In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary – Jyotiba Phule Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
ज्योतिबा फुले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 5 Summary
ज्योतिबा फुले – सुधा अरोड़ा – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
प्रश्न :
सुधा अरोड़ा के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी रचनाओं और साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय-सुधा अरोड़ा का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ था। उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुई। इसी विश्वविद्यालय के दो कॉलेजों में इन्होंने सन 1969 से 1971 तक अध्यापन-कार्य किया। कथा-साहित्य में सुधा अरोड़ा एक चर्चित नाम है।
रचनाएँ – सुधा अरोड़ा की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं :
कहानी-संग्रह – बगैर तराशे हुए, युद्ध-विराम, महानगर की भौतिकी, काला शुक्रवार, काँसे का गिलास तथा औरत की कहानी (संपादित) आदि। इनकी कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त कई विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हैं। भारतीय महिला कलाकारों के आत्मकध्यों के दो संकलन-दहलीज़ को लाँघते हुए और पंखों की उड़ान। साहित्यिक विशेषताएँ-लेखन के स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी सक्रियता बराबर बनी हुई है। पाक्षिक ‘सारिका’ में ‘आम आदमी ज़िदा सवाल’ और राष्ट्रीय दैनिक ‘जनसत्ता’ में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर इनका साप्ताहिक स्तंभ ‘वामा’ बहुचर्चित रहा। महिला संगठनों के सामाजिक कार्यों के प्रति इनकी सक्रियता एवं समर्थन जारी है। महिलाओं पर ही केंद्रित ‘औरत की दुनिया बनाम दुनिया की औरत’ लेखों का संग्रह शीघ्र प्रकाश्य है। ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ द्वारा इन्हें विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सुधा अरोड़ा मूलतः कथाकार हैं। इनके यहाँ स्त्री-विमर्श का रूप आक्रामक न होकर सहज और संयत है। सामाजिक और मानवीय सरोकारों को ये रोचक ढंग से विश्लेषित करती हैं। अपनी बात को ये उदाहरणों के माध्यम से पुष्ट करती हैं। इन्होंने खड़ी बोली में अभिव्यक्ति की है। येश्रित शब्दावली का प्रयोग करती हैं।
पाठ-परिचय :
‘ज्योतिबा फुले’ निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में किए गए शिक्षा और समाज-सुधार संबंधी कार्यों के महत्व को बताया है। सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों का विरोध करके उन्होंने अछूतों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के हक की लड़ाई लड़ी। इसके कारण समाज का व्यापक विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा। उस दौर की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उनका संघर्ष निर्णायक महत्व रखता है। फुले द्पती द्वारा शिक्षा के लिए किए गए प्रयासों और इस दिशा में किए गए उनके संघर्षों का प्रभावपूर्ण ढंग से वर्णन इस निबंध में किया गया है।
पाठ का सार :
प्रसिद्ध समाज-सुधारक ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले के द्वारा किए गए समाज-उत्थान के कार्यों के बारे में लेखिका बताती है कि भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में पाँच समाज-सुधारकों में महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम शामिल नहीं है। इस सूची को बनाने वाले उच्चवर्णीय समाज के प्रतिनिधि हैं। ज्योतिबा फुले ब्राह्मण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा तथा सुधार के समर्थक नहीं थे। उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोल दिया। उनका ‘सत्यशोधक समाज’ और उनका क्रांतिकारी साहित्य इसका प्रमाण है। महात्मा ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था में निहित शोषण-प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। उनका कहना था कि राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य के तहत धर्मवादी सत्ता आपस में साँठ-गाँठ करके इस सामाजिक व्यवस्था और देखकर अपने घर के पानी का हौद सभी जातियों के लिए खोल देना-हर काम पति-पत्नी ने डंके की चोट पर किया। वे कुरीतियों, अंध-श्रद्धा और पारंपरिक अनीतिपूर्ण रूढ़ियों को ध्वस्त करके दलितों-शोषितों के हक में खड़े हुए। आज के प्रतिस्पर्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने दंपती साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, इसके विपरीत महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दांपत्य की मिसाल बनकर चमकता है।
शब्दार्थ :
पृष्ठ 56-अप्रत्याशित-जिसकी आशा न की गई हो (unexpected)। शुमार-शामिल (included)। उच्चवर्णीय-ऊँचे वर्ण (जाति) से संबंधित (related to upper cast)। वर्चस्व–दबदबा (influence)। कायम रखना-बनाए रखना (to maintain)। निहित-समाया हुआ (implied)। आधिपत्य-अधिकार (control)। साँठ-गाँठ-गठजोड़, ताल-मेल (joining together)। गुलामगीरी-लोगों से गुलामी कराने की प्रवृत्ति (slavery)। संग्रहीत-एकत्र किया हुआ (collected)।
पृष्ठ 57-अवधारणा-मान्यता, सोच (thinking)। कर-टैक्स (tax)। सर्वांगीण-पूरी तरह से (all round, complete)। संभ्रांत-उच्च वर्ग, धनी (higher income-group)। मानसिकता-सोच (mentality)। पर्दाफ़ाश करना-रहस्य खोलना (to expose)। मति-बुद्धि (wisdom)। वित्त-धन (money)। अनर्थ-भयानक क्षति (a great loss)। प्रतिष्ठित करना-सम्मानित करना, स्थापित करना (to respect, to establish)। विधि-नियम, तरीका (rule, method)। समर्थक-समर्थन करने वाला (follower)।
पृष्ठ 58-आकांक्षा-चाहत, अभिलाषा (wish)। मठाधीश-किसी धर्म या वर्ग से जुड़ा प्रमुख व्यक्ति (priest)। अग्रसर-आगे बढ़ा हुआ (forwarded)। ग्राहूय-शक्ति-ग्रहण करने की क्षमता (grasping power)। हाट-सप्ताह में एक या दो दिन लगने वाला छोटा बाज़ार (a small market organised once or twice in a week)। आग-बबूला होना-बहुत ही क्रुद्ध होना (to be furious)। कुल-परिवार (family)।
पृष्ठ 59-शूद्रातिशूद्र-अत्यंत दबे-कुचले लोग (lowest group of society)। व्यवधान-बाधा, रुकावट (hindrance)। लांछन-दोषारोपण (blame)। धर्म-भीरु-धर्म से डरने वाला (one who fears from Dharma (region))। मिशन-अत्यंत उच्च लक्ष्य (a high aim)। एक और एक ग्यारह होते हैं-एकता में शक्ति होती है (unity has strength)। मुकाम-लक्ष्य (destination)। आग्रह करना-हठपूर्वक प्रार्थना करना (to request)। प्रतिबंधक-रोक लगाने वाला (forbidder)। नवजात-अत्यंत कम उम्र का (infant)। हौद-टैंक, ईंट-गारे से बनी पानी एकत्र करने की बड़ी-सी जगह (tank for collecting water)। हक-पक्ष (right, favour)। प्रबुद्ध-पढ़े-लिखे, ज्ञानी (learned person)। जड़ें खोदना-पूरी तरह से मिटा देने का प्रयास करना (to destroy)। आमादा होना-तत्पर होना (to be ready)। मिसाल-उदाहरण (example)।
ज्योतिबा फुले सप्रसंग व्याख्या
1. यह अप्रत्याशित नहीं है कि भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आंदोलन में जिन पाँच समाज-सुधारकों के नाम लिए जाते हैं, उनमें महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम का शुमार नहीं है। इस सूची को बनाने वाले उच्चवर्णीय समाज के प्रतिनिधि हैं। ज्योतिबा फुले ब्राहममण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा और सुधार के समर्थक नहीं थे। उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोल दिया। उनके द्वारा स्थापित ‘सत्यशोधक समाज’ और उनका क्रांतिकारी साहित्य इसका प्रमाण है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं। इस निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में शिक्षा और सुधार संबंधी किए गए कार्यों के महत्व को बताया है। इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले की अनदेखी, ब्राह्मणवादी मानसिकता का वर्चस्व तथा फुले द्वारा उठाए गए कदमों एवं उनके महत्व को रेखांकित किया गया है।
व्याख्या – लेखिका का कहना है कि भारत में सामाजिक विकास और बदलाव के लिए चले आंदोलनों में मुख्य पाँच समाज-सुधारक माने गए हैं, परंतु उनमें महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम शामिल नहीं है। यह कोई अपने-आप नहीं हुआ है। यह एक सोची-समझी नीति थी। समाज-सुधारकों की सूची बनाने वाले उच्च वर्ग के लोग थे, जिन्होंने फुले और उनके
कार्यों की घोर उपेक्षा की। ज्योतिबा ने हमेशा उच्च वर्ग को बढ़ावा देने वाली, उनके प्रभुत्व को बनाने वाली और उनके सामाजिक मूल्यों को बनाए रखने वाली शिक्षा तथा सुधारों का विरोध किया। उन्होंने पूँजीवादी व्यवस्था तथा पुरोहितवादी मानसिकता पर करारा प्रहार किया। फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना तथा क्रांतिकारी साहित्य की रचना की। इन दोनों से इन्होंने अपना विरोध प्रकट किया।
विशेष :
- इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले के समाजोत्थान के लिए किए गए कार्यों की अनदेखी की भर्त्सना की गई है।
- ज्योतिबा की उच्चवर्गीय समाज की पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता के विरुद्ध प्रहार का वर्णन है।
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें मिश्रित शब्दावली है।
- भाषा प्रवाहमयी है तथा भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।
2. महात्मा ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था में निहित शोषण-प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। उनका कहना था कि राजसत्ता और ब्राहूमण आधिपत्य के तहत धर्मवादी सत्ता आपस में साँठ-गाँठ कर इस सामाजिक व्यवस्था और मशीनरी का उपयोग करती है। उनका कहना था कि इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ़ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आंदोलन करना चाहिए।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं। इस निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में शिक्षा और सुधार संबंधी किए गए कार्यों के महत्व को बताया है।
इस गद्यांश में लेखिका ने तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों के वर्चस्व और स्त्रियों को शिक्षा एवं स्वतंत्रता से वंचित रखने की चाल के संबंध में ज्योतिबा फुले के विचार प्रकट किए हैं।
व्याख्या – लेखिका बताती है कि ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था को एक-दूसरे का पूरक बताया। ये सभी मिलकर शोषण करते हैं तथा एक-दूसरे की सहायता करते हैं। उनका विचार था कि सत्ता और ब्राह्मणों के वर्चस्व के अंतर्गत धर्म की सत्ता का संबंध है। वे स्वार्थ हेतु एक-दूसरे की मदद करते हैं। वे समाज की व्यवस्था का उपयोग अपने हित में करते हैं। यही क्रिया दलितों तथा स्त्रियों का शोषण करती है। अतः दलितों और स्त्रियों को शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए।
विशेष :
- इस गद्यांश में वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था से शोषण करने की प्रवृत्ति पर प्रहार किया गया है।
- इससे ज्योतिबा फुले के दलितों और स्त्रियों की दशा सुधारने का पक्षधर होने का पता चलता है।
- भाषा मिश्रित शब्दावलीयुक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
- भाषा प्रवाहमयी है, जो भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
3. ज्योतिबा ने जिन मंगलाष्टकों की रचना की, उनमें वघू वर से कहती है-“स्वतंत्रता का अनुभव हम स्त्रियों को है ही नहीं। इस बात की आज शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोगे और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे।” यह आकांक्षा सिर्फ़ वधू की ही नहीं, गुलामी से मुक्ति चाहने वाली हर स्त्री की थी। स्त्री के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए ज्योतिबा फुले ने हर संभव प्रयत्न किए।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं। इस निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में शिक्षा एवं सुधार संबंधी किए गए कार्यों के महत्त्व को बताया है।
यहाँ ज्योतिबा फूले के द्वारा समाज में पारंपरिक विवाह-पद्धति की कुरीतियों को दूर करने तथा स्त्रियों की स्वतंत्रता हेतु किए गए प्रयासों का उल्लेख है।
व्याख्या – ज्योतिबा फुले ने नई विवाह-विधि की रचना की। उन्होंने नए मंगलाष्टकों की रचना की, जिसमें वधू को अधिक अधिकार दिए गए हैं। वधू वर से कहती है कि अभी तक हम स्त्रियों को स्वतंत्रता का अनुभव है ही नहीं। वर यह शपथ ले कि वह स्त्री को उसके अधिकार देगा। उसे अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता देगा। यह इच्छा केवल वधू की ही नहीं है, बल्कि यह इच्छा मुक्ति चाहने वाली हर स्त्री की है। फुले ने स्त्री के अधिकारों तथा स्वतंत्रता के लिए हर तरह के प्रयास किए।
विशेष :
- इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले द्वारा नई विवाह-विधि बनाने का उल्लेख है।
- नारी-मुक्ति की आकांक्षा को मुखरित किया गया है।
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है।
- भाषा प्रवाहमयी तथा भाषाभिव्यक्ति में समर्थ है।
4. कहते हैं-एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने हर मुकाम पर कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया-मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोंपड़ी में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करना या बालहत्या प्रतिबंधक गृह में अनाथ बच्चों और विधवाओं के लिए दरवाज़े खोल देना और उनके नवजात बच्चों की देखभाल करना या महार, चमार और मांग जाति के लोगों की एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने की तकलीफ़ देखकर अपने घर के पानी का हौद सभी जातियों के लिए खोल देना-हर काम पति-पत्नी ने डंके की चोट पर किया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं।
निबंध के इस अंश में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में शिक्षा और सुधार-संबंधी किए गए कार्यों के महत्व को बताया है।
व्याख्या – लेखिका बताती है कि समाज में कहावत है कि एक और एक मिलकर गयारह होते हैं अर्थात उनकी शक्ति दुगुनी हो जाती है। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने हर मोर्चे पर मिलकर संघर्ष किया। वे समाज में असमानता दूर करना चाहते थे। वे अछूतों तथा किसानों की झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करते थे। उन्होंने अनाथ बच्चों तथा विधवाओं को बालहत्या प्रतिबंधक घर में रखा तथा नवजात बच्चों की देखभाल करने का काम किया। पति-पत्नी ने महार, चमार तथा मांग जाति के लागों की एक घूँट पानी पीकर प्यास बुझाने की तकलीफ़ देखी। फिर उन्होंने अपने घर के पानी का हौद सभी जातियों के लिए खोल दिया। दोनों ने अपना काम डंके की चोट पर किया। वे समाज के विरोध की परवाह नहीं करते थे।
विशेष :
- इस गद्यांश में फुले दंपती द्वारा समाज-सुधार और शिक्षा की ज्योति जगाने संबंधी कार्यों का उल्लेख है।
- फुले दंपती के साहस और उच्च वर्ग द्वारा विरोध करने की परवाह न करने का उल्लेख है।
- ‘कंधे से कंधा मिलाना’ मुहावरा का प्रयोग है।
- साहित्यिक खड़ी बोली है।
5. आज के प्रतिस्पर्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने दंपती साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दांपत्य की मिसाल बनकर चमकता है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘ज्योतिबा फुले’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं। इस निबंध में लेखिका ने ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी द्वारा समाज में शिक्षा और सुधार-संबंधी किए गए कार्यों के महत्त्व को बताया है। यहाँ फुले दंपती द्वारा आजीवन एक-दूसरे का साथ निभाते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने के बारे में बताया गया है।
व्याख्या – लेखिका बताती हैं कि आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है। आज तो शिक्षित तथा समझदार वर्ग के दंपती कई वर्ष साथ रहने के बाद जब अलग होते हैं, तो एक-दूसरे को पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास करते हैं। वे एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं। वे एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं। ऐसे समय में महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई का दांपत्य एक मिसाल बनता है। उन्होंने एक-दूसरे की सहायता की तथा एक लक्ष्य के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया।
विशेष :
- इस गद्यांश में शिक्षित वर्ग में बढ़ते संबंध-विच्छेद पर प्रहार किया गया है।
- आज के समय में ज्योतिबा फुले तथा सावित्री बाई के आदर्श दापत्य से प्रेरित होने की सीख दी गई है।
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें मिश्रित शब्दावली है।
- ‘जड़ें खोदना’ मुहावरे का प्रयोग है।