Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 Naubatkhane Mein Ibadat Questions and Answers
नौबतखाने में इबादत Question Answer
These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत.
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर:
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को दो कारणों से याद किया जाता है
1. डुमराँव प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मभूमि है।
2. यहाँ सोन नदी के किनारे वह नरकट घास मिलती है जिसकी रीड का उपयोग शहनाई बजाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है? [Imp.] [CBSE 2008; CBSE]
अथवा
‘बिस्मिल्ला खाँ हमेशा अपनी अजेय संगीतयात्रा के नायक रहेंगे।’–इस कथन की पुष्टि कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
शहनाई मंगलध्वनि का वाद्य है। भारत में जितने भी शहनाईवादक हुए हैं, उनमें बिस्मिल्ला खाँ का नाम सबसे ऊपर है। उनसे बढ़कर सुरीला शहनाईवादक और कोई नहीं हुआ। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहो गया है।
प्रश्न 3.
सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर:
सुषिर-वाद्यों का अभिप्राय है-सुराख वाले वाद्य, जिन्हें फेंक मारकर बजाया जाता है। ऐसे सभी छिद्र वाले वाद्यों में शहनाई सबसे अधिक मोहक और सुरीली होती है। इसलिए उसे ‘शाहे-नय’ अर्थात् ‘ऐसे सुषिर वाद्यों का शाह’ कहा गया।
प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘फटा सुर न बख्। लुगिया का क्या है, आज फटी हैं, तो कल सी जाएगी।’ [Imp.]
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। [Imp.]
उत्तर:
(क) शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं-हे खुदा! तू मुझे कभी फटा हुआ सुर न देना। शहनाई का बेसुरा स्वर न देना। लुंगिया अगर फटी रह गई तो कोई बात नहीं। आज यह फटी है तो कल सिल जाएगी। आज गरीबी है तो कल समृद्धि भी आ जाएगी। परंतु भूलकर भी बेसुरा राग न देना, शहनाई की कला में कमी न रखना।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं-हे खुदा! तू मुझे ऐसा सच्चा और मार्मिक सुर प्रदान कर जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से आँसू ढुलक पड़े। जिसमें हृदय को गद्गद करने की, तरल करने की, करुणाई करने की शक्ति हो।
प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे? [CBSE 2008 C]
उत्तर:
कोशी में पुरानी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं। खान-पान की पुरानी चीजें और विशेषताएँ नष्ट होती जा रही हैं। मलाई-बरफ़ वाले गायब हो गए हैं। कुलसुम की छन्न करती संगीतात्मक कचौड़ी और देशी घी की जलेबी आज नहीं रही। न ही आज संगीत, साहित्य और अदब का वैसा मान रह गया है। हिंदुओं और मुसलमानों का पहले जैसा मेलजोल भी नहीं रहा। अब गायकों के मन में संगतकारों का वैसा सम्मान नहीं रहा। ये सब बातें बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करती हैं।
प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि
( क ) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। [Imp.]
( ख ) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
अथवा
बिस्मिल्ला खाँ हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे, कैसे? [CBSE 2012]
उत्तर:
(क) बिस्मिल्ला खाँ हिंदुओं और मुसलमानों की मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। वे स्वयं सच्चे मुसलमान थे। उनकी मुसलिम धर्म, उसवों और त्योहारों में गहरी आस्था थी। वे मुहर्रम सच्ची श्रद्धा से मनाते थे। वे पाँचों समय नमाज़ अदा करते थे। साथ ही वे जीवन-भर काशी, विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते रहे। वे गंगा को मैया मानते रहे। वे काशी से बाहर रहते हुए भी बालाजी के मंदिर की ओर मुँह करके प्रणाम किया करते थे। उनकी इसी सच्ची भावना के कारण उन्हें हिंदू-मुसलिम एकता का प्रतीक कहा गया।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ वास्तविक अर्थों में सच्चे इनसान थे। उन्होंने कभी धार्मिक कट्टरता, क्षुद्रता और तंगदिली नहीं दिखाई। उन्होंने काशी में रहकर काशी की परंपराओं को निभाया। मुसलमान होते हुए अपने धर्म की परंपराओं को निभाया। उन्होंने कभी खुदा से धन-समृद्धि नहीं माँगी। उन्होंने जब भी माँगा, सच्चा सुर माँगा। वे जीवन-भर फटेहाल, सरल और सादे रहे। ऊँचे-से-ऊँचे सम्मान पाकर भी वे सरल बने रहे।
प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ के संगीत-जीवन को निम्नलिखित लोगों ने समृद्ध कियारसूलनबाई, बतूलनबाई, मामूजान अलीबख्श खाँ, नाना, कुलसुम हलवाइन, अभिनेत्री सुलोचना।
रसूलनबाई और बतूलनबाई की गायिकी ने उन्हें संगीत की ओर खींचा। उनके द्वारा गाई गई ठुमरी, टप्पे और दादरा सुनकर उनके मन में संगीत की ललक जागी। वे उनकी प्रारंभिक प्रेरिकाएँ थीं। बाद में वे अपने नाना को मधुर स्वर में शहनाई बजाते देखते थे तो उनकी शहनाई को खोजा करते थे। मामूजान अलीबख्श जब शहनाई बजाते-बजाते सम पर आते थे तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर जमीन में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा।
बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह देखा करते थे। अभिनेत्री सुलोचना की फिल्मों ने भी उन्हें समृद्ध किया।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया? [Imp.] [CBSE][ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनसे आप बहुत अधिक प्रभावित [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं ने मुझे प्रभावित किया धार्मिक सौहार्द-बिस्मिल्ला खाँ सच्चे मुसलमान थे। वे पाँचों समय नमाज़ पढ़ते थे। मुहर्रम का उत्सव पूरे शौक और भाव से मनाते थे। फिर भी वे हिंदुओं की पवित्र नदी गंगा को मैया कहते थे। बाबा विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर में नित्य शहनाई बजाया करते थे। काशी के विश्वनाथ की कल्पना बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के बिना नहीं हो सकती। उनका यह धार्मिक सौहार्द हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है।
प्रभु के प्रति आस्थावान-बिस्मिल्ला खाँ के हृदय में खुदा के प्रति सच्ची और गहरी आस्था थी। वे नमाज़ पढ़ते हुए खुदा से सच्चे सुर की कामना करते थे। वे अपनी शहनाई की प्रशंसा को भी खुदा को समर्पित करते थे।
सरलता और सादगी-बिस्मिल्ला खाँ को भारत-रत्न प्राप्त हुआ। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियाँ दीं। अन्य अनेक सम्मान मिले। फिर भी उन्हें गर्व और अभिमान छू नहीं गया। वे सरलता, सादगी और गरीबी की जिंदगी जीते रहे। यहाँ तक कि वे फटी तहमद पहने रहते थे। उन्होंने कभी बनाव-श्रृंगार की ओर ध्यान नहीं दिया।
रसिक और विनोदी स्वभाव-बिस्मिल्ला खाँ बचपन से रसिक स्वभाव के थे। वे रसूलनबाई और बतूलनबाई की गायिकी के रसिया थे। जवानी में वे कुलसुम हलवाइन और सुलोचना के रसिया बने। वे जलेबी और कचौड़ी के भी शौकीन थे।
वे बात करने में कुशल थे। जब उनकी शिष्या ने भारत-रत्न का हवाला देकर उन्हें फटी तहमद न पहनने के लिए कहा तो फट से बोले-ई भारत-रत्न शहनईया पर मिला है, लुंगिया पर नहीं।
प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ को मुहर्रम के उत्सव से गहरा लगाव था। मुहर्रम के दस दिनों में वे किसी प्रकार का मंगलवाद्य नहीं बजाते थे। न ही कोई राग-रागिनी बजाते थे। शहनाई भी नहीं बजाते थे। आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते चलते थे।
प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए। [Imp.]
उत्तर:
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। उन्होंने 80 वर्षों तक लगातार शहनाई बजाई। उनसे बढ़कर शहनाई बजाने वाला भारत-भर में अन्य कोई नहीं हुआ। फिर भी वे अंत तक खुदा से सच्चे सुर की माँग करते रहे। उन्हें अंत तक लगा रहा कि शायद अब भी खुदा उन्हें कोई सच्चा सुर देगा जिसे पाकर वे श्रोताओं की आँखों में आँसू ला देंगे। उन्होंने अपने को कभी पूर्ण नहीं माना। वे अपने पर झल्लाते भी थे कि क्यों उन्हें अब तक शहनाई को सही ढंग से बजाना नहीं आया। इससे पता चलता है कि वे सच्चे कला-उपासक थे। वे दो-चार राग गाकर उस्ताद नहीं हो गए। उन्होंने जीवन-भर अभ्यास-साधना जारी रखी।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फेंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूं ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर:
(क) 1. यह ज़रूर है। (प्रधान उपवाक्य)
2. शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा उपवाक्य)
(ख) 1. रीड अंदर से पोली होती है। (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसके सहारे शहनाई को फेंका जाता है। (विशेषण उपवाक्य)
(ग) 1. रीड नरकट से बनाई जाती है। (प्रधान उपवाक्य)
2. जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण उपवाक्य)
(घ)1. उनको यकीन है। (प्रधान उपवाक्य)
2. कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा उपवाक्य)
(ङ) 1. हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है। (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण उपवाक्य)
(च) 1. खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है। (प्रधान उपवाक्य)
2. पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा उपवाक्य)
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया से मिला है, लुगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर:
(क) यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी की यह प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है कि यहाँ संगीत आयोजन होते हैं।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न जो हमको मिला है, ऊ शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) यह काशी का नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न
कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाई वादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर
शहनाई वादन ।
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि कल दिनांक 15 अक्तूबर, 2015 को विद्यालय के विशाल कक्ष में उस्ताद अली खाँ को शहनाईवादन होगा। अली खाँ भारत के जाने-माने शहनाईवादक हैं। यह कार्यक्रम सुबह 10.00 बजे से 12.00 बजे तक चलेगा। सभी विद्यार्थी तथा अध्यापक आमंत्रित हैं।
प्रश्न
आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।
प्रश्न
हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
काशी, जिसे आज हम वाराणसी कहते हैं, भारत का सांस्कृतिक नगर रहा है। यह नगर संगीत, साहित्य और कला का प्रसिद्ध केंद्र रहा है। शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने अपने सुदीर्घ जीवन के 80 वर्ष यहाँ शहनाई बजाते हुए बिताए।
प्रश्न
काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
विश्वनाथ मंदिर, बोधगया, तीर्थस्थान, कबीर की जन्मस्थली।
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