पेड़ की बात Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 13
मिट्टी के नीचे पड़े बीज के अंकुरण की प्रक्रिया बेहद रोचक होती है। सर्दियों के बाद वसंत और फिर वर्षा ऋतु का आगमन होता है। बीज का ढक्कन दरकता है और आहिस्ते-आहिस्ते दो सुकोमल पत्तियों के बीच से अंकुर बाहर निकलता है। अंकुर का बाहर निकलना ठीक उसी प्रकार से होता है, जैसे कोई नन्हा शिशु सिर उठाकर आश्चर्य से नई दुनिया को देख रहा हो ।
पौधे के अंकुर के मिट्टी के अंदर प्रवेश करते अंश को जड़ तथा ऊपर की ओर बढ़ते अंश को तना कहते हैं। प्रकृति का एक आश्चर्यजनक विधान है कि पौधों का तना हर हाल में ऊपर की ओर उठेगा तथा जड़ नीचे की तरफ़ जाएगी। हमारी तरह पेड़-पौधे भी भोजन करते हैं। पेड़-पौधे जड़ के द्वारा माटी से रस – पान करते हैं। माटी में पानी डालने पर उसके भीतर बहुत-से द्रव्य गल जाते हैं। जड़ों को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बंद हो जाता है और वे सूख जाते हैं। इसके अतिरिक्त पेड़-पौधों के पत्ते हवा से आहार ग्रहण करते हैं। जब हम श्वास-प्रश्वास ग्रहण करते हैं तो प्रश्वास के साथ एक प्रकार की विषाक्त वायु बाहर निकलती है, जिसे ‘अंगारक ‘ वायु कहते हैं। यह जहरीली हवा प्राणियों के लिए बेहद खतरनाक होती है, किंतु पेड़-पौधे उसी का सेवन कर उसे पूर्णतया शुद्ध कर देते हैं। पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य – ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक’ वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं और यही अंगार वृक्ष के शरीर में प्रवेश करके उसका संवर्धन करते हैं। पेड़-पौधे प्रकाश चाहते हैं। प्रकाश न मिलने पर ये बच नहीं सकते। सूर्य – किरण का स्पर्श पाकर ही पेड़ पल्लवित – पुष्पित होते हैं। पेड़-पौधों के रेशे – रेशे में सूरज की किरणें आबद्ध हैं। ईंधन को जलाने पर जो प्रकाश व ताप बाहर प्रकट होता है, वह सूर्य की ही ऊर्जा है।
बीज ही पेड़ की संतान है। बीज की सुरक्षा एवं सार को सँभालने के लिए पेड़ फूल की पंखुड़ियों से घिरा एक छोटा-सा घर तैयार करता है। पेड़ों पर मुसकराते फूल को देखकर हमारा मन हर्षित हो उठता है । मधुमक्खी तथा तितली के साथ पौधे की चिरकाल से घनिष्ठता है। पेड़-पौधे अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं। मधुमक्खी व तितली बड़े चाव से मधुपान करती हैं। मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं। पराग कण के बिना बीज पक नहीं सकते। इस प्रकार से अपने शरीर का रस पिलाकर पेड़-पौधे बीजों का पोषण करते हैं।
एक समय ऐसा भी आता है जब वृक्ष की शक्ति क्षीण हो जाती है। उसकी डालियाँ टूटने लगती हैं और एक दिन अकस्मात पेड़ जड़ सहित भूमि पर गिर पड़ता है।
शब्दार्थ –
- पृष्ठ संख्या-145: दरकना – दबाव से फट जाना। अंकुर – पौधे की एक छोटी-सी वृद्धि, एक छोटी-सी नई कली। अंश – भाग, हिस्सा । परीक्षण – जाँच, परख । औंधा – उलटा, मुँह या सिर नीचे किया हुआ ।
- पृष्ठ संख्या–146 : तरल – पानी की तरह बहने वाला द्रव। सूक्ष्मदर्शी – ऐसा यंत्र, जिसमें छोटी-सी – छोटी वस्तु भी बड़ी नज़र आती है। आहार-भोजन, पोषण । श्वास-प्रश्वास – ली या छोड़ी जाने वाली साँस । अंगारक – आग का जलता हुआ टुकड़ा, कार्बन । विधाता – सृष्टि का रचयिता, ब्रह्मा।
- पृष्ठ संख्या – 147: निःशेष – जिसमें कुछ शेष न हो । अरण्य – जंगल । होड़ – मुकाबला । सचेष्ट – चेष्टा या प्रयास करने का भाव । अग्रसर- आगे बढ़ता हुआ । पल्लवित – विकसित, विस्तृज । आबद्ध – जो बँधा हुआ हो । डाँगर – चौपाया जानवर । समाहित- व्यवस्थित रूप में एकत्रित आच्छादित – ढँका हुआ । अपरूप – कुरूप । उपादान – एक प्रकार का द्रव्य ।
- पृष्ठ संख्या – 148 : प्रफुल्लित – फूल की तरह खिला हुआ, प्रसन्न तथा हँसता हुआ । बंधु-बांधव – भाई-बंधु, स्वजन-संबंधी। चिरकाल – दीर्घकाल, बहुत समय । संचय – इकट्ठा करना। क्षीण – कमज़ोर । बयार – हवा ।
- पृष्ठ संख्या – 149: आघात – प्रहार, चोट । थपेड़ा – हवा का तेज झोंका । अकस्मात अचानक, संयोगवश ।