Understanding the question and answering patterns through Geography Practical Book Class 11 Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 6 in Hindi वायव फोटो का परिचय
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
नीचे दिये गए प्रश्नों के चार विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें-
1. निम्नलिखित में से किन वायव फोटो में क्षितिज तल प्रतीत होता है?
(क) ऊर्ध्वाधर
(ग) अल्प तिर्यक
(ख) लगभग ऊर्ध्वाधर
(घ) अति तिर्यक
उत्तर:
(घ) अति तिर्यक
2. निम्नलिखित में से किस वायव फोटो में अधोबिन्दु एवं प्रधानबिन्दु एक-दूसरे से मिल जाते हैं?
(क) ऊर्ध्वाधर
(ग) अल्प तिर्यक
(ख) लगभग ऊर्ध्वाधर
(घ) अति तिर्यक
उत्तर:
(क) ऊर्ध्वाधर
3. वायव फोटो निम्नलिखित प्रक्षेपों में से किसका एक प्रकार है?
(क) समान्तर
(ग) केन्द्रक
(ख) लम्बकोणीय
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) केन्द्रक
लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वायव फोटो किस प्रकार खींचे जाते हैं?
उत्तर:
वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान या हैलिकाप्टर में परिशुद्ध कैमरे लगा दिये जाते हैं। इन कैमरों के द्वारा धरातलीय आकृतियों की फोटो खींची जाती है।
प्रश्न 2.
भारत में वायव फोटोग्राफी का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में सबसे पहले 1920 में बड़े पैमाने पर आगरा शहर का वायव फोटो लिया गया था। उसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण के द्वारा इरावदी डेल्टा के वनों का वायु सर्वेक्षण किया गया, जो कि 1923- 24 के दौरान पूरा हुआ था। इसके बाद, इसी प्रकार के अनेक सर्वेक्षण किए गए तथा वायव फोटो से मानचित्र बनाने की उन्नत तकनीक का उपयोग किया गया।
आजकल भारत में पूरे देश का वायव फोटो वायु सर्वेक्षण निदेशालय, नई दिल्ली की देख-रेख में किया जाता है। तीन उड्डयन एजेंसियों भारतीय वायु सेना, वायु सर्वेक्षण कम्पनी (कोलकाता) तथा राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था (हैदराबाद) को भारत में वायव फोटो को लेने के लिए सरकारी तौर पर अधिकृत किया गया है। शैक्षणिक उद्देश्य के लिए वायव फोटो के दंतुरण की प्रक्रिया को APFS पार्टी नं. 73 को भारतीय सर्वेक्षण विभाग के वायु सर्वेक्षण निदेशालय, पश्चिमी ब्लॉक 4, आर. के. पुरम्, नई दिल्ली – 110066 के साथ जोड़कर सुलभ बनाया गया है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें।
प्रश्न 1.
वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
वायव फोटो के उपयोग : वायव फोटो का उपयोग स्थलाकृतिक मानचित्रों को खींचने एवं उसका निर्वचन करने के लिए किया जाता है। इन दो विभिन्न उपयोगों के कारण फोटोग्राममिति तथा फोटो / प्रतिबिम्ब निर्वचन के रूप में दो स्वतन्त्र, लेकिन एक-दूसरे से सम्बन्धित विज्ञानों का विकास हुआ।
(1) फोटोग्राममिति :
यह वायव फोटो के द्वारा विश्वसनीय मापन का विज्ञान एवं तकनीक है। फोटोग्राममिति के सिद्धान्त, इस प्रकार के फोटो की परिशुद्ध लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई की माप प्रदान करते हैं। इसलिए स्थलाकृतिक मानचित्रों को तैयार करने एवं उन्हें अद्यतन बनाने में, ये अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं
(2) प्रतिबिम्ब निर्वचन : यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से सम्बन्धित निर्णय लेने की प्रक्रिया है। प्रतिबिम्ब निर्वचन के सिद्धान्त के प्रयोग से वायव फोटो की गुणात्मक जानकारियाँ ज्ञात की जा सकती हैं, जैसे- भूमि उपयोग, स्थलाकृतियों के प्रकार, मिट्टी के प्रकार इत्यादि। इस प्रकार, एक दक्ष इन्टरप्रेटर वायव फोटो का उपयोग करके वातावरणीय प्रक्रम एवं कृषि भूमि उपयोगों में परिवर्तन का विश्लेषण करता है।
प्रश्न 2.
मापनी के निर्धारण की विभिन्न विधियाँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
वायव फोटो की मापनी की संकल्पना मानचित्रों की मापनी के समान ही होती है। वायव फोटो पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी एवं उनकी वास्तविक धरातल पर दूरी के मध्य अनुपात को मापक कहते हैं। इसे इकाई समतुल्यता के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जैसा कि 1 इंच 1,000 फीट (या 12,000 इंच) या निरूपक भिन्न (1/12,000)। फोटो की मापनी की गणना के लिए तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं, जो विभिन्न सूचनाओं पर आधारित होती हैं।
(1) प्रथम विधि :
फोटो एवं धरातलीय दूरी के बीच सम्बन्ध स्थापित करना :
यदि वायव फोटो में कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध है, जैसे—धरातल पर दो पहचानने योग्य बिन्दुओं की दूरी, तो एक ऊर्ध्वाधर फोटो की मापनी सरलतापूर्वक प्राप्त की जा सकती है । यदि वायव फोटो पर मापी गई दूरी ( Dp ) के साथ धरातल (Dg) की संगत दूरी ज्ञात हो, तो वायव फोटो की मापनी को इन दोनों के अनुपात यानी Dp/Dg में मापा जाएगा।
(2) द्वितीय विधि :
फोटो दूरी एवं मानचित्र दूरी में सम्बन्ध स्थापित करना : जैसा कि हम जानते हैं कि धरातल पर विभिन्न बिन्दुओं के बीच की दूरी हमेशा ज्ञात नहीं होती है। किन्तु, अगर एक वायव फोटो पर दिखाए गए क्षेत्र का मानचित्र उपलब्ध हो, तो इसका उपयोग फोटो मापनी को ज्ञात करने में किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, मानचित्र एवं वायव फोटो पर पहचाने जाने वाले दो बिन्दुओं के बीच की दूरी हमें वायव फोटो (Sp) की मापनी की गणना करने में सहायता प्रदान करती है। इन दोनों दूरियों के बीच के सम्बन्ध को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
(फोटो मापनी : मानचित्र मापनी) = (फोटो दूरी : मानचित्र दूरी)
अतएव, फोटो मापनी (Sp) = फोटो दूरी (Dp) : मानचित्र दूरी (Dm) × मानचित्र मापनी कारक (msf)
(3) तृतीय विधि : फोकस दूरी (f) एवं वायुयान की उड़ान ऊँचाई (H) के बीच सम्बन्ध स्थापित करना-
यदि मानचित्र एवं फोटोग्राफ की सापेक्ष दूरियों की कोई भी अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध नहीं हो, लेकिन कैमरे की फोकस दूरी तथा वायुयान की उड़ान ऊँचाई (H) के सम्बन्ध में जानकारी हो, तो फोटो मापनी प्राप्त की जा सकती है यदि दिया गया वायव फोटो पूर्ण अथवा आंशिक रूप से ऊर्ध्वाधर हो तथा चित्रित भू-भाग समतल हो, तो प्राप्त फोटो मापनी की शुद्धता अधिक होगी। अधिकतर ऊर्ध्वाधर फोटो में कैमरे की फोकस दूरी (f) तथा वायुयान की उड़ान ऊँचाई (H) को सीमान्त जानकारी के रूप में लिया जाता है।
फोटो मापनी सूत्र को प्राप्त करने के लिए उपर्युक्त चित्र का उपयोग निम्न तरीके से किया जा सकता है- फोकस दूरी (f): उड़ान ऊँचाई (H) = फोटो दूरी (Dp) : धरातलीय दूरी (Dg)
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. कैमरा लैंस के केन्द्र से भूविन्यास पर खींचे गए लम्ब का निचला भाग कहलाता है
(अ) अधो बिन्दु
(ब) प्रतिबिम्ब बिन्दु
(स) निर्देश बिन्दु
(द) निर्वचन बिन्दु
उत्तर:
(अ) अधो बिन्दु
2. लक्ष्यों के बिम्बों को पहचानने एवं उनके सापेक्षिक महत्त्व को जानने का कार्य कहलाता है-
(अ) प्रतिबिम्ब निर्वचन
(ब) वायव निर्वचन
(स) फोटोग्राममिति
(द) वायुफिल्क निर्वचन
उत्तर:
(अ) प्रतिबिम्ब निर्वचन
3. प्रथम वायव फोटो लिया गया-
(अ) 1810 में
(ब) 1859 में
(स) 1858 में
(द) 1958 में
उत्तर:
(स) 1858 में
4. विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम की दृश्य क्षेत्र की परास होती है—
(अ) .8 # .10 um
(ब) .4 .7 um
(स) .1 से .4 pm
(द) .8 से 14 m
उत्तर:
(ब) .4 .7 um
5. अल्प तिर्यक में कैमरा अक्ष से झुका होता है—
(अ) 5° से 10°
(ब) 3°
(स) 10° से 40°
(द) 15° से 30°
उत्तर:
(द) 15° से 30°
6. भारत में सबसे पहले बड़े पैमाने पर आगरा शहर का वायव फोटो कब लिया गया ?
(अ) 1920
(ब) 1930
(स) 1956
(द) 1976
उत्तर:
(अ) 1920
7. राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था कहाँ स्थित है?
(अ) कोलकाता
(ब) हैदराबाद
(स) नई दिल्ली
(द) जयपुर
उत्तर:
(ब) हैदराबाद
8. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो का प्रकार है
(अ) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ
(ब) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
(स) अति तिर्यक फोटोग्राफ
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कैमरा अक्ष की स्थिति के अनुसार वायव फोटोग्राफ कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
कैमरा अक्ष की स्थिति के अनुसार वायव फोटोग्राफ 3 प्रकार के होते हैं-
(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ
(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ।
प्रश्न 2.
निर्देश चिह्न किसे कहते हैं?
उत्तर:
निर्देश चिह्न कैमरे के केन्द्र या चारों किनारों में सूचक चिह्न होते हैं। जब फिल्म को निकाला जाता है, तब ये फिल्म निगेटिव पर दिखाई देते हैं।
प्रश्न 3.
संदर्श बिन्दु क्या है?
उत्तर:
प्रकाश की किरणों के बंडल का उत्पत्ति बिन्दु संदर्श बिन्दु कहलाता है
प्रश्न 4.
फोकल लैंथ किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैमरा लैंस एवं निगेटिव सतह के बीच की लम्बवत् दूरी फोकस दूरी या फोकल लैंथ कहलाती है।
प्रश्न 5.
अग्र अतिव्यापन क्या है?
उत्तर:
उड़ान की दिशा में खींचे गए एक ही क्षेत्र के दो कृत्रिम फोटोग्राफ का पुनरावृत्तिक भाग अग्र अतिव्यापन कहलाता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 6.
उड्डयन तुंगता किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैमरा लैंस एवं चित्रित धरातल के बीच की लम्बवत् दूरी को उड्डयन तुंगता कहते हैं।
प्रश्न 7.
फोटोग्राममिति क्या है?
उत्तर:
फोटोग्राममिति एक ऐसी विज्ञान एवं तकनीक है, जिसमें वायव फोटो के माध्यम से विश्वसनीय माप लिए जाते हैं
प्रश्न 8.
भारत में सर्वप्रथम कब एवं किस शहर का वायव फोटो लिया गया?
उत्तर:
1920 में आगरा शहर का।
प्रश्न 9.
ऑर्थोफोटो किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायव फोटो से मानचित्र बनाने के लिए वायव फोटो को संदर्श वायव से समतलमिति दृश्य में परिवर्तन किया जाता है। इन रूपान्तरित चित्रों को ऑर्थोफोटो कहा जाता है।
प्रश्न 10.
भारत की तीन उड्डयन एजेन्सियों के नाम लिखिए, जो वायव फोटो लेने के लिए सरकारी तौर पर अधिकृत हैं।
उत्तर:
- भारतीय वायु सेना
- वायु सर्वेक्षण कम्प नी (कोलकाता)
- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्था (हैदराबाद)।
प्रश्न 11.
पहली बार वायव फोटो खींचने में वायुयान का प्रयोग कब किया गया?
उत्तर:
पहली बार 1909 में इटली के एक नगर की फोटो खींचने में वायुयान का प्रयोग किया गया।
प्रश्न 12.
अल्प तिर्यक फोटोग्राफ किसे कहते हैं?
उत्तर:
उर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 15° से 30° के अभिकल्पित विचलन के साथ लिए गए वायव फोटो को अल्प तिर्यक फोटोग्राफ कहते हैं।
प्रश्न 13.
मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार बताइए।
उत्तर:
मापनी के आधार पर वायव फ़ोटो के तीन प्रकार हैं
- वृहत् मापनी फोटोग्राफ
- मध्यम मापनी फोटोग्राफ
- लघु मापनी फोटोग्राफ।
प्रश्न 14.
वृहद् मापनी फोटोग्राफ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक वायव फोटो की मापनी 1 : 15000 तथा इससे वृहद् होती है, तो इस प्रकार के फोटोग्राफ को वृहद् मापनी फोटोग्राफ कहते हैं।
प्रश्न 15.
वायव फोटो एवं मानचित्र में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
वायव फोटो केन्द्रीय प्रक्षेप पर निर्मित होते हैं जबकि मानचित्र एक लंबकोणीय प्रक्षेप पर निर्मित होते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
ऊर्ध्वाधर, अल्प तिर्यक एवं अति तिर्यक फोटोग्राफ के मध्य तुलना कीजिए।
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर, अल्प तिर्यक एवं अति तिर्यक फोटोग्राफ मध्य अन्तर
प्रश्न 2.
वायव फोटो एवं मानचित्र में अन्तर बताइए।
उत्तर:
वायव फोटो एवं मानचित्र में अन्तर | |
वायव फोटो | मानचित्र |
वायव फोटो केन्द्रीय प्रक्षेप पर निर्मित होते हैं। | यह एक लवकोणीय प्रक्षेप पर निर्मित होते हैं। |
वायव फोटो ज्यामितीय रूप से अशुद्ध होता है। इसमें केन्द्र से किनारे की ओर विकृतियाँ बढ़ती जाती हैं। | मानचित्र पृथ्वी के प्रक्षेपित भाग का उपयुक्त ज्यामितीय प्रदर्शन है। |
वायव फोटो की मापनी एक समान नहीं होती है। | मानचित्र के लिए मापनी एक समान होती है। |
विवर्धन / लघुकरण किए जाने पर इसकी विषय सामग्री में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जाया जा सकता है। | मानचित्र को पुनः निर्मित कर ही विवर्धन / लघुकरण किया जा सकता है। |
अगम्य एवं अवास्य क्षेत्रों के अध्ययन के लिए वायव फोटो उपयोगी होता है। | अगम्य एवं अवास्य क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना बहुत कठिन होता है तथा कभी-कभी यह असंभव भी हो जाता है। |
प्रश्न 3.
ऊर्ध्वाधर वायुफोटो पर दी गई उपांत जानकारियों को चित्र से समझाइए।
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर वायव फ़ोटो पर दी गई उपांत जानकारी
793 एक फोटो विनिर्देश संख्या है, जिसकी देखभाल भारतीय सर्वेक्षण की 73 APFPS पार्टी द्वारा की जाती है। B एक उड्डयन एजेंसी है, जो वर्तमान फोटोग्राफी करती है। ( भारत में तीन उड्डयन एजेंसियाँ ही सरकारी अनुमति से वायव फोटो ले सकती हैं। ये एजेन्सी हैं भारतीय वायु सेना, वायु सर्वे कम्पनी, कोलकाता तथा भारतीय रिमोट सेन्सिंग एजेंसी, हैदराबाद जिन्हें फोटोग्राफ पर क्रमश: A, B एवं C से दर्शाया जाता है)। 5 एक स्ट्रिप संख्या है और स्ट्रिप 5 में 23 फोटो संख्या है।
प्रश्न 4.
एक वायव फोटो में दो बिन्दुओं के बीच की दूरी को 4 सेमी. में मापा जाता है। उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच धरातल पर वास्तविक दूरी 2 किमी. है तो वायव फोटो की मापनी (Sp) की गणना करें।
उत्तर:
हल — Sp = Dp : Dg
यहाँ Dp = वायव फोटो में दो बिन्दुओं के बीच दूरी
Dp = धरातल पर उन्हीं दो बिन्दुओं के बीच वास्तविक दूरी
Sp = वायव फोटो की मापनी
Sp = 4 सेमी. : 2 कि.मी.
= 4 से.मी. : 2 × 1,00,000 ( क्योंकि 1 किमी. = 1,00,000 से.मी.)
= 4 से.मी. : 2,00,000 = 1 : 2,00,000/4
Sp = 1 : 50,000
प्रश्न 5.
एक मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच की दूरी 8 सेमी. है। वायव फोटो पर संगत दूरी 20 सेमी. है। फोटोग्राफ की मापनी की गणना कीजिए, जबकि मानचित्र की मापनी 1 : 1,00,000 है।
उत्तर:
हल Sp = Dp : Dm × msf
Sp = फोटो मापनी
Dm = मानचित्र दूरी
Dp = फोटो दूरी
msf = मानचित्र मापनी कारक
Sp = 20 सें.मी. : 8 से.मी. × 1,00,000
= 20 से.मी. : 8,00,000
= 1 : 8,00,000/20 = 1 : 40,000
प्रश्न 6.
एक वायव फोटो मापनी की गणना कीजिए, जबकि वायुयान की उड्डयन तुंगता 1000 मीटर तथा कैमरे की फोकस दूरी 10 से. मी. है।
10 सेमी. 1000 मीटर या
उत्तर:
हल Sp = f : H
यहाँ f = 10 से.मी.
H = 1000 मीटर
1,00,000 से.मी.
( क्योंकि 1 मीटर = 100 से.मी.)
Sp = 10 से.मी. : 1000 × 100 सेमी.
= 10 सेमी. : 1,00,000 सेमी.
= 1 : 1,00,000/10
= 1 : 10,000
प्रश्न 7.
मापनी के आधार पर वायव फोटोग्राफ को कितने भागों में बाँटा जा सकता है? प्रत्येक का वर्णन करो।
उत्तर:
मापनी के आधार पर वायव फोटो को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(क) बृहत् मापनी फोटोग्राफ :
जब एक वायव फोटो की मापनी 1 : 15,000 तथा इससे बृहत् होती है, तो इस प्रकार के फोटोग्राफ को बृहत् मापनी फोटोग्राफ कहते हैं।
(ख) मध्यम मापनी फोटोग्राफ :
वायव फोटो, जिसकी मापनी 1 : 15,000 से 1 : 30,000 के मध्य होती है, उसे सामान्यतः मध्यम मापनी फोटोग्राफ कहा जाता है।
(ग) लघु मापनी फोटोग्राफ:
1 : 30,000 से लघु मापक वाले फोटोग्राफ को लघु मापनी फोटोग्राफ कहा जाता है।
प्रश्न 8.
वायव फोटो के लाभ बताइए।
उत्तर:
- वायव फोओ हमें बड़े क्षेत्रों के विहंगम दृश्य प्रदान करते हैं जिसके कारण हम पृथ्वी की सतह की आकृतियों को उनके स्थानिक संदी में देख पाते हैं।
- वायव फोटो स्थलाकृतियों के प्रकाशकरण का एक बार में लिया गया अभिलेख है। इसलिए इसका उपयोग ऐतिहासिक अभिलेख में किया जाता है।
- वायव फोटो को लेने में उपयोग की जाने वाली फिल्म की संवेदनशीलता मानवीय आँखों की संवेदनशीलता से अधिक होती है।
- वायव फोटो सामान्यतः एक समान अनावरण अंतराल के साथ लिए जाते हैं जो कि हमें फोटोग्राफ के जिविम युग्म प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वायव फोटो ज्यामिति के विभिन्न प्रक्षेपों को समझाइए।
उत्तर:
वायव फोटो ज्यामिति के लिए विभिन्न प्रक्षेप निम्न हैं-
समान्तर प्रक्षेप : इस प्रक्षेप में, प्रक्षेपित किरणें समान्तर होती हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वे लम्ब हों। त्रिभुज ABC को LL1 रेखा पर प्रक्षेपित किया गया है, जिसका प्रक्षेपित त्रिभुज abc है।
लम्बकोणीय प्रक्षेप : यह समान्तर प्रक्षेप की एक विशेष स्थिति है। मानचित्र, धरातल पर लम्बकोणीय प्रक्षेप होते हैं। इस प्रक्षेप का प्रमुख गुण यह है कि इसमें धरातलीय दूरियाँ, लक्ष्य कोण तथा क्षेत्र सभी किसी लक्ष्य के उच्चता अन्तरों से मुक्त होते हैं। चित्र एक लम्बकोणीय प्रक्षेप का उदाहरण है, जहाँ प्रक्षेपित किरणें रेखा LL1 के लम्बवत् हैं1
केन्द्रीय प्रक्षेप:
चित्र में केन्द्रीय प्रक्षेप का एक उदाहरण दिखाया गया है। प्रक्षेपित किरणें Aa, Bb एवं Cc एक ही बिन्दु O से गुजरती हैं, जिसे संदर्श केन्द्र कहते हैं। एक लेंस के द्वारा प्रक्षेपित आकृति को केन्द्रीय प्रक्षेप माना जाता है।
प्रश्न 2.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए:
(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ,
(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ|
उत्तर:
(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ:
वायव फोटो को खींचते समय कैमरा लेंस के केन्द्र से दो विशिष्ट अक्षों की रचना होती है, एक धरातलीय तल की ओर एवं दूसरा फोटो के तल की ओर। कैमरा लेंस केन्द्र से धरातलीय तल पर दिए गए लम्ब को ऊर्ध्वाधर अक्ष कहा जाता है, जबकि लेंस के केन्द्र से फोटो की सतह पर खींची गई साहुल रेखा को फोटोग्राफी/ऑप्टीकल अक्ष कहते हैं। जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के समान्तर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस प्रकार, प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं।
(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ:
ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 15° से 30° के अभिकल्पित विचलन के साथ लिए गए वायव फोटो को अल्प तिर्यक फोटोग्राफ कहते हैं। इस प्रकार के फोटोग्राफ का उपयोग प्राय: प्रारम्भिक सर्वेक्षणों में होता है।
(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ:
ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरे की धुरी को लगभग 60°झुकाने पर एक अति तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है। इस प्रकार की फोटोग्राफी भी प्रारम्भिक सर्वेक्षण में उपयोगी होती है।