In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary – Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Summary
गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात – भीष्म साहनी – कवि परिचय
प्रश्न :
भीष्म साहनी के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम तथा भाषा – शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
जीवन परिचय – भीष्म साहनी का जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में सन् 1915 में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में ही हुई। उन्होंने उर्दू और अंग्रेज़ी का अध्ययन स्कूल में किया। गवर्नमेंट कोलेज लहौर से उन्होंने अंग्रेज़ी साहिल्य में एम०ए० किया, तदुपरांत पंजाब विश्वविद्यालय से पी – एच०डी० की उपाधि प्राप्त की।
देश – विभाजन से पूर्व उन्होंने व्यापार के साथ – साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन का कार्य किया। विभाजन के बाद पत्रकारिता किया, इप्टा नाटक मंडली में काम किया, मुंबई में बेरोज्रगार भी रहे, फिर अंबाला के एक कॉलेज में तथा खालसा कोलेज, अमृतसर में अध्यापन से जुड़े। कुछ समय बाद स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का अध्यापन किया। लगभग सात वर्ष ‘विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’ मास्को में अनुवादक के पद पर भी कार्यरत रहे। रूस प्रवास के दौरान रूसी भाषा का अध्ययन और लगभग दो दर्ज़न रूसी पुस्तकों का अनुवाद उनकी विशेष उपलब्धि रही। लगभग ढाई वर्षों तक ‘ नई कहानियाँ’ का कुशल संपादन किया।वे प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो – एशियाई लेखक संघ से भी संबद्ध रहे। उनका निधन सन् 2003 में हुआ।
रचनाएँ – भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
कहानी – संग्रह – भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाड्चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन। उपन्यास – झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, नीलू नीलिमा नीलोफर। नाटक – माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बज़ार में, मुआवज़े।
बालापयोगी कहानियाँ – गुलेल का खेल।
‘तमस’ उपन्यास के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनके साहित्यिक अवदान के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली ने उन्हे ‘शलाका सम्मान’ से सम्मानित किया।
भाषा-शिल्प – उनकी भाषा में उर्दू शब्दों का प्रयोग विषय को आत्मीयता प्रदान करता है। उनकी भाषा – शैली में पंजाबी भाषा की सोंधी महक भी महसूस की जा सकती है। वे छोटे – छोटे वाक्यों का प्रयोग करके विषय को प्रभावी एवं रोचक बना देते हैं। संवादों का प्रयोग वर्णन में ताज़गी ला देता है। उनकी रचनाओं में दिन – प्रतिदिन प्रयोग की जाने वाली भाषा को आकर्षक रूप देकर अपनाया गया है तथा उर्दू और अंग्रेज़ी भाषा के शब्द सजीवता एवं सहजता बनाए रखते हैं। भाषा पात्रानुकूल है। यहाँ ‘जैसा देश वैसी बोली’ वाली स्थिति देखते ही बनती है।
Gandhi Nehru Aur Yasser Arafat Class 12 Hindi Summary
‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात’ प्रस्तुत पाठ की आत्मकथा ‘आज के अतीत’ का एक अंश है, जो कि एक संस्मरण है। इसमें लेखक ने किशोरावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के अपने अनुभवों को स्मृति के आधार पर शब्दबद्ध किया है। सेवाग्राम में गांधी जी का सान्निध्य, कश्मीर में जवाहरलाल नेहरू का साथ तथा फ़िलिस्तीन में यास्सेर अराफात के साथ व्यतीत किए गए चंद क्षणों को उन्होंने प्रभावशाली शब्द – चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। यह संस्मरण अत्यंत रोचक, सरस एवं पठनीय बन पड़ा है, क्योंकि भीष्म साहनी ने अपने रोचक अनुभवों को बीच – बीच में जोड़ दिया है। इस पाठ के माध्यम से रचनाकार के व्यक्तित्व के अतिरिक्त राष्ट्रीयता, देश – प्रेम और अंतर्राष्ट्रीय मैत्री जैसे मुद्दे भी पाठक के सामने उजागर हो जाते हैं।
लेखक के भाई बलराज, सेवाग्राम में रहते थे, जहाँ वे ‘नई तालीम’ पत्रिका के सह – संपादक के रूप में काम कर रहे थे। सन् 1938 में जिस साल कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन हुआ था। उसी साल कुछ दिन उनके साथ बिता पाने के लिए वह उनके पास चला गया था। रेलगाड़ी वर्धा स्टेशन पर रूकती थी। वहाँ से लगभग पाँच मील दूर सेवाग्राम तक का फ़ासला इक्के या ताँगे में बैठकर तय करना होता था। वह देर रात सेवाग्राम पहुँचा। लेखक अपने भाई से देर रात तक बातचीत करता रहा। भाई ने बताया कि गांधी जी प्रात: सात बजे घूमने निकलते हैं। उसने गांधी जी के साथ लेखक को अकेले जाने के लिए कहा। इस पर लेखक ने कहा, “मैं अकेला उनकी पार्टी के साथ कैसे जा मिलूँ? तुम भी साथ चलो।” अकेले साथ चलने के लिए तैयार हो गए।
दूसरे दिन लेखक तड़के ही उठ बैठा और कच्ची सड़क पर आँखें गाड़े गांधी जी की राह देखने लगा। ठीक सात बजे आश्रम का फाटक लाँघकर गांधी जी अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। उन पर नज़र पड़ते ही वह पुलक उठा। बलराज अभी भी बेसुध सो रहे थे। लेखक ने झिंझोड़कर उन्हें जगाया। आखिर, कदम बढ़ाते कुछ ही देर में वे गांधी से जा मिले। गांधी जी ने मुड़कर देखा। भाई ने आगे बढ़कर परिचय कराया। लेखक साथ चलने लगा।
गांधी जी के साथ डॉ० सुशीला नय्यर थी और गांधी जी के निजी सचिव महादेव देसाई थे। लेखक कभी आसपास देखता, कभी नज़र नीची किए ज़मीन की ओर तो कभी गांधी जी की धूल – भरी चप्पलों की ओर देखने लगता। वह गांधी जी से बात करना चाहता था, पर उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहुँ, फिर सहसा ही उसने रावलपिंडी का ज़क्र किया। गांधी जी रूक गए और उन्होंने लेखक से मिस्टर जॉन के बारे में पूछा।
लेखक ने जॉन साहब का नाम सुन रखा था। वे शहर के जाने – माने बैरिस्टर थे, मुस्लिम थे। संभवतः गांधी जी उनके यहाँ ठहरे होंगे। कभी – कभी गांधी जी, बीच में हँसते हुए कुछ कहते। वे बहुत धीमी आवाज़ में बोलते थे, लगता अपने – आप से बातें कर रहे हैं, अपने साथ ही विचार – विनिमय कर रहे हैं। उन दिनों को स्वयं भी याद करने लगे हैं। शीम्र ही वे सब आश्रम के अंदर जा रहे थे। लेखक सेवाग्राम में लगभग तीन सप्ताह तक रहा। उन दिनों एक जापानी ‘ भिक्षु’ अपने चीवर वस्त्रों में गांधी जी के आश्रम की प्रदक्षिणा करता। लगभग मील – भर के घेरे में, बार – बार अपना ‘गाँग’ बजाता हुआ आगे बढ़ता जाता। उसकी प्रदक्षिणा प्रार्थना के वक्त समाप्त होती, वह प्रार्थना – स्थल पर पहुँचकर बड़े आदरभाव से गांधी जी को प्रणाम करता और एक ओर बैठ जाता।
एक दिन दोपहर के समय लेखक आश्रम के बाहर निरुद्देश्य – सा टहल रहा था, तब सड़क के किनारे एक लड़के के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। खोखे के अंदर पंद्रहेक साल का एक लड़का, जो देखने में गाँव का रहने वाला जान पड़ता था, पड़ा हाथ – पैर पटक रहा था और हाँफता हुआ बार-बार कहे जा रहा था –
“मैं मर जाऊँगा, बापू को बुलाओ।” उसकी आवाज़ सुनकर गांधी जी आ गए। वह अपने नंगे बदन पर खादी की हलकी – सी चादर ओढ़े थे।
गांधी जी उसके पास आकर खड़े हो गए। उसके फूले हुए पेट की ओर नज़र गई, उस पर हाथ फेरा और बोले –
” ईख पीता रहा है ? इतनी ज्यादा पी गया ? तू तो पागल है!” उन्होंने उसे के (उल्टी) करने को कहा।
लड़का हाय – हाय करता हुआ नीचे उतरा और नाली के किनारे बैठ गया। गांधी जी उसकी पीठ पर हाथ रखे झुके रहे।
थोड़ी ही देर में उसका पेट हलका हो गया और वह हाँफता हुआ बैठ गया। हर दिन प्रात:, जिस कच्ची सड़क पर वे घूमने निकलते, उसके एक सिरे पर एक कुटिया थी, जिसमें एक रुग्ण व्यक्ति रहता था। संभवत: वह दिक् का मरीज़ था। गांधी जी हर दिन उसके पास जाते और उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करते। उनका वार्तालाप गुजराती भाषा में हुआ करता।
सन् 1938 के आसपास पंडित नेहरू काश्मीर यात्रा पर आए थे, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ था। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में, झेलम नदी पर, शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, सातवें पुल से अमीराकदल तक, नावों में उनकी शोभायात्रा देखने को मिली थी, जब नदी के दोनों ओर हज़्जोरों – हज़ार काश्मीर निवासी अदम्य उत्साह के साथ उनका स्वागत कर रहे थे। अद्भुत दृश्य था।
इस अवसर पर नेहरू जी को जिस बँगले में ठहराया गया था, वह लेखक के फुफेरे भाई का था। भाई ने उसे नेहरू जी की देखभाल करने के लिए कहा। दिनभर तो पंडित जी, स्थानीय नेताओं के साथ, जगह – जगह घूमते, विचार – विमर्श करते, बड़े व्यस्त रहते। एक दिन खाने की मेज़ पर बड़े लब्धप्रतिष्ठ लोग बैठे थे – शेख अब्दुल्ला, खान अब्दुल गफ़फफार खान, रामेश्वरी नेहरू, उनके पति आदि। बातोंबातों में कहीं धर्म की चर्चा चली तो रामेश्वरी नेहरू और जवाहरलाल जी के बीच बहस – सी छिड़ गई। जवाहरलाल ने फ्रांस के विख्यात लेखक, अनातोले द्वारा लिखित एक मार्मिक कहानी कह सुनाई।
पेरिस शहर में एक गरीब बाज़ीगर (नट) रहा करता था जो तरह – तरह के करतब दिखाकर अपना पेट पालता था और इसी व्यवसाय में उसकी जवानी निकल गई थी। क्रिसमस के पर्व पर पेरिस के बड़े गिरजे में पेरिस निवासी, सजे – धजे हाथों में फूलों के गुच्छे और तरह – तरह के उपहार लिए, माता मरियम को श्रद्धांजलि अर्पित करने गिरजे में आ रहे थे। गिरजे के बाहर गरीब बाज़ीगर हताश – सा खड़ा है, क्योंकि वह इस पर्व में भाग नहीं ले सकता। न तो उसके पास माता मरियम के चरणों में रखने के लिए कोई तोहफा है और न ही उस फटेहाल को कोई गिरजे के अंदर जाने देगा। सहसा उसने अपने करतबों से माता मरियम को खुश करने का उपाय ढूँढ़ा।
श्रद्धालुओं के जाने के बाद बाज़ीगर चुपके से अंदर घुस जाता है तथा अपने कपड़े उतारकर पूरे उत्साह के साथ करतब दिखाने लगता है। उसके हाँफमे की आवाज़ बड़े पादरी के कान में पड़ती है और वह यह समझकर कि कोई जानवर गिरजे के अंदर घुस आया है और गिरजे को दूषित कर रहा है, वह भागता हुआ गिरजे के अंदर आता है। बाज़ीगर को देखते ही वह तिलमिला उठता है। माता मरियम का इससे बड़ा अपमान क्या होगा ? आगबबूला, वह नट की ओर बढ़ता है कि उसे लात जमाकर गिरजे के बाहर निकाल दे। वह नट की ओर गुस्से से बढ़ ही रहा है तभी माता मरियम की मूर्ति अपनी जगह से हिलती है। माता मरियम अपने मंच पर से उतर आती हैं और धीरे – धीरे आगे बढ़ती हुई नट के पास जा पहुँचती हैं और अपने आँचल से हाँफते नट के माथे का पसीना पोंछती हुई, उसके सिर को सहलाने लगती हैं।
कहानी नेहरू जी के मुँह से सुनी। नेहरू जी का कमरा ऊपरवाली मंज़िल पर था। उस रात देर तक नेहरू जी चिट्ठियाँ लिखवाते रहे थे। सुबह लेखक ने अखबार उठा लिया और बरामदे में खड़ा नज़रसानी करने लगा। उसी समय सीढ़ियों पर किसी के उतरने की आवाज़ आई। वह समझ गया कि नेहरू जी उतर रहे हैं। उन्हें उस रोज़ अपने साथियों के साथ पहलगाम के लिए रवाना होना था।
लेखक ने फैसला किया कि वह अखबार पढ़ता रहेगा और तभी नेहरू जी के हाथ में देगा, जब वे माँगेंगे। इस बहाने कम – से – कम छोटा – सा वार्तालाप तो हो जाएगा। नेहरू जी हाथ में अखबार देखकर चुपचाप एक ओर खड़े रहे। वे शायद इस इंतज़ार में खड़े थे कि लेखक स्वयं अखबार उन्हें देगा। लेखक की टाँगें लरज़ने लगी थीं, डर रहा था कि नेहरू जी बिगड़ न उठें। फिर भी अखबार को थामे रहा। कुछ देर बाद नेहरू जी धीरे-से बोले –
“आपने देख लिया हो तो क्या मैं एक नज़र देख सकता हूँ?” सुनते ही लेखक पानी-पानी हो गया।
लेखक ने ट्यूनीसिया की यात्रा का वर्णन किया है। उन दिनों वह अफ्रो-एशियाई लेखक संघ में कार्यकारी महामंत्री था। ट्यूनीसिया की राजधानी ट्यूनिस में अफ्रो – एशियाई लेखक संघ का सम्मेलन होने जा रहा था। भारत से जानेवाले प्रतिनिधि मंडल में सर्वश्री कमलेश्वर, जोगिंदरपाल, बालू राव, अब्दुल बिस्मिल्लाह आदि थे। कार्यकारी महामंत्री के नाते वह अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन पहले पहुँच गया था। ट्यूनिस में ही उस समय लेखक संघ की पत्रिका ‘लोटस’ का संपादकीय कार्यालय हुआ करता था। एकाध वर्ष पहले ही पत्रिका के प्रधान संपादक, फैज़ अहमद फैज़ चल बसे थे। ट्यूनिस में ही फ़िलिस्तीनी अस्थायी सरकार का सदरमुकाम हुआ करता था। उस समय तक फ़िलिस्तीन का मसला हल नहीं हुआ था और ट्यूनिस में ही यास्सेर अराफ़ात के नेतृत्व में यह अस्थायी सरकार काम कर रही थी।
एक दिन प्रात: ‘लोटस’ के तत्कालीन संपादक ने बताया कि लेखक और उसकी पत्नी को उस दिन सदरमुकाम में आमंत्रित किया गया है। उनके पहुँचने पर यास्सेर अराफ़ात अपने दो – एक साथियों के साथ बाहर आए और उन्हें अंदर ले गए। वे बड़े कमरे में दाख़िल हुए। दाई ओर को लंबी – सी खाने की मेज़ पहले से लगी थी। उस पर पहले से ही एक बड़ा – सा भुना हुआ बकरा रखा था। यास्सेर अराफ़ात उनके साथ बैठ गए। धीरे – धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ। हमारा वार्तालाप सीमित विषयों पर था। फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैए की हमारे देश के नेताओं द्वारा की गई भर्त्सना, फिलिस्तीन आंदोलन के प्रति विशाल स्तर पर हमारे देशवासियों की सहानुभूति और समर्थन आदि। दो – एक बार जब गांधी जी और हमारे देश के अन्य नेताओं का ज़िक्र आया तो अराफ़ात बोले :
“वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।”
बीच – बीच में आतिथ्य भी चल रहा था। अराफ़ात लेखक और अन्य अतिथियों को फल छील – छीलकर खिला रहे थे। वे शहद की चाय भी बना रहे थे। जब भोजन का समय आया तो लेखक गुसलखाने गया, जब वह गुसलखाने में से बाहर निकला तो यास्सेर अराफ़ात तौलिया हाथ में लिए बाहर खड़े थे।
शब्दार्थ और टिप्पणी –
- तालीम – सीख, शिक्षा (education)।
- फ़ासला – दूरी (distance)।
- घुप्प – कुछ न दिखाई देने लायक गहरा (pitch – dark)।
- बतियाना – बातें करना (to talk)।
- आँख गाड़े – बहुत ध्यानपूर्वक (very attentively)।
- पुलक उठना – खुश हो जाना (to be happy)।
- उतावला – जल्दबाज़ी करने वाला (impatient)।
- सूझना – समझ में आना (to understand)।
- बैरिस्टर – वकील (lawyer)।
- विचार विनियम – विचारों का आदान – प्रदान (exchange of thoughts)।
- चीवर – बौद्ध भिक्षुओं का ऊपरी पहनावा (upper garment of Buddhist)।
- प्रदक्षिणा – परिक्रमा (circumambulation)।
- गुमनाम – गायब, नाम बदलकर रहना (having no name)।
- निरुद्देश्य – बिना काम का (without aim)।
- कै – वमन, उल्टी (vomiting)।
- हिदायत – निर्देश (instruction)।
- लेशमात्र – तनिक – सा (very less)।
- क्षोभ – गुस्सा, असंतोष (anger)।
- रुग्ण – रोगी (patient)।
- दिक् – टी॰बी०, तपेंदिक (tuberculosis)।
- अदम्य – जो दबाया न जा सके, प्रबल (unable to subdued)।
- हाथ बँटाना – सहायता करना (to help)।
- लब्धप्रतिष्ठित – प्रसिद्ध, ख्याति प्राप्त (famous)।
- गरमजोशी – उत्साहपूर्वक (warmth)।
- तुनककर – थोड़ा नाराज़ होकर (to be pettish)।
- मार्मिक – हृदय को छू लेने वाली (affecting the vital parts)।
- हताश – निराश (disappointed)।
- फटेहाल – गरीब (poor)।
- कौँध गया – अचानक मस्तिष्क में आया (suddenly struck in mind)।
- अभ्यर्थना – विनती, निवेदन (request)।
- अंगचालन – शरीर के भागों को हिलाना – डुलाना (to move parts of body)।
- तन्मयता – एकाग्रता (concentration)।
- दूषित – अपवित्र (corrupted)।
- चहेता – प्रिय (dear)।
- आगबबूला – गुस्से में भरकर (to be extremely angry)।
- दत्तचित्त – अत्यंत, ध्यानपूर्वक (very attentively)।
- नज्ञरसानी – दुष्टि डालना (to review)।
- बचकाना – बच्चों जैसी (like children)।
- हरकत – शरारत (naughtiness)।
- लरज़ना – कँपकँपाना (to oscillate)।
- पानी-पानी होना – बहुत लज्जित होना (to be ashamed)।
- एकाध-एक-दो (one or two)।
- सदरमुकाम – मुख्य कार्यालय (head office)।
- नेतृत्व – अगुवाई (leadership)।
- बुद्धिजीवी – विद्वान (learned person)।
- रवैया – व्यवहार (behaviour)।
- भर्त्सना – निंदा (admonition)।
- आतिथ्य – सेवा-सत्कार (hospitality)।
- अनथक – बिना थके (without tiring)।
- इत्मीनान – ध्यान से,आश्वस्त होकर (assurance)।
- झेंप – शर्म, संकोच (contraction)।
गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात सप्रसंग व्याख्या
1. ऐन सात बजे, आश्रम का फाटक लाँघकर गांधी जी अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। उन पर नज़र पड़ते ही में पुलक उठा। गांधी जी हू-ब-हू वैसे ही लग रहे थे जैसा उन्हें चित्रों में देखा था, यहाँ तक कि कमर के नीचे से लटकती घड़ी भी परिचित-सी लगी। बलराज अभी भी बेसुध सो रहे थे। हम रात देर तक बातें करते रहे थे। मैं उतावला हो रहा था, आखिर मुझसे न रहा गया और मैंने झिंझोड़कर उसे जगाया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘ गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ से उद्धृत है। इसके लेखक भीष्म साहनी हैं। इस अंश में लेखक ने किशोरावस्था में गांधी जी से हुई मुलाकात के अपने अनुभवों को व्यक्त किया है।
व्यख्या – लेखक ने गांधी जी से हुई मुलाकात के बारे में बताता है कि प्रतिदिन की भाँति सेवाग्राम में सुबह ठीक सात बजे आश्रम का फाटक लाँघकर गांधी जी अपने साथियों के साथ सड़क पर आ गए थे। जब लेखक ने उन्हें देखा तो वह बेहद प्रसन्न हो गया।
उसने देखा कि गांधी जी बिलकुल वैसे ही दिखाई दे रहे थे जैसे उसने उन्हें चित्रों में देखा था। उनकी कमर के नीचे एक घड़ी लटक रही थी जो परिचित-सी लग रही थी। इसे लेखक ने अनेक बार देखा था। उस समय तक लेखक के भाई बलराज गहरी नींद में सो रहे थे, क्योंकि दोनों भाई देर रात तक बातें करते रहे थे। लेखक गांधी जी से मिलने के लिए उतावला हो रहा था। वह स्वयं को रोक नहीं पाया और भाई को झिंझोड़कर उठाया ताकि गांधी जी के साथ-साथ चल रहे दल में शामिल हो सके और उनसे मुलाकात कर सके।
विशेष :
- गांधी जी की समयबद्ध दिनचर्या का वर्णन किया गया है।
- लेखक ने बाल मनोविज्ञान का सुंदर वर्णन किया है, जिसमें बाल सुलभ उत्क्कंठा, उतावलापन झलक रहा है।
- पुलक उठना, बेसुध सोना. उतावला होना आदि मुहावरों का प्रयोग भाषा की रोचकता में वृद्धि कर रहे हैं।
- भाषा मिश्रित शब्दावली युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
- भाषा प्रवाहमयी एवं भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।
2. “अरे, में उन दिनों कितना काम कर लेता था। कभी थकता ही नहीं था।…” हमसे थोड़ा ही पीछे, महादेव देसाई, मोटा-सा लट्ठ उठाए चले आ रहे थे। कोहाट और रावलपिंडी का नाम सुनते ही आगे बढ़ आए और उस दौरे से जुड़ी अपनी यादें सुनाने लगे और एक बार जो सुनाना शुरू किया तो आश्रम के फाटक तक सुनाते चले गए।
किसी-किसी वक्त गांधी जी, बीच में, हँसते हुए कुछ कहते। वे बहुत धीमी आवाज़ में बोलते थे, लगता अपने-आप से बातें कर रहे हैं, अपने साथ ही विचार विनिमय कर रहे हैं, उन दिनों को स्वयं भी याद करने लगे हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘ अंतरा भाग 2 ‘ में संकलित पाठ ‘ गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफात ‘ से उद्धृत है। इसके लेखक भीष्म साहनी हैं। इस अंश में लेखक ने किशोरावस्था में गांधी जी से हुई प्रथम मुलाकात के अनुभवों का वर्णन किया है।
व्याख्या – लेखक और गांधी जी के बीच परिचय होने के बाद जब लेखक ने रावलपिंडी का जिक्र किया तो गांधी जी उस समय की बातें सुनाने लगे। वे कहने लगे कि वे उस समय बहुत काम कर लेते थे। काम करने के बावजूद वे कभी थकते नहीं थे। लेखक के थोड़े ही पीछे महादेव देसाई भी आ रहे थे। उनके पास मोटा-सा लट्ठ था। जैसे ही उन्होंने कोहाट तथा रावलपिंडी का नाम सुना, वे आगे बढ़ आए। वे उस दौर से जुड़ी अपनी स्मृतियाँ सुनाने लगे। उन्होंने एक बार जो यादें सुनानी शुरू कीं, वे खत्म होने को नहीं आ रही थीं और वे आश्रम के फाटक तक चलती रहीं।
इस बातचीत में बीच-बीच में गांधी जी हँसते हुए कुछ कहते थे। उनकी आवाज़ बहुत धीमी थी। उनके बोलने से ऐसा लगता है मानो वे स्वयं से ही बातें कर रहे हैं। वे खुद के साथ ही विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। रावलपिंडी दौरे के दिनों के बारे में वे स्वयं भी कुछ बताने लगते हैं।
विशेष :
- महादेव देसाई गांधी जी के निजी सचिव थे। उन्होंने रावलपिंडी दौरे के बारे में विस्तारपूर्वक बताया।
- गांधी जी की वाक्कला के बारे में बताया गया है। उनकी रावलपिंडी दौरे की स्मृतियाँ तरोताज़ा हो उठीं।
- खड़ी बोली युक्त भाषा में प्रवाह है।
- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।
3. जब श्रद्धालु चले जाते हैं और गिरजा खाली हो जाता है तो बाजीगर चुपके से अंदर घुस जाता है, कपड़े उतारकर पूरे उत्साह के साथ अपने करतब दिखाने लगता है। गिरजे में अँधेरा है, श्रद्धालु जा चुके हैं, दरवाज़े बंद हैं। कभी सिर के बल खड़े होकर, कभी तरह-तरह अंगचालन करते हुए बड़ी तन्मयता के साथ, एक के बाद एक करतब दिखाता है, यहाँ तक कि हाँफने लगता है।
उसके हाँफने की आवाज़ बड़े पादरी के कान में पड़ जाती और वह यह समझकर कि कोई जानवर गिरजे के अंदर घुस आया है और गिरजे को दूषित कर रहा है, भागता हुआ गिरजे के अंदर आता है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक’ अंतरा भाग में संकलित पाठ ‘गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ से उद्धृत है। इसके लेखक भीष्म साहनी हैं। इस अंश में लेखक ने किशोरावस्था में नेहरू जी से अपनी पहली मुलाकात के अनुभवों को बताया है, जिसमें नेहरू जी एक फ्रांसीसी कथा सुना रहे हैं।
व्याख्या – नेहरू जी कथा सुनाते हुए कहते हैं कि वह बाज़ीगर क्रिसमस के अवसर पर माता मरियम के गिरजाघर जाता है, परंतु गरीब होने के कारण वह अंदर नहीं जा सकता। वह सब श्रद्धालुओं के जाने के बाद चुपचाप अंदर घुस जाता है। वहाँ वह अपने कपड़े उतारता है तथा अपने करतब पूरे उत्साह के साथ करने लगता है। इस समय गिरजे में अँधेरा होता है तथा सभी श्रद्धालु जा चुके हैं। गिरजाघर के दरवाज़े भी बंद हैं।
कलाकार कभी सिर के बल खड़ा होता है, कभी तरह-तरह से अंग-संचालन करता है। वह बड़ी तन्मयता के साथ एक के बाद एक करतब दिखाता है। इस कार्य से वह हाँफने लगता है। उसकी हाँफने की आवाज़्त बड़े पादरी के कान में पड़ जाती है। पादरी को लगता है कि कोई जानवर गिरजे के अंदर घुस आया है। जानवर गिरजे को अपवित्र कर देगा, यह सोचकर वह भागता हुआ गिरजे में आता है ताकि उस जानवर को भगाकर गिरजाघर को अपवित्र होने से बचा सके।
विशेष :
- गद्यांश में माता मरियम के प्रति गरीब बाज़ीगर की आस्था एवं श्रद्धा का वर्णन है।
- गरीब बाज़ीगर के अपनी कला-कौशल से माता की अभ्यर्थना करने का भाव अभिव्यक्त हुआ है।
- भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमय भी है, जिसमें मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
- गद्यांश वर्णनात्मक शैली में है, जिसमें दृश्य-बिंब उपस्थित है।
4. धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ। हमारा वार्तालाप ज़्यादा दूर तक तो जा नहीं सकता था। फिलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैए की हमारे देश के नेताओं द्वारा की गई भर्त्सना, फिलिस्तीन आंदोलन के प्रति विशाल स्तर पर हमारे देशवासियों की सहानुभूति और समर्थन आदि। दो-एक बार जब मेंने गांधी जी और हमारे देश के अन्य नेताओं का ज़िक्र किया तो अराफ़ात बोले –
“वे आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं। उतने ही आदरणीय जितने आपके लिए।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग में संकलित पाठ ‘ गांधी, नेहरू और यास्सेर अराफ़ात’ से उद्धृत है। इसके लेखक भीष्म साहनी हैं। इस अंश में यास्सेर अराफ़ात से मुलाकात के अनुभवों को अभिव्यक्त किया है, जिसमें भोज के समय हुई बातचीत का वर्णन है।
व्याख्या – लेखक ने यास्सेर अराफ़ात के साथ मुलाकात का वर्णन करते हुए बताया कि लेखक व उसकी पत्नी को भोजन पर यास्सेर अराफात ने बुलाया। धीरे-धीरे बातें शुरू हो गई। उनकी बातचीत का विषय अधिक दूर तक नहीं पहुँचा। उनकी बातचीत के मुख्य विषय थे-भारत के नेता फ़िलिस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण व्यवहार की निंदा करते थे। भारत में फ़िलिस्तीन आंदोलन के प्रति बड़े स्तर पर सहानुभूति थी। भारतीय उनके संघर्ष का समर्थन करते थे। बातचीत के दौरान लेखक ने एक-दो बार गांधी जी तथा देश के अन्य नेताओं का भी ज़िक्र किया। गांधी जी के बारे में यास्सेर अराफ़ात ने कहा कि वे केवल आपके ही नहीं, हमारे भी नेता हैं, जितना सम्मान आप उनका करते हैं, उतना ही सम्मान हम भी करते हैं।
विशेष :
- फ़िलिस्तीन के प्रति भारतीयों की भावना उल्लेख है। वे फ़िलिस्तीनी संघर्ष के समर्थक हैं। इससे गांधी जी की विश्व प्रसिद्धि का भी बोध होता है।
- यास्सेर अराफ़ात की गांधी जी के प्रति भावना का पता चलता है।
- खड़ी बोली युक्त भाषा प्रवाहमयी है।
- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।