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CBSE Class 11 Hindi Elective Rachana पत्रकारिता के विविध आयाम
पत्रकारिता एक नज़र में…
पत्रकारिता का संबंध सूचनाओं को संकलित और संपादित करके आम पाठकों तक पहुँचाने से है। पत्रकार कुछ ही घटनाओं, समस्याओं और विचारों को समाचार के रूप में प्रस्तुत करते हैं। किसी घटना के समाचार बनने के लिए उसमें नवीनता, जनरुचि, निकटता, प्रभाव जैसे तत्वों का होना ज़रूरी है।
पत्रकारिता
अपने आसपास की चीज़ों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताज़ा जानकारी रखना मनुष्य का सहज स्वभाव है। उसमें जिज्ञासा का भाव बहुत प्रबल होता है। यही जिजासा समाचार और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी, तो समाचार की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। पत्रकारिता का विकास इसी सहज जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश के रूप में हुआ। वह आज भी इसी मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती है।
पत्रकारिता क्या है?
हम प्रतिदिन अखबार पढ़ते हैं, टेलीविज़न और रेडियो पर समाचार देखते और सुनते हैं। इंटरनेट और विभिन्न समाचार माध्यमों द्वारा ये समाचार हम तक पहुँचते हैं। पत्रकार देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में बदलकर हम तक पहुँचाते हैं। पत्रकारों द्वारा सूचनाओं का संकलन और उन्हें समाचार के रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को ‘पत्रकारिता’ कहते हैं।
समाचार की कुछ परिभाषाएँ
- प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।
- समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धारण कर लेती है।
- किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
- समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है।
समाचार क्या है?
समाचार माध्यम कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि अपने हज़ारों-लाखों पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों के लिए काम करते हैं। स्वाभाविक है कि वे समाचार के रूप में उन्हीं घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं को चुनते हैं, जिन्हें जानने में अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि होती है। यहाँ हमारा आशय उस तरह के समाचारों से है, जिनका किसी-न-किसी रूप में सार्वजनिक महत्व होता है। ऐसे समाचार अपने समय के विचार, घटना और समस्याओं के बारे में लिखे जाते हैं। ये समाचार
ऐसी सम-सामयिक घटनाओं, समस्याओं और विचारों पर आधारित होते हैं, जिन्हें जानने की अधिक-से-अधिक लोगों में दिलचस्पी होती है और जिनका अधिक-से-अधिक लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
समाचार किसी भी ऐसी ताज़ा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिक-से-अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
वास्तव में, समाचार माध्यमों के उपभोक्ता यानी पाठक. श्रोता और दर्शक अपने मूल्यों, रुचियों और दृष्टिकोणों में बहुत विविधताएँ और भिन्नताएँ लिए होते हैं। इन्हीं के अनुरूप उनकी सूचना प्राथमिकताएँ भी निर्धारित होती हैं। परंपरागत पत्रकारिता के मानदंडों के अनुसार सभाचार मीडिया को लोगों की सूचनाओं की ज़रूरत और माँग के बीच संतुलन कायम करना पड़ता है। कुछ घटनाएँ ऐसी भी होती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर या देखकर हमें मज़ा आता है। इन दिनों समाचार माध्यम में मज़ेदार और मनोरंजक समाचारों को प्राथमिकता देने का रुझान प्रबल हुआ है।
समाचार के तत्व
सामान्य तौर पर किसी भी घटना, विचार और समस्या से जब समाज के बड़े तबके का सरोकार हो, तो हम यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने के योग्य है। लेकिन किसी घटना, विचार और समस्या के समाचार बनने की संभावना तब बढ़ जाती है, जब उनमें निम्नलिखित में से कुछ, अधिकांश या सभी तत्व शामिल हों :
- नवीनता
- निकटता
- प्रभाव
- जनरुचि
- टकराव या संघर्ष
- महत्वपूर्ण लोग
- उपयोगी जानकारियाँ
- अनोखापन
- पाठकवर्ग
अब हम इन तत्वों या कारकों पर एक-एक करके विचार करते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने में इनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
1. नवीनता – किसी भी घटना, विचार या समस्या के समाचार बनने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह नया यानी ताज़ा हो। कहा भी जाता है, ‘न्यू’ है, इसलिए ‘न्यूज़’ है। घटना जितनी ताज़ा होगी, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। अर्थात समाचार वही है, जो ताज़ा घटना के बारे में जानकारी देता है। एक दैनिक समाचार-पत्र के लिए आमतौर पर पिछले 24 घंटों की घटनाएँ समाचार होती हैं। एक चौबीस घंटे के टेलीविज़न और रेडियो चैनल के लिए तो समाचार जिस तेज़ी से आते हैं, उसी तेज़ी से बासी भी होते चले जाते हैं।
एक दैनिक समाचार-पत्र के लिए वे घटनाएँ सामयिक हैं, जो कल घटित हुई हैं। आमतौर पर एक दैनिक समाचार-पत्र की अपनी एक डेडलाइन (समय-सीमा) होती है, जब तक के समाचारों को वह कवर कर पाता है। लेकिन अगर द्वितीय विश्वयुद्ध या ऐसी किसी अन्य ऐतिहासिक घटना के बारे में आज भी कोई नई जानकारी मिलती है, जिसके बारे में हमारे पाठको को पहले जानकारी नहीं थी, तो निश्चय ही यह उनके लिए समाचार है।
2. निकटता – किसी भी समाचार संगठन में किसी समाचार के महत्व का मूल्यांकन अर्थात उसे समाचार-पत्र या बुलेटिन में शामिल किया जाएगा या नहीं, इसका निर्धारण इस आधार पर भी किया जाता है कि वह घटना उसके कवरेज क्षेत्र और पाठक/श्रोता/दर्शक समूह के कितने करीब हुई है? हर घटना का समाचारीय महत्व काफ़ी हद तक उसकी स्थानीयता से भी निर्धारित होता है। यह निकटता भौगोलिक नज़दीकी के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक नज़दीकी से भी जुड़ी हुई है।
3. प्रभाव – किसी घटना के प्रभाव से भी उसका समाचारीय महत्व निर्धारित होता है। किसी घटना की तीव्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उससे कितने सारे लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू-भाग पर उसका असर हो रहा है। किसी घटना से जितने अधिक लोग प्रभावित होंगे, उसके समाचार बनने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है।
4. जनरुचि – किसी विचार, घटना और समस्या के समाचार बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि लोगों की उसमें दिलचस्पी हो। वे उसके बारे में जानना चाहते हों। कोई भी घटना समाचार तभी बन सकती है, जब पाठकों या दर्शकों का एक बड़ा तबका उसके बारे में जानने की रुचि रखता हो। हर समाचार संगठन का अपना एक लक्ष्य समूह (टार्गेट ऑडिएंस) होता है और वह समाचार संगठन अपने पाठकों या श्रोताओं की रुचियों को ध्यान में रखकर समाचारों का चयन करता है।
5. टकराव या संघर्ष – किसी घटना में टकराव या संघर्ष का पहलू होने पर उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि लोगों में टकराव या संघर्ष के बारे में जानने की स्वाभाविक दिलचस्पी होती है। इसकी वजह यह है कि टकराव या संघर्ष का उनके जीवन पर सीधा असर पड़ता है। वे उससे बचना चाहते हैं और इसलिए उसके बारे में जानना चाहते हैं। यही कारण है कि युद्ध और सैनिक टकराव के बारे में जानने की लोगों में सर्वाधिक रुचि होती है।
6. महत्वपूर्ण लोग – मशहूर और जाने-माने लोगों के बारे में जानने की आम पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों में स्वाभाविक इच्छा होती है। कई बार किसी घटना से जुड़े लोगों के महत्वपूर्ण होने के कारण भी उसका समाचारीय महत्व बढ़ जाता है। जैसे अगर प्रधानमंत्री को जुकाम भी हो जाए, तो यह एक खबर होती है। इसी तरह किसी फ़िल्मी सितारे या क्रिकेट खिलाड़ी का विवाह भी खबर बन जाती है।
7. उपयोगी जानकारियाँ – समाज के किसी विशेष वर्ग के लिए विशेष महत्व रखने वाली सूचनाएँ समाचार बन जाती हैं। ऐसी सूचनाओं का हमारे जीवन में काफ़ी उपयोग होता है, इसलिए उन्हें जानने में लोगों की सहज रुचि होती है। उदाहरणार्थ-किसी विशेष क्षेत्र में बिजली कब बंद रहेगी या पानी का दबाव कैसा रहेगा आदि।
8. अनोखापन – अनोखी घटनाएँ निश्चित रूप से समाचार होती हैं। लोगों में इनके प्रति तीव्र जिज्ञासा होती है, पर इस तरह की घटनाओं के बारे में मीडिया को सजग रहना चाहिए, क्योंकि इससे लोगों में अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच पनपती है।
9. पाठकवर्ग – हर समाचार संगठन से प्रकाशित-प्रसारित होने वाले समाचार-पत्र और रेडियो/टी॰वी॰ चैनलों का एक खास पाठक/श्रोता/दर्शक वर्ग होता है। समाचार संगठन समाचारों का चुनाव करते हुए अपने पाठकवर्ग की रुचियों और ज़रूरतों का विशेष ध्यान रखते हैं। किसी समाचारीय घटना का महत्व इससे भी तय होता है कि किसी खास समाचार का ऑडिएंस कौन है और उसका आकार कितना बड़ा है।
आज अमीरों और उच्च मध्यम वर्ग में अधिक पढ़े जाने वाले समाचारों को महत्व दिया जाने लगा है। इससे गरीब और मध्यम वर्ग में पढ़ी जाने वाली खबरों की उपेक्षा की जाने लगी है।
10. नीतिगत ढाँचा – समाचारों के चयन और प्रस्तुति को लेकर विभिन्न समाचार संगठनों की एक नीति होती है। इस नीति को ‘संपादकीय नीति’ भी कहते हैं। संपादकीय नीति का निर्धारण संपादक या समाचार संगठन के मालिक करते हैं।
समाचार-लेखन के उदाहरण
1. सूचनाएँ :
- फर्जी मतदाता पहचान-पत्र बनाने वाली वेबसाइट पर दिल्ली चुनाव आयोग का शिकंजा।
- आयोग के सीईओ द्वारा इलेक्शन डीसीपी को भी इस संबंध में पत्र।
- शिकायत दर्ज कराने हेतु चुनाव आयोग का हेल्पलाइन नंबर-1950।
फर्जी वोटर कार्ड बनाने वाले के खिलाफ की शिकायत
वस, नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव आयोग ने फर्जी मतदाता पहचान-पत्र बनाने वाले एक वेबसाइट मालिक के खिलाफ पुलिस को पत्र लिखा है। आयोग के सीईओ ने इस मामले में इलेक्शन डीसीपी को भी पत्र लिखा है और उन्हें आरो. पियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा है। आयोग के अफसरों का कहना है कि वेबसाइट मालिक पहचान-पत्र बनाने या उसमें किसी तरह के बदलाव के लिए लोगों से 500 रुपये चार्ज वसूल कर रहा था। आयोग के अफसरों के अनुसार कुछ दिन पहले किसी ने दिल्ली चुनाव आयोग के हेल्पलाइन नंबर-1950 पर शिकायत दर्ज कराई थी।
2. सूचनाएँ :
- लॉकडाउन में मकान मालिकों द्वारा किराएदारों पर किराए के लिए दबाव न बनाया जाए।
- इस संदर्भ में मुखर्जी नगर थाने में केस दर्ज।
- सरकारी आदेशानुसार मकान मालिक रेंट देने के लिए दबाव न डालें और न ही मकान खाली कराएँ।
किराए के लिए तंग कर रहे थे पीजी और मकान मालिक, FIR
नई दिल्ली: देश के अलग-अलग हिस्सों, गाँवों और कस्बों से दिल्ली के मुखर्जी नगर आकर छोटे-छोटे कमरों में सुनहरे भविष्य की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर पीजी ओनर और मकान मालिकों ने किराए के लिए टॉर्चर करना शुरू कर दिया है। उन्हें कहा जा रहा है कि एडवांस किराया दो या खाली करो। लॉकडाउन की वजह से कुछ दिन की मोहलत माँग रहे स्ट्डेंट्स और दूसरे लोगों को जब कोई उपाय नहीं सूझा तो पुलिस को कोल की। अफसरों के निर्देश पर पुलिस मदद के लिए साथ आई। मुखर्जी नगर थाने में पीजी ओनर, मकान मालिकों पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है। स्टूडेंट्स राहत में हैं।
पुलिस अफसरों के मुताबिक राजेश, इंदिरा विकास कॉलोनी में डेढ़ साल से किराए पर रह रहे हैं। वे लखीसराय, बिहार के हैं। वे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। रूम में दो दोस्तों के साथ रहते हैं। 4 मार्च को उन्होंने अपने कमरे का एडवांस किराया मकान मालिक को 13 हजार रुपये दे दिया। मई में अब तक किराया नहीं दे सके क्योंकि लॉकडाउन में उनके पिताजी का इनकम सोर्स बंद् हो गया। आरोप है कि किराए को लेकर मकान मालिक तंग करने लगा। रूम खाली करने की धमकी देने लगा। पुलिस ने राजेश की शिकायत पर मकान मालिक के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।
डीसीपी विजयंता आर्य ने बताया कि सरकारी आदेश है कि मालिक रेंट देने के लिए दबाव न डालें और न ही मकान खाली कराएँ। पुलिस ने सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए।
3. सूचनाएँ :
- कोरोना के कहर के चलते कोरोना मृतकों को चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे।
- शव के साथ जाने वाले परिजनों का पीपीई किट पहनना अनिवार्य।
- कोरोना के चलते सामाजिक दूरी बनाना अनिवार्य।
अंतिम यात्रा में चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे
नोएडाः कोरोना के कहर के चलते शव को चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं। अब अस्पताल से ही कोरोना मृतक की लाश के साथ दो लोग आते हैं। ये दो लोग ही शव को अंतिम सफर तक लेकर जाते हैं। सेक्टर-94 स्थित अंतिम निवास पर शुक्रवार को कोरोना पीड़ित बुजुर्ग के शव को लाया गया। अस्पताल के दो सदस्य एंबुलेंस से शव को निकालने लगे तभी अचानक वजन भारी होने की वजह से एक कर्मचारी गिर गया और शव भी गिर गया। वहाँ परिवार के लोग मौजूद थे मगर इस बीमारी के चलते कोई पास न आ सका। सब खड़े होकर देखते ही रह गए। 16 मई को कोरोना संक्रमण से 62 साल के बुजुर्ग की जिम्स में मौत हो गई थी।
उनके तीन बेटे सेक्टर-38ए स्थित कब्रिस्तान में शव को दफ़नाने के लिए आए। जनाजे की नमाज़ के बाद जब शव को दफ़नाने ले जाया गया, उस वक्त सिर्फ तीन बेटों ने पीपीई किट पहनी हुई थी।
तीन लोगों के होने से जनाजे को उठाने में दिक्कत हो रही थी। इस पर वहाँ मौजूद नोडल अधिकारी राकेश ठाकुर ने जनाजे को कंधा दिया और कब्र के पास तक ले गए। इन बदले हालात में अस्पताल के ये कर्मचारी न सिर्फ काम कर रहे हैं बल्कि मुश्किलों का सामना भी कर रहे हैं।
4. सूचनाएँ :
- अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों द्वारा कोरोना से निपटने की तैयारियाँ की गईं।
- डीयू हेल्थ सेंटर ने स्वास्थ्य संबंधी एडवायजरी जारी की।
- कोरोना से बचने के लिए एहतियात ही उपाय है।
खौफ: स्कूलों से छुट्टी के बारे में पूछ रहे अभिभावक
नई दिल्ली: दिल्ली के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के अभिभावक कोरोना वायरस को लेकर भयभीत हैं। कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों के परिजन जहाँ होली से पहले ही घर आने को कह रहे हैं, वहीं स्कूलों का कहना है कि अभिभावक फोन पर और वहाट्स एप ग्रुप में छुट्टी के बारे में पूछ रहे हैं। हालाँकि अधिकांश संस्थानों ने अपने स्तर पर इससे बचाव की तैयारियां की हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शोधार्थी आशीष ने बताया कि होली में घर जाना है, लेकिन वायरल को लेकर परिजन चिंतित हैं और तुरंत घर आने को कह रहे हैं। इसी तरह की परेशानी दौलतराम कॉलेज में पढ़ने वाले सुकेश झा की है। सुकेश मधुबनी के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि कोचिंग के कारण मैं होली में घर नहीं जाने वाला था। लेकिन परिवार के लोग जल्दी घर बुला रहे रहे हैं।
स्वास्थ्य संबंधी दिशानिर्देश जारी: डीयू में देश भर के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। इसका ध्यान रखते हुए डीयू हेल्थ सेंटर ने एडवायजरी जारी की है। इस एडवायजरी में डीयू हेल्थ सेंटर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुनील का कहना है कि इसका कोई इलाज नहीं है, इसलिए एहतियात ही उपाय है। एडवायजरी में छात्रों को बचाव के ज़रूरी उपाय और लक्षणों की जानकारी दी गई है।
5. सूचनाएँ :
- लॉकडाउन के बाद धर्मस्थलों को खोलने की तैयारियाँ शुरू।
- मंदिरों के पुजारियों का पीपीई किट पहनना ज़रूरी।
- श्रद्धालुओं द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने हेतु मंदिर परिसर में जगह-जगह चिह्न बनाए गए।
पीपीई किट में पुजारी, मस्जिद में दरी लानी होगी
मंविर में एक साथ 15 भक्तों को ही प्रवेश मिलेगा
दिल्ली के प्रमुख धार्मिक स्थल कालकाजी मंदिर में भक्तों के लिए पूरी तैयारी की गई है। पूरे मंदिर परिसर को सेनेटाइज़ किया गया है। भक्तों के प्रवेश की भी सीमा तय कर दी गई है। कालकाजी मंदिर प्रशासन की ओर से एक बार में 15 भक्तों के प्रवेश करने की अनुमति दी है। मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले सेनेटाइज्जेशन की व्यवस्था की गई है। सभी भक्तों के लिए मास्क लगाना अनिवार्य होगा।
कालकाजी मंदिर प्रशासन ने प्रवेश द्वार पर चार सेनेटाइज़ेशन सुरंगें बनाई हैं। मंदिर में प्रवेश और निकासी के लिए भी अलग-अलग व्यवस्था की गई है। सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने के लिए मंदिर परिसर में जगह-जगह चिह्न बनाए गए हैं। पुजारियों के लिए पीपीई किट की व्यवस्था की गई है।
कालकाजी मंदिर पीठाधीश्वर महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत ने बताया कि मंदिर में कोरोना से बचाव के सभी उपाय किए गए हैं। मंदिर परिसर को रोज़ाना सेनेटाइज किया जाएगा। एक बार में 15-15 भक्तों की टोली को प्रवेश दिया जाएगा। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने के लिए मंदिर में स्वयंसेवियों की भी व्यवस्था की जाएगी। साथ ही भक्तों को भी जागरूक किया जाएगा।
संपादन
समाचार संगठनों में द्वारपाल की भूमिका संपादक और सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक और उपसंपादक आदि निभाते हैं। वे न सिर्फ़ अपने संवाददाताओं और अन्य स्रोतों से प्राप्त समाचारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, बल्कि उनकी प्रस्तुति की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है।
संपादन का अर्थ है. किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना। एक उपसंपादक अपने रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़ता है और उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य संबंधी अशुद्धियों को दूर करता है। वह उस खबर के महत्व के अनुसार उसे काटता-छाँटता है।
संपादन के सिद्धांत
किसी भी समाचार संगठन की सफलता उसकी विश्वनीयता पर टिकी होती है। पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक होता है:
1. तथ्यों की शुद्धता (एक्यूरेसी) – एक आदर्श रूप में मीडिया और पत्रकारिता यथार्थ या वास्तविकता का प्रतिबिंब होता है। इस तरह एक पत्रकार समाचार के रूप में यथार्थ को पेश करने की कोशिश करता है। लेकिन यह अपने आपमें एक जटिल प्रक्रिया है। किसी भी घटना के बारे में हमें जो भी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, उसी के अनुसार हम उस यथार्थ की एक छवि अपने मस्तिष्क में बना लेते हैं और यही छवि हमारे लिए वास्तविक यथार्थ का काम करती है।
यथार्थ को उसकी संपूर्णता में प्रतिबिबित करने के लिए आवश्यक है कि ऐसे तथ्यों का चयन किया जाए, जो उसका संपूर्णता में प्रतिनिधित्व करते हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि किसी भी विषय के बारे में समाचार लिखते वक्त हम किन सूचनाओं और तथ्यों का चयन करते हैं और किन्हें छोड़ देते हैं। ज्ररूरी है कि ये सूचनाएँ और तथ्य सबसे अहं हों और संपूर्ण घटना का प्रतिनिधित्व करते हों। तथ्य बिलकुल सटीक और सही होने चाहिए और उन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए।
2. वस्तुपरकता (ऑक्जेक्टीविटी) वस्तुपरकता को तथ्यपरकता से आँकना आवश्यक है। यद्यपि वस्तुपरकता और तथ्यपरकता में काफ़ी समानता है, फिर भी इनके अंतर को समझना आवश्यक है। तथ्यपरकता का संबंध जहाँ अधिकाधिक तथ्यों से है, वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है। किसी विषय या मुद्दे के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियाँ समाचार मूल्यांकन की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं और हम इस यथार्थ को उन छवियों के अनुरूप देखने का प्रयास करते हैं।
3. निष्पक्षता (फ़ेयरनेस) – एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत ज़रूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तभी बनती है, जब समाचार संगठन बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अह भूमिका है। इसलिए पत्रकारिता सही और गलत, न्याय और अन्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती, बल्कि वह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।
4. संतुलन (बैलेंस) – निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। सामान्यतया मीडिया पर आरोप लगाया जाता है कि समाचार कवरेज संतुलित नहीं है। अर्थात वह किसी एक पक्ष की ओर झुका है। आमतौर पर समाचार में संतुलन की आवश्यकता वहीं पड़ती है, जहाँ किसी घटना में अनेक पक्ष शामिल हों और उनका आपस में किसी-न-किसी रूप में टकराव हो। उस स्थिति में संतुलन का तकाज़ा यही है कि सभी संबद्ध पक्षों की बातें समाचार में अपने-अपने समाचारीय वज़न के अनुसार स्थान पाष्।
5. स्रोत – समाचार में शामिल की गई हर सूचना और जानकारी का कोई स्रोत होना आवश्यक है। किसी भी समाचार संगठन के स्रोत होते हैं और फिर उस समाचार संगठन का पत्रकार जब सूचनाएँ एकत्रित करता है, तो उसके अपने भी स्रोत होते हैं। इस तरह किसी भी दैनिक समाचार-पत्र के लिए पीटीआई (भाषा), यूएनआई (यूनीवार्ता) जैसी समाचार एजेसियाँ और स्वयं अपने ही संवाददाताओं और रिपोर्टरों का तंत्र समाचारों का स्रोत होता है। लेकिन चाहे समाचार एजेंसी हो या समाचार-पत्र, इनमें काम करने वाले पत्रकारों के भी अपने समाचार-स्रोत होते हैं।
पत्रकार-समाचार का स्रोत
पत्रकार जब घटना के बाद घटनास्थल पर पहुँचता है, तब ‘यह सब कैसे हुआ?’ यह जानने के लिए उसे दूसरे स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर एक पत्रकार स्वयं अपनी आँखों से पुलिस फ़ायरिंग में या अन्य किसी भी तरह की हिंसा में मरने वाले दस लोगों के शवों को देखता है, तो निश्चय ही वह खुद दस लोगों के मरने के समाचार का स्रोत हो सकता है, लेकिन उसे इसकी पुष्टि करने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए।
पत्रकारिता के अन्य आयाम
समाचार-पत्र पढ़ते समय पाठक हर समाचार से एक ही तरह की जानकारी की अपेक्षा नहीं रखता। इस कारण समय, विषय और घटना के अनुसार पत्रकारिता में लेखन के तरीके बदल जाते हैं। यही बदलाव पत्रकारिता में कई नए आयाम जोड़ता है। समाचार के अलावा विचार, टिप्पणी, संपादकीय, फ़ोटो और कार्टून पत्रकारिता के अहं हिस्से हैं। समाचार-पत्र में इनका विशेष स्थान एवं महत्व है। इनके बिना कोई समाचार-पत्र स्वयं को संपूर्ण नहीं कह सकता।
संपादकीय
इस पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर समाचार-पत्र विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे ‘संपादकीय’ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्वपूर्ण मानते हैं।
संपादकीय के उदाहरण-
महामारी और तैयारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिस समय वुहान के कोरोना वायरस को नया खतरा घोषित किया, ठीक उसी समय केरल में एक व्यक्ति के इस वायरस से संक्रमित होने की खबर भी आ गई। पिछले एक महीने में यह खतरनाक वायरस भारत समेत दुनिया के डेढ़ दर्जन देशों में फैल चुका है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भले ही अभी इसे अंतराष्ट्रीय आपातकाल घोषित नहीं किया है, पर यह माना है कि स्थिति काफ़ी नाज़ुक है।
हालाँकि दुनिया भर के हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले यात्रियों की जाँच और उन पर नज़र रखने का काम काफ़ी मुस्तैदी से चल रहा है, इसके बावजूद इस वायरस का जापान और अमेरिका समेत कई देशों में काफ़ी तेज़ से फैलना यह तो बताता ही है कि ये सारे इंतज़ाम दुनिया भर में नाकाफी साबित हुए हैं। कोरोना वायरस के इस तरह तेज़ी से विस्तार ने आधुनिक विश्व व्यवस्था की पोल खोल दी है। एक तो इसने यह बताया है कि पूरी दुनिया किसी भी नए रोग का इलाज करना तो दूर, उससे लोगों को बचाने की स्थिति में भी पूर्णतया सक्षम नहीं है।
नए संक्रमण हमेशा से हमारी तैयारियों और हमारे ज्ञान की परीक्षा लेते रहे हैं, लेकिन सार्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और निपाह जैसी बीमारियों से परेशान होने के बावजूद दुनिया का कोई भी देश अभी ऐसी पक्की तैयारियाँ नहीं कर सका है कि वह किसी नए रोग को नियंत्रित करने में पूरे आत्मविश्वास से जुट सके। अगर हम अपने देश को ही लें, तो यहाँ किसी भी नए वायरस की पहचान के लिए सिर्फ एक संस्थान का होना यह बताता है कि हमारी व्यवस्था व तैयारियाँ कितनी अपर्याप्त हैं। नए रोगों से निपटना कभी आसान नहीं होता। उसके रेडीमेड इलाज उपलब्ध नहीं होते। चिकित्सा तंत्र उसके लिए प्रशिक्षित नहीं होता। अकसर वायरस की पहचान संदिग्ध होती है।
संक्रमण के मूल कारक और उसे फैलाने वाले कैरियर के बारे में भी बहुत स्पष्टता नहीं होती। इसके बावजूद हम ऐसे मौकों पर लोगों को बचाने का तंत्र ज़रूर विकसित कर सकते हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण ने बताया है कि इस काम को हम ठीक से नहीं कर सके हैं। ताज़ा अनुभवों ने यह भी बताया है कि ऐसे मौकों पर सरकारी तंत्र के चेहरे पर चिंता की लकीरें कम दिखती हैं, दहशत की ज्यादा। इस दहशत का सीधा असर दुनिया भर की उन अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है, जो पहले से ही मंदी के संकट से जूझ रही हैं। अर्थशास्त्री यह अंदाज लगाने में व्यस्त हैं कि इसका चीन की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा, भारत पर कितना और विश्व अर्थव्यवस्था पर कितना।
रोग आम लोगों की ही नहीं, देशों की आर्थिक हालत भी खस्ता कर देते हैं। यह ठीक है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और मेडिकल तंत्र ने काफ़ी तरक्की की है। बहुत-सी-पुरानी महामारियों का हमने उन्मूलन ही कर दिया है, पर यह भी सच है कि नए रोगों के आगमन को हम अभी भी नहीं रोक पा रहे। दिक्कत इसलिए भी है कि नए रोगों के आगमन की रफ़्तार तेज़ हुई है और हमारे पास इन्हें रोकने या इनसे निपटने की कोई तेज़ रणनीति भी नहीं है। ऐसे रोगों के लिए वैक्सीन विकसित करने और अंतिम प्रयोग लायक बनाने में लंबा वक्त लगता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के ज़माने में इस सूरत को बदलने की ज़रूरत है। विज्ञान को तुरंत इस ओर कदम बढ़ाने होंगे।
अनलॉक होने की ओर
आज से देश लॉकडाउन 5.0 में प्रवेश कर रहा है लेकिन ज्यादा बड़ी बात यह है कि इसका दूसरा पहलू अनलॉक 1.0 का है। इसमें देश की बंद आर्थिक-सामाजिक गतिविधियों को धीरे-धीरे खोलने का काम होगा। इस सिलसिले में सबसे बड़ी छूट यह दी गई है कि देशवासियों के एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर कोई रोक नहीं होगी। रेलवे ने सोमवार से 100 जोड़ी ट्रेनें चलाने का ऐलान कर दिया है जिसमें बुकिंग सामान्य प्रक्रिया के अनुरूप हो रही है। रात के कर्फ्यू की अवधि भी शाम सात बजे से सुबह सात बजे तक के पुराने ढर्रे से 4 घंटे घटा दी गई है। अब यह रात 9 बजे से सुबह 5 तक ही लागू रहेगा।
यानी नाइट लाइफ तो अभी दूर की बात है लेकिन लोग शाम को बाज़ार से बिना किसी हड़बड़ी के घर आ सकते हैं और सूरज निकलने से पहले सैर पर जा सकते हैं। मॉल. होटल, रेस्तरां और धार्मिक स्थलों को 8 जून से खोलने की बात है। स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान आदि पैरेंट्स तथा अन्य स्टेकहोल्डर्स से चर्चा करके जुलाई में खोले जा सकेंगे। हाँ, जो इलाके कंटेनमेंट एरिया में आते हैं, वहाँ ये छूटें लागू नहीं होंगी। कम-से-कम 30 जून तक वहाँ लॉकडाउन की सारी बंदिशें जारी रहेंगी। एक और शर्त इन छूटों के साथ यह जुड़ी है कि कोई राज्य सरकार ज़रूरी समझे तो वह अपने यहाँ इनमें से कोई भी छूट वापस ले सकती है। यानी भले केंद्र सरकार ने एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने की छूट दे दी हो, कोई राज्य सरकार चाहे तो अपना बॉड़र सील कर सकती है।
[इसके अलावा लॉकडाउन की निरंतरता में कुछ प्रमुख पाबंदियाँ, जैसे इंटरनेशनल फ्लाइट, मेट्रो रेल, सिनेमा हॉल, जिम, बार, स्विमिंग पूल आदि पर रोक पहले की ही तरह लागू रहेगी। इनके हटने की कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है। याद रहे, लॉकडाउन हटाने की प्रक्रिया दुनिया के कई देशों में जारी है, लेकिन बेहतर होगा कि हम खुद को उस प्रांत से बाहर ही मानें। दोनों अमेरिकी महाद्वीपों में अकेले कनाडा को छोड़कर लॉकडाउन को कहीं और गंभीरता से लागू ही नहीं किया, लंकिन कोरोना वायरस की गिरफ्त में बुरी तरह आने के बाद सख्ती से लॉकडाउन लागू करने वाले इटली, स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में महामारी अभी या तो स्थिर है या उतार पर है।
इसके उलट अपने देश में बीमारी से जुड़े सारे चिताजनक आँकड़े हर रोज ही बढ़े हुए आ रहे हैं। और तो और, नॉर्थईस्ट जैसे उन गिनती के इलाकों में भी वायरस तेज़ी से फैल रहा है जो हाल तक इससे बचे माने जा रहे थे। जाहिर है, ऐसे में लॉकडाउन से बाहर आने की कोशिश खतरों से खाली नहीं है। लोगों की रोज़ी-रोटी बचाने के लिए यह खतरा हमें उठाना होगा, लेकिन फूँक-फूँककर कदम रखने और जजरूरी हो तो एक कदम पीछे हट जाने की समझ लेकर चलें तो यह कठिन दौर भी हम एक दिन पार कर लेंगे।
वायरस की थाह
वायरस इन दिनों खासे चर्चा में है। पिछले कुछ साल में हमें जिन चीज़ों ने सबसे ज़्यादा डराया है, वे वायरस ही हैं। यह ठीक है कि एक दौर में प्लेग और हैजे जैसी बीमारियाँ बहुत बड़ी होती थीं, दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी उनका शिकार बनी। लेकिन एंटीबायोटिक ने बैक्टीरिया जनित उन खतरों को काफ़ी कम कर दिया। कुछ को तो लगभग खत्म ही कर दिया। हालाँकि यह लड़ाई आज भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई, लेकिन इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे। पहले वायरस की बात। इसका खतरा भी कुछ कम नहीं है।
हालाँकि ज्यादा बड़े खतरे हमने पिछली सदी में ही महसूस किए। माना जाता है कि खासकर 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में फैले स्पेनिश फ्लू ने दस करोड़ लोगों की जान ले ली थी। वैज्ञानिक मानते हैं कि वायरस जीव-जगत की सबसे सरल रचना है, लेकिन सबसे ज़्यादा जटिल समस्याएँ उसी की वजह से पैदा होती हैं। कुछ तो इसे जीव-जगत की सबसे आदि रचना भी मानते हैं। हम जीव-जगत को दो हिस्सों में बाँटते हैं- वनस्पति और जंतु। बैक्टीरिया जैसे कुछ जीवों के बारे में कभी तय नहीं हो सका कि इन्हें जंतु माना जाए या वनस्पति, अकसर इन्हें दोनों के बीच की एक कड़ी माना जाता है।
उसी तरह वायरस निर्जीव और जीव-जगत के बीच की कड़ी हैं। जब वे अपनी शिकार कोशिका में पहुँचते हैं, तो सजीव हो उठते हैं, वरना किसी निर्जीव वस्तु की तरह सदियों तक पड़े रह सकते हैं। इसीलिए हम वायरस का पूरा इतिहास नहीं जानते, क्योंकि उनके फॉसिल्स नहीं होते। जीवन के विकास का अध्ययन करने वाले यह मानते हैं कि वायरस जीव विकास की एक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। यह भी माना जाता है कि हमारा जो डीएनए है, उसका दस फीसदी हिस्सा वायरस से ही बना है। प्रसिद्ध वायरस विशेषज्ञ लुईस पी विल्लारियल का तो यहाँ तक कहना है कि वह वायरस ही है, जिसने हमें मानव बनाया है।
वैसे इन दिनों कोरोना वायरस के कारण इसके बुरे रूपों की चर्चा ज़्यादा होने लगी है, लेकिन कुछ दिनों पहले तक वैज्ञानिक यह भी चर्चा कर रहे थे कि वायरस का दवा के रूप में इस्तेमाल कैसे किया जाए। यह चर्च एंटीबायोटिक के नाकाम होने से उभरी है। पिछली एक सदी का अनुभव यही बताता है कि हर एंटीबायोटिक कुछ समय के बाद बेकार हो जाता है, क्योंकि जीवाणु उसके लिए प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं, फिर वैज्ञानिकों को नए एंटीबायोटिक की खोज करनी पड़ती है। इन दिनों सबसे बड़ी समस्या सुपर बग की है।
कुछ ऐसे जीवाणु विकसित हो चुके हैं, जिन पर कोई एंटीबायोटिक असर नहीं करता। एक सोच यह है कि सुपर बग को खत्म करने के लिए नए वायरस विकसित किए जाने चाहिए। ऐसे वायरस, जो जीवाणुओं को अपना शिकार बनाते हैं, उन्हें बैक्टीरियोफेज कहा जाता है। हालाँक बायो इंजीनियरिंग से नए जीव विकसित करने का मामला हमेशा ही विवादास्पद रहा है।
फिलहाल सारी लड़ाई जल्द-से-जल्द कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की है। जब भी कोई नया वायरस सामने आता है, तो उसकी वैक्सीन बनाने में कम-से-कम डेढ़ से दो साल का समय लगता है। एचआईवी की भरोसेमंद वैक्सीन तो हम आज तक नहीं बना सके। यह सब बताता है कि सुपर बग से निपटने की रणनीति के साथ ही वायरस जनित रोगों से निपटने के लिए भी नई रणनीति की ज़रूरत है।
दुष्कमीं को सजा
दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के विधायक कुलदीप सेंगर को आजीवन कारावास की जो सज़ा सुनाई है, वह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। दुष्कर्म के मामलों को लेकर इन दिनों फिर से पूरे देश में चर्चा है, और ज्यादातर चर्चाओं में यही कहा जाता रहा है कि न्यायपालिका सज़ा देने में देरी करती है, जिसकी वजह से ऐसे अपराधियों में डर खत्म हो जाता है। लेकिन शायद यह मामला ऐसा नहीं है। सारी जाँच के बाद सीबीआई ने इस साल जुलाई में कुलदीप सेंगर के खिलाफ अदालत में आरोप-पत्र दायर किया था। यानी इस लिहाज से देखें, तो अदालत ने छह महीने में ही सजा सुना दी। बेशक, कुलदीप सेंगर के सामने अभी ऊपरी अदालतों में जाने का विकल्प है, लेकिन जिस तरह की तेज़ी दिल्ली की अदालत ने दिखाई है, हम उम्मीद करेंगे कि वही तेज़ी बाकी अदालतों में भी दिखाई देगी और यह सज़ा एक नज़ीर बनेगी।
लेकिन हम जब छह महीने में अदालत द्वारा सज़ा की बात कर रहे हैं, तो हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि सेंगर ने दुष्कर्म की यह वारदात जून 2017 में की थी। यानी, उसके खिलाफ अंतिम चार्जशीट दायर होने में दो ही साल से ज़्यादा का समय लग गया। यहाँ तक कि पुलिस ने लंबे समय तक दुष्कर्म की एफआईआर तो दर्ज ही नहीं की थी। पीड़िता को सबक सिखाने के लिए उसके पिता को झूठे आरोपों में न सिर्फ जेल में डाल दिया गया, बल्कि उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। मामले की रपट तभी लिखी गई, जब पीड़िता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निवास के आगे आत्मदाह का प्रयास किया।
लेकिन इसके अगले ही दिन पुलिस हिरासत में उसके पिता का निधन हो गया। आगे की राह भी आसान नहीं थी, क्योंकि प्रदेश के कई आला अधिकारियों ने विधायक के खिलाफ कार्रवाई से इनकार कर दिया था। और अंत में, जिस महीने दिल्ली में चार्जशीट दायर हुई, उसी महीने पीड़िता के साथ सड़क दुर्घटना हुई, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह उसे मारने की कोशिश ही थी। इस दुर्घटना में पीड़िता के दो रिश्तेदार मारे गए और पीड़िता व उसके वकील घायल हुए। यह मामला फिर से दुष्कर्म पीड़िता की सुरक्षा में ढील की ओर इशारा करता है। अच्छी बात यह है कि अदालत ने इसे समझा और सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह हर तीन महीने में पीड़िता पर खतरे और उसकी सुरक्षा की समीक्षा करेगी।
उन्नाव की इस दुष्कर्म पीड़िता का मामला बताता है कि अदालत अगर तेज़ी से काम करती भी है, तब भी बाकी व्यवस्थागत बाधाएँ मामले को टालती हैं। खासकर जब मामला किसी प्रभावशाली व्यक्ति का हो। कुलदीप सेंगर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े थे, इसलिए पूरी व्यवस्था का रवैया पीड़िता से असहयोग का था। जब बहुत ज़्यादा हंगामा हो गया, तभी भाजपा ने उन्हें पार्टी से निलंबित किया।
पिछले आम चुनाव के समय एक प्रभावशाली नेता और उम्मीदवार उनसे मिलने जेल तक गए थे। यह पूरा मामला बताता है कि प्रभावशाली लोगों के खिलाफ दुष्कर्म का मामला चलाना अभी भी कितना कठिन है, क्योंकि हमारी बहुत सारी व्यवस्थाएँ पीड़ित के साथ नहीं, प्रभावशाली के साथ खड़ी होती हैं। क्या अब हम यह उम्मीद करें कि अगली कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ होगी, जिन्होंने पीड़िता से असहयोग किया? प्रभावशाली लोगों के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए यह बहुत ज़रूरी है।
सीलिंग का रास्ता
बदलते हालात से निपटने की तैयारियाँ शुरू होनी ही थीं। पिछले कई दिनों से ये संकेत तो आने ही लगे थे कि कोरोना वायरस के लगातार बढ़ रहे संक्रमण को नियंत्रित करने की नई रणनीति जल्द ही सामने दिखाई देगी। बुधवार की शाम जब उत्तर प्रदेश के 15 जिलों और दिल्ली में संक्रमण के हॉटस्पॉट को पूरी तरह से सील करने की घोषणा हुई, तो यह साफ़ हो गया कि अगली रणनीति सामने आ चुकी है। दो अलग-अलग प्रदेशों में एक साथ की यह घोषणा बताती है कि इसको लेकर केंद्रीय स्तर पर अच्छा समन्वय है।
भले ही यह बात भी कही जा रही हो कि लॉकडाउन को लेकर फैसला बहुत कुछ राज्यों की इच्छा पर निर्भर करेगा। इसी के साथ दो अन्य राज्यों में भी कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएँ हुई हैं। एक तो ठीक बुधवार को ही पंजाब सरकार ने राज्य में लागू कफ्फ्यू को 30 अप्रैल तक बढ़ाने का फैसला किया। जब पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया था, तब पंजाब सरकार ने प्रदेश में तीन सप्ताह का कर्म्यू लागू कर दिया था। हालाँकि दूसरे कई प्रदेशों के मुकाबले पंजाब में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन शुरू में यह वहाँ जितनी तेज़ी से फैलता दिख रहा था, उसके खतरों को देखते हुए राज्य सरकार ने यह फैसला किया था और ऐसा लगता है कि वहाँ संक्रमण की रफ़्तार थामने में इससे मदद भी मिली।
दूसरी तरफ़, अगले ही दिन ओडिशा ने अपने यहाँ जारी लॉकडाउन की अवधि बढ़ाकर 30 अप्रैल तक करमे की घोषणा कर दी। इसका सीधा-सा अर्थ है कि तीन सप्ताह बाद वर्तमान लॉकडाउन की अवधि खत्म होने के बाद की रणनीति के लिए सरकारें सक्रिय हो चुकी हैं। संक्रमण की स्थिति में किसी इलाके को पूरी तरह से सील कर देना कितना महत्वपूर्ण हो सकता है, इसे हम पिछले दिनों राजस्थान के भीलवाड़ा में देख चुके हैं। इस शहर में कोरोना संक्रमण के 27 मामले एक साथ सामने आए थे।
एकबारगी लगने लगा था कि कपड़ा उद्योग के लिए मशहूर इस शहर को अब बचाना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान पूरे शहर को ही सील कर दिया। इसी का नतीजा है कि वहाँ संक्रमण के नए मामले सामने आने बंद हो गए। इसी के साथ भीलवाड़ा ने यह बता दिया कि किसी क्षेत्र को पूरी तरह से सील करके संक्रमण के विस्तार को किस तरह रोका जा सकता है। चीन ने वुहान में यही तरीका अपनाया था। एक सुझाव यह भी आया है कि हॉटस्पॉट माने जाने वाले इलाकों को सील कर बाकी जगह लॉकडाउन में कुछ ढील दे दी जाए। इसका समय अभी आया है या नहीं, यह सब विशेषज्ञों पर ही छोड़ना होगा।
लॉकडाउन जो मुश्किलें बढ़ा चुका है, सीलिंग उसमें और ज़्यादा इज़ाफा कर देगी। जाहिर है, इसमें राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की ज़िम्मेदारियाँ व चुनौतियाँ भी बढ़ जाएँगी। सीलिंग का अर्थ यह है कि लोग अपने घर से नहीं निकल सकेंगे और उनकी ज़रूरत का सारा सामान प्रशासन को उनके घर पहुँचाना होगा। यह ऐसा काम है, जो नौकरशाही के पुराने ढुलमुल रवैये से नहीं हो सकेगा। जिस तरह से नई चुनौतियाँ उभर रही हैं, सभी अपने आपको बदल रहे हैं, प्रशासनिक तंत्र को भी बदलना ही होगा। फिलहाल चुनौती संक्रमण को रोकने की है. हर वह काम जो इसके लिए ज़रूरी है, वह सभी को करना ही होगा।
छिपे हुए संकेत
शिगूफों पर हावी होते ज़मीनी सवाल
छोटे-से-छोटे चुनाव भी अब देश की राजनीति के सूचकांक की तरह लिए जाने लगे हैं, इसलिए आज के सियासी परिदृश्य में महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों के महत्व को अलग से रेखांकित करना ज़रूरी है। सबसे पहले तो इन नतीज़ों ने यह साबित किया है कि भारतीय जनतंत्र का मौजूदा दौर एकपक्षीय नहीं है। जनता की अपनी ज़मीनी कसौटियाँ हैं, जिन्हें लंबे समय तक नज़रअंदाज़ करके किसी विचार या व्यक्तित्व को ताड़ पर नहीं चढ़ाया जा सकता, भले ही वह कितना भी पवित्र और महान क्यों न हो।
बीजेपी पिछले कुछ समय से देश भर में खुद को अपरिहार्य जैसा बताने की कोशिश कर रही थी। इन चुनावों में भी उसे मुँह की नहीं खानी पड़ी है, लेकिन कुछ झटका ज़रूर लगा है। उसकी सत्ता भले ही बची रह गई हो पर ताकत घट गई है। हरियाणा में वह बहुमत से दूर रही और महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी शिवसेना पर काफ़ी ज़्यादा निर्भर हो गई है। इससे संदेश यही निकलता है कि रोजी-रोजगार, महँगाई और शोषण के मसलों को राष्ट्रीय मुद्दों से ढँका नहीं जा सकता।
बीजेपी को समझना होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी नींव राज्यों में बेहतर प्रशासन से ही मजबूत रहेगी। महाराष्ट्र को लें तो उसके कुछ हिस्सों में पिछले कई सालों से लगातार फसलें खराब हो रही हैं और कर्ज माफ़ी का लाभ किसानों तक नहीं पहुँच पा रहा। विदर्भ क्षेत्र में कोशिशों के बावजूद किसानों की आत्महत्याएँ नहीं रुकीं। सेंटर फॉर द मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी की पिछले महीने की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा में बेरोजगारी की दर पूरे देश से ज़्यादा, 28.7 फीसदी है। कृषि उपजों की कीमतें वहाँ पिछले दो साल से लगातार गिर रही हैं जिससे किसान परेशान हैं।
गुड़गाँव जैसे प्रमुख आर्थिक केंद्र में काफ़ी लोग नौकरी से निकाले गए हैं। ज्ञाहिर है, जनता ने वोट करते समय इन मुद्दों को ध्यान में रखा। विपक्ष के बँटे होने, कमज़ोर होने के बाद भी लोगों ने उसे अपना समर्थन दिया तो यह बात का संकेत है कि अपनी बेहतरी के लिए वे कोई भी विकल्प आजमाने को तैयार हैं। हरियाणा में देवीलाल के समर्थकों ने उनकी चौथी पीढ़ी पर भरोसा जताया, इसलिए उनके पड़पोते दुष्यंत चौटाला को अपेक्षा से ज्यादा सीटें मिलीं। इसी तरह मराठा समुदाय के समर्थन के बूते एनसीपी में नई जान पड़ी है।
दरअसल शरद पवार के परिवार पर ईंडी का प्रहार मराठा समाज को नागवार गुजरा। एक निष्कर्ष यह है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ फिर मजबूत हो रही हैं और वे आगे एजेंडा तय कर सकती हैं। कांग्रेस नेतृत्व को समझना होगा कि छोटे-मोटे स्वार्थों से ऊपर उठकर उनकी पार्टी अगर जमीन पर जनता के मसलों के साथ खड़ी हो तो लोग अब भी उसके साथ चलने को तैयार हैं।
रीडर्स मेल
‘योद्धाओं’ की अनदेखी
कोरोना महामारी में हज़ारों लोग अपनी जान की परवाह किए बिना कर्तव्यनिष्ठा और सेवा-भावना के साथ काम में जुटे हुए हैं। इन्हीं कोरोना योद्धाओं में शामिल दिल्ली नगर निगम के डॉक्टरों ने प्रधानमंत्री को चिट्री लिखकर तीन महीने से वेतन नहीं मिलने की बात बताई है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए। जहाँ राज्य और केंद्र सरकार दोनों की नज़र है, वहाँ की यह हालत होना बेहद चिंता की बात है। यह तय है कि कोरोना की जंग को हम तभी जीत पाएँगे, जब इन डॉक्टरों का मनोबल ऊँचा रहेगा।
शराब पर कोरोना टैक्स
लॉकडाउन के तीसरे चरण की शुरुआत में दिल्ली में भी शराब की कई दुकानें खोली गईं। दिल्ली सरकार ने उसी शाम शराब की कीमतों पर 70 फीसदी का कोरोना टैक्स लगाने का फैसला किया। सर्वविदित है कि दिल्ली की सीमाएँ उत्तर प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं जहाँ दिल्ली के मुकाबले शराब की कीमतें कम हैं। ऐसे में कोई दो राय नहीं कि निकट भविष्य में इन दोनों राज्यों से दिल्ली में शराब की तस्करी को बढ़ावा मिलेगा। किसी भी टैक्स को निर्धारित करते समय आर्थिक परिस्थितियों और बाज़ार में उत्पादों की माँग और आपूर्ति का ध्यान भी रखा जाना चाहिए।
यात्रा बिना भोजन-पानी के
भारत सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को उनके गाँवों तक पहुँचाने के लिए विशेष श्रमिक ट्रेनें चलवाई हैं, पर पहले दिन से ही यहाँ अव्यवस्था नज़र आ रही है। ट्रेनें कई घंटों की देरी से अपने गंतव्यों तक पहुँच रही हैं। इनमें न तो श्रमिकों और उनके परिजनों के भोजन-पानी की उचित व्यवस्था है और न ही साफ़-सफ़ाई पर कोई ध्यान दिया जा रहा है। कई जगह विरोध भी किया, पर स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। इन ट्रेनों में सफर कर रहे यात्रियों की सुरक्षा पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इन समस्याओं के निवारण का तत्काल व्यवस्थित उपाय किया जाना चाहिए।
अफसोस नहीं, बचाव ज़रूरी
पिछले सोमवार को अमेरिका के मिनियापोलिस स्थित एक पुलिस स्टेशन में 46 वर्षीय अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की एक गोरे पुलिस अधिकारी द्वारा हत्या कर दी गई। अब जब उसके विरोध में प्रदर्शन होते हैं तो ट्रंप साहब ट्वीट के जरिए आग में घी डालने का काम करते हैं। इसका अर्थ क्या यह हुआ कि प्रदर्शनकारियों पर हमले को वह जायज ठहरा रहे थे? एक काले अमेरिकी के मारे जाने पर उन्हें ज़रा भी अफसोस नहीं हुआ? ऐसी विचारधारा के हाथों सत्ता होगी तो उस देश की दिनचर्या में हिंसा का शामिल होना निश्चित है।
जानवर कौन?
धरती पर मानव ही ऐसा प्राणी है, जो अच्छे और बुरे का भेद कर सकता है। मगर केरल की घटना ने ईश्वर की सबसे सुंदर रचना पर शक की चादर चढ़ा दी है। वहाँ एक गर्भवती हथिनी के साथ किया गया व्यवहार दुखी करने वाला है। इस घटना से यह समझ नहीं आ रहा कि वास्तव में जानवर कौन है? वह हथिनी, जो पीड़ा में भी शांत होकर पानी में खड़ी रही या फिर वे इंसान, जिन्होंने इस बेज़ुबान को फल में बम खिला दिया। हथिनी के पेट में पल रहे बच्चे ने भी शायद यही सोचा होगा कि अगर मानव ऐसे होते हैं, तो ठीक है कि मैं धरती पर नहीं आया। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब-जब मानव इंसानियत से दूर हुआ है, तब-तब उसे इसका भारी खामियाज़ा भुगतना पड़ा है।
नदियों का प्रदूषण
यह विडंबना है कि भारत दुनिया में बड़ी संख्या में प्रदूषित नदियों का देश है। यह हाल तब है, जब नदियों को यहाँ पवित्र माना जाता है और लोग भक्ति-भाव के साथ उसकी पूजा करते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि प्रदूषण न सिर्फ नदियों की सुंदरता बिगाड़ता है, बल्कि कई बीमारियों को जन्म देकर लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। पिछले साल की एक रिपोर्ट बताती है कि देश भर में हज़ारों लोग पानी से होने वाली बीमारियों की वजह से मारे गए। प्रदृषण आमतौर पर औद्योगिक अपशिष्ट से होता है, जिसमें फ्लोराइड, आर्सेनिक जैसे हानिकारक रसायन घुले रहते हैं। लोग भी सब कुछ नदियों में ही विसर्जित करना चाहते हैं। लिहाजा, यह समय की माँग है कि सरकार नदियों को तुरंत साफ़ करवाए। इस काम में वह गैर-सरकारी संस्थाओं का सहयोग भी ले सकती है। हमारा भी कर्तव्य है कि हम नदियों को प्रदूषण-मुक्त बनाने की योजनाओं में अपनी पूरी भागीदारी दें और प्रकृति की रक्षा करें। नदियों की वास्तविक पूजा भी तभी हो सकेगी।
सबकी है दुनिया
विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रकाशित अनिल प्रकाश जोशी का लेख ‘यह दुनिया सिर्फ इंसानों की नहीं पढ़ा। वाकई, इस दुनिया पर जितना हमारा अधिकार है, उतना ही उन लाखों जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का भी है, जिनको प्रकृति ने हमारे साथ जीवन दिया है। चूँकि इसान सबसे बुद्धिमान प्राणी है, इसलिए उसे पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। लेकिन दुखद यह है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए समय-समय पर बातें तो खूब करते हैं, लेकिन जिस तरह से उन पर काम होना चाहिए, वह नहीं करते। हमें अपने आस-पास की आबोहवा साफ़ रखनी ही होगी, अन्यथा मानव जीवन शायद ही बचा रह सकेगा।
अंतिम पत्र
अब श्रमिक ट्रेनों में यात्रा करने वाले मज़दूरों को मिला करेंगी पानी की दो बोतलें- एक खबर ट्रेन श्रमिकों को पहुँचाने में नौ दिन लगा दे तब भी क्या उन्हें इतने ही पानी में काम चलाना होगा?
फ़ोटो पत्रकारिता
फ़ोटो पत्रकारिता ने छपाई की टेक्नॉलोजी विकसित होने के साथ ही समाचार-पत्रों में अह स्थान बना लिया है। कहा जाता है कि जो बात हज़ार शब्दों में लिखकर नहीं कही जा सकती, वह एक तसवीर कह देती है। फ़ोटो टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है। टेलीविज़न की बढ़ती लोकप्रियता के बाद समाचार-पत्रों और पत्रि. काओं में तसवीरों के प्रकाशन पर ज़ोर और बढ़ा है।
हैदराबाद में शनिवार को खुद डिजाइन की गई गुड़ियों को दिखाती फैशन डिजाइनर हिमा सैलजा। एएफपी हैदराबाद। विदेशी गुड़िया बॉर्बी की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब बच्चों के साथ खेलने के लिए देसी गुड़िया कीया आ गई है। हैंदराबाद की फैशन डिजाइनर हिमा सैलजा ने इस गुड़िया को डिजाइन किया है। शनिवार को इसकी लांचिग के मौके पर हिमा ने कहा कि कई देशों के बच्चों के पास उनकी अपनी गुड़िया है। अमोरिका में बॉब्बी, इरान में फुला, कोरिया में प्यूलिप और चीन में सारा बच्चों को लुभा रही है। पर भारत जैसे विशाल देश में भी कोई फैशन डोल नहीं थी, इसलिए उन्होंने एक देसी गुड़िया बनाने के बारे में सोचा। कीया का अर्थ होता है- चिड़ियों की चहचहाहट। कीया पाँच भारतीय परिधानों में नज़ आएगी और अक्टूर में देश भर के बाज़ारों में पहुँच जाएगी।
कार्टून कोना
कार्टून कोना लगभग हर समाचार-पत्र में होता है और उनके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। एक तरह से कार्टून पहले पन्ने पर प्रकाशित होने वाले हस्ताक्षरित संपादकीय हैं। इनकी चुटीली टिप्पणियाँ कई बार कड़े और धारदार संपादकीय से भी अधिक प्रभावी होती हैं।
रेखांकन और कार्टोग्राफ़
रेखांकन और कार्टोग्राफ़ समाचारों को न केवल रोचक बनाते हैं, बल्कि उन पर टिप्यणी भी करते हैं। क्रिकेट के स्कोर से लेकर सेंसेक्स के आँकड़ों तक-ग्राफ़ से पूरी बात एक नज़र में सामने आ जाती है। कार्टोग्राफ़ी का उपयोग समाचार-पत्रों के अलावा टेलीविज़न में भी होता है।
पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकार
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं :
1. खोजपरक पत्रकारिता-खोजपरक पत्रकारिता का आशय ऐसी पत्रकारिता से है, जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है, जिन्हें दबाने या छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो। प्रायः खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। खोजी पत्रकारिता का उपयोग उन्हीं स्थितियों में किया जाता है. जब यह लगने लगे कि सच्चाई को सामने लाने के लिए और कोई उपाय नहीं रह गया है। खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप टेलीविज़न में स्टिग ओपरेशन के रूप में सामने आया है।
2. विशेषीकृत पत्रकारिता-पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्व है। इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। उनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।
3. वॉचडॉग पत्रकारिता-लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो, तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परपरागत रूप से ‘वॉचडॉग पत्रकारिता’ कहा जाता है। इसका दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है, जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है।
4. एडवोकेसी पत्रकारिता-ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं, जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को ‘पक्षधर’ या ‘एडवोकेसी पत्रकारिता’ कहा जाता है; जैसे-जेसिका लाल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने सक्रिय अभियान चलाया।
5. वैकल्पिक पत्रकारिता-व्यवस्था के साथ तालमेल बैठाकर चलने वाली मीडिया को ‘मुख्यधारा की मीडिया’ कहा जाता है। इस तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करती है। इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है, उसे ‘वैकल्पिक पत्रकारिता’ कहा जाता है।
समाचार माध्यमों में मौजूदा रुझान
देश में मध्यम वर्ग के तेज़ी से विस्तार के साथ ही मीडिया के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। साक्षरता और क्रय-शक्ति बढ़ने से भारत में अन्य वस्तुओं के अलावा मीडिया के बाज़ार का भी विस्तार हो रहा है। इस बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हर तरह के मीडिया का फैलाव हो रहा है-रेडियो, टेलीविज़न, समाचार-पत्र, सेटेलाइट टेलीविज़न और इंटरनेट सभी विस्तार के रास्ते पर हैं। बाज़ार के इस विस्तार के साथ ही मीडिया का व्यापारीकरण भी तेज़ हो गया है और लाभ कमाने को ही मुख्य लक्ष्य समझने वाले पूँजीवादी वर्ग ने भी मीडिया के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है।
समाचार मीडिया के प्रबंधक बहुत समय तक लोगों की रचचियों और प्राथमिकताओं की उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि साख और प्रभाव समाचार मीडिया की सबसे बड़ी ताकत होते हैं। आज समाचार मीडिया की साख में तेज़ी से हास हो रहा है और इसके साथ ही लोगों की सोच को प्रभावित करने की इसकी क्षमता भी कुंठित हो रही है। समाचारों को उनके न्यायोचित और स्वाभाविक स्थान पर बहाल करके ही समाचार मीडिया की साख और प्रभाव के ह्नास की प्रक्रिया को रोका जा सकता है।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न –
प्रश्न 1.
किसी भी दैनिक अखबार में राजनीतिक खबरें ज़्यादा स्थान क्यों घेरती हैं? इस पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। उत्तर :
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के प्रचार-प्रसार के कारण लोगों में राजनीति के प्रति रुझान बढ़ा है। राजनीति के प्रति वे जिजासु हुए हैं। देश की राजनीति का संबंध आम लोगों के जीवन के इर्द-गिर्द घूमता है। वे सरकार के काम-काज के तौर-तरीकों तथा राजनीति में हो रही हलचल को जानना चाहते हैं। समाचार-पत्र लोगों की इस रूचि को ध्यान में रखकर इन खबरों को प्रमुखता से छापते हैं। ऐसे में राजनीतिक खबरों का दैनिक अखबारों में ज्यादा स्थान घेरना स्वाभाविक है।
प्रश्न 2.
किन्हीं तीन हिंदी समाचार-पत्रों (एक ही तारीख के) को ध्यान से पढ़िए और बताइए कि एक आम आदमी की ज़िदगी में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली खबरें समाचार-पत्रों में कहाँ और कितना स्थान पाती हैं?
उत्तर :
मैंने 19 सितंबर, 2014 को तीन समाचार-पत्रों-‘नवभारत टाइम्स ‘, ‘दैनिक जागरण’ तथा ‘पंजाब केसरी’ पढ़े। इन अखबारों में एक आम आदमी की ज़िद्गी में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पाने वाली खबरें पहले दो पृष्ठों के बाद-तीसरे, चौथे और पाँचवें पृष्ठों पर हैं। इनके स्थान के बारे में अंतर अवश्य है। दैनिक जागरण ने इन खबरों को अधिक स्थान दिया है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसे आप समाचार कहना पसंद नहीं करेंगे और क्यों?
(क) प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना
(ख) किसी घटना की रिपोर्ट
(ग) समय पर दी जाने वाली हर सूचना
(घ) सहकर्मियों का आपसी कुशलक्षेम या किसी मित्र की शादी
उत्तर :
प्रश्न में दी गई प्रथम तीन सूचनाओं को मैं समाचार कहना पसंद करूँगा, चौथी अर्थात (घ) सूचना को समाचार नहीं कहूँगा, क्योंकि ‘सहकर्मियों का आपसी कुशलक्षेम या मित्र की शादी’ जैसी सूचना का संबंध दो-चार या थोड़े-से लोगों से नहीं है। यह एक निजी मामला है, जिनमें जन-साधारण की कोई रुचि नहीं होती।
प्रश्न 4.
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि खबरों को बनाते समय जनता की रुचि का ध्यान रखा जाता है। इसके विपरीत, जनता की रुचि बनाने-बिगाड़ने में खबरों का क्या योगदान होता है? विचार कीजिए।
उत्तर :
प्रायः समाचार-पत्र खबरों को बनाने एवं छापने में जनता की रुचि का ध्यान रखते हैं, पर इसके विपरीत यह भी सही है कि खबरें जनता की रूचि बनाने, बिगाड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती हैं। वास्तव में देखने की बात तो यह है कि खबरों को किस तरह और किस रूप में प्रस्तुत किया जाता है। आज खेल और फ़िल्मी खबरों को इतना महत्व दिया जाने लगा है कि युवा वर्ग आम लोगों के जीवन से जुड़ी खबरों की उपेक्षा करने लगा है।
प्रश्न 5.
निम्न पंक्तियों की व्याख्या करें :
(क) इस दौर में समाचार मीडिया बाज़ार को हड़पने के लिए अधिकाधिक लोगों का मनोरंजन तो कर रहा है, लेकिन जनता के मूल सरोकार को दरकिनार करता जा रहा है।
(ख) समाचार मीडिया के प्रबंधक बहुत समय तक इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते कि साख और प्रभाव समाचार मीडिया की सबसे बड़ी ताकत होती हैं।
उत्तर :
(क) ‘जनता के मूल सरोकार को दरकिनार करता जा रहा है’-अंतिम पंक्ति से ही स्पष्ट है कि मीडिया की कार्य-प्रणाली पर असंतोष प्रकट किया गया है। वर्तमान में मीडिया लाभ कमाने और बाज़ार को हड़पने के लिए अधिक चितित दिखाई दे रहा है। वह अमीरवर्ग और अधिक क्रय-शक्ति वालों की खबरों को प्रमुखता से छापता है तथा सामान्य लोगों के हितों को बढ़ावा देने वाली और जन-साधारण के जन-जीवन की खबरों की उपेक्षा कर इस वर्ग के लोगों के हितों की परवाह नहीं करता।
(ख) समाचार मीडिया के प्रबंधकों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे मीडिया के प्रभाव और उसकी साख को गिरने न दें। मीडिया का लोगों पर प्रभाव और लोगों के बीच बनी साख ही उसकी ताकत है। साख और प्रभाव खो देने के बाद मीडिया का लोगों पर बना असर धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। ऐसे में मीडिया प्रबंधकों को मीडिया की साख और प्रभाव की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
अन्य हल प्रश्न –
लघूत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर :
हम समाचार-पत्र पढ़कर समाचार जानना चाहते हैं। टेलीविज़न, रेडियो, इंटरनेट आदि के द्वारा भी हम तक समाचार पहुँचते हैं। पत्रकार देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में बदलकर जनमानस तक पहुँचाते हैं। पत्रकारों द्वारा सूचनाओं को एकत्र करके उनमें काट-छाँटकर समाचार के रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 2.
पत्रकारिता किस सिद्धांत पर काम करती है?
उत्तर :
मनुष्य का सहज स्वभाव होता है कि वह अपने आस-पास की घटनाओं और लोगों के बारे में जानने का इच्छुक रहता है। उसमें जिज्ञासा का भाव प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार का और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्व है। इसी सहज जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश के सिद्धांत पर पत्रकारिता कार्य करती है।
प्रश्न 3.
समाचार की कोई चार परिभाषाएँ लिखिए।
उत्तर :
प्रेरक और उत्तेजित कर देने वाली हर सूचना समाचार है।
- समय पर दी जाने वाली हर सूचना समाचार का रूप धारण कर लेती है।
- किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।
- समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है।
प्रश्न 4.
समाचार किसे कहा जा सकता है? इसकी एक उपयुक्त परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
समाचार का जुड़ाव हज़ारों-लाखों लोगों से होता है। इनका सार्वजनिक महत्व होता है तथा इन्हें जानने में लोगों की रुचि होती है। अतः समाचार किसी भी ऐसी ताजी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका प्रभाव अधिक-से-अधिक लोगों पर पड़ रहा हो।
प्रश्न 5.
समाचार माध्यमों में सूचनाओं का निर्धारण किस आधार पर किया जाता है?
उत्तर :
समाचार माध्यमों के पाठक, श्रोता और दर्शक अपने मूल्यों, रूचियों और दृष्टिकोणों में भिन्नता रखते हैं। इन्हीं के अनुरूप उनकी सूचना प्राथमिकताएँ भी निर्धारित होती हैं। परपरागत पत्रकारिता के मानदंडों के अनुसार समाचार मीडिया को लोगों की सूचनाओं की ज़रूरत तथा माँग के बीच संतुलन रखना पड़ता है।
प्रश्न 6.
किसी घटना को समाचार बनने के लिए किन-किन तत्वों की आवश्यकता होती है? उनके नाम लिखिए।
उत्तर :
किसी घटना को समाचार बनने के लिए निम्नलिखित तत्वों की आवश्यकता होती है-
- नवीनता
- निकटता
- प्रभाव
- जनरुचि
- टकराव
- महत्वपूर्ण लोग
- उपयोगी जानकारियाँ
- अनोखापन
- पाठक वर्ग
- नीतिगत ढाँचा
प्रश्न 7.
समाचार के लिए नवीनता का क्या महत्व है?
उत्तर :
किसी भी घटना, विचार या समस्या के समाचार बनने के लिए उसमें नवीनता जरूरी है। समाचार वही है जो ताज़ा घटना के बारे में जानकारी देता है। घटना के ताज़ेपन से अभिप्राय है यह कि उस समय के लिहाज से नई हो।
प्रश्न 8.
समाचार और निकटता का संबंध बताइए।
उत्तर :
हर घटना का समाचारीय महत्व उसकी स्थानीयता से निर्धारित होता है। मानव का स्वभाव है कि वह अपने निकट होनेवाली घटनाओं को जानने के लिए उत्सुक रहता है। यह निकटता भौगोलिक के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक भी होती है।
प्रश्न 9.
समाचार के संबंध में ‘प्रभाव’ से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
किसी घटना की तीव्रता का अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उससे कितने लोग प्रभावित हो रहे हैं या कितने बड़े भू-भाग पर उसका असर हो रहा है। किसी घटना से जितने अधिक-से-अधिक लोग प्रभावित होते हैं, समाचार बनने की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।
प्रश्न 10.
समाचार के संबंध में जनरुचि की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कोई घटना तभी समाचार बन सकती है जब उसमें अधिकाधिक लोगों की रुचि हो तथा ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उसके बारे में जानने की इच्छा रखते हो। समाचार संगठन भी चाहते हैं कि पाठक या दर्शकों का एक बड़ा वर्ग इस संबंध में जानने की रुचि रखे। इस बात को ध्यान में रखकर वह समाचारों का चयन करता है।
प्रश्न 11.
समाचारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण लोगों से क्या आशय है?
उत्तर :
किसी घटना का जुड़ाव जब मशहूर और जाने-माने व्यक्तित्व के साथ होता है तब आम पाठक, श्रोता और दर्शकों की रुचि स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। ऐसे महत्वपूर्ण लोगों की खबरों से उसका समाचारीय महत्व बढ़ जाता है। जैसे फ़िल्मी कलाकारों की छोटी-छोटी बातें भी खबर बन जाती है।
प्रश्न 12.
समाचारों के संबंध में ‘अनोखापन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
हमारे आस-पास या देश-विदेश में घटने वाली अनोखी घटनाओं के प्रति लोगों की तीत्र जिज्ञासा होती है। ऐसी घटनाएँ समाचार बन जाती हैं। इन घटनाओं के बारे में मीडिया को सचेत रहना चाहिए क्योंकि इससे लोगों में अंधविश्वास और अवैज्ञानिकता पनपती है।
प्रश्न 13.
किसी समाचार पर उसके पाठक वर्ग का क्या असर होता है?
उत्तर :
किसी भी समाचार संगठन से प्रकाशित समाचार-पत्र या किसी प्रसारित रेडियो-टी.वी. चैनलों के विशेष पाठक, श्रोता या दर्शक होते हैं। ये समाच्चर संगठन अपने पाठक वर्ग की रुचियों और जरूरतों का ध्यान रखते हैं। इन पाठकों की संख्या के आधार पर समाचरीय घटना का महत्व भी तय होता है।
प्रश्न 14.
संपादन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संपादन से तात्पर्य उस विधा से है जिसके द्वारा किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाया जाता है। कोई संवाद्याता जब खबरें लाता है तो एक उपसंपादक उसे ध्यान से पढ़ता है और उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य संबंधी अशुद्धियाँ दूर करने के लिए काट-छाँट करता है।
प्रश्न 15.
समाचारों में संपादन का कार्य कौन करते हैं?
उत्तर :
समाचार संगठन में द्वारपाल होते हैं। द्वारपाल की भूमिका में संपादक सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक, उपसंपादक आदि की भूमिका निभाते हैं। वे संवाददाताओं से प्राप्त समाचारों के चयन और प्रस्तुतीकरण का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
प्रश्न 16.
संपादन के मुख्य बिंदु कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
संपादन के निम्नलिखित मुख्य बिंदु होते हैं-
1. तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता
3. निष्पक्षता
5. स्तोत
प्रश्न 17.
समाचार में तथ्यपरकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
समाचार में तथ्यपरकता का महत्वपूर्ण स्थान है। पत्रकार को ऐसे तथ्यों का चयन करना चाहिए जो यथार्थ का संपूर्णता के साथ प्रतिनिधित्व करते हैं, परंतु समाचार में यथार्थ सीमित सूचनाओं व तथ्यों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। कड़वा सच खतरनाक होता है, क्योंकि मनुष्य यथार्थ की छवियों की दुनिया में रहता है।
प्रश्न 18.
समाचारों के संपादन में तथ्यपरकता तथा वस्तुपरकता में क्या अंतर है?
उत्तर :
समाचारों के संपादन में तथ्यपरकता का संबंध अधिकाधिक तथ्यों से है, जबकि वस्तुपरकता का संबंध व्यक्ति दूवारा तथ्यों को देखने से है। किसी विषय के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियाँ समाचारों के मूल्यांकन में हमारी क्षमता को प्रभावित करते हैं और हम यथार्थ को उन्हीं के अनुरूप देखते हैं।
प्रश्न 19.
एक पत्रकार के लिए निष्पक्षता का क्या महत्व है?
उत्तर :
किसी पत्रकार की निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तब बनती है जब समाचार किसी घटना की सच्चाई निष्पक्ष ढंग से सामने लाता है। पत्रकारिता सही और गलत, न्याय और अन्याय जैसे मामलों में निष्पक्ष होकर भी सत्य और न्याय के साथ होती है।
प्रश्न 20.
संपादन में संतुलन का क्या महत्व है?
उत्तर :
समाचार-पत्रों पर किसी ओर झुकने का आरोप लगाया जाता है। जब किसी घटना में कई पक्ष शामिल होते हैं और उनका आपस में किसी-न-किसी रूप में टकराव हो तो तब ऐसी स्थिति में इस बात का संतुलन होना चाहिए कि सभी पक्षों की बातों को समाचार में अपने-अपने समाचारीय वजन के अनुसार स्थान देना चाहिए।
प्रश्न 21.
समाचारों के संबंध में स्रोत की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
समाचारों में शामिल की गई हर सूचना और घटना का अपना स्रोत होना आवश्यक है। समाचार संगठन के अपने स्रोत तथा पत्रकारों के अपने स्रोत होते हैं। किसी भी दैनिक समाचार-पत्र के लिए पी.टी.आई., यूएनआई जैसी समाचार एजेंसियाँ और अपने संवाददाताओं का तंत्र समाचारों के स्रोत होते हैं।
प्रश्न 22.
पत्रकारिता के अन्य आयाम कौन-से होते हैं? ये क्यों आवश्यक होते हैं?
उत्तर :
समाचार के अलावा विचार, टिप्पणी, संपादकीय, फोटो, कार्टून आदि पत्रकारिता के महत्वपूर्ण आयाम हैं। पत्रकारिता के अन्य आयाम समाचार-पत्र को पूर्ण बनाते हैं। इसके अलावा समय, घटना और विषय के अनुसार पत्रकारिता में लेखन के ढंग बदल जाते हैं।
प्रश्न 23.
संपादकीय क्या है? इसे समाचार-पत्र के लिए महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर :
समाचार-पत्र के मध्य पृष्ठ पर या अन्य किसी पृष्ठ पर विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर संपादक द्वारा अपनी राय रखी जाती है. इसे ही ‘संपादकीय’ कहते हैं। इसी पृष्ठ पर विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों द्वारा अपने विचार प्रस्तुत किए जाते हैं. इसलिए इसे समाचार का महत्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है।
प्रश्न 24.
फ्रोटो पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
कभी-कभी जो बात शब्दों में नहीं कही जा सकती है, वह एक तसवीर कह देती है, फ़ोटो टिप्पणियों का असर सीधा और व्यापक होता है। आजकल फ़ोटो पत्रकारिता समाचारों का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। अब समाचार-पत्र/पत्रिकाओं में तसवीरों के प्रकाशन का प्रचलन बढ़ा है।
प्रश्न 25.
समाचार-पत्रों में ‘कार्टून कोना’ क्या होता है?
उत्तर :
आजकल हर समाचार-पत्र में ‘कार्टून कोना’ होता है। इसके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठकों के मन को छू जाती हैं। एक तरह से पहले पृष्ठ पर प्रकाशित कार्टून संपादकीय हस्ताक्षर होते हैं। इनकी टिप्पणियाँ कड़े और धारदार संपादकीय से भी अधिक प्रभावशाली होती हैं।
प्रश्न 26.
रेखांकन और कार्टोग्राफ़ का समाचार-पत्रों में क्या महत्व होता है?
उत्तर :
समाचार-पत्रों में छापे गए रेखांकन और कार्टोग्राफ़ रोचकता में वृद्धि करते हैं तथा टिप्पणी भी करते हैं। क्रिकेट स्कोर से लेकर सेंसेक्स के आँकड़ों तक ग्राफ़ के माध्यम से बात स्पष्ट रूप से एक दृष्टि में सामने आ जाती है। अब तो कार्टोग्राफ़ी का उपयोग समाचार-पत्रों के अलावा टेलीविज़न में भी किया जाने लगा है।
प्रश्न 27.
पाठक वर्ग का समाचार-चयन में क्या महत्व है?
उत्तर :
पाठक वर्ग की ज़रूरतों व रुचियों के हिसाब से समाचारों का चयन किया जाता है। आजकल समाचारों के महत्व के आकलन में पाठक वर्ग का प्रभाव बढ़्ता जा रहा है। अतिरिक्त क्रय-शक्तिवाले सामाजिक तबकों में पढ़े जाने वाले समाचारों को अधिक महत्व मिल रहा है तथा पीड़ित व कमज़ोर वर्ग उपेक्षित होता जा रहा है।
प्रश्न 28.
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
(क) विशेषीकृत पत्रकारिता
(ग) वॉचडॉग पत्रकारिता
(ख) खोजपरक पत्रकारिता
(घ) एडवोकेसी पत्रकारिता
प्रश्न 29.
पत्रकारिता के मूल्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पत्रकारिता एक तरह से दैनिक इतिहास लेखन है। इसके निम्नलिखित मूल्य हैं-
- पत्रकार को ऐसा कोई समाचार नहीं लिखना चाहिए जिससे किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता हो।
- समाज में अराजकता नहीं फैलनी चाहिए।
- बिना सबूत के कोई समाचार नहीं लिखना चाहिए।
प्रश्न 30.
वॉचडॉग पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो, तो उसका खुलासा करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉंग पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 31.
एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर :
कुछ समाचार संगठन किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या भुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा अथवा उद्देश्य के समर्थन में जनमत बनाने के लिए लगातार प्रयास करते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को एडवोकेसी (पक्षधर) पत्रकारिता कहा जाता है।
प्रश्न 32.
‘खोजपरक पत्रकारिता’ के विषय में बताइए।
उत्तर :
वह पत्रकारिता जो गहराई से छानबीन करके छिपी या देखी हुई खबरों को सामने लाती है, ‘खोजपरक पत्रकारिता’ कहलाती है। आमतौर पर यह पत्रकारिता सार्वजनिक महत्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। इसका नवीनतम रूप ‘स्टिंग ऑपरेशन’ है। खोजपरक पत्रकारिता का नायाब उदाहरण अमेरिका का वाटरगेट कांड है।
प्रश्न 33.
पत्रकारिता लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर :
वह लेखन जो अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करनेवाला पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों तथा श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का प्रयोग करता है, पत्रकारिता लेखन कहा जाता है।
प्रश्न 34.
पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
पत्रकार तीन तरह के होते हैं-पूर्णकालिक, अंशकालिक तथा फ्रीलांसर।
- पूर्णकालिक पत्रकार-ये पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाले नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होते हैं।
- अंशकालिक पत्रकार-ये पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर कार्य करते हैं।
- फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार-ये पत्रकार भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखते हैं।
प्रश्न 35.
पत्रकारिता लेखन साहित्यिक सृजनात्मक लेखन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
पत्रकारिता लेखन का संबंध समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और पाठकों की रुचियों तथा जजरूरतों को ध्यान में रखकर रचा जाता है, जबकि साहित्यिक-सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है।
प्रश्न 36.
पत्रकारीय लेखक की भाषा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखक की भाषा आम बोलचाल की भाषा होनी चाहिए। उसकी लेखन-शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह सबकी समझ में आ जाए। वाक्य छोटे व सहज होने चाहिए तथा सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। पत्रकार को अलंकारिक भाषा से बचना चाहिए।
प्रश्न 37.
समाचार-लेखन में छह ककारों का क्या महत्व है?
उत्तर :
समाचार-लेखन में छह ककारों का प्रयोग किया जाता है। समाचार के मुखड़े में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ। समाचार की बॉड़ी में कैसे और क्यों का जवाब दिया जाता है। पहले चार ककार-क्या, कौन, कब, और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं, जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
प्रश्न 38.
‘संपादक’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
वह व्यक्ति जो समाचार-पत्र के संपादकीय कार्य का निर्देशन, नियंत्रण व निरीक्षण करता है, उसे ‘संपादक’ कहते हैं। यह समाचार-पत्र में प्रकाशित सामग्री के लिए उत्तरदायी होता है। यह संपादकीय विभाग का प्रमुख प्रशासनिक एवं विधिक अधिकारी होता है।
प्रश्न 39.
स्तंभ-लेखन क्या है?
उत्तर :
स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का प्रमुख रूप है। खास शैली के कुछ लेखक अखबार में नियमित लेख देते हैं। इस लेख का विषय व विचार स्तंभ लेखक की मर्जी से होता है। स्तंभ लेख लेखक के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं।
प्रश्न 40.
‘संपादक के नाम पत्र’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
समाचार-पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। इस स्तंभ के जरिए पाठक अपनी राय विभिन्न मुद्दों पर जाहिर करते हैं। वे जनसमस्याएँ भी उठाते हैं। यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है।
प्रश्न 41.
पत्रकारीय साक्षात्कार व सामान्य बातचीत में अंतर बताइए।
उत्तर :
साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी दूसरे व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय व भावनाएँ जानने के लिए प्रश्न पूछता है, जबकि सामान्य बातचीत में प्रश्नात्मक शैली नहीं होती।
प्रश्न 42.
‘विशेषीकृत पत्रकारिता’ का अर्थ बताइए।
उत्तर :
वह पत्रकारिता जो किसी विषय पर विशेष जानकारी प्रदान करती है, ‘विशेषीकृत पत्रकारिता’ कहलाती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं-संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फैशन और फ़िल्म पत्रकारिता।
प्रश्न 43.
‘वैकल्पिक पत्रकारिता’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
जो पत्रकारिता स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करती है, उसे ‘वैकल्पिक पत्रकारिता’ कहते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन नहीं मिलता।
प्रश्न 44.
‘पीत पत्रकारिता’ के विषय में बताइए।
उत्तर :
पीत पत्रकारिता सनसनी फैलाने का कार्य करती है। इस तरह की पत्रकारिता की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में हुई थी। उस समय वहाँ कुछ अखबारों के बीच पाठकों को आकर्षित करने के लिए संघर्ष छिड़ गया था। एक-दूसरे को पीछे करने की होड़ में इन अखबारों ने पीत पत्रकारिता का सहारा लिया। पीत पत्रकारिता के तहत अखबार अफवाहों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों, प्रेम-संबंधों, भंडाफोड़ और फ़िल्मी गपशप को समाचार की तरह प्रकाशित करते हैं।
प्रश्न 45.
‘पेज़ श्री’ पत्रकारिता क्या है?
उत्तर :
इसका तात्पर्य ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें फैशन, अमीरों की पार्टियों, महफिलों और जाने-माने लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। यह आमतौर पर समाचार-पत्रों के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होती है, इसलिए इसे ‘पेज़ थ्री पत्रकारिता’ कहते हैं। आजकल इसकी पृष्ठ संख्या कोई भी हो सकती है, परंतु इनके विषय वही हैं।
प्रश्न 46.
‘डेडलाइन’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशित या प्रसारित होने के लिए पहुँचने की आखिरी समय-सीमा को ‘डेडलाइन’ कहते हैं। डेडलाइन के बाद मिलनेवाले समाचार के छपने की संभावना कम ही होती है।
प्रश्न 47.
स्टिंग ऑपरेशन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
जब किसी टेलीविज़न चैनल का पत्रकार छिपे कैमरे के जरिए किसी गैर-कानूनी, अवैध और असामाजिक गतिविधियों को फ़िल्माता है और फिर उसे अपने चैनल पर दिखाता है तो इसे स्टिंग ऑपरेशन कहते हैं। कई बार चैनल ऐसे ऑपरेशनों को गोपनीय कोड दे देते हैं; जैसे-ऑपरेशन चक्रव्यूह।
प्रश्न 48.
पत्रकार की बैसाखियाँ कौन-कौन सी हैं? इनका प्रयोग करते समय क्या ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर :
पत्रकार की चार बैसाखियाँ होती हैं। ये हैं – (i) सच्चाई (ii) संतुलन (iii) निष्पक्षता (iv) स्पष्टता। इसका प्रयोग करते समय पत्रकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि पत्रकारिता के मूल्य दबकर न रह जाएँ।
प्रश्न 49.
पत्रकार की बैसाखियों में ‘सच्याई’ का क्या स्थान है?
उत्तर :
पत्रकार की बैसाखियों में सच्चाई का पहला स्थान है। किसी भी पत्रकार की विश्वसनीयता सच्चाई पर टिकी होती है। अतः लिखने से पहले तथ्यों की पूरी जाँच-परख कर उनकी पुष्टि कर लेनी चाहिए। तथ्यों या बयानों को किसी स्वार्थवश तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहिए।
प्रश्न 50.
पत्रकार अपनी बैसाखी ‘संतुलन’ का प्रयोग क्यों करता है?
उत्तर :
पत्रकार अपनी बैसाखी संतुलन का प्रयोग इसलिए करता है क्योंकि सच्चाई की कसौटी पर कसे जाने के बावजूद यह अनिवार्य है कि तथ्यों, बयानों या आँकड़ों में संतुलन रखा जाए। विवादित मुद्दों में दोनों पक्षों की बात तर्क के साथ रखना आवश्यक है, अन्यथा समाचार के एक पक्षीय होने का खतरा बना रहता है।
प्रश्न 51.
पत्रकार की बैसाखी ‘निष्पक्षता’ का महत्व बताइए।
उत्तर :
किसी पत्रकार के लिए ‘पक्षपात’ अपशब्द की तरह है। जो पत्रकार अपने समाचारों को निष्पक्षता की कसौटी पर खरा नहीं रख सकता, वह पत्रकार नहीं हो सकता। ऐसे पत्रकारों को समाचार उपभोक्ता ही खारिज कर देते हैं। अतः आवश्यक है कि पत्रकार अपनी निजी राय व्यक्त न करे।
प्रश्न 52.
पत्रकार अपनी बैसाखी ‘स्पष्टता’ का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर :
कुछ पत्रकार समाचार को लालित्यपूर्ण बनाने की कोशिश में समाचार की स्पष्टता पर ही प्रश्न चिह्न लगा देते हैं। अतः समाचारों को लालित्यपूर्ण बनाने के प्रयास में उसमें अस्पष्टता का दोष नहीं आना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि समाचार के वाक्य छोटे और सीधे रहें, ताकि उनमें उलझाव न हो।
प्रश्न 53.
संपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ क्यों माना जाता है?
उत्तर :
संपादकीय पृष्ठ एक ऐसा मंच है, जहाँ समाचार-संगठन की विचारधारा और विशेषज्ञों की विचारधारा आम पाठक की विचारधारा से मिलकर समाचारों का संगम उपलब्ध करता है, जिसे पाठक रुचि से पढ़ता है। एक अच्छे समाचार-पत्र के संपादकीय पृष्ठ को निरंतर पढ़ने से व्यक्ति में सकारात्मक दृष्टि का विकास होता है।
प्रश्न 54.
आज मीडिया की सीमा में आने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ने के क्या कारण है?
उत्तर :
आज मीडिया की सीमा में आने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ने के मुख्य कारण हैं- साक्षरता और लोगों की क्रय-शक्ति बढ़ना तथा अन्य वस्तुओं का विस्तार होना। आज बाज़ार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए भी मीडिया का विस्तार रेडियो, टेलीविज्जन, समाचार-पत्र, सेटेलाइट और इंटरनेट के माध्यम से हो रहा है।
प्रश्न 55.
पत्रकारीय धाराओं के बीच की विभाजन-रेखा खत्म होने का समाचारों पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर :
पत्रकारीय धाराओं के बीच की विभाजन-रेखा खत्म होने से हर समाचार संगठन एक ही तरह के समाचारों पर टूट पड़ा है। इससे विविधता खत्म हो रही है। अब ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि अखबार तो अनेक हैं, पर सब एक जैसे हैं। इनमें खबरें भी लगभग एक-सी ही होती हैं।