Reading Class 5 Hindi Notes Veena Chapter 3 चाँद का कुर्ता कविता Chand Ka Kurta Kavita Poem Summary in Hindi helps students understand the main plot quickly.
Chand Ka Kurta Kavita Class 5 Summary in Hindi
Chand Ka Kurta Class 5 Hindi Summary
चाँद का कुर्ता का सारांश – Chand Ka Kurta Summary in Hindi
‘चाँद का कुरता’ कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा रचित है। इसमें चाँद की जिद के बारे में बताया गया है। जिस प्रकार बच्चे अपनी माँ से जिद करते हैं और फिर माँ उनकी जिद को पूरा करती हैं ठीक उसी तरह चाँद भी माँ से जिद कर रहा है और कह रहा है कि माँ मुझे एक ऊन का मोटा सा ढीला-ढाला कुरता सिलवा दो। रात को बहुत ठंडी-ठंडी हवा चलती है और यह मौसम भी जाड़े का है। ऐसी ठंड में मैं काँप जाता हूँ और काँप – काँप कर अपना सफर पूरा करता हूँ। इसलिए मेरे लिए एक कुरता सिलवा दो।

यदि तुम नहीं सिलवा सकती हो तो मुझे भाड़े यानि किराए का ही कुरता ला दो। माँ उसकी बात सुनकर कहती हैं कि मेरे प्यारे बच्चे ! तुझे किसी की भी नज़र न लगे। भगवान तुझे हमेशा सही-सलामत रखे। मैं जानती हूँ कि ठंड का मौसम है और तुझे भी ठंड लगती होगी किंतु मैं तो बस एक बात से डरती हूँ कि तू कभी भी एक आकार में नहीं रहता है। तू ही बता मैं कैसे तेरा नाप लूँ। तू तो कभी अंगुल भर चौड़ा हो जाता है तो कभी एक फुट मोटा । कभी बहुत बड़ा हो जाता है तो कभी इतना छोटा। हर दिन तो तू बदलता ही रहता है। माँ फिर कहती हैं कि कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि बिलकुल ही दिखाई नहीं पड़ता। अब तू ही बता कि किस दिन मैं तेरा नाप लिवाऊँ ताकि तेरा एक ढीला-ढाला कुरता सिलवा दूँ जो हर रोज़ तेरे बदन पर आ जाए और तू इस ठंड से भी बच जाए?
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प्रकृति के माध्यम से कवि ने बच्चों को कल्पनाशील होना सिखाया है। कवि ने कल्पनाशीलता और हास्य के माध्यम से चाँद की ठिठुरन, उसके बदलते आकार, और उसके झिंगोले की जिद का वर्णन किया है। माँ और उसके पुत्र के स्नेहपूर्ण संबंध को भी इस कविता में बड़े सुंदर ढंग से दर्शाया गया है। इससे बच्चे समझ पाएँगे कि कभी-कभी वे जो जिद करते हैं उसे पूरा करना माता-पिता के लिए कितना मुश्किल होता होगा। जिद भी सोच-समझकर करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त माँ-पुत्र के रिश्ते की गहराई तथा चाँद के बदलते आकार के बारे में भी जान पाएँगे।

चाँद का कुर्ता हिंदी भावार्थ Pdf Class 5
Chand Ka Kurta सप्रसंग व्याख्या
1. हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
” सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।
सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर – ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ ।
शब्दार्थ :
- हठ-जिद ।
- झिंगोला – मोटा ऊनी कपड़ा / ढीली-ढाली पोशाक।
- सन सन – हवा की तेज आवाज़ |
- जाड़ा-सरदी, ठंड।
- ठिठुर-ठिठुरकर – ठंड के कारण काँपते हुए।
- यात्रा – सफ़र।
व्याख्या-चाँद एक दिन अपनी माँ से जिद करके बोला कि मुझे ऊन का मोटा सा ढीला-ढाला कुरता सिलवा दो। रात को बहुत ठंडी-ठंडी हवा चलती है और यह मौसम भी ठंड का है। ऐसी ठंड में मैं काँप-काँप कर अपना सफ़र पूरा करता हूँ।
2. आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुरता ही कोई भाड़े का । “
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, “ अरे सलोने !
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू- – टोने ।
शब्दार्थ :
- आसमान – आकाश, नभ।
- जाड़ा – ठंड, सरदी ।
- भाड़े का किराये का ।
- सलोने – सुंदर, प्यारे ।
- कुशल करें – भला करें, रक्षा करें।
- जादू-टोना – जादुई मंत्र या टोना ।
व्याख्या-चाँद अपनी माँ से कहता है कि यह आकाश का सफ़र है और उस पर मौसम भी ठंड का है। इस कारण मुझे बहुत ज्यादा ठंड लगती है। अगर आप मेरे लिए कुरता नहीं सिलवा सकती तो मेरे लिए किराये का ही एक कुरता ला दो। इस पर माँ कहती है कि मेरे प्यारे बच्चे ! भगवान तेरी रक्षा करें और तुझे किसी की कभी बुरी नज़र या जादू-टोना न लगे ।
3.जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल – भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा ।
शब्दार्थ :
- जाड़ा – सरदी, ठंड ।
- नाप – वह माप जिससे कोई चीज़ मापी जाय, कपड़े सिलवाने के लिए माप लेना ।
- अंगुल – भर – एक ऊँगली जितना चौड़ा ।
- फुट मोटा – एक फुट जितना मोटा |
व्याख्या–माँ कहती है कि जाड़े (ठंड) की बात तो तू बिलकुल सही कह रहा है पर मैं तो बस एक बात से डरती हूँ कि तू कभी भी एक आकार में नहीं रहता है। कभी एक अंगुल – भर चौड़ा हो जाता है तो कभी एक फुट जितना मोटा । कभी बहुत बड़ा हो जाता है तो किसी दिन बिलकुल छोटा । माँ कहना चाहती है कि तेरा आकार रोज़ एक सा नहीं रहता है।
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4. घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है ।
अब तू ही तो बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ,
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए ?”
शब्दार्थ :
- घटता-बढ़ता-कम-ज्यादा होना, आकार बदलना।
- रोज- हर दिन प्रतिदिन ।
- नाप- कपड़े सिलवाने के लिए माप ।
- बदन – शरीर ।
व्याख्या- माँ चाँद से फिर कहती है कि तू रोज घटता-बढ़ता रहता है। किसी दिन तो ऐसा भी होता है कि तू किसी को भी दिखाई ही नहीं पड़ता। अब तू ही बता कि किस दिन मैं तेरा नाप लिवाऊँ अर्थात् दर्जी को तेरा नाप लेने के लिए बुलाऊँ, ताकि तेरा एक ढीला-ढाला झिंगोला सिलवा दूँ जो हर रोज तेरे शरीर पर आ जाए और तू ठंड से भी बच जाए?