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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 8 in Hindi वायुमंडल का संघटन तथा संरचना
पृष्ठ संख्या 77
प्रश्न 1.
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि वायुमण्डल में ओजोन की अनुपस्थिति से हमारे ऊपर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
ओजोन गैस वायुमण्डल का बड़ा उपयोगी तत्त्व है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर उनको पृथ्वी पर पहुँचने से रोकती है। यदि वायुमण्डल में ओजोन गैस अनुपस्थित होगी तो सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें धरातल पर पहुँच जायेंगी। इसके परिणामस्वरूप धरातल पर तापमान में भीषण वृद्धि हो जायेगी और यहाँ प्राणी मात्र का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
बहुवैकल्पिक प्रश्न-
1. निम्नलिखित में से कौनसी गैस वायुमण्डल में सबसे अधिक मात्रा में मौजूद है?
(क) ऑक्सीजन
(ख) आर्गन
(ग) नाइट्रोजन
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
उत्तर:
(ग) नाइट्रोजन
2. वह वायुमण्डलीय परत जो मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है—
(क) समताप मण्डल
(ख) क्षोभ मण्डल
(ग) मध्य मण्डल
(घ) आयन मण्डल।
उत्तर:
(ख) क्षोभ मण्डल
3. समुद्री नमक, पराग, राख, धुएँ की कालिमा, महीन मिट्टी किससे सम्बन्धित हैं?
(क) गैस
(ख) जलवाष्प
(ग) धूलकण
(घ) 150 किलोमीटर।
उत्तर:
(ग) धूलकण
4. निम्नलिखित में से कितनी ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है?
(क) 90 किलोमीटर
(ख) 100 किलोमीटर
(ग) 120 किलोमीटर
(घ) उल्कापात।
उत्तर:
(ग) 120 किलोमीटर
5. निम्नलिखित में से कौनसी गैस सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है तथा पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है?
(क) ऑक्सीजन
(ग) हीलियम
(ख) नाइट्रोजन
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
उत्तर:
(घ) कार्बन डाइऑक्साइड।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
वायुमण्डल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है। यह पृथ्वी को चारों तरफ से ढके हुए है। इसमें मनुष्यों एवं जन्तुओं के जीवन के लिए आवश्यक गैसें, यथा- ऑक्सीजन तथा पौधों के जीवन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड पाई जाती है।
प्रश्न 2.
मौसम एवं जलवायु के तत्त्व कौन – कौनसे हैं?
उत्तर:
सामान्यतया मौसम एवं जलवायु के तत्त्व समान होते हैं केवल उनमें समय का अंतर होता है। मौसम व जलवायु के तत्त्वों के अन्तर्गत तापमान, दाब, आर्द्रता, वर्षा, वायु की दिशा एवं गति, बादल आदि को शामिल करते हैं।
प्रश्न 3.
वायुमण्डल की संरचना के बारे में लिखें।
उत्तर:
वायुमण्डल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों का बना हुआ है। पृथ्वी की सतह के पास घनत्व अधिक एवं ऊँचाई बढ़ने के साथ यह कम होता जाता है। तापमान एवं दबाव की स्थिति के अनुसार वायुमंडल को पाँच विभिन्न संस्तरों में बाँटा गया है। ये हैं— क्षोभमण्डल, समतापमंडल, मध्यमण्डल, बाह्य वायुमण्डल तथा बहिर्मण्डल।
प्रश्न 4.
वायुमण्डल के सभी संस्तरों में क्षोभ मण्डल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
क्षोभमंडल, वायुमंडल का सबसे नीचे का संस्तर है। जीवों का सम्बन्ध इसी परत से होता है। इसी संस्तर में धूलकण, जलवाष्प एवं मौसमी परिवर्तन होते हैं। जैविक क्रियाओं के लिए भी यह संस्तर उपयोगी है। इन्हीं सबके कारण क्षोभमंडल शेष संस्तरों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
वायुमण्डल के संघटन की व्याख्या करें।
उत्तर:
वायुमण्डल का संघटन वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है। इसमें गैसों के साथ-साथ जलवाष्प एवं धूल-कण भी पाए जाते हैं। वायुमण्डल की ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात बदल जाता है, यथा 120 किलोमीटर की ऊँचाई पर ऑक्सीजन गैस की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड तथा जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही पाए जाते हैं। वायुमण्डल के संघटन के विभिन्न तत्त्वों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
1. गैस:
वायुमण्डल में उपस्थित विभिन्न प्रकार की गैसों में कुछ भारी तथा कुछ हल्की गैसें हैं। भारी गैसों की उपस्थिति वायुमण्डल की निचली परतों तथा हल्की गैसें ऊपरी परतों में पायी जाती हैं। वायुमण्डल के संघटन में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, निऑन, हीलियम, क्रेप्टोन, जेनोन, हाइड्रोजन, ओजोन गैसें पाई जाती हैं।.
2. जल- वाष्प:
वायुमण्डल में जल वाष्प अस्थिर मात्रा में पायी जाती है। इसकी मात्रा ऊँचाई के साथ घटती जाती है। गर्म तथा आर्द्र उष्ण कटिबन्ध में जल वाष्प हवा के आयतन का 4 प्रतिशत होती है जबकि ध्रुवों जैसे ठण्डे तथा रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों में जल वाष्प हवा के आयतन के 1 प्रतिशत भाग से भी कम होती है। विषुवत वृत्त से ध्रुवों की तरफ जल वाष्प की मात्रा कम होती रहती है। जल वाष्प सूर्य से निकलने वाले ताप के कुछ भाग को अवशोषित करती है तथा पृथ्वी से निकलने वाले ताप को संग्रहित करती है। इस प्रकार यह एक कम्बल के समान कार्य करती है तथा – पृथ्वी को न तो अधिक गर्म तथा न ही अधिक ठण्डा होने देती है। जल वाष्प वायु को स्थिर और अस्थिर होने में भी योगदान देती है।
3. धूल-कण :
वायुमण्डल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण विभिन्न स्रोतों, यथा- – समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, धूल तथा उल्काओं के टूटे हुए कण से निकलते हैं। धूल-कण प्रायः वायुमण्डल के निचले भाग में मौजूद होते हैं, फिर भी संवहनीय वायु प्रवाह इनको काफी ऊँचाई तक ले जा सकता है। धूल-कणों का सबसे अधिक जमाव उपोष्ण और शीतोष्ण प्रदेशों में सूखी हवा के कारण होता है। धूल और नमक के कण आर्द्रताग्राही केन्द्र के समान कार्य करते हैं जिसके चारों तरफ जलवाष्प संघनित होकर मेघों का निर्माण करती है।
प्रश्न 2.
वायुमण्डल की संरचना का चित्र खींचें और व्याख्या करें।
उत्तर:
वायुमण्डल की संरचना वायुमण्डल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों के योग से निर्मित है। पृथ्वी की सतह के पास घनत्व अधिक होता है जबकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह घटता जाता है। तापमान की स्थिति के अनुसार वायुमण्डल को अग्रलिखित संस्तरों में विभाजित किया गया है।
1. क्षोभ मण्डल :
वायुमण्डल की सबसे नीचे वाली परत को क्षोभ मण्डल कहते हैं। इस परत की ऊँचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलोमीटर है। सामान्य रूप से इस परत की ऊँचाई धरातल से लगभग 13 किलोमीटर है। क्षोभ मण्डल की मोटाई विषुवत वृत्त पर सबसे अधिक है क्योंकि तेज वायु प्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन किया जाता है। इस परत में धूलकण एवं जलवाष्प मौजूद होते हैं। मौसमी परिवर्तन भी इसी संस्तर में होते हैं। इस परत में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1° सेल्शियस कम हो जाता है। जैविकं क्रिया की दृष्टि से यह सबसे महत्त्वपूर्ण परत है।
क्षोभ सीमा :
क्षोभ मण्डल तथा समताप मण्डल को अलग करने वाले भाग को क्षोभ सीमा कहते हैं। विषुवत रेखा के ऊपर क्षोभ सीमा में हवा का तापमान – 80° सेल्शियस और ध्रुव के ऊपर – 45° सेल्शियस होता है। इस परत में किसी प्रकार की परिवर्तनकारी क्रियाएँ नहीं होती हैं। अतः यह अचल स्तर भी कहलाती है। इस परत में तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभ सीमा कहा जाता है।
2. समताप मण्डल :
क्षोभ सीमा के ऊपर 50 कि.मी. की ऊँचाई तक समताप मण्डल का विस्तार पाया जाता है। इस परत में निचली परतों अर्थात् 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान अपरिवर्तित रहता है। इसके ऊपर 50 कि.मी. की ऊँचाई तक तापमान क्रमशः बढ़ता है। समताप मण्डल का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें ओजोन गैस की परत पाई जाती है। यह परत पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी को ऊर्जा के तीव्र तथा हानिकारक तत्त्वों से बचाती है।
3. मध्य मण्डल :
समताप मण्डल के ठीक ऊपर 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक मध्य मण्डल का विस्तार पाया जाता है। इस परत में भी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँच कर यह – 100°C तक हो जाता है। मध्य मण्डल की ऊपरी परत को मध्य सीमा कहते हैं।
4. आयन मण्डल अथवा बाह्य मण्डल :
मध्य मण्डल के ऊपर 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई के मध्य आयन मण्डल स्थित है। इस परत में विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं जिनको आयन कहते हैं। इसी कारण इस परत को आयन मण्डल के नाम से जाना जाता है। इस परत में ध्रुव – ज्योति, उल्काओं की चमक, रेडियो तरंगों का विभिन्न ऊँचाई से पुनः पृथ्वी पर लौटना, नीले आकाश जैसी क्रियाएँ होती हैं। इस परत में ऊँचाई बढ़ने के साथ ही तापमान में वृद्धि शुरू हो जाती है।
5. बहिर्मण्डल:
वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत जो कि आयन मण्डल के ऊपर स्थित है, बहिर्मण्डल के नाम से जानी जाती है। यह सबसे ऊँची परत है तथा इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस परत में उपलब्ध सभी घटक विरल हैं जो कि धीरे- धीरे बाहरी अन्तरिक्ष में मिल जाते हैं।