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CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana कैसे लिखें कहानी
कहानी क्या है?
‘कहानी क्या है?’ इस प्रश्न का विद्वानों द्वारा एक निश्चित जवाब नहीं दिया गया है। उन्होंने कहानी की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। वे किसी एक परिभाषा पर एकमत नहीं हैं। कहानी की “किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा, जिसमें परिवेश हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है।’
कहानी का मानव जीवन से जुड़ाव :
परिभाषा के बारे में कहा जा सकता है –
द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो,
कहानी हमारे जीवन से इतनी गहराई से जुड़ चुकी है कि हर आदमी किसी-न-किसी रूप में कहानी सुनता और सुनाता है। जैसे ही कोई व्यक्ति बात को घुमा-फिराकर कहता है, तो सुननेवाला तुरंत कह बैठता है, “कहानी न सुनाओ। जल्दी से
बताओ कि क्या हुआ?”
वास्तव में प्रत्येक आदमी में अपनी अनुभव बाँटने और दूसरों के अनुभव जानने की प्राकृतिक इच्छा होती है। हम अपनी बातें दूसरों को सुनाना और उनकी बातें सुनना चाहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हर व्यक्ति में कहानी लिखने का मूलभाव निहित होता है, भले ही मनुष्य में इस भाव का विकास कम हो या ज़्यादा।
कहानी का इतिहास :
वास्तव में कहानी का इतिहास, मानव इतिहास जितना ही पुराना है। क्योंकि कहानी मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। अतः धीरे – धीरे कहानी कहने की कला का विकास होने लगा और कथावाचक कहानियाँ सुनाने लगे। ये कहानियाँ किसी घटना, युद्ध, प्रेम और प्रतिशोध से जुड़ी होती थीं।
कहानी और कल्पना :
कल्पना करना, मानव स्वभाव का प्रमुख गुण है। सच्ची घटनाओं पर आधारित कथा – कहानी सुनाते-सुनाते उसमें कल्पना का सम्मिश्रण किया जाने लगा। यह मानव का स्वभाव है कि वह प्रायः वही सुनना चाहता है, जो उसे प्रिय हो।
उदाहरणार्थ – हमारा नायक भले ही युद्ध में हार गया हो पर हम यही सुनना चाहते हैं कि उसने अत्यंत वीरता, साहस से लड़ते हुए अच्छे उद्देश्य के लिए बलिदान दे दिया। ऐसी ही कहानियाँ सुनानेवाले कथावाचक प्रशंसा के पात्र होते हैं और इनाम पाते हैं। कथावाचक श्रोताओं की रुचि को ध्यान में रखते हुए अपनी कल्पना से नायक के गुणों का बखान करते हैं।
कहानियों की लोकप्रियता और उद्देश्य :
प्राचीन काल में इससे बड़ा संचार का कोई साधन न होने के कारण मौखिक कहानियाँ बहुत लोकप्रिय थीं। धर्म प्रचारकों ने अपने सिद्धांत और विचारों को लोगों तक पहुँचाने के लिए कहानी का सहारा लिया। कालांतर में शिक्षा देने के लिए भी लोगों ने इस विधा का प्रयोग किया। ‘पंचतंत्र’ में लिखी कहानियों का उद्देश्य शिक्षा देना ही था। बाद में ‘कहानी का उद्देश्य विकसित होता गया।
कहानी का कथानक :
कहानी के केंद्रीय बिंदु को कथानक कहते हैं। यह कहानी का संक्षिप्त रूप होता है जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है। उदाहरणार्थ- प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’, जो आठ-दस पृष्ठ की है लेकिन इसका कथानक दस-बारह पंक्तियों में भी लिखा जा सकता है- गाँव में ईद की चहल-पहल है। लोग जल्दी -से-जल्दी काम निबटाकर ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे ज्यादा खुश बच्चे हैं। वे बार- बार अपनी जेब के खजाने को गिन रहे हैं।
हामिद की बूढ़ी दादी अमीना अपनी गरीबी से परेशान है कि सेंवइयाँ कैसे बनेंगी, हामिद ईदगाह कैसे जाएगा आदि। बालक हामिद कहाँ माननेवाला था। वह भी ईदगाह जानेवालों की टोली में शामिल हो जाता है। ईदगाह में नमाज़ का दृश्य अद्भुत है। बाद में सब बच्चों ने मिठाइयाँ खाईं, खिलौने खरीदे, पर हामिद अपने तीन पैसे इस तरह खर्च करना मूर्खता समझता है। वह तीन पैसों में अपनी दादी अमीना के लिए चिमटा खरीदकर, अपने साथियों के साथ अपनी दादी का भी दिल जीत लेता है।
कथानक कहानी का एक प्रारंभिक नक्शा होता है। कहानी का कथानक आमतौर पर कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। कभी कहानीकार की जानकारी में पूरा कथानक आता है तो कभी कथानक का एक सूत्र या एक छोटा-सा प्रसंग अथवा कोई पात्र कथाकार को आकर्षित करता है। इसके बाद कहानीकार उसे अपनी कल्पना से विस्तार देता है। यह कल्पना ऐसी होती है, जो संभव हो। कल्पना के विस्तार के लिए लेखक के पास जो सूत्र होता है, उसी के माध्यम से कल्पना आगे बढ़ती है। यह सूत्र लेखक को एक परिवेश देता है, पात्र देता है, समस्या देता है, जिसके आधार पर लेखक संभावनाओं पर विचार करके एक काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है जो संभावित हो और जो लेखक के उद्देश्यों से भी मेल खाता हो।
कथानक के अंग :
कथानक का पूरा स्वरूप होता है। इसके तीन अंग होते हैं- प्रारंभ, मध्य और अंत। अर्थात कथानक का पूरा स्वरूप होता है। कथानक न केवल आगे बढ़ता है बल्कि उसमें द्वंद्व के तत्व भी होते हैं जो कहानी को रोचक बनाए रखते हैं। द्वंद्व के तत्वों से अभिप्राय यह है कि परिस्थितियों में इस काम के रास्ते में यह बाधा है। यह बाधा समाप्त हो गई तो आगे कौन – सी बाधा आ सकती है? या हो सकता है एक बाधा के समाप्त हो जाने या किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाने के कारण कथानक पूरा हो जाए। कथानक की पूर्णता की शर्त यही होती है कि कहानी नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद समाप्त हो। अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहनी चाहिए। यह रोचकता द्वंद्व के कारण ही बनी रह पाएगी।
कथानक का देशकाल और स्थान :
हर घटना, पात्र, समस्या का अपना देशकाल और स्थान होता है। कथानक का स्वरूप बन जाने के बाद कहानीकार कथानक के देशकाल और स्थान को पूरी तरह समझ लेता है क्योंकि यह कहानी को प्रामाणिक और रोचक बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। जैसे, यदि अस्पताल का कथानक है तो अस्पताल का पूरा परिवेश, ध्वनियाँ, लोग, कार्य-व्यापार और लोगों के पारस्परिक संबंध, नित्य घटनेवाली घटनाएँ आदि का जानना आवश्यक है।
कथानक के पात्र :
देशकाल, स्थान और परिवेश के बाद कथानक के पात्रों पर विचार करना चाहिए। हर पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप स्पष्ट होना चाहिए। इससे पात्रों का चरित्र चित्रण करने एवं संवाद के लेखन में आसानी होगी। पात्रों का अध्ययन कहानी की एक महत्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। कौन-से पात्र की किस परिस्थिति में क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी कहानीकार को पता होना चाहिए। असल में कहानीकार और उसके पात्रों का निकटतम संबंध होना चाहिए।
पात्रों का चरित्र-चित्रण :
पात्रों का चरित्र-चित्रण करने अर्थात उन्हें कहानी में कथानक की आवश्यकतानुसार अधिक-से-अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के कई तरीके हैं। इनमें से एक है- पात्रों के गुणों का बखान करना। जैसे- ‘श्यामू बड़ा परोपकारी है। वह दूसरों के नहीं देख सकता है।’ चरित्र चित्रण का यह तरीका प्रभावहीन और आउटडेटेड है। पात्रों का चरित्र चित्रण उनके दुख क्रियाकलापों, संवादों तथा दूसरों के द्वारा बोले गए संवादों के माध्यम से ही प्रभावशाली होता है। जैसे- श्यामू ने दवा की दुकान से उस आदमी को निराश लौटते देखा, जिसके पास पैसे कम थे। उसने दुकानदार को पैसे दिए और दवा लेकर उस व्यक्ति को दे दिया।
पात्रों का चरित्र चित्रण पात्रों की अभिरुचियों के माध्यम से भी होता है। अलग-अलग प्रकार के लोगों की अभिरुचियाँ भी अलग-अलग होती हैं। जैसे – जंगल में खतरनाक जानवरों की तसवीरें खींचनेवाले की अभिरुचि अलग होगी, जबकि सूदखोर साहूकार की अभिरुचि अलग होती है।
पात्रों के संवाद :
कहानी में पात्रों के संवाद बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। संवाद के बिना पात्र की कल्पना मुश्किल है। संवाद ही कहानी को, पात्र को स्थापित, विकसित करते हैं और कहानी को गति देते हैं, आगे बढ़ाते हैं। जो घटना या प्रतिक्रिया कहानीकार होती हुई नहीं दिखा सकता, उसे संवादों के माध्यम से सामने लाता है। इसलिए संवादों का महत्व बराबर बना रहता है। पात्रों के संवाद लिखते समय यह अवश्य ध्यान में रहना चाहिए कि संवाद पात्रों के स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल हों।
वह उसके विश्वासों, आदर्शों तथा स्थितियों के भी अनुकूल होने चाहिए। संवाद लिखते समय लेखक गायब हो जाता है और पात्र स्वयं संवाद बोलने लगते हैं। उदाहरण के लिए किसी मजदूर के संवाद ऐसे होने चाहिए कि केवल संवाद सुनकर ही श्रोता को पता चल जाए कि कौन बोल रहा है, यह आदमी क्या करता है, इसकी पृष्ठभूमि क्या है आदि-आदि। संवाद छोटे, स्वाभाविक और उद्देश्य के प्रति सीधे लक्षित होने चाहिए। संवादों का अनावश्यक विस्तार बहुत-सी जटिलताएँ पैदा कर देता है।
कहानी का चरमोत्कर्ष :
इसे कहानी का क्लाइमेक्स भी कहा जाता है। इसका चित्रण बहुत ही सावधानी से करना चाहिए क्योंकि कहानी के पात्र या भाव की अतिरिक्त अभिव्यक्ति चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर देती है। इस बारे में सबसे अच्छा यह होता है कि चरम उत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधरता की ओर आने के लिए प्रेरित करे, लेकिन पाठक को यह भी लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई और उसने जो निर्णय निकाले हैं, उसके अपने हैं।
कथानक में द्वंद्व :
कथानक में द्वंद्व का अपना विशेष योगदान होता है। द्वंद्व ही कथानक को आगे बढ़ाता है। यदि दो व्यक्ति किसी बात पर सहमत हैं और उनमें द्वंद्व नहीं है तो बात आगे नहीं बढ़ सकती है, परंतु असहमति होने पर बातचीत सरलता से आगे बढ़ जाती है। कहानीकार अपने कथानक में द्वंद्व के बिंदुओं को जितना स्पष्ट रखेगा, कहानी भी उतनी सफलता से ही आगे बढ़ेगी।
कहानी लिखने की कला सीखने के लिए आवश्यक है कि कहानियाँ पढ़ी जाएँ और उनका विश्लेषण किया जाए। कहानी लेखन सिखाने की प्रक्रिया में यही सबसे अधिक कारगर माध्यम होता है।
जब मैंने अपनी पहली कहानी लिखी :
चाहिए तो यह था कि मेरी पहली कहानी प्रेम-कहानी होती। उम्र के एतबार से भी यही मुनासिब था और अदब के एतबार से भी। पर प्रेम के लिए (और प्रेम काहनी के लिए भी) अनुकूल परिस्थियाँ हों, तब काम बने।
मैंने वही लिखा जो मेरे जैसे माहौल में पलने वाले सभी भारतीय युवक लिखते हैं- अबला नारी की कहानी। हिंदी के अधिकांश लेखकों का तो साहित्य में पदार्पण अबला नारी की कहानी से ही होता है और यह दुखांत होनी चाहिए। मैंने भी वैसा ही किया। बड़ी बेमतलब, बेतुकी कहानी थी, न सिर, न पैर और शुरू से आखिर तक मनगढ़ंत, पर चूँकि अबला नारी के बारे में थी और दुखांत थी, इसलिए वानप्रस्थी जी को भी कोई एतराज़ नहीं हो सकता था, और पिता जी को भी नहीं, इसलिए कहानी, कॉलिज पत्रिका में स्थान पा गई।
पर इसके कुछ ही देर बाद एक प्रेमकहानी सचमुच कलम पर आ ही गई। नख – शिख से प्रेम-कहानी ही थी, पर किसी दूसरी दुनिया की कहानी, जिसमें मैं परिचित नहीं था। तब मैं कॉलिज छोड़ चुका था, और पिता जी के व्यापार में हाथ बँटाने लगा था। कालिज के दिन पीछे छूटते जा रहे थे, और आगे की दुनिया बड़ी ऊटपटाँग और बेतुकी – सी नज़र आ रही थी। हर दूसरे दिन कोई-न-कोई अनूठा अनुभव होता। कभी अपने घुटने छिल जाते, कभी किसी दूसरे को तिरस्कृत होते देखता। मन उचट-उचट जाता। तभी एक दिन बाज़ार में मुझे दो प्रेमी नज़र आए।
शाम के वक़्त, नमूनों का पुलिंदा बगल में दबाए मैं सदर बाज़ार से शहर की ओर लौट रहा था, जब सरकारी अस्पताल के सामने, बड़े-से नीम के पेड़ के पास मुझे भीड़ खड़ी नज़र आई। भीड़ देखकर मैं यों भी उतावला हो जाया करता था, कदम बढ़ाता पास जा पहुँचा। अंदर झाँककर देखा तो वहाँ दो प्रेमियों का तमाशा चल रहा था। टिप्पणियाँ और ठिठोली भी चल रही थी। घेरे के अंदर एक युवती खड़ी रो रही थी और कुछ दूरी पर एक युवक ज़मीन पर बैठा, दोनों हाथों में अपना सिर थामे, बार- बार लड़की से कह रहा था, “राजो, दो दिन और माँग खा। मैं दो दिन में तंदुरुस्त हो जाऊँगा। फिर मैं मजूरी करने लायक हो जाऊँगा।”
और लड़की बराबर रोए जा रही थी। उसकी नीली नीली आँखें रो-रोकर सूज रही थीं।
“मैं कहाँ से माँगूँ? मुझे अकेले में डर लगता है।”
दोनों प्रेमी, आस-पास खड़ी भीड़ को अपना साक्षी बना रहे थे।
“देखो बाबू जी, मैं बीमार हूँ। इधर अस्पताल में पड़ा हूँ। मैं कहता हूँ दो दिन और माँग खा, फिर मैं चंगा हो जाऊँगा।’ लड़की लोगों को अपना साक्षी बनाकर कहती, “यहाँ आकर बीमार पड़ गया, बाबू जी में क्या करूँ? इधर पुल पर मजूरी करती रही हूँ, पर यहाँ मुझे डर लगता है। ”
इस पर लड़का तड़पकर कहता, “देख राजो, मुझे छोड़कर नहीं जा। इसे समझाओ बाबू जी यह मुझे छोड़कर चली जाएगी तो इसे मैं कहाँ ढूँढूँगा?”
“यहाँ मुझे डर लगता है। मैं रात को अकेली सड़क पर कैसे रहूँ?”
पता चला कि दोनों प्रेमी गाँव से भागकर शहर में आए हैं, किसी फकीर ने उनका निकाह भी करा दिया है, फटेहाल गरीबी के स्तर पर घिसटने वाले प्रेमी ! शहर पहुँचकर कुछ दिन तक तो लड़के को मज़दूरी मिलती रही। पास ही में एक पुल था। वह पुल के एक छोर से सामान उठाता और दूसरे छोर तक ले जाता, जिस काम के लिए उसे इकन्नी मिलती। कभी किसी की साइकल तो कभी किसी का गट्ठर। हनीमून पूरे पाँच दिन तक चला। दोनों ने न केवल खाया पिया, बल्कि लड़के ने अपनी कमाई में से जापानी छींट का एक जोड़ा भी लड़की को बनवा कर दिया, जो उन दिनों अढ़ाई आने गज़ में बिका करती थी।
दोनों रो रहे थे और तमाशबीन खड़े हँस रहे थे। कोई लड़की की नीली आँखों पर टिप्पणी करता, कोई उनके ‘ऐसे-वैसे ‘ प्रेम पर, और सड़क की भीड़ में खड़े लोग केवल आवाज़ें ही नहीं कसते, वे इरादे भी रखते हैं। और एक मौलवीजी लड़की की पीठ सहलाने लगे थे, और उसे आश्रय देने का आश्वासन देने लगे थे। और प्रेमी बिलख-बिलख कर प्रेमिका से अपने प्रेम के वास्ते डाल रहा था।
तभी, पटाक्षेप की भाँति अँधेरा उतरने लगा था और पीछे अस्पताल की घंटी बज उठी थी जिसमें प्रेमी युवक भरती हुआ था, और वह गिड़गिड़ाता, चिल्लाता, हाथ बाँधता, लड़की से दो दिन और माँग खाने का प्रेमालाप करता अस्पताल की ओर सरकने लगा और मौलवी जी सरकते हुए लड़की के पास आने लगे, और घबराई, किंकर्तव्यविमूढ़ लड़की, मृग – शावक की भाँति सिर से पैर तक काँप रही थी नायक भी था, नायिका भी थी, खलनायक भी था, भाव भी था, विरह भी और कहानी का अंत अनिश्चय के धुंधलके में खोया हुआ भी था।
मैं यह प्रेम-कहानी लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सका। लुक – छिपकर लिख ही डाली, जो कुछ मुद्दत बाद ‘नीली आँखें’ शीर्षक से अमृतराय जी के संपादकत्व में ‘हंस’ में छपी, इसका मैंने आठ रुपये मुआवजा भी वसूल किया जो आज के आठ सौ रुपये से भी अधिक था। – भीष्म साहनी
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न –
प्रश्न 1.
चरित्र-चित्रण के कई तरीके होते हैं। ‘ईदगाह’ कहानी में किन-किन तरीकों का इस्तेमाल किया गया है ? इस कहानी में अपको सबसे प्रभावी चरित्र किसका लगा और कहानीकार ने उसके चरित्र-चित्रण में किन तरीकों का उपयोग किया है?
उत्तर :
‘ईदगाह’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई बहुचर्चित कहानी है, जिसका प्रमुख पात्र हामिद नामक चार – पाँच वर्षीय बालक, जिसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के पास रहता है। इस कहानी में बालक हामिद के चरित्र ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया।
इस कहानी में चरित्र-चित्रण के अनेक तरीकों को अपनाया गया है-
लेखक के अनुसार :
हामिद – हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा।
अमीना – अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं। आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती ! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है।
प्रश्न 2.
संवाद कहानी में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाता है। महत्व के हिसाब से क्रमवार संवाद की भूमिका का
उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
संवाद कहानी में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाता है। ‘ईदगाह’ कहानी से उल्लिखित कुछ संवाद महत्व के हिसाब
से निम्नलिखित हैं –
1. पात्रानुकूल संवाद –
हामिद – तुम डरना नहीं अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिलकुल न डरना।
महमूद – हम समझते हैं, इसकी चालाकी। जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जाएँगे, तो हमें ललचा – ललचाकर खाएगा।
2. जिज्ञासापूर्ण संवाद –
हामिद –
- ऐसे रुपये जिन्नात को कहाँ से मिल जाएँगे।
- जिन्नात बहुत बड़े – बड़े होते होंगे।
- एक सौ तो पचास से ज्यादा होते हैं।
3. स्वाभाविक संवाद –
- महमूद – और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा। कोई चोर आएगा तो फ़ौरन बंदूक फैर कर देगा।
- नूरे – और मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा।
- सम्मी – और मेरी धोबिन रोज़ कपड़े धोएगी।
4. भावुकतापूर्ण संवाद –
हामिद – तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, अतः मैंने लिया।
प्रश्न 3.
नीचे दिए गए चित्रों के आधार पर चार छोटी-छोटी कहानियाँ लिखें।
(चित्र के लिए देखें- ‘अभिव्यक्ति और माध्यम’ पुस्तक की पृष्ठ संख्या – 126-127)
उत्तर :
विद्यार्थी इन चित्रों को देखें और चित्रों की सामग्री के साथ कल्पना का मेल करते हुए कहानियाँ स्वयं लिखें।
प्रश्न 4.
एक कहानी में कई कहानियाँ छिपी होती हैं। किसी कहानी को किसी खास मोड़ पर रोककर नयी स्थिति में कहानी को नया मोड़ दिया जा सकता है। नीचे दी गई परिस्थिति पर कहानी लिखने का प्रयास करें-
सिद्धेश्वरी ने देखा कि उसका बड़ा बेटा रामचंद्र धीरे-धीरे घर की तरफ़ आ रहा है। रामचंद्र माँ को बताता है कि उसे अच्छी नौकरी मिल गई।
आगे की कहानी आप लिखिए।
उत्तर :
अपने बेटे के मुँह से नौकरी मिलने की बात सुनते ही माँ बहुत खुश हो गई। इसने भगवान को धन्यवाद देने के लिए आँखें बंद कर लिया। वह अतीत में खो गई। दूसरों के जूठे बरतन माँजना-धोना, झाड़ू-पोंछा करना, गंदे कपड़े धोना, सब कुछ एक-एक कर याद आने लगा। उसकी आँखें भर आईं। कितनी मुसीबतें उठाई थी उसने रामचंद्र को पढ़ाने के लिए और इन्हीं दिनों को देखने के लिए यह सब सहा था। वह सोचने लगी कि बेटे को नौकरी मिल जाने के बाद अब उसे यह सब नहीं करना पड़ेगा। वह कल्पना करने लगी कि जल्दी ही उसके लिए कोई सुशील लड़की देखकर शादी कर देगी और घर में पोते-पोतियाँ खिलाएगी।
सिद्धेश्वरी की कल्पना को उस समय अचानक ब्रेक लग गए, जब रामचंद्र ने कहा, “माँ मेरे साथ रचना नाम की लड़की पढ़ती थी न, उसकी नौकरी भी जल्दी ही लगने वाली है। उसकी भी नौकरी मिल जाती तो ….।” फिर क्या ? सिद्धेश्वरी ने पूछा। रामचंद्र ने सकुचाते हुए कहा, ” तो उससे विवाह कर लेता। इससे दोनों की कमाई से आमदनी बढ़ जाती और तुम्हें रहने के लिए पक्का घर बनवा देता। हाँ माँ, मैंने एक बात और सोची है कि उसे जिस शहर में नौकरी मिलेगी, अपना तबादला भी मैं वहीं करवा लूंगा। कुछ दिन बाद मैं तुम्हें और बाबू जी को भी बुला लूँगा। सब साथ ही रहेंगे, तब किसी बात की चिंता न रहेगी।” यह सुनते ही सिद्धेश्वरी सजग हो उठी। उसने अपनी आँखों में आए आँसू छिपाने का प्रयास करते हुए कहा, “हमने अपनी मेहनत-मजूरी से यह जो टूटा-फूटा घर बनाया है, उसे छोड़कर हम कहीं नहीं जाने वाले। हमें तो यही जीना है और यही मरना है।” यह सुनते ही रामचंद्र को मानो काठ मार गया।
अन्य हल प्रश्न –
कहानी की रचना प्रक्रिया पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
कहानी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास
हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहते हैं।
प्रश्न 2.
ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि हर आदमी में कहानी लिखने का भाव निहित है?
उत्तर :
प्रत्येक मनुष्य में अपने अनुभव बाँटने और दूसरों के अनुभव जानने की प्राकृतिक इच्छा होती है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है। कि हर आदमी में कहानी लिखने का भाव समाया रहता है।
प्रश्न 3.
प्राचीनकाल में कथावाचक किन विषयों से जुड़ी कहानियाँ सुनाया करते थे?
उत्तर :
प्राचीनकाल में कथावाचक किसी घटना, युद्ध, प्रेम, प्रतिशोध संबंधी विषयों पर आधारित कहानियाँ सुनाया करते थे।
प्रश्न 4.
सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियों का कल्पना का सम्मिश्रण क्यों किया जाने लगा ?
उत्तर :
सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियों में कल्पना का सम्मिश्रण इसलिए किया जाने लगा क्योंकि मनुष्य प्रायः वह सुनना चाहता है, जो उसे प्रिय लगता है। कल्पना के मिश्रण के बिना ऐसा हो पाना संभव नहीं है।
प्रश्न 5.
प्राचीनकाल में कहानियों की लोकप्रियता का क्या कारण था ?
उत्तर :
प्राचीनकाल में कहानियों की लोकप्रियता का कारण था – संचार का इससे बड़ा कोई साधन न होना। उन दिनों कहानी सबसे लोकप्रिय और संचार का सबसे बड़ा साधन थी।
प्रश्न 6.
कहानियों में कल्पना का मिश्रण करने से कथावाचकों को क्या लाभ होता था?
उत्तर :
कहानियों में कल्पना का मिश्रण करने से कथावाचकों को कई लाभ होते थे. जैसे-
- ऐसे कथावाचक लोगों की प्रशंसा का पात्र बनते थे।
- ऐसे कथावाचकों को लोग इनाम दिया करते थे।
प्रश्न 7.
मौखिक कहानी की परंपरा देश के किस भाग में प्रचलित है?
उत्तर :
मौखिक कहानी की परंपरा देश के कई भागों विशेषतः राजस्थान में प्रचलित है।
प्रश्न 8.
कहानी का प्रयोग किस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता था ?
उत्तर :
कहानी का प्रयोग धर्म-प्रचारकों द्वारा अपने विचारों और सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए तथा शिक्षा देने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 9.
कथानक किसे कहते हैं?
उत्तर :
कथानक कहानी का केंद्रीय बिंदु होता है। यह कहानी का वह संक्षिप्त रूप होता है, जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख किया गया हो।
प्रश्न 10.
कहानीकार के मन में कहानी का कथानक क्यों आता है ?
उत्तर :
कहानीकार के मन में कहानी का कथानक किसी घटना, जानकारी अनुभव या कल्पना के कारण आता है।
प्रश्न 11.
कथाकार के द्वारा की गई कल्पना की क्या विशेषता होती है?
उत्तर :
कथाकार के द्वारा की गई कल्पना ‘कोरी कल्पना’ नहीं होती है। यह ऐसी कल्पना होती है, जो संभव हो।
प्रश्न 12.
कथानक में द्वंद्व का क्या महत्व है?
उत्तर :
कथानक में द्वंद्व का महत्व यह है कि द्वंद्व के कारण कहानी में रोचकता बनी रहती है।
प्रश्न 13.
पात्रों का स्वरूप स्पष्ट होने से कहानीकार को क्या लाभ होता है?
उत्तर :
पात्रों का स्वरूप स्पष्ट होने से कहानीकार को पात्रों का चरित्र चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में सरलता
होती है। कैसे लिखें कहानी
प्रश्न 14.
पात्रों का चरित्र-चित्रण करने का सबसे आसान तरीका क्या है?
उत्तर :
पात्रों का चरित्र-चित्रण करने का सबसे आसान तरीका कहानीकार द्वारा पात्रों के गुणों का बखान करना है।
प्रश्न 15.
कहानी में पात्रों के संवाद का क्या महत्व होता है?
उत्तर :
कहानी में पात्रों के संवाद इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि इसके बिना पात्र की कल्पना करना मुश्किल होता है। संवाद ही कहानी को, पात्र को स्थापित, विकसित करते हैं और कहानी को गति देते हैं।
प्रश्न 16.
कहानी के पात्रों के संवाद लिखते समय क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
कहानी के पात्रों के संवाद की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
पात्रों के संवाद उनके स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल हों। वह उनके विश्वासों, आदर्शों तथा स्थितियों के भी अनुकूल होने चाहिए। इन्हें सुनकर ही श्रोता को पता चल जाए कि कौन बोल रहा है और इसकी पृष्ठभूमि क्या है?
प्रश्न 17.
कहानी की कसावट कब समाप्त हो जाती है?
उत्तर :
कहानी की कसावट उस समय समाप्त हो जाती है जब पात्रों के संवादों का अनावश्यक विस्तार दिया जाता है।
प्रश्न 18.
चरम उत्कर्ष के चित्रण में किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
चरम उत्कर्ष का चित्रण ऐसा होना चाहिए जो पाठक को सोचने और लेखकीय पक्षधरता की ओर आने के लिए प्रेरित करे, लेकिन पाठक को यह भी लगना चाहिए कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निर्णय लिए हैं, वे उसके अपने हैं।
प्रश्न 19.
कहानी में द्वंद्व किस कारण से पैदा होता है?
उत्तर :
कहानीं में द्वंद्व दो विरोधी तत्वों के टकराव या किसी खोज में आने वाली बाधाओं, अंतरद्वंद्व आदि के कारण पैदा होता है।
प्रश्न 20.
कहानी लिखना सीखने के लिए क्या करना चाहिए?
अथवा
कहानी लिखना किस तरह सीखा जा सकता है?
उत्तर :
कहानी लिखना सीखने के लिए अच्छी कहानियाँ पढ़नी चाहिए और उनका विश्लेषण करना चाहिए।