Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 1 देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 1 देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत
Class 12 Hindi Chapter 1 Question Answer Antra देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत
(क) देवसेना का गीत –
प्रश्न 1.
“ममैने श्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई”-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस काव्य पंक्ति में जीवन की सांध्यबेला में अपने अतीत पर दृष्टिपात करती हुई देवसेना कहती है कि वह स्कंदगुप्त के प्रेम की कोमल भावनाओं को आजीवन अपने हृदय में सँजोती रही। उसका ऐसा करना एक भ्रममात्र था. क्योंकि देवसेना ने स्कंदगुप्त के वैवाहिक प्रस्ताव को तुकराया था। अब उसके लिए कोमल कल्पनाएँ करने का कोई लाभ नहीं है। उसे इन संचित भावनाओं को भीख में ही गँवाना पड़ रहा है। कोमल भावनाओं की इस पूँजी को देवसेना सुरक्षित रखने में सर्वथा असमर्थ रही।
प्रश्न 2.
कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने आशा को इसलिए बावली कहा है; क्योंकि मनुष्य के पास जो कुछ नहीं होता, उसे प्राप्त करने की उसके मन में इच्छा बनी रहती है। वह सदैव मन में यही भाव रखे रहता है कि उसे लक्ष्य मिलेगा, जबकि वह उसे प्राप्त नहीं कर पाता। इसी भ्रम को आशा कहा जाता है। इसी कारण उसे बावला कहा जाता है, क्योंकि व्यक्ति इच्छाओं की पूर्ति में इधर-उधर भटकता है।
प्रश्न 3.
“मैंने निज दुर्बल ‘…’ होड़ लगाई” इन पंक्तियों में ‘दुर्बल पद-बल’ और ‘हारी होड़’ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
देवसेना को आजीवन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। हूणों के आक्रमण में उसके भाई के परिवार को मार दिए जाने से वह कमज़ोर एवं अकेली पड़ गई थी। उसने सांसारिक कठिनाइयों का सामना किया। इसी बीच उसे अपने प्यार (स्कंदगुप्त) को छोड़ना पड़ा। इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला अपने कमजोर पैरों से करती रही। इन परिस्थितियों से मुकाबला करने की उसने जो होड़ लगाई थी, उसमें उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा था।
प्रश्न 4.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु-छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने
यह विहाग की तान उठाई।
(ख) लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गँवाई।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
– इन पंक्तियों का भाव यह है कि देवसेना पेड़ के नीचे थककर सोए हुए पथिक की भाँति थी। किसी ने उसे जगाकर प्रेम का गीत सुना दिया। ऐसा लगता है कि यह प्रेम का सुंदर स्वप्न उनींदी दशा में उसके हृदय में प्रवेश कर गया।
शिल्प-सौंदर्य –
- ‘श्रमित में ‘ उत्र्रेक्षा अलंकार है।
- तत्सम शब्दावली की प्रधानता वाली साहित्यिक खड़ी बोली है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- माधुर्य गुण एवं गेयता है।
- वियोग श्रृंगार रस घनीभूत है।
(ख) भाव-सौंदर्य –
इन पंक्तियों का भाव यह है कि देवसेना कहती है कि हे स्कंदगुप्त, आप मेरा दिल मुझसे वापस ले लें। अब मैं अपने हृदय को सँभाल नहीं पा रही हूँ। करुणा को मुझ पर करुणा आ रही है। मैंने मन की लाज गँवा दी है।
शिल्प-सौंदर्य –
- मानवीकरण किए जाने के कारण मानवीकरण अलंकार है।
- करुण रस की व्याप्ति है।
- शृंगार के वियोग पक्ष का मार्मिक चित्रण है।
- ‘थाती’ शब्द से भावाभिव्यक्ति गहन हुई है।
- ‘लाज गँवाना’ मुहावरे का प्रयोग है।
- तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
प्रश्न 5.
देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
उत्तर :
देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है। हूणों के आक्रमण में उनका सारा परिवार नष्ट हो जाता है। वह अपने भाई का स्वप्न साकार करने के लिए स्कंदगुप्त की शरण में आती है। वह उससे प्रेम करती है, परंतु स्कंदगुप्त मालवा के धनकुबेर की कन्या विजया को चाहते हैं। जीवन के अंतिम मोड़ पर जब स्कंदगुप्त देवसेना से विवाह करना चाहता है तो देवसेना मना कर देती है। उसका जीवन संकट में गुजरा। उसने अपने पक्ष को कमज़ोर जानते हुए भी आक्रमणकारियों से संघर्ष किया, परंतु वह हार गई। इस प्रकार प्रेम में मिली असफलता और विपरीत परिस्थितियों में मिली असफलता उसकी हार या निराशा के कारण हैं।
(ख) कार्नेलिया का गीत –
प्रश्न 1.
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
अथवा
‘कार्नेलिया का गीत’ के आधार पर भारत की प्रमुख प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘कार्नेलिया का गीत’ के माध्यम से कवि ने भारत की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर संकेत किया है –
- नित्य वसंत से सुशोभित और लालिमा से युक्त इस देश में क्षितिज को भी एक सहारा मिलता है।
- वहाँ के सूर्योदय की ताम्र-वर्णी लाली में ही वृक्ष की चोटी झूमती-नाचती प्रतीत होती है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी हरियाली पर यह मंगलकारी सिंदूर बिखरा हुआ है।
- यह वही प्रिय देश है, जिसे अपना नीड़ जानकर अनेक पक्षी मलय समीर का सहारा लेकर, इंद्रधनुष जैसे सुंदर अपने छोटे-छोटे पंख फैलाए हुए उसकी ओर उड़ते चले आते हैं।
- यहाँ के निवासियों की आँखों में हर समय करूणा का भाव इस प्रकार भरा रहता है कि वे आँखें सावन के बरसने वाले बादलों-सी लगने लगती हैं।
- इसी देश के तटों से टकराकर सागर की लहरों को अपनी यात्रा का अंत मिलता है।
- यहाँ की उषा उदित होते सूर्य रूपी स्वर्ण-कलश को लेकर मेरे जीवन के लिए समस्त सुखों को ढलकाती रहती है और वह भी उस समय जबकि रात पूरी तरह से बीती नहीं है।
प्रश्न 2.
‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?
उत्तर :
‘उड़ते खग’ से अभिप्राय बाहरी व्यक्तियों से है। ये भारत में इस उम्मीद से आते हैं कि यहाँ उनका धर्म, संस्कृति तथा व्यवसाय सुरक्षित रहेगा। उन्हें यहाँ अपने घर-परिवार जैसा ही प्रेम और अपनत्व मिलेगा।
‘बरसाती आँखों के बादल’ से यह अर्थ निकलता है कि यहाँ हरेक व्यक्ति में करुणा का भाव रहता है। ये दूसरे के कष्टों को दूर करने के लिए तैयार रहते हैं।
प्रश्न 3.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए हेम कुंभ ले उषा सवेरे- भरती ढुलकाती सुख मेरे। मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य –
इन पंक्तियों का भाव यह है कि यहाँ उषा रूपी नायिका स्वर्ण कुंभ लेकर सुबह-सुबह हमारे सभी सुखों को धरती पर ढलकाती है। उस समय तारे रातभर जागते रहने के कारण ऊँघते से प्रतीत होते हैं। कवि ने प्रातःकालीन समय का मनोहारी चित्रण किया है।
शिल्प-सौंदर्य –
- तारा व उषा का मानवीकरण किया गया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।
- ‘जब-जगकर’ में अनुप्रास अलंकार है।
- हेम कुंभ में रूपक अलंकार है।
- तत्सम शब्दावली की प्रधानता वाली सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा है।
- गेय तत्व की विद्यमानता है।
प्रश्न 4.
‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि भारतवर्ष में हर व्यक्ति को आश्रय मिलता है। संसार के किसी भी कोने से कोई भी व्यक्ति यहाँ आए तो भी उसे सहारा दिया जाता है, यहाँ के निवासियों में सभी के प्रति दया-भावना विद्यमान है।
प्रश्न 5.
प्रसाद शब्दों के सटीक प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कैसे कुशल हैं? कविता से उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
यह बात पूर्णतया सत्य है कि कवि शब्दों के सटीक प्रयोग से भावाभिष्यक्ति को मार्मिक बनाने में कुशल हैं। इस गीत में कवि सुबह का वर्णन कुछ इस प्रकार करते हैंसरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
इसी तरह भारतीयों की करुणा की भावना को वे कुछ इस तरह व्यक्त करते हैंबरसाती आँखों के बादल बनते जहाँ भरे करुणा जल।
इसी प्रकार देवसेना की व्यधित एवं नैराश्यपूर्ण स्थिति को सटीक शब्दों के माध्यम से भावों को इस प्रकार मर्मस्पर्शी बनाया है –
मेरी आशा आह! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई।
प्रश्न 6.
कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्द्रों में लिखिए।
उत्तर :
कवि ने प्रात:कालीन सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया है। कवि कहता है कि यह देश मधुर है। सूर्योंद्य के समय क्षितिज से ताँबे के रंग वाली लाली फूटती दिखाई देती है। वृक्षों की कोंपलें मंद-मंद हिलती हुई नृत्य करती दिखाई देती हैं। चारों तरफ हरियाली छाई हुई है, जिन पर प्रातःकालीन सूर्य की सुनहली किरणें फैली हुई हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो चारों तरफ कल्याणकारी सिंदूर बिखरा हुआ हो। छोटे-छोटे पक्षी रंग-बिरंगे सुंदर पंख फैलाकर उड़ते हुए यहीं आते हैं।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
कविता में आए प्रकृति-चित्रों वाले अंश छाँटिए और उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रकृति-चित्र वाले अंश
1. सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा!
2. हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।
भारतवर्ष में सर्वत्र प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। सूर्यौद्य के समय यह सौंदर्य अत्यंत मनोहारी बन जाता है। ताजा खिले कमल दल पर जब ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की फुनगी और कोमल पल्लव की हिलती-डुलती परछाई पड़ती है तो ये तरु-शिखाएँ नृत्य करती प्रतीत होती हैं। हरी घास पर फैली सुनहली किरणें देखकर ऐसा लगता है जैसे सर्वत्र कल्याणकारी सिंदूर फैला हुआ है। उषा रूपी नायिका उगते सूर्य रूपी स्वर्ण-कलश से उस समय समस्त सुख उड़ेलती प्रतीत होती है, जब तारे नींद के आलस्य में अधजगे ऊँघते रहते हैं अर्थात् आसमान में तारे छिपे नही होते हैं।
प्रश्न 2.
भोर के दृश्य को देखकर अपने अनुभव काव्यात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
हुआ सवेरा चटकी कलियाँ जाग उठी हैं सोई गलियाँ।
पूरब दिशा में जब ये उड़ते लगता दिनकर की अगवानी करते।
पक्षी उड़ते पंख पसार सुंदर लगता नभ संसार।
फूल खिल गए उपवन में रंग भर रहा जन-जीवन में।।
प्रश्न 3.
जयशंकर प्रसाद की काव्य-रचना ‘आँसू’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4.
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ तथा रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता’ हिमालय के प्रति’ का कक्षा में वाचन कीजिए।
उत्तर :
हमारा प्यारा भारतवर्ष!
हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार,
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक
व्योम, तम-पुंज तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक
विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्त स्वर सप्त सिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम संगीत।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत,
अरुण केतन लेकर निज हाथ, वरुण पथ में हम बढ़ें अभीत।
– जयशंकर प्रसाद
हिमालय के प्रति –
मेरे नगपति मेरे विशाल।
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी! आज तप का न काल।
कितनी मणियाँ लुट गई? मिटा
कितना मेरे वैभव अशेष!
तू ध्यान मग्न ही रहा, इधर
वीर हुआ प्यारा स्वदेश।
हिमालय के प्रति
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 1 देवसेना का गीत, कार्नेलिया का गीत
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
कार्नेलिया कौन है ? भारतवर्ष के प्राकृतिक सौंदर्य का उसके मन पर क्या असर पड़ा?
उत्तर :
कार्नेलिया सेल्यूकस की पुत्री है। उसका विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ हुआ। कार्नेलिया भारतवर्ष को अपनाकर एक सच्ची भारतीय नारी बन जाती है। वह इस देश की प्राकृतिक सुषमा से इस सीमा तक अभिभूत हो जाती है कि नाटक में अपने शिविर के बाहर खड़ी-प्रात:कालीन नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर उसका मन स्वतः ही उत्फुल्ल स्वर में गा उठता है।
प्रश्न 2.
‘देवसेना का गीत’ का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर :
‘देवसेना का गीत’ कविता में मनुष्य व प्रकृति के संबंधों के माध्यम से मन की पीड़ा व्यक्त की गई है। देवसेना अपने जीवन के वेदनामय क्षणों को याद कर रही है। वह जवानी के क्रियाकलापों को भ्रम से कर्मों की श्रेणी में रख रही है। वह स्वयं को आसपास की प्यासी आँखों से बचाना चाहती है, परंतु वह असफल रहती है। प्रलय देवसेना के जीवन-रथ पर सवार है। वह अपनी कमज़ोरियों के बावजूद प्रलय से लोहा लेती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘कार्नेलिया का गीत कविता के माध्यम से देशभक्ति के साथ-साथ भारतीय इतिहास की भी झलक मिलती है।’ स्पष्ट करें।
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद इस गीत के माध्यम से राष्ट्र-भक्ति का एक और श्रेष्ठ स्वरूप ही प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि सत्य, अहिंसा और करुणा इस देश की संस्कृति के मुख्य तत्वों में से रहे हैं। अत: प्रत्येक भारतवासी की आँख में करुणा का जल बादलों की तरह विद्यमान रहता है। भारत की भौगोलिक सीमाओं को देखें तो इसके पूर्व-पश्चिम एवं दक्षिण तीनों तटों पर तीन-तीन सागरों की लहरें ही आकर नहीं टकरातीं, अपितु उन लहरों पर सवार होकर आए जलयान और उनके यात्री भी अपनी मंज़िल पा जाते हैं।
कवि का संकेत कोलंबस एवं वास्को-डि-गामा जैसे यात्रियों की ओर ही है। इस प्रकार भारत के प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व और जीवन के सुख को प्रदान करने की क्षमता आदि का गुणगान करके कवि भारतवासियों के मन में देश-गौरव का भाव जागृत करना चाहता है और एक विदेशी युवती के मुख से गीत गवाकर प्रसाद यह संदेश भी देना चाहते हैं कि यदि कार्नेलिया जैसी विदेशी युवती इस देश को अपनाकर इसे प्राणपन से प्रेम कर सकती है तो हम भारतीय ऐसा क्यों नहीं कर सकते।
प्रश्न 2.
कार्नेलिया ने भारत में ऐसा क्या देखा कि उसके मुँह से फूट पड़ा- ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा!’
उत्तर :
सेल्यूकस ने अपनी पुत्री कार्नेलिया का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया। कार्नेलिया भारतवर्ष के अप्रतिम सौंदर्य पर मोहित हो उठी। उसे भारतवर्ष सचमुच मधुमय लगा, जहाँ विदेशी भी आश्रय पाते हैं और यहाँ प्यार और अपनत्व की अनुभूति करते हैं। यहाँ कमल की लालिमामयी आभा पर तरु शिखाएँ मंथर गति से नृत्य करती प्रतीत होती हैं। पक्षी अपने रंग-बिरंगे पंख पसारे भारतभूमि को अपना नीड़ समझकर इसी ओर मुख करके उड़ते हुए आ जाते हैं। यहाँ के लोग दयालु हैं, जिनपर उषा स्वर्ण-कलश से सुख एवं प्रकाश उड़ेलती है। यह सब देख कार्नेलिया के मुँह से फूट पड़ा-‘अरुण यह मधुमय देश हमारा!’
प्रश्न 3.
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर :
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखे गए नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से उद्धृत है। इसमें चंद्रगुप्त मौर्य की नवविवाहिता कार्नेलिया भारत-भूमि की प्राकृतिक सुषमा पर सम्मोहित हो जाती है। वह भारतभूमि की प्रशंसा-भरा गीत गा उठती है। उसे भारत देश मधुमय लगता है, जहाँ अनजान व्यक्ति को सहारा मिल जाता है। वह यहीं का होकर रह जाता है। इस देश में विविध रंगीन कल्पनाएँ हैं। खिले कमल पुष्प पर वृक्ष शिराएँ नृत्य करती प्रतीत होती हैं। रंग-बिरंगे पक्षी अपना आश्रय स्थल समझ यहाँ उड़कर आ जाते हैं। यहाँ के लोग अत्यंत दयालु हैं। उषा यहाँ सुख एवं प्रसन्नता लुटाती है। इस प्रकार यह गीत राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति की भावना प्रगाढ़ करता है।