Understanding the question and answering patterns through Class 12 Geography Question Answer in Hindi Chapter 9 अंतराष्ट्रीय व्यापार will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Chapter 9 in Hindi Question Answer अंतराष्ट्रीय व्यापार
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
रेशम मार्ग निम्न में से जिन देशों के मध्य था, हैं-
(अ) चीन तथा रोम
(ब) चीन तथा भारत
(स) जापान तथा श्रीलंका
(द) अफ्रीका तथा चीन।
उत्तर:
(अ) चीन तथा रोम
प्रश्न 2.
वे एकत्रण केन्द्र जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात के लिए वस्तुएँ लाई जाती हैं, कहलाते हैं-
(अ) पैकेट पत्तन
(ब) मार्ग पत्तन
(स) आंपो पत्तन
(द) तैल पत्तन।
उत्तर:
(स) आंपो पत्तन
प्रश्न 3.
विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय जिस नगर में स्थित है, वह है-
(अ) बीजिंग
(स) जिनेवा
(ब) न्यूयार्क
(द) लन्दन।
उत्तर:
(स) जिनेवा
प्रश्न 4.
‘ओपेक’ का मुख्यालय जिस शहर में स्थित है, वह
(अ) वियना
(स) त्रिपोली
(च) अबादान
(द) वाशिंगटन।
उत्तर:
(अ) वियना
प्रश्न 5.
सिंगापुर एशिया के लिए जिस प्रकार का पत्तन है, वह है
(अ) बाह्य पत्तन
(स) अन्तर्देशीय पत्तन
(द) आंत्रपो पत्तन।
(ब) पैकेट स्टेशन
उत्तर:
(द) आंत्रपो पत्तन।
प्रश्न 6.
व्यापार की दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है –
(अ) प्रशान्त तट
(ब) अटलाण्टिक तट
(स) कैलीफोर्नियाई तट
(द) हिन्द महासागरीय तट।
उत्तर:
(ब) अटलाण्टिक तट
प्रश्न 7.
विश्व का सबसे बड़ा स्थलरुद्ध पत्तन है –
(अ) मुम्बई
(ब) कांडला
(स) सैन फ्रांसिस्को
(द) लन्दन।
उत्तर:
(स) सैन फ्रांसिस्को
प्रश्न 8.
विश्व व्यापार में निम्न में से कौनसी वस्तु समूह का अंश अधिक रहता है-
(अ) स्वचालित उत्पाद
(ब) रसायन
(सं) लौह-इस्पात
(द) मशीनरी और परिवहन उपकरण।
उत्तरमाला
(द) मशीनरी और परिवहन उपकरण।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
व्यापार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं के स्वैच्छिक आदान-प्रदान को व्यापार कहा जाता है।
प्रश्न 2.
व्यापार के दो स्तर बताइये।
उत्तर:
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
- राष्ट्रीय व्यापार।
प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर:
विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है।
प्रश्न 4.
आदिम समाज में व्यापार का आरम्भिक स्वरूप किस प्रकार का था? बताइये।
उत्तर:
आदिम समाज में व्यापार का आरम्भिक स्वरूप विनिमय व्यवस्था था, जिसमें वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान- प्रदान होता था।
प्रश्न 5.
प्राचीन काल में व्यापार स्थानीय वाजारों तक ही सीमित क्यों था?
उत्तर:
प्राचीन काल में लम्बी दूरियों तक वस्तुओं का परिवहन जोखिमपूर्ण होता था। इसी कारण व्यापार स्थानीय बाजारों तक ही सीमित था ।
प्रश्न 6.
15वीं शताब्दी में व्यापार के किस रूप का उदय हुआ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी से ही यूरोपीयन उपनिवेशवाद उदय हुआ और विदेशी वस्तुओं के व्यापार के साथ ही दास व्यापार का उदय हुआ ।
प्रश्न 7.
आधुनिक समय में व्यापार किसका आधार है तथा यह किससे सम्बन्धित है?
उत्तर:
आधुनिक समय में व्यापार विश्व के आर्थिक संगठन का आधार है। यह देशों की विदेश नीति से सम्बन्धित है ।
प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसका परिणाम है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है।
प्रश्न 9.
सघन जनसंख्या वाले देशों में आन्तरिक व्यापार अधिक क्यों है? बताइये ।
उत्तर:
क्योंकि कृषिजन्य और औद्योगिक उत्पादों का अधिकांश भाग स्थानीय बाजार में ही खप जाता है।
प्रश्न 10.
व्यापार सन्तुलन किसका प्रलेखन करता है?
उत्तर:
व्यापार सन्तुलन एक देश के द्वारा अन्य देशों को आयात एवं इसी प्रकार निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा का प्रलेखन करता है।
प्रश्न 11.
धनात्मक व्यापार सन्तुलन से क्या अभिप्राय
उत्तर:
यदि किसी देश का निर्यात मूल्य आयात के मूल्य की तुलना में अधिक है तो उस देश का व्यापार सन्तुलन धनात्मक अथवा अनुकूल होता है।
प्रश्न 12.
द्विपार्श्विक व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर:
द्विपार्श्विक व्यापार दो देशों के द्वारा एक-दूसरे के साथ किया जाता है।
प्रश्न 13.
मुक्त व्यापार किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यापार हेतु अर्थव्यवस्थाओं को खोलने का कार्य मुक्त व्यापार अथवा व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 14.
डंप करना किसे कहा जाता है? बताइये।
उत्तर:
लागत की दृष्टि से नहीं अपितु भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग कीमत की किसी वस्तु को दो देशों में विक्रय करने की प्रथा डंप करना कहलाती है।
प्रश्न 15.
विश्व व्यापार संगठन क्या है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जो कि देशों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है।
प्रश्न 16.
विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय कहाँ है ? सन् 2016 में इसके कितने सदस्य थे?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय स्विट्जरलैण्ड के जिनेवा शहर में स्थित है। 2016 में 164 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य थे।
प्रश्न 17.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार क्या होते हैं ?
उत्तर:
पोताश्रय अथवा पत्तन ।
प्रश्न 18.
निपटाए गये नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार बताइये।
उत्तर;
- औद्योगिक पत्तन
- वाणिज्यिक पत्तन
- विस्तृत पत्तन।
प्रश्न 19.
वस्तु विनिमय व्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
वस्तु के बदले वस्तु का लेन-देन वस्तु विनिमय कहलाता है।
प्रश्न 20.
सैलरी शब्द से क्या आशय है?
उत्तर:
सैलरी शब्द लैटिन भाषा के सैलेरियम (Salarium) शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-नमक के द्वारा भुगतान ।
प्रश्न 21.
वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश कौनसा है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।
प्रश्न 22.
भारत के किस क्षेत्र में आज भी वस्तु- विनिमय व्यवस्था देखने को मिलती है?
उत्तर:
गुवाहाटी (असम) से 35 किलोमीटर दूर जागीरॉड में जनवरी माह में लगने वाले जॉन बील मेले में आज भी वस्तु विनिमय व्यवस्था देखने को मिलती है।
प्रश्न 23.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्वपूर्ण पक्ष कौन- कौनसे हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। ये हैं –
- व्यापार का परिमाण
- व्यापार संयोजन तथा
- व्यापार की दिशा।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किन्हीं चार प्रादेशिक व्यापार समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व में अनेक प्रादेशिक व्यापार समूह बने हुए हैं। इनमें चार निम्न प्रकार हैं-
- आसियान (ASEAN)
- यूरोपीय संघ (EU)
- ओपेक (OPEC)
- साफ्टा (SAFTA )।
प्रश्न 2.
औद्योगिक एवं वाणिज्यिक पत्तन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक पत्तन थोक नौभार (जैसे- अनाज, चीनी, अयस्क, तेल, रसायन तथा समकक्ष पदार्थ) के लिए विशेषीकृत होते हैं जबकि वाणिज्यिक पत्तन सामान्य नौभार संवेष्टित उत्पादों तथा विनिर्मित वस्तुओं का निपटान करते हैं। साथ ही ये पत्तन यात्री यातायात का भी प्रबन्ध करते हैं।
प्रश्न 3.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना किस उद्देश्य से की गई थी ?
उत्तर:
वर्ष 1994 में गैट (GATT) के सदस्य देशों द्वारा राष्ट्रों के मध्य मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक स्थायी संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया तथा जनवरी, 1995 में गैट संस्था को ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) में रूपान्तरित कर दिया गया।
प्रश्न 4.
प्रादेशिक व्यापार समूहों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
प्रादेशिक व्यापार समूह सदस्य राष्ट्रों में व्यापार शुल्क को हटा देते हैं तथा मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते हैं। यह समूह व्यापार की मदों में भौगोलिक निकटता, समरूपता तथा पूरकता के साथ सदस्य देशों के मध्य व्यापार बढ़ाने एवं विकासशील देशों के व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने के उद्देश्य से अस्तित्व में आए हैं।
प्रश्न 5.
व्यापार से क्या अभिप्राय है? यह दोनों पक्षों के लिए लाभदायक होता है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं के स्वैच्छिक आदान- प्रदान को व्यापार कहा जाता है। व्यापार करने के लिए दो पक्षों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति/ पक्ष बेचता है तथा दूसरा खरीदता है। कुछ स्थानों पर लोग वस्तुओं का विनिमय करते हैं। अतः व्यापार दोनों ही पक्षों के लिए समान रूप से लाभदायक होता है।
प्रश्न 6.
विश्व व्यापार में सम्मिलित किन्हीं छः व्यापारिक वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार में सम्मिलित व्यापारिक वस्तुएँ
- मशीनरी तथा परिवहन उपकरण
- ईंधन और खदान उत्पाद
- कार्यालय उत्पाद तथा दूरसंचार उपकरण
- रसायन
- स्वचालित उत्पाद
- लौह इस्पात, कपड़े तथा वस्त्र।
प्रश्न 7.
रेशम मार्ग के बारे में आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन समय में रोम से चीन तक 6,000 किलोमीटर लम्बाई के व्यापारिक मार्ग को रेशम मार्ग कहा जाता था। इस मार्ग से व्यापारी भारत, पर्शिया (ईरान) और मध्य एशिया के मध्यवर्ती स्थानों से चीन में बने रेशम, रोम की ऊन व बहुमूल्य धातुओं तथा अन्य अनेक महंगी वस्तुओं का परिवहन करते थे।
प्रश्न 8.
तेल पत्तन क्या है? उदाहरण सहित बताइये ।
उत्तर:
वे पत्तन जो कि तेल के प्रक्रमण तथा नौ परिवहन का कार्य करते हैं, तेल पत्तन कहलाते हैं। इनमें से कुछ टैंकर पत्तन हैं तथा कुछ तेल शोधन पत्तन हैं। वेनेजुएला में माराकाइबो, ट्यूनीशिया में एस्सखीरा, लेबनान में त्रिपोली टैंकर पत्तन हैं तथा पर्शिया की खाड़ी में अबादान एक तेल शोधन पत्तन है।
प्रश्न 9.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार दो स्तरों पर किया जा सकता है- अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को कहा जाता है। राष्ट्रों को व्यापार करने की आवश्यकता उन वस्तुओं को प्राप्त करने में होती है। जिनको या तो वे देश स्वयं उत्पादित नहीं कर सकते या जिनको वे अन्य स्थान से कम दामों में खरीद सकते हैं। इसके विपरीत जब किसी देश के विभिन्न राज्यों के मध्य व्यापार होता है तो इसे राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। यह सीमित होता है। कुछ राज्यों में अनेक वस्तुओं की कमी होती है। ये वस्तुएँ उन राज्यों से आयात की जाती हैं जहाँ इनका उत्पादन अधिक होता है।
प्रश्न 10.
दास व्यापार के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
15वीं शताब्दी में यूरोपीय उपनिवेशवाद और विदेशी वस्तुओं के व्यापार के साथ ही व्यापार के एक नवीन स्वरूप दास व्यापार का उदय हुआ। पुर्तगालियों, डच, स्पेनिश लोगों व अंग्रेजों ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ा तथा उनको बलपूर्वक, बागानों में श्रम हेतु नये खोजे गये अमेरिका में परिवहित किया। दास व्यापार दो सौ वर्षों से भी अधिक समय तक एक लाभदायक व्यापार रहा परन्तु इसे 1792 में डेनमार्क में, 1807 में ग्रेट ब्रिटेन में और 1808 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
प्रश्न 11.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या आशय है? वर्णन कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – विभिन्न राष्ट्रों के मध्य राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान- प्रदान को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को निम्नलिखित दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(1) द्विपार्श्विक व्यापार – दो देशों के द्वारा एक- दूसरे के साथ किया जाने वाला व्यापार द्विपाश्विक व्यापार कहलाता है। इस व्यापार के अन्तर्गत दोनों देश निर्दिष्ट वस्तुओं का व्यापार करने के लिए सहमति देते हैं। उदाहरण के लिए एक देश कुछ कच्चे पदार्थ के व्यापार के लिए इस समझौते के साथ सहमत हो सकता है कि दूसरा देश कुछ अन्य निर्दिष्ट सामग्री खरीदेगा अथवा स्थिति इसके विपरीत भी हो सकती है।
(2) बहु – पार्श्विक व्यापार बहु पार्श्विक व्यापार बहुत से व्यापारिक देशों के साथ किया जाता है। वही देश अन्य अनेक देशों के साथ व्यापार कर सकता है। एक देश कुछ व्यापारिक साझेदारों से सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र की स्थिति प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 12.
मुक्त व्यापार से क्या अभिप्राय है? इसके क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
मुक्त व्यापार – व्यापार हेतु अर्थव्यवस्थाओं को खोलने का कार्य मुक्त व्यापार अथवा व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। यह कार्य व्यापारिक अवरोधों यथा सीमा शुल्क को घटाकर किया जाता है। घरेलू उत्पादों एवं सेवाओं से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए व्यापार उदारीकरण सभी स्थानों से वस्तुओं और सेवाओं के लिए अनुमति प्रदान करता है।
प्रभाव-मुक्त व्यापार विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उन पर प्रतिकूल थोपते हुए तथा उनको विकास के समान अवसर न देकर बुरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं। परिवहन एवं संचार तन्त्र विकास के साथ ही वस्तुएँ एवं सेवाएँ पहले की अपेक्षा तीव्र गति से एवं दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँच सकती हैं। किन्तु व्यापार मुक्त व्यापार को केवल सम्पन्न देशों के द्वारा ही बाजारों की ओर नहीं ले जाना चाहिए अपितु विकसित देशों को चाहिए कि वे स्वयं के बाजारों को विदेशी उत्पादों से सुरक्षित रखें।
प्रश्न 13.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की हानियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि किस प्रकार भूमण्डलीय वातावरण को प्रभावित कर रही है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार देशों के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि –
- यह अन्य देशों पर निर्भरता, विकास के असमान स्तर, शोषण और युद्ध का कारण बनने वाली प्रतिद्वन्द्विता की ओर उन्मुख होता है।
- विश्व में जैसे-जैसे देश अधिक व्यापार के लिए प्रतिस्पद्ध बनते जा रहे हैं, उत्पादन और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ रहा है तथा संसाधनों के नष्ट होने की दर उनके पुनर्भरण की दर से तीव्र है।
- संसाधनों के व्यापक उपभोग के फलस्वरूप समुद्री जीवन भी तीव्रता से नष्ट हो रहा है, वन क्षेत्र कम हो रहे हैं तथा नदी बेसिन निजी पेयजल कम्पनियों को बेचे जा रहे हैं।
- तेल-गैस खनन, औषधि विज्ञान और कृषि व्यवसाय में संलग्न बहुराष्ट्रीय निगम और अधिक प्रदूषण उत्पन्न करते हुए हर कीमत पर अपने कार्यों को बढ़ाए रखते हैं।
- बहुराष्ट्रीय निगमों के कार्य करने की पद्धति सतत पोषणीय विकास के मानकों का अनुसरण नहीं करती। यदि संगठन केवल लाभ बनाने की तरफ उन्मुख रहते हैं। और पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों पर ध्यान नहीं देते तो भविष्य के लिए इसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं।
प्रश्न 14.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार के रूप में जनसंख्या कारक का वर्णन कीजिये।
उत्तर;
किसी भी देश की जनसंख्या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार होती है। विभिन्न देशों में जनसंख्या के आकार, वितरण तथा उसकी विविधता व्यापार की गई वस्तुओं के प्रकार और मात्रा को प्रभावित करते हैं।
(1) सांस्कृतिक कारक – विशिष्ट संस्कृतियों में कला तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप विकसित हुए हैं जिनकी विश्व भर में मांग रहती है। उदाहरणस्वरूप चीन द्वारा उत्पादित उत्तम कोटि का पॉर्सलिन (चीनी मिट्टी का बर्तन) तथा ब्रोकेड (किमखाब- जरीदार या बूटेदार कपड़ा)। इसी प्रकार ईरान के कालीन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, जबकि उत्तरी अफ्रीका का चमड़े का काम और इंडोनेशियाई बटिक (छींट वाला) वस्त्र बहुमूल्य हस्तशिल्प हैं।
(2) जनसंख्या का आकार सघन बसाव वाले देशों में आंतरिक व्यापार अधिक होता है। जबकि बाह्य व्यापार कम परिणाम वाला होता है, क्योंकि कृषीय और औद्योगिक उत्पादों का अधिकांश भाग स्थानीय बाजारों में ही खप जाता है। जनसंख्या का जीवन स्तर बेहतर गुणवत्ता वाले आयातित उत्पादों की मांग को निर्धारित करता है क्योंकि निम्न जीवन स्तर के साथ केवल कुछ लोग ही महँगी आयातित वस्तुएँ खरीद पाने में समर्थ होते हैं।
प्रश्न 15.
” अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसी देश के आर्थिक विकास का मापदण्ड होता है।” व्याख्या कीजिए ।
अथवा
“अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसी देश का आर्थिक बैरोमीटर कहा जाता है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास का ज्ञान उस देश के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा होता है। आधुनिक युग व्यापार का युग है। प्रौद्योगिकी के उन्नत होने तथा यातायात के साधनों के विस्तार के कारण व्यापार में बहुत वृद्धि हुई है। वर्तमान में विश्व के बड़े व्यापारिक देश उन्नत देश हैं। तथा कम व्यापार वाले देश विकासशील देश हैं। औद्योगिक विकास के कारण अनेक देश कच्चे माल का आयात करके तैयार माल का निर्यात करते हैं।
इस प्रकार विदेशी मुद्रा प्राप्त होने से लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किसी देश की आर्थिक सम्पन्नता का परिचय देता है। प्रति व्यक्ति अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक विकास का मापक है किन्तु अत्यधिक जनसंख्या वाले देशों में अधिक व्यापार होते हुए भी प्रति व्यक्ति व्यापार कम होता है।
प्रश्न 16.
“विभिन्न देशों में उत्पादों की अतिरिक्त मात्रा में उपलब्धता ही व्यापार का आधार होती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अतिरिक्त उत्पादन का ही आदान-प्रदान होता है कुछ देश अपनी प्रौद्योगिकी की कुशलता के आधार पर कुछ उत्पादन अपनी आवश्यकता से अधिक करते हैं। इनके पास बेचने के लिए अधिशेष उपलब्ध होता है। जिन देशों में इन उत्पादों की माँग अधिक होती है उन देशों के साथ ये देश व्यापार करते हैं। उदाहरणस्वरूप सऊदी अरब में तेल का उत्पादन अधिक होता है। इसी कारण सऊदी अरब जापान आदि देशों को तेल भेजता है, जहाँ तेल का उत्पादन कम तथा माँग अधिक है। इसी प्रकार कम जनसंख्या वाले देशों कनाडा, अर्जेण्टाइना द्वारा गेहूँ का निर्यात किया जाता है। जापान से मछली तथा चाय का निर्यात किया जाता है। इसी कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए अधिशेष उत्पाद एक आवश्यक शर्त है।
प्रश्न 17.
“अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आयातक एवं निर्यातक दोनों देशों के लिए लाभदायक होता है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। जो देश किसी विशेष वस्तु का अधिक उत्पादन करते हैं वहाँ से उस वस्तु का निर्यात होता है। इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। कुछ देशों में अधिक माँग के कारण वस्तुएँ आयात करनी पड़ती हैं ऐसे देशों का आर्थिक विकास आयात किये गये कच्चे माल पर निर्भर करता है। यथा श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चाय के निर्यात पर निर्भर है। जापान का औद्योगिक विकास कच्चे माल के आयात पर निर्भर है। अतः स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आयातक एवं निर्यातक दोनों देशों के लिए लाभदायक होता है।
प्रश्न 18.
“पत्तन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश-द्वार होते हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पत्तन समुद्र तट पर स्थित वह स्थान होता है। जहाँ जहाज़ों को खड़ा करने, सामान लादने उतारने, सामान को गोदामों में रखने की सुविधाएँ होती हैं। पत्तन द्वारा ही किसी देश का आयात-निर्यात व्यापार सम्पन्न किया जाता है। पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश से सड़क रेल मार्ग द्वारा जुड़ा होता है। इन स्थल मार्गों के द्वारा पत्तन तक माल भेजा जाता है जो कि समुद्री मार्ग द्वारा निर्यात किया जाता है।
इसी प्रकार आयात माल पत्तन से ही अपने पृष्ठ प्रदेश को भेजा जाता है। इस प्रकार पत्तन विदेशी माल का प्रवेश द्वार होता है तथा अपने पृष्ठ प्रदेशों के उत्पादों का विकास द्वार होता है। इसी कारण किसी पत्तन को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रवेश द्वार कहा जाता है यथा कोलकाता अपने पृष्ठ प्रदेश पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार के लिए व्यापारिक द्वार का काम करता है।
प्रश्न 19.
आदर्श पत्तन के विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक कारक बताइये।
उत्तर:
पत्तन के द्वारा किसी देश का आयात एवं निर्यात व्यापार होता है। इसी कारण यह अपने पृष्ठ प्रदेश के लिए एक प्रवेश द्वार होता है। पत्तन के विकास के लिए निम्नलिखित भौगोलिक कारक आवश्यक होते हैं –
- एक अच्छे, सुरक्षित पोताश्रय का होना।
- गहरे जल में प्राकृतिक पोताश्रय का होना।
- जहाजों को लंगर डालने के लिए पर्याप्त स्थान प्राप्त होना।
- पृष्ठ प्रदेश से रेल – सड़क मार्गों द्वारा जुड़ा होना।
- धनी तथा उन्नत पृष्ठ प्रदेश होना।
- अनुकूल जलवायु जिससे पत्तन सम्पूर्ण वर्ष भर खुले रह सकें।
- ईंधन की सुविधाएँ प्राप्त होना।
प्रश्न 20.
वस्तु विनिमय तथा मुद्रा आधारित व्यापार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय तथा मुद्रा आधारित व्यापार में अन्तर
वस्तु विनिमय | मुद्रा आधारित व्यापार |
वस्तु विनिमय व्यापार का प्राचीन तरीका है। | मुद्रा आधारित व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधुनिक ढंग है। |
वस्तु विनिमय में वस्तुओं के विनिमय के द्वारा ही व्यापार किया जाता है। | मुद्रा आधारित व्यापार में वस्तुओं का आदान-प्रदान मुद्रा के प्रयोग द्वारा किया जाता है। |
वस्तु विनिमय की विधि वर्तमान में भी विश्व की आद्मि जातियों में प्रचलित है। | मुद्रा आधारित व्यापार विधि विश्व के लगभग सभी देशों में प्रयोग की जाती है। |
व्यापार की यह सीमित विधि है। | व्यापार की इस विधि का संसार के अनेक प्रदेश प्रयोग करते हैं। |
प्रश्न 21.
आदिम समाज की विनिमय व्यवस्था में किन-किन वस्तुओं का मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
आदिम समाज में व्यापार का आरम्भिक स्वरूप ‘विनिमय व्यवस्था’ कहलाता था, जिसमें वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था अर्थात् वस्तु के बदले में रुपए के स्थान पर वस्तु दी जाती थी। प्राचीन समय में कागजी व धात्विक मुद्रा आने से पूर्व चकमक पत्थर, आब्सीडियन (आग्नेय काँच), काठरी शैल, चीते के पंजे, ह्वेल के दाँत, कुत्ते के दाँत, खालें, फर, मवेशी, चावल, पेपरकॉर्न, नमक, छोटे यंत्र, ताँबा, चाँदी तथा स्वर्ण का उपयोग विनिमय व्यवस्था के रूप में किया जाता था।
प्रश्न 22.
व्यापार संतुलन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यापार संतुलन- किसी देश के आयात व निर्यात के मध्य मूल्यों में अन्तर को उस देश का व्यापार संतुलन कहा जाता है।
व्यापार संतुलन के प्रकार व्यापार संतुलन के निम्न दो प्रकार हैं-
- अनुकूल व्यापार संतुलन जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक होता है, तब उस देश का व्यापार अनुकूल या धनात्मक व्यापार संतुलन की स्थिति में होता है।
- प्रतिकूल व्यापार संतुलन- जब किसी देश का निर्यात मूल्य उसके आयात मूल्य से कम होता है, तब वह देश व्यापार की प्रतिकूल या ऋणात्मक व्यापार संतुलन की स्थिति में होता है।
प्रश्न 23.
विश्व व्यापार संगठन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO) – WTO की स्थापना जनवरी, 1995 में हुई थी। यह विश्व का एकमात्र ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जो राष्ट्रों के मध्य वैश्विक नियमों का व्यवहार करता है। यह विश्वव्यापी व्यापार तंत्र के लिए नियमों का निर्धारण करता है तथा सदस्य देशों के मध्य व्यापारिक विवादों को सुलझाता है। इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में है तथा 2016 में 164 देश इसके सदस्य थे। यह संगठन दूरसंचार तथा बैंकिंग जैसी सेवाओं तथा अन्य विषयों जैसे बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार का भी नियमन करता है।
विश्व में मुक्त व्यापार तथा भूमण्डलीकरण के प्रभावों से परेशान देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन का विरोध एवं आलोचना की जा रही है। इन देशों का मानना है कि यह संगठन धनी देशों को और अधिक धनी और गरीब देशों को और अधिक गरीब बना रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस संगठन में प्रभावशाली राष्ट्र केवल अपने वाणिज्यिक हितों पर ध्यान केन्द्रित रखते हैं। इसके अलावा इन देशों का मानना है कि अनेक विकसित राष्ट्रों ने अपने बाजारों को विकासशील देशों के उत्पादों के लिए पूरी तरह से नहीं खोला है। इसके अलावा इस संगठन द्वारा स्वास्थ्य, श्रमिकों के अधिकार, बाल श्रम और पर्यावरण जैसे मुद्दों की उपेक्षा की गई है।
प्रश्न 24.
गैट (GATT) के विषय में लिखिए।
उत्तर:
गैट (GATT) – 1948 में विश्व को उच्च सीमा शुल्क और विभिन्न प्रकार की अन्य बाधाओं से मुक्त कराने हेतु कुछ देशों के द्वारा ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ’ (GATT) का गठन किया गया था। 1994 में गैट के सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रों के बीच मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक स्थायी संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया था। परिणामस्वरूप जनवरी, 1995 में गैट (GATT) संगठन को ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) में रूपान्तरित कर दिया गया।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या अभिप्राय है? अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कोई चार आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ विभिन्न राष्ट्रों के बीच राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है। यह विश्व की अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार – अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –
(1) राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता भौतिक संरचना यथा भू-विज्ञान, उच्चावच, मृदा व जलवायु में भिन्नता के कारण विश्व के राष्ट्रीय संसाधन असमान रूप से विपरीत हैं।
यथा –
- भौगोलिक संरचना – भौगोलिक संरचना द्वारा धरातल, कृषि संसाधन तथा पशु संसाधन में मिलने वाली भिन्नताएँ निर्धारित होती हैं। निम्न भूमियों में कृषि संभाव्यता अधिक होती है जबकि पर्वतीय भाग पर्यटकों को आकर्षित कर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देते हैं।
- खनिज संसाधन ये सम्पूर्ण विश्व में असमान रूप से वितरित हैं। खनिज संसाधनों की उपलब्धता औद्योगिक विकास को आधार प्रदान करती है।
- जलवायु किसी देश की जलवायु दशाएँ उस देश में उत्पादित उत्पादों की विविधता को सुनिश्चित करती हैं, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को गति मिलती है।
(2) जनसंख्या कारक विभिन्न देशों में जनसंख्या के आकार, वितरण तथा उसकी विविधता व्यापार की गई वस्तुओं के प्रकार और मात्रा को प्रभावित करती है। इसमें सांस्कृतिक कारक भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
(3) आर्थिक विकास की प्रावस्था देशों के आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं में व्यापार की गई वस्तुओं का स्वभाव अर्थात् प्रकार परिवर्तित हो जाता है। कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देशों में विनिर्माण की वस्तुओं के लिए कृषि उत्पादों का विनिमय किया जाता है जबकि औद्योगिक देश मशीनरी और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं तथा खाद्यान्न तथा अन्य कच्चे पदार्थों का आयात करते हैं।
(4) विदेशी निवेश की सीमा विदेशी निवेश विकासशील देशों में व्यापार को बढ़ावा दे सकता है जिनके पास खनन, प्रबंधन द्वारा तेल खनन, भारी अभियान्त्रिकी, कबाड़ तथा बागवानी कृषि के विकास के लिए आवश्यक पूँजी की कमी है। विकासशील देशों में ऐसे पूँजी प्रधान उद्योगों के विकास द्वारा औद्योगिक देश खाद्य पदार्थों, खनिजों का आयात सुनिश्चित करते हैं तथा अपने निर्मित उत्पादों के लिए बाजार निर्मित करते हैं। यह सम्पूर्ण चक्र देशों के बीच में व्यापार के परिमाण को आगे बढ़ाता है।
(5) परिवहन – प्राचीन काल में परिवहन के पर्याप्त और समुचित साधनों का अभाव स्थानीय क्षेत्रों में व्यापार को प्रतिबन्धित करता था। केवल उच्च मूल्य वाली वस्तुओं यथा-रेशम तथा मसाले का लम्बी दूरियों तक व्यापार किया जाता था। रेल समुद्री तथा वायु परिवहन के विस्तार और प्रशीतन तथा परिरक्षण के बेहतर साधनों के साथ व्यापार ने स्थानिक विस्तार का अनुभव किया है।
प्रश्न 2.
पत्तनों का वर्गीकरण उनके द्वारा निपटाए गए नौ-भार तथा विशिष्टीकृत कार्यकलापों के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
पत्तनों का वर्गीकरण –
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया के मुख्य प्रवेश द्वार पोताश्रय तथा पतन होते हैं। इन्हीं पत्तनों के द्वारा जहाजी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते हैं। पत्तनों द्वारा निपटाए गये नौ भार तथा विशिष्टीकृत कार्य-कलापों के आधार पर पत्तनों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है –
(1) निपटाए गए नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार – इसके आधार पर पत्तनों को निम्नलिखित प्रकारों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
- औद्योगीकृत पत्तन – इस प्रकार के पत्तन थोक नौभार के लिए विशेषीकृत होते हैं, यथा— अनाज, चीनी, अयस्क, तेल, रसायन और इसी प्रकार के पदार्थ ।
- वाणिज्यिक पत्तन – इस प्रकार के पत्तन नौभार संवेष्टित उत्पादों तथा विनिर्मित वस्तुओं का निपटान करते हैं। इसके साथ ही ये पत्तन यात्री यातायात का भी प्रबन्ध करते हैं।
- विस्तृत पत्तन – इस प्रकार के पत्तन बड़े परिमाण में सामान्य नौभार का थोक में प्रबन्ध करते हैं। संसार के अधिकांश महान पत्तन विस्तृत पत्तनों के रूप में वर्गीकृत किए गये हैं ।
(2) विशिष्टीकृत कार्य-कलापों के आधार पर पत्तनों के प्रकार- इसके आधार पर पत्तनों को निम्नलिखित प्रकारों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
- तैल पत्तन ये पत्तन तेल के प्रक्रमण और नौ परिवहन का कार्य करते हैं। इनमें से कुछ टैंकर पत्तन हैं तथा कुछ तेल शोधन पत्तन हैं। वेनेजुएला में माराकारबो, ट्यूनीशिया में एस्सखीरा तथा लेबनान में त्रिपोली टैंकर पत्तन हैं जबकि पर्शिया की खाड़ी में अबादान एक तेल शोधन पत्तन है।
- मार्ग पत्तन (विश्राम पत्तन ) ये इस प्रकार के पत्तन हैं जो कि मूल रूप से मुख्य समुद्री मार्गों पर विश्राम केन्द्र के रूप में विकसित हुए हैं। यहाँ पर जहाज पुनः ईंधन भरने, जल भरने तथा खाद्य सामग्री लेने के लिए लंगर डाला करते थे। बाद में ये वाणिज्यिक पत्तनों के रूप में विकसित हो गये। अदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर इसके अच्छे उदाहरण हैं।
- पैकेट स्टेशन – इनको फेरी पत्तन के नाम से भी जाना जाता है। ये पैकेट स्टेशन विशेष रूप से छोटी दूरियों को तय करते हुए जलीय क्षेत्रों के आर-पार डाक तथा यात्रियों के परिवहन ( आवागमन) से जुड़े होते हैं। ये स्टेशन जोड़ों में इस प्रकार अवस्थित होते हैं कि वे जलीय क्षेत्र के आर-पार एक-दूसरे के सामने होते हैं। यथा – इंग्लिश चैनल के आर-पार इंग्लैण्ड में डोवर तथा फ्रांस में कैलाइस पत्तन ।
- आंत्रपो पत्तन ये वे एकत्रण केन्द्र हैं जहाँ विभिन्न देशों से निर्यात हेतु वस्तुएँ लाई जाती हैं। सिंगापुर एशिया के लिए एक आंत्रपो पत्तन है, रोटरडम यूरोप के लिए तथा कोपेनहेगन बाल्टिक क्षेत्र के लिए आंत्रपो पत्तन है।
- नौ सेना पत्तन ये केवल सामरिक महत्त्व के पत्तन हैं। ये पत्तन युद्धक जहाजों को सेवाएँ देते हैं तथा उनके लिए मरम्मत कार्यशालाएँ चलाते हैं। भारत में कोच्चि तथा कारवाड़ इस प्रकार के पत्तन हैं।
प्रश्न 3.
विश्व के प्रमुख प्रादेशिक व्यापार समूहों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व के प्रमुख प्रादेशिक व्यापार समूह • प्रादेशिक व्यापार समूह व्यापार की मदों में भौगोलिक सामीप्य, समरूपता और पूरकता के साथ देशों के मध्य व्यापार को बढ़ाने एवं विकासशील देशों के व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने के उद्देश्य से अस्तित्व में आए हैं। वर्तमान समय में 120 प्रादेशिक व्यापार समूह विश्व के 52 प्रतिशत व्यापार का जनन करते हैं। विश्व के प्रमुख प्रादेशिक व्यापार समूह निम्नलिखित हैं –
(1) यूरोपीय संघ यूरोपीय संघ का गठन मूल रूप से 1957 में रोम संधि के फलस्वरूप हुआ। इसके सदस्य देश आस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, चेक गणराज्य, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, लाटविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, , पोलैण्ड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन, स्वीडन, नीदरलैण्ड और यूनाइटेड किंगडम हैं। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। इस संघ में एकल मुद्रा यूरो के साथ व्यापार किया जाता है। व्यापार की वस्तुओं में कृषि उत्पाद, खनिज, रसायन, लकड़ी, कागज, परिवहन की गाड़ियाँ, ऑप्टीकल उपकरण, घड़ियाँ, कलाकृतियाँ तथा पुरावस्तु हैं।
(2) सी.आई.एस. (CIS) – इस व्यापारिक समूह में पूर्व सोवियत संघ के विघटित 12 राष्ट्र आरमीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, जार्जिया, रूस, कजाखस्तान, खिरगिस्तान, माल्डोवा, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन तथा उज्बेकिस्तान शामिल हैं। इसका मुख्यालय बेलारूस के मिसक नगर में है। खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, कपास, . रेशे तथा एल्यूमीनियम आयात की वस्तुएँ हैं। ये देश एक-दूसरे देश से आर्थिक, सुरक्षा तथा विदेशी नीतियों पर सहयोग करते हैं।
(3) लैटिन अमेरिकन इन्ट्रेगेशन एसोसिएशन (LATA) – वर्ष 1960 में यह संघ अस्तित्व में आया। इसका मुख्यालय यूरुग्वे के मॉण्टेविडियो शहर में है। इस व्यापारिक समूह में लेटिन अमेरिकी 10 राष्ट्र- ‘अर्जेण्टाइना, बोलीविया, ब्राजील, कोलम्बिया, इक्वाडोर, मैक्सिको, पराग्वे, पेरू, उरुग्वे और वेनेजुएला सम्मिलित हैं।
(4) साफ्टा दक्षिण एशिया के बांग्लादेश, मालदीव, भूटान, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका नामक देशों ने व्यापारिक संगठन साफ्टा (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) की स्थापना जनवरी 2006 में की थी। अन्तर प्रादेशिक व्यापार के करों को घटाना इस संघ का मुख्य उद्देश्य है। परस्पर व्यापार के अलावा अर्थव्यवस्था, प्रतिरक्षा तथा विदेश नीति के मामलों में समन्वय तथा सहयोग इस व्यापारिक समूह के प्रमुख उद्देश्य हैं।
(5) पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) ओपेक का मुख्यालय वियना में है। सन् 1949 में इस संगठन की उत्पत्ति हुई। अल्जीरिया, इण्डोनेशिया, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला इस संगठन के सदस्य देश हैं। खनिज तेल की नीतियों के समन्वय तथा एकीकरण के उद्देश्य से इस संगठन को निर्मित किया गया था। अशोधित खनिज तेल इस संगठन का एकमात्र निर्यात किए जाने वाला उत्पाद है।
(6) आसियान – दक्षिणी-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन का गठन सन् 1967 में हुआ। इस संगठन का मुख्यालय इण्डोनेशिया के जकार्ता में है। इसके सदस्य ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैण्ड और वियतनाम हैं। व्यापार की वस्तुओं में कृषि उत्पाद, रबड़, ताड़ का तेल, चावल, नारियल, कॉफी तथा सॉफ्टवेयर उत्पाद, खनिज में ताँबा, निकिल एवं टंगस्टन तथा ऊर्जा संसाधनों में कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस हैं।
(7) नार्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (NAFTA) – सन् 1994 में स्थापित इस व्यापार संघ का सदस्य एक मात्र संयुक्त राज्य अमेरिका है। कृषि उत्पाद, मोटर गाड़ियाँ, स्वचालित पुर्जे, कम्प्यूटर, वस्त्र व्यापार की प्रमुख वस्तुएँ हैं।
प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्वपूर्ण पक्षों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्वपूर्ण पक्ष तीन होते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
1. व्यापार का परिमाण – व्यापार की गई वस्तुओं का वास्तविक भार परिमाण कहलाता है। किन्तु व्यापारिक सेवाओं को तौल / भार में नहीं मापा जा सकता। इसलिए व्यपार की गई वस्तुओं तथा सेवाओं के कुल मूल्य को व्यापार के परिमाण के रूप में मापा जाता है।
2. व्यापार संयोजन / संरचना- 20वीं शताब्दी में विश्व के विभिन्न देशों द्वारा आयातित तथा निर्यातित वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रकार में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्राथमिक उत्पादों का व्यापार प्रमुख था। बाद में विनिर्मित वस्तुओं ने प्रमुखता प्राप्त कर ली तथा वर्तमान समय में विश्व व्यापार में सर्वाधिक योगदान विनिर्माण क्षेत्र का है, जबकि कुल विश्व व्यापार में सेवा क्षेत्र का प्रतिशत सतत् रूप से बढ़ता जा रहा है।
विश्व के कुल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मशीनरी एवं परिवहन उपकरण, ईंधन व खदान उत्पाद, कार्यालय उत्पाद, दूरसंचार उपकरण, रसायन, मोटरगाड़ी के पुर्जे, कृषि उत्पाद, लौह और इस्पात, कपड़े तथा वस्त्रों का प्रतिशत योगदान सर्वाधिक है। दूसरी ओर सेवाएँ भारहीन होती हैं, उनका अपरिमित विस्तार किया जा सकता है तथा एक बार सेवाओं का उत्पादन करने पर इनको आसानी से प्रतिवलित किया जा सकता है। इस प्रकार सेवाएँ, वस्तुओं के उत्पादन से कहीं अधिक लाभ उत्पन्न करने में समर्थ हैं।
3. व्यापार की दिशा – 18वीं शताब्दी तक विनिर्मित व मूल्यवान वस्तुओं को विश्व के वर्तमान विकासशील राष्ट्र यूरोपियन देशों को निर्यात करते थे। 19वीं शताब्दी में यूरोपियन देशों ने अपने उपनिवेशों से खाद्य पदार्थों तथा कच्चा माल यूरोपियन देशों में आयात किया गया एवं इसके बदले में यूरोपियन देशों ने विनिर्माण वस्तुओं को अपने उपनिवेशों में निर्यात किया। यूरोप, यू. एस. ए. तथा जापान विश्व के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार के रूप में सामने आए। 20वीं शताब्दी में यूरोप के उपनिवेश समाप्त हो गए तथा भारत, चीन और अन्य विकासशील राष्ट्रों की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में साझेदारी बढ़ी तथा इन राष्ट्रों की विश्व के विकसित राष्ट्रों से प्रतिस्पर्धा होने लगी।