Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers CBSE Class 12 Hindi Elective रचना विशेष लेखन – स्वरूप और प्रकार to develop Hindi language and skills among the students.
CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana विशेष लेखन – स्वरूप और प्रकार
इस पाठ में हम पढ़ेंगे और जानेंगे
क्या है विशेष लेखन?
विशेष लेखन के क्षेत्र
विशेष लेखन की भाषा और शैली
कैसे हासिल करें विशेषज्ञता
समाचार – लेखन और फ़ीचर के अलावा मीडिया – लेखन के और भी कई पहलू हैं। अखबारों में खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा और मनोरंजन के भी पृष्ठ होते हैं, जिनकी लेखन शैली एवं भाषा अलग-अलग होती है। एक समाचार या पत्रिका तभी संपूर्ण मानी जाती है, जब उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के बारे में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों की नियमित जानकारी दी गई हो। इससे समाचार-पत्रों में विविधता आती है और उनका कलेवर व्यापक भी होता है। पाठक अपनी व्यापक रुचि के कारण साहित्य से लेकर विज्ञान तक और कारोबार से लेकर खेल तक सभी विषयों पर पढ़ना चाहते हैं। इसके अलावा कुछ पाठक इनमें गहरी रुचि होने के कारण इन्हें विस्तार से पढ़ना चाहते हैं, इसलिए ये विशेष लेखन समाचार-पत्रों के आवश्यक अंश होते हैं।
क्या है विशेष लेखन?
समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के लिए जगह यहीं से बनती है। विशेष लेखन यानी किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकतर समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी०वी० और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का समूह भी अलग होता है। जैसे- समाचार-पत्रों और अन्य माध्यमों में बिज़नेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क होता है, इसी तरह खेल की खबरों और फ़ीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से अपेक्षा की जाती है कि संबंधित विषय या क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता होगी।
बीट – असल में खबरें भी कई तरह की होती हैं- राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून, विज्ञान या किसी भी और विषय से जुड़ी हुई। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आमतौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्यक्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटने वाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग करना है। समाचार पत्र की ओर से वह इनकी रिपोर्टिंग के लिए ज़िम्मेदार और जवाबदेह भी है।
इसी तरह अगर हमारी दिलचस्पी और जानकारी का क्षेत्र खेल है तो हमें खेल बीट मिल सकती है और अगर हमारी दिलचस्पी और जानकारी आर्थिक या कारोबार जगत् से जुड़ी खबरों में है तो हमारे हिस्से आर्थिक रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी आ सकती है। अगर हमें प्रकृति या पर्यावरण से प्यार है और इसके बारे में हम कुछ ज़्यादा जानकारी रखते हैं तो हमें पर्यावरण बीट मिल सकती है। विशेष लेखन केवल बीट रिपोर्टिंग नहीं है। यह बीट रिपोर्टिंग से आगे एक तरह की विशेषीकृत रिपोर्टिंग है, जिसमें न सिर्फ़ उस विषय की गहरी जानकारी होनी चाहिए, बल्कि उसकी रिपोर्टिंग से संबंधित भाषा और शैली पर भी हमारा पूरा अधिकार होना चाहिए। बीट रिपोर्टिंग के लिए की जाने वाली आवश्यक तैयारी सामान्य बीट रिपोर्टिंग के लिए भी एक पत्रकार को काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है।
उदाहरण के तौर पर जो पत्रकार राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं या किसी खास राजनीतिक पार्टी को कवर करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उस पार्टी का इतिहास क्या है, उसमें समय – समय पर क्या हुआ है, आज क्या चल रहा है, पार्टी के सिद्धांत या उसकी नीतियाँ क्या हैं, उसके पदाधिकारी कौन-कौन हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या है, बाकी पार्टियों से उस पार्टी के कैसे रिश्ते हैं और उनमें आपस में क्या फ़र्क है, उसके अधिवेशनों में क्या-क्या होता रहा है, उस पार्टी की कमियाँ और खूबियाँ क्या हैं, वगैरह-वगैरह।
पत्रकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नए-नए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई और स्रोतों के ज़रिये भी करनी चाहिए। यानी उस पत्रकार को ज़्यादा से ज़्यादा समय अपने क्षेत्र के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी इकट्ठी करने में बिताना पड़ता है, तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जाती है।
बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग में अंतर
बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग के बीच सबसे महत्वपूर्ण फ़र्क यह है कि अपनी बीट की रिपोर्टिंग के लिए संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी और दिलचस्पी का होना पर्याप्त है। इसके अलावा एक बीट रिपोर्टर को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग का तात्पर्य यह है कि हम सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उस विशेष क्षेत्र या विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करें और पाठकों के लिए उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करें।
जैसे अगर शेयर बाज़ार में भारी गिरावट आती है तो उस बीट पर रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता उसकी एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें सभी जरूरी सूचनाएँ और तथ्य शामिल होंगे। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता इसका विश्लेषण करके यह स्पष्ट करने की कोशिश करेगा कि बाज़ार में गिरावट क्यों और किन कारणों से आई है और इसका आम निवेशकों पर क्या असर पड़ेगा।
संवाददाता और विशेष संवाददाता
बीट कवर करने वाले रिपोर्टर को संवाददाता और विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर को विशेष संवाददाता का दर्जा दिया जाता है। विशेष लेखन के तहत रिपोर्टिंग के अलावा उस विषय के क्षेत्र – विशेष पर फ़ीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार, लेख, समीक्षा और स्तंभ-लेखन भी आता है। इस तरह का विशेष लेखन समाचार-पत्र या पत्रिका में काम करने वाले पत्रकार से लेकर फ्रीलांस पत्रकार या लेखक तक सभी कर सकते हैं। शर्त सिर्फ़ यह है कि विशेष लेखन के इच्छुक पत्रकार या स्वतंत्र लेखक को उस विषय में माहिर होना चाहिए।
मतलब यह कि किसी भी क्षेत्र पर विशेष लेखन करने के लिए ज़रूरी है कि उस क्षेत्र के बारे में आपको ज़्यादा-से-ज्यादा पता हो, उसकी ताज़ा-से-ताज़ा सूचना आपके पास हो, आप उसके बारे में लगातार पढ़ते हों, जानकारियाँ और तथ्य इकट्ठे करते हों और उस क्षेत्र से जुड़े लोगों से लगातार मिलते रहते हों।
अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ और विषय विशेषज्ञ
अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में किसी खास विषय पर लेख या स्तंभ लिखने वाले कई बार पेशेवर पत्रकार न होकर उस विषय के जानकार या विशेषज्ञ होते हैं; जैसे- रक्षा, विज्ञान, विदेश नीति, कृषि या ऐसे ही किसी क्षेत्र में कई वर्षों से काम कर रहा कोई प्रोफ़ेशनल इसके बारे में बेहतर तरीके से लिख सकता है, क्योंकि उसके पास इस क्षेत्र का वर्षों का अनुभव होता है, वह इसकी बारीकियाँ समझता है और उसके पास विश्लेषण करने की क्षमता होती है। हो सकता है, उसके लिखने की शैली सामान्य पत्रकारों की तरह न हो, लेकिन जानकारी और अंतर्दृष्टि के मामले में उसका लेखन पाठकों के लिए फ़ायदेमंद होता है।
उदाहरण के तौर पर हम खेलों में हर्ष भोगले, जसदेव सिंह या नरोत्तम पुरी का नाम ले सकते हैं। वे पिछले चालीस सालों से हॉकी से लेकर क्रिकेट तक और ओलंपिक से लेकर एशियाई खेलों तक की कमेंट्री करते रहे हैं। खेलों के बारे में उनको जितनी जानकारी है, उतनी आमतौर पर किसी के पास नहीं होती। उन्हें खेल – विशेषज्ञ माना जाता है। वे खेलों की तकनीकी बारीकियाँ समझते हैं। क्रिकेट का कोई भी रिकॉर्ड उनकी ज़बान पर होता है। ऐसे में खेलों पर लिखे उनके लेखों को आम पाठक बहुत रुचि के साथ पढ़ते हैं। इसी तरह रक्षा, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, विज्ञान, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण जैसे विषयों पर लिखने वाले विशेषज्ञों और प्रोफ़ेशनल्स के स्तंभ या लेख/टिप्पणियाँ, समाचार-पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित होती हैं।
विशेष लेखन की भाषा – शैली
सामान्य लेखन का यह सर्वमान्य नियम विशेष लेखन पर भी लागू होता है कि वह सरल और समझ में आने वाला हो। दरअसल, विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्र हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं और मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की ज़रूरत पड़ती है, जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल न हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग है। उनके बीच सबसे बुनियादी फ़र्क यह है कि हर क्षेत्र – विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए हमारे लेखन में आती है।
उदाहरणार्थ – कारोबार पर विशेष लेखन करते हुए हमें उसकी शब्दावली से परिचित होना चाहिए। यदि हम उस शब्दावली से परिचित हैं तो यह हमारे सामने चुनौती होती है कि हम उसे अपने पाठकों से इस तरह परिचित कराएँ कि हमारी रिपोर्ट को समझने में पाठकों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।
कारोबार से जुड़ी कुछ शब्दावली
1. कारोबार एवं व्यापार से जुड़ी खबरों की शब्दावली – तेजड़िए, मंदड़िए, बिकवाली, व्याज दर, मुद्रा स्फीति, व्यापार
घाटा, राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा, वार्षिक योजना, निवेश, आयात, निर्यात आदि।
इसी प्रकार ‘सोने में भारी उछाल’, ‘चाँदी लुढ़की’, ‘शेयर बाज़ार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े’, ‘सेंसेक्स आसमान पर’ आदि।
2. पर्यावरण, मौसम विज्ञान आदि खबरों के लिए- ‘पश्चिमी हवाएँ’, ‘आर्द्रता’, ‘टॉक्सिक कचरा’, ‘ग्लोबल वार्मिंग’, ‘तूफ़ान का केंद्र’, ‘रुख’ आदि।
3. खेल की खबर के लिए – ‘भारत ने पाकिस्तान को सात विकेट से पीटा’, ‘श्रीलंकाई चीतों ने किया बांग्लादेशी मेमनों का शिकार’ आदि।
विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर हम अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर हम समाचार फ़ीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अंगर हम लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फ़ीचर की तरह हो सकती है। जैसे हम किसी केस स्टडी से उसकी शुरुआत कर सकते हैं, उसे किसी खबर से जोड़कर यानी न्यूज़पेग के ज़रिये भी शुरू किया जा सकता है। विशेष लेखन में ध्यान रखने वाली बातें विशेष लेखन की मूल बात यह है कि किसी खास विषय पर लिखा गया आलेख सामान्य लेख से अलग होना चाहिए। इसका कारण यह है कि इन विशेष लेखों को सभी पाठक नहीं पढ़ते हैं, पर जो पाठक इसमें विशेष रुचि लेते हैं, वे इनमें सामान्य पाठकों की तुलना में कुछ ज़्यादा ही अपेक्षा करते हैं। ऐसे में उन विषयों या क्षेत्रों में उन्हें अधिक विस्तार और गहराई से बताना आवश्यक हो जाता है; जैसे –
सात साल में पहली बार सस्ता होगा डीजल !
- सानिया मिर्जा और कारा की जोड़ी दूसरे दौर में हारी
- दक्षिण अफ्रीका का सिरीज पर कब्ज़ा
- देश में जमकर बरसेंगी नौकरियाँ
विशेष लेखन का उदाहरण
हर किसी के जीवन में आता है खराब दौर
भारतीय टीम सिरीज़ गँवा चुकी है। कल अब नया दिन होगा। हम सभी को इसका विश्वास होना चाहिए। हालाँकि कुछ बातों से मदद मिल सकती है। राहुल द्रविड़ ने 1999 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। तब वे करीब 32 टेस्ट खेल चुके थे और उनका औसत भी लगभग 52 था। साथ ही छह शानदार शतक भी उनके खाते में थे। विव रिचर्ड्स ने करीब तीन सिरीज ऐसी खेलीं, जिसमें उनका औसत 20 से भी कम रहा। रिकी पोंटिंग ने 2001 में भारत दौरे पर तीन टेस्ट में महज 17 रन बनाए। आप सुनील गावस्कर और ब्रायन लारा के बारे में आँकड़े तलाशेंगे तो आपको इसी तरह के तथ्य मिल जाएँगे।
अब बात गेंदबाजों की करते हैं। कम-से-कम चार सिरीज़ में मुरलीधरन का औसत 100 से अधिक रहा। शेन वार्न और अनिल कुंबले को भी ऐसे ही हालात से रूबरू होना पड़ा। अगर आप यह सोचते हैं कि मैकग्रा और वाल्श कभी असफल नहीं हुए तो दिमाग पर दुबारा ज़ोर डालिए। उसी तरह से पुजारा और कोहली भी रातों-रात खराब खिलाड़ी नहीं बन सकते। वे भले ही खराब दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन यह दौर हर किसी के जीवन में आता है। उन्हें खुद पर भरोसा बनाए रखना होगा। साथ ही धवन और रहाणे को भी।
हालाँकि इसका यह मतलब नहीं है कि भारत को इस सिरीज़ में बुरी तरह हार नहीं मिली। प्रशंसकों का नाराज़ होना भी लाजिमी है। वास्तव में टीम आम हिंदी फ़िल्मों जितने लंबे समय तक भी अपनी पारी नहीं खींच सकी। पाँच दिन तो दूर की बात है भारतीय टीम तो पाँच सत्र में घुटने टेक बैठी। मगर निश्चित रूप से हमें आगे बढ़ने की ज़रूरत है। हमें बैठकर सोचना होगा कि क्या यह युवा खिलाड़ी मजबूती से वापसी करने के लिए तपस्या करने को तैयार हैं। (टीसीएम)
विशेष लेखन के क्षेत्र
विशेष लेखन के क्षेत्र में रोज़मर्रा की रिपोर्टिंग और बीट को छोड़कर वे सभी क्षेत्र आ जाते हैं, जिनमें अलग से विशेषज्ञता की ज़रूरत होती है, पर खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फ़ैशन, स्वास्थ्य विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवन शैली और रहन – सहन जैसे विषयों को विशेष लेखन में अधिक महत्व मिल रहा है।
विशेष लेखन में विशेषज्ञता का अर्थ है – व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित न होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना कि उस विषय या क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहजता से व्याख्या कर सकें और पाठकों के लिए उनके मायने स्पष्ट कर सकें।
कैसे हासिल करें विशेषज्ञता किसी समय पत्रकारिता में विषय के जानकारों से ही काम चला लिया जाता था, पर वर्तमान में ‘मास्टर ऑफ़ वन’ की माँग बढ़ गई है। किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :
- उस विषय में हमारी गहन रुचि होनी चाहिए, जिसमें हम विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं।
- हमें उस विषय की कम-से-कम उच्चतर माध्यमिक (+2) तक की पढ़ाई करनी चाहिए।
- उस विषय से संबंधित ढेरों पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
- विशेष लेखन के क्षेत्र से जुड़े लोगों को अपडेट रखना चाहिए।
- विषय से संबंधित खबरों रिपोर्टों की कटिंग की फ़ाइल बना लेनी चाहिए।
- संबंधित विषय का शब्द कोश और इनसाइक्लोपीडिया भी हमारे पास होनी चाहिए।
- विशेषज्ञों के लेख तथा उनके विश्लेषणों को सहेजकर रखना चाहिए।
- संबंधित विषय, जिसमें विशेषज्ञता हासिल करनी है, उससे जुड़े सरकारी, अर्ध-सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की सूची, वेबसाइट का पता, टेलीफ़ोन नंबर, विशषज्ञों के नाम आदि अपने पास रखने चाहिए।
- विशेषज्ञता हासिल करने के लिए धैर्य अवश्य होना चाहिए, क्योंकि यह एक दिन में नहीं आता। ऐसे में उस विषय के प्रति निरंतर दिलचस्पी और सक्रियता रखने से ही विशेषज्ञता हासिल की जा सकती है।
विशेष लेखन के चुने हुए क्षेत्र
विशेष लेखन का दायरा पर्याप्त विस्तृत है, इसलिए कुछ चुने हुए क्षेत्रों में विशेष लेखन की विशेषताओं एवं शैलियों का वर्णन निम्नलिखित है :
कारोबार और व्यापार
प्रायः सभी समाचार-पत्रों में कारोबार और अर्थ जगत् से जुड़ी खबरों के लिए अलग से एक पृष्ठ होता है। कुछ अखबारों में आर्थिक खबरों के दो पृष्ठ प्रकाशित होते हैं। यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि समाचार पत्र में अगर आर्थिक और खेल का पृष्ठ न हो तो वह संपूर्ण समाचार पत्र नहीं माना जाएगा।
इसका कारण यह है कि अर्थ यानी धन हर आदमी के जीवन का मूल आधार है। हमारे रोज़मर्रा के जीवन में इसका खास महत्व है। हम बाज़ार से कुछ खरीदते हैं, बैंक में पैसे जमा करते हैं, बचत करते हैं, किसी कारोबार के बारे में योजना बनाते हैं या कुछ भी ऐसा सोचते या करते हैं, जिसमें आर्थिक फ़ायदे, नफा-नुकसान आदि की बात होती है तो इन सबका कारोबार और अर्थ जगत् से संबंध जुड़ता है।
यही कारण है कि कारोबार, व्यापार और अर्थ जगत् से जुड़ी खबरों में काफ़ी पाठकों की रुचि होती है। आर्थिक पत्रकारिता का महत्व पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व काफ़ी बढ़ा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच रिश्ता गहरा हुआ है। खासकर आर्थिक उदारीकरण और देश में खुली अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद से अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आया है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। वैसे भी अर्थनीति और राजनीति के बीच गहरा रिश्ता होता है। इसलिए एक आर्थिक पत्रकार को देश की राजनीति और उसमें हो रहे बदलाव की भी जानकारी होनी चाहिए।
आर्थिक पत्रकारिता में ध्यान देने योग्य बातें
आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की तुलना में काफ़ी जटिल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम लोगों को इसकी शब्दावलियों के बारे में या उनके मतलब के बारे में ठीक से पता नहीं होता। उसे आम लोगों की समझ में आने लायक कैसे बनाया जाए, यह आर्थिक मामलों के पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इसके साथ ही आर्थिक खबरों का एक ऐसा पाठकवर्ग भी है जो उस क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण उसके बारे में काफ़ी जानता है। एक आर्थिक पत्रकार को इन दोनों तरह के पाठकों की ज़रूरत को पूरा करना पड़ता है। इसलिए आर्थिक मामलों पर विशेष लेखन करते हुए इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह किस वर्ग के पाठक के लिए लिखा जा रहा है। कारोबार और अर्थ जगत् से जुड़ी रोज़मर्रा की खबरें उलटा पिरामिड शैली में लिखी जाती हैं।
शेयर बाज़ार के समाचार का उदाहरण
सेंसेक्स में महीने की सबसे बड़ी गिरावट आई
कमजोर वैश्विक रुख के बीच फंड और छोटे निवेशकों की लगातार मुनाफ़ावसूली से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स 208 अंक टूटकर 27,057 अंक पर बंद हुआ। सेंसेक्स में यह एक महीने में सबसे बड़ी गिरावट है। इसके अलावा, कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 61 के स्तर से नीचे आने का भी बाजार की धारणा पर प्रतिकूल असर हुआ। अमेरिकी फ़ेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में निवेशकों के अनुमान से पहले ही वृद्धि करने की संभावना से डॉलर मज़बूत हुआ।
30 शेयरों वाला सेंसेक्स कारोबार के दौरान दिन के निचले स्तर 27,018 अंक पर आ गया था। सेंसेक्स में शामिल 30 में से 22 कंपनियों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए। इसी तरह नेशनल स्टॉक एस्सचेंज का निफ्टी भी 8,100 के स्तर से नीचे आ गया और 59 अंक टूटकर 8,095 अंक पर बंद हुआ।
ब्रोकरेज फर्म वेल्थरेज सिक्युरिटीज के निदेशक एवं सीईओ किरण कुमार कविकोंडाला ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा अनुमान से पहले ही ब्याज दरें बढ़ाने की अटकलों से वैश्विक बाजारों में नरमी आई।
खेल (एजेंसी)
खेल का क्षेत्र ऐसा है, जिसमें अधिकांश लोगों की रुचि होती है। खेल हर आदमी के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है। बचपन से ही हमारी विभिन्न खेलों में रुचि होती है और हममें से अधिकांश के भीतर एक खिलाड़ी ज़रूर होता है। जीवन की भागदौड़ और दूसरी ज़िम्मेदारियों की वजह से यह खिलाड़ी बेशक कहीं दब जाता हो, लेकिन खेलों में दिलचस्पी बनी रहती है। इसलिए हम देखते हैं कि क्रिकेट हो या हॉकी, टेनिस हो या फुटबॉल, ओलंपिक हो या एशियाई खेल- ये सब एक उत्सव बन जाते हैं। कई खेल तो देश की संस्कृति में रच-बस जाते हैं और इसलिए उन खेलों के बारे में पढ़ने वालों और उसे देखने वालों की संख्या काफ़ी ज़्यादा होती है।
खेलों पर विशेष लेखन का महत्व
अखबारों और दूसरे माध्यमों में खेलों को बहुत अधिक महत्व मिलता है। सभी समाचार-पत्रों में खेल के एक या दो पृष्ठ होते हैं और कोई भी टी०वी० तथा रेडियो बुलेटिन खेलों की खबर के बिना पूरा नहीं होता। यही नहीं, समाचार माध्यमों में खेलों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार – पत्र और पत्रिकाओं में खेलों पर विशेष लेखन, खेल विशेषांक और खेल परिशिष्ट प्रकाशित हो रहे हैं। इसी तरह टी०वी० और रेडियो पर खेलों के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं।
खेल – संबंधी विशेष लेखन में ध्यान देने योग्य बातें
खेल – संबंधी लेखन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
- खेल की तकनीक, उसके नियमों, उसकी बारीकियों तथा उससे संबंधित बातों से भली प्रकार परिचित होना चाहिए।
- जिस खेल में विशेषज्ञता हासिल करें, उसके बारे में जानकारी और समझदारी का स्तर ऊँचा होना चाहिए।
उस खेल के रिकॉर्ड्स और कीर्तिमानों का ज्ञान होना चाहिए। - खेल – संबंधी जानकारियों को दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।
- खेलों की रिपोर्टिंग और विशेष लेखन की भाषा और शैली में एक ऊर्जा, जोश, रोमांच और उत्साह दिखना चाहिए।
- खेल की खबर या रिपोर्ट उलटा पिरामिड शैली में शुरू होती है, लेकिन दूसरे पैराग्राफ से वह कथात्मक अर्थात् घटनानुक्रम शैली में चली जाती है।
क्रिकेट की एक सामान्य खबर का उदाहरण
अजमल पर प्रतिबंध की नौबत क्यों आई?
शिवेंद्र कुमार सिंह (वरिष्ठ खेल पत्रकार) सईद अजमल इस वक्त दुनिया के नंबर एक वन-डे गेंदबाज हैं। टेस्ट क्रिकेट में भी वे शीर्ष के 10 गेंदबाजों में शुमार हैं। पिछले तीन साल में वे टेस्ट, वनडे और टी-20, तीनों फ़ॉर्मेट में दुनिया के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। उन्हें गेंदबाजी करते हुए देखना अपने-आप में एक दिलचस्प अनुभव है। उससे भी ज्यादा मजेदार है, उनकी गेंदों पर बड़े-बड़े बल्लेबाजों का हैरान होना और आउट होना। उनके खाते में सिर्फ़ 35 टेस्ट मैचों में 178 विकेट हैं। वे 183 वनडे विकेट ले चुके हैं। टी-20 मैचों में भी उनके नाम 85 विकेट हैं।
पिछले 4-5 साल से वे पाकिस्तान की टीम का नियमित हिस्सा हैं। इसके अलावा पिछले 4-5 साल में पाकिस्तान की जीत के वे हीरो रहे हैं। लेकिन ये सारी बातें अब बीते कल की हैं, अब पाकिस्तान के इस ऑफ़ स्पिनर पर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल यानी आईसीसी ने प्रतिबंध लगा दिया है। उनका गेंदबाजी ऐक्शन संदिग्ध पाया गया है। पिछले महीने श्रीलंका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच के बाद उनके ऐक्शन की शिकायत की गई थी। जाँच के बाद पाया गया कि वे आईसीसी के तय मानकों के अंदर गेंदबाजी नहीं करते हैं। गेंद फेंकते वक्त उनकी कोहनी 15 डिग्री से ज्यादा घूमती है।
ऐसा भी नहीं है कि सईद अजमल को पहली बार संदिग्ध ऐक्शन के लिए पकड़ा गया है। साल 2009 में भी उनके ऐक्शन पर सवाल उठे थे। तब से अब तक सईद अजमल ने अपनी गलती को ठीक करने के लिए क्या किया? पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने क्या किया? टीम के साथ रहने वाले सपोर्ट स्टाफ़ ने क्या किया? अगर सईद अजमल दोषी हैं, तो पीसीबी दोषी क्यों नहीं है? सपोर्ट स्टाफ़ पर फ़ाइन क्यों नहीं होना चाहिए? कोई भी गेंदबाज मैच में तो कुछ ही ओवर फेंकता है, लेकिन नेट्स में तो वह घंटों गेंदबाजी करता है। कड़वा सच यह है कि ‘जब तक मामला चुपचाप चल रहा है, चलने दिया जाय’ की सोच ने यह नौबत ला दी। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सईद अजमल को अगले साल होने वाले वर्ल्ड कप से पहले क्लीन चिट मिल पाएगी?
अब यह विवाद तूल इसलिए पकड़ेगा, क्योंकि संदिग्ध ऐक्शन के लिए प्रतिबंधित गेंदबाजों की फेहरिस्त में पाकिस्तान के गेंदबाज कुछ ज्यादा रहे भी हैं। शब्बीर अहमद, शोएब अख्तर, मोहम्मद हफ़ीज, शोएब मलिक, रियाज अफ़रीदी और शाहिद अफ़रीदी के नाम संदिग्ध गेंदबाजी ऐक्शन में आ चुका है। ऐसे में पीसीबी की तरफ से यह आवाज जल्दी ही उठेगी कि यह उनके गेंदबाजों के खिलाफ़ साजिश है। बिशन सिंह बेदी जैसे दिग्गज गेंदबाज एक कदम और आगे निकल गए हैं। उन्होंने कह दिया है कि उन मैचों का क्या होगा, जिनमें सईद अजमल ने जीत दिलाई थी। लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा कि यह नौबत क्यों आई? लापरवाही क्या सिर्फ़ खिलाड़ी की ही है, अगर नहीं, तो फिर अकेले खिलाड़ी पर प्रतिबंध क्यों? (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
सूचनाओं के स्रोत
- मंत्रालय के सूत्र
- साक्षात्कार
- प्रेस कांफ्रेंस और विज्ञप्तियाँ
- सर्वे और जाँच समितियों की रिपोर्ट्स
- विशेष लेखन – स्वरूप और प्रकार
- उस क्षेत्र में सक्रिय संस्थाएँ और व्यक्ति
- इंटरनेट और अन्य संचार माध्यम
- संबंधित विभागों और संगठनों से जुड़े व्यक्ति स्थायी अध्ययन प्रक्रिया
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न –
प्रश्न 1.
विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर :
विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाएँ हैं –
- भौतिक अनुसंधानशाला, अहमदाबाद।
- भाभा अनुसंधान केंद्र, मुंबई।
- एन० आई० आई०टी०, दिल्ली।
- अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला, तिरुवनंतपुरम।
- साहा नाभिकीय भौतिक संस्थान, कोलकाता।
प्रश्न 2.
पर्यावरण पर छपने वाली किन्हीं तीन पत्रिकाओं के नाम लिखें।
उत्तर :
पर्यावरण पर छपने वाली तीन पत्रिकाएँ हैं-
- पर्यावरण एवं प्रदूषण (भोपाल)।
- हमारा पर्यावरण
- इनवायरो न्यूज़ (मिनिस्ट्री ऑफ़ इंडिया)।
प्रश्न 3.
व्यावसायिक शिक्षा के दस विभिन्न पाठ्यक्रमों के नाम लिखें और उनका ब्योरा एकत्र करें।
उत्तर :
व्यावसायिक शिक्षा से जुड़े दस विभिन्न पाठ्यक्रम निम्नलिखित हैं-
1. जे०बी०टी, बी० एड०, एम० एड०- देशभर के विश्वविद्यालय XII और स्नातक पूरा करने के बाद ये पाठ्यक्रम चलाते हैं। इनमें जी०बी०टी० तथा बी०एड० पाठ्यक्रम द्विवर्षीय, जबकि एम० ए० एकवर्षीय पाठ्यक्रम हैं, जो प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर अध्यापन का अवसर प्रदान करते हैं।
2. बी० पी० एड० एवं एम०पी०एम० – यह पाठ्यक्रम देश के मुख्य विश्वविद्यालयों द्वारा चलाया जाता है, जो बी०ए० पूरा करने के बाद किया जाता है। इन पाठ्यक्रमों से शारीरिक शिक्षण के द्वार खुल जाते हैं।
3. बी०बि० एवं एम० लिब० – पुस्तकालय विज्ञान से संबंधित ये पाठ्यक्रम बी० एड्० के बाद किए जाते हैं। इस पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद विभिन्न पुस्तकालयों में सेवा का अवसर मिलता है।
4. एल०एल० बी० – देश के सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों द्वारा चलाए जा रहे इस पाठ्यक्रम की अवधि + 2 के बाद 5 वर्ष एवं बी० ए० के बाद तीन वर्ष है। इसे सफलतापूर्वक पूरा करने पर वकील या न्यायाधीश बना जा सकता है।
5. बी० फार्मा – अस्पतालों में दवाओं के वितरण के लिए तथा निजी मेडिकल स्टोर चलाने के लिए यह पाठ्यक्रम आवश्यक है। +2 विज्ञान वर्ग (बायलॉजी सहित) से पढ़ाई करने पर चार साल में इसे पूरा किया जा सकता है।
6. एम० बी० बी० एस० – विज्ञान वर्ग (बायलॉजी सहित) से +2 करके प्रवेश परीक्षा द्वारा इस चिकित्सीय पाठ्यक्रम में प्रवेश मिलता है। इसकी अवधि साढ़े पाँच साल है। इसे सफलतापूर्वक पूरा करने पर डॉक्टर बनते हैं।
7. बी०टेक० – इंजीनियरिंग सेवाओं में जाने के लिए यह लोकप्रिय कोर्स है। विज्ञान वर्ग (गणित सहित) से + 2 करके इसमें प्रवेश पाया जा सकता है। 4 साल में पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करके इंजीनियर बना जा सकता है।
8. मैनेजमेंट – देश के सभी प्रमुख विश्वविद्यालय इस पाठ्यक्रम की शिक्षा दे रहे हैं। बी०बी०ए० और एम०बी०ए० करने के बाद नौकरी पाई जा सकती है। आई०आई०एम० संस्थाओं से निकले छात्रों की बड़ी माँग रहती है।
9. टेलीकम्युनिकेशन – देश में संचार क्रांति आने से इस क्षेत्र में रोज़गार की संभावनाएँ बढ़ गई हैं। युवाओं में यह क्षेत्र काफी लोकप्रिय हो रहा है। यहाँ बी०सी०ए० और एम०सी०ए० करने के बाद नौकरियाँ पाई जा सकती हैं।
10. एविएशन – देश-विदेश में एविएशन सेक्टर में देशी-विदेशी, निजी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या बढ़ने के कारण यहाँ नौकरी की संभावनाएँ बढ़ गई हैं। यहाँ पायलटों के अलावा एअर क्राफ़्ट मेंटिनेंस इंजीनियर, एअर हॉस्टेस, फ़्लाइट स्टीवर्ट, ग्राउंड व टिकटिंग स्टाफ़ की माँग निरंतर बढ़ती जा रही है।
प्रश्न 4.
निम्न में से किसी एक विषय पर अपने शब्दों में आलेख लिखें :
(क) सानिया मिर्ज़ा के खेल के तकनीकी पहलू
(ख) शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाए जाने के परिणाम
(ग) सर्राफ़े में आई तेज़ी
(घ) फ़िल्मों में हिंसा
(ङ) पल्स पोलियो अभियान – सफलता या असफलता
(च) कटते जंगल
(छ) ग्रहों पर जीवन की खोज
उत्तर :
उपर्युक्त विषयों में से कुछ के संकेत रूप आलेख निम्नलिखित हैं :
1. शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाए जाने के परिणाम- जीवन में हर प्रकार के विकास के लिए शिक्षा बहुत ज़रूरी है। विद्वतजनों ने इस बात को अत्यंत गहराई से महसूस किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इसे संविधान में मौलिक अधिकार बनाने की सिफ़ारिश की। 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने से शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। इससे माता-पिता अपने बच्चों को काम पर न भेजकर विद्यालय भेजेंगे। इसका सुखद परिणाम होगा। इससे बाल मज़दूरी पर अंकुश लगेगा। बच्चे पढ़-लिखकर योग्य नागरिक बनेंगे और वे देश की प्रगति में समुचित योगदान देंगे। इससे ‘बचपन बचाओ’ अभियान को सफलता मिलेगी।
2. सर्राफ़े में आई तेजी – त्योहारों का मौसम और विदेशों से तेज़ी के समाचार के बीच गुरुवार को भी सोने की कीमतों में वृद्धि देखी गई। आभूषण निर्माताओं और स्टॉकिस्टों की भारी लिवाली के कारण सोने की कीमतें 400 रु० बढ़कर 28,500 रु० प्रति दस ग्राम तक पहुँच गई हैं। कुछ ऐसा ही हाल चाँदी का रहा। चाँदी 2,000 रु० प्रति किलोग्राम चढ़कर 43,000 रु० प्रतिकिलो की नई ऊँचाई को छू गई। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आने के कारण ग्लोबल बाज़ार में सोने और चाँदी की कीमत नई ऊँचाई को छू गई। यह बढ़ोतरी चाँदी और सोने के सिक्कों में भी देखी गई।
3. फ़िल्मों में हिंसा – फ़िल्में लोगों के मनोरंजन का सशक्त साधन हैं। किसी समय बनने वाली फ़िल्में साफ़-सुथरी और मनोरंजक हुआ करती थीं, जिन्हें परिवार के लोग साथ-साथ देखते थे, पर आजकल फ़िल्मों में सेक्स, हिंसा और मारकाट के दृश्य बढ़ते जा रहे हैं। इसका समाज पर दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है। इससे समाज में लूटमार, चोरी-डकैती, बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि तथा नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है। इस पर नियंत्रण करने वाला सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने में विफल रहा है। वर्तमान समय में निर्माता सेक्स और हिंसा को सफलता की गारंटी मानकर इसका मनमाना दुष्प्रयोग कर रहे हैं। फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली इस हिंसा को रोकना अति आवश्यक है।
4. पल्स पोलियो अभियान सफलता या असफलता – पोलियो बच्चों को अपाहिज बना देने वाली बीमारी है, जिसके उन्मूलन के लिए हमारे देश में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाते हुए समय-समय पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों को पोलियो के ड्रॉप्स पिलाए जाते हैं। इसे साल में छह-सात बार निःशुल्क पिलाया जाता है। विभिन्न अस्पतालों, डिस्पेंसरियों, रेलवे स्टेशनों एवं बस स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर इसे लोगों की पहुँच के निकट बनाकर इस अभियान को चलाया गया और निरंतर चलाया जा रहा है। जिससे पोलियो उन्मूलन में अशातीत सफलता मिली है। इसके बाद भी कुछ राज्यों में एक-दो केस सामने आ जाने से अभी इसकी शत-प्रतिशत सफलता का दावा नहीं किया जा सकता।
5. कटते जंगल – हम सभी जानते हैं कि ‘वन रहेंगे – हम रहेंगे’, फिर भी मनुष्य अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से बाज नहीं आ रहा है। वह वनों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। इससे हरे-भरे वन नष्ट होते जा रहे हैं। आज जंगलों की हालत देखकर रोना आता है। मनुष्य का स्वार्थपूर्ण व्यवहार, उसकी बढ़ती आवश्यकताएँ, जनसंख्या – वृद्धि वनों के सफाए के लिए जिम्मेदार हैं। कभी खेती के नाम पर, कभी मकान बनाने के लिए जगह के नाम पर और कभी धन कमाने के लिए इन वनों का विनाश किया जा रहा है। कारखानों की स्थापना और लकड़ी की बढ़ती आवश्यकता भी इसकी कटाई का मुख्य कारण है। इसका दुष्प्रभाव मौसम के दुष्चक्र, असमय वर्षा, अनावृष्टि, बाढ़ आदि के रूप में हमारे सामने है। मनुष्य को चाहिए कि वह जीवनदायी जंगलों को काटना बंद कर दे, अन्यथा वनों के विनाश के साथ-साथ उसका विनाश निश्चित है।
बहुविकल्पीय प्रश्न –
कुछ अन्य प्रश्न –
प्रश्न 1.
विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर को कहते हैं-
(i) संवाददाता
(ii) विशेष संवाददाता
(iii) डेस्क संवाददाता
(iv) स्तंभ पत्रकार
उत्तर :
(ii) विशेष संवाददाता
प्रश्न 2.
खेल की खबर या रिपोर्ट का दूसरा पैराग्राफ होता है-
(i) उल्टा पिरामिड शैली में
(ii) कथात्मक शैली में
(iii) सांकेतिक शैली में
(iv) व्यावहारिक शैली में
उत्तर :
(ii) कथात्मक शैली में
प्रश्न 3.
‘निवेश’ शब्द का संबंध है-
(i) व्यापारिक खबरों से
(ii) खेल संबंधी खबरों से
(iii) पर्यावरण संबंधी खबरों से
(iv) मौसम संबंधी खबरों से
उत्तर :
(i) व्यापारिक खबरों से
प्रश्न 4.
संवाददाताओं की रुचि के अनुरूप कार्य विभाजन को मीडिया की भाषा में कहते हैं-
(i) डेस्क रिपोर्टिंग
(ii) बीट रिपोर्टिंग
(iii) विशेषीकृत रिपोर्टिंग
(iv) उपरोक्त सभी गलत हैं।
उत्तर :
(ii) बीट रिपोर्टिंग
प्रश्न 5.
‘टॉक्सिक कचरा’ शब्द का संबंध है –
(i) व्यापारिक खबरों से
(ii) खेल संबंधी खबरों से
(iii) पर्यावरण संबंधी खबरों से
(iv) राजनीतिक खबरों से
उत्तर :
(iii) पर्यावरण संबंधी खबरों से
लघुत्तरात्मक प्रश्न – I
प्रश्न 1.
खेल, व्यापार आदि से जुड़ी खबरें समाचार लेखन से अलग क्यों होती हैं?
उत्तर :
खेल, व्यापार आदि से जुड़ी खबरें समाचार लेखन से इसलिए अलग होती हैं, क्योंकि इनकी भाषा और शैली दोनों ही
अलग होती है।
प्रश्न 2.
खेल, व्यापार जगत् आदि से जुड़ी खबरें समाचार-पत्रों के लिए आवश्यक क्यों हैं?
उत्तर :
खेल, व्यापार जगत् आदि से जुड़ी खबरों से ही समाचार-पत्र पूर्ण बनता है। इन खबरों के अभाव में वह अपूर्ण ही
रहता है। इसके अलावा इससे समाचार-पत्रों में विविधता भी आती है।
प्रश्न 3.
‘डेस्क’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में तथा अलग-अलग क्षेत्रों में लेखन के लिए अलग-अलग पत्रकारों का दल जहाँ बैठकर लेखन करता है, उसे डेस्क कहते हैं। खेल, व्यापार, समाचार, फ़ीचर लेखन के लिए अलग-अलग डेस्क होते हैं।
प्रश्न 4.
‘बीट’ से आप क्या समझते हैं?
अथवा
पत्रकारिता मे ‘बीट’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
संवाददाताओं के बीच लेखन कार्य का बँटवारा उनकी रुचि, ज्ञान, अनुभव एवं योग्यता को ध्यान में रखकर किया
जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहते हैं।
प्रश्न 5.
विशेषीकृत रिपोर्टिंग क्या है?
उत्तर :
किसी विषय या क्षेत्र से जुड़ी सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उससे जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करते हुए पाठकों के सामने प्रस्तुत करना विशेषीकृत रिपोर्टिंग कहलाता है।
प्रश्न 6.
विशेष संवाददाता किन्हें कहते हैं?
उत्तर :
वे संवाददाता, जो विशेषीकृत रिपोर्टिंग करते हैं, उन्हें विशेष संवाददाता कहा जाता है।
प्रश्न 7.
फ्रीलांस पत्रकार किन्हें कहते हैं?
उत्तर :
फ्रीलांस पत्रकार वे पत्रकार होते हैं, जो किसी अखबार के वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होते। वे किसी भी अखबार के लिए लेखन करके भुगतान लेते हैं।
प्रश्न 8.
क्रिकेट से जुड़े कुछ जानकार या विशेषज्ञों के नाम लिखिए।
उत्तर :
क्रिकेट से जुड़े कुछ जानकार या विशेषज्ञ व्यक्ति हैं- नरोत्तम पुरी, जसदेव सिंह, हर्षा भोगले आदि।
प्रश्न 9.
पर्यावरण और मौसम से जुड़ी कुछ शब्दावली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पर्यावरण और मौसम से जुड़ी कुछ शब्दावली है – पश्चिमी विक्षोभ, हवा का दाब, पश्चिमी हवाएँ, आर्द्रता, टॉक्सिक कचरा, ग्लोबल वार्मिंग, तूफ़ान का केंद्र या रुख आदि।
प्रश्न 10.
न्यूज पेग क्या है?
उत्तर :
किसी विशेष लेख या टिप्पणी की शुरुआत किसी खबर से जोड़कर प्रस्तुत करना न्यूज़ पेग कहलाता है।
प्रश्न 11.
विशेष लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार और फीचर लेखन के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा और मनोरंजन संबंधित विषयों पर जो लेखन किया जाता है, उसे विशेष लेखन कहते हैं। इनकी शैली और भाषा अलग होती है।
प्रश्न 12.
विशेष लेखन के कुछ क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
विशेष लेखन के कुछ क्षेत्र हैं-अर्थ व्यापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, कृषि, विदेश, रक्षा, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, फ़िल्म- मनोरंजन आदि।
प्रश्न 13.
कारोबार और अर्थ जगत् से जुड़ी खबरों का लेखन किस शैली में किया जाता है?
उत्तर :
कारोबार और अर्थ जगत् से जुड़ी खबरों का लेखन उलटा पिरामिड शैली में किया जाता है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
समाचार और फ़ीचर लेखन के बाद भी विशेष लेखन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर :
अखबार में समाचार और फ़ीचर लेखन करने से ही अखबार पूरा नहीं हो जाता। मीडिया लेखन के और भी अनेक पहलू हैं। अधिकतर अखबारों में खेल, अर्थ- व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन के अलग पृष्ठ होते हैं। इनमें छपने वाली खबरें, फ़ीचर या आलेख कुछ अलग तरह से लिखे जाते हैं। इनकी न सिर्फ़ शैली अलग होती है, बल्कि भाषा भी अलग होती है। एक समाचार पत्र या पत्रिका तभी संपूर्ण लगती है, जब उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के बारे में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों के बारे में नियमित रूप से जानकारी दी जाए।
इससे समाचार-पत्रों में एक विविधता आती है और उनका कलेवर व्यापक होता है। दरअसल, पाठकों की रुचियाँ बहुत व्यापक होती हैं और वे साहित्य से लेकर विज्ञान तक तथा कारोबार से लेकर खेल तक सभी विषयों पर पढ़ना चाहते हैं। इसके अलावा बहुतेरे पाठक ऐसे भी होते हैं, जिनकी विज्ञान या खेल या कारोबार या सिनेमा में गहरी दिलचस्पी होती है। वे अपनी दिलचस्पी के इन विषयों के बारे में विस्तार से पढ़ना चाहते हैं। इसलिए समाचार-पत्रों और दूसरे जनसंचार माध्यमों को सामान्य समाचारों से अलग हटकर विशेष क्षेत्रों या विषयों के बारे में निरंतर और पर्याप्त जानकारी देनी पड़ती है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए :
डेस्क, बीट, फ्रीलांस पत्रकार
उत्तर :
डेस्क-प्रायः अधिकांश समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी०वी० और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए डेस्क होता है। उस डेस्क पर काम करने के लिए पत्रकारों का समूह भी अलग होता है। जिस प्रकार समाचार-पत्रों और अन्य माध्यमों में कारोबार और व्यापार का डेस्क अलग होता है, उसी प्रकार खेल की खबरों और फ़ीचर के लिए डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले संपादक और उपसंपादक संबंधित विषय या क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हैं।
बीट – समाचार-पत्रों में कई प्रकार की खबरें होती हैं; जैसे-राजनीति, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून आदि विषयों से जुड़ी हुईं। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन उनकी दिलचस्पी, ज्ञान और अनुभव को देखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्य क्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटने वाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग करना है।
फ्रीलांस पत्रकार – रिपोर्टिंग के अलावा उस विषय या किसी क्षेत्र विशेष पर फ़ीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार, समीक्षा, स्तंभ-लेखन आदि कार्यों के लिए कुछ पत्रकार स्वतंत्र रूप से किसी भी समाचार-पत्र के लिए कार्य करते हैं। ये किसी विशेष अखबार के वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होते हैं। इसके लिए पत्रकार को अपने विषय या क्षेत्र का गहरा ज्ञान रखने वाला होना चाहिए।
प्रश्न 3.
विशेष लेखन से जुड़ी कुछ शब्दावली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कारोबार एवं व्यापार से जुड़ी शब्दावली – तेजड़िए, मंदड़िए, बिकवाली, ब्याज दर, मुद्रा-स्फीति, व्यापार घाटा, राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा, वार्षिक योजना, विदेशी संस्थागत निवेशक, एफ़०डी०आई०, आवक, निवेश, आयात, निर्यात, सोने में भारी उछाल, चाँदी लुढ़की या आवक बढ़ने से लाल मिर्च की कड़वाहट घटी या शेयर बाज़ार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े, सेंसेक्स आसमान पर।
पर्यावरण एवं मौसम से जुड़ी शब्दावली – पश्चिमी हवाएँ, आर्द्रता, टॉक्सिक कचरा, ग्लोबल वार्मिंग, तूफ़ान का केंद्र या रुख आदि।
खेलों से जुड़े शीर्षक – भारत ने पाकिस्तान को चार विकेट से पीटा, चैंपियंस कप में मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके।
प्रश्न 4.
विशेष लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता कैसे हासिल की जा सकती है?
उत्तर :
विशेष लेखन के अंतर्गत जिस विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उस विषय में 10+2 स्तर पर या स्नातक स्तर पर उस विषय की पढ़ाई करनी चाहिए। इसके अलावा अपनी रुचि के विषय में पत्रकारीय विशेषज्ञता हासिल करने के लिए हमें उन विषयों से संबंधित पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए। विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए खुद को अपडेट रखना बेहद ज़रूरी होता है।
इसके लिए उस विषय से जुड़ी खबरों और रिपोर्टों की कटिंग करके फ़ाइल बनानी चाहिए। साथ ही उस विषस के प्रोफ़ेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग भी सहेजकर रखनी चाहिए। इस तरह से हमें उस विषय में जितनी संभव हो, संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए एवं उस विषय का शब्द कोश और इनसाइक्लोपीडिया भी हमारे पास होनी चाहिए। इसके अलावा उससे जुड़े सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, टेलीफ़ोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम और फ़ोन नंबर अपनी डायरी में ज़रूर रखना चाहिए।
प्रश्न 5.
पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के बारे में लिखने वाले पत्रकारों को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के बारे में लिखने वालों के लिए ज़रूरी है कि वे खेल की तकनीक, उसके नियमों, उसकी बारीकियों और उससे जुड़ी तमाम बातों से भलीभाँति परिचित हों। लेकिन एक खेल – लेखक के लिए हर खेल के बारे में पूरे अधिकार के साथ लिखना या जानना मुश्किल होता है। इसलिए कोई क्रिकेट का जानकार होता है तो कोई हॉकी की बारीकियाँ बेहतर समझता है।
ऐसे पत्रकार जिस खेल के बारे में लेखन करें, उससे संबंधित जानकारी और समझदारी का स्तर ऊँचा होना चाहिए। उन्हें उस खेल में बनने वाले रिकॉर्ड्स (कीर्तिमानों) के बारे में पता होना चाहिए। एक खेल पत्रकार को अपनी इन जानकारियों को दिलचस्प तरीके से पेश करना चाहिए। वह जब किसी मैच का, किसी खिलाड़ी – विशेष के प्रदर्शन का खेल की तकनीक का और उससे जुड़े तमाम पहलुओं का विश्लेषण करता है तो यह विश्लेषण खेल की तरह ही रोमांचक होना चाहिए। खेलों की रिपोर्टिंग और विशेष लेखन की भाषा तथा शैली में एक ऊर्जा, जोश, रोमांच और उत्साह दिखना चाहिए।
महत्वपूर्ण परीक्षापयोगी प्रश्न –
नोट : परीक्षा में जनसंचार के विविध माध्यमों के लिए लेखन, पत्रकारीय लेखन जैसी सभी विधाओं पर एक-एक अंक के चार अति लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे।
प्रश्न 1.
प्रिंट माध्यम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
संचार के जो साधन प्रिंट अर्थात् छपे रूप में लोगों तक सूचनाएँ पहुँचाते हैं, उन्हें प्रिंट माध्यम कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्रिंट माध्यम के दो प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
प्रिंट माध्यम के दो प्रमुख साधन हैं – (i) समाचार – पत्र, (ii) पत्र-पत्रिकाएँ।
प्रश्न 3.
प्रिंट मीडिया (माध्यम ) का महत्व हमेशा क्यों बना रहेगा?
उत्तर :
वाणी, विचारों, सूचनाओं, समाचारों आदि को लिखित रूप में रिकॉर्ड करने का आरंभिक साधन होने के कारण प्रिंट मीडिया का महत्व हमेशा बना रहेगा।
प्रश्न 4.
पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर :
प्रिंट (छपे), रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 5.
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू –
- समाचारों का संकलन
- संपादन करके छपने योग्य बनाना
- पत्र-पत्रिकाओं में छापकर पाठकों तक पहुँचाना आदि हैं।
प्रश्न 6.
संवाददाता के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
संवाददाता का प्रमुख कार्य है – विभिन्न स्थानों से खबरें लाना।
प्रश्न 7.
संपादक के मुख्य कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
संपादक के मुख्य कार्य खबरों, लेखों, फ़ीचरों का व्यवस्थित ढंग से संपादन और उनकी सुरुचिपूर्ण ढंग से छपाई करना है।
प्रश्न 8.
भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत कब और कहाँ से हुई ?
उत्तर :
भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गजट’ से हुई जो कोलकाता
(तत्कालीन कलकत्ता) से निकला था।
प्रश्न 9.
हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र कौन-सा था ? उसके संपादक कौन थे?
उत्तर :
हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तंड’ था, जिसके संपादक पं० जुगल किशोर शुक्ल थे।
प्रश्न 10.
स्वतंत्रता – प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता एक मिशन थी, कैसे?
उत्तर :
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता का एक ही लक्ष्य था – स्वतंत्रता की प्राप्ति। इस प्रकार पत्रकारिता एक मिशन थी।
प्रश्न 11.
स्वतंत्रता – प्राप्ति के उपरांत पत्रकारिता में किस प्रकार का बदलाव आया?
उत्तर :
स्वतंत्रता – प्राप्ति के उपरांत शुरू के दो दशकों तक पत्रकारिता राष्ट्र-निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध थी, पर बाद में उसका चरित्र व्यावसायिक और प्रोफ़ेशनल होने लगा।
प्रश्न 12.
किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?
उत्तर :
नवीनता, लोगों की रुचि, प्रभाविकता, निकटता आदि तत्वों के होने से घटना समाचार बन जाती है।
प्रश्न 13.
इंटरनेट पत्रकारिता से क्या आशय है?
उत्तर :
इंटरनेट पर समाचार-पत्रों को प्रकाशित करना, समाचारों का आदान-प्रदान करना इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है।
प्रश्न 14.
पत्रकारिता किस सिद्धांत पर कार्य करती है?
उत्तर :
पत्रकारिता मनुष्य की सहज जिज्ञासा शांत करने के सिद्धांत पर कार्य करती है।
प्रश्न 15.
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन से हैं?
उत्तर :
पत्रकारिता के कई प्रमुख प्रकार हैं। उनमें से खोजपरक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।
प्रश्न 16.
भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला था?
उत्तर :
भारत में पहला छापाखाना 1556 ई० में गोवा में खुला था।
प्रश्न 17.
समाचार किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
प्रश्न 18.
संपादन का अर्थ बताइए।
उत्तर :
संपादन का अर्थ है – किसी सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी एवं तथ्यात्मक अशुद्धियों को दूर करते हुए पठनीय बनाना।
प्रश्न 19.
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए कौन-कौन से सिद्धांत अपनाए जाते हैं?
उत्तर :
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत अपनाए जाते हैं :
- तथ्यों की शुद्धता
- वस्तु-परखता
- निष्पक्षता
- संतुलन
- स्रोत
प्रश्न 20.
किन्हीं दो समाचार एजेंसियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
(i) पी०टी०आई० (भाषा)
(ii) यू०एन०आई० (भाषा)
प्रश्न 21.
समाचार – पत्र संपूर्ण कब बनता है ?
उत्तर :
जब समाचार-पत्र में समाचारों के अलावा विचार, संपादकीय टिप्पणी, फोटो और कार्टून होते हैं, तब समाचार-पत्र पूर्ण बनता है।
प्रश्न 22.
खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
अथवा
खोजी पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
अथवा
खोजी रिपोर्ट का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर :
खोजपरक पत्रकारिता वह पत्रकारिता होती है, जिसमें गहराई से छानबीन करके उन सूचनाओं और तथ्यों को सामने लाया जाता है, जिन्हें दबाया या छुपाया जा रहा होता है।
प्रश्न 23.
विशेषीकृत पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
वह पत्रकारिता, जो किसी घटना की तह में जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और पाठकों को उसका महत्व बताए, विशेषीकृत पत्रकारिता कहलाती है।
प्रश्न 24.
वॉचडॉग पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
जो पत्रकारिता सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और कोई गड़बड़ी होते ही उसका पर्दाफ़ाश करती है, उसे वॉचडॉग पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 25.
एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर :
ऐसी पत्रकारिता जो किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाती है, उसे एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 26.
वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर :
जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करते हैं, उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 27.
पेज थ्री पत्रकारिता का आशय क्या है?
उत्तर :
पेज थ्री पत्रकारिता का आशय उस पत्रकारिता से है, जिसमें फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी पार्टियों, महफ़िलों तथा लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार सामान्यतः समाचार-पत्र के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते हैं।
प्रश्न 28.
ड्राई एंकर किसे कहते हैं?
अथवा
‘ड्राई एंकर’ का तात्पर्य समझाइए
उत्तर :
जब एंकर खबर के बारे में सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ और साथ-साथ जब तक खबर के दृश्य नहीं आते, तब तक एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है, उसे ड्राई एंकर कहते हैं।
प्रश्न 29.
फ़ोन – इन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
फ़ोन – इन वे सूचनाएँ या समाचार होते हैं, जिन्हें एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बातें करके दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है।
प्रश्न 30.
एंकर – बाइट क्या है? टेलीविज़न समाचारों में यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर :
एंकर- बाइट का अर्थ है – कथन। टेलीविज़न में किसी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखाकर और सुनाकर (बाइट) समाचारों को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
प्रश्न 31.
एंकर – पैकेज किसे कहते हैं?
उत्तर :
पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता से पेश करने का साधन होता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, लोगों की बाइट, ग्राफिक से जुड़ी सूचनाएँ आदि होती हैं।
प्रश्न 32.
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर :
पत्रकार अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
प्रश्न 33.
पत्रकारीय लेखन संबंधी भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
पत्रकारीय भाषा सीधी, सरल, साफ़-सुथरी, परंतु प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सरल और सहज होने चाहिए। भाषा में कठिन और दुरूह शब्दावली से बचना चाहिए, ताकि भाषा बोझिल न हो।
प्रश्न 34.
समाचार – लेखन की कितनी शैलियाँ होती हैं?
उत्तर :
समाचार-लेखन की दो प्रमुख शैलियाँ हैं – (i) सीधा पिरामिड शैली तथा (ii) उलटा पिरामिड शैली |
प्रश्न 35.
सीधा पिरामिड शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सीधा पिरामिड शैली में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना यानी ‘क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में होता है। यह शैली कहानी या कथा लेखन में अपनाई जाती है।
प्रश्न 36.
उलटा पिरामिड शैली (इंवर्टेड पिरामिड शैली) से क्या तात्पर्य है?
समाचार – लेखन की पिरामिड शैली को समझाइए।
अथवा
उत्तर :
यह समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह कहानी या कथा-लेखन शैली की ठीक उल्टी है। इसमें आधार ऊपर और शीर्ष नीचे होता है। इसमें शुरू में समापन, मध्य में बॉडी और अंत में मुखड़ा होता है।
प्रश्न 37.
समाचार – लेखन के छह ककार बताइए।
उत्तर :
समाचार-लेखन के छह ककार हैं- क्या, किसके, कहाँ, कब, कैसे और क्यों।
प्रश्न 38.
समाचार-लेखन में छह ककारों का महत्व क्या है?
उत्तर :
किसी समाचार को लिखते समय मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है। समाचार लिखते समय क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ का उत्तर समाचार लिखते समय दिया जाता है।
प्रश्न 39.
समाचारों के मुखड़े ( इंट्रो) में किन ककारों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर :
समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में चार ककारों- क्या, कौन, कहाँ और कब का प्रयोग किया जाता है, और तथ्यों पर आधारित होते हैं।
प्रश्न 40.
रेडियो पर प्रसारण के लिए तैयार समाचार कॉपी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
रेडियो पर प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी में एक पंक्ति में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए। वाक्यों में जटिल, उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए।
प्रश्न 41.
संपादकीय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
संपादकीय समाचार पत्र का वह महत्वपूर्ण अंश होता है, जिसे संपादक, सहायक संपादक तथा संपादकमंडल के सदस्य लिखते हैं।
प्रश्न 42.
संपादकीय का समाचार-पत्र के लिए क्या महत्व है?
उत्तर :
संपादकीय को किसी समाचार-पत्र की आवाज़ माना जाता है। यह एक निश्चित पृष्ठ पर छपता है। यह अंश समाचार पत्र को पठनीय तथा अविस्मरणीय बनाता है। संपादकीय से ही समाचार पत्र की अच्छाइयों एवं बुराइयों (गुणवत्ता) का निर्धारण किया जाता है। समाचार पत्र के लिए इसकी महत्ता सर्वोपरि है।
प्रश्न 43.
संपादकीय किसी नाम के साथ नहीं छापा जाता, क्यों?
उत्तर :
संपादकीय किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति विशेष की राय, भाव या विचार नहीं होते, अतः उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता।
प्रश्न 44.
संपादकीय पृष्ठ पर किन-किन सामग्रियों को स्थान दिया जाता है?
उत्तर :
संपादकीय पृष्ठ पर संपादकीय, महत्वपूर्ण लेख, फ़ीचर, सूक्तियाँ, संपादक के नाम पत्र आदि को स्थान दिया जाता है।
प्रश्न 45.
संपादकीय का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
किसी घटना, समस्या अथवा विशिष्ट मुद्दे पर संपादकमंडल की राय (समाचार-पत्र के विचार) जनता तक पहुँचाना संपादकीय का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 46.
संपादकीय लेखन के चार कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
संपादकीय लेखन के चार कार्य हैं- समाचारों का विश्लेषण, पृष्ठभूमि की तैयारी, भविष्यवाणी करना तथा नैतिक निर्णय देना।
प्रश्न 47.
प्रिंट मीडिया के लाभ कौन-कौन से हैं?
अथवा
मुद्रिक जन संचार माध्यमों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर :
- प्रिंट मीडिया को धीरे-धीरे, दुबारा या मर्जी के अनुसार पढ़ा जा सकता है।
- किसी भी पृष्ठ या समाचार को पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है।
- इन्हें सुरक्षित रखकर संदर्भ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रश्न 48.
आलेख किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में संपादकीय पृष्ठ पर कुछ लेख छपे होते हैं जो समसामयिक घटनाओं पर आधारित होते हैं, उन्हें आलेख कहते हैं।
प्रश्न 49.
आलेख किन – किन क्षेत्रों से संबंधित होते हैं?
उत्तर :
आलेख खेल, समाज, राजनीति, अर्थजगत्, व्यापार, खेल आदि क्षेत्रों से संबंधित हो सकते हैं।
प्रश्न 50.
अच्छे आलेख के गुण / विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(i) अच्छे आलेख में सूचनाओं का होना अनिवार्य है, जिसमें नवीनता एवं ताज़गी हो।
(ii) विचारों में स्पष्टता तथा भाषा में सरलता, बोधगम्यता तथा रोचकता होनी चाहिए।
प्रश्न 51.
आलेख में किसकी प्रमुखता होती है?
उत्तर :
आलेख में लेखक के विचारों की प्रमुखता होती है। इसी कारण इसे विचार-प्रधान गद्य भी कहा जाता है।
प्रश्न 52.
आलेख के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
आलेख के मुख्य अंग हैं- भूमिका, विषय का प्रतिपादन व निष्कर्ष।
प्रश्न 53.
आलेख लिखते समय क्या-क्या तैयारियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर :
(i) आलेख लिखते समय संबंधित विषय से जुड़े आँकड़ों व उदाहरणों का संग्रह करना चाहिए।
(ii) लेखन से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषय-वस्तु का विश्लेषण करना चाहिए।