान सागर’ से लिया गया है। घनानंद रीतिकाल के उन प्रमुख कवियों में से हैं, जिन्होंने रीति की लीक से हटकर शृंगार का अनूठा वर्णन किया है। सुजान के विरह में कवि वियोग शृंगार का अनूठा वर्णन करता है। इस अंश में कवि अपनी प्रेयसी सुजान के दर्शन की कामना करता हुआ अपने जीवन का आधार सुजान को मान रहा है।
व्याख्या – कवि अपनी प्रेयसी सुजान के दर्शन करना चाहता है। उसे लगता है कि सुजान को देखने के लिए ही उसके प्राण अटके हुए हैं। वह सुजान को संबोधित करते हुए कहता है कि अब बहुत दिनों की अवधि बीतने वाली है और सुजान के दर्शन नहीं हुए। अब मेरे प्राण विचलित होकर शरीर छोड़ने के लिए आतुर हैं। मेरी इस विरहाकुल दशा के संदेश को सुजान तक पहुँचा दिया गया है, जिसे वह आदरपूर्वक रख लेती है, परंतु आने के लिए बार-बार कहकर भी मुझे अपनी एक झलक दिखाने नहीं आती है।
उसके अब तक के सारे वायदे झूठे ही निकले हैं। उसके झूठे वायदों पर भरोसा करते-करते अब तो मन उदास हो गया है। उसके झूठे वायदों के कारण न अब घन (बादल) घिरते हैं और न आनंद (जल) प्राप्त होता है। अब तो प्राण भी शरीर से निकलने के लिए होठों तक आ गए हैं, लेकिन जाने से पहले ये सुजान का संदेश लेना चाहते हैं। भाव यह है कि सुजान के दर्शन के लिए ही कवि के प्राण अटके पड़े हैं।
विशेष :
- इसमें कवित्त छंद है।
- विरह में मरण दशा का सुंदर वर्णन है।
- तीसरी और चौथी पंक्तियों में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- अपनी प्रेमिका सुजान के वियोग से विदग्ध कवि की दशा का मार्मिक चित्रण है।
- कवि के प्राण सुजान की एक झलक पाने के लिए ही शरीर में अटके हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
- ब्रजभाषा में सफल भावाभिव्यक्ति है।
- शृंगार रस के वियोग-पक्ष का वर्णन है। अतः वियोग शृंगार रस घनीभूत है।
- काव्यांश कवित्त छंद में है, जिसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
- करुण रस घनीभूत है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- ‘कहि-कहि’, ‘गहि-गहि’, ‘दै-दै’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं?
कहा मो चकित दसा त्यों न दीठि डोलिहै?
मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहो जू,
कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हैं पैज परी,
जानियैगो टेक टरें कौन धौ मलोलिहै।
रूई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की?
कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलिहै।
शब्दार्थ :
- आनाकानी – टालमटोल, बहानेबाजी (procrastination)।
- आरसी – शीशा, दर्पण (mirror)।
- निहारिबो – प्रेमपूर्वक देखना (to look lovingly)।
- कौलौं – कब तक (when)।
- कहा – क्यों (why)।
- त्यों – वैसी (same)।
- दीठि – देखकर (seeing, looking)।
- डोलिहै – विचलित होती है (unsteady)।
- कितेक – कितने (how many)।
- पन – प्रण (resolution)।
- कूकभरी – पुकारभरी (calling)।
- मूकता – चुप्पी (silence)।
- आप – खुद (self)।
- पैज – बहस (a discussion)।
- टेक – जिद (obduracy)।
- धौ – ध्यान (consideration)।
- मलोलिहै – मिटा सकता है (can delete)।
- बहरायबे की – बहरा होने की (to be deaf)।
- मेरियो – मेरी (my)।
- कान खोलिहै – सुनोगी (have to listen)।
प्रसंग – प्रस्तुत कवित्त घनानंद द्वारा रचित ‘ सुजान सागर’ कृति से लिया गया है। घनानंद अपनी प्रेयसी सुजान को संबोधित करके मिलने का आग्रह करते हैं। वे आशा करते हैं कि कभी तो सुजान अपनी हठ छोड़ उनसे मिलने आएगी।
व्याख्या – कवि अपनी प्रेयसी सुजान से दर्शन देने तथा निष्ठुरता त्यागने का अनुरोध करता हुआ कहता है कि हे सुजान! तुम कब तक मेरी बात को अनसुना करके अपनी अँगूठी में लगे शीशे को देखती रहोगी। क्या मेरी विरह-व्यधित दशा देखकर भी तुम विचलित नही हो रही हो। तुम चुप्पी साधकर कब तक प्रण का पालन करोगी। मेरी पुकार सुनकर तुम अवश्य ही बोलोगी। कवि घनानंद् कहते हैं कि हे सुजाना तुमसे मेरी बहस हो गई है कि तुम अपनी जिद पर कब तक अड़ी रहोगी। देख लेना मैंने तुमसे मिलने का जो ध्यान धरा है, उसे कोई मिटा नहीं सकता है। तुम अपने कानों में रुई डालकर कब तक मुझे अनसुना करोगी। कभी तो मेरी पुकार सुनकर तुम्हारे कान खुलेंगे अर्थात् कभी तो तुम मेरी बात सुनोगी।
विशेष :
- प्रेम के विरह में मिलन हेतु हठ का चित्रण है।
- ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौददर्य :
- कवि अपनी प्रेमिका से पुकार सुनने का अनुरोध करता है।
- कवि को अपने अनन्य प्रेम पर अटूट विश्वास है। उसका यह प्रेम उसकी प्रेमिका को अपनी जिद छोड़ने और कवि का अनुरोध सुनने के लिए विवश कर देगा।
शिल्प-सौंवर्य :
- ब्रजभाषा में सफल भावाभिव्यक्ति है।
- श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का वर्णन है। अतः वियोग श्रृंगार रस घनीभूत है।
- काव्यांश कवित्त छंद में है, जिसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
- ‘कान में रुई देना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
- अभिधा शब्द-शक्ति में भावाभिव्यक्ति है।
- ‘आनाकानी आरसी’, ‘करौगे कौलों, ‘टेक टर’ में अनुप्रास तथा प्रथम एवं द्वितीय पंक्ति में व रुई दिए……… बहरायब्ने की? में प्रश्न अलंकार है।
सवैया :
1. तब तौ छबि पीवत जीवत है, अब सोचन लोचन ज्ञात जरे।
हित-तोष के तोष सु प्रान पले, विललात महा दुख दोष भरे।
घनआनंद मीत सुजान बिना, सब ही सुख-साज-समाज टरे।
तब हार पहार से लागत है, अब आनि कै बीच पहार परे।
शब्दार्थ :
- तब तौ – उस समय (संयोग काल में) (that time, at time of enjoyment)।
- छबि पीवत – रूप निहारते हुए (looking beauty)।
- सोचन – चिंता, शोक (distress)।
- जात जरे – जले जाते हैं (to be burning)।
- हित – तोष-प्रेम के पोषण से (nourishment of affection)।
- तोष – संतुष्ट (satisfied)।
- विललात – व्याकुल (restless)।
- मीत – साथी, संगी (friend)।
- सुख-साज – समाज-सुखों का साज समूह (collection of pleasure)।
- पहार – पर्वत (mountain)।
प्रसंग – प्रस्तुत सवैया घनानंद द्वारा रचित है। घनानंद रीतिकाल के प्रमुख कवि थे। उन्होंने इस सवैये में संयोग और वियोग की स्मृतियों को मुखरित किया है कि कैसे संयोग काल की सुखद स्मृतियाँ, वियोग काल में दुख का कारण बन जाती हैं।
व्याख्या – कवि सुजान के साथ बिताए पलों को याद कर कहता है कि संयोगावस्था में हम दोनों एक-दूसरे को प्रेमपूर्वक देखते हुए औखों से रूप का रस पान कर रहे थे। अब सुजान के साथ न होने से यही नेत्र विरह की सोच में जले जा रहे हैं। मिलनकाल में प्राण प्रिय के प्यार में परिपुष्ट होते थे, अब दुख और शोक से भरकर व्याकुल हो रहे हैं। कवि घनानंद कहते हैं कि प्रिय सुजान के बिना सुख के सारे साधन नष्ट होते जा रहे हैं। मिलन के पलों में गले में पड़ा हार पहाड़ जैसा भारी लगता था, अब विरहकाल में दोनों के बीच का वियोग पहाड़ जैसा बन गया है।
विशेष :
- दूसरी पंक्ति में अनुप्रास अलंकार भी है।
- यह पद सवैया छंद में रचित है।
- इस पद में शृंगार के विरह पक्ष का उद्घाटन है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- कवि ने संयोग और वियोग की स्थितियों का स्वाभाविक चित्रण किया है।
- संयोगकाल में सुखद लगने वाले साधन वियोग काल में दुखदायी बन जाते हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
- ब्रजभाषा में सफल भावाभिव्यक्ति है।
- श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का वर्णन है। अतः वियोग शृंगार रस घनीभूत है।
- काव्यांश कवित्त छंद में है, जिसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।
- मुहावरों के प्रयोग से भाषा की रोचकता, सजीवता में वृद्धि हो गई है।
- ‘जात जरे’ और सब ही सुख-साज-समाज टरे’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘पहार’ में यमक अलंकार, ‘हित-तोष के तोष’ में सभंग यमक अलंकार है।
- माधुर्य गुण है।
- काव्यांश तुकांत युक्त है, जिसमें गेयता विद्यमान है।
2. पूरन प्रेम को मंत्र महा पन जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।
ताही के चारु चरित्र बिचित्रनि यों पचि कै रचि राखि बिसेख्यौं।
ऐसो हियो हितपत्र पवित्र जो आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ।
सो घनआनंद जान अजान लों ट्रक कियो पर बाँचि न देख्यौ।
शब्दार्थ :
- पूरन – पूर्ण (accomplished)।
- पन – प्रण (resolution)।
- जा मधि – जिसके बीच (between which)।
- सोधि – शुद्ध किया (purified)।
- लेख्यौ – लिखा है (have written)।
- ताही के – उसके (his)।
- चारु – सुंदर (beautiful)।
- यों – इस प्रकार (thus)।
- पचि कै – हैरान होकर (astonished)।
- बिसेख्यौ – विशेष रूप से (specially)।
- हियो – हृद्य (heart)।
- हितपत्र – हदय का प्रेम-पत्र (love letter of heart)।
- आन-कथा – अन्य कथा (other fable)।
- अवरेख्यौ – अंकित किया, लिखा (written)।
- अजान लौं – अनजान की तरह (like unknown person)।
- टूक – टुकड़े (pieces)।
- बाँचि – पढ़कर (reading)।
प्रसंग – घनानंद द्वारा सवैया छंद में रचित प्रस्तुत पद में कवि ने प्रेमी की ओर से उपालंभ दिया है। विरह में तप्त कवि अपनी प्रेयसी सुजान को पत्र लिखकर हुदय का प्रेम व्यक्त करता है, परंतु उसे दुख है कि आराध्य उस पत्र को पढ़े बिना ही फाड़कर फेंक देती है।
व्याख्या – सुजान द्वारा पत्र को पढ़े बिना फाड़ दिए जाने पर कवि अपने मन की व्यथा व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैंने अपने हुद्य रूपी पूर्ण एवं पवित्र प्रेम के महामंत्र को एक प्रण के साथ सुजान के पास भेजा। उस प्रेम-पत्र में उसी सुजान के सुंदर और अनोखे चरित्र को विशेष रूप में लिखा। कवि ने अपने हुद्य रूपी उस प्रेम-पत्र में किसी अन्य के संबंध में कुछ भी न लिखा था। कवि घनानंद् कहते हैं कि मेरे उस हुदय रूपी प्रेम-पत्र को सुजान ने किसी अनजान व्यक्ति की तरह टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया, पर उसमें क्या लिखा है, यह पढ़कर नहीं देखा।
विशेष :
- यह पद सवैया छंद में रचित है।
- इसमें शृंगार के उपालंभ का वर्णन है।
- ब्रजभाषा में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- संगीतात्मकता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- कवि अपनी प्रेमिका सुजान द्वारा पत्र न पढ़ने और फाड़कर फेंकने से दुखी है।
- कवि के प्रेम भरे हृद्य की सुजान ने उपेक्षा की। इस प्रकार उसने निष्ठुरता का प्रमाण दिया।
शिल्प-साँदर्य :
- ब्रजभाषा में माधुर्य है।
- वियोग शृंगार पक्ष का वर्णन होने से वियोग श्रृंगार रस घनीभूत है।
- काव्यांश में उपालंभ का प्रकट है।
- सवैया छंद् में संगीतात्मकता का गुण है।
- माधुर्य गुण विद्यमान है।
- ‘हितपत्र’ में रूपक अलंकार, ‘पूरन प्रेम’, ‘सोधि सुधार’, ‘चारु चरित्र’ तथा ‘जान अजान’ में अनुप्रास अलंकार है।
- अभिधा शब्द-शक्ति में सहज अभिव्यक्ति है।