Teachers guide students to use Class 6 SST NCERT Solutions and Class 6 Social Science Chapter 4 Question Answer in Hindi Medium इतिहास की समय-रेखा एवं उसके स्रोत for quick learning.
Class 6th SST Chapter 4 Question Answer in Hindi Medium
Social Science Class 6 Chapter 4 Question Answer in Hindi
कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान पाठ 4 के प्रश्न उत्तर in Hindi इतिहास की समय-रेखा एवं उसके स्रोत
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ( पृष्ठ 59 )
प्रश्न 1.
हम ऐतिहासिक काल की गणना किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
ऐतिहासिक काल की गणना समय की एक निश्चित व्यवस्था के अनुसार की जाती हैं। यह आमतौर पर ईसा पूर्व (BC) और ईस्वी (AD) में बाँटी जाती है। इसके अलावा, विभिन्न सभ्यताओं की समयरेखा को उनके शासनकाल महत्त्वपूर्ण घटनाओं या पुरातात्विक खोजों के आधार पर भी निर्धारित किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, मौर्य साम्राज्य का आरंभ 321 ईसा पूर्व और उनकी प्रमुख घटनाओं का समय इन घटनाओं से संबंधित होता है।
प्रश्न 2.
इतिहास को समझने के लिए विभिन्न स्त्रोत हमारी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं?
उत्तर:
इतिहास को समझने के लिए कई प्रकार के स्त्रोत होते हैं-
लिखित स्त्रोतः जैसे- शास्त्र, इतिहास की किताबें, शिलालेख और सरकारी दस्तावेज | ये हमें उस समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हैं।
सांस्कृतिक और भौतिक स्त्रोतः जैसे– मूर्तियाँ, चित्र, सिक्के, आभूषण, वस्तुएँ और भवनों के अवशेष | ये भौतिक रूप से हमें उस काल की कला, संस्कृति | और जीवन-शैली के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
साक्षात्कार और मौखिक परंपराएँ: विभिन्न समुदायों की पारंपरिक कथाएँ और परिवारों से मिली जानकारी भी महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकती हैं।
पुरातात्विक खोजें: पुरानी बस्तियों, अस्तबलों, कब्रगाहों आदि से प्राप्त वस्तुएँ और संरचनाएँ जो अतीत के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देती हैं।
प्रश्न 3.
आदिमानव किस प्रकार रहते थे?
उत्तर:
आदिमानव या प्राचीन मानव के जीवन के बारे में जानकारी पुरातात्विक उत्खननों और मानवशास्त्र पर आधारित है। आदिमानव मुख्य रूप से शिकारी-संग्राहक (Hunter-gatherers) थे। वे जंगलों में रहते थे और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए अपना पेट भरते थे। उनके पास पत्थर, हड्डी और लकड़ी के उपकरण होते थे। वे गुफाओं में रहते थे और आंशिक रूप से आग का उपयोग करते थे। समय के साथ, वे कृषि, पशुपालन और गृहस्थ जीवन की ओर बढ़े, जिससे उनका जीवन थोड़ा व्यवस्थित हुआ।
आइए विचार करें (पृष्ठ 60)
प्रश्न 1.
आपकी अपने अतीत की सबसे पुरानी स्मृति कौन-सी है? क्या आपको याद है कि उस समय आपकी आयु क्या थी? संभवतः पाँच या छह । वर्ष पूर्व तक की यह सभी स्मृतियाँ आपके अतीत का हिस्सा हैं।
उत्तर:
मेरी सबसे पुरानी स्मृति तब की है जब मैं पाँच साल का था। मुझे याद है, एक दिन गर्मी की दोपहर थी और मैं अपने घर के बगीचे में खेल रहा था। मेरे हाथ में एक रंगीन बॉल थी, जिसे मैं बार-बार फेंकता और फिर दौड़कर पकड़ता। आस-पास की बगिया में रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, और पंखों से हल्की-सी हवा चल रही थी। कुछ दूर पर मेरी माँ खड़ी थीं, मुझे देख रही थीं और मुस्कुरा रही थीं। मुझे उस समय की शांति और खुशी अभी भी याद हैं।
प्रश्न 2.
आपको क्या लगता है, अतीत को समझने से हमें वर्तमान विश्व को समझने में कैसे सहायता मिलेगी ?
उत्तर:
अतीत को समझना वर्तमान को समझने में बहुत मददगार हो सकता है, क्योंकि अतीत में जो घटनाएँ, सोच और सामाजिक संरचनाएँ थीं, वे आज के समाज और उसके घटनाक्रम को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, इतिहास से हमें यह पता चलता है कि कैसे पिछली पीढ़ियाँ अपने फैसलों के साथ समाज को आकार देती थीं और कैसे उन फैसलों के परिणाम आज हमारे सामने हैं।
यदि हम अतीत की घटनाओं, संघर्षों और विकास को समझते हैं, तो हम वर्तमान में जो समस्याएँ हैं, उन्हें बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उनके समाधान के लिए सही दिशा में कदम उठा सकते हैं। जैसे- अगर हम ऐतिहासिक असहमति, संघर्ष, या प्रौद्योगिकी में हुए विकास को समझते हैं, तो हम भविष्य के फैसलों में उस ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं, जिससे हम अधिक जागरूक और सोच-समझकर निर्णय ले सकें।
अतीत हमें यह भी सिखाता है कि लोग कैसे बदलते हैं. समाज कैसे विकास करता है और कैसे गलतियाँ भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं। इस प्रकार, अतीत से सीखा हुआ ज्ञान हमें न केवल अपने इतिहास को जानने में मदद करता है, बल्कि हम इससे यह भी समझ सकते हैं कि वर्तमान में हम कहाँ खड़े हैं और भविष्य के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए।
आइए विचार करें ( पृष्ठ 67)
प्रश्न 1.
क्या आपने कभी अपने घर अथवा आस-पास पुराने सिक्कों, पुस्तकों, वस्त्रों, आभूषणों अथवा बर्तनों को देखा है? इन वस्तुओं अथवा पुराने घरों एवं भवनों से हम किस प्रकार की सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, पुराने सिक्कों, पुस्तकों, वस्त्रों, आभूषणों और बर्तनों से हम बहुत-सी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी एकत्र कर सकते हैं। ये वस्तुएँ न केवल हमारे पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर की कहानी सुनाती हैं, बल्कि हमें हमारे पूर्वजों के जीवन, उनकी आदतों और समय के बारे में भी बहुत कुछ सिखाती हैं।
इन वस्तुओं से हम निम्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं-
1. सामाजिक और सांस्कृतिक जानकारी:
पुराने वस्त्रः पुराने कपड़े और वस्त्र उनके पहनावे, सिलाई के तरीके और फैशन के बारे में जानकारी दे सकते हैं। हम यह जान सकते हैं कि किस प्रकार के कपड़े उस समय प्रचलित थे और वे किन अवसरों पर पहने जाते थे।
आभूषणः आभूषणों से यह जानकारी मिल सकती है कि लोग किस तरह के गहनों का उपयोग करते थे, उनके डिजाइन किस प्रकार के थे, और क्या वे किसी विशेष संस्कृति या वर्ग से संबंधित थे।
2. आर्थिक जानकारी:
पुराने सिक्के सिक्के उनके समय की अर्थव्यवस्था और व्यापार के बारे में जानकारी दे सकते हैं। सिक्कों पर अंकित चिह्न, धातु का प्रकार और उनका आकार यह बताता है कि उस समय कौन-सा साम्राज्य या शासन प्रचलित था।
बर्तनः पुराने बर्तनों का उपयोग किस प्रकार की खाद्य प्रथा और तकनीकों में किया जाता था. यह भी दर्शा सकता है। उदाहरण के लिए, ताम्र पात्र, मिट्टी के बर्तन या कांस्य बर्तन किस प्रकार की संस्कृतियों और खाद्य संस्कृति से जुड़े हुए थे।
3. स्थानीय इतिहास और वास्तुकलाः
पुराने घर और भवन: पुराने घरों और भवनों से वास्तुकला और निर्माण शैली के बारे में जानकारी मिलती हैं। हमें यह पता चलता है कि किस प्रकार के निर्माण सामग्री का उपयोग किया जाता था, उस समय की सामाजिक स्थिति और घरों की संरचना किस तरह की थी। इससे हम समाज की आर्थिक स्थिति और जीवन-शैली को समझ सकते हैं।
4. धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी:
पुस्तकें और धर्मग्रंथ: पुराने धार्मिक ग्रंथ, पुस्तकें और साहित्य धार्मिक विश्वासों और परंपराओं को उजागर करते हैं। इससे हम यह जान सकते हैं कि उस समय किस धर्म और संस्कृति का प्रभाव था और लोगों के धार्मिक जीवन की झलक प्राप्त कर सकते हैं।
5. प्रौद्योगिकी और शिल्प कौशल:
शिल्प और उपकरणः पुराने शिल्प उपकरण. औजार और अन्य उपकरण यह दर्शाते हैं कि उस समय की तकनीक और शिल्प कौशल किस स्तर पर था। उदाहरण के लिए, लोहे के औजार, लकड़ी के दस्ताने, काष्ठ शिल्प आदि की जानकारी हमें उस समय की प्रौद्योगिकी के बारे में देती है।
इन वस्तुओं से जानकारी एकत्र करने के तरीके: स्थानीय संग्रहालयों का दौरा करें: आप अपने आस-पास के संग्रहालयों में जाकर उन वस्तुओं को देख सकते हैं और विशेषज्ञों से उन वस्तुओं के इतिहास के बारे में जान सकते हैं।
पुराने परिवार के दस्तावेज: यदि आपके घर में कोई पुरानी किताबें, पत्र या पत्रिकाएँ हैं, तो उन्हें पढ़कर आप परिवार या समुदाय की संस्कृति और इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
पुरातत्वविदों और विशेषज्ञों से संपर्क करें: यदि आपके पास कोई पुरानी वस्तु है, तो आप किसी पुरातत्वज्ञ या इतिहासकार से उसकी पहचान और महत्त्व के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
इस तरह की वस्तुएँ न केवल हमारे अतीत को जीवंत बनाती हैं, बल्कि हमें उस समय की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
आइए पता लगाएँ (पृष्ठ 63)
प्रश्न 1.
इस प्रकार की गणना सरल होती है परंतु इसमें एक समस्या रहती है। ग्रेगोरियन तिथिपत्र में कोई भी वर्ष ‘शून्य’ के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है। वर्ष 1 सा.सं., 1 सा.सं.पू. के तुरंत बाद आता है। 2 सा.सं. पू. से लेकर 2 सा.सं. तक एक समय – रेखा बनाइए। आप देखेंगे कि ‘शून्य वर्ष की अनुपस्थिति के कारण इन दो तिथियों के मध्य केवल 3 वर्ष ही होंगे।
उत्तर:
समय – रेखा (Timeline) बनाने के लिए:
यहाँ, हम ” 1 सा.सं. ( सामान्य संवत ) ” और “1 सा.सं. पू. ( सामान्य संवत पूर्व ) ” के बीच की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए समय-रेखा बनाएँगे।
1. 1 सा.सं. पू. – यह तिथि ” ईसा मसीह के जन्म से पहले” को इंगित करती है।
2. 1 सा.सं.- यह तिथि ” ईसा मसीह के जन्म के बाद” को इंगित करती है।
इसमें, ‘शून्य वर्ष’ का कोई स्थान नहीं है। वर्ष 1 सा.सं.पू. के बाद सीधा 1 सा.सं. आता है, जिसके कारण इन दोनों तिथियों के बीच कोई ” शून्य वर्ष” नहीं होता ।
इस प्रकार, 1 सा.सं.पू. से 1 सा.सं. के बीच 3 वर्ष होते हैं-
1 सा.सं.पू.
1 सा.सं.
2 सा.सं.
यह “शून्य वर्ष” की अनुपस्थिति की समस्या को दर्शाता है।
प्रश्न 2.
किसी भी सा.सं.पू. तथा सा.स. की तिथियों के बीच के वर्षों की गणना करते समय हमें सदैव दोनों को जोड़कर उनके योग में से 1 को घटा देना चाहिए। ऊपर दी गई स्थिति में 2+2-1=3
उत्तर:
आपकी बात सही है, जब हम सा.सं.पू. (सामान्य संवत पूर्व ) और सा.स. ( सामान्य संवत ) की तिथियों के बीच वर्षों की गणना करते हैं, तो हमें इन दोनों वर्षों का योग करके, उसमें से 1 वर्ष घटाना होता है, क्योंकि “ शून्य वर्ष” का अस्तित्व नहीं है।
उदाहरण के रूप में समझते हैं:
मान लीजिए हम 1 सा.सं. पू. और 1 सा.सं. के बीच की अवधि निकालना चाहते हैं ।
चरण 1: जोड़ें दोनों वर्षों को
1 सा.सं.पू. और 1 सा.सं. के बीच के अंतर को समझने के लिए हम पहले दोनों तिथियों का योग करते हैं:
1 (सा.स.पू. + 1 (सा.सं.) = 2
चरण 2: 1 घटाना
अब हम उस योग में से 1 वर्ष घटाते हैं क्योंकि ” शून्य वर्ष” का कोई अस्तित्व नहीं है। 2 – 1 = 1
इसलिए, 1 सा.सं.पू. और 1 सा.सं. के बीच केवल वर्ष का अंतर होता है, जबकि सामान्य रूप से दोनों तिथियों के बीच 2 वर्ष का अंतर माना जाता ।
अब जब हम 2 सा.सं.पू. से 2 सा.सं. तक की गणना करेंगे:
1. 2 (सा.सं.पू.) + 2 (सा.सं.) = 4
2. 4 – 1 = 3
इसलिए, 2 सा.सं.पू. और 2 सा.सं. के बीच 3 वर्ष का अंतर होगा।
सारांश: जब हम सा.सं.पू. और सा.सं. के बीच वर्षों की गणना करते हैं, तो हमें दोनों तिथियों का योग | करके 1 वर्ष घटाना चाहिए ( क्योंकि शून्य वर्ष का कोई अस्तित्व नहीं है ) ।
उदाहरण: 1 सा.सं.पू. और 1 सा.सं. के बीच 1 वर्ष का अंतर, और 2 सा.सं. पू. और 2 सा.सं. के बीच 3 वर्ष का अंतर होगा।
प्रश्न 3.
अपने सहपाठियों के साथ कुछ ऐसे उदाहरणों का अभ्यास कीजिए। उदाहरणार्थ, यदि हम महात्मा बुद्ध के प्रश्न पर पुन: लौटें, मान लीजिए हम आज 2024 सा.सं. में हैं, तो महात्मा बुद्ध का जन्म 560+2024-1=2583 वर्ष पूर्व हुआ था।
उत्तर:
आपके द्वारा दिए गए उदाहरण के आधार पर हम महात्मा बुद्ध के जन्म की तिथि और वर्तमान वर्ष को लेकर गणना करेंगे। आइए इसे विस्तार से समझते हैं-
महात्मा बुद्ध का जन्मः महात्मा बुद्ध का जन्म 560 सा.सं.पू. ( सामान्य संवत पूर्व ) माना जाता है।
वर्तमान वर्ष 2024 सा.सं. (सामान्य संवत )
सवाल: महात्मा बुद्ध का जन्म 560 सा.सं.पू. से लेकर 2024 सा.सं. तक कितने वर्ष पहले हुआ था ?
गणना की प्रक्रिया:
1. 560 सा.सं. पू. और 2024 सा.सं. के बीच का अंतर निकालने के लिए पहले दोनों वर्षों का योग करें:
560 (सा.सं.पू.) + 2024 (सा.सं.) = 2584
2. फिर, चूँकि “ शून्य वर्ष” का कोई अस्तित्व नहीं है, हमें 1 वर्ष घटाना होगा:
2584 – 1 = 2583
उत्तर:
महात्मा बुद्ध का जन्म 2583 वर्ष पूर्व हुआ था।
सामान्य नियम: जब हम सा.सं. पू. और सा.सं. के बीच वर्षों की गणना करते हैं, तो पहले दोनों वर्षों का योग करते हैं और फिर 1 वर्ष घटाते हैं क्योंकि “ शून्य वर्ष” का कोई अस्तित्व नहीं होता ।
तो, इस उदाहरण में 560 सा.सं.पू. से 2024 सा. सं. तक की अवधि 2583 वर्ष है।
आइए पता लगाएँ (पृष्ठ 65 )
प्रश्न 1.
1900 सा.सं. से लेकर आज तक की एक समय-रेखा बनाइए। इस पर अपने दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता, भाई-बहन एवं अपनी जन्मतिथियों को अंकित कीजिए। साथ ही 20वीं शताब्दी सा.सं. के आरंभ वर्ष व अंतिम वर्ष को भी अंकित कीजिए ।
उत्तर:
यहाँ पर 1900 सन् से लेकर आज तक की एक समय-रेखा की रूपरेखा दी जा रही है। आप इसे अपनी जानकारी के अनुसार भर सकते हैं:
1. 1900 स.सं. ( 20वीं शताब्दी का आरंभ )
2. 1947 स. सं. – भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति
3. 2000 स.सं. – 21वीं शताब्दी का प्रारंभ
4. आज का वर्ष (2025 स. सं.)
आप इस समय रेखा पर अपने परिवार के सदस्यों की जन्मतिथियों को इस प्रकार अंकित कर सकते हैं-
- दादा/दादी / नाना / नानी की जन्मतिथि: ( आपके दादा-दादी या नाना-नानी की जन्मतिथि)
- माता-पिता की जन्मतिथि: ( आपके माता-पिता की जन्मतिथि)
- आपके भाई / बहन की जन्मतिथि: (आपके भाई / बहन की जन्मतिथि)
- आपकी जन्मतिथि: ( आपकी जन्मतिथि)
इसके बाद, 20वीं शताब्दी का आरंभ 1900 स. सं. से हुआ और समाप्ति 2000 स.सं. में हुईं।
आइए पता लगाएँ (पृष्ठ 65)
प्रश्न 1.
क्या आप अपने माता एवं पिता के परिवार की तीन पीढ़ियों की जानकारी एकत्र कर सकते हैं? अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, परदादा परदादी, परनाना-परनानी की एक वंशावली बनाइए । उनके नामों का पता लगाइए और यह भी कि वह जीवन-यापन के लिए क्या करते थे एवं उनका जन्म कहाँ हुआ था? साथ ही आप उन स्त्रोतों का भी उल्लेख कीजिए जहाँ से आपने ये सूचनाएँ प्राप्त की हैं।
उत्तर:
मैं व्यक्तिगत जानकारी या किसी विशेष व्यक्ति के परिवार की वंशावली का विवरण देने में सक्षम नहीं हूँ, क्योंकि मुझे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी उनके परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी, या वे किस कार्य में लगे थे, यह सब नहीं पता होता है।
हालाँकि, मैं आपको इस प्रक्रिया में मदद करने के लिए सुझाव दे सकता हूँ कि आप कैसे अपनी वंशावली बना सकते हैं-
1. माता-पिता की जानकारी:
नाम: ( आपके माता और पिता के नाम) जन्म तिथि और स्थान: ( कहाँ पैदा हुए थे?)
जीवन-यापन का कार्य: (क्या वे शिक्षक
थे, व्यापारी, डॉक्टर, किसान आदि ? )
2. दादा-दादी / नाना-नानी की जानकारी:
नामः (आपके दादा दादी, नाना नानी के नाम)
जन्म तिथि और स्थान: ( उनका जन्म कहाँ हुआ था ? )
जीवन-यापन का कार्य: ( क्या वे खेती करते थे, व्यापार करते थे, सरकारी नौकरी करते थे. आदि?)
3. परदादा परदादी / परनाना – परनानी की जानकारी:
नामः ( आपके परदादा परदादी, परनाना- परनानी के नाम )
जन्म तिथि और स्थान: ( उनका जन्म कहाँ हुआ था ? )
जीवन-यापन का कार्य: ( क्या वे कुछ विशेष व्यवसाय करते थे? )
स्त्रोत:
1. परिवार के सदस्य: आपके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी से आप जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
2. पारिवारिक दस्तावेज: कभी-कभी परिवार के सदस्यों के पास जन्म प्रमाणपत्र, पुराने पत्र, या पारिवारिक रिकॉर्ड होते हैं जो इन जानकारी को साबित कर सकते हैं।
3. ऑनलाइन वंशावली स्त्रोत: कुछ वेबसाइटें जैसे – Ancestry.com, MyHeritage आदि वंशावली का रिकॉर्ड रखने में मदद करती हैं, जहाँ आप अपने परिवार के पुराने रिकॉर्ड खोज सकते हैं।
4. स्थानीय कागजात या अभिलेखः कई बार पुराने मंदिरों या पंचायत कार्यालयों में जन्मों के रिकार्ड्स उपलब्ध होते हैं जिन्हें आप स्थानीय अभिलेखागार से प्राप्त कर सकते हैं।
यह प्रक्रिया आपको अपने परिवार की वंशावली बनाने में मदद करेगी।
प्रश्न 1.
अगले पृष्ठ ( पाठ्यपुस्तक) पर इतिहास के स्रोतों से संबंधित कुछ चित्र दिए गए हैं। ये वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं एवं आपके अनुसार क्या दर्शाती हैं? चित्र के सम्मुख दिए गए स्थान में वस्तु से संबंधित प्राप्त जानकारी को लिखिए।
उत्तर:
यहाँ चट्टानी आश्रय में प्रारंभिक मनुष्यों की कुछ गतिविधियाँ दी गई हैं, जिनमें से प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दिया गया है-
1. शिकार और संग्रहणः चट्टानी आश्रयों में प्रारंभिक मानव जानवरों का शिकार करने और भोजन के लिए जंगली पौधों को इकट्ठा करने में लगे हुए थे। इस गतिविधि के साक्ष्य में जानवरों की हड्डियों के अवशेष, पत्थर और हड्डी से बने उपकरण और पौधों के अवशेष शामिल हैं।
2. औज़ार बनानाः पत्थर के औज़ार, जैसे कि हाथ की कुल्हाड़ियाँ, स्क्रेपर्स और तीर-कमान, प्रारंभिक मनुष्यों द्वारा चट्टानी आश्रयों में तैयार किए गए थे। ये उपकरण शिकार, भोजन प्रसंस्करण और अन्य दैनिक कार्यों के लिए आवश्यक थे। गुच्छे और कोर की उपस्थिति उपकरण बनाने की प्रक्रिया को इंगित करती है।
3. आग बनाना और उपयोगः आग ने प्रारंभिक मानव के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
उत्तर:
इसका उपयोग भोजन पकाने, गर्मी प्रदान करने और शिकारियों से बचाने के लिए किया जाता था। चट्टानी आश्रयों में पाए गए चारकोल जमा, राख की परतें और चूल्हे आग के उपयोग के प्रमाण हैं।
4. कला और प्रतीकवादः रॉक आश्रयों में अक्सर प्रागैतिहासिक कला दिखाई देती है | जिसमें दीवारों पर पेंटिंग और नक्काशी भी शामिल है। ये कलाकृतियाँ जानवरों, आकृतियों और अमूर्त प्रतीकों को दर्शाती हैं, जो प्रारंभिक मानव संस्कृति, मान्यताओं और संचार विधियों को दर्शाती हैं।
5. आश्रय और रहने की जगहें: रॉक शेल्टर रहने की जगह के रूप में काम करते हैं, जो कठोर मौसम और शिकारियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। संरचित रहने वाले क्षेत्रों के साक्ष्य, जैसे सोने के स्थान भंडारण क्षेत्र और सांप्रदायिक स्थान, यह दर्शाते हैं कि प्रारंभिक मनुष्यों ने अपने रहने के क्वार्टरों को कैसे व्यवस्थित किया था।
6. सामाजिक और धार्मिक गतिविधियाँ: साक्ष्य से पता चलता है कि चट्टानी आश्रयों का उपयोग सामाजिक और अनुष्ठान गतिविधियों के लिए भी किया जाता था । इसमें दफन स्थलों, अनुष्ठानिक वस्तुओं और सांप्रदायिक स्थानों की उपस्थिति शामिल है जहाँ प्रारंभिक मनुष्यों के समूह समारोहों या सामाजिक बातचीत के लिए एकत्र हुए होंगे।
7. भोजन तैयार करना: प्रारंभिक मानव भोजन चट्टानों के आश्रयों में तैयार करते थे, जैसा कि पत्थरों को पीसने, चूल्हों और प्रसंस्कृत पौधों और पशु सामग्री के अवशेषों से संकेत मिलते हैं। इन गतिविधियों में खाना पकाना, जानवरों को काटना और उपभोग के लिए प्रसंस्करण संयंत्र शामिल थे।
आइए पता लगाएँ ( पृष्ठ 70)
प्रश्न 1.
ऊपर दिए गए चित्र ( पाठ्यपुस्तक ) में शैलाश्रय में आरंभिक मानव से संबंधित कुछ गतिविधियों को देखिए। आप इनमें से किस-किस गतिविधि को पहचान सकते हैं? प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
चित्र में शैलाश्रय में आरंभिक मानव से संबंधित विभिन्न गतिविधियाँ प्रदर्शित हो सकती हैं। इस प्रकार की चित्रों में आमतौर पर उन दिनों के मानवों की दिनचर्या और जीवनशैली की झलक दिखाई देती हैं। कुछ प्रमुख गतिविधियाँ जो इन चित्रों में दिखाई जा सकती हैं, वे निम्नलिखित हो सकती हैं-
1. शिकार करना: शैल चित्रों में हम अक्सर आरंभिक मानवों को शिकार करते हुए देख सकते हैं। वे तीर-कमान, लाठी या अन्य उपकरणों का उपयोग करके जानवरों का शिकार करते थे। यह उनके भोजन प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था ।
2. आग का उपयोगः आरंभिक मानवों को आग का उपयोग करते हुए दिखाया जा सकता है। आग का उपयोग वे खाना पकाने, गर्मी पाने, या शिकारी जानवरों से सुरक्षा के लिए करते थे। चित्र में आग के चारों ओर बैठे लोग इस प्रक्रिया को प्रदर्शित कर सकते हैं।
3. चित्रकारी और कलाः शैलाश्रयों में आरंभिक मानवों द्वारा की गई चित्रकारी को भी चित्र में दिखाया जा सकता है। ये चित्र प्राचीन मानवों के जीवन, शिकार, धार्मिक विश्वासों या अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाते थे। ये चित्र आमतौर पर प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते थे।
4. समूह में जीवन जीनाः शैलाश्रय चित्रों में कभी-कभी मानवों को एकत्रित होते हुए या समूह में रहते हुए दिखाया जाता है। वे एक-दूसरे की मदद से शिकार करते थे. एक साथ भोजन करते थे और एक- दूसरे की रक्षा करते थे।
5. धार्मिक क्रियाएँ: कुछ चित्रों में हम आरंभिक मानवों को धार्मिक या आध्यात्मिक गतिविधियाँ करते हुए देख सकते हैं। वे जानवरों की पूजा, प्राकृतिक तत्वों की पूजा या जीवन और मृत्यु के बारे में अपने विश्वासों को व्यक्त करने के लिए चित्रों का उपयोग करते थे।
इन चित्रों का उद्देश्य आरंभिक मानवों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जीवंत रूप से प्रदर्शित करना था। इन चित्रों के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि वे अपने आस-पास के प्राकृतिक परिवेश से कैसे जुड़े हुए थे और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किस प्रकार के तरीके अपनाते थे ।
आइए पता लगाएँ (पृष्ठ 71)
प्रश्न 1.
अगले पृष्ठ ( पाठ्यपुस्तक) पर दिए गए चित्र का अवलोकन कीजिए। यह कुछ सहस्त्राब्दी पूर्व के कृषक समुदाय की गतिविधियों को प्रदर्शित जिनकी आप पहचान कर सकते हैं। करता है। उन गतिविधियों को सूचीबद्ध कीजिए
उत्तर:
कुछ सहस्राब्दी पहले के कृषि समुदाय अपने अस्तित्व और आजीविका के लिए निम्नलिखित मुख्य गतिविधियों में लगे हुए होंगे-
1. कृषि कार्यः वे अपनी मुख्य आजीविका के लिए भूमि पर कृषि कार्य करते थे, जिसमें अनाज, फल और सब्ज़ियाँ उगाना शामिल था। कृषि तकनीकों का विकास, जैसे- सिंचाई, भूमि की जुताई और बीज बोने की प्रक्रिया, उनकी जीवनशैली का महत्त्वपूर्ण हिस्सा था।
2. पशुपालन: गाय, बकरी, भेड़ आदि पशुओं का पालन करना भी उनके जीवन का हिस्सा था। इन पशुओं से दूध, माँस, और अन्य उत्पाद प्राप्त किए जाते थे। यह एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत था जो उनके भोजन और वस्त्र की आवश्यकताओं को पूरा करता था।
3. शिकार और खाद्य संग्रहणः जबकि कृषि और पशुपालन ने स्थिरता प्रदान की, कुछ समय के लिए शिकार और खाद्य संग्राहन भी महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ थीं। यह विशेषरूप से तब था जब कृषि पूर्णरूप से विकसित नहीं हुआ था ।
4. कला और शिल्पः कृषि समुदायों में कड़ी मेहनत के बाद खाली समय में शिल्प और कला के कार्य भी होते थे। यह वस्त्र बनाने, बर्तन बनाने, आभूषण तैयार करने या अन्य घरेलू उपयोग की वस्तुएँ बनाने में लग सकता था।
5. व्यापार और आदान-प्रदानः कृषि समुदाय अक्सर अन्य समूहों के साथ व्यापार या आदान-प्रदान करते थे। वे अपने उत्पादों जैसे – अनाज, पशुधन और शिल्प वस्तुओं को अन्य समुदायों के साथ बदलते थे, जिससे उनके पास विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ आती थीं।
6. समुदाय और सामाजिक संगठनः कृषि समुदायों में सामाजिक संगठन का भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। समूह एकजुट होकर काम करते थे और बड़े पैमाने पर सामूहिक कार्य करते थे जैसे – फसल का बंटवारा, मवेशियों की देखभाल और सामूहिक त्योहार आदि।
ये गतिविधियाँ दर्शाती हैं कि कैसे कृषि समुदाय अपने अस्तित्व के लिए प्रकृति और संसाधनों का उपयोग किया. साथ ही अपने जीवन को व्यवस्थित करने और विकास की दिशा में कदम बढ़ाया।
एन.सी.ई.आर.टी. प्रश्न, क्रियाकलाप और परियोजनाएँ (पृष्ठ 74)
प्रश्न 1.
एक परियोजना के रूप में अपने आस-पास उपलब्ध इतिहास के स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने परिवार ( यदि आप गाँव में रहते हैं, तो गाँव) का इतिहास लिखिए । परियोजना के लिए अपने शिक्षक से मार्गदर्शन हेतु निवेदन कीजिए।
उत्तर:
परियोजना: मेरे परिवार का इतिहास
उद्देश्य: इस परियोजना का उद्देश्य मेरे परिवार ( या यदि आप गाँव में रहते हैं, तो गाँव) के इतिहास को एकत्रित करना और उस पर शोध करना है, ताकि हम अपने अतीत और परंपराओं के बारे में अधिक जान सकें। इसके माध्यम से हम यह समझ सकेंगे कि हमारा परिवार / गाँव कैसे विकसित हुआ और किन महत्त्वपूर्ण घटनाओं और कारकों ने हमारे जीवन को प्रभावित किया।
स्त्रोतों की पहचान: मैं इस परियोजना में निम्नलिखित स्त्रोतों का उपयोग करूँगा-
1. पारिवारिक गाथाएँ और कहानियाँ: मेरे परिवार के बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी, जैसे कि उनके अनुभव, पारिवारिक परंपराएँ और वे ऐतिहासिक घटनाएँ जिनका उनके जीवन पर प्रभाव पड़ा।
2. पारिवारिक दस्तावेज: पुराने परिवार के दस्तावेज़ (जैसे जन्म- प्रमाणपत्र, विवाह पत्र, पुरानी तस्वीरें, पत्र आदि) जो मेरे परिवार के इतिहास को प्रदर्शित करते हैं।
3. गाँव के पुराने निवासी : यदि मैं गाँव में रहता हूँ, तो गाँव के बुजुर्गों से जानकारी प्राप्त करना, जो गाँव के इतिहास और उसके विकास के बारे में बता सकें।
4. स्थानीय अभिलेख और पुरालेख: गाँव की नगरपालिका या पंचायत के अभिलेख, यदि उपलब्ध हों, जिनसे हम गाँव के संस्थागत इतिहास और विकास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
परियोजना के मुख्य बिंदु:
1. परिवार / गाँव का प्रारंभ: मेरे परिवार की उत्पत्ति कहाँ से हुई और वह समय के साथ कैसे बढ़ा ? यदि गाँव का इतिहास हो तो, गाँव का विकास किस प्रकार हुआ ?
2. महत्त्वपूर्ण घटनाएँ और व्यक्तिः हमारे परिवार या गाँव में कौन-कौन सी महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं और किन व्यक्तियों ने विशेष योगदान दिया?
3. पारिवारिक परंपराएँ और संस्कृतिः परिवार में कौन-सी परंपराएँ और रीति-रिवाज रहे हैं. जिन्हें आज भी हम निभाते हैं?
4. गाँव के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बदलाव: यदि गाँव का इतिहास हो, तो वहाँ पर समय के साथ जो सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन हुए हैं, उनका विवरण।
मार्गदर्शन के लिए शिक्षक से निवेदन: मैं अपने शिक्षक से निवेदन करूँगा कि वे मुझे इस परियोजना के लिए सही दिशा और मार्गदर्शन दें, ताकि मैं अधिक सटीक और प्रामाणिक जानकारी एकत्रित कर सकूँ। मुझे उनके द्वारा दी गई किसी भी अतिरिक्त संसाधन या संदर्भ की भी आवश्यकता हो सकती है।
निष्कर्ष: इस परियोजना का उद्देश्य यह है कि हम अपने परिवार या गाँव के अतीत को जानें और समझें, ताकि हमें अपनी जड़ों का पता चल सके और हम अपने अतीत से कुछ महत्त्वपूर्ण सीख सकें।
प्रश्न 2.
क्या हम इतिहासकारों की तुलना जासूसों से कर सकते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, हम इतिहासकारों की तुलना जासूसों कर सकते हैं, क्योंकि दोनों ही अपने-अपने कार्यों में सूचनाएँ इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने में लगे रहते हैं। इसके लिए कुछ कारण दिए जा सकते हैं-
1. सूचना एकत्र करना: जैसे जासूस अपने मिशन के दौरान जानकारी इकट्ठा करते हैं. वैसे ही इतिहासकार भी इतिहास से संबंधित विभिन्न स्रोतों से जानकारी इकट्ठा करते हैं। ये स्त्रोत कागज, पुरानी किताबें, दस्तावेज. पुरालेख, गवाही, शैल – चित्र और मौखिक परंपराएँ हो सकते हैं।
2. साक्ष्य का विश्लेषण: जासूस विभिन्न तथ्यों और सुरागों का विश्लेषण करके किसी मामले की सच्चाई तक पहुँचने का प्रयास करते हैं, ठीक उसी तरह इतिहासकार विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण करते हैं ताकि वे इतिहास के सही पक्ष को उजागर कर सकें।
3. संदेहपूर्ण जानकारी की जाँच: जासूसों की तरह इतिहासकारों को भी बहुत-सी संदिग्ध और असमान्य जानकारी मिलती है। इतिहासकारों का काम उस जानकारी की पुष्टि करना होता है, ताकि वे तथ्यात्मक और विश्वसनीय निष्कर्ष पर पहुँच सकें ।
4. कहानी और घटनाओं की पुनर्निर्माण: जासूस किसी घटना या अपराध के बारे में सच्चाई जानने के लिए सुराग इकट्ठा करते हैं, उसी तरह इतिहासकार भी अतीत की घटनाओं और समाजों की कहानी को फिर से रचनात्मक रूप से बनाने के लिए पुराने स्त्रोतों से जानकारी प्राप्त करते हैं।
5. गोपनीयता और सावधानीः जासूसों की तरह इतिहासकारों को भी कई बार गोपनीय और छिपी हुई जानकारी मिलती हैं और उन्हें बहुत सावधानी से उस जानकारी का
उपयोग करना होता है, ताकि वे गलत या भ्रामक निष्कर्ष पर न पहुँच जाएँ। इस प्रकार, जासूसों और इतिहासकारों के बीच कई समानताएँ हैं, क्योंकि दोनों ही अपनी-अपनी खोज में तथ्य, सुराग और साक्ष्य जुटाने का काम करते हैं और फिर उनका विश्लेषण करके सही निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 3.
तिथियों के साथ कुछ अभ्यास-
(A) समय- रेखा पर निम्नलिखित तिथियों को कालक्रमानुसार लगाइए- 323 सा.सं., 323 सा.सं.पू., 100 सा.सं., 100 सा.सं.पू., 1900 सा.सं.पू., 1090 सा.सं., 2024 सा.सं.
(B) यदि सम्राट चंद्रगुप्त का जन्म 320 सा.सं. पू. में हुआ तो बताइए उनका संबंध किस शताब्दी से था? उनका जन्म बुद्ध के जन्म से कितने वर्ष पश्चात हुआ ?
(C) झाँसी की रानी का जन्म 1828 सा.सं. में हुआ। उनका संबंध किस शताब्दी से है? उनका जन्म भारत की स्वतंत्रता से कितने वर्ष पूर्व हुआ?
(D) 12,000 वर्ष पूर्व’ को तिथि के रूप में बदलिए ।
उत्तर:
(A) समय – रेखा पर तिथियों को कालक्रमानुसार लगाइए: 323 सा.सं. 323 सा.सं.पू. 100 सा.सं.पू. 100 सा.सं. 1900 सा.सं.पू. 1090 सा.सं. 2024 सा.सं.
(B)
- यदि चंद्रगुप्त का जन्म 321 सा.सं.पू. में
- हुआ था, इसलिए उनका संबंध चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व (4th century BCE) से है।
बुद्ध का जन्म 563 सा.सं.पू. में हुआ था। तो, चंद्रगुप्त का जन्म 243 वर्ष बाद हुआ।
(C)
- झाँसी की रानी का जन्म 1828 सा.सं. में हुआ था, इसलिए उनका संबंध 19वीं शताब्दी से है।
- भारत की स्वतंत्रता 1947 में हुई थी, तो रानी का जन्म भारत की स्वतंत्रता से 119 वर्ष पूर्व हुआ।
(D) 12,000 वर्ष पूर्व का अर्थ है लगभग 10,000 ईसा पूर्व (10,000 BCE ) ।
प्रश्न 4.
किसी निकटतम संग्रहालय के भ्रमण की योजना बनाइए । संग्रहालय की प्रदर्शनियों के विषय में पहले से कुछ जानकारी जुटा लीजिए। इस भ्रमण के दौरान टिप्पणियाँ तैयार कीजिए । भ्रमण के पश्चात एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए और उसमें भ्रमण से जुड़ी स्मृतियों एवं रोचक बातों या घटनाओं को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
संग्रहालय भ्रमण की योजना:
संग्रहालय का नाम: [ यहाँ संग्रहालय का नाम डालें]
स्थान: [ संग्रहालय का स्थान डालें]
भ्रमण का उद्देश्यः इस भ्रमण का उद्देश्य संग्रहालय में प्रदर्शित विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रदर्शनों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। मैं संग्रहालय की प्रदर्शनी में शामिल प्राचीन कलाकृतियाँ, कला, पुरालेख और विज्ञान से संबंधित वस्तुएँ देखूँगा, ताकि मैं हमारे इतिहास, संस्कृति और विज्ञान के विकास को बेहतर तरीके से समझ सकूँ।
तिथि और समय:
भ्रमण की तिथि: [ भ्रमण की तिथि डालें]
समयः [ भ्रमण का समय डालें ]
प्रदर्शनी के विषयों पर जानकारी: संग्रहालय में विभिन्न प्रदर्शनी हो सकती हैं, जैसे-
- प्राचीन भारतीय कला और संस्कृतिः इसमें प्राचीन मूर्तियों, चित्रों, शिलालेखों और अन्य कलाकृतियों का संग्रह हो सकता है, जो भारतीय संस्कृति और इतिहास को दर्शाते हैं।
- वैज्ञानिक और प्राकृतिक इतिहास: इसमें जीवाश्म, पशुओं की कंकाल संरचनाएँ वनस्पति विज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित प्रदर्शनी हो सकती है।
- आधुनिक भारतीय इतिहासः स्वतंत्रता संग्राम, आधुनिक भारत के प्रमुख नेताओं और आंदोलनों के बारे में जानकारी देने वाली प्रदर्शनी ।
भ्रमण के दौरान टिप्पणियाँ: भ्रमण के दौरान, मैं विभिन्न प्रदर्शनी का अवलोकन करूँगा और उनकी जानकारी संकलित करूँगा। मैं निम्नलिखित बिंदुओं पर टिप्पणियाँ करूँगा-
- प्रदर्शनी के विषयः प्रदर्शनी किस विषय पर आधारित है और यह किस प्रकार के दर्शकों को आकर्षित करती है।
- कलाकृतियाँ और वस्तुएँ प्रदर्शित कलाकृतियों और अन्य वस्तुओं के बारे में जानकारी जैसे उनका ऐतिहासिक महत्त्व, कला शैली और सांस्कृतिक संदर्भ ।
- प्रदर्शन का तरीकाः प्रदर्शनी को प्रस्तुत करने का तरीका, जैसे इनकी डिज़ाइन लेआउट और जानकारी देने का तरीका ।
- रोचक घटनाएँ: भ्रमण के दौरान किसी खास प्रदर्शनी या वस्तु के बारे में मिली रोचक जानकारी या घटना ।
भ्रमण के पश्चात रिपोर्ट : संग्रहालय भ्रमण रिपोर्ट
संग्रहालय का नाम: [ संग्रहालय का नाम ]
तिथि: [ भ्रमण की तिथि]
भ्रमण का उद्देश्यः इस भ्रमण का उद्देश्य संग्रहालय प्रदर्शित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कलाकृतियों को देखना और उनकी जानकारी प्राप्त करना था । मैंने संग्रहालय की विभिन्न प्रदर्शनी देखीं, जिनमें प्राचीन भारतीय कला, ऐतिहासिक घटनाएँ और वैज्ञानिक संग्रह शामिल थे।
प्रमुख प्रदर्शनी और घटनाएँ:
1. प्राचीन भारतीय कला प्रदर्शनी: संग्रहालय में भारतीय प्राचीन कला और संस्कृति की अद्भुत प्रदर्शनी थी। विशेष रूप से प्राचीन मूर्तियों और शिलालेखों ने मुझे आकर्षित किया। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ मौर्य और गुप्त काल की थीं, जिनका शिल्प और डिजाइन अत्यंत प्रभावशाली था ।
2. वैज्ञानिक प्रदर्शनी: संग्रहालय में एक वैज्ञानिक प्रदर्शनी भी थी जिसमें प्राचीन जीवाश्मों और वनस्पतियों के संग्रह के बारे में जानकारी दी गई थी। मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि संग्रहालय ने उन जीवाश्मों को इस प्रकार प्रदर्शित किया था, जिससे हम यह समझ सकें कि पृथ्वी पर जीवन का विकास किस प्रकार हुआ ।
3. आधुनिक भारतीय इतिहास: स्वतंत्रता संग्राम के बारे में एक प्रदर्शनी थी, जिसमें महात्मा गांधी, भगत सिंह और अन्य प्रमुख नेताओं के चित्र और उनके योगदान के बारे में जानकारी दी गई थी। इस प्रदर्शनी ने मुझे हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को और अधिक गहराई से समझने में मदद की।
रोचक घटनाएँ: भ्रमण के दौरान एक दिलचस्प | घटना तब घटी जब मैंने संग्रहालय में एक अत्यंत प्राचीन शिलालेख देखा, जिसमें हमारी प्राचीन सभ्यता के बारे में जानकारी दी गई थी। शिलालेख पर लिखे गए शब्दों का अनुवाद करना एक कठिन कार्य था, लेकिन गाइड द्वारा दी गई जानकारी ने मुझे समझने में मदद की।
स्मृतियाँ और निष्कर्ष: यह संग्रहालय भ्रमण मेरे लिए अत्यधिक ज्ञानवर्धक था। मैंने बहुत कुछ सीखा, खासकर हमारे इतिहास, कला और संस्कृति के बारे में। इस अनुभव ने मुझे हमारे इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं और सांस्कृतिक धरोहर को समझने का एक नया दृष्टिकोण दिया। मैं भविष्य में और अधिक संग्रहालयों
का भ्रमण करने का विचार करूँगा।
समाप्ति
[ आपका नाम ]
[ कक्षा और विद्यालय का नाम ]
प्रश्न 5.
अपने विद्यालय में किसी पुरातत्व विज्ञानी अथवा इतिहासकार को आमंत्रित कीजिए और उनसे स्थानीय इतिहास एवं उसे जानना क्यों महत्वपूर्ण है, इस विषय में व्याख्यान देने का आग्रह कीजिए ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।