In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 2 Summary – Dopahar Ka Bhojan Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
दोपहर का भोजन Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 2 Summary
दोपहर का भोजन – अमरकांत – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
प्रश्न :
अमरकांत का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं तथा रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय-प्रेमचंद परंपरा के कहानी-लेखकों में अग्रगण्य अमरकांत जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भगमलपुर (नगरा) नामक गाँव में 1 जुलाई, सन 1925 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम श्रीराम वर्म है, किंतु हिंदी साहित्य-संसार में इन्हें अमरकांत के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रार्रभिक शिक्षा बलिया में ही हुई थी। सन 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन ‘ में भाग लेने के कारण इनकी पढ़ाई में व्यवधान पड़ गया था। बाद में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
आजीविका के लिए इन्होंने पत्रकार का जीवन अपनाया तथा ‘सैनिक’ नामक पत्र में उपसंपादक का कार्य-भार सँभाला। कुछ समय तक ये लखनऊ में साक्षरता निकेतन से भी जुड़े रहे। इसके पश्चात इन्होंने इलाहाबाद में ‘दैनिक अमृत पत्रिका’, ‘दैनिक भारत’, ‘कहानी’ तथा ‘मनोरमा’ के संपादकीय विभागों में कार्य किया।
रचनाएँ-अमरकांत की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं :
(i) कहानी-संग्रह-ज़िदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा आदि।
(ii) उपन्यास-सूखा पत्ता, पराई डाल का पंछी, सुखजीवी, बीच की दीवार, काले उजले दिन, ग्राम-सेविका, इन्हीं हथियारों से आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ-अमरकांत नई कहानी आंदोलन के एक प्रमुख कहानीकार हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में शहरी और ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। ये मुख्यतः मध्यवर्ग के जीवन की वास्तविकताओं और विसंगतियों को व्यक्त करने वाले कहानीकार हैं। वर्तमान समाज में व्याप्त अमानवीयता, हृदयहीनता, पाखंड, आडंबर आद् को इन्होंने अपनी कहानियों का विषय बनाया है। आज के सामाजिक जीवन और उसके अनुभवों को अमरकांत ने यथार्थवादी ढंग से अभिव्यक्त किया है। इनकी शैली की सहजता और भाषा की सजीवता पाठकों को आकर्षित करती है। आंचलिक मुहावरों और शब्दों के प्रयोग से इनकी कहानियों में जीवंतता आती है। अमरकांत की कहानियों के शिल्प में पाठकों को चमत्कृत करने का प्रयास नहीं है। ये जीवन की कथा उसी ढंग से कहते हैं, जिस ढंग से जीवन चलता है।
अमरकांत की अधिकांश कहानियाँ बोलचाल की सहज भाषा में लिख्री गई हैं, जिनमें कहीं-कहीं तत्सम प्रधान शब्दावली के अतिरिक्त अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी तथा देशज शब्दों का भी प्रयोग मिलता है; जैसे-‘दोपहर का भोजन’ कहानी में- ‘वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गटगट चढ़ा गई।’, ‘बाहर की गली से गुज़ते हुए खड़खड़िया इक्के की आवाज़ आ रही थी और खटोले पर सोए बालक की साँस का खर-खर शब्द सुनाई दे रहा था।’, ‘…एक-आध मिनट सुन्न खड़ी रही’, ‘मोहन कटोरे को मुँह में लगाकर सुड़-सुड़ पी रहा था।’, ‘तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई।’ इनके अतिरिक्त, अपनी कहानियों में अरबी-फ़ारसी के कस्साब, तमन्ना, फ़ाहिशा, कश, आमदोफ्त तथा तत्सम के अंकुश, आग्रह, चित्र, द्वंद्व, अंक आदि शब्दों का भी प्रयोग किया है। मिनट, डिप्टी, कलक्टर, स्टेशन, पैकेट आदि अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का भी इन्होंने भरपूर प्रयोग किया है। अमरकांत की अधिकांश कहानियों का शिल्प-विधान वर्णनात्मक है, जो पात्रों के संवादों के माध्यम से गति प्राप्त करता है; जैसे-‘दोपहर का भोजन’ कहानी में जब रामचंद्र की थाली में रोटी का केवल एक टुकड़ा शेष रह जाता है, तो सिद्धेश्वरी ने उठने का उपक्रम करते हुए प्रश्न किया, ‘एक रोटी और लाती हूँ?’
पाठ-परिचय :
‘दोपहर का भोजन’ गरीबी से जूझ रहे एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है। इस कहानी में समाज में व्याप्त गरीबी को चिह्नित किया गया है। मुंशी जी के पूरे परिवार का संघर्ष भावी उम्मीदों पर टिका हुआ है। सिद्धेश्वरी गरीबी के अहसास को मुखर नहीं होने देती और उसकी आँच से अपने परिवार को बचाए रखती है।
पाठ का सार :
सिद्धेश्वरी, मुंशी चंद्रिका प्रसाद की पत्नी तथा रामचंद्र, मोहन एवं प्रमोद की माँ है। वह अपनी व्यवहार-कुशलता, त्याग तथा धैर्य से ही घर को टूटने से बचाए हुए है। घर के सभी सदस्य संवेदनशील हैं और गरीबी के चेहरे से परिचित हैं।
गर्मियों की दोपहर में खाना बनाते समय सिद्धेश्वरी भूख से बेहाल है, परंतु घर में इतना अनाज नहीं कि वह अपने लिए भी दो चपातियाँ बना सके। वह पानी पीकर गुज़ारा करना चाहती है, किंतु खाली पेट पानी पीकर कब तक जिया जा सकता है। टूटी खाट पर लेटा उसका नन्हा बेटा कुपोषण का शिकार है। उसकी टाँगों और बाँहों की हड्डियाँ निकल आई हैं तथा पेट हाँड़ी की तरह फूल गया है। वह सोया हुआ है। दोपहर के बारह बज रहे हैं। भोजन का समय हो गया है। बीस-इक्कीस वर्षीय बड़ा लड़का रामचंद्र आकर चौकी पर निराश, हताश बैठ जाता है। बड़ी देर तक जब वह हिलता-डुलता नहीं, तो माँ उसे हिला-हिलाकर उठाती है। वह प्रेस में प्रूफ-रीडिंग का काम सीखता है। संभवतः उसे पारिश्रमिक अभी नहीं मिलता।
वह इंटरमीडिएट पास है, परंतु नौकरी पाना उसके लिए सपना ही है। सिद्धेश्वरी उसे पानी भरी दाल, थोड़े-से चने और दो चपातियाँ खाने को देती है। भूख रहते हुए भी रामचंद्र पेट भरकर खाने का अभिनय करता है। वह छोटे भाई मोहन के विषय में पूछता है। सिद्धेश्वरी नहीं चाहती कि मोहन को लेकर वह चितित हो। वह उसे झूठमूठ कह देती है कि मोहन किसी मित्र के यहाँ पढ़ने-लिखने गया है। वह यह भी कहती है कि मोहन उसकी बड़ी प्रशंसा करता है, ताकि रामचंद्र अपना दुख भूलकर कुछ समय के लिए ही सही, प्रसन्न हो ले। कुछ समय पश्चात मोहन भोजन करने आता है। उसके हिस्से में भी दो ही चपातियाँ और पानी में डूबी दाल आती है। सिद्धेश्वरी उससे कहती है कि रामचंद्र उसकी बहुत प्रशंसा कर रहा था।
मोहन को यह सुनकर प्रसन्नता होती है। सिद्धेश्वरी के कहने पर वह थोड़ी-सी दाल और पी लेता है। इस प्रकार मोहन भी आधा-पेट भोजन करके उठ जाता है। पति मुंशी चंद्रिका प्रसाद भी परेशान एवं निराश हैं। उन्हें भी दो चपातियाँ खाने को मिलती हैं। छह महीने पहले ‘किराया नियंत्रण बोई’ से उनकी छँटनी हो चुकी है और आजकल वे भी बेकार हैं। सिद्धेश्वरी उन्हें भी मनोयोगपूर्वक खाना खिलाती है। मुंशी जी भी जानते हैं कि रसोई में भोजन नहीं है, इसलिए सिद्धेश्वरी के कहने पर भी दो से अधिक चपातियाँ नहीं खाते। वे सिद्धेश्वरी से गुड़ का शर्बत बनवाकर पीते हैं। सिद्धेश्वरी उन्हें प्रसन्न करने के लिए कहती है कि बड़ा बेटा रामचंद्र तो पिता को देवता समान मानता है और उसे शीघ्र ही नौकरी भी मिल जाएगी। यह सुनकर मुंशी जी प्रसन्न हो जाते हैं और आराम से खाट पर सो जाते हैं, मानो उनकी नौकरी छूटी ही न हो।
मुंशी जी को खाना खिलाकर जब सिद्धेश्वरी स्वयं खाना खाने बैठती है, तो उसके लिए थोड़ी-सी दाल, बची-खुची तरकारी, एक मोटी तथा जली हुई रोटी शेष थी। मुँह में पहला ग्रास डालते ही उसे अपने सोए हुए पुत्र की याद आ जाती है और वह आधी रोटी उसके लिए रख देती है। भोजन करते हुए उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। सारे घर में मक्खियाँ भिनभिना रही हैं और मुंशी जी निश्चिततापूर्वक ऐसे सो रहे हैं, मानो छँटनी के बाद उन्हें शाम को काम की तलाश में कहीं जाना ही न हो।
शब्दार्थ :
पृष्ठ 25-गगरा-पीतल या ताँबे से बना घड़े जैसा पानी रखने का बर्तन (a metal pot like pitcher)। जी में जी आना-आराम महसूस करना (to feel relief)। ओसारा-दालान, बरामदा (verandah)।
पृष्ठ 26 -व्यग्रता-व्याकुलता, बेचैनी (restlessness)। पीढ़ा-लकड़ी का पायेदार छोटा आसन (a small stool used for sitting)। भयभीत-डरी हुई (frightened)। स्पर्श-छुअन (act of touching)। प्रूफ-रीडरी-छपाई से पहले अशुद्धियाँ दूर करना (proof reading)।
पृष्ठ 27-पनियाई-अधिक पानी वाली (having much water)। रुखाई-बेरुखी, उपेक्षा (neglecting)। खड़खड़िया-खड़-खड़ की आवाज़ करने वाली (with harsh sound)। खटोला-छोटी खाट (a small cot)। भंग करना-तोड़ना (to break)। पृष्ठ 28-उपक्रम-आयोजन (arrangement)। ग्रास-कौर (a bite)। पृष्ठ 29-दिमागी-बुद्धिमान (intelligent)। अव्वल-पहले (first)।
पृष्ठ 30-जुगाली करना-जानवरों द्वारा आराम से बैठकर भोजन चबाने की क्रिया (chewing process being done by animals)। आईना–दर्पण (looking mirror)। उन्माद-हल्का पागलपन (mania/craziness)। जान देना–बहुत प्रेम करना (love dearly)। सबक-पाठ (lesson)। बर्राक-अच्छी तरह याद रखना (to get something by heart)।
पृष्ठ 31-पंडुक-कबूतर जाति का एक पक्षी (a bird like pigeon)। मौन व्रत-चुप रहने का व्रत (keep silent)। निर्विकार-जिसमें कोई विकार या परिवर्तन न हो (faultless)। दृष्टिपात किया-देखा (looked)। हठात्-अचानक (suddenly)। बीनना-चुनना या उठाना (to pick up)। कनखी-तिरछी निगाह से (ogle)।
पृष्ठ 32-ज़ायका-स्वाद (taste, flavour)। हाज़मा-पाचन क्रिया (digestion)। दुरुस्त-सही, ठीक (right)। नाक में दम आना-बहुत परेशान होना (to be puzzled)। बटलोई-दाल पकाने का पीतल से बना छोटा पात्र (a metal pot for cooking pulse) तदुपरांत-उसके बाद (after that)। अलगनी-कपड़ा टाँगने के लिए बाँधी गई रस्सी (a rope used for hanging clothes)। पैबंद-फटे कपड़े सिलने के लिए लगाया गया टुकड़ा (a piece of cloth used on torn part of cloth)। निश्चिचता-चितामुक्त होकर (anxiety)।
दोपहर का भोजन सप्रसंग व्याख्या
1. लगभग आधे घंटे तक वहीं उसी तरह पड़ी रहने के बाद उसके जी में जी आया। वह बैठ गई, आँखों को मल-मलकर इधर-उधर देखा और फिर उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोये अपने छह वर्षीय लड़के प्रमोद पर जम गई। लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हँड़िया की तरह फूला हुआ था। उसका मुँह खुला हुआ था और उस पर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित आधुनिक हिंदी कहानी के सशक्त कथाकार अमरकांत द्वारा रचित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से उद्धृत है।
इस अंश में लेखक ने भूखी सिद्धेश्वरी द्वारा भूखे पेट पानी पीने से उत्पन्न पीड़ा, उसके निर्धन एवं अभावग्रस्त परिवार तथा उसके छह वर्षीय कुपोषित पुत्र की दीन-हीन दशा का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या – सिद्धेश्वरी और उसके घर-परिवार का चित्रण करते हुए लेखक कहता है कि भूखे पेट पानी पीने के कारण उसकी छाती में दर्द उठा और वह पीड़ा से बिलबिलाती हुई लेट गई। आधे घंटे के पश्चात उसकी हालत ठीक हुई और वह उठकर बैठ गई। उसकी आँखों के आगे अँधेरा-सा छा रहा था। उसने आँखों को मला, तो उसे दिखाई पड़ा कि दालान में दूटी-फूटी खाट पर उसका छह वर्षीय बेटा प्रमोद नंग-धड़ंग लेटा था। उसके शरीर की हड्डियाँ निकल आई थीं। उसके हाथ-पैर कमज़ोरी के मारे किसी बासी ककड़ी की तरह सिकुड़े हुए निर्जीव से पड़े थे। उसका पेट कुपोषण के कारण हैंड़िया की तरह फूला हुआ था। बच्चे का मुख खुला हुआ था और उस पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।
विशेष :
- इस गद्यांश में सिद्धेश्वरी के घर की गरीबी तथा उसके कुपोषित बेटे का मार्मिक चित्रण किया गया है।
- भाषा सरल, मुहावरेदार तथा मार्मिक है।
- शैली वर्णनात्मक है।
- कमज़ोर हाथ-पैरों को बासी ककड़ियों से उपमित करना अत्यंत सटीक है।
2. उन्माद की रोगिणी की भाँति बड़बड़ाने लगी, “पागल नहीं है, बड़ा होशियार है। उस ज़माने का कोई महात्मा है। मोहन तो उसकी बड़ी इड़्ज़त करता है। आज कह रहा था कि भैया की शहर में बड़ी इज़्ज़त होती है, पढ़ने-लिखनेवालों में बड़ा आदर होता है और बड़का तो छोटे भाइयों पर जान देता है। दुनिया में वह सब कुछ सह सकता है, पर यह नहीं देख सकता कि उसके प्रमोद को कुछ हो जाए।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 में संकलित ‘दोपहर का भोजन’ नामक कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक अमरकांत हैं।
इस अंश में लेखक ने परिवार के मुखिया द्वारा पत्नी सिद्धेश्वरी से बड़े बेटे रामचंद्र के बारे में पूछे जाने पर उसके बारे में बताते हुए वह परिवार के मुखिया को खुश करने का प्रयास करती है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब सिद्धेश्वरी के पति उससे बड़े पुत्र रामचंद्र के बारे में पूछते हैं, तो वह पागलपन के मरीज़ के समान बड़बड़ाते हुए कहने लगती है कि उसका पुत्र पागल नहीं, बहुत समझदार है। वह तो अपने पिछले जन्म में कोई संत-महात्मा रहा होगा। मोहन भी अपने बड़े भाई की बहुत इज़ज़त करता है। आज कह रहा था कि भैया की शहर में बहुत इज्ज़त होती है। पढ़ने-लिखनेवालों में भी उसका बहुत सत्कार होता है। वह बड़े लड़के की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहती है कि बड़ा बेटा भी तो अपने छोटे भाइयों को अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करता है। वह बताती है कि बड़ा बेटा संसार के समस्त कष्ट सहन कर सकता है, परंतु यह नहीं सहन कर सकता कि प्रमोद को कुछ हो जाए।
विशेष :
- इन पेक्तियों में लेखक सिद्धेश्वरी के मुख से उसके बड़े लड़के की विशेषताओं का वर्णन करवाता है।
- भाषा सहज, सरल और पात्रानुकूल है।
- शैली वर्णनात्मक है।
- भाषा में मिश्रित शब्दावली है।
3. मुंशी जी ने पत्नी की ओर अपराधी के समान तथा रसोई की ओर कनखी से देखा, तत्पश्चात किसी घुटे उस्ताद की भाँति बोले, “रोटी”….रहने दो, पेट काफ़ी भर चुका है। अन्न और नमकीन चीज़ों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ में कसम धरा दी। खैर, कसम रखने के लिए ले रहा हूँ। गुड़ होगा क्या?”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 में संकलित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं। इस अंश में लेखक ने परिवार के मुखिया की मनोदशा का चित्रण किया है, जो अपनी गरीबी और दीन-हीन दशा में आधा पेट भोजन करने पर भी पेट भर जाने का बहाना करता है। साथ ही वह गुड़ का शर्बत पीकर अपना पेट भरना चाहता है।
व्याख्या – लेखक मुंशी चंद्रिका प्रसाद की मनोदशा का चित्रण करते हुए लिखता है कि जब सिद्धेश्वरी ने पति चंढ्रिका प्रसाद को बड़े लड़के की कसम दिलाकर एक चपाती और खाने के लिए कहा, तो मुंशी जी को लगा मानो पत्नी ने कसम दिलाकर कोई बड़ा अपराध कर दिया हो। उन्होंने दबी आँखों से रसोई की ओर देखा अर्थात् समझ गए कि रसोई में फालतू चपाती नहीं है। मुंशी जी ने बात बनाते हुए कहा कि अन्न और नमकीन से उनका दिल भर गया है। वास्तव में स्थिति इसके ठीक विपरीत थी। उनकी क्षुधा अभी शांत नहीं हुई थी। इसीलिए वे शपथ के बहाने लगे हाथ सिद्धेश्वरी से गुड़ के बारे में पूछकर शर्बत पीने की अपनी इच्छा को भी व्यक्त कर देते हैं।
विशेष :
- इस गद्यांश में मुंशी चंद्रिका प्रसाद की विपन्नता का चित्रण किया गया है। मुंशी जी आधा पेट खाकर उठे हैं, परंतु पत्नी के आग्रह पर केवल गुड़ की माँग करते हैं। उन्हें पता है कि तीसरी रोटी खाने का अर्थ है किसी का भूखे रहना।
- शैली संवादात्मक है।
- घरेलू वातावरण का यथार्थ चित्रण है। सिद्धेश्वरी और चंद्रिका प्रसाद दोनों एक-दूसरे से सच्चाई छिपाने का असफल प्रयास करते हैं।
- भाषा सरल, सहज और पात्रानुकूल है।
4. सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे। दोनों बड़े लड़कों का कहीं पता नहीं था। बाहर की कोठरी में मुंशी जी औंधे मुँह होकर निश्चितता के साथ सो रहे थे, जैसे डेढ़ महीने पूर्व मकान किराया नियंत्रण विभाग की क्लकी से उनकी छँटनी न हुई हो और शाम को उनको काम की तलाश में कहीं जाना न हो!
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग-1 में संकलित कहानी ‘दोपहर का भोजन’ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं। इस अंश में लेखक ने अत्यंत गरीब परिवार की दीन-हीन दशा का वर्णन किया है। इस परिवार में जगह-जगह गरीबी के दर्शन हो रहे हैं और ऊपर से गृहस्वामी को नौकरी से निकाल दिया गया है।
व्याख्या – लेखक घर की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि जब दोपहर का भोजन सब लोग कर लेते हैं, तो घर में शांति छा जाती है। सारा घर मक्खियों से भिनभिनाता रहता है। आँगन की अलगनी पर पैबंद लगी गंदी-सी साड़ी टँगी हुई थी। दोनों लड़के घर पर नहीं थे। उनका कुछ पता नहीं था कि कहाँ गए हैं। घर के बाहर की कोठरी में सिद्धेश्वरी के पति मुंशी जी उलटे मुँह लेटकर चितामुक्त इस प्रकार सो रहे थे, मानो उन्हें डेढ़ महीना पहले मकान किराया नियंत्रण विभाग की क्लर्की से निकाल दिए जाने की कोई चिंता ही न हो तथा शाम को उन्हें कहीं किसी काम की तलाश में जाना ही न हो।
विशेष :
- इन पंक्तियों में लेखक बताता है कि सोया हुआ व्यक्ति सब प्रकार की चिताओं से मुक्त दिखाई देता है।
- परिवार की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण है।
- भाषा सहज, सरल, चित्रात्मक तथा शैली बिंबात्मक है।
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है, जो सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।