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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 10 in Hindi वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. यदि धरातल पर वायुदाब 1000 मिलीबार है तो धरातल से 1 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार
(ग) 1100 मिलीबार
(घ) 1300 मिलीबार।
उत्तर:
(ख) 900 मिलीबार
2. अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र प्राय: कहाँ होता है?
(क) विषुवत वृत्त के निकट
(ख) कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ) आर्कटिक वृत्त के निकट।
उत्तर:
(ख) कर्क रेखा के निकट
3. उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(क) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(घ) समदाब रेखाओं के समानान्तर।
उत्तर:
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
4. वायुरा शयों के निर्माण का उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौनसा है?
(क) विषुवतीय वन
(ख) साइबेरिया का मैदानी भा
(ग) हिमालय पर्वत
(घ) दक्कन पठार।
उत्तर:
(ख) साइबेरिया का मैदानी भा
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्रतल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर:
वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार है। वायुदाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने और मानचित्र को तुलनात्मक बनाने के लिए वायुदाब मापने के उपरान्त इसे समुद्रतल के आधार पर मानकर इसकी गणना करते हैं।
प्रश्न 2.
जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात् उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबन्ध में पवनें उत्तरी-पूर्वी क्यों होती हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवन दाब प्रवणता द्वारा निर्देशित दिशा में नहीं बहती बल्कि अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाती है। घूर्णन द्वारा लगने वाला बल ‘कोरिऑलिस’ बल कहलाता है। अत: जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण की तरफ होता है, तब उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण कटिबंधीय पवनों की दिशा कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी-पूर्वी हो जाती है।
प्रश्न 3.
भू-विक्षेपी पवनें क्या हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह से कुछ ऊँचाई पर चलने वाली पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं। अतः जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और उन पर घर्षण का प्रभाव न हो तब दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से सन्तुलित हो जाता है। फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर बहती हैं। ये पवनें ही भू-विक्षेपी पवनें कहलाती हैं।
प्रश्न 4.
समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर:
- समुद्र समीर:
दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बन जाने के कारण समुद्री भागों से स्थल की ओर पवनें चलने लगती हैं जिन्हें समुद्र समीर कहते हैं - स्थल समीर:
रात्रि के समय स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठण्डा होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने से स्थल से समुद्र की ओर पवनें चलने लगती हैं जिन्हें स्थल समीर कहते हैं
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ। पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक।
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है जो कि पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. दाब-प्रवणता बल-वायुमण्डलीय दाब में अन्तर एक बल द्वारा उत्पन्न होता है। दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब – प्रवणता होती है। अत: किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को ‘दाब प्रवणता’ कहते हैं। समदाब रेखाएँ पास-पास होने पर दाब प्रवणता अधिक तथा समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।
2. घर्षण बल:
पवनों की गति को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक घर्षण बल है। धरातल पर घर्षण सबसे अधिक होता है तथा इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। समुद्र की सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है। यह सदैव वायु के विपरीत अवरोध का कार्य करता है। इसके कारण पवन वेग मंद हो जाता है और हवाएँ समदाब रेखाओं के समानान्तर न चलकर कुछ विक्षेपित हो जाती हैं।
3. कोरिऑलिस बल:
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक कोरिऑलिस ने सन् 1844 में इसका सर्वप्रथम विवरण प्रस्तुत किया जिसके आधार पर इस विक्षेपण बल को कोरिऑलिस बल भी कहा जाता है। इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं तरफ विक्षेपित हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधे समानुपात में बढ़ता है। यह बल ध्रुवों पर सबसे अधिक तथा विषुवत वृत्त पर अनुपस्थित होता है।
प्रश्न 2.
पृथ्वी पर वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के सम्भव कारण बताएँ।
उत्तर:
वायुदाब का सामान्य परिसंचरण
वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को ‘वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण’ भी कहा जाता है। इसके कारण महासागरीय जल गतिमान रहता है तथा पृथ्वी की जलवायु भी प्रभावित होती है। सामान्यतः भूमण्डलीय पवनों का प्रारूप अग्रलिखित तथ्यों पर निर्भर करता है-
- वायुमण्डलीय तापमान में अक्षांशीय भिन्नता उत्पन्न होना।
- वायुदाब की पट्टियों की उपस्थिति।
- वायुदाब की पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन होना।
- महासागरों व महाद्वीपों का वितरण।
- पृथ्वी का घूर्णन।
पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को ‘कोष्ठ’ कहते हैं। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठ को ‘हेडले कोष्ठ’ कहा जाता है। मध्य अक्षांशीय वायु परिसंचरण में ध्रुवों से प्रवाहित होती ठण्डी पवनों का अवतलन होता है और उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्धीय क्षेत्रों से आने वाली गर्म हवा ऊपर उठती है। धरातल पर इन पवनों को पछुवा पवनों के नाम से जाना जाता है और यह कोष्ठ ‘फैरल कोष्ठ’ कहलाता है।
ध्रुवीय अक्षांशों पर ठण्डी सघन वायु का ध्रुवों पर अवतलन होता है और मध्य अक्षांशों की तरफ उपध्रुवीय निम्न दाब क्षेत्र की ओर ध्रुवीय पवनों के रूप में प्रवाहित होती है। इस कोष्ठ को ‘ध्रुवीय कोष्ठ’ कहा जाता है। ये तीनों कोष्ठ वायुमण्डल के सामान्य परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं। निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों में तापीय ऊर्जा का स्थानान्तरण सामान्य परिसंचरण को बनाये रखता है। वायुमण्डल का सामान्य परिसंचरण महासागरों को भी प्रभावित करता है। वायुमण्डल में वृहद् पैमाने पर चलने वाली पवनें धीमी तथा अधिक गति की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करती हैं। महासागर वायु को ऊर्जा व जल- वाष्प प्रदान करते हैं।
30° उत्तरी व दक्षिण अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब के सम्भव कारण:
1. अभिसरण – भूमध्यरेखीय प्रदेशों में वर्षभर उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अन्तर :
उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्ण कटिबन्धों से आने वाली पवनें इस निम्न दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती हैं। यह क्षोभमण्डल के ऊपर 14 किलोमीटर की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती है फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती है। इसके परिणामस्वरूप लगभग 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है
2. अवतलन:
30° उत्तर एवं 30° दक्षिण अक्षांश पर एकत्रित वायु का अवतलन होता है और यह उपोष्ण उच्च दाब बनाता है। अवतलन का एक कारण यह है कि जब वायु 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों पर पहुँचती है तो यह ठण्डी हो जाती है। धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह विषुवत वृत्त की तरफ पूर्वी पवनों के रूप में प्रवाहित होती है। विषुव वृत्त के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें अन्तर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र पर मिलती हैं।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं और क्यों?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति-उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात आक्रामक तूफान हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है तथा ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। ये चक्रवात आक्रामक पवनों के कारण व्यापक विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं। उष्ण कटिबन्धीय महासागरों में इन चक्रवातों की उत्पत्ति के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं-
- वृहद् समुद्री सतह जहाँ तापमान 27° सेल्शियस से अधिक होता है। समुद्री भागों में लगातार आर्द्रता की आपूर्ति होने से इनकी गति अधिक प्रबल हो जाती है।
- कोरिऑलिस बल का अधिक प्रभावी होना।
- ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अन्तर कम होना।
- कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना।
- समुद्री तल तन्त्र पर ऊपरी अपसरण, आदि।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को और अधिक विध्वंसक बनाने वाली ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरीय मेघों से प्राप्त होती है जो कि इस तूफान के केन्द्र को घेरे रहती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति होने के कारण ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं। स्थल पर पहुँच कर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है और ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में मूसलाधार वर्षा का क्षेत्र:
एक विकसित उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात केन्द्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण होता है जिसे इसकी आँख कहते हैं। इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 किलोमीटर तक होता है। इसका केन्द्रीय क्षेत्र शान्त होता है जहाँ पवनों का अवतलन होता है। केन्द्रीय भाग के चारों तरफ अक्षुभित्ति होती है जहाँ वायु प्रबल व वृत्ताकार रूप से ऊपर उठती है। ये पवनें क्षोभ सीमा की ऊँचाई तक पहुँचकर इसी क्षेत्र में अधिकतम वेग वाली पवनों को उत्पन्न करती हैं, जिनकी गति 250 किमी. प्रति घण्टा तक होती है। इनसे इस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है। चक्रवात की आँख से रेनबैण्ड विकसित होते हैं तथा कपासी वर्षा बादलों की पंक्तियाँ बाहरी क्षेत्र की तरफ विस्थापित हो जाती हैं । समुद्री क्षेत्रों में लगातार आर्द्रता प्राप्ति के कारण ये चक्रवात तूफानी रूप ग्रहण कर लेते हैं और इनसे तटीय क्षेत्रों में मूसलाधार वर्षा होती है।