Well-organized Class 12 Geography Notes in Hindi and Class 12 Geography Chapter 6 Notes in Hindi प्राथमिक क्रियाएँ can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 12 Chapter 6 Notes in Hindi प्राथमिक क्रियाएँ
→ द्वितीयक क्रियाएँ – द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदल कर यह उसे मूल्यवान बना देती है। इस प्रकार द्वितीयक क्रियाएँ विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण उद्योग से सम्बन्धित हैं।
→ विनिर्माण – विनिर्माण से आशय किसी भी वस्तु का उत्पादन है। हस्तशिल्प कार्य से लेकर लोहे व इस्पात को गढ़ना, प्लास्टिक के खिलौने बनाना, कम्प्यूटर के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना एवं अन्तरिक्ष यान निर्माण इत्यादि सभी प्रकार के उत्पादन को निर्माण के अन्तर्गत माना गया है।
→ विनिर्माण उद्योग – यांत्रिक अथवा रासायनिक विधियों के द्वारा जैविक अथवा अजैविक तत्त्वों से नवीन उत्पाद तैयार करने की क्रिया को विनिर्माण उद्योग कहा जाता है।
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताएँ –
- कौशल का विशिष्टीकरण/ उत्पादन की विधियाँ शिल्प तरीके से कारखाने में थोड़ा ही सामान उत्पादित किया जाता है जो कि आदेशानुसार बनाया जाता है। अधिक उत्पादन का सम्बन्ध बड़े पैमाने पर बनाए जाने वाले सामान से है।
- यंत्रीकरण – किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए मशीनों का प्रयोग करना यंत्रीकरण कहलाता है। स्वचालित यन्त्रीकरण की विकसित अवस्था है।
- प्रौद्योगिकी नवाचार प्रौद्योगिक नवाचार, शोध एवं विकासमान युक्तियों के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, अपशिष्टों के निस्तारण की अक्षमता को समाप्त करने तथा प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष करने का महत्त्वपूर्ण पहलू है।
- संगठनात्मक ढाँचा एवं स्तरीकरण – आधुनिक विनिर्माण उद्योग एक जटिल प्रौद्योगिक यंत्र है। इसमें अधिक पूँजी, बड़े संगठन एवं प्रशासकीय अधिकारी वर्ग होते हैं।
- अनियमित भौगोलिक वितरण – आधुनिक निर्माण के मुख्य संकेन्द्रण कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं। विश्व के कुल स्थलीय भाग के 10 प्रतिशत से कम भू भाग पर इनका विस्तार है।
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तत्त्व –
- बाजार तक अभिगम्यता
- कच्चे माल की प्राप्ति तक अभिगम्यता
- श्रम आपूर्ति तक अभिगम्यतां
- शक्ति के साधनों तक अभिगम्यता
- परिवहन एवं संचार की सुविधाओं तक अभिगम्यता
- सरकारी नीति
- समूहन अर्थव्यवस्था तक अभिगम्यता/ उद्योगों के मध्य संबंध
विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण –
(1) आकार पर आधारित उद्योग – किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित पूँजी, कार्यरत श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है।
- कुटीर उद्योग – यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इसमें शिल्पकार स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करते हैं एवं साधारण औजारों के द्वारा परिवार के सभी सदस्य मिलकर अपने दैनिक जीवन के उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इनमें मुख्यतः खाद्य पदार्थ, कपड़ा, चटाइयाँ, बर्तन, औजार, फर्नीचर, जूते एवं लघु मूर्तियाँ उत्पादित की जाती हैं।
- छोटे पैमाने के उद्योग – इनके उत्पादन की तकनीक एवं निर्माण स्थल दोनों कुटीर उद्योग से भिन्न होते हैं। इनमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है। रोजगार के अवसर इन उद्योगों में अधिक होते हैं जिससे स्थानीय निवासियों की क्रय शक्ति बढ़ती है।
- बड़े पैमाने के उद्योग – बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए विशाल बाजार, विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
(2) कच्चे माल पर आधारित उद्योग –
- कृषि आधारित – प्रमुख कृषि आधारित उद्योगों में भोजन तैयार करने वाले उद्योग शक्कर, रस, पेय पदार्थ, मसाले, तेल एवं वस्त्र तथा रबड़ उद्योग आते हैं।
अचार, , फलों के - खनिज आधारित उद्योग – इन उद्योगों में खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। जैसे— एल्यूमिनियम, तांबा एवं जवाहरात उद्योग आदि।
- रसायन आधारित उद्योग – इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है। यथा-‘ -पेट्रो रसायन उद्योग में खनिज तेल का उपयोग किया जाता है। कृत्रिम रेशे बनाना, प्लास्टिक निर्माण आदि रसायन आधारित उद्योग हैं।
- वनों पर आधारित उद्योग-वनों से प्राप्त अनेक मुख्य एवं गौण उपज कच्चे माल के रूप में उद्योगों में प्रयुक्त होती है। फर्नीचर उद्योग के लिए इमारती लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी, बाँस एवं लाख उद्योग के लिए लाख वनों से ही प्राप्त होती है।
- पशु आधारित उद्योग – चमड़ा एवं ऊन पशुओं से प्राप्त प्रमुख कच्चा माल है। चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओं से ही प्राप्त की जाती है।
(3) उत्पादन / उत्पाद आधारित उद्योग – वे उद्योग जिनके उत्पाद को अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं। यथा— लौहा – इस्पात उद्योग आदि।
(4) स्वामित्व के आधार पर उद्योग –
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग-ये उद्योग सरकार के अधीन होते हैं।
- निजी क्षेत्र के उद्योग-इन उद्योगों का स्वामित्व व्यक्तिगत निवेशकों के पास होता है। ये निजी संगठनों के द्वारा संचालित किए जाते हैं।
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग-इन उद्योगों का संचालन संयुक्त कम्पनी के द्वारा या किसी निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के संयुक्त प्रयासों द्वारा किया जाता है।
→ परम्परागत बड़े पैमाने वाले औद्योगिक प्रदेश:
ये भारी उद्योग के क्षेत्र होते हैं जिनमें कोयला खदानों के समीप स्थित धातु पिघलाने वाले उद्योग, भारी इंजीनियरिंग, रसायन निर्माण, वस्त्र उत्पादन आदि का निर्माण किया जाता है।
परम्परागत औद्योगिक प्रदेशों के पहचान बिन्दु :
- निर्माण उद्योगों में रोजगार का अनुपात ऊँचा है तथा वातावरण अनाकर्षक होता है।
- बेरोजगारी की समस्या, उत्प्रवास, विश्वव्यापी मांग कम होने के कारण कारखाने बंद होना प्रमुख समस्याएँ।
→ जर्मनी का रूहर कोयला क्षेत्र :
यह लम्बे समय से यूरोप का प्रमुख औद्योगिक प्रदेश रहा है। कोयला, लौह- | इस्पात यहाँ अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। जर्मनी के इस्पात उत्पादन का 80 प्रतिशत रूहर क्षेत्र से प्राप्त होता है। औद्योगिक ढाँचे में परिवर्तन के कारण कुछ क्षेत्रों के उत्पादन में गिरावट आई है एवं प्रदूषण व औद्योगिक अपशिष्ट की समस्या भी पैदा होने लगी है।
→ लौह-इस्पात उद्योग :
लौह इस्पात उद्योग सभी उद्योगों का आधार है, इसी कारण इसे ‘आधारभूत उद्योग’ भी कहा जाता है। यह आधारभूत इसलिए है, क्योंकि यह अन्य उद्योगों, यथा-मशीन और औजार जो कि आगे उत्पादों के लिए प्रयोग किए जाते हैं, को कच्चा माल प्रदान करते हैं। इसे भारी उद्योग भी कहा जाता है। परम्परागत रूप से बड़े इस्पात उद्योग की स्थिति कच्चे माल के स्रोत के समीप ही रही है जहाँ लौह अयस्क, कोयला, मँगनीज एवं चूना पत्थर आसानी से उपलब्ध है।
→ वितरण :
यह एक जटिल उद्योग है जिसमें अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। यह उत्तरी अमेरिका, यूरोप एवं एशिया के विकसित देशों में केन्द्रीकृत है। संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह-इस्पात का उत्पादन करने वाले प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अप्लेशियन प्रदेश, महान झील क्षेत्र, गैरी, इरी, क्लीवलैण्ड आदि हैं। यूरोप में ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड एवं सोवियत रूस मुख्य उत्पादक हैं। एशिया महाद्वीप में जापान, चीन तथा भारत प्रमुख उत्पादक हैं।
→ सूती कपड़ा उद्योग :
सूती कपड़े का निर्माण हथकरघा, बिजली करघा एवं कारखानों में किया जाता है। बिजली करघों से कपड़ा बनाने में यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। अतः इसमें श्रमिकों की कम आवश्यकता होती है एवं उत्पादन भी अधिक होता है। कारखानों में कपड़ा बनाने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है। सूती वस्त्र निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में अच्छी किस्म की कपास चाहिए। विश्व में 50 प्रतिशत से अधिक कपास का उत्पादन भारत, चीन, संयुक्त राजय अमेरिका, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान एवं मिस्र में किया जाता है। ग्रेट ब्रिटेन, उत्तरी-पशिचमी यूरोप के देश तथा जापान आयातित धागे से सूती वस्त्र का निर्माण करते हैं। वर्तमान में यह उध्योग उन कम विकसित देशों में स्थानान्तरित हो गया है जहाँ श्रम लागत कम है।
→ उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग की संकल्पना :
निर्माण क्रियाओं में उच्च प्रौद्योगिकी नवीनतम पीढ़ी है। इसमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादकों का निर्माण गहन शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता है। सम्पूर्ण श्रमिक शक्ति का अधिकतर भाग व्यावसायिक श्रमिकों का होता है। वर्तमान समय में जो भी प्रादेशिक व स्थानीय विकास की योजनाएँ बन रही हैं उनमें नियोजित व्यवसाय पार्क का निर्माण किया जा रहा है। विश्व अर्थव्यवस्था में निर्माण उद्योग का बड़ा योगदान है। लौह-इस्पात, वस्त्र, मोटरगाड़ी निर्माण, पेट्रोरसायन एवं इलैक्ट्रॉनिक्स विश्व के प्रमुख निर्माण उद्योग हैं।
→ भौगोलिक शब्दावली
- औद्योगिक प्रदेश अथवा संकुल-जब किसी क्षेत्र विशेष में एक समान अथवा एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित उद्योगों का एक गुच्छ या समूह विकसित होता है तो उसे औद्योगिक प्रदेश अथवा संकुल कहा जाता है।
- उद्योग-वे क्रियाएँ जिनमें प्राथमिक व्यवसाय यथा कृषि, पशुपालन, खनन, मत्स्य ग्रहण के उत्पादों को तकनीकी का प्रयोग करके संसाधित किया जाता है तथा अधिक उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है।
- विनिर्माण-हाथों अथवा मशीनों के द्वारा वस्तुओं को बनाने का प्रक्रम।
- उत्पादन लागत-श्रम, पूँजी, शक्ति और कच्चे माल के रूप में होने वाले व्यय को लागत मूल्य या उत्पादन लागत कहते हैं।
- उत्पादन-किसी उद्योग के द्वारा तैयार किए गये पदार्थ को उत्पादन कहा जाता है।
- पेट्रो कैमिकल-वे रासायनिक पदार्थ जो कि कोयला, प्राकृतिक गैस या पेट्रोल पर अवलम्बित होते हैं, उन्हें पेट्रो कैमिकल कहते हैं।
- बहुराष्ट्रीय उद्योग-ऐसे उद्योग जो कि किसी देश की सरकार द्वारा स्थापित किए जाते हैं।
- लघु उद्योग-वे उद्योग जो कि कम पूँजी तथा मशीनों का उपयोग करके चलाए जाते हैं।
- कुटीर उद्योग-वे उद्योग जो कि मानव श्रम व स्थानीय कच्चे माल पर आधारित होते हैं।
- भारी उद्योग-वे उद्योग जो कि प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त माल से बड़े-बड़े कारखानों में बड़े-बड़े विशेषज्ञों के द्वारा चलाए जाते हैं।
- आधारभूत उद्योग-जिन उद्योगों के उत्पादों यथा मशीनों तथा उपकरणों को अन्य उद्योगों में प्रयोग में लाया जाता है, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं।
- उपभोक्ता उद्योग-वे उद्योग जिनका तैयार माल सीधे उपयोग किया जाता है, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं।
- औद्योगिक बस्तियाँ-नगरों के बाहर औद्योगिक क्षेत्रों में बसाई गई बस्तियाँ।
- स्वच्छन्द् उद्योग-ऐसे उद्योग जो अपनी अवस्थिति का चुनाव करने में अपेक्षाकृत स्वतन्त्र होते हैं, स्वच्छन्द उद्योग कहलाते हैं।
- लोचनीय उत्पादन-जिस उत्पादन में कम्प्यूटर से डिजाइन बनाए जाते हैं तथा उसमें परिवर्तन भी जल्दी-जल्दी किए जाते हैं, उसे लोचनीय उत्पादन कहते हैं।
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग – इसमें निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों का सह-अस्तित्व होता है।
- कृषि कारखाने-कृषि व्यापार फार्म से आकार में बड़े, यंत्रीकृत रसायनों पर निर्भर एवं उत्तम संरचना रखने वाली इकाइयाँ कृषि कारखाने लगाते हैं।
- प्रौद्योगिक ध्रुव-ऐसे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग जो प्रादेशिक रूप से संकेन्द्रित मिलते हैं तथा आत्मनिर्भर एवं उच्च विशिष्टता वाले होते हैं, प्रौद्योगिक ध्रुव कहलाते हैं।