Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 13 Notes in Hindi महासागरीय जल can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 13 Notes in Hindi महासागरीय जल
जल ही जीवन है। जल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवों के लिए आवश्यक घटक है। जल सौरमण्डल का दुर्लभ पदार्थ है। सूर्य अथवा सौरमण्डल में अन्यत्र कहीं भी जल नहीं है। पृथ्वी के धरातल पर प्रचुर मात्रा में जल मिलने के कारण इसे ‘नीला ग्रह’ कहा जाता है।
→ जलीय चक्र:
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। वायु के बाद जल पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक तत्व है। जलीय चक्र पृथ्वी के जलमण्डल में विभिन्न रूपों अर्थात् गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचरण है। इसका सम्बन्ध महासागरों, वायुमण्डल, भूपृष्ठ, अधः स्तल और जीवों के बीच जल के सतत आदान-प्रदान से भी है।
→ महासागरीय अधः स्तल का उच्चावच:
महासागर पृथ्वी की बाहरी परत में वृहत् गर्तों में स्थित है। महाद्वीपों के विपरीत महासागर एक-दूसरे में इतने स्वाभाविक तरीके से विलय हो जाते हैं कि उनका सीमांकन करना कठिन हो जाता है। भूगोलविदों ने पृथ्वी के महासागरीय भाग को प्रशान्त, अटलाण्टिक, हिन्द एवं आर्कटिक महासागरों में विभाजित किया है। महासागरीय अधः स्तल का प्रमुख भाग समुद्रतल के नीचे 3 से 6 किलोमीटर के बीच पाया जाता है। महासागरों की तली में विश्व की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखलाएँ, सबसे गहरे गर्त एवं सबसे बड़े मैदान होने के कारण ये ऊबड़-खाबड़ होते हैं।
→ महासागरीय अधः स्तल का विभाजन: महासागरीय अधः स्तल को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है, यथा-
- महाद्वीपीय शेल्फ : यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1° या उससे भी कम होती है। शेल्फ अत्यंत तीव्र ढाल पर समाप्त होता है, जिसे शेल्फ अवकाश कहा जाता है। महाद्वीपीय शेल्फों की औसत चौड़ाई 80 किलोमीटर होती है।
- महाद्वीपीय ढाल : महाद्वीपीय ढाल महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ को जोड़ती है। ढाल वाले प्रदेश की प्रवणता 2 से 50 के बीच होती है, इसी प्रदेश में कैनियन एवं खाइयाँ दिखलाई देते हैं।
- गभीर सागरीय मैदान : गंभीर सांगरीय मैदान महासागरीय बेसिनों के मन्द ढाल वाले क्षेत्र होते हैं। ये मैदान महीन कणों वाले अवसादों यथा मृत्तिका एवं गाद से ढके होते हैं।
- महासागरीय गर्त : ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये गर्त अपेक्षाकृत खड़े किनारों वाले संकीर्ण बेसिन होते हैं। अभी तक खोजे गये गर्तों में 32 प्रशान्त महासागर में 19 अटलाण्टिक महासागर में एवं 6 हिन्द महासागर में हैं।
→ उच्चावच की लघु आकृतियाँ:
- मध्य – महासागरीय कटक – मध्य : महासागरीय कटक पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बना होता है, जो कि एक विशाल अवनमन द्वारा अलग किए गए होते हैं।
- समुद्री टीला : समुद्री टीले ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये 3000 से 4500 मीटर तक ऊँचे हो सकते हैं।
- सपाट जलमग्न कैनियन : ये गहरी घाटियाँ होती हैं जिनमें से कुछ की तुलना कोलोरेडो नदी की ग्रांड कैनियन से की जा सकती है। हडसन कैनियन विश्वविख्यात है।
- निमग्न द्वीप : यह चपटे शिखर वाले समुद्री टीले हैं। इन चपटे शिखर वाले जलमग्न पर्वतों के बनने की अवस्थाएँ क्रमिक अवतलन के साक्ष्यों द्वारा प्रदर्शित होती हैं।
- प्रवाल द्वीप : ये उष्णकटिबंधीय महासागरों में पाए जाने वाले प्रवाल भित्तियों से युक्त निम्न आकार के द्वीप हैं जो कि गहरे अवनमन को चारों तरफ से घेरे हुए होते हैं।
→ महासागरीय जल का तापमान : महासागरीय जल भूमि के समान सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होते हैं, स्थल की तुलना में जल के तापन व शीतलन की प्रक्रिया धीमी होती है।
महासागरीय जल तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक: महासागरीय जल के तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-
- अक्षांश : ध्रुवों की तरफ सौर्य विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की तरफ कम होता जाता है।
- स्थल व जल का असमान वितरण : उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्द्ध के महासागरों की तुलना में स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
- सनातन पवनें : स्थल से महासागरों की तरफ चलने वाली पवनों से तापमान में देशान्तरीय अन्तर आता है। इसके विपरीत अभितटीय पवनें गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तापमान बढ़ जाता है
- महासागरीय धारायें : गर्म महासागरीय धारायें ठण्डे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ठण्डी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं।
→ तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण:
महासागरीय जल की सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, ताप प्रवणता कहलाता है। मध्य एवं निम्न अक्षांशों में महासागरों में तापमान के आधार पर तीन परतें पायी जाती हैं। पहली परत गर्म महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत होती है जोकि 500 मीटर मोटी होती है और इसका तापमान 20° से 25° के बीच होता है। दूसरी परत में गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है। तीसरी परत बहुत अधिक ठण्डी होती है तथा गंभीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है। महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27° सेल्शियस होता है जोकि भूमध्य रेखा से ध्रुवों की तरफ क्रमिक ढंग से कम होता जाता है।
→ महासागरीय जल की लवणता:
लवणंता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा को निर्धारित करने में किया जाता है। इसका परिकलन 1000 ग्राम समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा के द्वारा किया जाता है। महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक है।
- वाष्पीकरण एवं वर्षा
- नदियों द्वारा लाया गया जल
- पवन
- महासागरीय धारायें
→ लवणता का क्षैतिज वितरण:
सामान्य रूप से खुले महासागर की लवणता 33% से 37 के बीच होती है। चारों तरफ स्थल से घिरे सागर में यह 41 के बीच होती है। गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में जहाँ वाष्पीकरण उच्च होता है कभी-कभी वहाँ की लवणता 70% तक पहुँच जाती है। प्रशान्त महासागर की लवणता में भिन्नता मुख्य रूप से इनके आकार एवं बहुत अधिक क्षेत्रीय विस्तार के कारण पायी जाती है। अटलाण्टिक महासागर की औसत लवणता | 36% के लगभग है। उच्च अक्षांशों में स्थित होने के बावजूद उत्तरी सागर में उत्तरी अटलाण्टिक प्रवाह के द्वारा लाए गए अधिक लवणी जल के कारण अधिक लवणता पायी जाती है । हिन्द महासागर की औसत लवणता 35% है। अरब सागर की लवणता उच्च वाष्पीकरण एवं स्वच्छ जल की कम प्राप्ति के कारण अधिक है।
→ लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण:
गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन आता है लेकिन इसमें परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। सतह की लवणता जल के बर्फ या वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाने के कारण बढ़ जाती है या ताजे जल के मिल जाने से घट जाती है।
→ भौगोलिक शब्दावली
- नीला ग्रह : जल की उपलब्धता के कारण पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है।
- जलीय चक्र : जलमंडल में विभिन्न रूपों अर्थात् गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचरण।
- महाद्वीपीय शेल्फ : महासागर का सबसे उथला भाग।
- महाद्वीपीय ढाल : महासागरीय बेसिनों और महाद्वीपीय शेल्फ को जोड़ने वाली सीमा।
- महासागरीय गर्त : महासागरों के सबसे गहरे भाग।
- गभीर सागरीय मैदान ; महासागरीय बेसिनों के मंद ढाल वाले क्षेत्र।
- समुद्री टीला : नुकीले शिखरों वाला पर्वत।
- निमग्न द्वीप : चपटे शिखर वाला समुद्री टीला।
- लवणता : समुद्री जल में घुले नमक की मात्रा