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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 10 पांडवों की रक्षा
Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 10
पाठाधारित प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पुरोचन पांडवों को कहाँ ले गए?
उत्तर:
पुरोचन पांडवों को लाख से बने भवन में ले गए।
प्रश्न 2.
वारणावत को जाते समय विदुर ने युधिष्ठिर को किस प्रकार सावधान किया?
उत्तर:
वारणावत जाते समय विदुर ने युधिष्ठिर को दुर्योधन के षड्यंत्र तथा उससे बचने का उपाय गूढ भाषा में अवगत करवाकर सचेत कर दिया था।
प्रश्न 3.
विदुर द्वारा भेजे गए व्यक्ति ने भवन के अंदर क्या किया?
उत्तर:
विदुर द्वारा भेजे गए व्यक्ति ने भवन के अंदर एक सुरंग बना दी जिससे पांडव बाहर निकल सकें।
प्रश्न 4.
रात्रि को भवन में आग किसने लगाई ?
उत्तर:
रात्रि को लाख भवन में आग भीम ने लगाई।
प्रश्न 5.
माता कुंती ने किस चीज़ का आयोजन किया?
उत्तर:
माता कुंती ने रात्रि में बड़े भोज का आयोजन किया।
प्रश्न 6.
सुरंग बनाने वाले कारीगर ने पांडवों को अपना परिचय कैसे दिया?
उत्तर:
सुरंग बनाने वाले कारीगर ने पांडवों को अपना परिचय देते हुए कहा-“आप लोगों की भलाई के लिए हस्तिनापुर से रवाना होते वक्त विदुर ने सांकेतिक भाषा में जो कुछ कहा था। वह बात मैं जानता हूँ। यही मेरे सच्चे मित्र होने का प्रमाण है। मैं आप लोगों की रक्षा का उपाय करने आया हूँ।
प्रश्न 7.
लाख के भवन से बचकर पांडव कहाँ चले गए? वे लोग कहाँ किस प्रकार अपना गुजारा करते थे?
उत्तर:
लाख के भवन से सुरंग के रास्ते से बच निकलकर पांडव जंगल की ओर निकल गए। वहाँ से गंगा नदी के किनारे एक नाव पर बैठकर एकचक्रा नगर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने एक ब्राह्मण के घर आश्रय बनाया। वहाँ वे भीख माँगकर अपना गुज़ारा करने लगे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वारणावत के लाख के घर में पहुँचकर युधिष्ठिर ने भीम से क्या कहा?
उत्तर:
वारणावत के लाख घर में पहुँचकर युधिष्ठिर ने भीम से कहा कि यह स्थान हम लोगों के लिए खतरनाक है। फिर भी हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि पुरोचन के षड्यंत्र का हमें मालूम नहीं है। शत्रु के मन में शक पैदा न हो। मौका मिलते ही हम लोग यहाँ से भाग निकलेंगे।
प्रश्न 2.
लाख घर में सुरंग कैसे बनाई गई ? युधिष्ठिर ने पुरोचन की योजना को किस प्रकार असफल कर दिया?
उत्तर:
कारीगर ने सुरंग इस ढंग से बनाया कि लाख के महल के अंदर से नीचे-नीचे चहारदीवारी और गहरी खाई को लांघकर बाहर निकला जा सकता था। सुरंग बनाने के बाद उत्सव मनाकर सब लोग खा-पीकर सो गए। पुरोचन भी सो गया। भीम ने स्वयं लाख के भवन में जगह-जगह आग लगा दी। पुरोचन का घर भी जलकर भस्म हो गया और जलकर मर गया। पांडव सुरक्षित बचकर निकल गए। पुरोचन उस महल में आगजनी करता उससे पहले पांडवों ने ही आग लगाकर पुरोचन के षड्यंत्र को असफल कर दिया।
प्रश्न 3.
ब्राह्मण परिवार के दुख का कारण क्या था?
उत्तर:
एकचक्रा नगरी के समीप एक गुफा में बकासुर नामक राक्षस रहता था। वह लोगों पर अत्याचार करता था। वहाँ का राजा काफ़ी निकम्मा एवं कमज़ोर था। वह अपनी प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता था। अतः वहाँ की प्रजा ने उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए एक समझौता किया। समझौते के अनुसार लोग बारी-बारी से उसके लिए सामग्री लेकर एक आदमी अपने घरों से जाएँगे। आज उस ब्राह्मण परिवार की बारी थी। अतः वे दुखी थे।
प्रश्न 4.
भीम ने बकासुर का वध कैसे किया?
उत्तर:
भीम और बकासुर में भयानक संघर्ष हुआ। राक्षस ने एक बड़ा पेड़ उखाडकर भीम को दे मारा। किंत भीम ने उसे बाएँ हाथ से रोक लिया। दोनों में खूब मुठभेड़ हुई। भीम ने उसे मुँह के बल गिराकर पीठ पर घुटनों से उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। राक्षस पीड़ा से कराहकर वहीं मर गया। इस तरह से भीम ने बकासुर का वध किया।
Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 10
पाँचों पांडव कुंती के साथ वारणावत के लिए रवाना हो गए। इधर विदुर को दुर्योधन के षड्यंत्र का पता चल चुका था। अतः उन्होंने यह बातें युधिष्ठिर को चुपचाप बता दिया। लाख-भवन तैयार हो जाने पर पुरोचन पांडवों को उसमें ले गए। युधिष्ठिर को विदुर की बात याद थी। अब युधिष्ठिर को पता चल गया था कि भवन आग पकड़ने वाली वस्तुओं से बना है। उन्होंने साथियों को सावधान कर दिया और पुरोचन को पता न चलने की हिदायत भी दे दी। पांडव उसी लाख भवन में रहने लगे। इतने में विदुर द्वारा भेजा गया सुरंग वाला कारीगर वहाँ पहुँच गया। उसने वहाँ कुछ ही दिनों में महल में ज़मीन के नीचे ही नीचे एक सुरंग बना दी। यह काम अत्यंत गोपनीय था। इस सुरंग से पांडव आग लगने पर बाहर निकल सकते थे।
पुरोचन ने लाक्षागृह के द्वार पर ही अपना आवास बनाया था फिर भी उसे सुरंग के विषय में कुछ भी मालूम न हुआ। पुरोचन अभी योजना बना रहा था कि उसे समझकर माता कुंती ने रात्रि-भोज का आयोजन किया जिसमें नगर के सभी लोगों को भोजन कराया। खूब खा-पीकर पुरोचन सहित सब कर्मचारी गहरी नींद में सो गए। आधी रात पांडव सुरंग मार्ग से बाहर निकल गए। भीम ने जगह-जगह आग लगा दी। महल व पुरोचन के रहने का स्थान आग की लपटों से घिर गया। नगर निवासी पांडवों के जल मरने की आशंका से कौरवों की निंदा करते हुए दुख प्रकट करने लगे। पुरोचन भी इस आग में स्वाहा हो गया।
जब यह सूचना हस्तिनापुर पहुंची तो नगर में हाहाकार मच गया। कौरवों ने भी शोक मनाया और कुंती को श्रद्धांजलि दी। इधर विदुर पूर्णतः आश्वस्त थे कि पांडव लाख के भवन से निकल गए होंगे।
लाख के घर को जलता छोड़ पांडव माता कुंती के साथ एक जंगल में पहुँच गए। माता कुंती रास्ते में काफ़ी थक गई थी तब माता कुंती को भीम ने अपने कंधे पर बैठा लिया तथा नकुल-सहदेव को कमर पर लेकर, चल पड़े। युधिष्ठिर और अर्जुन का हाथ पकड़कर भी जंगली रास्ते में उन्मत हाथी की तरह तेजी से जंगल पार कर गए और वे लोग गंगा नदी के किनारे मिल गए। वहाँ गंगा नदी के किनारे पांडवों को विदुर द्वारा भेजी गई एक नाव मिली। मल्लाह के संकेत पर वे समझ गए कि वे मित्र हैं। अगले दिन शाम तक वे लोग चलते रहे। एक रात व दिन चलने के बाद शाम को कुंती बहुत थक गई थी। पांडव भी बुरी तरह थके हुए थे। कुंती ने कहा- मैं तो पानी के बिना अब नहीं रह सकती हूँ। यह कहकर कुंती वहीं ज़मीन पर गिरकर बेहोश हो गई। अपने भाइयों तथा कुंती का यह हाल देखकर भीम द्रवित हो गया।
तब उसने एक जलाशय से पानी लाकर उन लोगों की प्यास बुझाई। पानी पीकर सब सो गए। केवल भीम जागता रहा। इस तरह कष्ट सहते हए पांडव चलते-चलते अंत में एकचक्रा नगरी में ब्राहमण के वेश में रहने लगे। वे लोग वहीं भिक्षा माँगकर अपना गुजारा करने लगे। भिक्षा में पाँचों जितना भोजन लाते, उसके दो हिस्से करती। एक हिस्सा भीम को दे देती और दूसरे भाग में चारों पुत्रों को और स्वयं खाती। इसके बाद भी भीम की भूख नहीं मिटती थी। भीम ने एक कुम्हार से मित्रता कर ली। कुम्हार ने उसे एक बड़ी भारी हाँडी दे दी। भीम उसी हाँड़ी को लेकर भिक्षा के लिए निकलता। उसके विशाल शरीर और बड़ी हाँड़ी के कारण उसे काफ़ी भिक्षा मिलने लगी।
एक दिन भीम भिक्षा के लिए नहीं गया था। चारों भाई भिक्षा माँगने के लिए गए हुए थे। इतने में ब्राह्मण के घर से रोने की आवाज़ आई। ब्राह्मण बड़े दुखी हृदय से अपनी पत्नी से कह रहा था, अपनी पुत्री की बलि कैसे चढ़ा दूँ, और पुत्र के काल कवलित होने दें। अगर मैं अपनी बलि देता हूँ तो बच्चों का पालन-पोषण कौन करेगा। इससे अच्छा तो हम सभी मौत को गले लगा लें। कहते हुए ब्राह्मण रोने लगा। कभी ब्राह्मण की पत्नी खुद को कहती है- राक्षस का भोजन बनू, कभी ब्राह्मण तो कभी उनके बच्चे। माता कुंती अंदर गई तो ब्राह्मण, उसकी पत्नी, उनकी पुत्री व पुत्र की बात सुनकर वे व्यथित होकर ब्राह्मण से बोली “हे ब्राह्मण क्या आप कृपा करके मुझे बता सकते हैं कि आप लोगों के इस असह्य दुख का कारण क्या है?
तब ब्राह्मण ने बताया कि इस नगरी का राजा काफ़ी शक्तिहीन है। वह प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता। इस नगरी के समीप ही एक गुफा में बकासुर नाम का राक्षस रहता है। वह जनता पर बहुत अत्याचार करता है। अतः राजा से निराश जनता ने बकासुर से समझौता कर लिया है कि नगरवासी बारी-बारी एक आदमी और खाने की चीजें हर सप्ताह भेज दिया करेंगे। राक्षस ने यह बात मान ली। इस सप्ताह उस राक्षस के भोजन व एक आदमी की बारी हमारे परिवार की है। मैंने सोचा कि परिवार सहित ही मैं राक्षस के पास चला जाऊँ। इस समस्या को दूर करने का और कोई उपाय नहीं है।
ब्राह्मण की बातों को सुनकर कुंती ने सबसे पहले भीम से सलाह लेकर वह लौटकर ब्राह्मण से बोली- “विप्रवर, आप इस बात की चिंता छोड़ दीजिए। मेरे पाँच बेटे हैं, उनमें से एक आज राक्षस के पास भोजन लेकर चला जाएगा” ब्राह्मण बोला- “आप हमारी अतिथि हैं। आपके बेटे के मौत का मुंह में भेजना कहाँ का न्याय है। मुझसे यह नहीं हो सकता। कुंती को डर था कि यदि बात फैल गई तो दुर्योधन को पता चल जाएगा कि हम लोग एकचक्रा नगर में छिपे हुए हैं। इसलिए उसने इस बात को गुप्त रखने के लिए ब्राह्मण से कहा जब कुंती ने भीम से भोजन की सामग्री लेकर बकासुर के पास जाने को कहा तो युधिष्ठिर नाराज़ हो गया। यह देखकर कुंती बोली-ब्राह्मण के घर हम आराम से रह रहे हैं। आज जब उन पर विपत्ति पड़ी है तो हमें उसका साथ देना चाहिए। भीम को बकासुर के पास भेजना मेरा कर्तव्य है।
भीम गाड़ी में भोजन लेकर राक्षस की गुफा पर पहुँच गया। वह वहाँ बैठकर भोजन करने लगा। जब राक्षस भूख से तड़पता हुआ निकला तो वह यह देखकर क्रोध से लाल हो गया। इतने में भीम ने उसे पुकारा जिससे राक्षस और क्रोधित हो गया और राक्षस भीम पर झपटा। राक्षस ने पेड़ उखाड़ कर भीम को मारा लेकिन भीम ने उसे बाएँ हाथ से रोक लिया। दोनों में काफ़ी मुठभेड़ हुई। राक्षस बार-बार उठकर भीम से दो-दो हाथ करने तैयार हो जाता। अंत में भीम ने उसे मार डाला। भीम ने लाश को घसीटकर नगर के फाटक पर लाकर पटक दिया। फिर घर माता-कुंती के पास जाकर सारी कहानी सुनाई।
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-21- आगमन – पधारना, आना, प्रबंध – इंतजाम, व्यवस्था, सबूत – प्रमाण।
पृष्ठ संख्या-23- क्षुब्ध – दुखी, निंदा – शिकायत।
पृष्ठ संख्या-24- क्षोभ – दुख, हाँडी – मिट्टी का छोटा घड़ा, विलक्षण – अद्भुत।
पृष्ठ संख्या-25- हठ – जिद, दुरात्मा – बुरे विचार रखने वाला, जुल्म – अत्याचार।
पृष्ठ संख्या-27- विश्राम – आराम, पीड़ा – कष्ट, लाश – मृत शरीर।