Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 19 यथास्मै रोचते विश्वम् to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 19 यथास्मै रोचते विश्वम्
Class 12 Hindi Chapter 19 Question Answer Antra यथास्मै रोचते विश्वम्
प्रश्न 1.
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है?
उत्तर :
लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है। जिस प्रकार प्रजापति ब्रह्मा जी समाज की रचना करते हैं, उसी प्रकार कवि उस समाज से असंतुष्ट होकर नए समाज की रचना करता है। वह अपने दृष्टिकोण से नए मानव-संबंध बनाता है। वह प्रजापति के समान ही सृजनकर्ता है। इसी कारण लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है।
प्रश्न 2.
‘साहित्य समाज का दर्पण है’-इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर :
लेखक इस धारणा को गलत बताता है कि साहित्य समाज का दर्पण है। वह कहता है कि यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न उठती। कवि को प्रजापति का दर्जा इसलिए दिया गया है, क्योंकि वह समाज को बदलने के लिए नए संसार की रचना करता है। बाल्मीकि ने भी अपने चरित्र-नायक में दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाकर नई सृष्टि की थी।
प्रश्न 3.
दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि प्रजापति की तरह नई सृष्टि करता है। इस कार्य से कवि नए संसार की रचना करता है। बाल्मीकि ने अपने चरित्र-नायक राम में अनेक दुर्लभ गुण दिखाए। उन्होंने नारद से ऐसे पात्र के बारे में पूछा तो नारद ने पहले यही कहा था कि “बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः”। कवि ने राम में आदमी और देवता के गुणों को मिलाकर समाज के समक्ष एक नया पात्र प्रस्त्तु किया।
प्रश्न 4.
‘साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है, वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्ताहित भी करता है’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
साहित्य जीवन से थके हुए मनुष्य के लिए विश्रामदायक रचनाएँ ही प्रस्तुत नहीं करता, अपितु उसे सतत् कम्म के लिए भी प्रेरित करता है। साहित्य पाठकों का मनोरंजन कर उन्हें जीवन के संघर्षों से आराम दिलाता है, कितु उसका उद्देश्य मात्र इतना ही नहीं है। सच्चा साहित्य मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों की कर्म-शक्ति को भी बढ़ाता है। साहित्य ठहराव नहीं, गति है, मनोरम सरोवर ही नहीं, नदी का कल-कल बहता जल है। वह अपनी रचनाओं में प्रेरणादायी तत्वों का सृजन कर जीवन-संघर्ष में बढ़-चढ़कर भाग लेने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 5.
‘मानव-संबंधों से परे साहित्य नहीं है’-कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
लेखक बताता है कि साहित्य-रचना में समाज आधार का काम करता है। उसकी कथा का आधार मानव-संबंध होते हैं। जब कवि उन मानव-संबंधों में कोई विसंगति देखता है तो वह नए संबंध बनाने के लिए नए पात्र रचता है। साहित्य में सदैव मानव को केंद्र बनाया गया है। रचनाकार किसी निर्जीव का वर्णन नहीं करता और न ही वह एकाकी जीवन का वर्णन करता है। वह सदैव रिश्तों को अपने साहित्य में स्थान देता है जो काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं।
प्रश्न 6.
पंद्रहवी-सोलहवीं सदी में हिंदी-साहित्य ने मानव-जीवन के विकास में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर :
पंद्रहवी-सोलहवीं सदी में हिंदी साहित्य ने सामंती पिंजड़े में बंद मानव-जीवन की मुक्ति के लिए वर्ण और धर्म के सींकचों पर प्रहार किए थे। कश्मीरी ललद्यद्, पंजाबी नानक, हिंदी सूर-तुलसी-मीरा-कबीर, बंगाली चंडीदास, तमिल तिरुवल्लुवर आदि-आदि ने आगे-पीछे समूचे भारत में उस जीर्ण मानव-संबंधों के पिंजड़े को झकझोर दिया था। इनकी वाणी ने पीड़ित जनता के मर्म को स्पर्शकर उसे नए जीवन के लिए बटोरा, उसे आशा दी, उसे संगठित किया और जहाँ-तहाँ जीवन को बदलने तथा संघर्ष के लिए आरंत्रित भी किया।
प्रश्न 7.
साहित्य के ‘पांचजन्य’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? ‘साहित्य का पांचजन्य’ मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर :
‘पांचजन्य’ श्रीकृष्ण का शंख है जो नए युग का आरंभ करता है। वह मनुष्य को नया करने की प्रेरणा देता है। साहित्य का पांचजन्य भी यही कार्य करता है। साहित्य का पांचजन्य मनुष्य को संघर्ष करके आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वह मनुष्य को भाग्य के सहारे बैठने और पराधीनता में रहने की प्रेरणा नहीं देता है। वह इस तरह के लोगों को प्रोत्साहित नहीं करता। वह उदासीन और कायरों को भी संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है। वह मनुष्य को प्रेरणा देता है कि हमें भविष्य के निर्माण में लगना चाहिए न कि अतीत का गुणगान करना चाहिए।
प्रश्न 8.
‘साहित्यकार के लिए स्रष्टा और द्रष्टा होना अत्यंत अनिवार्य है’-क्यों और कैसे?
उत्तर :
लेखक कहता है कि साहित्यकार के लिए द्रष्टा और स्रष्टा होना अनिवार्य है। यदि साहित्यकार मानव-संबंधों से संतुष्ट है तो वह नया कुछ नहीं कर पाता। जब वह समाज में संबंधों से असंतुष्ट हो जाता है तो पीड़ित मानव की वाणी को स्वर देता है। इसके लिए उसे नए चरित्रों की आवश्यकता होती है और वह सर्जक के तौर पर ही यह कार्य कर सकता है। वह समाज को परिवर्तित करने के लिए नए संबंध बनाता है। वह अपने साहित्य के माध्यम से बताता है कि समाज को किस दिशा में परिवर्तित करना है।
प्रश्न 9.
‘कवि-पुरोहित’ के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पुरोहित का कार्य यजमान को प्रेरित करना होता है। वह उनका उत्साह बढ़ाता है। यही कार्य साहित्यकार भी करता है। जब जनता परिवर्तन चाहने लगती है और उस परिवर्तन के लिए संघर्ष करने को तैयार हो जाती है तो उस समय कवि को पुरोहित के समान ही आगे बढ़कर जनता का उत्साह बढ़ाना चाहिए। उसका व्यक्तित्व भी पूरे वेग से तभी निखरता है। पुरोहित के रूप में कार्य करने से ही हिंदी साहित्य उन्नत और समृद्ध होकर भारत के जातीय सम्मान की रक्षा कर सकेगा।
प्रश्न 10.
सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) ‘कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें पर ऐसी आकृति ज़रूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं।’
(ख) ‘प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है, ऐसा यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई हैं।’
(ग) ‘इसके सामने निरुद्देश्य कला, विकृति, काम-वासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के सिद्धांत वैसे ही नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अंधकार।’
उत्तर :
(क) प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित निबंध ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ से अवतरित है। इसके लेखक प्रसिद्ध आलोचक, कवि रामविलास शर्मा हैं। यह निबंध ‘विराम चिद्न्’ नामक निबंध-संग्रह से उद्धृत है। इस निबंध में कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए, उसे कर्म के प्रति सचेत करते हुए बताया गया है कि सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि कवि मानवीय संबंधों से असंतुष्ट होकर नए पात्र बनाता है। वह उसमें दुर्लभ गुणों का समावेश करता है। कवि की यह रचना बिना आधार के नहीं होती। समाज के व्यक्ति उस रचना में अपनी हूबहू आकृति भले ही न देख पाएँ, परंतु ऐसी आकृति अवश्य देखते हैं जो उन्हें प्रिय है। वे ऐसी ही आकृति बनाना चाहते हैं। आशय यह है कि कवि जो रचना बनाता है, वह समाज की इच्छा के अनुरूप ही होती है।
(ख) प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित निबंध ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ से अवतरित है। इसके लेखक प्रसिद्ध आलोचक, कवि रामविलास शर्मा हैं। यह निबंध ‘विराम चिहून’ नामक निबंध-संग्रह से उद्धृत है। इस निबंध में कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए, उसे कर्म के प्रति सचेत करते हुए बताया गया है कि सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है।
व्याख्या – प्रजापति रूपी कवि अपने साहित्य के माध्यम से मानव-समाज के असंतोष और विकृतियों को उजागरकर उनका यथार्थ रूप समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है, जिसे सभी स्वीकारते हैं। उसकी यह प्रस्तुति गंभीर होती है। इसी सामाजिक यथार्थ को आधार बनाकर वह जिस कृति की रचना करता है, उसमें भविष्य के प्रति आशा की किरण छिपी रहती है, जिससे मानव-समाज उन्नति के पथ पर उत्तरोत्तर अग्रसर होता रहता है।
(ग) प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित निबंध ‘यथास्मै रोचते विश्वम्’ से अवतरित है। इसके लेखक प्रसिद्ध आलोचक, कवि रामविलास शर्मा हैं। यह निबंध ‘विराम चिहून’ नामक निबंध-संग्रह से उद्धृत है। इस निबंध में कवि की तुलना प्रजापति से करते हुए, उसे कर्म के प्रति सचेत करते हुए बताया गया है कि सामाजिक प्रतिबद्धता साहित्य की कसौटी है।
व्याख्या – भारतीय साहित्य की गौरवशाली परपरा के बारे में लेखक बताता है कि भारतीय साहित्य आत्मनिर्भरता व संघर्ष का पाठ पढ़ाता है। भारतीय साहित्यकारों के लिए बिना उद्देश्य की कला, विकृति, काम-वासनाएँ अहंकार, व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं है। ये सब उतने ही क्षणिक हैं जैसे सूर्य के सामने अंधकार नहीं ठहरता। लेखक ने छायावादी तथा प्रयोगवादी कवियों पर कटाक्ष किया है। वह साहित्य को समाज परिवर्तक मानता है।
भाषा-शिल्प –
प्रश्न 1.
पाठ में प्रतिबिंब-प्रतिबिंबित जैसे शब्दों पर ध्यान दीजिए। इस तरह के दस शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
खंडन-खंडित, प्रकाश-प्रकाशित, परिवर्तन-परिवर्तित, समर्थ-समर्धित, संगठन-संगठित, पीड़ा-पीड़ित, अंक-अंकित, आनंद-आनंदित, पुष्म-पुष्पित, फल-फलित।
प्रश्न 2.
पाठ में ‘साहित्य के स्वरूप’ पर आए वाक्यों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
- यदि साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न होती।
- मानव-संबंधों से परे साहित्य नहीं है।
- साहित्य का पांचजन्य समर भूमि में उदासीनता का राग नहीं सुनाता।
- मनुष्य जैसे है, उससे बढ़कर दिखाए जाते हैं-अरस्तू।
- बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणा:-नारद।
प्रश्न 3.
इन पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए :
(क) कवि की सृष्टि निराधार नहीं होती।
(ख) कवि गंभीर यथार्थवादी होता है।
(ग) धिक्कार है उन्हें जो तीलियाँ तोड़ने के बदले मज़बूत कर रहे हैं।
उत्तर :
(क) कवि नए संबंध बनाता है। इन संबंधों का आधार होता है। वह मानव-संबंधों से असंतुष्ट होकर नई रचना करता है।
(ख) इस पंक्ति का आशय है कि कवि गंभीर यथार्थ को देखता है। वह काल्पनिक जीवन की रचना नहीं करता। वह वास्तविक जीवन के परिवर्तित रूप को प्रस्तुत करता है।
(ग) लेखक कहता है कि सच्चा साहित्यकार पराधीनता को नष्ट करता है, परंतु ऐसे लोग निंदनीय हैं जो भारतीय जनता को पराधीनता तथा निराशा का पाठ पढ़ाते हैं।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 19 यथास्मै रोचते विश्वम्
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
कवि को विश्व से असंतोष क्यों है? वह अपनी संतुष्टि के लिए क्या करता है?
उत्तर :
कवि के असंतोष की जड़ मानव-संबंध है। वह अपने चारों ओर फैली हुई विकृतियों को देखकर दुखी होता है। वह अपनी संतुष्टि के लिए साहित्य-रचना करता है। वह अपनी कल्पना और इच्छा के अनुरूप यथार्थ जीवन में से ऐसे पात्र चुनता है, जो उसके आदर्शों को साकार रूप दे सकें। अपने आदर्श नायक के गुणों को अधिक उज्ज्वल करने के लिए वह खल-पात्रों का सृजन करता है।
प्रश्न 2.
कवि के लिए राम के साथ रावण का चित्रण क्यों आवश्यक हो जाता है?
उत्तर :
कवि यथार्थ जीवन को अपनी कथा का आधार बनाता है। वह राम के साथ रावण का चित्र न खींचे तो राम को गुणवान, वीर, कृतज्ञ, सत्यवान, दृढ़व्रत, चरित्रवान, दयावान, विद्वान आदि कैसे सिद्ध किया जा सकता था। चित्र के पाश्र्वभाग में काली छायाएँ भी दिखनी आवश्यक होती हैं। ऐसे में कवि के लिए राम के साथ रावण का चित्रण करना आवश्यक हो जाता है।
प्रश्न 3.
कवि काव्य की रचना किस भाँति करता है?
उत्तर :
कवि जब विश्व संबंधों से असंतुष्ट हो जाता है तो वह अपनी रुचि के अनुसार विश्व को बदलता है। वह यह भी बताता है कि उसे विश्व से असंतोष क्यों है। वह पात्रों के अच्छे व बुरे गुण साथ-साथ दिखाता है। वह वर्तमान यथार्थ को अपनी कृति का आधार बनाता है, जिसमें भविष्य के आशान्वित दृष्टिकोण समाया है जो मानव-समाज को उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर ले जाता है।
प्रश्न 4.
लेखक ने किस तरह के लोगों को धिक्कारा है?
उत्तर :
कवि ने उन लोगों को धिक्कारा है जो भारतभूमि में जन्म लेते हैं और साहित्यकार होने का दंभ करते हुए अपनी कृतियों में मानव-मुक्ति के गीत गाते हैं, कितु, भारतीय को पराधीनता तथा पराभव का पाठ पढ़ाते हैं। इन्हें समाज का सच्चा द्रष्टा नहीं कहा जा सकता है। वास्तव में ये समाज को अतीत की ओर ले जाने का काम कर समाज के लिए अहितकर सिद्ध होते हैं। ये अतीत की तरफ जाने वाले हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘प्रजापति कवि गंभीर यथार्थवादी होता है’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रजापति का दायित्व निभाने वाला कवि जीवन के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण रखता है। वह अपनी रचना के लिए विषय और सामग्री यथार्थ जीवन से ही चुनता है। उसकी रचना में चमकीले रंगों के साथ-साथ बगल में काली छायाएँ भी होती हैं जो यथार्थ जीवन से ही ली जाती हैं। कवि केवल सामयिक परिस्थितियों का चित्रण मात्र ही नहीं करता, अपितु अपने आदर्शानुरूप समाज-रचना का प्रयास भी करता है।
प्रश्न 2.
कवि के चित्र में चमकीले रंग और पाश्र्वभूमि की गहरी काली रेखाएँ-दोनों ही यथार्थ जीवन से उत्पन्न उत्तर कवि के चित्र में चमकीले रंग और पाश्वभभमि की काली गहरी रेखाएँ दोनों समाज में व्याप्त जीवन के लिए होते हैं।
उत्तर :
कवि अपने साहित्य में जो व्यक्त करता है, वह कपोल कल्पित नहीं होता, बल्कि वह तर्कसम्मत और यथार्थ जीवन पर आधारित होता है। कवि चित्रकार के समान शब्दों से चित्रों को अंकित करता है अर्थात् वह अपनी रचना में समाज के आदर्श और सुंदर रूप का ही चित्रण करता है। वह समाज के सामाजिक जीवन में यथार्थ रूप में फैले अच्छे-बुरे सभी प्रकार के चरित्रों को लेकर साहित्य रचता है।