Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 2 आरोहण to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 2 आरोहण
Class 12 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral आरोहण
प्रश्न 1.
यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी?
अथवा
घर लौटते समय रूपसिंह को एक अजीब-सी झझक क्यों हो रही थी? ‘आरोहण’ पाठ के आधार पर कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर :
रूप सिंह लंबे समय बाद घर लौट रहा था। वह ग्यारह साल पहले गाँव छोड़कर गया था। वह लोगों के प्रश्नों से बचना चाहता था। कोई उससे पूछे कि वह इतने साल कहाँ रहा या कि इतने सालों बाद लौटकर आया ही क्यों, तो वह इसका जवाब नहीं दे पाएगा। उसने आने से पहले कभी खत या संदेश भी नहीं भेजा, किसी को उसके बारे में मालूम नहीं, उसे किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं। ग्यारह साल का समय कम नहीं होता। इसी कारण वह घर लौटते समय एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक से घिरने लगा था।
प्रश्न 2.
पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
पत्थर की जाति से अभिप्राय पत्थर की किस्म से है। पत्थर किस प्रकार की चट्टान, मिट्टी या कण से बना है, यही पत्थर की जाति है। लेखक ने पत्थर के निम्नलिखित प्रकार बताए हैंइग्नियस, ग्रेनाइट, मेटामॉरफ़िक, सैंड स्टोन, सिलिका।
प्रश्न 3.
महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था?
उतर :
महीप रूप सिंह के बड़े भाई भूप सिह और उसकी पहली पत्नी शैला का बेटा था। इस तरह वह रूप सिंह का भतीजा था। महीप अपने पिता को अपनी माँ की मौत के लिए ज़िम्मेदार मानता था। इसी कारण वह घर छोड़कर भाग गया था। बातों से उसे यह पता लग गया कि रूप सिंह उसका चाचा है। वह अपनी वास्तविकता जाहिर नहीं करना चाहता था, इसलिए अपने विषय में पूछे जाने पर महीप टाल देता था।
प्रश्न 4.
बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा?
उत्तर :
बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब लगा, क्योंकि वे पहाड़ पर ही रहते थे। उनके लिए इस पर चढ़ना-उतरना सामान्य बात थी, क्योंकि यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। तिरलोक सिंह के लिए यह आश्चर्य की बात थी कि सरकार पहाड़ पर चढ़ाई के लिए चार हज़ार तनख्वाह देती है। वह सरकार को पागल समझता है।
प्रश्न 5.
रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूप सिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था?
उतर :
भूप सिंह रूप सिंह और शेखर को लेकर अपने घर की तरफ चले। चढ़ाई खड़ी थी। पहले वे पेड़ और पत्थरों के सहारे चढ़ते रहे, फिर रूप सिंह और शेखर हाँफते हुए एक स्थान पर रुक गए। तब भूप सिंह ने अपनी कमर में मफ़लर को बाँधा और उसके दोनों छोर रूप सिंह को थमाए। भूप सिंह बिना किसी आधुनिक उपकरण के सहारे पेड़ों-पत्थरों के नाममात्र के सपोर्ट पर शरीर का संतुलन बनाते हुए रूप सिंह को लगभग खींचते हुए चढ़ा रहे थे। वे बीच-बीच में रूप सिंह को हिदायतें भी देते जा रहे थे। इस प्रक्रिया में घंटा भर लगा। भूप सिंह की इस प्रतिभा के सामने रूप सिंह को अपना ज्ञान खोखला जान पड़ा और वे बौने पड़ गए।
प्रश्न 6.
शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नई ज़िदगी की कहानी लिखी?
उत्तर :
भूप सिंह बताता है कि एक बार बहुत बर्फ गिरी, जिससे पहाड़ धसक गया और सब कुछ तबाह हो गया, फिर उसने हिम्मत की और मलबा हटाकर खेती शुरू की। बाद में वह शैला को भी ले आया। उसके आने के बाद खेती फैल गई। बर्फ जमी न रहे, इसलिए खेतों को ढलानदार बनाया गया। पानी की खोज के लिए हिमांग के साबुत हिस्से पर चढ़े। वहाँ एक झरना नीचे गिर रहा था। उसे मोड़ लेने पर ही पानी की समस्या दूर हो सकती थी। बीच में ऊँचा पहाड़ था। उन्होंने क्वार के दिन में मेहनत की। धीरे-धीरे झरने को यहाँ लाने में सफल हुए। सर्दीं में पानी जमने की समस्या से निजात पाने के लिए लकड़ी जलाई जाती है। चौबीस घंटे आग जलती रहती है। बर्फ के निकट आग जलाकर पानी बनाया जाता है जो फसल की सिंचाई के काम आता है। इस प्रकार शैला और भूप ने पहाड़ पर नई ज़िदगी की कहानी लिखी।
प्रश्न 7.
सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे, जिसने उनको घोड़े पर सवार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मज़दूरों के बारे में सोचते हैं?
उत्तर :
हम भी बाल मज़दरों के कल्याण के बारे में सोचते हैं। जब भी चाय की दुकान, ढाबे, रेलवे स्टेशन, बस-अड्डे आदि पर छोटे बच्चों को काम करते देखते हैं तो मन करुणा से भर जाता है। पढ़ने और खेलने की उम्र में उनसे काम करवाया जाता है तथा शोषण किया जाता है। जिससे इन बच्चों का बचपन छिन जाता है और ये बच्चे पढ़ाई-लिखाई के अभाव में जीवन भर के लिए मजदूर बनकर रह जाते हैं।
बाल मजदूरी मिटाने के लिए निम्नांकित ठोस कदम उठाए जा सकते हैं –
- बच्चों की पढ़ाई के साथ ही रोज़गार प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वह आगे चलकर मज़दूर नहीं कारीगर बनें।
- विद्यालय स्तर पर ही बच्चे पढ़ाई के साथ कमाई भी कर सकें।
- फैक्ट्रियों में काम कर रहे बच्चों को छुड़ाकर पढ़ने-लिखने का अवसर देना चाहिए।
- बाल-मजदूरी को अपराध घोषित कर देना चाहिए।
प्रश्न 8.
पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं! उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
आरोहण कहानी के आधार पर भूपदादा के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ लिखिए, जिनसे आप प्रभावित हुए हैं।
उत्तर :
भूप सिंह रूप के बड़े भाई हैं। वे पहाड़ों पर चढ़ने में कुशल हैं। उनका जीवन पहाड़ों पर ही बीता। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :
- व्यकितत्त्व – भूप सिह का व्यक्तित्व आकर्षक है। गोरा-चिट्टा, सखा लंबोतरा, चित्तीदार चेहरा, मानो ग्रेनाइट पत्थर को तराशकर गढ़ा गया हो, उनकी अजीब-सी स्थितप्रज्ञ आँखें मद्धिम-मद्धिम जलती हुई-सी थी।
- मेहनती – भूप सिंह बेहद मेहनती हैं। पहाड़ धँसने से सब-कुछ नष्ट हो गया। उन्होंने अपनी मेहनत से खेती शुरू की। पानी के लिए झरने का रुख मोड़ा।
- मातृभूमि से लगाव – भूप दादा को अपनी मातृभूमि और पहाड़ों से बेहद लगाव है। उनका सब कुछ छिन जाने तथा गाँव वालों से अलग रहने के बाद भी वे रूप सिंह के साथ नीचे (मसूरी) जाने को तैयार नहीं होते हैं। उन्हें पहाड़ की गोद में ही मरना स्वीकार है।
प्रश्न 9.
इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है? उस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आरोहण कहानी में स्त्री की परिश्रमशीलता तथा उपेक्षित स्थिति का पता चलता है। भूप सिह ने शैला के साथ विवाह किया। दोनों ने मिलकर जीवन-संघर्ष किया, परंतु शैला के गर्भवती होने से काम-काज में परेशानी होने पर भूप सिह एक स्त्री और ले आया। इस बात को शैला सहन न कर सकी और उसने आत्महत्या कर ली। पहाड़ों पर स्त्रियाँ बेहद् मेहनती होती हैं। उन्हें ही परिवार का अधिक कार्य करना होता है। उनके कठोर परिश्रम और परिवार का जीवन सुखमय बनाने में योगदान के बद्ले में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वे हकदार होती हैं।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
‘पहाड़ों में जीवन अत्यंत कठिन होता है।’ पाठ के आधार पर उक्त विषय पर एक निबंध लिखिए।
अधवा
‘पहाड़ों में मानव-जीवन पहाड़ जैसा कठिन और दुर्गम है, किंतु पहाड़ी लोग उससे हार नहीं मानते।’ आरोहण कहानी के आधार पर इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
पहाड़ का नाम आते ही मस्तिष्क में वे ऊँची-ऊँची आकृतियाँ घूमने लगती हैं, जिनकी चोटियाँ आकाश को छूती प्रतीत होती है और आकार में अत्यंत विशाल और बज्र के समान ही कठोर होते हैं। भौगोलिक दृष्टि से ये कहीं ऊँचे, कहीं नीचे, कहीं बर्फ की चादर तो कही हल्की-फुल्की हरियाली की चादर से ढँक होते हैं। इनके बीच से निकलती दुबली-पतली नदियाँ अपने कल-कल करते स्वर में इनका गौरवगान करती प्रतीत होती हैं। यहाँ का शांत एवं प्रदूषण रहित वातावरण धरती पर ही स्वर्ग की अनुभूति कराता है, परंतु पर्वतीय जीवन दूर से ही देखने और सुनने में अच्छा लगता है। यहाँ का जीवन कितना कठिन है, यह तो वहाँ रहने वालों के साथ रहकर जाना जा सकता है।
पहाड़ीं पर उन तमाम सुविधाओं का अभाव रहता है जो शहरों और समतल मैदानों में आसानी से मिल जाती हैं। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र होने के कारण यहाँ रहने वालों को भोजन, संचार, यातायात जैसी अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। खेती-बारी का क्षेत्रफल अत्यंत कम और प्रतिकूल जलवायु होने के कारण अनाज में विविधता नहीं होती। फलतः कुछ एक फसलों के सहारे ही जीवन बिताना होता है। इसके अलावा लेह, लद्दाख, लाहुल, स्फीति जैसे स्थानों पर तापमान शून्य डिग्री सेल्सयस से काफी नीचे गिर जाता है, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। इससे ऐसे स्थानों पर जनसंख्या बहुत ही कम पाई जाती है।
थोड़ी-बहुत जो जनसंख्या होती भी है, प्रकृति और मौसम की मार उनका जीवन दुश्वार कर देती है। कभी अनावृष्टि के कारण भूखों मरने की नौबत आती है तो कभी अतिवृष्टि और चट्टानों के खिसकने से गाँव के गाँव बह जाते हैं। ऐसे में बचे-खुचे लोगों को खेती योग्य स्थान बनाने या खोजने में कई वर्ष लग जाते हैं। ऊँचे-ऊँचे द्रो, कठोर रास्तों, यातायात और संचार के साधनों के अभाव में रोज़गार की तलाश में भी अन्यत्र जाना कठिन होता है। सड़कों के अभाव में किसी आपदा या दुख की घड़ी में अपनों तथा रिश्तेदारों तक पहुँचना कठिन हो जाता है।
कुछ ऊँचे स्थानों पर इतनी बर्फ गिरती है कि वे दुनिया के अन्य भागों से आठ-नौ महीनों तक कटे रहते हैं। शीत के कारण घरों से निकलना ही कठिन हो जाता है। खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है। यहाँ की कठिनाई का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश के ‘स्पीति’ जिले में प्रति वर्ग मील चार व्यक्तियों से भी कम रहते हैं। यहाँ परिस्थितियाँ ऐसी नहीं हैं कि आसानी से रोटी. कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुतिधाएँ भी आसानी से जुटाई जा सकें। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि पहाड़ों में जीवन ‘दूर के ढोल’ जैसा है जो सुनने में सुंदर और स्वर्ग जैसा मनोरम लगता है, परंतु अत्यंत कठिन, संघर्षपूर्ण और असुविधाजनक होता है।
प्रश्न 2.
पर्वतारोहण की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में पर्वतारोहण का विशेष महत्त्व है। इससे व्यक्ति को साहसिक कार्य करने तथा जीवन में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में मदद मिलती है। इसके अलावा हमें प्रकृति का सान्निध्य पाने का अवसर मिलता है तथा मनुष्य को प्राकृतिक वस्तुओं के महत्व का ज्ञान होता है। इसके लिए प्रकृति और पर्वतों के निकट जाना होगा। पर्वतारोहण आज बहुत ही प्रासंगिक हो गया है। इसके कई कारण हैं –
- विज्ञान के विकास के कारण पर्वतों पर चढ़ाई काफी आसान हो गई है। अतः मानव अपनी जिज्ञासावृत्ति के कारण पहाड़ों पर चढ़ना चाहता है।
- सुरक्षा-संबंधी कारणों से पर्वतारोहण ज़रूरी हो गया है। इससे नए मार्ग भी मिलते हैं, जिससे सीमा की सुरक्षा में मदद मिलती है।
- पर्यावरण के प्रभाव को देखने के लिए भी पर्वतारोहण ज़रूरी है। इससे ग्लोबल वामिंग का असर देखा जा सकता है।
- पर्वतारोहण अनेक प्रकार से बहुत से लोगों की आजीविका का साधन बन चुका है।
प्रश्न 3.
पर्वतारोहण पर्वतीय प्रदेशों की दिनचर्या है, वही दिनचर्या आज जीविका का माध्यम बन गई है। उसके गुण-दोष का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
पर्वतीय क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से ऊँचे-नीचे, दुर्गम, बीहड़ तथा अत्यंत कठोर होते हैं। समतल ज़मीन के अभाव में यहाँ घर अत्यंत दूर-दूर, खेत ऊँचे-नीचे स्थानों पर होते हैं, जिससे पहाड़ों पर चढ़ना-उतरना वहाँ के निवासियों की दिनचर्या का अंग बन जाता है। वे अपनी छोटी-मोटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन पहाड़ों पर चढ़ते-उतरते रहते हैं, जिससे वे पहाड़ पर चढ़ते-उतरने में बचपन से ही निपुणता प्राप्त कर लेते हैं। उनकी यही निपुणता कालांतर में आजीविका का साधन बन जाती है। ध्यान से देखने पर इसमें निम्नलिखित गुण-दोष नजर आते हैं –
गुण-पर्वतीय स्थलों एवं वहाँ स्थित देवस्थलों को देखने के लिए पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ रहने वाले स्थानीय लोग इन पर्यटकों के लिए गाइड या कोच की भूमिका निभाकर आजीविका कमाते हैं। आज पर्वतारोहण को पाठ्यक्रमों में जगह देते हुए बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ प्रशिक्षक के रूप में काम किया जा सकता है।
दोष-पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों के आवागमन एवं पर्वतारोहियों के आवागमन से बाल मज्रदूरी की समस्या उठ खड़ी हुई है। वे उनका सामान ढोने, उनकी सेवा जैसे छोटे-छोटे काम करके आज कुछ पैसे कमाकर अपना कल (भविष्य) खराब कर लेते हैं। इस प्रकार उनकी प्रतिभा छोटे-छोटे कायों तक ही सीमित रह जाती है। इसके अलावा स्थानीय लोग गाइड की भूमिका निभाते या उनका नेतृत्व करते हुए दुर्गम स्थलों पर दुर्घटना का शिकार हो जीवन से हाथ धो बैठते हैं।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 आरोहण
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
रूप ने कहा कि आप यहाँ अकेले हैं, जबकि भूप ऐसा नहीं महसूस करते हैं, क्यों?
उत्तर :
जब रूप ने कहा कि आप यहाँ अकेले हैं तो भूप ने कहा कि कौण कैता है, अकेला हूँ? हयाँ माँ है, बाबा हैं, शैला है-सोये पड़े हैं सब। ह्याँ महीप है, बल्द हैं, मेरी घरवाली है. मौत के मुँह से निकाले गए खेत हैं, पेड़ हैं, झरणा है। इन पहाड़ों में मेरे पुरखों, मेर प्यारों की आत्मा भटकती रहती है। मैं उनसे बात करता हूँ। इसके अलावा भूप सिह इन पहाड़ों से गहरी आत्मीयता रखते हैं। वे नीचे या शहर जाने के बजाए इन्हीं पहाड़ों की गोद में समा जाना पसंद करते हैं।
प्रश्न 2.
रूप और शेखर ने वादियों में गूँज रहा जो पहाड़ी गीत सुना था, उसका प्रसंग एवं अर्थ बताइए।
उत्तर :
पहाड़ की ऊँची-नीची चोटियों पर छाया घना कुहरा वहाँ रहने वालों की दिनचर्या में बाधा डालता है तथा प्रेम संबंधों एवं अपनापन प्रगाढ़ होने में बाधक बनता है। इसी भावना की अभिव्यक्ति उस पहाड़ी गीत में हुआ है, जिसका अर्थ इस प्रकार हैकोई पहाड़ी लड़की जो घास गढ़ने का काम करती है, कोहरे को संबोधित करती हुई कहती है कि ए कोहरे! तू ऊँची-नीची पहाड़ियों में जाकर न लगो। इसके जवाब में कोहरा उस लड़की को सावधान करता हुआ कहता है कि तू ऊँची-नीची पहाड़ियों में न जाया कर। वह हिलांस नामक पक्षी को आगाह करते हुए कहता है कि वह ऊँची-नीची पहाड़ियों में अपना बसेरा न बनाया करे।
प्रश्न 3.
रूप सिंह मसूरी कैसे पहुँचा?
उत्तर :
रूप सिंह बताता है कि वह अपने परिवार वालों के साथ माही में रहा करता था। लगभग ग्यारह वर्ष पूर्व वहाँ पर्वतारोहण के प्रशिक्षण हेतु शेखर के पिता आए थे। वे रास्ता भटक गए थे। तभी उन्हें रूप सिंह की जरूरत महसूस हुई। रूप सिंह ने पहाड़ पार करने में चुस्ती दिखाई। वे इतने प्रसन्न हुए कि रूप सिह को अपने साथ मसूरी ले गए। वहाँ पर्वतारोहण प्रशिक्षण संस्थान में उसे चार हज़ार रुपये महीने की नौकरी पर रखवा दिया।
प्रश्न 4.
पहाड़ों की चढ़ाई और प्रेम की चढ़ाई में क्या अंतर है? शेखर रूप सिंह से क्या जानना चाहता है?
उत्तर :
पहाड़ों की चढ़ाई में व्यक्ति केवल शारीरिक बल का सहारा लेता है। वह पत्थरों की जाति के अनुसार ही चढ़ाई का तरीका अख्तियार करता है। प्रेम की चढ़ाई भावनात्मक मामला है। व्यक्ति का मन किसी के गुण विशेष को देखकर आकर्षित हो जाता है और वह उसे चाहने लगता है। शेखर रूप सिंह से जानना चाहता था कि क्या कभी रूप सिंह ने किसी लड़की से प्रेम किया है? उसके प्रेम की परिणति क्या हुई? वह उसके लिए क्या करता था? प्रेम में असफल होने पर वह क्या करता था?
प्रश्न 5.
‘राम और सीता की जोड़ी में मैं सिर्फ लक्ष्मण था।’ इस कथन के पीछे रूप सिंह की कौन-सी पीड़ा छिपी थी?
उत्तर :
रूप सिंह शैला से प्रेम करता था। वह इतनी सुंदर थी कि रूप सिंह उसकी गुलामी बजा लाने में ही स्वयं को धन्य मानता, परंतु शैला उसके भाई भूप सिंह से प्रेम करती थी। वह स्वेटर बुनती थी तो भूप सिह के लिए। वह उसके लिए ही फल, फूल, मांस और रोटी लेकर आती थी। जिस दिन भूप दादा न आते, तो उसे खुश करने की रूप सिंह की तमाम कोशिशें बेकार चली जाती थीं। इस वाक्य में रूप सिह के मन में पीड़ा छिपी थी कि वह शैला के लिए सब कुछ करने को तैयार था, परंतु शैला किसी दूसरे को चाहती थी।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘आरोहण’ कहानी का उद्देश्य बताइए।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी में लेखक ने पर्वतारोहण की जरूरत और वर्तमान समय में उसकी उपयोगिता को रेखांकित किया है। पर्वतीय प्रदेश के जीवन-संघर्ष तथा प्राकृतिक परिवेश से उनके संबंधों को चित्रित किया है। किस तरह पर्वतीय प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, पत्थरों के खिसकने से पूरा जीवन तथा समाज नष्ट हो जाता है, ‘आरोहण’ उसका जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेखक का आंचलिकता, प्राकृतिक परिवेश से आत्मीय लगाव उसे कहीं और जाने से रोकता है।
आरोहण पहाड़ी लोगों की जीवनचर्या का भाग है, कितु उन्हें आश्चर्य तब होता है जब यह पता चलता है कि वही आरोहण किसी को नौकरी भी दिला सकता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने पर्वतीय प्रदेश की बारीकियों, उनके जीवन के सूक्ष्म अनुभवों, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों, उनके संघर्षों, यातनाओं को संजीदगी के साथ रचा है। मैदानी इलाकों की तुलना में पर्वतीय प्रदेशों की ज़िदगी कितनी कठिन, जटिल, दुखद और संघर्षमय होती है, उसका विशद विवरण कहानी रूप में प्रस्तुत करना इस पाठ का उद्देश्य है।
प्रश्न 2.
पहाड़ों का रास्ता कैसा था? शेखर और रूप ने कैसे पहाड़ों को पार किया?
उत्तर :
पहाड़ों का रास्ता कठोर, पथरीला और अत्यंत दुर्गम था। रूप सिंह और शेखर को जहाँ बस छोड़कर गई थी, वहाँ से पंद्रह कोस दूर माही गाँव के लिए सड़क न थी। पैदल जाने का मतलब था, सबेरे दस बजे से चलकर शाम को पहुँचना। ऐसे दुर्गम पथ को पार करने के लिए उन्होंने किराए पर दो घोड़े लिए। घोड़ेवाला किशोर वय महीप नामक बालक था। वह घोड़ों के साथ-साथ पैदल चल रहा था तथा रास्ते में पड़ने वाले पर्वतों, नदियों, पथरीले रास्ते आदि पर घोड़ों को पुचकारता, निर्देश देता चल रहा था। रूप और शेखर ने इस सफर का आनंद उठाते, पहाड़ी गीत सुनते, सुंदर दृश्य देखते हुए पहाड़ों को पार किया।
प्रश्न 3.
गाँव के समीप आने पर रूप सिंह क्या सोच रहा था? उन्हें देख गाँववालों ने अपनी प्रतिक्रिया कैसे प्रकट की?
उत्तर :
गाँव करीब आता जा रहा था। वर्षों की बंद स्मृतियों के कपाट खुल रहे थे-एक ओर सुपिन, दूसरी ओर जंगल, पीछे हिमांग का ऊँचा पहाड़, नीचे होंगे अपने खेत, अपना घर, अपने लोग, बाबा, माँ, भूप दादा और सभी लोग। कितनी दूर है केदार काँठा, कितनी दूर है दुर्योंधन जी का मंदिर। ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन… बहुत पुराने लोगों में से किसी-किसी ने लाल पलटन के अंग्रेज़ों को देखा था, नयों ने नहीं।
सो दो गोरे संभ्रांत अजनबियों के आगमन पर गाँव के कुछ लोग अपने-अपने घरों से निकल आए थे। हालाँकि यह सितंबर का महीना था और दिन के अभी तीन ही बजे थे, मगर यहाँ ठंड काफी थी और लोगों ने ठंड से बचने के लिए ‘चुस्ती’ या ऊन का ‘लावा’ पहन रखा था। उनकी आँखों में भय, संशय और कौतूहल के भाव थे। रूप की नज़रें इनमें से एक-एक चेहरे को टटोल रही थीं।
प्रश्न 4.
रूप सिंह ने पहाड़ पर अपने घर को किस रूप में देखा?
उत्तर :
रूप ने देखा कि पहाड़ की पीठ पर कुछ दूर तक ज़मीन प्राय: समतल बनी हुई थी, जिसमें मकई की फसल खड़ी हुई थी। क्षेत्र के चारों ओर सेब और देवदार के पेड़ थे। सेब के पेड़ों में तो फल भी लगे हुए थे। पेड़ ज़्यादा दिनों के नहीं थे, यह देखने से ही लग रहा था। उसने गौर किया, ऐसे ही पेड़ नीचे भी कुछ दूर तक फैलते चले गए थे। पूरे क्षेत्र की परिक्रमा करता हुआ वह आधी दूरी तक पहुँचा होगा कि उसे एक गुफानुमा आश्रम दिखा।
उसी की बगल में दो छानी (छप्पर का झोपड़ा) भी। यही घर है शायद! एक छप्पर के नीचे एक औरत खड़ी थी, नाटी, गोरी, जवान, चुस्त और लाल फुल स्वेटर में। वह उसे हैरानी से घूर रही थी। उसने अनुमान लगाया कि यह भाभी हो सकती है, मगर झिझकवश आगे बढ़ गया। आगे हिमांग के ऊपर वाले अंश से कोई झरना झर रहा था, जो खेतों से गुज़रते हुए सूपिन में गिरता था।
प्रश्न 5.
‘आरोहण’ कहानी की मूल संवेदना क्या है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी पर्वतीय एवं अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में जीवन-यापन करने वालों के संघर्ष का आईना है, जिसमें यह साफ-साफ देखा जा सकता है कि वहाँ लोगों का जीवन कितना कठिन एवं संघर्षमय है। वहाँ रहने वाले अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी कितनी कठिनाई से पूरा करते हैं। वहाँ अत्यंत प्रतिकूल एवं विकट परिस्थितियों में रहकर जीवन बिताना होता है। वहाँ कोई भी मौसम उनके लिए अच्छा नहीं होता। सर्दी इतनी कि पूरे पहाड़ पर बर्फ की इतनी मोटी चादर बिछ जाती है कि इस बर्फ का भार पहाड़ भी नहीं उठा सकते हैं। वे दरकने लगते हैं, चट्टानें
खिसकने लगती हैं। ऐसे में घर-द्वार, खेत, बगीचे, नदियाँ, झरने तक नष्ट हो जाते हैं तो मनुष्य की औकात ही क्या! रास्ते इतने दुर्गम कि जो बच भी गया वह अपनों को मौत के मुँह में जाता देखने को विवश एवं असहाय रह जाता है। उनके सुख-दुख में भी शामिल होने से वंचित रह जाता है। भू-स्खलन के बाद शुरू होता है-अपनों को खोने का दुख और जिंदगी को पुन: पटरी पर लाने का संघर्ष। वर्षा ऋतु में एक तो भयंकर बरसात और दूसरे पहाड़ी ढलान पर पानी का बेगमय बहाव।
इस बहाव के मार्ग में जो भी आया-मनुष्य, खेत, पशु, पेड़-पौधे, शिलाएँ कभी तो गाँव के गाँव बहकर नदियों की गोद में ही शरण पाते हैं। इसके बाद भी वहाँ के निवासी अपने पर्वत-प्रेम के कारण उनसे मोह नहीं त्याग पाते हैं। इस प्रकार ‘आरोहण’ कहानी की मूल संवेदना भू-स्खलन से अपनों को खोने, जानमाल की क्षति के साथ ही वहाँ के निवासियों का अनुपम पर्वत प्रेम है, जिसे वे किसी भी हाल में छोड़ नहीं पाते हैं।
प्रश्न 6.
रूप भौतिक रूप से आगे बढ़कर भी स्वयं को अपने बड़े भाई भूपसिंह के सामने बौना क्यों महसूस करता था? आरोहण कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
ग्यारह साल पहले शेखर के पिता जी पहाड़ों पर ट्रेनिंग के लिए आए थे तथा रास्ता भटक गए थे। उस परिस्थति में रूपसिंह ने चुस्ती दिखाते हुए उन्हें पहाड़ पार कराया था। इस पर खुश होकर वे उसको अपने साथ मसूरी ले गए थे। रूप पिछले ग्यारह साल से उन्हीं के संरक्षण में था तथा पर्वतारोहण संस्थान में चार हजार रुपये मासिक पर नौकरी कर रहा था। नौकरी करने तथा शहर में रहने के कारण वह अपने बड़े भाई भूपसिंह की तुलना में भौतिक रूप से सबल था।
जबकि उसके बड़े भाई भूप दादा अपने छोटे भाई रूप के गाँव छोड़कर चले जाने के बाद गाँव में ही रहकर हर दुख-तकलीफ़ का सामना किए। उन्हें अपने गाँव, वहाँ की हर एक चीज़ से, यहाँ तक कि अपने पुरखों से भी गहरा लगाव है। वे अपने को अकेला नहीं मानते। उन्हें अपने परिवार से प्यार है। वे पहाड़ से दूर जाने को हरगिज तैयार नहीं हैं। उनकी चारित्रिक समृद्धि के आगे रूपसिंह की भौतिक स्मृद्धि कहीं भी नहीं ठहरती। इसी कारण रूप अपने बड़े भाई के सामने अपने को बौना महसूस कर रहा है।
प्रश्न 7.
‘आरोहण’ कहानी के आधार पर उन जीवन-मूल्यों पर प्रकाश डालिए, जो हमें भूपसिंह के जीवन से प्राप्त होते हैं।
उत्तर :
‘आरोहण’ कहानी पर्वतीय प्रदेश में रहने वाले लोगों के जीवन की कठोर सच्चाई पर प्रकाश डालती है। इसी भाग में भूपसिंह अपने छोटे भाई रूपसिंह के साथ रहता था। भूपसिंह अपने भाई को छोड़कर शहर भाग गया। इसके एक साल बाद पर्वत पर भयंकर बर्फबारी हुई, जिससे पर्वत धसक गया। इसी घटना में उसके माँ-बाप दब गए। भूपसिंह फिर भी किसी तरह बच गया।
इन प्रतिकूल परिस्थितियों में अपना जीवन बचाए रखने के लिए उसे कठोर संघर्ष करना पड़ा। उसने कठोर परिश्रम करते हुए थोड़ी-बहुत खेती-बाड़ी शुरू कर दी और एक झरने को मोड़कर खेत की ओर ले आया। ग्यारह साल बाद जब रूपसिंह वापस आया और भूपसिंह को शहर चलने के लिए कहने लगा, तो आत्मसम्मानित भूपसिंह इसके लिए तैयार न हुआ और पहाड़ पर ही जीवन बिताने का अपना अटल फैसला सुना दिया। अत्यंत परिश्रमी स्वभाव वाले भूपसिंह के जीवन से हमें निम्नलिखित जीवन-मूल्यों के दर्शन होते हैं –
- परिश्रमशीलता – पहाड़ पर जीवन आसान नहीं होता। भूपसिंह इसे जानते हुए वहाँ रहता है और परिश्रमपूर्ण जीवन बिताता है। वह पहाड़ काटकर खेत बना लेता है और झरने का रुख मोड़ देता है।
- आत्मसम्मान – भूपसिंह पहाड़ों पर संघर्ष करते हुए जीवन बिताने को राजी है, पर अपने भाई रूपसिंह के साथ शहर जाने की बात ठुकराकर अपना आत्मसम्मान बचाता है।
- जुझारूपन – भूपसिहह विपरीत परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानता है और जूझते हुए जीवन बिताता है। जीवन में सफलता पाने के इसी गुण के कारण वहाँ अपना अस्तित्व बचाए रखने में सफल रहता है।
- संतुष्टि – भूपसिंह जिस भी हालत में जी रहा था, वह उससे संतुष्ट था। वह अधिक सुख-सुविधाएँ पाने के लिए अन्यत्र नहीं जाना चाहता है। इससे उसके संतोषी होने का पता चलता है।
प्रश्न 8.
अत्यधिक बर्फबारी के कारण हिमांग पहाड़ नीचे धसक गया और भयानक प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा। वर्तमान में भी प्राकृतिक आपदाएँ अपने नाना रूपों में आती हैं। इनका कारण स्पष्ट करते हुए इनसे बचने के लिए आप लोगों को कैसे जागरूक करेंगे?
उत्तर :
भूपसिंह जिस पहाड़ पर रहता था, वहाँ अत्यधिक बर्फ गिरी। उसके भार से पहाड़ नीचे की ओर धसक गया। इस प्राकृतिक आपदा में खेल, घर, पेड़ धराशायी हो गए और मनुष्य एवं जानवरों की जानें गईं। वर्तमान में भी बाढ़, चक्रवाती तूफान, असमय वृष्टि आदि के रूप में प्राकृतिक आपदाएँ अपना कहर ढा रही हैं। इस कारण फसलों तथा जान-माल की बहुत क्षति हो रही है। इनका कारण प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का मुख्य कारण है-औद्योगीकरण एवं मानव का स्वार्थपूर्ण व्यवहार, जिसके कारण वह पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करता जा रहा है। इन आपदाओं से बचने के लिए हमें प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना चाहिए।
इसके लिए –
- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई रोकनी चाहिए।
- अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
- फैक्ट्रियों का अपशिष्ट पदार्थ एवं दूषित जल इधर-उधर नहीं फैलने देना चाहिए।
- औद्योगीकरण के समय प्राकृतिक संतुलन का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
- पहाड़ों को विस्फोट से नहीं उड़ाना चाहिए।
- पहाड़ी भागों पर जनसंख्या का बोझ नहीं बढ़ने देना चाहिए।
प्रश्न 9.
‘… पहाड़ धसक गया और अपने तीस नाली खेत, मकान, माँ-बाबा – सब दब गए मलबे में। मैं ही किसी तरह बच गया, छानी पर था इसलिए वहीं से तबाही देखी थी मैंने लाचार, असहाय,… कथन के आलोक में पहाड़ों पर प्रायः आने वाली प्राकृतिक आपदाओं तथा पहाड़-वासियों की जिजीविषा और साहस पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
…. पहाड़ धसक गया और अपने तीस नाली खेत, मकान, माँ-बाबा – सब दब गए मलबे में। मैं ही किसी तरह बच गया, छानी पर था इसलिए वहीं से तबाही देखी थी मैंने लाचार, असहाय …। इस कथन से पहाड़ और वहाँ के निवासियों की दिनचर्या हमारी आँखों के सामने साकार हो उठती है। पहाड़ ही इन लोगों के आवास होते हैं, जो अत्यंत विशाल और बज्र-से कठोर होते हैं। इन पहाड़ों, मौसम और प्रकृति की मार यहाँ रहने वालों का जीवन दुश्वार कर देती है।
कभी अनावृष्टि के कारण भूखों मरने की नौबत आ जाती है तो कभी अतिवृष्टि के कारण गाँव के गाँव बह जाते हैं। इस बहाव और भूस्खलन से उनके खेत, घर, पशु नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में पहाड़वासियों को ज़िदगी के पुराने ढर्रे पर लौटने में वर्षों लग जाते हैं। पहाड़ काटकर खेती करना, घर बनाना, पशुओं का इंतजाम करना आसान नहीं होता। ऐसे प्रतिकूल समय में भी पहाड़वासी अपनी जिजीविषा से प्राकृतिक आपदाओं पर विजय पाते हैं और इनसे घबराकर पलायन नहीं करते हैं। वे साहस की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत करते हुए जीने का रास्ता खोज ही लेते हैं।
प्रश्न 10.
शेखर और रूपसिंह जिन घोड़ों पर माही गाँव जा रहे थे, उन्हें लेकर एक नौ-दस वर्षीय बालक चल रहा था। यही उसकी आजीविका का साधन था। इसके माध्यम से किस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है? इससे बचने के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर :
शेखर और रूपसिह पहाड़ की गोद में बसे माही गाँव जाना चाहते थे। वहाँ तक पहुँचने का एकमात्र साधन घोड़े थे। उन दोनों के बुलाने पर एक नौ-दस वर्षीय बालक घोड़े लेकर आया और उन्हें लेकर गाँव की ओर चल पड़ा। घोड़ों द्वारा सैलानियों को गंतव्य तक पहुँचाना उसकी आजीविका थी। इससे उस क्षेत्र में कम आयु में काम कर जाने की विवशता और बाल मज़दूरी की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया है।
बच्चों की यह उम्र पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की होती है, काम करके आजीविका कमाने की नहीं। इस कच्ची उम्र में श्रमसाध्य काम करते देखकर उस क्षेत्र में व्याप्त बेरोज़गारी की ओर भी ध्यान जाता है। इस समस्या से बचने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय सुझाना चाहूँगा –
- ऐसे क्षेत्रों में रोज़गार के साधन विकसित किए जाने चाहिए, ताकि वहाँ की निर्धनता कम हो और बच्चों को काम पर न जाना पड़े।
- बाल मज़दूरी के प्रति लोगों में संवेदनशीलता एवं जागरूकता उत्पन्न करना चाहिए, जिससे लोग बच्चों को बाल श्रम करने से रोकें।
- बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी प्रयासों के अलावा स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
- बच्चों को रोज़गारपरक शिक्षा देनी चाहिए।
- शिक्षा के साथ बच्चों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जिससे वे पढ़ाई के अलावा कुछ पैसे भी कमा सकें।