In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 3 Summary – Yah Deep Akela, Maine Dekha, Ek Boond Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
यह दीप अकेला Summary – मैंने देखा, एक बूँद Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 3 Summary
यह दीप अकेला, मैंने देखा, एक बूँद – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ – कवि परिचय
प्रश्न : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अक्षेय’ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : जीवन परिचय-अज्ञेय का मूल नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन है। उन्होंने अज्ञेय नाम से काव्य-रचना की। उनका जन्म 07 मार्च, सन् 1911 में कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था, किंतु बचपन लखनऊ, श्रीनगर और जम्मू में बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेज़ी और संस्कृत में हुई। हिंदी उन्होंने बाद में सीखी। वे आरंभ में विज्ञान के विद्यार्थी थे। बी०एससी० करने के बाद उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी में प्रवेश लिया। क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ना पड़ा। वे चार वर्ष जेल में तथा दो वर्ष नज़रबंद रहे।
अक्षेय ने देश – विदेश की अनेक यात्राएँ कीं। उन्होंने कई नौकरियाँ कीं और छोड़ीं। कुछ समय तक वे जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर भी रहे। वे हिंदी के प्रसिद्ध समाचार साप्ताहिक ‘दिनमान’ के संस्थापक संपादक थे। कुछ दिनों तक उन्होंने ‘ नवभारत टाइम्स’ का भी संपादन किया। इसके अलावा उन्होंने ‘सैनिक’, ‘ विशाल भारत’, ‘प्रतीक’, ‘नया प्रतीक’ आदि अनेक साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। आज़ादी के बाद की हिंदी कविता पर उनका व्यापक प्रभाव है। उन्होंने सप्तक परंपरा का सूत्रपात करते हुए तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन किया। प्रत्येक सप्तक में सात कवियों की कविताएँ संगृहीत हैं जो शताब्दी के कई दशकों की काव्य-चेतना को प्रकट करती हैं। सन् 1987 में अजेय जी का देहावसान हो गया।
रचनाएँ – अज्ञेय ने साहित्य की अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई, जिनमें काव्य, कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, निबंध, आलोचना आदि प्रमुख हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
काव्य – भग्नदूत, चिंता, हरी घास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुए, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, सागर मुद्रा, अरी ओ करुणा प्रभामय, सुनहरे शैवाल। सभी कविताओं का संग्रह ‘सदानीरा’ नाम से दो भागों में प्रकाशित।
नाटक – उत्तर प्रियदर्शी।
उपन्यास – शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी।
यात्रा-वृत्तांत – अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली।
निबंध-संग्रह – त्रिशंकु, सबरंग।
कहानी-संग्रह – विपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप आदि।
काव्यगत विशेषताएँ – अजेय प्रकृति-प्रेम और मानव-मन के अंतद्वर्वद्वों के कवि हैं। उनकी कविता में व्यक्ति की स्वतंत्रत का आग्रह है और बौद्धिकता का विस्तार भी। उन्होंने शब्दों को नया अर्थ देने का प्रयास करते हुए हिंदी काव्य-भाषा का विकास किया है। अज्ञेय प्रतीकों के प्रयोग में कुशल थे। वे अपनी बात कहने के लिए सार्थक प्रतीकों का प्रयोग करते थे; जैसे –
‘किसी को
शब्द हैं कंकड़
कूट लो, पीस लो
छान लो, डिबिया में डाल दो’
कवि ने काव्य-भाषा में शब्दों को नया रूप दिया है। उन्होंने मुख्यतया संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया है, परंतु कहींकहीं अंग्रेज़ी, उर्दू आदि के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं; जैसे –
संस्कृतनिष्ठ शब्दावली :
‘तुम्हारे आहलाद से या दूसरों के,
किसी स्वैराचार से, अतिचार से,
X X X
यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर काल।’
कवि ने मुक्तछंद में रचना की है। इन्होंने शब्द व अर्थालंकारों के साथ सादृश्यमूलक अलंकारों का सार्थक व सुंदर प्रयोग किया है। मानवीकरण अलंकार का सुंदर इस्तेमाल है; जैसे –
मानवीकरण – ‘माँ है वह! इसी से हम बने हैं।
किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं।
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है। कवि शब्दों के माध्यम से पाठक के सामने चित्र खड़ा कर देता है; जैसे’पैर उखड़ेंगे। प्लवन होगा। ढहेंगे। सहेंगे। बह जाएँगे।
और फिर हम चूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते?’
इन्होंने सूक्तिपरक वाक्यों का प्रयोग किया है; जैसे-
‘स्वातंत्य जाति की लगन, व्यक्ति की धुन है।
बाहरी वस्तु यह नहीं, भीतरी गुण है।’
इन्होंने अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का अनायास प्रयोग किया है। मुहावरों व लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग किया है।
Yah Deep Akela Class 12 Hindi Summary
यह कविता अज्ञेय द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘बावरा अहेरी’ से ली गई है। इसमें कवि ऐसे दीप की बात करता है जो स्नेह भरा है, गर्व भरा है, मदमाता भी है, किंतु अकेला है। अहंकार का मद हमें अपनों से अलग कर देता है। कवि कहता है कि इस अकेले दीप को भी पंक्ति में शामिल कर लो। पंक्ति में शामिल करने से उस दीप की महत्ता एवं सार्थकता बढ़ जाएगी। दीप सब कुछ है, सारे गुण एवं शक्तियाँ उसमें हैं, उसकी व्यक्तिगत सत्ता भी कम नहीं है, फिर भी पंक्ति की तुलना में वह एक है, एकाकी है।
दीप का पंक्ति या समूह में विलय ही उसकी ताकत का, उसकी सत्ता का सार्वभौमीकरण है, उसके लक्ष्य एवं उद्देश्य का सर्वव्यापीकरण है। ठीक यही स्थिति मनुष्य की भी है। व्यक्ति सब कुछ है, सर्वशक्तिमान है, सर्वगुणसंपन्न है, फिर भी समाज में उसका विलय, समाज के साथ उसकी अंतरंगता से समाज मज़बूत होगा, राष्ट्र मज़बूत होगा। इस कविता के माध्यम से अज्ञेय ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ने पर बल दिया है। दीप का पंक्ति में विलय व्यष्टि का समष्टि में विलय है और आत्मबोध का विश्वबोध में रूपांतरण।
Maine Dekha, Ek Boond Class 12 Hindi Summary
यह कविता अजेय के काव्य-संग्रह ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ से ली गई है। इसमें कवि ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। यह क्षणभंगुरता बूँद की है, समुद्र की नहीं । बूँद क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है। क्षणभर का यह दृश्य देखकर कवि को एक दार्शनिक तत्व भी दिखने लग जाता है। विराट् के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से, नष्टशीलता के बोध से मुक्ति का अहसास है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन में क्षण के महत्व को, क्षणभंगुरता को प्रतिष्ठापित किया है।
यह दीप अकेला सप्रसंग व्याख्या
1. यह दीप अंकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है- गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा?
पनडुब्बा – ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा?
यह समिधा – ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।
यह अद्वितीय – यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित –
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
शब्दार्थ :
- स्नेह – तेल, प्रेम (affection)।
- मदमाता – मस्ती से भरा हुआ (intoxicated)।
- जन – मनुष्य (people)।
- कृती – भाग्यवान, कुशल (fortunate)।
- पनडुब्बा – गोताखोर, एक जलपक्षी जो पानी में डूब-डूबकर मछलियाँ पकड़ता है (a diver, a water fowl)।
- समिधा – हवन में प्रयोग की जाने वाली लकड़ी (wood used in Yajna)।
- बिरला – बहुतों में एक (unique)।
- विसर्जित – त्यागा हुआ (immersed)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग में संकलित कविता ‘यह दीप अकेला’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय हैं। इस कविता में कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ने पर बल दिया है।
व्याख्या – कवि ‘दीप’ को प्रतीक बनाकर अपने दृढ़ आत्मविश्वास तथा अस्मिता को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहता है कि यह दीप तेल से भरा हुआ है, परंतु अकेला है। इसमें गर्व है। गर्व के कारण यह मदमाता है, परंतु इसे भी पंक्ति में शामिल कर लो ताकि इसकी महत्ता भी बढ़ जाए। इसी तरह मनुष्य अकेला होता है। समाज के साथ जुड़कर उसकी उपयोगिता तथा महत्ता बढ़ जाती है। यह व्यक्ति है जो गीत गाता है।
यह व्यक्तिगत सत्ता है। इनके बिना कौन गीत गाएगा। यह गोताखोर है जो सच्चे मोती लाता है। इनके बिना भाग्य की चीजें कौन लाएगा। यह यज्ञ की सामग्री है। इस यज्ञ को कोई बिरला ही सुलगाता है। यह व्यक्ति अद्वितीय है। यह मेरा है। यह अपने-आप में त्यागा हुआ है। यह दीप अकेला है तथा तेल से भरा है। यह गर्व से चमकता है, इसे समूह में शामिल कर इसे महत्वपूर्ण स्थान दे दो।
विशेष :
- दीप का पंक्ति में विलय व्यष्टि का समष्टि में विलय है और आत्मबोध का विश्वबोध में रूपांतरण।
- ‘गाता गीत’, ‘दे दो’, ‘कौन कृती ?’ में अनुप्रास अलंकार है।
- मुक्त छंद है।
- खड़ी बोली में तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न : उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य –
कवि ने व्यक्ति की महत्ता स्वीकारते हुए समाज में मिलकर रहने को प्रेरित किया है।
समूह, संगठन में व्यक्ति की पूर्णता है। यह भाव प्रकट होता है।
काव्य-सौंदर्य –
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त सहज, सुबोध खड़ी बोली है।
- भाषा में प्रतीकात्मकता है। ‘दीप’, ‘व्यक्ति’ या ‘कवि’ का तथा ‘पंक्ति’, ‘समूह’ या ‘समाज’ का प्रतीक है।
- ‘गाता गीत’, ‘कौन कृति’, ‘दे दो ‘ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘स्नेह-तेल’ और ‘प्रेम’ दो अर्थ होने से श्लेष अलंकार तथा काव्यांश में अन्योक्ति एवं मानवीकरण अलंकार है।
- तुकांत शैली में छंदमुक्त रचना है।
2. यह मधु है- स्वयं काल की मौना का युग-संचय,
यह गोरस- जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,
यह अंकुर- फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,
यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुतः इसको भी शक्ति को दे दो।
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
शब्दार्थ :
- मधु – मिठास, शहद (honey)।
- काल – समय (time)।
- मौना – टोकरा (a big hamper)।
- गोरस – गाय का दूध तथा उससे निर्मित अन्य पदार्थ (butter milk)।
- कामधेनु – स्वर्ग की गाय (a mythical cow that fulfils desire when prayed)।
- पूत – पुत्र, संतान (son)।
- पय – दूध (milk)।
- तकता – ध्यान से देखता (to stare)।
- प्रकृत – प्रकृति से उत्पन्न (born from nature)।
- स्वयंभू – स्वयं से पैदा होने वाला (self begotten)।
- अयुत: – अलग, पृथक् (separate)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित कविता ‘यह दीप अकेला’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अक्षेय हैं। इस कविता में कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ने पर बल दिया है। इस व्यक्तिगत सत्ता में समस्त गुण, शक्तियाँ एवं असीम संभावनाएँ छिपी हैं।
व्याख्या – कवि अकेले जलने वाले दीप के माध्यम से स्वयं की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि दीप अर्थात् कवि के जीवन में भी मिठास है। उसका यह मिठासयुक्त जीवन युगों का अनुभव संचित किए हुए है। यह कामधेनु के अमृत तुल्य दूध से भरा है। यह निर्भय हो सूर्य को उसी प्रकार देखता है जैसे धरती को फोड़कर निकला अंकुर। यह दीप प्राकृतिक और स्वयं ही उत्पन्न हुआ ब्रह्मा के समान है और उन्हीं के जैसी काव्य रूपी सृष्टि की रचना करता है। जिस तरह सृष्टि रचना करके भी ब्रह्मा पृथक् रहते हैं उसी प्रकार यह दीप कवि भी अकेला है। इसे और अधिक सृजनात्मक शक्ति प्रदान करें। यह दीप गुणयुक्त तथा असीम संभावनाओं से युक्त है। अपने गुणों से गर्वित इस दीप को भी पंक्ति में शामिल कर लिया जाए।
विशेष :
- कवि कहता है कि व्यक्ति के समाज में मिलने से समाज मजबूत होता है।
- ‘जीवन कामध्रेनु’, ‘अमृत-पूत’ में रूपक अलंकार है।
- तत्सम शब्दयुक्त भाषा में नए बिंबों का प्रयोग है।
- भाषा खड़ी बोली में है, जिसमें लाक्षणिकता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-साँदर्य –
- स्नेहयुक्त दीप (कवि) असीम संभावनाओं से भरपूर तथा गुणवान है, फिर भी वह समाज या संगठन में रहने को ही पूर्णता मानता है।
- कवि में समष्टिवाद की भावना निहित है।
शिल्पसौंदर्य –
- सहज, सरल खड़ी बोली में तत्सम शब्दों की बहुलता है। भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
- ‘काल की मौना’ और ‘दे दो’ में अनुप्रास तथा ‘जीवन कामधेनु’ और ‘अमृत-पूत’ में रूपक अलंकार है।
- काव्यांश में अन्योक्ति और अतिशयोक्ति अलंकार है।
- तुकांत शैली में छंद-मुक्त रचना है।
- स्नेह के दो अर्थ-‘ तेल’ और ‘प्रेम’ हैं, अतः श्लेष अलंकार है।
3. यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा;
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कडुवे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो
यह दीय, अकेला, स्नेह भरा
हैं गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
शब्दार्थ :
- लयुता – छोटापन (insignificance)।
- कुत्सा – निंदा, घृणा (censure)।
- अवज्ञा – आज्ञा न मानना (disobey)।
- धुँध आते – धुएए से युक्त (smoky)।
- तम – अंधकार (darkness)।
- द्रवित – करुणायुक्त, भावपूर्ण (liquefied)।
- चिर – जागरूक-सदा से सजग (for a long time awakeful)।
- अनुरक्त – प्रेममय (attached in love)।
- उल्लंब – ऊपर को उठी हुई (risen)।
- अखंड – संपूर्ण व्यवधानरहित (integrated)।
- अपनापा – अपनापन (attachment)।
- जिज्ञासु – जानने की इच्छा रखने वाला (inquistive)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग में संकलित कविता ‘यह दीप अकेला’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय हैं। इस अंश में कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता के साथ जोड़ने पर बल देते हुए दीप को असीम संभवनाओं से भरपूर एवं गुणवान बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या – एकाकी दीप को स्वयं का प्रतीक बताते हुए कवि अन्जेय कहते हैं कि इस एकाकी दीप (स्वयं) में आत्मविश्वास भरा हुआ है। इसी आत्मविश्वास के कारण वह अपने छोटेपन (भुद्रता) में भी डगमगाया। अपने अकेलेपन की पीड़ा को उसने अकेले ही झेला है अर्थात् दुखों को स्वय सहन किया है। इस एकाकी दीप ने अपनी निंदा, अवहेलना, अपमान आदि को अपने हदय की गहराइयों में छिपाए हुए भी सहुद्यता और द्यालुता को नहीं छोड़ा है।
यह सदा से सजग, प्रेमभरी आँखों और उठी बाँहों वाला है जो हमेशा अखंड रहा है। यह एकाकी दीप (कवि) जिज्ञासु, बुद्धिमान और श्रद्धावान रहा है, अतः इसे भी भक्ति देकर अन्य दीपों की पंक्ति में सम्मिलित कर लेना चाहिए। इस एकाकी, स्नेहमय और गर्व से मदमाते दीप को भी पंक्ति अर्थात् समाज में जगह देकर समूह में शामिल कर लेना चाहिए।
विशेष :
- इस प्रतीकात्मक कविता में मानव के गुणों को बताते हुए समूह में ही उसकी पूर्णता मानी गई है।
- तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
- मुक्त छंद है, जिसमें नए बिंब हैं; जैसे-अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम।
- सामासिक शब्दों का प्रयोग है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सांदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य –
- काव्यांश में एकाकी दीप (कवि) के मानवीय गुणों का वर्णन है।
- कवि द्वारा गुणवान होते हुए भी एकाकी नहीं बल्कि समाज में रहने को प्राथमिकता देने का भाव प्रकट हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य –
- भाषा, तत्सम शब्दावलीयुक्त है, जिसमें खड़ी बोली के शब्दों का प्रयोग है।
- ‘पंक्ति’ समाज का तथा ‘एकाकी दीप’ कवि का प्रतीक है। अतः भाषा में प्रतीकात्मकता है।
- ‘दे दो’, ‘अपमान, अवज्ञा’, ‘सदा श्रद्धामय’ में अनुप्रास अलंकार है।
- स्नेह-तेल, प्रेम-श्लेष अलंकार तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।
- काव्यांश अन्योक्ति अलंकार का उदाहरण है।
- काव्यांश रचना छंदमुक्त तुकांत शैली में है।
मैंने देखा, एक बूँद सप्रसंग व्याख्या
मैने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से;
रंग गई क्षणभर
ढलते सूरज की आग से।
मुझ को दीख गया :
सूने विराद् के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से!
शब्दार्थ :
- आग – चमक, प्रकाश (shining)।
- दीख गया – दिखाई पड़ा (appeared)।
- सूने – सुनसान (desolate)।
- विराट् – बहुत बड़ा, ब्रह्म (vast, immense) ।
- उन्मोचन – मुक्त करना, ढीला करना (liberate)।
- नश्वरता – नाशशीलता (mortality)।
प्रसंग – प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग में संकलित ‘मैने देखा, एक बूँद’ शीर्षक के अंतर्गत निहित है। इसके रचयिता अझ्सेय हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में क्षण के महत्व को और जीवन की क्षणभंगुरता को प्रतिष्ठापित किया है।
व्याख्या – कवि सागर के झाग से उछली एक बूँद के क्षणभर के सार्थक जीवन का वर्णन करता हुआ कहता है कि सायंकालीन वातावरण में सागर किनारे बैठे कवि ने अचानक उछली उस बूँद को देखा जो सागर की लहरों के झाग से अलग होकर ऊपर उठी थी। उस उछली बूँद को सायंकालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणों ने सुनहरा रंग प्रदान किया, जिससे बूँद मोती के समान चमकने लगी। बूँद क्षणभर के लिए चमककर पुनः उसी विशाल सागर में समा गई। कवि ने बूँद के क्षणिक स्वर्णिम अस्तित्व को ही उसके जीवन की चरम सार्थकता माना।
बूँद के क्षणिक जीवन से कवि को आत्मबोध प्राप्त हुआ कि कवि स्वयं भी विराद् अथवा परमब्रह्म से अलग होकर इस संसार में शून्य हो गया है, परंतु वह भी यदि बूँद के समान क्षणभर के लिए उस परमब्रह्म के प्रति स्वयं को समर्पित कर दे तो वह उस परमब्रह्म के आलोक से नश्वर जीवन से मुक्त होकर क्षणभंगुरता से बच सकता है। जीवन के वही क्षण-विशेष उसके अस्तित्व को सार्थक बना देते हैं, जो परमब्रह्म के ज्ञान से आलोकित होते हैं।
विशेष :
- कवि ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता और क्षण के महत्व को बताया है।
- नए उपमानों का प्रयोग है; जैसे-ढलते सूरज की आग।
- मुक्त छंद है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-साँदर्य –
कवि के दार्शनिक विचार और उसकी आत्मानुभूति व्यक्त हुई है।
कवि ने बूँद के क्षणिक अस्तित्व को महत्वपूर्ण बताते हुए उसे मनुष्य के जीवन से जोड़ विराट् सत्ता अथवा परमब्रह्म से जुड़कर जीवन सार्थक बनाने के लिए प्रेरित किया है।
शिल्प-सौंदर्य –
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है, जिसमें भावाभिव्यक्ति क्षमता है।
- ‘ढलते सूरज की आग’ जैसे नए उपमानों का प्रयोग है।
- छंदमुक्त काव्य-रचना है।
- कवि आत्मबोध द्वारा जीवन की सत्यता का दर्शन करने का पक्षधर है।
- अत्यंत सुंदर दृश्य-बिंब उपस्थित है।
- भाषा प्रतीकात्मक है। यहाँ बूँद ‘क्षणभंगुर जीवन’ का तथा समुद्र ‘विराट् ब्रहमा ‘ का प्रतीक है।
- दृष्टांत एवं अन्योक्ति अलंकार हैं।