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CBSE Class 12 Hindi Elective अपठित बोध अपठित गद्यांश
अपठित काव्यांश क्या है?
वह काव्यांश, जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है, अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी की भावग्रहण-क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।
परीक्षा में प्रश्न का स्वरूप
परीक्षा में विद्यार्थियों को काव्यांश दिया जाएगा। उस काव्यांश से संबंधित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा तथा कुल प्रश्न पाँच अंक के होंगे।
प्रश्न हल करने की विधि
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्न हल करते समय निम्नलिखित बिंदु ध्यातव्य हैं-
विद्यार्थी कविता को मनोयोग से पढ़ें ताकि उसका अर्थ समझ में आ जाए। यदि कविता कठिन है तो उसे बार-बार पढ़ें, ताकि भाव स्पष्ट हो सके।
कविता के अध्ययन के बाद उससे संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
प्रश्नों के अध्ययन के बाद कविता को दुबारा पढ़िए तथा उन पंक्तियों को चुनिए, जिनमें प्रश्नों के संभावित उत्तर मिल सकते हों।
जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर मिल जाएँ, उन्हें लिखिए।
कुछ प्रश्न कठिन या सांकेतिक होते हैं। उनके उत्तर देने के लिए कविता का भाव-तत्व समझिए।
उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
उत्तरों की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। इससे उत्तरों की स्पष्टता बढ़ेगी।
अपठित काव्यांश (हल सहित)
सी०बी०एस०ई० की विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए काव्यांश –
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यान से पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए :
1. तन समर्पित मन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
माँ, तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन।
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण।
मान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
कर रहा आराधना मैं आज तेरी,
एक विनती तो करो स्वीकार मेरी।
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी
शीष पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
गाँव मेरे, द्वार, घर, आँगन क्षमा दो
देश का जयगान अधरों पर सजा हो
देश का ध्वज हाथ में केवल थमा हो
सुमन अर्पित, चमन अर्पित
नीड़ का तृण-तृण समर्पित
चाहता हूँ देश की धतरी, तुझे कुछ और भी दूँ।
प्रश्न :
(क) तन-मन अर्पित करने पर भी कुछ और देने की चाह क्यों है?
(ख) मातृभूमि का ऋण चुकाने के लिए कवि अपनी किस भेंट को स्वीकार लेने का आग्रह कर रहा है? 1
(ग) तन और मन का समर्पण कैसे हो सकता है?
(घ) कविता में किस-किस से और क्यों क्षमा माँगी गई है?
(ङ) कविता के संदर्भ में ‘चमन’ और ‘नीड़’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) मातृभूमि के ऋण की तुलना में अर्पित किया गया तन-मन काफी कम है, इसलिए कुछ और देने की चाह बनी
(ख) कवि आग्रह कर रहा है कि वह जब भी थाल में सजाकर अपना भाल लाए यानी जब वह बलिदान करे तो माँ उसे दया करके स्वीकार कर लें।
(ग) तन और मन का समर्पण देश के प्रति सच्ची भक्ति तथा अपने ऊपर मातृभूमि के ऋण को महसूस करके हो सकता है।
(घ) कविता में कवि मोह का बंधन तोड़ रहा है, इसलिए वह अपने गाँव, द्वार, घर, आँगन आदि से क्षमा माँग रहा है।
(ङ) कविता के संदर्भ में ‘चमन’ का प्रतीकार्थ कवि के जीवन को सुख और आनंद प्रदान करने वाली चीजों से तथा ‘नीड़’ का प्रतीकार्थ उसके खुद के घर से है।
2. गुलाब का फूल है हमारा पढ़ा-लिखा
मैंने उसे काफ़ी उलट-पुलटकर देखा है
मुझे तो वह ऐसा ही दिखा
सबसे बड़ा सबूत उसके गुलाब होने का यह है
कि वह गाँव में जाकर बसने के लिए तैयार नहीं है
गाँव में उसकी प्रदर्शनी कौन कराएगा
वहाँ वह अपनी शोभा की प्रशंसा किससे कराएगा
वह फूलने के बाद किसी फसल में थोड़े ही बदल जाता है
मूरख किसान को फूलने के बाद
फसल देने वाला ही तो भाता है,
गाँव में इसलिए ठीक हैं अलसी और सरसों के फूल।
बीच-बीच में यह प्रस्ताव कि गुलाब गाँव में चिकित्सा करे या पढ़ाए
पेश करने में कोई हर्ज़ नहीं है
मगर साफ समझ लेना चाहिए कि गुलाब का यह फ़र्ज नहीं है कि
गाँव जाकर खिले, अलसी और सरसों वगैरा से मिले
ढँक जाए वहाँ की धूल से
और वक्तन बवक्तन अपनी प्रदर्शनी न कराए
आमीन, गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आए।
प्रश्न :
(क) गुलाब तथा अलसी-सरसों के फूल किनके प्रतीक हैं?
(ख) संभ्रांत वर्ग शहरी युवकों को गाँव क्यों नहीं जाने देता?
(ग) वे लोग गाँव में किसका बसना उचित मानते हैं और क्यों?
(घ) काव्यांश में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए :
आमीन, गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आए।
उत्तर :
(क) गुलाब संपन्न परिवारों के पढ़े-लिखे फ़ैशनपरस्त नवयुवकों का प्रतीक है जो गाँवों में जाकर बसने और अपनी सेवाएँ देने को तैयार नहीं हैं। अलसी-सरसों के फूल उन युवक-युवतियों के प्रतीक हैं, जो गाँवों में रह रहे हैं।
(ख) संभ्रांत वर्ग शहरी युवकों को इसलिए गाँव नहीं जाने देता, क्योंकि गाँव में उसकी कद्र करने वाला कोई नहीं है। वह अपनी प्रशंसा किसी से नहीं करवा सकेगा। वह गाँव जाकर भी वहाँ के रंग-ङंग में खुद को नहीं ढाल पाएगा।
(ग) संभ्रात वर्ग गाँव में कम पढ़े-लिखे, धूल में लिपटे युवक-युवतियों का ही बसना उचित समझता है, क्योंकि उनका रहन-सहन गाँवों के अनुरूप है तथा यह वर्ग चाहता है कि गाँव के ये कम पढ़-लिखे युवा वहीं सिमटकर रह जाएँ।
(घ) काव्यांश में शहर के उन शिक्षित एवं प्रशिक्षित नवयुवकों पर व्यंग्य किया गया है जो स्वेच्छा से गाँवों में बसना नहीं चाहते हैं और न गाँवों को अपनी कर्मभूमि बनाना चाहते हैं। वे शहरों में रहकर अपनी योग्यता एवं विद्वता का प्रदर्शन करने की इच्छा रखते हैं।
(ङ) भाव यह है कि ईश्वर करे कि शहर के इन युवकों को वह दिन न देखना पड़े, जब उन्हें गाँवों में जाकर रहने और अपनी सेवाएँ देने को विवश होना पड़े। यदि वहाँ रहना भी पड़ा तो वे अनिच्छापूर्वक ही रहेंगे। वहाँ के वातावरण में वे घुल-मिल नहीं पाएँगे।
3. जाड़े की एक सुबह अलसाई –
पा गई है कुहरे की मोटी रजाई।
घाटी के ऊपर झुक
फैला-सा अंबर ज्यों
सजल-सरल शब्दों से
बेमन दुलार रहा
दे रहा हो थपकी-सी
आ रही हो झपकी-सी
घाटी को।
या फिर खुद घाटी ने मानव का दर्द जान
मानव को अपने ही अंतर का भाग मान
लोरी के कपसीले बादल बिखराए हों
कुहरे के झीने-से
कबूतर के डैने-से पुल ये बनाए हों
जिससे कि मानव भी पा सके सिद्धि-स्वर्ग।
प्रश्न :
(क) जाड़े की सुबह को ‘अलसाई’ क्यों कहा गया है?
(ख) घाटी को झपकी क्यों आ रही है?
(ग) घाटी ने पुल कैसे और किसलिए बनाए हैं?
(घ) मानव के प्रति घाटी की क्या दृष्टि है?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए :
लोरी के कपसीले बादल बिखराए हों कुहरे के झीने-से
कबूतर के डैने-से पुल ये बनाए हों
उत्तर :
(क) जाड़े की सुबह को ‘अलसाई’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि कोहरे से ढँके वातावरण को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे सुबह ने अलसाकर रजाई ओढ़ ली हो। इसके अलावा प्रकृति के अन्य क्रियाकलाप एवं धुंधभरा वातावरण देखकर भी ऐसा लग रहा है।
(ख) घाटी को इसलिए झपकी आ रही है, क्योंकि घाटी के ऊपर फैला आसमान उसे थपकी देकर दुलार रहा है। वह बेमन से ही सही, उससे मधुर शब्दों में प्यार-भरी बातें कर रहा है।
(ग) घाटी ने झीने, हल्के अद्धर्धपारदर्शी कुहरे से पुल बनाए हैं। ये पुल कबूतर के सफ़ेद पंखों जैसे दिख रहे हैं। घाटी ने ये पुल मनुष्य के लिए बनाए हैं, जिससे वह स्वर्गरूपी सिदधध प्राप्त कर सके।
(घ) मानव के प्रति घाटी की दृष्टि अत्यंत संवेदनशील एवं सहानुभूतिपूर्ण है। घाटी ने मनुष्य की पीड़ा का अनुमान स्वत: ही लगा लिया है। उसने मनुष्य को अपने मन का भाग समझकर उसके दर्द का अनुमान लगा लिया।
(ङ) आशय यह है कि घाटी ने मानो लोरी स्वरूप कपास के समान श्वेत बादल बिखरा रखा है, जिन्हें देखकर लगता है कि मानो कुहरे के झीने-से पुल बने हों, जो कबूतर के पंख जैसे दिख रहे हैं।
4. दिल्ली फूलों में बसी, ओस-कण से भीगी, दिल्ली सुहाग है, सुषमा है, रंगीनी है,
प्रेमिका-कंठ में पड़ी मालती की माला, दिल्ली सपनों की सेज मधुर रस-भीनी है।
बस, जिधर उठाओ दृष्टि, उधर रेशम केवल, रेशम पर से क्षण भर को आँख न हटती है,
सच कहा एक भाई ने, दिल्ली में तन पर रेशम से रुखड़ी चीज़ न कोई सटती है।
हो भी क्यों नहीं? कि दिल्ली के भीतर जाने, युग से कितनी सिद्धियाँ समाई हैं,
औ’ सबका पहुँचा काल तभी जब से उनकी आँखें रेशम पर बहुत अधिक ललचाई हैं।
रेशम से कोमल तार, क्लांतियों के धागे, हैं बँधे उन्हीं से अंग यहाँ आज़ादी के,
दिल्ली वाले गा रहे बैठ निश्चिंत मगन रेशमी महल में गीत खुरदुरी खादी के।
वेतनभोगिनी, विलासमयी यह देवपुरी, ऊँघती कल्पनाओं से जिसका नाता है,
जिसको इसकी चिता का भी अवकाश नहीं, खाते हैं जो वह अन्न कौन उपजाता है।
भारत धूलों से भरा आँसुओं से गीला, भारत अब भी व्याकुल विपत्ति के घेरे में।
दिल्ली में तो है खूब ज्योति की चहल-पहल, पर भटक रहा है सारा देश अँधेरे में।।
प्रश्न :
(क) सुख-सुविधाओं से पूर्ण दिल्ली का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है?
(ख) ‘रेशम’ किसका प्रतीक है? वह दिल्ली के तन पर ही क्यों सजता है?
(ग) दिल्ली और शेष भारत में कवि ने क्या अंतर बताया है?
(घ) दिल्ली को ‘विलासमयी देवपुरी’ कहे जाने का औचित्य समझाइए।
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए :
रेशम से कोमल तार, क्लांतियों के धागे,
हैं बँधे उन्हीं से अंग यहाँ आज़ादी के।
उत्तर :
(क) सुख-सुविधाओं से पूर्ण दिल्ली का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि दिल्ली फूल में पड़ी रंगीन सुंदर ओस के समान है। इसका सौंदर्य अनुपम है। यह प्रेमिका के कंठ में पड़ी मालती की माला के समान संदर है। यहाँ लोग अपनी रंगीन कल्पना में डूबे रहते हैं।
(ख) रेशम अमीरी तथा सुंदर वस्त्रों का प्रतीक है। वह दिल्ली के तन पर इसलिए सजता है, क्योंकि दिल्ली में रहने वाले अमीरी का जीवन जीने के लायक समृद्ध हैं। उनके सुंदर महल, धन-दौलत आदि दिल्ली की अमीरी बढ़ाते हैं। रेशमी वस्त्र अमीरों के शरीर पर ही सुशोभित होते हैं।
(ग) दिल्ली और शेष भारत में अंतर बताते हुए कवि ने कहा है कि दिल्ली में रहने वाले समृद्धिपूर्ण हैं। वे विलासितापूर्ण जीवन जी रहे हैं, जबकि शेष भारत दुखमय जीवन जीते हुए निराशा में डूबा है। वह विपत्तियों के सागर में डूबा हुआ है, जिसका भविष्य अंधकारमय है।
(घ) दिल्ली को ‘विलासमयी देवपुरी’ कहने का तात्पर्य है-यहाँ के शासक और शासन से जुडे लोग विलासितापूर्ण जीवन जी रहे हैं। दिल्ली में रहकर ही स्वर्गिक सुख-सुविधाएँ और ऐशो-आराम में डूबे हुए हैं।
(ङ) लोगों के मन में रेशम के कोमल धागों-सी आज़ादी पाने की आकांक्षा है, परंतु इसको पाने के उपाय अत्यंत थके और निराशापूर्ण हैं, जिनके सहारे आज़ादी पाने की जंग लड़ने की आशा लिए बैठे हैं।
5. आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको, है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नव यौवन तुम, दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो देश के प्राण, जगा दो नए प्रात का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो, हममें भी जागी तरुणाई;
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली अँगड़ाई।
बहो पंथ की बाधा तोड़ो जैसे बहते जाते निर्झर
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
प्रश्न :
(क) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है? हमें उसके स्थान पर क्या करना है?
(ख) किसकी तरुणाई को देश की आशा कहा गया है और क्यों?
(ग) कविता किन्हें संबोधित है? उनसे क्या अपेक्षा की गई है?
(घ) ‘निर्झर’ का उल्लेख क्यों हुआ है? उससे क्या सीखना होगा?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए :
जगो देश के प्राण, जगा दो नए प्रात का नया जागरण।
उत्तर :
(क) ‘विगत युग के पतझर’ से आशय है-दुख एवं घोर गरीबी में बीता समय, जिसमें लोगों को बहुत दुख उठाना पड़ा। हमें उस पतझर के स्थान पर नया वसंत लाना है। अर्थात् लोगों को सुखी बनाने के लिए प्रयास करना है ताकि लोगों के चेहरों पर हैसी आ जाए।
(ख) नवयुवकों की तरुणाई को देश की आशा कहा गया है, क्योंकि देश के नवयुवकों में नवीन आशा एवं जोश भरा हुआ है। वे उत्साहित मन से हर बाधा पर विजय पाने में सक्षम हैं। देश उन्हें आशाभरी दृष्टि से देख रहा है।
(ग) कविता देश के नवयुवकों को संबोधित है। इन नवयुवकों को नए प्रभात का नवजागरण करने के लिए कहा गया है। कवि ने उनसे आहवान किया है कि विश्व को दिखा दें कि वे भी साहस, वीरता एवं पराक्रम में किसी से कम नहीं हैं।
(घ) निर्झर यानी झरना का उल्लेख इसलिए हुआ है, क्योंकि वे बाधाओं और राह के छोटे-बड़े पत्थरों पर विजय पाते हुए निरंतर बहते जाते हैं। इन झरनों से हमें यह सीख मिलती है कि हम भी जीवन की राह में आने वाली मुसीबतों से संघर्ष करें तथा उन पर विजय पाते हुए आगे ही आगे बढ़ते रहें।
(ङ) कवि नवयुवकों को संबोधित करते हुए कहता है कि हे देश के प्राण! अब निद्रा एवं आलस्य को त्यागकर जाग जाओ और अपने कार्यों से लोगों में नए उत्साह का संचार कर दो, जिससे वे भी निराशा को त्यागकर हर्षोल्लासपूर्ण जीवन जिएँ।
6. चले चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो, चले चलो!
प्रचंड सूर्य-ताप से, न तुम जलो, न तुम गलो!
हृद्य से तुम निकाल दो अगर हो पस्तहिम्मती,
नहीं है खेल मात्र ये, ये ज़िदगी है ज़िदगी।
न रक्त है, न स्वेद है, न हर्ष है, न खेद है,
ये ज़िदगी अभेद है, यही तो एक भेद है।
समझ के सब चले चलो, कदम-कदम बढ़े चलो!
पहाड़ में चली नदी, रूकी नहीं कहीं ज़रा,
गई जिधर, उधर किया ज़मीन को हरा-भरा।
चलो समान रूप से, ज़मीन का न ख्याल कर,
मगन रही निनाद में, ज़मीन पर, पहाड़ पर।
उसी तरह चले चलो, उसी तरह बढ़े चलो!
अखंड दीप-से जलो, सदा बहार-से खिलो!
प्रश्न :
(क) कविता किसे संबोधित है? ऐसा आप किस आधार पर मानते हैं?
(ख) ‘पस्तहिम्मती’ किसे कहते हैं? उन्हें क्या ध्यान में रखने को कहा गया है?
(ग) प्रगतिशील की तुलना नदी से क्यों की गई है?
(घ) ‘अखंड दीप’ और ‘फूल’ का उल्लेख क्यों हुआ है?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए :
‘ये ज़िदगी अभेद है. यही तो एक भेद है।’
उत्तर :
(क) यह कविता देशवासियों को संबोधित है। ऐसा मैं इसलिए मानता हूँ, क्योंक कवि ने इस कविता में किसी व्यक्ति-विशेष, जाति-विशेष तथा वर्ग-विशेष के नाम का उल्लेख करके उसे संबोधित नहीं किया है। इसके अलावा उसने अपनी कविता में सामूहिक रूप से ‘बढ़े चलो’, ‘बढ़े चलो’ का पुन:-पुन: आह्वान किया है।
(ख) ‘पस्तहिम्मती’ उन लोगों को कहते हैं, जिनकी हिम्मत उनका साथ छोड़ चुकी है। हिम्मत के अभाव में वे निराशा में डूबे हैं। कवि ने उन्हें यह ध्यान रखने को कहा है कि यह ज़िदगी खेल समझकर यूँ व्यर्थ गँवाने के लिए नहीं है। यह तो निरंतर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए मिली है।
(ग) प्रगतिशील व्यक्ति की तुलना नदी से इसलिए की गई है, क्योंकि जिस प्रकार नदी ज़मीन के ऊँचा-नीचा होने की परवाह किए बिना चलती जाती है, वह पहाड़ और ज्ञमीन पर समान रूप से निनाद करती बढ़ती रहती है, उसी प्रकार प्रगतिशील व्यक्ति भी समय और परिस्थितियों की परवाह किए बिना निरतर प्रगति की ओर बढ़ता जाता है।
(घ) ‘अखंड दीप’ और ‘फूल’ का उल्लेख इसलिए हुआ है, क्योंकि जिस प्रकार अखंड दीप अपनी लौ की चमक को मद्धिम किए बिना निरंतर जलता रहता है और फूल भी प्रतिकूल परिस्थितियों में हैंसता रहता है, उसी प्रकार देशवासी भी निरंतरता को कायम रखते हुए परिस्थितियों की परवाह किए बिना प्रसन्न रहने के लिए प्रेरित हों।
(ङ) आशय यह है कि इस ज़िदगी का आधार आत्मा अभेद है। उसमें कोई भेद नहीं है। सभी में उसी परमात्मा का अंश समाया है। यह अजर-अमर है। यह एक रहस्य की बात है। इस रहस्य को अधिकांश लोग नहीं जानते हैं।
7. मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!
आसमान को छूने वाले पाषाणो, तुम जागो तो!
तुम जागो तो, नव भारत के जन-जन का जीवन जग जाए,
तुम जागो तो, जन्मभूमि की माटी का कण-कण जग जाए।
तुम जागो तो, जग का आँगन दीपों से जगमग हो जाए,
बैरी के पैरों के नीचे से धरती डगमग हो जाए।
युग-तरुणाई ले अँगड़ाई, तूफ़ानो, तुम जागो तो!
मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!
खेत-खेत में सोना बरसे, आँगन-आँगन में मोती,
शिखर-शिखर पर नई किरण की आज सरस वर्षा होती।
नव उमंग जागे प्राणों में, स्वर नवीन हुंकार उठे,
जन-भारत वनराज जागकर आज विमुक्त दहाड़ उठे।
कर जागे, करवाल जगे, ओ दीवानो, तुम जागो तो!
मातृभूमि के पहरेदारो, हिमवानो, तुम जागो तो!
प्रश्न :
(क) ‘मातृभूमि के पहरेदारो’ से कवि किन्हें संबोधित कर रहा है? उन्हें क्यों जगाया जा रहा है?
(ख) जब देश के प्रहरियों की चर्चा होती है, तो ‘हिमवान’ का उल्लेख अवश्य होता है, ऐसा क्यों?
(ग) युवाशक्ति जाग्रत हो जाए, तो देश को क्या-क्या लाभ होगा?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए:
खेत-खेत में सोना बरसे, आँगन-आँगन में मोती,
शिखर-शिखर पर नई किरण की आज सरस वर्षा होती।
(ङ) काव्यांश का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) ‘मातृभूमि के पहरेदारो’ के माध्यम से कवि देश की युवाशक्ति और उन वीर जवानों को संबोधित कर रहा है, जो सीमा पर शत्रुओं से देश की रक्षा कर रहे हैं। कवि उन्हें इसलिए जगा रहा है ताकि शत्रुओं को देश में घुसपैठ करने या आक्रमण करने का अवसर न मिले।
(ख) जब देश के प्रहरियों की चर्चा होती है, तो हिमवान का उल्लेख इसलिए अवश्य होता है, क्योंकि वे बर्फ़ से ढँकी चोटियों के मध्य रहकर देश की सीमाओं की रखवाली करते हैं। वहाँ तापमान इतना कम होता है कि शरीर का खून भी जमता हुआ प्रतीत होता है।
(ग) देश की युवाशक्ति के जाग्रत होने पर देश का प्रत्येक मनुष्य जाग जाएगा। इससे हमारे देश की मिट्टी का प्रत्येक कण जाग्रत हो जाएगा। इससे देश का हर घर-आँगन खुशियों से भर जाएगा। युवाशक्ति के जागने से दुश्मनों के पैरों के नीचे की ज्ञमीन हिल जाएगी और वे भयभीत हो उठेंगे।
(घ) आशय यह है कि कवि की आकांक्षा है कि भारत के खेतों में खूब सारी फसलें पैदा हों, ताकि अन्न की कमी न रहे। हर घर में खुशियाँ हों तथा देश के प्रत्येक व्यक्ति पर खुशियों और सुख-समृद्धि की वर्षा हो। सभी हर तरह से सुखमय जीवन का आनंद उठाएँ।
(ङ) केंद्रीय भाव : कवि चाहता है कि देश का युवावर्ग और देश की सीमाओं के प्रहरी जाग जाएँ। प्रहरियों के जागने से देशवासी सुरक्षित रहेंगे और युवाशक्ति के जाग्रत होकर कर्मशील बन जाने से घर-परिवार, खेत-खलिहान सभी खुशियों से भर उठेंगे। ऐसे में भारतीयों की हुंकार सुनकर शत्रु भयभीत हो जाएँगे।
8. ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी।
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
आह! क्यों घर छोड़कर में यों कढ़ी।
देव, मेरे भाग्य में है क्या बदा,
में बचूँगी या मिलूँगी धूल में
जल उठूँगी गिर अंगारे पर किसी
चू पड़ँगी या कमल के फूल में।
बह उठी उस काल कुछ ऐसी हवा
वह समंदर ओर आई अनमनी।
एक सुंदर सीप का था मुँह खुला,
वह उसी में जा गिरी, मोती बनी।
लोक अकसर हैं झिझकते-सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।
किंतु घर का छोड़ना अकसर उन्हें
बूँद लं कुछ और ही देता है कर।
प्रश्न :
(क) कविता में संदर्भित वर्षा की बूँद किसकी प्रतीक है?
(ख) बूँद के पश्चाताप का कारण आप क्या मानते हैं?
(ग) गिरती हुई बूँद के मन में क्या-क्या विचार उठते हैं?
(घ) बूँद मोती कैसे बन गई?
(ङ) बूँद की दुविधाभरी मानसिकता मानव-स्वभाव की किस विशेषता को उजागर करती है?
उत्तर :
(क) कविता में संदर्भित वर्षा की बूँद दुविधाभरी मानसिकता से ग्रस्त उस मानव-स्वभाव की प्रतीक है, जिसमें वह कोई ठोस निर्णय लेने में दुविधा के कारण आगा-पीछा सोचता है। वह अपने निर्णय के प्रति अनिश्चितता की भावना से भयभीत रहता है, पर परिस्थितियाँ और समय उसे किसी कल्पनातीत लक्ष्य तक पहुँचा देते हैं।
(ख) बूँद के पश्चाताप का कारण उसके भविष्य की अनिश्चितता एवं सुरक्षित स्थान छोड़कर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना था। उसे अपने नष्ट हो जाने का भय निरंतर सता रहा था। बूँद अगले पल कहाँ होगी, इसका उसे अनुमान न था।
(ग) बादलों की गोद से गिरती हुई बूँद के मन में कई विचार उठते हैं; जैसे-
- उसकी किस्मत में पता नहीं क्या लिखा है।
- वह इस तरह विपरीत परिस्थितियों में अपना घर छोड़कर क्यों निकल आई?
- वह धूल में मिलकर बचेगी या अंगार में गिरकर नष्ट हो जाएगी।
- वह किस्मत की प्रबलता के कारण कमल के फूल में जा गिरेगी।
(घ) जिस समय बूँद बादलों की गोद से निकलकर धरती की ओर बढ़ रही थी तथा अपने भविष्य की अनश्चितता में झूल रही थी, उसी समय एक हवा का झोंका आया, जो उसे समुद्र की ओर ले गया। वहाँ बूँद सीप के खुले मुँह में गिर गई और मोती बन गई।
(ङ) बूँद की दुविधाभरी मानसिकता मानव-स्वभाव की उस विशेषता की ओर संकेत करती है, जब वह दुविधा
9. रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था।
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर
या आसमान पर घोड़ा था।
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों से
निर्भीक बन गया ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।
है यहाँ रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा, अब वहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं।
प्रश्न :
(क) चेतक कौन था? उसे निराला क्यों कहा गया है?
(ख) ‘हवा से पाला पड़ना’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड़ जाता था’ काव्य-पंक्ति में चेतक की क्या विशेषता 1 बताई गई है?
(घ) उन पंक्तियों को उद्धृत कीजिए, जिनमें चेतक की तीव्र गति का उल्लेख हुआ है?
(ङ) चेतक ने कैसे रण-कौशल का परिचय दिया?
उत्तर :
(क) चेतक मेवाड़ के मुकुट महाराणा प्रताप का घोड़ा था। अकबर के साथ हल्दी घाटी की लड़ाई में चेतक ने अपनी चाल और निर्भीकता से राणा प्रताप का रण-कौशल बढ़ा दिया था। चेतक की फुर्ती के कारण ही राणा प्रताप शत्रुओं को मार-काट रहे थे। शत्रु पक्ष में खलबली मचाने के कारण चेतक को निराला कहा गया है।
(ख) ‘हवा से पाला पड़ने’ का अर्थ है-घोर मुसीबत आ जाना। यह मुसीबत मुगल सैनिकों पर चेतक की तेज़ चाल के कारण आ गई थी। वह हवा के समान तेज़ चाल से शत्रुओं की सेना के बीच भाग रहा था।
(ग) ‘राणा की पुतली ‘…….. जाता था’-काव्य-पंक्ति में चेतक की फुर्ती और तेज़ रफ़्तार जैसी विशेषता का पता चलता है, जो राणा प्रताप की पुतलियाँ फिरने अर्थात् आँखों का इशारा पाने मात्र से ही राणा प्रताप को मनोवांछित दिशा में शत्रु सेना की ओर लेकर घूम जाता था।
(घ) चेतक की तीव्र गति का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ हैंहै यहाँ रहा अब यहाँ नहीं वह वहीं रहा, अब वहाँ नहीं थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं।
(ङ) चेतक रणक्षेत्र में दुश्मनों की तलवारों के वार की परवाह किए बिना उनके बीच घुस जाता था। वह भाले और ढाल के बीच निर्भीकतापूर्वक शत्रु-दल को अपनी टापों से कुचलता जाता था।
10. ‘सर ! पहचाना मुझे ?’
बारिश में भीगता आया कोई
कपड़े कीचड़-सने और बालों में पानी
बैठा ! छन-भर सुस्ताया। बोला, नभ की ओर देख-
‘गंगा मैया पाहुन बनकर आई थीं,
झोंपड़ी में रहकर लौट गई।
नैहर आई बेटी की भाँति
चार दीवारों में कुदकती-फुदकती रहीं
खाली हाथ वापस कैसे जातीं!
घरवाली तो बच गई-
दीवारें ढहीं, चूल्हा बुझा’ बरतन-भाँड़े-
जो भी था सब चला गया।
प्रसाद-रूप में बचा है नैनों में थोड़ा खारा पानी
पत्नी को साथ ले, सर, अब लड़ रहा हूँ
ढही दीवार खड़ी कर रहा हूँ
कादा-कीचड़ निकाल फेंक रहा हूँ,
मेरा हाथ ज़ेब की ओर जाते देख
वह उठा, बोला – ‘सर, पैसे नहीं चाहिए।
ज़रा अकेलापन महसूस हुआ तो चला आया
घर-गृहस्थी चौपट हो गई पर
रीढ़ की हड्डी मज़बूत है, सर!
पीठ पर हाथ थपकी देकर
आशीर्वाद दीजिए –
लड़ते रहो।’
प्रश्न :
(क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से क्यों की गई है?
(ख) बाढ़ का क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) ‘सर’ का हाथ ज़ेब की ओर क्यों गया होगा?
(घ) आगंतुक सर के घर क्यों आया था?
(ङ) कैसे कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है?
उत्तर :
(क) बाढ़ की तुलना मायके आई बेटी से इसलिए की गई है, क्योंकि जिस प्रकार ब्याह के बाद जब बेटी अपने मायके आती है तो उसे स्वतंत्र होकर घूमने-फिरने, उछलने-कुदने एवं मस्ती करने की छूट-सी मिल जाती है, उसी प्रकार बाढ़ भी जब नदी-तालाब की सीमा छोड़कर गाँव में आती है तो खूब विनाश-लीला दिखाती है तथा यादें छोड़ जाती है।
(ख) बाढ़ का प्रभाव यह हुआ कि मकान की दीवारें ढह गईं। पानी भरने के कारण चूल्हा न जल सका और खाना न बन सका। घर में रखा कुछ सामान नष्ट हो गया तथा कुछ बाढ़ में बह गया।
(ग) ‘सर’ का हाथ ज़ेब की ओर इसलिए गया होगा, ताकि बाढ़ से पीड़ित व्यक्ति की जितनी क्षति हुई थी, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए कुछ रुपये दे सकें, पर उस पीड़ित स्वाभिमानी व्यक्ति ने रुपये लेने से मना कर दिया।
(घ) आगंतुक (बाढ़-पीड़ित व्यक्ति) ‘सर’ के पास इसलिए गया ताकि-
(i) वह अपने-आप को अकेलेपन से मुक्ति दिला सके।
(ii) वह बाढ़ की विपदा सहन करने की शक्ति पा सके।
(ङ) काव्यांश से ज्ञात होता है कि बाढ़-पीड़ित व्यक्ति ‘सर’ की आर्धिक सहायता नहीं स्वीकारता तथा अपनी रीढ़ की हड्डी मज़बूत बताता है। वह संघर्ष करने का आशीर्वाद मात्र चाहता है। इससे हम कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है।
कुछ अन्य अपठित काव्यांश
सी०बी०एस०ई० के नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार –
अति लघत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रारूप –
11. तुम नहीं चाहते थे क्याफूल खिलें
भौर गूँजें
तितलियाँ उड़े?
नहीं चाहते थे तुम-
शरदाकाश
वसंत की हवा
मंजरियों का महोत्सव?
कोकिल की कुहू, हिरनों की दौड़?
तुम्हें तो पसंद थे भेड़िये
भेड़ियों-से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी
समूची हरियाली को धुआँ बनाते विस्फोट!
तुमने ही बना दिया है सबको अंधा-बहरा
आकाशगामी हो गए सब
कोलाहल में डूबे, वाणी-विहीन!
अब भी समय है
बाकी है भविष्य अभी
खड़े हो जाओ अँधेरों के खिलाफ़
वेद-मंत्रों के ध्याता,
पहचानो अपनी धरती
अपना आकाश!
प्रश्न :
(क) आतंकी विस्फोटों के क्या-क्या परिणाम होते हैं?
(ख) आतंकवादियों को धरती के कौन-कौन से रूप नहीं लुभाते?
(ग) भेड़ियों से किसकी तुलना की गई है?
(घ) कवि समाज से क्या चाहता है?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए :
तुम्हें पसंद थे भेड़िये।
धीरे-धीरे जंगलाते आदमी।
(च) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि क्या अपेक्षा करता है?
(छ) काव्यांश के आधार पर वसंत ऋतु के सौंदर्य का शब्द-चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) आतंकी विस्फोटों के निम्नलिखित परिणाम होते हैं :
- प्राकृतिक वातावरण असहज हो जाता है। उसमें उथल-पुथल मच जाती है।
- मनुष्य तथा अन्य जीवों का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।
- अदृश्य विनाशकारी शक्तियाँ सिर उठाने लगती हैं।
- शांतिपूर्ण वातावरण अशांति में बदल जाता है।
(ख) आतंकवादियों को धरती के निम्नलिखित रूप नहीं लुभाते हैं :
- रंग-बिरंगे फूलों से भरे उपवन।
- भौरों की गुंजार और तितलियों की उड़ान।
- शरद का स्वच्छ एवं शांतिपूर्ण आकाश।
- वसंत में मंजरियों का महोत्सव, कोयल का कूकना और हिरनों की उछल-कूद।
(ग) शोषक वृत्ति वाले व्यक्तियों की तुलना भेड़ियों से की गई हैं।
(घ) कवि समाज से चाहता है कि वह आतंक के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो जाए।
(ङ) आशय यह है कि विस्फोटकारी शक्तियों को शांतिप्रिय लोग पसंद नहीं आते। उन्हें तो बस अपने जैसे खूँखार प्रवृत्ति वाले, दूसरों की अमन-शांति छीनने वाले, भेड़िये के स्वभाव वाले लोग पसंद आते हैं जो निर्दोषों की शांति छीनते हैं।
(च) ‘अब भी समय है’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि अभी विनाशकारी ताकतों को अर्शांति का रास्ता त्यागकर शांति का रास्ता अपनाने का समय है। अभी सब कुछ नष्ट नहीं है। आतंक का रास्ता छोड़कर अभी भी वापस आया जा सकता है।
(छ) वसंत ऋतु का सौंदर्य अनुपम होता है। इस ऋतु में बाग-बगीचे रंगीन फूलों से भर उठते हैं। शीतल, सुर्गंधित वायु सुरभि बिखराती है। कोयल कूक-कूककर शोर मचाती है। इस ऋतु में मनुष्य तथा अन्य जीव हर्षोल्लास से भर जाते हैं।
(ज) शीर्षक-आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष
12. अरे! चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को
उस दिन सोचा : क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनिया भर को?
यह भी सोचा : क्यों न टेंदुआ घोंटा जाय स्वयं जगपति का?
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृषित विकृति का।
जगपति कहाँ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी;
वरना समता-संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी?
छोड़ आसरा अलखशक्ति का, रे नर, स्वयं जगत्पति तू है,
तू यदि जूठे पत्ते चाटे, तो मुझ पर लानत है, थू है।
ओ भिखमंगे, अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर दोहित,
तू अखंड भंडार शक्ति का, जाग अरे निद्रा-सम्मोहित,
प्राणों को तड़पाने वाली हुंकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे।
भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तो तू कह दे : नहीं चाहिए हमको रोने वाले जनखे;
तेरी भूख, असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो फिर समझूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर, निर्बल।
प्रश्न :
(क) भूखे मनुष्य को जूठे पत्ते चाटते देखकर कवि के मन में क्या विचार उठा?
(ख) राख की ढेरी कौन हो गया है?
(ग) कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
(घ) कवि शोषित-पराजित मनुष्य को क्या कहकर प्रेरित करता है?
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए :
‘अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे।’
(च) किन पंक्तियों का आशय है कि दलित-शोषित भारतीय को सहानुभूति के आँसू नहीं, व्यवस्था को बदलने वाले गुस्से की ज़रूरत है?
(छ) कवि किसे शक्ति का भंडार कहता है?
(ज) मनुष्य को जगत्पति क्यों कहा गया है?
उत्तर :
(क) भूखे मनुष्य को जूठे पत्तल चाटते देखकर कवि के मन में यह विचार उठा कि क्यों न वह इस दुनिया की व्यवस्था को आग के हवाले कर दे। उसने यह भी सोचा कि क्यों न इस प्रकार की व्यवस्था के संचालक का गला घोंटकर मार दिया जाए, जो मनुष्य को इस स्थिति तक पहुँचाने का ज़िम्मेदार है।
(ख) राख की ढेरी स्वयं जगपति अर्थात् ऐसी व्यवस्था का संचालक हो गया है।
(ग) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने, सभी को मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाने की ज़िम्मेदारी जिसकी थी, वह इसे बनाए रखने में असमर्थ रहा। सारी व्यवस्था छिन्न-भिन्न होकर तार-तार हो रही है।
(घ) कवि शोषित-पराजित मनुष्य को व्यवस्था बदलने के लिए यह कहकर प्रेरित कर रहा है कि चिरकाल से शोषित मनुष्य! तू असीम शक्ति का भंडार है। तू आलस्य के कारण शिथिल हो रहा है। तू जाग और अपनी हुंकार से सर्वत्र गुंजायमान कर दे।
(ङ) आशय यह है कि समाज में जो व्यवस्था होनी चाहिए थी, वह अव्यवस्था के कारण समाप्त हो चुकी है। चारों ओर अत्याचार और दुराचार का बोलबाला है। कवि शोषित-पीड़ित मनुष्य को जाग्रत करते हुए कहता है कि इस बदहाल व्यवस्था को बदलने के लिए वह अपनी सारी ताकत लगा दे।
(च) उक्त आशय व्यक्त करने वाली काव्य-पंक्तियाँ हैं-
भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तो तू कह दे : नहीं चाहिए हमको रोने वाले जनखे;
तेरी भूख, असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो फिर समझूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर निर्बल।
(छ) कवि धरती के समस्त वासियों को शक्ति का भंडार कहता है।
(ज) मनुष्य को जगत्पति इसलिए कहता है कि वे स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं।
13. निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिट
आशा में निश्छल पल जाए,
छलना में पड़कर छल जाए,
सूरज दमके तो तप जाए,
रजनी ठुमके तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुड़िया-सी
भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आए तो उड़ जाए,
पानी बरसे तो गल जाए,
फसलें उगर्ती, फसलें कटर्ती
लेकिन धरती चिर उर्वर है।
सौ बार बने, सौ बार मिटे
लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
प्रश्न :
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसका गुणगान कर रहा है?
(ख) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी’।
(ग) मिट्टी को गुड़िया-सी भोली क्यों बताया गया है?
(घ) मिद्टी बार-बार बनने, सँवरने और मिटने पर भी कैसे बनी रहती है?
(ङ) मिट्टी के बारे में कवि के दो कथन हैं-‘ मिट्टी की हस्ती क्या’ और ‘मिट्टी अविनश्वर है।’ इनमें से किसी एक पर अपना मत लिखिए।
(च) इस कविता में निहित मूल भाव को स्पष्ट कीजिए।
(छ) विलोम शब्द बताइए- उर्वर
(ज) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि मिट्टी का गुणगान कर रहा है।
(ख) आशय यह है कि मिट्टी की सहनशीलता अपार है। वह बार-बार कुटने-पीटने, छनने, बिखराए जाने, सुखाने, गीला करने के बाद भी अपना अस्तित्व बचाए रख सकी। इन विपरीत परिस्थितियों में भी मिट्टी को कोई मिटा नहीं पाया।
(ग) मिट्टी को बच्चों की गुड़िया-सी भोली और निर्बल इसलिए बताया गया है, क्योंकि जिस प्रकार गुड़िया किसी भी बच्चे का खिलौना बनकर किसी स्थान की होकर नहीं रह पाती है, उसी प्रकार मिट्टी भी हवा के साथ उड़ जाती है और पानी के साथ बहकर अन्यत्र चली जाती है।
(घ) मिट्टी बार-बार बनने, सँवरने और मिटने पर भी अविनाशी बनी रहती है। वह कभी नष्ट नहीं होती। उसका रूप-रंग भले बदल जाए, पर वह नष्ट नहीं होती।
(ङ) मिट्टी अविनश्वर है। वह कुम्हार की थापी से बार-बार कुटती-पिटती रही। उसे तोड़ा-फोड़ा गया। उसे यहाँ-वहाँ फेंका गया। पानी उसे बहा ले गया और पवन उसे अपने संग उड़ा ले गया। मिट्टी का बार-बार रूप-स्वरूप एवं स्थान बदलने पर भी मिट्टी का अस्तित्व न मिट सका।
(च) कविता का मूल भाव यह है कि मिट्टी अविनाशी है। उसे नष्ट नहीं किया जा सकता। वह अनुकूल या विपरीत परिस्थितियों में अपना रूप-रंग, आकार बदलने पर भी अपने मूलरूप में बनी रहती है।
(छ) विलोम शब्द-उर्वर-ऊसर
(ज) शीर्षक-मिट्टी की महिमा
14. कविताओं में
पेड़, चिड़िया, फूल, पौधे
और मौसम का अब ज़क्र नहीं होता
कविताओं में होते हैं
संवेदनहीन लोग
जो धन के बल पर
सच-झूठ को नकारते हुए
जीवन जी रहे हैं।
कविताएँ सदा सच बोलती हैं
झूठ का भंडा फोड़ती हैं
और सच यह है कि आज का मानव
छल से, बल से लूट रहा है,
उसने काट डाले हैं
सारे के सारे वन-उपवन
धरती का चप्पा-चप्पा
पट गया है भवनों से।
और लोगों ने ड्राइंग-रूम में लगा दी हैं
बौना साइज़ प्रजातियाँ पौधों की
और सजा दी हैं असंख्य पक्षियों की
कृत्रिम आकृतियाँ
कैलेंडर-पेंटिंग्स के रूप में
जिन्हें देखकर
बच्चे पूछते होंगे –
कैसे होते हैं
विशालकाय पेड़ ?
चिड़िया कैसे चहचहाती है?
आकाश इतना खाली क्यों है?
पर्वत इतने निर्वस्त्र क्यों?
हवाएँ सहमी-सहमी हैं,
बादल क्यों नहीं बरसते?
तब तुम्हारा उत्तर क्या होगा?
मैं तुम्हीं से पूछता हूँ।
तुम्हारे ड्राइंग-रूम की चिड़िया
पौधों की किस्में
प्लास्टिक के फूल
खोज पाएँगे इन सभी
प्रश्नों का समाधान?
प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में अब कविताओं में किन बातों की चर्चा नहीं होती?
(ख) कविताओं में कैसे लोग प्रमुखता से देखने को मिलते हैं?
(ग) कविताएँ अपनी भूमिका का निर्वहन किस प्रकार से करती हैं?
(घ) आज का मानव छल-बल से किसे लूट रहा है और क्यों?
(ङ) ड्राइंग-रूमों को देखकर बच्चों की जिज्ञासा का कारण आप क्या मानते हैं?
(च) तब तुम्हारा उत्तर क्या होगा?
(छ) किन पंक्तियों का संकेत बिगड़ते पर्यावरण की ओर है?
(ज) उपसर्ग और मूल शब्द अलग-अलग कीजिए-निर्वस्त्र।
उत्तर :
(क) कवि की दृष्टि में अब कविताओं में पेड़, चिड़िया, फूल, पौधे और मौसम की चर्चा नहीं होती है। कवि की दृष्टि प्रकृति के विभिन्न अंगों को अब अनदेखा करने लगी है।
(ख) कविताओं में संवेदनहीन लोग प्रमुखता से देखने को मिलते हैं।
(ग) कविताएँ सच को उजागर करते हुए झूठ का फंडा फोड़ती हैं।
(घ) आज का मानव छल-बल से प्रकृति को लूट रहा है। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि वह जंगलों का सफ़ाया करके अपने स्वार्थ को पूरा कर सके। उसने धरती के कोने-कोने पर असंख्य भवन बना लिए।
(ङ) ड्राइंग-रूमों को देखकर बच्चों की जिज्ञासा का कारण यह है कि लोगों ने अपने ड्राइंग-रूमों में छोटे-छोटे आकार वाले पेड़-पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ लगा रखी हैं। उनके कैलेंडर और पेंटिंगों में असंख्य पक्षियों की आकृतियाँ सजी दिखती हैं।
(च) ‘तब तुम्हारा उत्तर क्या होगा’ की स्थिति में मेरा उत्तर यह है कि मनुष्य दिनों-दिन प्रकृति से दूर होता जा रहा है। उसने लोभ और स्वार्थ के कारण बड़े-बड़े पेड़ों को अंधाधुंध कटवा दिया, जिससे चिड़ियों का आश्रय नष्ट हो गया। पेड़ों की कमी के कारण ही हवाएँ सहमी हैं और बादलों ने बरसना बंद कर दिया है।
(छ) बिगड़ते पर्यावरण की ओर संकेत करने वाली पंक्तियाँ हैं:
आकाश इतना खाली क्यों है?
पर्वत इतने निर्वस्त्र क्यों?
हवाएँ सहमी-सहमी हैं,
बादल क्यों नहीं बरसते?
(ज) उपसर्ग-नि:/निर, मूल शब्द-वस्त्र
15. फूल से बोली कली “क्यों व्यस्त मुरझाने में है,
फ़ायदा क्या गंध औ’ मकरंद बिखराने में है ?
तूने अपनी उम्र क्यों वातावरण में घोल दी,
मनमोहक मकरंद की पंखुड़ियाँ क्यों खोल दीं।
तू स्वयं को बाँटता है जिस घड़ी से है खिला,
किंतु इस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला?
मुझे देखो मेरी सब खुशबू मुझी में बंद है,
मेरी सुंदरता है अक्षय, अनछुआ मकरंद है।”
फूल उस नादान की वाचालता पर चुप रहा,
फिर स्वयं को देखकर भोली कली से ये कहा”
ज़िदगी सिद्धांत की सीमाओं में बँटती नहीं,
ये वो पूँजी है जो व्यय से बढ़ती है, घटती नहीं।
चार दिन की जिंदगी खुद को जिए तो क्या जिए?
बात तो तब है कि जब मर जाएँ औरों के लिए,
प्यार के व्यापार का क्रम अन्यथा होता नहीं,
वह कभी पाता नहीं है जो कभी खोता नहीं।”
प्रश्न :
(क) कली की दृष्टि से फूल के कौन-से काम व्यर्थ हैं?
(ख) आशय स्पष्ट कीजिए : ‘तू स्वयं को बाँटता है।’
(ग) किसकी सुंदरता अक्षय है?
(घ) फूल क्यों चुप रहा है?
(ङ) फूल ने कली को नादान और भोली क्यों समझा?
(च) ‘चार दिन की ज़िदगी खुद को जिए तो क्या जिए?’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि हमें क्या जीवन-संदेश देना चाहता है?
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) कली की दुष्टि से फूल के निम्नलिखित कार्य व्यर्थ हैं :
(i) फूल का खुशबू बिखराकर मुरझाना व्यर्थ है।
(ii) सुगंध और मकरंद फैलाना व्यर्थ है।
(iii) मनमोहक मकरंद की पंखुड़ियाँ खोलना व्यर्थ है।
(iv) उपकार करते हुए फूल द्वारा अपने जीवन का बलिदान देना कली को व्यर्थ लगता है।
(ख) ‘तू स्वयं को बाँटता है’ का आशय है-फूल द्वारा अपना रूप-सौंदर्य देना, अपनी सुगंध और परागकण हवा में घोलना, मकरंद भरी पंखुड़ियाँ खोलकर मकरंद बाँटना।
(ग) कली की सुंदरता अक्षय है।
(घ) फूल कली की नादानी और वाचलता को देखकर चुप रहना ही उचित समझा।
(ङ) फूल ने कली को नादान और भोली इसलिए समझा, क्योंकि वह फूल द्वारा किए जा रहे परोपकार एवं दूसरों के लिए जीवन के त्याग को व्यर्थ समझती है।
(च) ‘चार दिन की ज़िदगी को खुद जिए तो क्या जिए?’ पंक्ति का आशय यह है कि जीवन की अवधि बहुत कम है। इस अल्पायु को जो अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। हमें अपने जीवन को परोपकार में लगा देना चाहिए।
(छ) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि हमें यह सीख देना चाहता है कि हमें केवल अपने ही स्वार्थ के लिए नहीं जीना चाहिए। हमें परोपकार करते हुए अपना जीवन दूसरों की भलाई के लिए अर्पित कर देना चाहिए तथा हमें परस्पर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।
(ज) शीर्षक-जीवन जीने की कला
16. चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उसे
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है
यहाँ निद्वर्व्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
प्रश्न :
(क) चिड़िया को समझाने का उद्देश्य क्या है?
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
(ग) कवि ने बाहर की धरती को ‘निर्मम’ क्यों कहा है?
(घ) पिंजड़े से मुक्त होने पर चिड़िया को किन-किन कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ सकता है?
(ङ) पिंजड़े से बाहर प्राणों का संकट है, फिर भी चिड़िया बाहर क्यों जाना चाहती है?
(च) आशय स्पष्ट कीजिए :
‘बाहर दाने का टोटा है, यहाँ चुग्गा मोटा है।’
(छ) उपसर्ग और मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-निद्वर्व्व, आशंका
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) चिड़िया को समझाने का उद्देश्य यह है कि वह शांति से पिजड़े में सुरक्षित बनी रहे। बाहर निकलना उसके जीवन के लिए घातक है।
(ख) चिड़िया को पिंजरे के भीतर निम्नलिखित सुविधाएँ उपलब्ध हैं :
- उसके लिए कटोरी में पीने का पानी रखा है।
- खाने के लिए मोटा चुग्गा रखा है।
- पिंजरे में उसका जीवन बाहरी खतरों से सुरक्षित है।
(ग) कवि ने बाहर की धरती को इसलिए ‘निर्मम’ कहा है, क्योंकि पिंजड़े के बाहर बहेलिया, शिकारी पक्षी उसके लिए घात लगाए बैठे हैं। उनके चुंगल में आते ही उसकी जान जाना तय है।
(घ) पिंजड़े से मुक्त होने पर चिड़िया को निम्नलिखित कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ सकता है-
- उसे भोजन-पानी के लिए विपरीत परिस्थितियों में दूर-दूर भटकना पड़ सकता है।
- उसे बाहरी खतरों (बहेलिया तथा शिकारी पक्षियों) से अपनी रक्षा खुद करनी पड़ेगी।
(ङ) पिजड़े से बाहर प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया इसलिए बाहर जाना चाहती है, क्योंकि उसे स्वतंत्र जीवन पसंद है। वह आकाश में स्वच्छंद उड़ान भरना चाहती है। उसे पिंजड़े का बंदी जीवन पसंद नहीं है।
(च) ‘आशय यह है कि पिंजड़े के बाहर चिड़िया को खाने के लिए आसानी से कुछ नहीं मिलेगा। इसके विपरीत पिंजड़े में उसे खाना-पीना दोनों ही उपलब्ध है, पर स्वतंत्रता नाम की चीज़ नहीं है।
(छ) उपसर्ग मूल शब्द
नि:/निर द्वद्वंव
आ शंका
(ज) शीर्षक-स्वतंत्रता सबको प्यारी
17. इस समाधि में छिपी हुई है
एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की
दिव्य आरती फेरी।
यह समाधि, यह लघु समाधि है
झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला-स्थली यही है
लक्ष्मी मर्दानी की।।
यहीं कहीं पर बिखर गई वह
भग्न विजय-माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं
है यह स्भृतिशाला-सी।।
सहे वार पर वार अंत तक
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर पड़ी चिता पर
चमक उठी ज्वाला-सी।।
बढ़ जाता है मान वीर का
रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की
भस्म यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब
यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की
आशा की चिनगारी।।
इससे भी सुंदर समाधियौं
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में
क्षुद्र जंतु ही गाते।
पर कवियों की अमर गिरा में
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती
है वीरों की बानी।।
प्रश्न :
(क) प्रस्तुत काव्यांश में किसकी समाधि का उल्लेख किया गया है?
(ख) समाधि को अंतिम लीला-स्थली क्यों कहा गया है?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-‘यहीं कहीं पर बिखर गई वह भग्न विजय-माला-सी।’
(घ) व्यक्ति का मान कब बढ़ जाता है?
(ङ) इससे भी सुंदर समाधियाँ होने पर भी यह समाधि विशेष क्यों बताई गई है?
(च) रानी से भी अधिक उसकी समाधि प्रिय होने का कारण आपके विचार से क्या हो सकता है?
(छ) मूल शब्द और प्रत्यय अलग-अलग कीजिए-
स्वतंत्रता, मूल्यवती
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत काव्यांश में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का उल्लेख किया गया है।
(ख) समाधि को अंतिम लीला-स्थली इसलिए कहा गया है, क्योंकि लक्ष्मीबाई यहीं पर देश को अंग्रेजीी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई थी।
(ग) आशय यह है कि रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने से वह विजय-माला जो जीर्ण हो चुकी थी, टूटकर बिखर गई। अर्थात् भारत को स्वतंत्रता मिलने की जो आशा बँधी थी, वह बिखरकर इसी समाधि के पास कहीं खो गई।
(घ) व्यक्ति का मान उस समय बढ़ जाता है, जब वह अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए या अपनी आज़ादी को बनाए रखने के लिए जान की बाजी लगा देता है और वीरगति को प्राप्त हो जाता है।
(ङ) इससे भी सुंदर समाधियाँ होने पर भी यह समाधि इसलिए विशेष बताई गई है, क्योंकि इस समाधि का गुणगान कवि अमर वाणी में करते हैं, जबकि अन्य समाधियों की गाथा रात में कीड़े-मकोड़े और छोटे-छोटे जीव-जंतु ही गाते हैं।
(च) रानी से भी अधिक प्रिय उसकी समाधि होने का कारण यह है कि इस समाधि में स्वतंत्रता की आशारूपी चिनगारी छिपी है। यह चिनगारी भारतीयों में स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्जवलित करती रहेगी। इससे वे स्वतंत्रता के लिए प्रेरित होते रहेंगे।
(छ) मूल शब्द मूल शब्द
स्वतंत्र ता
मूल्य वती
(ज) शीर्षक-समाधि
18. पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
पुस्तकों में है नहीं, छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर, छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
है अनिश्चित किस जगह पर, सरित-गिरि-गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर, बाग-वन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब कंटकों के सर मिलेंगे,
कौन सहसा छट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले!
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले!
प्रश्न :
(क) पुस्तकों में क्या वर्णित नहीं है?
(ख) चलने से पूर्व राह की पहचान करने की बात क्यों कही गई है?
(ग) इस राह पर अनेक राहगीर अपने पैरों की निशानियाँ छोड़ गए-इसका भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) जीवन-यात्रा के मार्ग में ‘सुमन’ और ‘कंटक’ से क्या अभिप्राय है?
(ङ) ‘किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी’-कवि के इस कथन का क्या आशय है?
(च) जीवन में क्या-क्या अनिश्चितताएँ बताई गई हैं?
(छ) विलोम शब्द लिखिए-मूक, ज्ञात।
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
(क) पुस्तकों में लक्ष्य के अनुरूप उचित पथ के चुनाव हेतु किसी प्रकार का वर्णन यानी दिशानिर्देश नहीं दिया गया है। इसका चुनाव हमें स्वयं करना पड़ता है।
(ख) जीवन-पथ पर चलने से पहले यात्री को रास्ते की पहचान करने की बात इसलिए कही गई है, क्योंकि इस पथ का विवरण न किताबों में छपा है और न इस बारे में दूसरों से कुछ पता चल पाता है।
(ग) इस राह पर …. छोड़ गए-का भाव यह है कि जीवन-पथ पर चलते हुए अनेक राहगीर अनुकरणीय कार्य कर गए। लोग आज भी उन कार्यों को आदर्श बनाकर उनका अनुकरण कर रहे हैं। ऐसे महान कार्य करने वाले पुरुष अमर हो गए।
(घ) जीवन-यात्रा के मार्ग में ‘सुमन’ का अभिप्राय सुखद समय है और ‘कंटक’ का अभिप्राय कष्ट एवं विपत्तियाँ हैं। अर्थात् मानव-जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं।
(ङ) ‘किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी’-कवि के इस कथन का आशय यह है कि मृत्यु अनिश्चित है। मृत्यु के कारण यह यात्रा कब समाप्त हो जाए, यह कह पाना असंभव है।
(च) जीवन में निम्नलिखित अनिश्चितताएँ बताई गई हैं :
- जीवन-पथ पर कब नदी, पर्वत और खाइयाँ मिल जाएँ, यह अनिश्चित है।
- पथ पर कब सुंदर बाग-वन मिल जाएँ, यह अनिश्चित है।
- यह यात्रा कब समाप्त हो जाए, यह अनिश्चित है।
- पथ पर अचानक कौन मिल जाए या कौन बिछड़ जाए, यह अनिश्चित है।
- पथ पर कब सुख या दुख मिल जाए, यह अनिश्चित है।
(छ) विलोम शब्द :
मूक × वाचाल
ज्ञात × अज्ञात
(ज) शीर्षक – पथ की पहचान
19. आज की दुनिया विचित्र, नवीन;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान,
लाँघ सकता नर सरित, गिरि, सिंधु एक समान।
शीश पर आदेश कर अवधार्य,
प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य;
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
और करता शब्दगुण अंबर वहन संदेश।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल,
हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण विकराल।
यह प्रगति निस्सीम! नर का यह अपूर्व विकास!
चरण-तल भूगोल! मुट्ठी में निखिल आकाश!
कितु, है बढ़ता गया मस्तिष्क ही निशशेष,
छूटकर पीछे गया है यह हृय का देश;
मोम-सी कोई मुलायम चीज़
ताप पाकर जो उठे मन में पसीज-पसीज।
प्रश्न :
(क) आधुनिक युग को कवि ने विचित्र और नवीन क्यों कहा है?
(ख) ‘कहीं कोई रूकावट शेष नहीं रही’-इसकी पुष्टि में कवि ने क्या तर्क दिया है?
(ग) आधुनिक पुरुष ने किस पर विजय पायी है?
(घ) नर किन-किन को एक समान लाँघ सकता है?
(ङ) मानव द्वारा की गई वैज्ञानिक प्रगति के अद्भुत विकास को देखकर भी कवि संतुष्ट क्यों नहीं है?
(च) ‘प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य’-प्रमाण में एक उदाहरण दीजिए।
(छ) मन में रहने वाली ‘मोम-सी कोई मुलायम चीज़’ क्या हो सकती है? उसका अभाव क्यों दिखाई पड़ता है?
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) आधुनिक युग को कवि ने विचित्र एवं नवीन इसलिए कहा है, क्योंकि उसे हर जगह प्रकृति पर पुरुष की विजय दिखती है। आज पानी, बिजली, भाप मनुष्य के गुलाम हैं। वह नदी, पर्वत, सागर सभी लाँघ जाने की शक्ति रखता है।
(ख) ‘कहीं कोई रुकावट शेष नहीं रही’ की पुष्टि में कवि ने यह तर्क दिया है कि पहले नदी, पर्वत, सागर, मनुष्य के आवागमन में बाधा पैदा करते थे, पर आज यह सब बाधाएँ मिट गई हैं। वह नदी, पर्वत, सागर आदि को एक समान पार कर सकता है।
(ग) आधुनिक पुरुष ने प्रकृति के हर तत्व पर विजय पाई है।
(घ) नर नदी, पहाड़ और सागर को एक समान लाँघ सकता है।
(ङ) मानव द्वारा की गई वैज्ञानिक प्रगति के अद्भुत विकास को देखकर भी कवि इसलिए खुश नहीं है, क्योंकि वैज्ञानिक प्रगति करते-करते उसका मस्तिष्क पूरी तरह रिक्त हो गया है। उसमें पारस्परिक सद्भाव को बढ़ावा देने जैसी बातों की कमी होती जा रही है।
(च) ‘प्रकृति के सब तत्व करते हैं मनुज के कार्य’ का उदाहरण है-पानी, जिसकी भाप की शक्ति से मनुष्य बड़ी-बड़ी मशीनें और इंजन चला रहा है। इसके अलावा पानी से बनने वाली बिजली से मनुष्य के बहुत-से काम आसान हो गए हैं।
(छ) मन में रहने वाली ‘मोम-सी कोई मुलायम चीज’ दया हो सकती है। उसका अभाव इसलिए दिखाई देता है, क्योंकि वैज्ञानिक प्रगति करते-करते मनुष्य में स्वार्थवृत्ति बढ़ती ही जा रही है तथा मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
(ज) शीर्षक-अभिनव मनुष्य
20. हम प्रचंड की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल।
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीरप्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं।
गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं।
तन-मन-धन तुम पर कुर्बान,
जियो, जियो जय हिंदुस्तान!
हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण।
जिनमें नर का तेज़ प्रखर था, भीतर था नारी का मन।
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल।
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर।
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर।
हम उन वीरों की संतान,
जियो, जियो जय हिंदुस्तान।
प्रश्न :
(क) कविता में ‘हम’ के रूप में कौन अपना परिचय दे रहे हैं?
(ख) वे अपने आपको ‘नई किरण’ क्यों कह रहे हैं?
(ग) भारतीय अपना सर्वस्व किस पर न्योछावर करना चाहते हैं और क्यों?
(घ) ‘वीरप्रसू’ किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) भाव स्पष्ट कीजिए :
‘जिनमें नर का तेज़ प्रखर था, भीतर था नारी का मन।’
(च) काव्यांश के आधार पर हमारे पूर्वजों के स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(छ) हिमालय के प्रहरी किन्हें कहा गया है?
(ज) संधि-विच्छेद कीजिए-नयन, हिमाद्रि।
उत्तर :
(क) कविता में ‘हम’ के रूप में युवा भारतवासी अपना परिचय दे रहे हैं।
(ख) वे अपने आपको नई किरण इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि उनमें नई उमंग, नया उत्साह एवं जोश है। वे धीरता, वीरता, गंभीरता और अचलता आदि गुणों से युक्त भारत के युवा वीर हैं।
(ग) भारतीय अपना सर्वस्व भारत-भूमि पर न्योछावर करना चाहते हैं, क्योंकि वे वीरप्रसू भारत-भूमि की संतान हैं। वे ही भारत देश, यहाँ की नदियों, सागर, पर्वत आदि के रखवाले हैं। उन्हें अपनी जन्मभूमि अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है।
(घ) वीरप्रसू भारत-भूमि को कहा गया है, क्योंकि भारत-भूमि ने राम, कृष्ण, गुरुगोबिंद सिंह, शिवाजी, राणा प्रताप, तिलक, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे कालजयी वीरों को जन्म दिया है।
(ङ) ‘जिनमें नर का ……… नारी का मन।’ का आशय है कि भारतीय वीरों एवं मनीषियों की यशगाथा पूरे विश्व में गूँजती थी। वे महान वीर थे, जिनसे शत्रु काँपते थे, पर उनके भीतर करुणा, दया, प्रेम, त्याग, समरसता, सहृदयता आदि गुण भरे थे। वे परोपकारी तथा कल्याणकारी थे।
(च) पूर्वजों की दो स्वाभाविक विशेषताएँ :
(i) हमारे पूर्वज अत्यंत वीर थे, जिनकी ललकार पर धरती, आकाश और पाताल तीनों लोक थर-थर काँपते थे।
(ii) वे रणक्षेत्र में दुश्मनों के लिए काल थे, तो मानवता की भलाई के लिए दया के अवतार।
(छ) सैनिकों को हिमालय का प्रहरी कहा गया है।
(ज) संधि-विच्छेद- नयन = नै + अन
हिमाद्रि = हिम + आद्रि
21. “धर्मराज, यह भूमि किसी की नहीं क्रीत है दासी,
है जन्मना समान परस्पर इसके सभी निवासी।
है सबका अधिकार मृत्तिका पोषक-रस पीने का,
विविध अभावों से अशंक होकर जग में जीने का।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन, विघ्न अनेक अभी इस पथ में पड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक, शांति कहाँ इस भव को?
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख-भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
था पथ सहज अतीव, सम्मिलित हो समग्र सुख पाना,
केवल अपने लिए नहीं, कोई सुख-भाग चुराना।”
प्रश्न :
(क) ‘यह धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है।’-इससे कवि का क्या आशय है?
(ख) इस धरती पर लोगों को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं?
(ग) ‘सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण’-इसका भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) आज मानव-समाज में किस प्रकार का संघर्ष चल रहा है? उसका कारण क्या है?
(ङ) मनुष्य क्या चाहता है?
(च) कवि कैसा संसार बनाना चाहता है?
(छ) कवि के अनुसार धरती पर कब तक अशांति बनी रहेगी?
(ज) संधि-विच्छेद कीजिए-न्यायोचित।
उत्तर :
(क) ‘यह धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है।’-इससे कवि का आशय यह है कि यह पृथ्वी किसी एक की नहीं है। इस पर सभी मनुष्यों का जन्मजात अधिकार है। सभी इसके निवासी हैं।
(ख) इस धरती पर सभी को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं :
- इस धरती से पोषण पाने का।
- इस धरती पर निडर रहकर जीने का।
- सभी को समान रूप से हवा और पानी पाने का।
- आशंकामुक्त एवं बाधारहित जीवन जीने का।
(ग) भाव यह है कि धरती पर सभी को जीने का अधिकार है। इसके लिए हर मनुष्य को समान रूप से हवा और प्रकाश मिलना चाहिए। उसे मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
(घ) आज मानव-समाज में मूलभूत सुविधाओं को पाने, सुख-शांति से जीने, विषमता को कम करने के लिए संघर्ष हो रहा है। एक ओर व्यक्ति सुख-सुविधाओं और भोग-विलास में आकंठ डूबा हुआ है और दूसरी ओर लोग भूखों मरने को विवश हैं।
(ङ) मनुष्य इस धरती पर केवल अपने लिए ही सुख चाहता है। इसका कारण यह है कि मनुष्य स्वार्थी हो गया है। अपने स्वार्थ में डूबने के कारण ही उसे दूसरों की लेशमात्र चिंता नहीं रह गई है। वह दूसरों का सुख भी हड़प लेना चाहता है।
(च) कवि ऐसा संसार बनाना चाहता है, जहाँ सभी को न्यायोचित सुख के साथ चैन और शांति मिले।
(छ) कवि का मानना है कि जब तक मानव जीवन में समता का सुख नहीं होगा, तब तक मनुष्य के मन में असंतोष रहेगा। परिणामस्वरूप अशांति बनी रहेगी।
(ज) संधि-विच्छेद-न्याय + उचित
22. भीड़ जा रही थी
मैंने सुनी पदचापें
बड़ा शोर था पर एक आहट ने मुझे पुकारा
वह शायद तुम्हारी थी।
आहट ने मुझसे कहा –
बैठे क्यों हो?
तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है।
तब मैं
अकेलेपन के, कुंठाओं के जालों को तोड़कर
हो गया खड़ा
और अब विश्वास है मुझे
मैं कुछ बनूँगा
मैं कुछ कर गुज़ूँूगा
किंतु अपनी मुट्ठी भर योग्यताओं के बल पर नहीं,
तुम्हारे विश्वास के बल पर
तुम्हारी आशाओं के बल पर
तुम्हारी शुभकामनाओं के बल पर।
मेरे मित्र!
शायद यह साथ रहे न रहे हमेशा
मैं जानता हूँ-रह भी नहीं सकता
पड़ेगा बिछ्छुड़ना
जाना पड़ेगा दूर
फिर भी मेरे साथ रहेगी तुम्हारी स्मृति
जो देती रहेगी मुझे सहारा, नव उत्साह!
और मैं जब भी बढ़ाऊँगा कदम किसी सफलता की ओर
तो मेरा हुदय अवश्य कहेगा एक बात –
धन्यवाद मित्र, धन्यवाद् मित्र, धन्यवाद!
प्रश्न :
(क) कवि को किसकी आहट ने पुकारा?
(ख) जीवन क्या है?
(ग) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़रने का विश्वास किसने प्रदान किया?
(घ) किन पंक्तियों का आशय है-सफलता पाने के लिए योग्यता से अधिक महत्वपूर्ण है, किसी की प्रेरणा और शुभकामना।
(ङ) तीन बार ‘धन्यवाद’ कहने से अर्थ में क्या विशेषता आ गई है?
(च) मित्र के साथ न रहने पर कवि को किस बात का भरोसा है?
(छ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है।’
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
(क) कवि को उसके प्रिय मित्र के आहट ने पुकारा।
(ख) कवि के अनुसार चलना यानी निरंतर संघर्षरत रहना ही जीवन है।
(ग) कवि को कुछ बनने, कुछ कर गुज़ने का विश्वास उसके मित्र ने प्रदान किया। मित्र ने ऐसा विश्वास और संबल दिया, जिसके बल पर कवि सफलता की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित हुआ।
(घ) उक्त कथन का आशय व्यक्त करने वाली काव्य-पंक्तियाँ हैं : में कुछ्छ कर गुज़एँगा
किंतु अपनी मुट्ठी भर योग्यताओं के बल पर नहीं, तुम्हारे विश्वास के बल पर
तुम्हारी आशाओं के बल पर
तुम्हारी शुभकामनाओं के बल पर।
(ङ) तीन बार ‘धन्यवाद’ कहने से धन्यवाद देने का दिखावा न होकर हार्दिक धन्यवाद देने का भाव व्यक्त हो गया है तथा भाव में प्रगाढ़ता आ गई है और अर्थ-गांभीर्य उत्पन्न हो रहा है।
(च) समय-अंतराल के बाद जब मित्र साथ न होगा, तब भी उसे इस बात का भरोसा है कि उसके साथ मित्र की यादे सदैव साथ रहेंगी और यही यादें उसे जीवन-पथ पर बढ़ने का संबल प्रदान करती रहेंगी।
(छ) ‘तुम भी चलो, चलना ही तो जीवन है’-इसका आशय यह है कि चलते जाने का नाम ही जीवन है। जीवन रुकता नहीं। उसमें सदैव गतिशीलता बनी रहती है। अतः जीवन में रुकने की बजाय चलते रहना चाहिए।
(ज) शीर्षक-मित्रता अनमोल धन
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रारूप-
23. असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में, क्या जल में बह जाते देखा है?
क्या खाएँगे? यह सोच निराशा से पागल, बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?
देखा है ग्रामों की अनेक रंभाओं को, जिनकी आभा पर धूल अभी तक छाई है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक रेशम क्या, साड़ी सही नहीं चढ़ पाई है।
पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले, क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे,
जलता हो सारा देश, कितु, होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर क्यों यह आग बुझाओगे?
चिता हो भी क्यों तुम्हें, गाँव के जलने से, दिल्ली में तो रोटियाँ नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बूँदों से आँखों से काजल, गालों पर की धूलियाँ नहीं नम होती हैं।
जलते हैं तो ये गाँव देश के जला करें, आराम नई दिल्ली अपना कब छोड़ेगी
या रखेगी मरघट में भी रेशमी महल या आँधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी।
चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर, दिल्ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में,
है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से सोई है नरम रजाई में।
प्रश्न –
(क) प्रस्तुत काव्यांश में ‘किस्मत’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(i) धन के संदर्भ में
(ii) अन्न के संदर्भ में
(iii) परिश्रम के संद्र्भ में
(iv) सभी गलत हैं।
उत्तर :
(ii) अन्न के संदर्भ में
(ख) कवि ‘रभाओं शब्द के माध्यम से किन्हें संबोधित कर रहा है?
(i) सभी नवयुवतियों को
(ii) सभी ग्रामीण नवयुवतियों को
(iii) सभी सुंदरियों को
(iv) देव कन्याओं को
उत्तर :
(ii) सभी ग्रामीण नवयुवतियों को
(ग) कवि के अनुसार ग्रामीण स्त्रियाँ हैं –
(i) साधन-संपन्न
(ii) साधनहीन
(iii) आधुनिक
(iv) उपरोक्त सभी सही हैं।
उत्तर :
(ii) साधनहीन
(घ) किनको किसी बात की चिता नहीं है?
(i) उद्योगपतियों को
(ii) दिल्ली वालों को
(iii) महलों में रहने वालों को
(iv) ग्रामीणों को
उत्तर :
(ii) दिल्ली वालों को
(ङ) किसान क्या देखकर पागल हुए जा रहे हैं?
(i) अपनी गरीबी को देखकर
(ii) शहरी जीवन को देखकर
(iii) अपनी फसलों को नष्ट होते देखकर
(iv) अपनी दुर्दशा को देखकर
उत्तर :
(iii) अपनी फसलों को नष्ट होते देखकर
(च) अभाव और दुख में डूबा हुआ है-
(i) शहरी भारत
(ii) दक्षिणी भारत
(iii) उत्तरी भारत
(iv) ग्रामीण भारत
उत्तर :
(iv) ग्रामीण भारत
(छ) दिल्ली के लोग हो चुके हैं-
(i) आत्मकेंद्रित
(ii) संवेदनहीन
(iii) संवेदनशील
(iv) (i) और (ii) दोनों
उत्तर :
(iv) (i) और (ii) दोनों
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा-
(i) शहरी जीवन
(ii) ग्रामीण जीवन
(iii) शहरी जीवन बनाम ग्रामीण जीवन
(iv) शहरी जीवन बनाम ग्रामीण जीवन
उत्तर :
(iv) शहरी जीवन बनाम ग्रामीण जीवन
24. जब कभी मछेरे को फैंका हुआ
फैला जाल समेटते हुए देखता हूँ
तो अपना सिमटता हुआ
‘स्व’ याद् हो आता है –
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार की वृहत्तर परिधि में
समाहित था
‘सर्व’ की परिभाषा बनकर,
और अब केंद्रित हो
गया हूँ मात्र बिंदु में।
जब कभी अनेक फूलों पर
बैठी, पराग को समेटती
मधुमक्खियों को देखता हूँ
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो आती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है
और मधु-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा होती है।
प्रश्न :
(क) मछेरे द्वारा फेंके हुए जाल को समेटते हुए देखकर कवि को किसकी याद आती है?
(i) समाज की
(ii) परिवार की
(iii) स्व की
(iv) गाँव की
उत्तर :
(i) समाज की
(ख) पहले ‘स्व’ की परिधि में समाहित था-
(i) समाज
(ii) गाँव
(iii) परिवार
(iv) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(iv) उपरोक्त सभी
(ग) ‘मधु’ की तुलना किससे की गई है?
(i) मिठास से
(ii) मृदुल व्यवहार से
(iii) मनुष्यता से
(iv) उपर्युक्त सभी से
उत्तर :
(iii) मनुष्यता से
(घ) कवि को अपने पूर्वजों की याद आती है-
(i) मुधमक्खियों को देखकर
(ii) फूलों को देखकर
(iii) परिवार को देखकर
(iv) उपरोक्त सभी ग्रालत हैं
उत्तर :
(i) मुधमक्खियों को देखकर
(ङ) कवि ने किसे एक बाग़ की संज्ञा दी है?
(i) परिवार को
(ii) समाज को
(iii) गाँव को
(iv) देश को
उत्तर :
(iv) देश को
(च) मनुष्य दिन-पर-दिन होता जा रहा है-
(i) आत्मकेंद्रित
(ii) स्वार्थी
(iii) उदार
(iv) (i) और (ii) दोनों सही हैं
उत्तर :
(iv) (i) और (ii) दोनों सही हैं
(छ) पूर्वजों के संबंध में इनमें से कौन-सी बात सही है?
(i) वे स्वार्थी थे
(ii) वे. किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे
(iii) वे आत्मकेंदित थे
(iv) उनका स्व संकुचित था
उत्तर :
(ii) वे. किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे
(ज) काव्यांश के अनुसार दिन-पर-दिन समष्टिगत भाव का-
(i) विकास हो रहा है।
(ii) हास हो रहा है
(iii) विस्तार हो रहा है
(iv) सभी गलत हैं
उत्तर :
(ii) हास हो रहा है
25. खोल सीना, बाँधकर मुट्ठी कड़ी
मैं खड़ा ललकारता हूँ। ओ नियति!
तू सुन रही है?
मैं खड़ा तुझको स्वयं ललकारता हूँ।
हाँ, वही मैं
जो कि कल तक कह रहा था;
तुम्हीं हो सर्वस्व मेरी
और यह जीवन तुम्हारी कृपा-करुणा का भिखारी
दान दो संजीवनी का, या दो मृत्यु का; स्वीकार है!
विनत शिर, स्वर मंद, कंपित ओष्ठ!
हाँ, वही हूँ मैं
आज खोले वृक्ष, उन्नत शीश, रक्तिम नेत्र
तुझको दे रहा हूँ, ले, चुनौती
गगनभेदी घोष में
दृढ़ बाहुदंडों को उठाए।
क्योंक मैंने आज पाया है स्वयं का ज्ञान
क्योंकि मैं पहचान पाया हूँ कि मैं हूँ मुक्त बंधनहीन
और तू है मात्र श्रम, मन-जात, मिथ्या वंचना
इसलिए इस ज्ञान के आलोक में, इस पल
मिल गया है आज मुझको सत्य का आभास
अरी ओ मेरी नियति!
मैं छोड़कर पूजा
-क्योंकि पूजा है पराजय का विनत स्वीकार-
बाँधकर मुट्ठी तुझे ललकारता हूँ।
प्रश्न :
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कौन किसे ललकार रहा है?
(i) जनता सरकार को
(ii) कवि सरकार को
(iii) कवि अपनी नियति को
(iv) कोई किसी को नहीं
उत्तर :
(iii) कवि अपनी नियति को
(ख) ‘कृपा-करुणा’ में किस अलंकार का प्रयोग है?
(i) यमक अलंकार का
(ii) रूपक अलंकार का
(iii) उत्रेक्षा अलंकार का
(iv) अनुप्रास अलंकार का
उत्तर :
(iv) अनुप्रास अलंकार का
(ग) पहले यानी कल तक कवि था –
(i) कर्मवादी
(ii) मानवतावादी
(iii) भाग्यवादी
(iv) सुविधावादी
उत्तर :
(iii) भाग्यवादी
(घ) आज कवि है –
(i) आत्मविश्वास से परिपूर्ण
(ii) आत्मविश्वास रहित
(iii) पलायनवादी
(iv) वस्तुस्थितिवादी
उत्तर :
(i) आत्मविश्वास से परिपूर्ण
(ङ) कवि अपने जीवन को किसकी कृपा-करुणा का भिखारी मानता था?
(i) कर्म की
(ii) नियति की
(iii) अपनी क्षमता की
(iv) उपर्युक्त तीनों गलत
उत्तर :
(ii) नियति की
(च) काव्यांश में कवि ने अपनी शारीरिक दशा के विषय में कहता है –
(i) सीना ताने हुए
(ii) आँखें लाल किए हुए
(iii) अपने बाजुओं को ऊपर उठाए
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर :
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
(छ) कवि किसे अपना भ्रम मानता है?
(i) कर्म को
(ii) कृपा को
(iii) भाग्य को
(iv) सभी को
उत्तर :
(iii) भाग्य को
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का शीर्षक होगा –
(i) आत्मविश्वास
(ii) नियति सर्वोपरि
(iii) सत्य का आभास
(iv) बंधनहीन
उत्तर :
(iii) सत्य का आभास
26. गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
एक दुनिया है हुदय में, मानता हूँ,
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ
छा रहा है कितु बाहर भी तिमिर घन;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारूँ,
और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,
कह उठे संसार आया ज्योति का क्षण;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
दूर कर मुझमें भरी तू कालिमा जब,
फैल जाए विश्व में भी लालिमा तब
जानता सीमा नहीं है अगिन का कण;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
जग विभामय तो न काली रात मेरी,
मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी,
यह रहे विश्वास मेरा यह रहे प्रण;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
प्रश्न :
(क) कवि अपने गीत को ‘देहरी का दीप’ सा बनने को क्यों कह रहा है?
(i) प्रकाश के लिए
(ii) हृदय को प्रकाशित करने हेतु
(iii) आंतरिक एवं बाह्य दुनिया को प्रकाशित करने हेतु
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(iii) आंतरिक एवं बाह्य दुनिया को प्रकाशित करने हेतु
(ख) कवि के अनुसार उसका हृय-
(i) अलोकित है
(ii) अंधकारमय है
(iii) प्रकाशमय है
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर :
(ii) अंधकारमय है
(ग) कवि चे अपने दीपक रूपी गीत किस प्रकार बनाया है?
(i) अच्छी तरह से प्रयास करके
(ii) प्रशंसा ग्रहण कर
(iii) अच्छी तरह गाकर
(iv) ज्योति जलाकर
उत्तर :
(iv) ज्योति जलाकर
(घ) हदय के अंदर अंतर्निहित कालिमा कैसे दूर होगी।
(i) दीपक जलाकर
(ii) अंधकार रहित करके
(iii) अच्छे विचार फैलाकर
(iv) एक-दूसरे के प्रति प्रेम लाकर
उत्तर :
(iv) एक-दूसरे के प्रति प्रेम लाकर
(ङ) ज्ञान रूपी अग्नि का कण-
(i) सीमांकित होता है
(ii) संकुचित होता है
(iii) सीमा रहित होता है
(iv) (i) और (ii) दोनों सही है।
उत्तर :
(iii) सीमा रहित होता है
(च) इनमें से कौन सा शब्द प्रत्यय युक्त नहीं है?
(i) कालिया
(ii) लालिमा
(iii) विभामय
(iv) संसार
उत्तर :
(iv) संसार
(छ) कवि संसार में किस प्रकार का क्षण लाना चाहता है?
(i) तिमिर का क्षण
(ii) ज्योति का क्षण
(iii) सुख का क्षण
(iv) समता का क्षण
उत्तर :
(ii) ज्योति का क्षण
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा-
(i) मेरे गीत
(ii) प्रकाश
(iii) विभामय संसार
(iv) देहरी
उत्तर :
(i) मेरे गीत
27. तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन का,
चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का।
विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता,
जोड़ा करता जिनकी गति से नव उत्साह निरंतर नाता।
पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय,
जिसके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार सदा लय।
अचल खड़े रहते जो ऊँचा, शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती, जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ-बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्शर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
प्रश्न :
(क) यौवन की तुलना किससे की गई है?
(i) पर्वत से
(ii) पर्वत के शिखरों से
(iii) नदियों से
(ii) उपर्युक्त सभी से
उत्तर :
(ii) पर्वत के शिखरों से
(ख) यौवन की सार्थकता-तब मानी जाती है जब-
(i) कठिनाइयों से हार न माने
(ii) संघर्षरत रहे
(iii) उन्नति के पथ पर अग्रसर रहे
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर :
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
(ग) पर्वतों के शिखरों और युवकों में साम्यता यह है कि-
(i) दोनों अचल हैं
(ii) दोनों का यौवन कभी नष्ट नहीं होता
(iii) दोनों लक्ष्यहीन होते हैं
(iv) दोनों परोपकारी होते हैं
उत्तर :
(ii) दोनों का यौवन कभी नष्ट नहीं होता
(घ) काव्यांश के अनुसार नवयवुकों में निम्नलिखित गुण होते हैं-
(i) अदम्य दृढ़ता
(ii) सहनशीलता
(iii) उत्साह
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(iv) उपर्युक्त सभी
(ङ) नवयुवकों से किसे बहुत आशा है?
(i) समाज को
(ii) गाँव को
(iii) शहर को
(iv) देश को
उत्तर :
(iv) देश को
(च) कैसे लोग पथ की बाधा को तोड़कर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हैं?
(i) जिनके अंदर सहनशीलता और दृढ़ता होती है
(ii) जिनके अंदर शक्ति होती है।
(iii) जिनमें नेतृत्व क्षमता होती है।
(iv) उपर्युक्त सभी गलत हैं।
उत्तर :
(i) जिनके अंदर सहनशीलता और दृढ़ता होती है
(छ) इनमें से कौन प्रत्यय युक्त शब्द नहीं है?
(i) दुर्गमता
(ii) तरुणाई
(iii) उत्साह
(iv) सहनशीलता
उत्तर :
(iii) उत्साह
(ज) उपर्युक्त काव्यांश का उचित शीर्षक है-
(i) यौवन की सार्थकता
(ii) संघर्ष
(iii) अविचल
(iv) दृढ़ता
उत्तर :
(i) यौवन की सार्थकता