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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 7 in Hindi प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
(i) इनमें से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है-
(क) बिहार
(ख) पश्चिमी बंगाल
(ग) असम
(घ) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(ग) असम
(ii) उत्तराखण्ड के किस जिले में मालपा भूस्खलन आपदा घटित हुई थी ?
(क) बागेश्वर
(ख) चंपावत
(ग) अल्मोड़ा
(घ) पिथौरागढ़
उत्तर:
(घ) पिथौरागढ़
(iii) इनमें से कौनसे राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है-
(क) असम
(ख) पश्चिमी बंगाल
(ग) केरल
(घ) तमिलनाडु
उत्तर:
(घ) तमिलनाडु
(iv) इनमें से किस नदी में मजौली नदीय द्वीप स्थित है—
(क) गंगा
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गोदावरी
(घ) सिंधु
उत्तर:
(ख) ब्रह्मपुत्र
(v) बर्फानी तूफान किस तरह की प्राकृतिक आपदा है—
(क) वायुमण्डलीय
(ख) जलीय
(ग) भौमिकी
(घ) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(क) वायुमण्डलीय
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 से कम शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
संकट उस समय आपदा बन जाता है जबकि वह अचानक उत्पन्न हो तथा उसका सामना करने के लिए पूरी तैयारी न हो।
प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
हिमालय तथा भारत के उत्तर- र-पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प आते हैं क्योंकि भारतीय प्लेट उत्तर तथा उत्तर – पूर्व की तरफ खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट से टकराकर इसमें अधिक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है जिससे इस क्षेत्र में अधिक भूकम्प आते हैं।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौनसी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?
उत्तर:
- लगातार और पर्याप्त मात्रा में उष्ण व आर्द्र वायु की सतत उपलब्धता जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त होती है।
- तीव्र कोरिऑलिस बल जो कि केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।
- क्षोभमण्डल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाते हैं।
- मजबूत ऊर्ध्वाधर वायु फान की अनुपस्थिति जो कि नम और गुप्त ऊष्मा युक्त वायुं के ऊर्ध्वाधर बहाव को अवरुद्ध करे।
प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़ पश्चिमी भारत की बाढ़ से अलग कैसे होती है?
उत्तर:
पूर्वी भारत में बाढ़ प्रायः बार-बार आती है जबकि पश्चिमी भारत में कभी-कभी ही बाढ़ की स्थिति बनती है। पूर्वी भारत में आने वाली बाढ़ें पश्चिमी भारत की बाढ़ों की तुलना में अधिक विनाशकारी होती हैं।
प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी और मध्य भारत में मानसूनी ऋतु में होने वाली वर्षा की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, यह वर्षा केवल अनिश्चित ही नहीं अपितु अपर्याप्त होती है। वर्षा की कमी तथा अनिश्चितता के कारण पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा पड़ते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताएँ।
उत्तर:
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र
भू-विज्ञान, भ-आकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव के क्रियाकलापों के आधार पर भारत को निम्नलिखित भू-स्खलन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
(1) अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र:
इस क्षेत्र के अन्तर्गत अधिक अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र जिसमें सड़क और बाँध निर्माण इत्यादि आते हैं।
(2) अधिक सुभेद्यता क्षेत्र:
अधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में भी अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्रों के समान परिस्थितियाँ पाई जाती हैं। भूस्खलन को नियंत्रित करने वाले कारकों के संयोजन, गहनता और बारम्बारता का दोनों में अन्तर है। हिमालय क्षेत्र के समस्त राज्य तथा असम के अलावा उत्तर-1 र-पूर्वी भाग इस क्षेत्र में शामिल हैं।
(3) मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र:
पार हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमालय प्रदेश में स्पीति, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट व दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र में कभी – कभी भूस्खलन होता है।
इसके अलावा झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खदानों और भूमि धँसने से भूस्खलन होता रहता है।
(4) अन्य क्षेत्र:
भारत के अन्य क्षेत्र विशेष रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, दार्जिलिंग को छोड़कर पश्चिमी बंगाल, कार्बी अनलोंग को छोड़कर असम तथा दक्षिणी राज्यों के क्षेत्र भूस्खलन युक्त क्षेत्र हैं।
निवारण के उपाय : भूस्खलन की समस्या का निवारण निम्नलिखित उपायों को अपनाकर किया जा सकता
- भूस्खलन से निपटने के उपाय अलग-अलंग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होने चाहिए।
- अधिक भूस्खलन सम्भावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिए।
- भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियंत्रण होना चाहिए।
- सकारात्मक कार्य जैसे वृहद् स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल बहाव को कम करने के लिए बाँध का निर्माण भूस्खलन के उपायों के पूरक हैं।
- स्थानान्तरित कृषि वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।
उत्तर:
सुभेद्यता: सुभेद्यता किसी व्यक्ति, समुदाय अथवा क्षेत्र को हानि पहुँचाने का एक बिन्दु है अर्थात् मनुष्य भौगोलिक आकार की विशेषताओं और सामाजिक दशाओं से प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में सुभेद्यता भय की एक सीमा है जिस पर एक व्यक्ति या समुदाय अथवा क्षेत्र प्रभावित होता है।
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र:
भारतीय जलवायु तंत्र में सूखा और बाढ़ महत्वपूर्ण तत्व हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत हिस्सा प्रतिवर्ष सूखे से प्रभावित होता है तथा 5 करोड़ व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं। जब देश के कुछ भागों में बाढ़ कहर ढा रही होती है, उसी समय दूसरे भाग सूखे से जूझ रहे होते हैं। यह मानसून में परिवर्तनशीलता और इसके व्यवहार में अनिश्चितता कापरिणाम है। सूखे का प्रभाव भारत में बहुत व्यापक है। सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
(1) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान के अधिकांश भाग, विशेष रूप से अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित हैं । इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं जहाँ 90 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।
(2) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकतर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के आन्तरिक भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड का दक्षिणी भाग तथा ओडिशा का आन्तरिक भाग शामिल हैं।
(3) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र:
इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के शेष जिले, कोंकण के अलावा महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक शामिल हैं। भारत के शेष भाग बहुत कम या न के बराबर सूखे से प्रभावित हैं।
सूखे के निवारण के उपाय : भारत में सूखे की समस्या के निवारण के उपाय अग्रलिखित हैं-
- सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण पर सूखे का प्रभाव तात्कालिक और दीर्घकालिक होता है। इसी कारण सूखे से निपटने के लिए तैयार की जा रही योजनाओं को उन्हें ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।
- सूखे की स्थिति में तात्कालिक सहायता में सुरक्षित पेयजल वितरण दवाइयाँ, पशुओं के लिए चारे और जल की उपलब्धता तथा लोगों एवं पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया जाना चाहिए।
- सूखे से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं में विभिन्न कदम उठाए जा सकते हैं, यथा-
- भूमिगत जल के भण्डारण का पता लगाना।
- जल आधिक्य क्षेत्रों से अल्प जल क्षेत्रों में पानी पहुँचाना।
- नदियों को जोड़ना और बाँध व जलाशयों का निर्माण आदि।
- नदियों को आपस में जोड़ने के लिए द्रोणियों की पहचान तथा भूमिगत जल भण्डारण की सम्भावना का पता लगाने के लिए सुदूर संवेदन और उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- सूखा प्रतिरोधी फसलों के बारे में प्रचार- प्रसार सूखे से लड़ने के लिए दीर्घकालिक उपाय है।
- वर्षा जल संवहन सूखे का प्रभाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
लम्बे समय तक भौगोलिक जगत में प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने को प्राकृतिक बलों का परिणाम माना जाता रहा किन्तु 20वीं शताब्दी के दौरान मानव द्वारा किए जाने वाले अनेक विकास कार्य प्राकृतिक आपदा के लिए उत्तरदायी रहे हैं यथा- भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, सी.एफ.सी. तथा अन्य हानिकारक गैसों को सतत रूप से वायुमण्डल में छोड़ा जाना तथा पर्यावरण प्रदूषण सम्बन्धी मानवीय कार्य आदि।
यद्यपि मानवीय समाज को आगे बढ़ाने के लिए विकास अति आवश्यक है। वर्तमान समय में मानव जितनी सुख-सुविधाओं का उपभोग कर रहा है वह बिना विकास के असम्भव है। किन्तु जहाँ मानव ने एक तरफ आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिए भूमि के संसाधनों का अविवेकपूर्ण ढंग से विदोहन किया है, वहीं दूसरी तरफ विनाश के बल पर किये गये विकास ने अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। इनमें भूस्खलन, बाढ़, मृदा अपरदन, भूकम्प, भूमण्डलीय तापन, ओजोन परत का क्षयीकरण तथा अम्लीय वर्षा आदि उल्लेखनीय समस्याएँ हैं अतः विकास कार्य निम्नलिखित स्थितियों में आपदा का कारण बन जाते हैं-
- जब मानव के द्वारा बाँध आदि का निर्माण सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है तब यदि इसकी ऊँचाई बढ़ाई जाती है तो इनका टूटना अथवा विस्तृत झील संकट का कारण बन जाती है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य भी संकट का कारण बन जाता है क्योंकि इससे बड़ी मात्रा में भूस्खलन आदि होते हैं।
- बढ़ती जनसंख्या की उदर पूर्ति के लिए जंगलों को काट कर साफ करना भी संकट का कारण बनता है। इससे अपरदन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।
- विभिन्न प्रकार की गैसें यथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि जो कि उद्योगों से निकलती हैं, वह संकट का कारण बन जाती हैं।
- परमाणु शक्ति का उत्पादन जो कि परमाणु ईंधन द्वारा होता है। भोपाल गैस त्रासदी तथा रूस में चेरनोबल परमाणु संयंत्र में हुई घटना इसका दाहरण है। अवैज्ञानिक ढंग से किया जाने वाला भू-उपयोग भी संकट का एक कारण है।