In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 10 Summary – Ramchandra Chandrika Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
रामचंद्रचंद्रिका Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 10 Summary
रामचंद्रचंद्रिका – केशवदास – कवि परिचय
प्रश्न :
केशवदास का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए तथा उनकी काव्य-भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-केशवदास का जन्म सन् 1555 में बेतवा नदी के तट पर स्थित ओड़छा नगर में हुआ, ऐसा माना जाता है। ओड़छापति महाराज इंद्रजीत सिंह उनके प्रधान आश्रयदाता थे, जिन्होंने 21 गाँव उन्हें भेंट में दिए थे। उन्हें वीरसिंह देव का आश्रय भी प्राप्त था। वे साहित्य और संगीत, धर्मशास्त्र और राजनीति, ज्योतिष और वैद्यक सभी विषयों के गंभीर अध्येता थे। केशवदास की रचना में उनके तीन रूप-आचार्य, महाकवि और इतिहासकार दिखाई पड़ते हैं।
आचार्य का आसन ग्रहण करने पर केशवदास को संस्कृत की शास्त्रीय पद्धति को हिंदी में प्रचलित करने की चिंता हुई जो जीवन के अंत तक बनी रही। केशवदास ने ही हिंदी में संस्कृत की परंपरा की व्यवस्थापूर्वक स्थापना की थी। उनके पहले भी रीतिग्रंथ लिखे गए, पर व्यवस्थित और सर्वांगपूर्ण ग्रंथ सबसे पहले उन्होंने प्रस्तुत किए। उनकी मृत्यु सन् 1617 ई० में हुई।
रचनाएँ – उनकी प्रमुख प्रामाणिक रचनाएँ हैं-रसिक प्रिया, कवि प्रिया, रामचंद्रचंद्रिका, वीर चरित्र, वीरसिंह देव चरित, विज्ञान गीता, जहाँगीर जसचंट्रिका आदि। रतनबावनी का रचनाकाल अज्ञात है, किंतु उसे उनकी सर्वप्रथम रचना माना जाता है।
काव्यगत विशेषताएँ – केशव की भाषा ब्रज भाषा है। वे बुंदेल के रहने वाले थे। इस कारण से उस क्षेत्र की भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग पाया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके परिवार में संस्कृत भाषा बोली जाती थी। इसलिए संस्कृत शब्दावली का प्रयोग भी मिलता है। केशव ने चमत्कार और अलंकारप्रियता के मोह के कारण भाषा को तोड़-मरोड़कर कठिनता उत्पन्न की है। ब्रजभाषा को काव्य एवं काव्यशास्त्रीय भाषा बनाने में इस कवि के योगदान को याद किया जाता है।
केशव ने भृंगार रस को अधिक महत्व दिया है। श्रृंगार रस को रसराज सिद्ध करने के प्रयास में अनेक स्थलों पर रस-दोष उत्पन्न हो गया है। शृंगार-वर्णन में कहीं-कहीं केशव संयम और मर्यादा का उल्लंघन कर बैठे हैं। इसके अलावा वीर, भयानक, वत्सल, रौद्र रस भी उनके काव्य में मिलते हैं। महाकवि केशव अपनी अनूठी संवाद-योजना के लिए भी प्रसिद्ध हैं। उनकी संवाद-योजना के वाक्चातुर्य, व्यंग्य, भावानुकूल छंद-विधान नाटकीयता आदि तत्व विशेष बनाते हैं। इन्हें कठिन काव्य का प्रेत भी कहा जाता है।
Ramchandra Chandrika Class 12 Hindi Summary
इस पुस्तक में उनकी प्रसिद्ध रचना ‘रामचंद्रचंद्रिका’ का एक अंश दिया गया है, जिसमें केशवदास ने माँ सरस्वती की उदारता और वैभव का गुणगान किया है। माँ सरस्वती की महिमा का ऐसा वर्णन ऋषि, मुनियों और देवताओं के द्वारा भी संभव नहीं है। दूसरे छंद सवैया में कवि ने पंचवटी के माहात्म्य का सुंदर वर्णन किया है।
अंतिम छंद में रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा किया गया श्रीरामचंद्र जी के गुणों का वर्णन है। वह रावण को समझाती हुई कह रही है कि राम का वानर हनुमान समुद्र को लाँघकर लंका में आ गया और तुमसे कुछ करते नहीं बना। इसी प्रकार तुमसे लक्ष्मण द्वारा खींची गई धनुरेखा भी पार नहीं की गई थी। तुम श्रीराम के प्रताप को पहचानो।
रामचंद्रचंद्रिका सप्रसंग व्याख्या
1. दंडक
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
पति बर्ने चारमुख पूत बर्ने पाँचमुख नाती बर्ने षटमुख तदपि नई नई ।।
शब्दार्थ :
- बानी – सरस्वती (goddess of knowledge)।
- बखानी जाइ – वर्णन किया जाय (could be explained)।
- मति – बुद्धि (wisdom)।
- उदित – उदय होना (to arise)।
- भई – हुई (became)।
- सिद्ध – महापुरुष, ज्ञानी (an accomplished man)।
- रिषिराज – ऋषियों के राजा (king of seers)।
- तपबृद्ध – बड़े-बड़े तपस्वी (great tapaswi)।
- कहि-कहि हारे – बता-बता हार गए (told again and again)।
- काहू – कोई (any)।
- लई – सका (could)।
- भावी – भविष्य (future)।
- बखानत है – प्रशंसा करता है (to appreciate)।
- क्यों हूँ ना – क्यों नहीं (why not)।
- पति – स्वामी (husband)।
- चारमुख – ब्रह्मा जी (God Brahma, who has four mouths)।
- पाँचमुख – शिव जी (lord Shivaji)।
- षटमुख – कार्तिकेय (Kartikeya son of Shivaji)।
- तदपि – तब भी (yet)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश केशवदास द्वारा रचित रामचंद्रचंद्रिका महाकाव्य से उद्धृत है। कवि ने इस दंडक में वाणी की देवी सरस्वती की उदारता और अतुलित महिमा का गुणगान किया है। सरस्वती की महिमा का गुणगान देवतागण भी नहीं कर सके।
व्याख्या – ज्ञान की देवी सरस्वती की महिमा एवं उदारता का गुणगान करते हुए कवि कहता है कि इस संसार की रानी ज्ञान की द्वी सरस्वती की उदारता का वर्णन करने की शक्ति किसी में नहीं है, क्योंकि किसी में इतनी बुद्धि नहीं है जो उदारता को बखान सके। देवगण, सिद्ध पुरुष, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, तपस्वी इनकी उदारता का वर्णन करते-करते हार गए, पर उन सबसे यह कार्य न हुआ।
केशवदास कहते हैं कि देवी सरस्वती की उदारता का वर्णन अतीत या भूतकाल में हुआ था, वर्तमान काल में किया जा रहा है और आने वाले समय में उनका गुणगान किया जाएगा, परंतु यह कार्य न पूरा हुआ है और न पूरा होगा। मनुष्यों की क्या बात करें स्वयं उनके पति बहमा, पुत्र शिवजी और नाती कार्तिकेय क्रमशः चार, पाँच और छह मुखों से वर्णन करते हैं, परंतु वे भी पूरी तरह सफल नहीं होते, क्योंकि देवी सरस्वती की उदारता और महिमा में नित नई-नई नवीनता बढ़ती जाती है। भाव यह है कि सरस्वती की उदारता का वर्णन करने की सामर्य्य किसी में नहीं है।
विशेष :
- सरस्वती (वाणी) की महिमा कही गई है। सरस्वती अर्थात् वाणी के अनेक रूप हैं। इसे संपूर्ण रूप में प्राप्त नहीं कर सकते।
- ब्रज भाषा का माधुर्य विद्यमान है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सांदर्य :
- वारदेवी सरस्वती की उदारता और महिमा का गुणगान किया गया है।
- सरस्वती की उदारता का वर्णन मनुष्य क्या देवता भी नहीं कर सकते हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
- काव्य-रचना दंडक छंद में है।
- शांत रस घनीभूत है।
- माधुर्य एवं प्रसाद् गुण है।
- ‘नई-नई’ में पुनरुक्ति प्रकाश, दूसरी पंक्ति में विशेषोक्ति और अतिम पंक्ति में यमक अलंकार है।
- काव्यांश में अतिशयोक्ति अलंकार तथा अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
- अभिधा शब्द-शक्ति में सफल अभिव्यक्ति है।
2. लक्मण-उर्मिला
सब जाति फटी दुख की दुयटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी चटी।
अघओष की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी।
चहुँ ओरानि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी जटी पंचबटी।।
शब्दार्थ :
- जाति फटी – फट जाती है (to be torn)।
- दुपटी – चादर (a sheet)।
- घटी – घड़ी (a few minute)।
- निघटी रूचि – रुचि घट जाती है (to be uninteresting)।
- मीचु – मृत्यु (death)।
- घटी – कम हो गई है (decrease)।
- जगजीव – सांसारिक प्राणी (worldly creature, man)।
- जतीन – योगी (an ascetic)।
- चटी – योगावस्था (a condition of meditation) ।
- अघओघ – पाप-पुंज (heap of sin)।
- बेरी – बेड़ी (iron fetters for the legs)।
- बिकटी – कठोर (hard)।
- गटी – गठरी (a bundle)।
- मुक्तिनटी – मोक्ष रूपी नटी (a female actor same as salvation)।
- धूरजटी – शिव (Lord Shiv)।
प्रसंग – यह छंद केशवदास के महाकाव्य ‘रामचंद्रचंद्रिका’ से उद्धृत है। राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष के लिए वन चले गए। उन्होंने पंचवटी में एक कुटिया बनाई। वह पंचवटी कैसी थी ? इसका वर्णन केशवदास जी ने यहाँ किया है।
व्याख्या – पंचवटी की सुंदरता का वर्णन करते हुए लक्ष्मण कहते हैं कि यह पंचवटी ऐसा स्थल है, जहाँ दुख की चादर पूरी तरह फट जाती है अर्थात् वहाँ सभी प्राणियों के दुख मिट जाते हैं। पंचवटी में कपटी व्यक्ति एक घड़ी भी नहीं रह सकता, क्योंकि यहाँ के सौंदर्य से उस व्यक्ति के मन में सात्विक भाव पैदा हो जाते हैं। वहाँ निर्लज्ज मृत्यु की रुचि पूर्णतया घट गई है अर्थात् वहाँ मृत्यु की पहुँच नहीं। पंचवटी में आकर जगत् के जीवों और संन्यासियों की ज़िद्गी की मंज़ल पूरी हो जाती है अर्थात् वे जीवनमुक्त हो जाते हैं।
पंचवटी तो ऐसी है, जहाँ अघओघ यानी पापों की राशि की विकट बेड़ी कट जाती है अर्थात् यहाँ आने से व्यकित पापों के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसके निकट जाने पर गुरु-ज्ञान की गठरी प्रकट होने लगती है। इसके चारों ओर मुक्ति रूपी नटी नाचती दिखाई देती है। इस पंचवटी में धूरजटी (शिव) की जटा का गुण विद्यमान है अर्थात् यह मोक्ष स्थल है, जहाँ व्यक्ति सांसारिकता, पाप, जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति पा जाता है।
विशेष :
- पंचवटी माहात्म्य का वर्णन है।
- ‘मुक्तिनटी’ में रूपक अलंकार है।
- ब्रज भाषा का माधुर्य विद्यमान है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- पंचवटी की सुंदरता कपटी व्यक्ति में सात्विक भाव उत्पन्न करने में सक्षम है।
- पंचवटी शिवदर्शन के समान ही मोक्षदायी स्थल है, जहाँ व्यक्ति सांसारिकता से मुक्ति पा जाता है।
शिल्प-सॉद्य :
- काव्यांश में ब्रजभाषा का माधुर्य विद्यमान है।
- शांत रस एवं माधुर्य गुण विद्यमान है।
- स्वर मैत्री एवं लयात्मकता हैं।
- अभिधा शब्द-शक्ति से कथन में सहजता है।
- काव्यांश सवैया छंद में रचित है।
- ‘दुख की दुपटी’ और ‘मुक्तिनटी’ में रूपक अलंकार, अंतिम पंक्ति में मानवीकरण अलंकार, ‘घटी-घटी-घड़ी’ और ‘घट गई’ में यमक अलंकार और अनुप्रास अलंकार की छटा है।
3. अंगद
सिंधु तर यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँधोई बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी।
श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी॥
शब्दार्थ :
- सिंधु – सागर (sea)।
- तर यो – पार कर जाना (to go across)।
- धनुरेख – धनुष से बनाई गई रेखा (लक्षणणरेखा) (a line drawn by bow, Laxman Rekha)।
- बाँधोई – बाँधते हुए (to arrest)।
- बारिधि – समुद्र (ocean)।
- बाट करी – रास्ता बना लिया (made the path)।
- दसकंठ – रावण (Ravana)।
- न जानि परी – समझ नहीं सके (could not understand)।
- तूलनि – रुई (cotton)।
- जराइ-जरी – सोने और रत्नों से जड़ी (studded with gold and jewels)।
प्रसंग – प्रस्तुत सवैया छंद केशवदास रचित ‘रामचंद्रचंद्रिका’ से उद्धृत है। रावण की पत्नी मंदोदरी को राम की शक्ति और वीरता का ज्ञान था। वह रावण को राम से युद्ध न करने के लिए समझा रही थी, परंतु मदांध रावण उसकी एक भी सुनने को तैयार न था। वह राम की महिमा का गुणगान करते हुए रावण पर आक्षेप करती है।
व्याख्या – मंदोदरी रावण को राम की महिमा से अवगत कराती हुई कहती है-अरे रावण! राम के एक दूत हनुमान ने समुद्र पार कर लिया, परंतु तुम सीता-हरण के समय, लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा भी पार नहीं कर सके। अतः तुम राम का क्या मुकाबला करोगे ? तुमने राम के दूत को बाँधने की चेष्टा की, फिर भी उसे न बाँध सके, परंतु राम ने तो सागर पर बाँध बनाकर सड़क बना ली। अरे दसकंठ रावण! तुझे राम की शक्ति की बात अभी भी समझ में नहीं आ रही। तुमने हनुमान की पूँछ में रुई लपेटकर और तेल डालकर आग लगाई, फिर भी तुम उसे न जला सके, परंतु वही हनुमान तुम्हारी लंका को जलाकर चला गया।
विशेष :
- रावण को राम की शक्ति और उनकी महिमा से अवगत कराया गया है।
- ब्रज भाषा का माधुर्य विद्यमान है।
- रामकथा से संबंधित प्रमुख घटनाओं को छुआ गया है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सॉंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- श्रीराम की शक्ति और महिमा का ज्ञान रावण को कराने का भाव प्रकट है।
- मंदोदरी द्वारा रावण के झूठे दंभ का मर्दन और हठधर्मिता त्यागने का आग्नह किया गया है।
शिल्प-सौंदर्य :
- ब्रजभाषा का माधुर्य विद्यमान है।
- ‘सवैया’ छंद की इस रचना में ‘वीर रस’ घनीभूत है।
- मंदोदरी के कथन में व्यंग्यात्मकता का भाव है।
- तद्भव शब्दो की बहुलता है।
- ओज गुणयुक्त रचना में तुकांत है।
- ‘तेलनि तूलनि’, ‘जरी न जरी’, ‘जराइ जरी’, ‘बारिधि बाँधिकै बाट’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘दसकंठ’ सामासिक शब्द है जो रावण के लिए प्रयुक्त है।
- ‘जरी लंक जराइ-जरी’ में जरी-जल गई और जरी-जड़ी हुई होने से यमक अलंकार है।