Students can find the 11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 2 दोपहर का भोजन to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 2 दोपहर का भोजन
Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antra दोपहर का भोजन
प्रश्न 1.
सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उसे मोहन के बारे में कुछ भी नहीं पता था कि वह कहाँ है, फिर भी वह रामचंद्र से कहती है कि वह किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है। उसका दिमाग बड़ा तेज़ है और उसकी तबीयत चौबीसो घंटे पढ़ने में ही लगी रहती है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत थी। उसने यह झूठ इसलिए बोला, क्योंकि रामचंद्र परिवार का सहारा बनने के लिए अथक प्रयास कर रहा था, परंतु अभी तक सफल नहीं हुआ था। अत: वह दुखी रहता था। ऐसे में सिद्धेश्वरी परिवार की वास्तविकता बताकर उसे और दुखी नहीं करना चाहती थी।
प्रश्न 2.
कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कहानी का सबसे जीवंत पात्र रामचंद्र है। उसने इंटर पास किया है तथा अब वह एक समाचार-पत्र में प्रूफ़-रीडरी का काम सीख रहा है। घर की आर्थिक तंगी का प्रभाव उसके चेहरे पर झलक रहा है। वह नौकरी के लिए प्रयासरत है, परंतु अभी तक सफल नहीं हुआ है। वह माँ को भी दिलासा देता है-‘समय आने पर सब ठीक हो जाएगा।’ भोजन के समय भी वह अपनी भूख को दबाता है तथा तीसरी रोटी लेने से मना कर देता है।
प्रश्न 3.
कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए, जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।
उत्तर :
इस कहानी में अनेक प्रसंग हैं, जो गरीबी की विवशता को दर्शाते हैं :
(क) सिद्धेश्वरी का छह वर्षीय लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँड़िया की तरह फूला हुआ था।
(ख) उसने बच्चे के मुँह पर भिनभिनाती मक्खियों को हटाने के लिए अपना एक फटा, गंदा ब्लाउज डाल दिया।
(ग) परिवार के सदस्यों को कुल दो रोटियाँ, भर कटोरा पनियाई दाल और साथ में चने की तली तरकारी ही खाने को मिल पा रही थी। सिद्धेश्वरी के हिस्से में मात्र आधी रोटी ही आई।
(घ) सिद्धेश्वरी और उसके छोटे बेटे के लिए एक मोटी जली रोटी, थोड़ी-सी दाल और थोड़ी-सी तरकारी ही बची थी।
(ङ) सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।
प्रश्न 4.
‘सिद्धेश्वरी का एक-दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था।’-इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सिद्धेश्वरी का परिवार भयंकर गरीबी से ग्रस्त था। अर्थाभाव के कारण परिवार के सदस्यों में स्नेह का बंधन कमजोर होता जा रहा था। परिवार को बचाए रखने के लिए वह एक-दूसरे के विषय में झूठ बोलती थी, ताकि उनमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान, स्नेह एवं निकटता बनी रहे। नग्न सच्चाई हुदय को पीड़ा पहुँचती है तथा परिवार बिखर जाता है। झूठ बोलकर परिवार को जोड़े रखने में वह काफी हद तक सफल रहती है।
प्रश्न 5.
‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अमरकांत ने अपनी कहानियों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इस कारण उनकी कहानियाँ हर वर्ग के पाठक को अच्छी लगती हैं। वे मिश्रित शब्दावली का प्रयोग करते हैं। संबादों की भाषा भी पात्रानुकूल होती है; जैसे-पत्नी (सिद्धेश्वरी) की भाषा – “बड़का की कसम, एक रोटी देती हूँ। अभी बहुत-सी हैं।”
भाषा स्वयं ही अर्थ को प्रकट करती प्रतीत होती है; जैसे-‘मुंशी जी डेढ़ रोटी खा चुकने के बाद एक ग्रास से युद्ध कर रहे थे।’ कही-कहीं उनकी भाषा चित्रात्मक हो उठती है; जैसे-‘उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हैंड़िया की तरह फूला हुआ था।’
प्रश्न 6.
रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए जो बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी दोपहर के भोजन के लिए घर आते हैं। वे सभी रोटी न लेने के लिए अलग-अलग बहाने बनाते हैं। उन सबको पता है कि घर के साधन सीमित हैं और भोजन भी इतना नहीं है कि सभी का पेट भरा जा सके। यदि किसी ने भी और इच्छा जाहिर की, तो घर के एक सदस्य को भूखा रहना पड़ेगा। आर्थिक अभावों के कारण भरपेट भोजन नहीं मिलता। अतः सभी पेट भरने का बहाना बनाते हैं।
प्रश्न 7.
सिद्धेश्वरी की जगह आप होते तो क्या करते?
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 8.
रसोई संभालना बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 9.
आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर :
सिद्धेश्वरी ने एक-दूसरे के सच को छिपाने के लिए झूठ बोले। वह इस तरीके से परिवार की वास्तविकता को छिपाने की कोशिश करती है, ताकि परिवार में बिखराव न हो, परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान, स्नेह एवं निकटता बनी रहे। उसके झूठ परिवार को टूटने से बचाते हैं। वह झूठ जो कल्याण में काम आए, सौ सत्यों से भी भारी होता है।
प्रश्न 10.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।
(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक ने सिद्धेश्वरी की दशा का वर्णन किया है। वह गरीबी से पीड़ित है। घोर गरीबी के कारण वह अपनी भूख को शांत करने के लिए गगरे से पानी निकालकर गटा-गट पी गई।
(ख) सिद्धेश्वरी मँझले लड़के के सामने रामचंद्र के विचार बता रही थी। वह मँझले लड़के मोहन की झूठी तारीफ़ कर रही थी, जो सत्य के विपरीत थी। अपनी बात कहने के बाद वह अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखती है, जैसे वह उसके झूठ को समझ गया है। वह अपराधबोध से ग्रस्त हो गई।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
अपने आस-पास मौजूद समान परिस्थितियों वाले किसी विवश व्यक्ति अथवा विवशतापूर्ण घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
‘भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।’ इसके आलोक में सिद्धेश्वरी के चरित्र पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ में सिद्धेश्वरी केंद्रीय पात्र है। पूरी कहानी के केंद्र में रहने के कारण कहानी की कथा का विकास सिद्धेश्वरी के चरित्र से ही होता है। सभी पात्रों के भावों की प्रतिक्रिया सिद्धेश्वरी ही झेलती है। घर की अभावग्रस्तता, निर्धनता एवं तनाव की भोक्ता भी वही है। सिद्धेश्वरी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
(क) ममतामयी – सिद्धेश्वरी की अथाह ममता, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार तथा आत्म-त्याग की पराकाष्ठा ही सारे परिवार को बाँधने का साधन है। वह सारी पीड़ा को, सारे अभावों को स्वयं पी जाना चाहती है, जिससे परिवार के अन्य सदस्य प्रसन्न रह सकें। वह रामचंद्र के सामने मोहन की प्रशंसा करती है, तो मोहन के सामने रामचंद्र की। मुंशी जी के सामने रामचंद्र की प्रशंसा करके सबको बाँधकर रखना चाहती है। बड़े लड़के की बेकारी की पीड़ा को वह समझती है। उसकी पीड़ा को अपनी ममता से कम करना चाहती है।
(ख) कुशल गृहिणी-सिद्धेश्वरी एक कुशल गृहिणी है। वह अभाव में भी घर में शांति बनाए रखती है। सबकी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है। सबकी मनचाही बातें कहकर उन्हें प्रसन्न करती है। अपनी पीड़ा को छिपाकर रखती है, जो आँसुओं के रूप में बाहर निकलती है।
भूखे रहने पर भी पानी पीकर गुज़ारा कर लेती है। अपने हिस्से की एक रोटी में से आधी रोटी नन्हे प्रमोद के लिए बचाकर रख लेती है। वह पूरा प्रयत्न करती है कि बुरे दिनों में भी घर का कोई सदस्य स्वयं को उपेक्षित या अपमानित अनुभव न करे।
(ग) समझौतावादी-सिद्धेश्वरी ने निर्धनता से समझौता कर लिया है। वह फटे-पुराने, पैबंद लगे वस्त्र पहनती है। अपनी इच्छाओं या आवश्यकताओं को लेकर उसे कोई शिकायत नहीं। उसे केवल इस बात का दुख है कि उसका पति तथा उसकी संतान रसोई से भूखे उठ जाते हैं।
(घ) सहनशीलता-आत्म-निर्वासन अथवा आत्म-त्याग की चरम सीमा ही सिद्धेश्वरी के चरित्र को ऊँचा उठा देती है। वह पतिव्रत धर्म का पूरा पालन करती है तथा पति के बेकार होने पर भी उसका निरादर नहीं करती और न ही उससे हर समय अभावों का रोना रोती है। सिद्धेश्वरी के चरित्र में धरती की-सी सहनशीलता है। उसका जीवन परिवार को पूरी तरह समर्पित है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि सिद्धेश्वरी एक आदर्श नारी के रूप में हमारे सामने आती है। वह कुशल गृहिणी, ममतामयी माँ, कर्तव्यपरायण पत्नी तथा समझदार महिला है। निर्धनता तथा अभावों से वह हँसकर जूझती है और घोर निर्धनता में भी हार नहीं मानती। उसका चस्त्र आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 2 दोपहर का भोजन
विषयवस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
‘दोपहर का भोजन’ कहानी का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर :
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में लेखक ने निम्न-मध्यवर्ग की आर्थिक विपन्नता का चित्रण किया है। घर का मुखिया नौकरी से हटा दिया गया है। इस कारण पूरे परिवार को आर्थिक अभावों से दो-चार होना पड़ता है। पढ़े-लिखे युवकों को बेरोज़गारी का दंश झेलना पड़ता है। इस कारण वे चिड़चिड़े तथा कुंठित हो जाते हैं। प्रस्तुत कहानी में सिद्धेश्वरी ने आर्थिक अभावों से धैर्यपूर्वक लड़ते हुए भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व किया है।
प्रश्न 2.
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में निम्न-मध्यवर्गीय जीवन की त्रासदी का मार्मिक चित्रण हुआ है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक कहानी में लेखक ने निम्न-मध्यवर्गीय जीवन की त्रासद स्थिति का सजीव निरूपण किया है। परिवार का मुखिया बेरोज़गार है, फिर भी उसकी पत्नी खींच-तान करके घर का खर्चा चला रही है, परंतु खाना खाने के बाद मुंशी जी औंधे मुँह घोड़े बेचकर ऐसे सो जाते हैं, जैसे उन्हें काम की तलाश में कहीं जाना ही नहीं है। अभावों में सिद्धेश्वरी चाहकर भी किसी से खुलकर नहीं बोल पाती। मुंशी जी चुपचाप दुबके हुए खाना खाते हैं। बड़ा बेटा रामचंद्र बाहर से आते ही धम-से चौकी पर बैठकर बेजान-सा वहीं लेट जाता है। इन सबसे इस परिवार की विपन्नता का ज्ञान होता है।
प्रश्न 3.
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में किन-किन स्थलों पर परिवार की भयंकर गरीबी दिखाई देती है?
उत्तर :
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में निम्नलिखित स्थलों पर परिवार की भयंकर गरीबी दिखाई देती है-
- ‘वह उठी, बच्चे के मुँह पर अपना एक फटा, गंदा ब्लाउज डाल दिया।’
- ‘उसके बाल अस्त-व्यस्त थे और उसके फटे-पुराने जूतों पर गर्द जमी हुई थी।’
- ‘कल प्रमोद ने रेवड़ी खाने की ज़िद पकड़ ली थी और उसके लिए डेढ़ घंटे तक रोने के बाद सोया था।’
- ‘गंदी धोती के ऊपर अपेक्षाकृत कुछ साफ़ बनियान तार-तार लटक रही थी।’
- ‘सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।’
प्रश्न 4.
रामचंद्र किस प्रकार बेरोज़गारी से निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था?
उत्तर :
रामचंद्र घर में सबसे बड़ा लड़का है। उसकी उम्र लगभग इक्कीस वर्ष है। वह लंबा तथा दुबला-पतला है। उसका रंग गोरा है तथा आँखें बड़ी-बड़ी हैं। उसके होंठों पर झुर्रियाँ हैं। वह किसी स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र के दफ़्तर में अपनी इच्छा से प्रूफ-रीडिंग का काम सीख रहा है। पिछले साल ही उसने इंटर पास किया है और अपनी इस स्थिति से निकलने का प्रयास कर रहा है।
प्रश्न 5.
सिद्धेश्वरी ने मोहन के बारे में क्या-क्या झूठ बोले?
उत्तर :
सिद्धेश्वरी ने रामचंद्र से छोटे भाई मोहन के बारे में निम्नलिखित झूठ बोले :
- मोहन किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है।
- उसका दिमाग बहुत तेज़ है।
- उसकी तबीयत चौबीसो घंटे पढ़ने में ही लगी रहती है। हमेशा उसी की बात करता रहता है।
प्रश्न 6.
‘उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से टप-टप आँसू चूने लगे’-इस कथन के आधार पर सिद्धेश्वरी की व्यथा समझाइए।
उत्तर :
सिद्धेश्वरी एक भारतीय गृहिणी है। वह घर की सभी समस्याओं को अपने ऊपर लेती है तथा परिवार के अन्य सदस्यों के बीच कटुता नहीं आने देती। घर की आर्थिक दशा खराब है। वह कम साधनों में भी परिवार का पेट भरने की कोशिश करती है। इस काम में उसे बहुत झूठ बोलना पड़ता है। उसे इस बात की पीड़ा है कि घर का हर सदस्य आधे पेट भोजन करके पेट भरा होने का नाटक करता है। वह स्वयं भी भूखी ही रहती है। इस दर्द को वह किसी दूसरे के समक्ष व्यक्त नहीं कर पाती और वह पीड़ा आँखों से आँसुओं के माध्यम से निकालती है।
प्रश्न 7.
‘दोपहर का भोजन’ कहानी के अंतिम अनुच्छेद – ‘सारा घर मक्खियों से कहीं जाना न हो!’-के आधार पर इस कहानी की मूल संवेदना प्रकट कीजिए।
उत्तर :
कहानी के अंतिम अनुच्छेद में निम्न-मध्य वर्ग की खराब आर्थिक स्थिति का यथार्थ वर्णन किया गया है। साधनों के अभाव में घर की सफ़ाई नहीं हो पाती। कपड़े तक साफ़ नहीं होते। पैसों की कमी के कारण फटे हुए कपड़े पहनने पड़ते हैं। परिवार का हर सदस्य घर से भागने की कोशिश करता है, क्योंकि घर उसके लिए आकर्षक नहीं है। घर का मुखिया अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा नहीं पा रहा है तथा नौकरी न होने पर भी विशेष प्रयास नहीं करता।
प्रश्न 8.
‘दोपहर का भोजन’ कहानी के आधार पर अमरकांत की कहानी-कला की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में अमरकांत ने निम्न-मध्य वर्ग की आर्थिक दुरावस्था का यधार्थ चित्रण किया है। लेखक ने अपनी कहानियों में अधिकतर सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया है। लेखक पात्रों के लिए कहानी नहीं लिखते, वे जीवन से सीधे ही कोई अंश उठाते हैं। वे उनका यथार्थ चित्रण करते हैं। इस कहानी में मुंशी जी, मोहन, रामचंद्र तथा सिद्धेश्वरी सभी पात्र आधा पेट भोजन करते हैं, परंतु सभी पेट भरे होने का अभिनय करते हैं। सभी सदस्य फटे-पुराने कपड़े पहने होते हैं।
अमरकांत की कहानियों में पात्रों का चरित्र परिस्थितियों के दबाव से उभरता प्रतीत होता है। कहानी का कोई भी पात्र सच्चाई का सामना नहीं करना चाहता। सभी पात्र एक-दूसरे से कतराते हैं। अमरकांत की कहानी के संवाद पात्रों की आंतरिक अनुभूतियों को भी प्रकट कर देते हैं और इनके माध्यम से वातावरण की सृष्टि होती है। पात्रों के संवाद कहानी में रोचकता भी लाते हैं।
इस कहानी में सारी कथा घर की रसोई पर ही समाप्त हो जाती है। लेखक ने चतुराई से स्थान-स्थान पर निर्धनता के संकेत देकर घर की आर्थिक विपन्नता के वातावरण को सजीव कर दिया है। उसने आंतरिक वातावरण का भी चित्रण किया है; जैसे-‘सिद्धेश्वरी की पहले हिम्मत नहीं हुई कि उसके पास आए और वहीं से भयभीत हिरनी की भाँत सिर उधर घुमाकर बेटे को व्यग्रता से निहारती रही।’
लेखक के पात्रों की भाषा आम जीवन की भाषा है। वे आम बोलचाल के मुहावरे का भी प्रयोग करते हैं; जैसे-घुटा उस्ताद होना, तार-तार होना, जान देना आदि। इनकी अलंकृत वाक्य-रचना भी दर्शनीय है; जैसे-‘मुंशी चंद्रिका प्रसाद पीढ़े पर पालथी मारकर बैठे रोटी के एक-एक ग्रास को इस तरह चुभला-चबा रहे थे, जैसे बूढ़ी गाय जुगाली करती है।’ इस प्रकार लेखक की कहानी तत्वों के आधार पर खरी उतरती है। कहानी में कहीं भी अंतराल नहीं दिखाई देता। कहानी अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल है।
प्रश्न 9.
‘मुंशी जी डेढ़ रोटी खा चुकने के बाद एक ग्रास से युद्ध कर रहे थे।’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन से मुंशी जी की शारीरिक अक्षमता को दर्शाया गया है। मुंशी जी की छँटनी हो चुकी थी, अतः वे मानसिक रूप से परेशान थे। उन्हें घर की आर्थिक दशा का पता था। इसी कारण वे दुखी रहते थे। खराब भोजन उनके स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं था। वे अंतिम ग्रास को खाने में कठिनाई महसूस कर रहे थे।
प्रश्न 10.
मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं? लिखिए।
उत्तर :
दोपहर के भोजन के समय मुंशी जी और सिद्धेश्वरी की बातें असंबद्ध हैं। पति भोजन कर रहा है और पत्नी साथ में बैठी है। दोनों के बीच के अंतराल को खत्म करने के लिए ये असंबद्ध बातें की जाती हैं। दूसरे, ये बातें कहानी की मूल संवेदना से जुड़ी हुई हैं। आर्थिक अभाव के कारण घर के विकास से संबंधित बातें नहीं की जा सकतीं। ये बातें सिर्फ़ आपसी मौन तोड़ने के लिए तथा नाममात्र के मानवीय संबंधों को दर्शाने के लिए की जाती हैं।
प्रश्न 11.
‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्णतया सार्थक है?
उत्तर :
‘दोपहर का भोजन’ कहानी में निम्न-मध्यवर्गीय परिवार की विपन्नता का मार्मिक चित्रण है। इस परिवार की स्थिति इतनी दयनीय है कि घर में खाने के लिए भी पूरा भोजन नहीं है। घर के मुखिया के बेकार हो जाने पर पूरे परिवार को अनेक समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में इस कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। दोपहर के समय घर के सभी सदस्य एक के बाद एक घर आते हैं और अपनी दशा को दर्शा जाते हैं। लेखक कहना चाहता है कि दोपहर में व्यक्ति संघर्ष करके आता है और दोपहर बाद फिर संघर्ष करता है, यही व्यवस्था है। अत: यह शीर्षक सर्वथा उचित है।
प्रश्न 12.
आशय स्पष्ट कीजिए:
मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया जैसे उनसे बातचीत करने वाले हों।
उत्तर :
इस वाक्य से पता चलता है कि आर्थिक अभावों ने संबंधों की गरमाहट को खत्म कर दिया है। मुंशी जी और सिद्धेश्वरी दोनों के बीच संवादहीनता की स्थिति है। वे बेसिर-पैर की बात कर रहे हैं। मुंशी जी का ध्यान खाने की तरफ है।