चेतक की वीरता Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 11
श्यामनारायण पांडेय जी द्वारा रचित यह कविता उनकी काव्यकृति ‘हल्दीघाटी’ से ली गई है। इनका जन्म सन् 1907 में हुआ था। ये अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता में देशप्रेम की भावना का संचार करते थे। इनकी ‘हल्दीघाटी’ काव्यकृति समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत रही है। इनकी रचनाएँ वीररस से ओत-प्रोत होती थीं। इस कविता में भी उन्होंने महाराणा प्रताप व उनके घोड़े चेतक की वीरता का ही वर्णन किया गया है। इनकी रचनाएँ स्वतंत्रता सेनानियों में सांस्कृतिक एकता और उत्साह का संचार करती थीं। हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और मेवाड़ के राजा राणा प्रतापं के बीच हुआ था। इस युद्ध में चेतक ने महाराण प्रताप का बहुत साथ दिया था। चेतक रण-क्षेत्र में चौकड़ी मार-मार कर अपनी वीरता दिखा रहा था। वह हवा के गति से तेज़ दौड़ रहा था। राणा प्रताप को कभी चाबुक चलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी। चेतक उनके मन की बात समझता था । राणा प्रताप के ज़रा-सी बाग हिलाते ही वह तेज़ दौड़ जाता था। वह अपने स्वामी के प्रत्येक परिस्थितिजन्य निर्णय को समझ लेता था ।
वह दौड़ने में बहुत कुशल था। वह शत्रु के भालों के बीच में से बहुत तेज़ गति से निकल जाता था। वह एक पल को यहाँ तो दूसरे पल कहीं और। शत्रु उसकी दिशा समझ ही नहीं पाता था। ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ पर उसने अपने शत्रुओं पर आक्रमण न किया हो। वह नदी की लहरों की भाँति आगे बढ़ता कुछ क्षण रुककर तेज़ बिजली की भाँति शत्रु पर टूट पड़ता था। घोड़े की टापों से दुश्मन के शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते थे। उनके अस्त्र-शस्त्र गिर जाते थे।
सप्रसंग व्याख्या
1. रण – बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक – तन पर
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि- मस्तक पर
या आसमान पर घोड़ा था।
(पृष्ठ संख्या-122)
शब्दार्थ – रण- बीच- युद्ध के बीच में। चौकड़ी – चार पैरों वाले जीवों की ऐसी छलाँग जिसमें चारों पैर एक साथ फेंके जाते हैं। निराला – अनोखा । हवा को पाला – हवा से मुकाबला । तन -शरीर । कोड़ा – चाबुक । अरि- मस्तक – दुश्मन का माथा ।
प्रसंग – कविता की यह पंक्तियाँ श्री श्यामनारायण पांडेय जी 1939 में (अर्थात् पराधीन भारत में ) प्रकाशित हुई थी। इस रचना के संचार हो गया था।
द्वारा रचित काव्यकृति ‘हल्दीघाटी’ से ली गई हैं। उनकी यह रचना प्रकाशन से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों में उत्साह का
इस पद्यांश में राणा प्रताप के घोड़े चेतक की साहस, वीरता ( स्फूर्ति तथा चतुराई) का वर्णन है।
व्याख्या- युद्ध-क्षेत्र में चेतक जिस ढंग से चौकड़ी भरता था, वह देखने लायक था। हवा की गति बहुत तेज़ होती है, पर यहाँ तो ऐसा लग रहा था मानो हवा को ही उससे सामना करना पड़ रहा हो अर्थात वह हवा से भी अधिक तेज़ गति से युद्ध – क्षेत्र में दौड़ रहा था। चेतक इतना बुद्धिमान था कि उसके मालिक राणा प्रताप को कभी चाबुक मारना ही नहीं पड़ता था । वह महाराणा प्रताप का इशारा या यूँ कहा जाए कि उनके मन की बात पहले ही समझ जाता था। वह युद्ध – क्षेत्र में इस प्रकार दौड़ता था मानों आसमान में उड़ने वाला घोड़ा हो। वह उछल-उछल कर अपने खुरों से दुश्मन सेना के मस्तक पर इस प्रकार से वार करता था कि एक वार में ही उनकी मृत्यु हो जाती थी।
2. जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर संवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
(पृष्ठ संख्या-122)
शब्दार्थ – तनिक – थोड़ा । बाग – लगाम । उड़ जाता – तेज़ गति से दौड़ जाता। पुतली – आँख के मध्य का काला भाग। फिरी – हिलना ।
प्रसंग – पूर्ववत ।
व्याख्या- वह इतना समझदार था कि राणा प्रताप के थोड़ी-सी लगाम हिलाते ही वह समझ जाता था कि वे क्या चाह रहे हैं और राणा प्रताप जिस तरफ मुड़ने के लिए जरा-सी लगाम हिलाते थे, चेतक उधर ही उनको लेकर उड़ जाता था। वह हवा के समान तेज़ गति से अपने मालिक राणा प्रताप को लेकर उड़ जाता था। राणा प्रताप शत्रु समूह की तरफ जैसे ही आँख घुमाते थे, वह उनका इशारा समझकर उधर ही मुड़ जाता था।
3. कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।
है यहीं रहा, अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं।
(पृष्ठ संख्या-122)
शब्दार्थ – कौशल – कुशलता । चाल – गति । भयानक – भयंकर । भाला – एक शस्त्र जो पहले युद्ध में बहुत प्रयोग किया जाता था। निर्भीक – निडर, बिना डर के । ढालों-युद्ध में आक्रमण को रोकने के लिए प्रयोग किया जाने वाला हथियार। सरपट- तेज़ गति से। करवाल- तलवार, खड्ग । अरिमस्तक – दुश्मन के मस्तक ।
प्रसंग – पूर्ववत ।
व्याख्या – चेतक को देखकर हर कोई दंग रह गया था। उसने अपनी चालों अर्थात चलने, दौड़ने में बहुत कुशलता दिखाई। वह शत्रुओं के असंख्य भालों के बीच में से बिना डरे अपने मालिक को बचाता हुआ निकल जाता था। वह तलवार और ढाल लिए शत्रुओं के बीच में से राणा प्रताप को लेकर बहुत तेज़ गति से निकल जाता था।
दुश्मन उसे जिस स्थान पर देखते थे, अगले ही पल वह राणा प्रताप को लेकर वहाँ से गायब हो जाता था। पूरे युद्ध – क्षेत्र में ऐसा कोई भी स्थान नहीं था जहाँ चेतक नहीं दिखता था। कभी अपनी टापों से किसी शत्रु के मस्तक पर आक्रमण करके उसे घायल कर देता तो कभी किसी शत्रु के मस्तक पर वार करके उसे यमलोक पहुँचा देता । युद्ध क्षेत्र का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं था जहाँ शत्रु को उससे डर ना लग रहा हो ।
4. बढ़ते नद – सा वह लहर गया
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल बज्र – मय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया ।
भाला गिर गया, गिरा निषंग,
हय-टापों से खन गया अंग ।
वैरी- समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग ।
(पृष्ठ संख्या-123)
शब्दार्थ – नद-बड़ी नदी । गया गया – तेज़ गति से यहाँ से वहाँ जाना । ठहर गया – रुक गया। विकराल – भीषण, भयंकर । बज्र-मय-कठोर, उग्र, भीषण । अश्व-टापों – घोड़े के पाँव के पृथ्वी पर पड़ने की आवाज़ । खन – टुकड़ा । अंग- शरीर के भाग ।
बैरी – समाज – दुश्मन समाज।
प्रसंग – पूर्ववत ।
व्याख्या – महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक तेज़ गति से लहराकर बहती नदी के समान बढ़ता ही जा रहा था। तेज़ गति से बढ़ते-बढ़ते अचानक ही रुक जाता और फिर भयंकर उग्र, एवं भीषण बादल की तरह दुश्मन सेना पर बरसकर उसे तहस-नहस कर देता था। राणा प्रताप अपने भाले और तीरों से तेज़ गति से शत्रु पर आक्रमण कर रहे थे। चेतक छलाँग लगा-लगा कर दुश्मन पर वार कर रहा था। उसकी टापों के प्रहार से दुश्मन के अंग क्षत-विक्षत हो रहे थे। खून बह रहा था और दुश्मन मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे। कोई सोच भी नहीं सकता था कि घोड़ा इतनी फुर्ती से अपने मालिक को बचाता हुआ शत्रुओं को नष्ट भी कर सकता है।