हार की जीत Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 4
सुदर्शन जी द्वारा रचित यह कहानी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बहुत सुंदर और बलवान था । अपने घोड़े सुलतान की देख-रेख बाबा भारती स्वयं करते थे। अपनी धन-दौलत और नगर छोड़कर वे एक गाँव के बाहर एक छोटे से मंदिर में रहने लगे । लेकिन उन्हें लगता था कि वे सुलतान के बिना नहीं रह पाएँगे । अतः सुलतान पर चढ़कर वे रोज आठ-दस मील का चक्कर लगाते थे।
उस इलाके के प्रसिद्ध डाकू खड्गसिंह ने सुलतान की प्रशंसा सुनकर उसे देखने का मन बना लिया। एक दिन सुलतान को देखने के लिए बाबा भारती के पास पहुँचा। घोड़े को देखते ही उसने उसे प्राप्त करने का मन बना लिया। आखिरकार था तो वह डाकू ही। उसने बाबा भारती से घोड़े की चाल देखने की इच्छा प्रकट की ।
बाबा भारती घोड़े को बाहर लाए और उसकी पीठ पर सवार हो गए। घोड़ा हवा से बातें करने लगा। यह देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह बेरहम था, उसके पास बाहुबल था । जाते-जाते बोला – ” बाबाजी यह घोड़ा मैं आपके पास न रहने दूँगा।”
बाबा भारती डरकर दिन-रात घोड़े की रखवाली में लग गए। कई महीने बीतने के बाद कुछ असावधान हो गए। एक दिन संध्या के समय उन्होंने सुलतान की सवारी करने का निश्चय किया। प्रसन्नतापूर्वक अपने घोड़े पर बैठकर चल दिए। रास्ते में उन्हें एक अपाहिज ने पुकारकर पास के गाँव के एक वैद्य तक पहुँचाने की विनती की।
बाबा ने उस अपाहिज को घोड़े पर बिठाया और स्वयं घोड़े की लगाम पकड़कर चलने लगे। अचानक एक झटका लगा और उनके हाथ से लगाम छूट गई। वह अपाहिज घोड़े पर तनकर बैठ गया और घोड़े को दौड़ा दिया। बाबा ने आवाज़ लगा कर उसे रोका। उसके घोड़ा न लौटाने की बात सुनकर उन्होंने कहा कि घोड़ा तो अब तुम्हारा है, मैं तुम्हें लौटाने के लिए नहीं कहूँगा । एक विनती है कि यह छलभरी घटना किसी को बताना मत।
खड्गसिंह उनका आशय न समझ पाया। बाबा से पूछने पर उसे उत्तर मिला कि जिस किसी को इस घटना का पता चलेगा तो वह किसी असहाय या गरीब पर विश्वास कभी नहीं करेगा। यह कहकर बाबा भारती अपने मंदिर लौट आए।
बाबा भारती के इन विचारों से खड्गसिंह इतना शर्मिंदा हुआ कि रात के अँधेरे में जाकर सुलतान को बाबा के अस्तबल में बाँध आया। उसे अपने किए पर पछतावा था।
अगले दिन स्नान करने के बाद जब बाबा मंदिर में जा रहे थे तो घोड़ा उनकी पदचाप सुनकर जोर से हिनहिनाया। बाबा भारती दौड़ते हुए अस्तबल में जाकर घोड़े से लिपट गए। वह बोले – ” अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा । ”
शब्दार्थ- पृष्ठ संख्या-33-34: अर्पण – आदरपूर्वक देना । खरहरा – लोहे की कई दंत पंक्तियों वाली चौकोर कंघी जिससे घोड़े के बदन को साफ किया जाता है। असबाब – आवश्यक सामान । भ्रांति – भ्रम, शक, संदेह । इलाका – क्षेत्र । कीर्ति – प्रसिद्धि । अधीर-धैर्य खोना । विचित्र – अनोखा | अभिलाषा – चाह, इच्छा । उचककर – उछलकर ।
मुहावरे – चाल पर लट्टू होना – चाल पर मोहित होना । मन मोहना- बहुत अच्छा लगना। हवा से बातें करना – बहुत तेज़ दौड़ना। हृदय पर साँप लोटना – ईर्ष्या होना ।
पृष्ठ संख्या – 35-36: बेरहमी – बिना दया के। प्रतिक्षण – प्रत्येक पल । मिथ्या- झूठ । नाई – समान । मास- महीना । कंगला – गरीब । करुणा-दया। अपाहिज – विकलांग । दुखियारा – दुखी व्यक्ति । विस्मय – हैरानी ।
मुहावरा – फूला न समाना – बहुत अधिक प्रसन्न होना ।
पृष्ठ संख्या-37-38: प्रयोजन – उद्देश्य | सन्नाटा – बिलकुल शांति। बाग – लगाम । पश्चाताप – पछतावा । हिनहिनाना – घोड़े की आवाज़।
परस्पर-आपस में।
मुहावरे – मुख फूल की नाईं खिलना – बहुत प्रसन्न होना । मुँह मोड़ना – साथ छोड़ना । पाँव मन-मन भर भारी होना – दुख के कारण चलना कठिन होना ।