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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 23 विराट का भ्रम
Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 23
पाठाधारित प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राजकुमार उत्तर के बारे में राजा विराट को मन में क्या भ्रम था?
उत्तर:
राजा विराट को राजकुमार उत्तर के बारे में यह भ्रम था कि अकेला राजकुमार ने युद्ध के मैदान में कौरवों को हराया है। इसलिए वे आनंद और अहंकार में फूले न समा रहे थे। इसी भ्रम में उन्होंने दूतों को असंख्य रत्न एवं धन पुरस्कार में दिए।
प्रश्न 2.
क्या बात सुनकर विराट चौंक पड़े?
उत्तर:
जब राजा विराट को पता चला कि राजकुमार उत्तर कौरवों से लड़ने गए हैं तो वे चौंक पड़े।
प्रश्न 3.
युधिष्ठिर द्वारा बार-बार वृहन्नला का उल्लेख करने पर विराट ने कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
युधिष्ठिर द्वारा बार-बार वृहन्नला का उल्लेख करने पर विराट झुंझलाकर बोले- “आपने क्या यह वृहन्नला-वृहन्नला की रट लगा रखी है। मैं अपने पुत्र राजकुमार उत्तर की बात कर रहा हूँ और आप उसके सारथी की बड़ाई करने लगे और जैसे से युधिष्ठिर ने वृहन्नला का नाम लेकर कुछ और कहने का प्रयास किया राजा ने कंक (युधिष्ठिर) के मुँह पर पासा दे मारा जिससे कंक के मुँह पर चोट आई और खून बहने लगा।
प्रश्न 4.
अर्जुन ने किन-किन महारथियों को हराया?
उत्तर:
अर्जुन ने कर्ण, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा तथा दुर्योधन जैसे महारथियों को हराया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कंक ने द्वारपाल को केवल राजकुमार को लाने के लिए क्यों कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर (कंक) को डर था कि राजा विराट के हाथों लगी चोट को यदि अर्जुन (वृहन्नला) ने देख लिया तो कहीं उसे क्रोध न आ जाए और कहीं अनिष्ट न हो जाए।
प्रश्न 2.
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को क्या समझाया?
उत्तर:
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को समझाया कि-प्रतिज्ञा का समय पूरा हो चुका है। हर वर्ष में एक जैसे महीने नहीं होते। तुम लोगों के गणना में भूल हुई है। अतः अभी भी समय है पांडवों के साथ संधि कर लो। जब अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी तभी मैं समझ गया था कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। अतः युद्ध शुरू होने से पहले इस बात का निश्चय कर लो कि पांडवों के साथ संधि करनी हैं या नहीं। अभी भी समय है कि उनके साथ समझौता किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से क्या कहा?
उत्तर:
युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने कहा- राजकुमार उत्तर अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गाएँ छुड़ा ली गई हैं। शत्रु भी भाग गए हैं। इस युद्ध में विजय तुम्हारी हुई है। अतः चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना। अर्जुन फिर वृहन्नला के रूप में फिर सारथिी बन गए। दूतों के माध्यम से नगर में खबर भेज दी गई कि राजकुमार उत्तर की विजय हुई है।
Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 23
जब त्रिगर्तराज सुशर्मा पर विजय प्राप्त कर राजा विराट नगर में आए तो उन्हें पता चला कि राजकुमार उत्तर कौरवों से युद्ध करने गए हैं। यह जानकर राजा काफ़ी चिंतित हो गए। राजा को इस तरह से व्याकुल देखकर कंक (युधिष्ठिर) ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आप राजकुमार उत्तर की चिंता छोड़ दें। उनके साथ वृहन्नला सारथी बनकर गई है।
कंक आपस में इस प्रकार की बात कर ही रहे थे कि इतने में उत्तर के भेजे हुए दूतों ने आकर कहा- “राजन! आपका कल्याण हो। राजकुमार जीत गए। कौरव सेना तितर-वितर कर दी गई है।
गायें छुड़ा ली गई हैं। पुत्र के विजय पर राजा खुशी से फूले नहीं समाए। इसके बाद वे चौपड़ खेलने लगे। चोपड़ खेलते-खेलते राजा ने कंक से कहाविख्यात कौरव वीरों को मेरे पुत्र ने अकेले जीत लिया है। कंक ने उन्हें कहा निःसंदेह आपका पुत्र भाग्यशाली है, नहीं तो वृहन्नला उनकी सारथी बनती ही कैसे। इस पर राजा विराट गुस्से से बोले- आपने भी क्या वृहन्नला-वृहन्नला की रट लगा रखी है। मैं अपने पुत्र राजकुमार की विजय की बात कर रहा हूँ और आप सारथी की बड़ाई करने में लगे हैं।
अब युधिष्ठिर वृहन्नला के बारे में कुछ और कहने ही वाले थे कि राजा विराट ने चौपड़ के पासे युधिष्ठिर के मुँह पर मार दिए, जिससे कंकं के मुँह पर चोट आई और खून बहने लगे। इतने में ही द्वारपाल ने आकर सूचना दी कि राजकुमार उत्तर व वृहन्नला द्वार पर खड़े हैं। राजा ने आने की अनुमति दी किंतु युधिष्ठिर ने कहा सिर्फ राजकुमार को लाओ, वृहन्नला को नहीं। युधिष्ठिर को डर था कि कहीं उनके निकलते हुए खून को देखकर अर्जुन कुछ अनर्थ न कर बैठे। राजकुमार उत्तर ने पहले पिता को प्रणाम किया फिर कंक को प्रणाम करना चाहता था तभी उनके मुख से खून बहता देखकर दुखी हो गया। उसने पूछा-पिता जी उनको किसने चोट पहुँचाई है। विराट ने कहा- बेटा! क्रोध में मैंने चौपड़ के पासे फेंक मारे क्यों तुम उदास क्यों हो गए?”
राजकुमार उत्तर काफ़ी भयभीत हो उठा। उसने पिता से अनुरोध किया कि वे कंक से क्षमा याचना करें। तब राजा विराट ने पाँव पकड़कर क्षमा याचना की।
राजकुमार उत्तर में विराट को बताया कि पिता जी, मैंने कोई सेना नहीं हराई। मैं तो लड़ा भी नहीं। विराट ने कौरवों को हराने वाले वीर को बुलाने को कहा। तभी अर्जुन ने सारी सभा में अपना असली परिचय दिया।
वहाँ के प्रजा के आश्चर्य और आनंद का ठिकाना न रहा। राजा विराट का हृदय, कृतज्ञता, आनंद और आश्चर्य से प्रफुल्लित हो उठा। विराट ने कुछ देर बाद अर्जुन से आग्रह किया कि आप राज्य कन्या उत्तरा से विवाह कर लें। अर्जुन ने कहा- राजन! मैं आपकी पुत्री को नाच-गाना सिखाता रहा हूँ। मेरे लिए वह पुत्री के समान है। यह उचित नहीं होगा कि मैं उनके साथ विवाह करूँ। यदि आपकी इच्छा हो तो मेरे पुत्र अभिमन्यु के साथ उसका विवाह हो जाए। राजा विराट ने उनकी बात मान ली।
इसके कुछ समय बाद दुर्योधन के दूतों ने आकर कहा कि प्रतिज्ञा पूरी होने से पहले अर्जुन पहचाने गए हैं। अतः बारह वर्ष के लिए वनवास करना होगा। इस पर युधिष्ठिर हँस पड़े और बोले- “दूतगण शीघ्र ही वापस जाकर दुर्योधन को कहो कि पितामह भीष्म
और जानकारों से पूछकर इस बात का निश्चय करें कि अर्जुन जब वह प्रकट हुआ था, तब प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी या नहीं। मेरा यह दावा है कि तेरहवाँ वर्ष पूरा होने के बाद ही अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी।”
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-56- उत्साह-खुशी, विजय-जीत।
पृष्ठ संख्या-57- चौंक जाना – आश्चर्यचकित हो जाना, आक्रमण – हमला, शोकातुर – दुखी, तितर-बितर – छिन्न-भिन्न, आनंद – खुशी, फूले न समाना – बहुत खुश होना, पुरस्कार – इनाम, विख्यात – प्रसिद्ध, इशारा – संकेत, आदेश – आज्ञा, नमस्कार – प्रणाम, उदास – दुखी, कॉप जाना – डर जाना, प्रतिज्ञा – प्रण, दावा – अधिकार।